शनिवार, मार्च 13, 2010

डुबोया मुझको होने ने(1)

आज शाम बाजार से घर लौट रहा था कि मोबाईल की घंटी बज उठी| बाईक साईड में लगाकर देखा तो कोई अनजान नम्बर था| चार पांच मिनट तक बात चलती रही| गृह मंत्रालय साथ ही था| अब कोई हम से इतनी लम्बी बात कर ले, वो भी बिना हैड क्वार्टर की परमीशन के, तो साहब हो गया उल्लन्घन प्रोटोकॉल का| हाथों-हाथ ही स्पष्टीकरण माँगा गया| एक बार तो मानवाधिकार आयोग से दुहाई करने वाले थे फिर ध्यान आया कि दो-तीन दिन पहले ही महिला सशक्तिकरण बिल पास हो चुका है, सो इरादा बदल दिया| वैसे भी वो कोई खाली थोड़े ही बैठे हैं कि हर ऐरे-गैरे-नाथू-खैरे की दुहाई सुन लें| हिंदु हम, सवर्ण हम, मर्द हम, आयकर दाता हम, अब इतने सारे कसूर पहले ही कर चुके हैं, किस मुंह से इन्साफ की दुहाई देते?खुद ही सीधे निवेदन किया कि कोई हमारे फैन थे, ब्लौग के बारे में तारीफ़ कर रहे थे सो शिष्टाचार के नाते बात सुननी पड़ी|


"हुं, इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हीं मिले थे जिसका फैन बना जाए?कोई पल्ले से पैसे खर्च कर के तुम्हारी तारीफ़ कर रहा था, ये झांसा किसी और को देना| किसका फोन था?"

"ये जो हजारों खर्च करके स्टार नाईट्स में जाते हैं, इन्हें क्या आयोजक पैसे देकर बुलाते हैं तारीफ़ करने के लिए? बताया तो किसी फैन का फोन था|"

"हाँ, तुम्हारा ही तो मुकाबला है इन स्टार्स के साथ| मेरे से ज्यादा तुम्हें कौन जानता है| होगा किसी निठल्ले का फोन या होगी कोई पुरानी सहेली| सीधी बात तो तुमसे आज तक हुई नहीं, जो आज बताओगे| कौन था या थी?"

"देखो, ऐसा इल्जाम मत लगाओ| पुरानी सहेली तो कोई थी ही नहीं, और वैसे भी ये नया नंबर उनके पास थोड़े ही ना है| कोई नया फैन ही था| अब बैठो बाईक पर, घर चलें| लोग देख रहे हैं|"

"हाँ, तो फैन ही होगा| अब तो वैसे भी सुप्रीम कोर्ट तक ने अधिकार दे दिया है| हम भी सब समझती हैं, अखबार हम भी पढ़ते हैं| लक्षण तो तुम्हारे कभी ठीक नहीं रहे| अब सहेली नहीं तो फैन आ गए और ये लोगों का हमें क्या डर दिखा रहे हो| डरे वो जो गलत हो| कौन है ये नया मुह्झोंसा?"

"देखो, हम ऐसे नहीं है| चलो अब घर चलकर पूरी बात कर लेंगे|"

खैर साहब, आधा घंटा तक हम ऐसे निवेदन करते रहे जैसे देश के मंत्री/सचिव .पड़ोसी सरकार के समक्ष करते हैं कि जी, आतंकवादी आपके यहाँ से आये थे और वो हमारे निवेदन ऐसे ही ठुकराते रहे जैसे पाकिस्तान के हुक्मरान हमारे श्वेत-पात्र, पीत-पत्र आदि को नकारते रहते हैं| फिर हमने अपनी लोकतांत्रिक परिपाटी का अनुपालन करते हुए राहत पैकेज का प्रस्ताव किया जो हाई कमान द्वारा बहुत अहसान दिखाते हुए (फॉर दी टाईम बीईंग) मंजूर कर लिया गया| अथ श्री राहत पेकेज कथा|

घर पहुँच कर अकेले में बैठ कर आये हुए फोन के बारे में सोचने लगा| महाशय ने छूटते ही आरोप दागा था कि आपने अपने ब्लौग प्रोफाईल पर ये जो डूबने डाबने वाली बात लिखी है, ये किसी और ब्लौग से चुराई गयी है और हमें चोरी के माल से अपनी दूकान सजाने का कोई हक़ नहीं है| हमें ये भी समझाया गया कि ये जो कूड़ा- कबाड़ा लिखा जा रहा है, इसे लेकर मन में कोई गुमान ना पालूँ कि बहुत उम्दा किस्म की रचनाएं लिखी हैं| सलाह देने वाले ने अपना नाम तो बताया नहीं, ये बता दिया कि फोन किसी चलते फिरते पी सी ओ से कर रहा है, वो भी पैसे खुल्ले करवाने के चक्कर में| मैंने कहा, श्रीमान जी, ये डूबने वाली बात मेरी कही हुई नहीं है, वो हमारे आपके चचा कह गए थे, हमें अपनी जिन्दगी का फलसफा लगा, उड़ा डाली| और इसके अलावा जिन शब्दों में ये सब लिखा जा रहा उनमें से एक शब्द भी अपना इजाद किया हुआ नहीं है, इसलिए लगे हाथों इसका भी डिस्क्लैमेर लगा देंगे ताकि सनद रहे| अब सोचा कि पुनर्विचार करा जाए कि डूबने वाली बात सही है कि नहीं|

