मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

खेद सहित!

क्लोरमिंट वाली पोस्ट में मैंने ज़िक्र किया था कि बाज़ार में दस मिनट के काम में दो घंटे लग गये थे। सोचा था कि आज इस मिस्ट्री(बारामूडा ट्राईएंगल से भी ज्यादा बड़ी) पर से पर्दा उठा दूं, पर अभी रहने देते हैं। और भी कई जरूरी बातें हो गई हैं, पहले उन्हें झेल लो।

दो तीन दिन पहले benamee साहब ने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें उन्होंने ये अनुरोध किया था कि हम सबको कम से कम एक ढंग का अंग्रेजी भाषा का एक ब्लॉग रोज़ाना पढ़ना चाहिये। आगे बढ़ने से पहले स्पष्ट कर दूं कि मैं बेनामी जी की पुरानी पोस्ट्स से भी सहमत रहा होऊं या नहीं, पर उनके द्वारा उठाये गये विषयों पर और उनके प्रयासों का प्रशंसक हूं(मूक समर्थक ही सही)। ताजा पोस्ट में उन्होंने एक लिस्ट दी है चिट्ठाकारों की, जिनके बारे में उनकी राय कुछ ऐसी थी कि इन लेखकों/लेखिकाओं में संभावना दिखाई देती है। हालांकि उन्होंने खुद ही कह दिया कि ये लिस्ट संपूर्ण नहीं है। इस सबसे यह पता चल जाता है कि कितना स्पेडवर्क इन साहब को करना पड़ा होगा, वो भी बिना किसी स्वार्थ के। इस खाकसार का नाम भी उस लिस्ट में शामिल है, और बाकी नाम देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैराथन में धुरंधर धावकों के बीच में किसी ऐसे को भेड़ दिया जाये जो अभी चलना भी नहीं जानता। कोई और होता तो कृतज्ञ होता, पर हमने तो बैनर में ही डिस्कलेमर लगा रखा है कि ’मो सम कौन?(कुटिल, खल, कामी)’, इसलिये अपने सात खून भी माफ़ होने चाहियें जी।

अब बात ये है साहब, कि मैं तो सही मायने में कुछ भूलने के लिये यहां आया हूं, सीखने के लिये नहीं। और पहले अंग्रेजी के ब्लॉग्स ही देखे, पढ़े थे लेकिन एक बार हिंदी ब्लॉग्स देखे तो यहीं के होकर रह गये। अपनी प्रकृति से मेल खाते हुये, टांग खिंचाई, रोमांच, मनोरंजन, तूतूमैंमैं, टंगड़ी मारना, खेमेबंदी, मोर्चाबंदी, घात-प्रतिघात, राई का पहाड़ बनाना, धर्म, कर्म, शर्म, मर्म जैसे सदगुणों से युक्त इस ’स्वर्गादपि गरीयसी’ संसार को तजकर जाना हमें मंजूर नहीं है। और फ़िर, आजकल अपना आज्ञापालन वाला स्विच ऑफ़ है। दूसरों की इच्छाओं का सम्मान करते करते अपच सी हो गई थी। कुछ दिन के लिये स्वभाव परिवर्तन कर रखा है। है ये मेरी बदकिस्मती ही. कि इतनी नेक सलाह ऐसे समय में आई है जब मैं इसे मान नहीं पा रहा हूं। अजीब सी बात है, पर ऐसा ही है कुछ।

एक बार एक आदमी झोंक-झोंक में नारियल के पेड़ पर चढ़ गया। अब नीचे ध्यान गया तो धरती मीलों दूर दिखाई दी। वृक्ष देवता की मनौती मांगी कि ठीक ठाक नीचे उतर गया तो एक सौ एक रूपये का प्रशाद चढ़ायेगा। धीरे धीरे नीचे उतरना शुरू किया, जमीन से दूरी आधी रहने पर मनौती की रकम इक्यावन तक आ गई। थोड़ा और नीचे आने पर इक्कीस, और फ़िर ग्यारह और जब धरती पांच छ: फ़ुट दूर रह गई तो फ़िरौती(मनौती) राशि पांच रूपये रह गई। उसने पेड़ से छलांग लगाई, टटोल कर देखा कि कोई चोट वोट तो नहीं लगी और निश्चिंत होकर वृक्ष के तने को सादर नमस्कार किया और बोला, “महाराज, न चढ़ेंगे अब और न चढ़ायेंगे”।

बेनामी महोदय, पूर्ण विनम्रता से आपका आभार व्यक्त कर रहा हूं कि मुझे आपने नोटिस किया। प्रतिक्रिया अपनी वही है, “महाराज, न चढ़ेंगे अब और न चढ़ायेंगे”। मैं कोई ऐसा सपना नहीं पाल कर आया हूं कि मुझे बड़ा भारी साहित्यकार बनना है(अपनी क्षमता का भान है मुझे), सिर्फ़ हल्की फ़ुल्की मौज लेने का उद्देश्य है। दूसरों की अपेक्षाओं पर पूरा उतरने की कूव्वत नहीं है मुझमें। आशा है कि आप तक अगर यह बात पहुंचेगी तो अन्यथा नहीं लेंगे। मैं आपका प्रशंसक हूं, और रहूंगा। मेरी कोई बात कभी भी अनुचित लगे तो बेझिझक आदेश दे सकते हैं, अनुरोध छोटों को शोभा देता है।

दो और ब्लागर्स के प्रति कृतज्ञता(???)प्रदर्शित करनी है, पर सोचता हूं कि सबको एक साथ नाराज कर दूं तो कैसे चलेगा? मिलते हैं फ़िर ब्रेक के बाद – लेकिन उससे पहले अपने नए मित्र महफ़ूज़ का आभार प्रकट करना चाहूंगा कि फ़त्तू पसंद आया उन्हें(यार लोग चढ़ा ही देते हैं मुझे, और मैं भी ऐसा हूं कि बस्स्स्स…………..)