तो साहब, शुरू करते हैं शुरुआत से ही| जिस कालोनी में हमारा घर था, वहां पढ़े हुए सिर्फ हम थे, बाकी सब कढ़े हुए थे| ये फैसला करना मुश्किल था कि हमारे लड़कों की जबान तेज थी या हाथ| हम हल्फिया बयान दे सकते हैं कि फ़ुरसतिया जी की जबरिया लिखने वाली पंचलाइन हमारे बाशिंदों से प्रभावित है या फिर वाईस-वरसा है| हमारा सिद्धांत व्यापक था कि उसमें लिखने को छोड़कर बाकी सबकुछ आता था मसलन 'हम तो जबरिया खेलेंगे, खायेंगे, लड़ेंगे, बिखेरेंगे, उजाड़ेंगे, बिगाड़ेंगे आदि-आदि,आ जाओ कौन आता है|' नेकनामी इतनी ज्यादा थी कि आसपास के पांच सात किलोमीटर के इलाके में हमारी कालोनी का नाम लेने मात्र से हमें किसी भी लाइन में लगने से छूट मिल जाती थी, होटल रेस्तरां वाले १०० रुपये का बिल बनने पर नगद ५० रुपये ऑफर करने पर ५०% डिस्काउंट हंसकर, भागकर दिया करते थे(वर्ना पचास भी जाते)| क्रिकेट के मुहल्ला स्तर के आसपास के सारे मैच और टूर्नामेंट और विश्व कप तक हमारी टीम जीतती थी क्योंकि पहले बैटिंग करने की हमारे शर्त थी और फील्डिंग में किसी न किसी बात पर झगड़ा करके वाक-ओवर करना हमारी रीत थी| इनाम न दिए जाने पर विरोधी टीम की गेंद, बल्ला, स्टंप, पैड, यहाँ तक की दूसरी टीम के खिलारिओं के कपडे तक उतरवा कर लाने में हमारे तेज गेंदबाज माहिर थे, बाकी योद्धा रणक्षेत्र/ क्रीड़ाक्षेत्र में मोर्चा संभालते थे(हेनरी फेयोल जॉब रोटेशन वाला सिद्धांत पहले ही प्रतिपादित न कर चुके होते तो ये श्रेय भी हमारे किसी बालसखा को मिलना था)| कप्तानी का रोटेशन वाला फार्मूला हमारे यहाँ बहुत पहले ही ईजाद भी हो चुका था और काफी सफल भी रहा था(असंतोष ना पनपने देने का प्रबंध-सूत्र)| बी.जे.पी. ने तो हमारे यहाँ इसके सफल प्रयोग से प्रेरणा लेकर ये बाद में अपनाया था यू पी और कर्नाटक में| वो मार खा बैठी आधी नक़ल करने में, हमारी टीम की तरह पहले बैटिंग वाला फार्मूला भी ले जाते तो कामयाब रहते| तो जी एक बार रोटेशन में हम कप्तान बन गए| चमड़ी हमारी मोटी थी नहीं उस समय, लोगों की बातें सुनकर हमने हृदय परिवर्तन करते हुए शराफत दिखाई तो मैच हार गए, और पहली बार सुनाने को मिला था - यार, तूने तो मोहल्ले का नाम डुबो दिया|
(क्या ये गाथा एक दिन में ख़त्म हो सकती है?)



लो जी होर सुनो :- 
मास्टरजी ने बोर्ड पर लिख्या , नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली _____ ______ चाली
मास्टरजी: "खड्या हो रे रामफल के, रिक्त स्थान भर"


बालक(डरते-डरते):  "जी मास्टरजी, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली आडी-टेडी चाली"

मास्टरजी ने गुस्से में दो बेंत जमाये और पूछने लगे:"हुं, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली आडी-टेडी चाली?"

बालक(सुबकते हुए): "मास्टरजी, आपसे डर के मन्ने बिल्ली आडी-टेडी चला दी, न तो मास्टरजी, नौ सौ चूहे खाके बिल्ली ते हाल्या भी न जाओगा|"






















6 टिप्‍पणियां:

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  2. लो मजा अब. पहले समझाया था तब तो समझे नही.:)

    रामराम.

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  3. बहुत मजेदार पोस्ट!!!
    पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई.

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  4. हमे तो जी लास्ट वाली बात मजेदार लगी।
    बिल्ली वाली

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  5. लिखते तो सुंदर हो

    शब्‍द नहीं

    शब्‍द तो टाइपे हुए हैं

    विचार।

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  6. हा हा, मखौल मजेदार था भाई। इब मास्टर जी के कैंदा भला।

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