:) फ़त्तू की सास का आई.क्यू. तो पता चल ही चुका है, आज ससुर का भी आई.क्यू. देख लीजिये। फ़त्तू अपनी ससुराल गया तो घर में केवल उसका ससुर ही था। थोड़ी देर के बाद फ़त्तू, जोकि अभी अभी कुछ महीने लखनऊ में बिताकर आया था, अपने ससुर से बोला, “जी, अब आप इजाजत दे दो तो मैं जाऊं वापिस”। ससुर के होश गायब कि ये पता नहीं क्या मांग रहा है। बात घुमाते हुये उसे कहने लगा कि यार ये खेती का काम ऐसे और वैसे। फ़त्तू ने फ़िर इजाजत मांगी। ससुर ने फ़िर गांव जवार की बात फ़ैलाई। फ़त्तू ने फ़िर इजाजत मांगी, ससुर का गुस्सा अब फ़तू की सास पर बढ़ने लगा कि मुझे बताकर नहीं गई ये इजाजत नाम की बला के बारे में। इतने में फ़तू की सास आ गई और जब फ़त्तू ने इजाजत मांगी तो उसने अपनी कुर्ती की जेब से पांच का नोट निकाला, न्यौछावर किया और फ़त्तू को सौंप दिया। जब वो चलने लगा तो ससुर बोला, “अबे ओ, बावली बूच, इजाजत इजाजत मांग के मेरा खून पी लिया तैने, तन्नै पांच रुपल्ली चाहिये थे तो सीधे-सीधे न कह सके था कि पांच रुपये दे दो।”



9 टिप्‍पणियां:

  1. ’मो सम कौन?(कुटिल, खल, कामी)’
    नाम बड़े और दर्शन खोटे... I mean, छोटे!
    मज़ा आ गया पढ़कर. अब आपका तो नाम है (बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा), जो ठीक समझें सो करें, हमने तो अनुसूचित होने का धन्यवाद दिया था.

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  2. पिछली गलती से सबक लिया की कठिन उर्दू बंद । ये मेरी पहली कसम है। ठीक।

    अब आप जरा मुह मोड़ लीजिये आपके मुह सामने आपकी बड़ाई करने का मन नहीं है। ठीक।

    अनेजा जी उत्तम प्रकृति के लेखक हैं इसमें कोई शक नहीं। लेखन मौज मस्ती के लिए करते हैं पर जो भी करते हैं वो है तो उत्तम ही। आप मौज करें हमें भी कराएँ और ये sillysila यों ही चलता रहे हमें तो इतना ही चाहिए बस।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. भाई इस पोस्ट का मतलब कुछ भी कोई निकाले लेकिन हमें तो इसे पढ़ कर आनंद आ गया...सारी मानसिक थकान उतर गयी..आप की भाषा और कथ्य का कोई जवाब नहीं...पामोलिव है...(पामोलिव दा जवाब नहीं ...याद है कपिल देव वाला एड?)
    नीरज

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  5. मो सम... को ढूँढने निकली। खोजा भी। पढ़ने लगी तो आपने अनामी , क्षमा कीजिएगा बेनामी जी के चिट्ठे का रास्ता दिखा दिया तो वह डीटूर लेकर आ रही हूँ। बहुत लम्बी बहसें देखकर आई हूँ। और आप कह रहे हैं मैराथन की बात! साँस तो मेरी फूल गई है। परन्तु अपने में सम्भावना होने की कोई सम्भावना न पाकर बहुत राहत महसूस हुई।
    नारियल के पेड़ पर चढ़े व्यक्ति की सोच सही लगी। परन्तु आप कहाँ पंजाब में लोगों को नारियल पर चढ़ा रहे हैं? बरोटे(बरगद), पीपल या आम पर चढ़ाते तो सही रहता।
    कुल मिलाकर यहाँ आना आनन्ददायक रहा। आती रहूँगी।
    घुघूती बासूती

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  6. आपका तो अंदाज़ ही निराला है.... हम आपके अब कायल हो गए हैं.... और सच्ची कह रहे रहे हैं..... अब हम आपको ज़िन्दगी भर नहीं छोड़ेंगे.... यह दोस्ती हम अब मरते दम तक निभाएंगे.... फत्तू एक ऐसा कैरेक्टर आप लाये हैं...कि सच्ची कह रहा हूँ.... बहुत हिट होगा... और मैं तो फत्तू का फैन हो गया हूँ.... और कामचोर के इस गाने की क्या कहें.... कान तरस गए हैं... ऐसे गाने सुनने को... आपके टेस्ट को सलाम....

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  7. तुम सम कौन ! सच ही !
    अनोखे भाई ! फत्तू तो गज़ब का कैरेक्टर है !
    पढ़कर आनन्द आया !

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  8. असल मजा तो फत्तू के ससुर ने दे दिया...

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  9. अपने को केन्‍द्र में रखने के कैमॉफ्लाज रच कर, कितनों की तस्‍वीर समा जाती है आप में. जनहित में यह चेतावनी जारी कर रहा हूं-आपका 'मैं' प्रथम पुरुष नहीं अन्‍य पुरुष है, सर्वनाम है.

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