शुक्रवार, जून 11, 2010

सीधी बात, नो बकवास।

कुछ दिन के लिये कहीं, किसी काम से जाना था। कब, ये तय नहीं था।  सीधी बात इसे ही कहते हैं जी हमारी समझ में। कर दो कई कागज काले, दे दे मनों-मन और टनों-टन भाषण, पर किसी के पल्ले रत्ती भर भी पड़ जाये तो हमें याद कौन करेगा?
चूंकि कब जाना होगा और कब लौटना होगा, यह तय नहीं था, मन में एक उत्कंठा सी तो हमारे भी उठ रही थी कि हमारे यूं एकाएक चले जाने को ब्लॉगजगत में कैसे झेला जायेगा? उम्मीद पूरी थी कि तहलका मच जायेगा, बवंडर उठ खड़े होंगे और अपील पर अपील की जायेंगी हमें याद करते हुये कि महाराज लौट आओ। तो सबकी संभावित हालत पर तरस खाते हुये एक बड़ी ही इमोशनल सी पोस्ट लिख कर सेव कर ली कि जाते समय उठाकर पब्लिश ही तो करनी है, कर देंगे। इधर हमारा प्रोग्राम तय हुआ कि कल सुबह आठ बजे जाना है, बारह घण्टे का समय था बीच में, उधर मौसम बेईमान हो गया।  आखिर ये मौसम भी इस ’मो सम’ का मौसेरा भाई ही निकला। आंधी, बारिश, तूफ़ान सब शुरू हो गया, पावर सप्लाई ठप्प हो गई। हम तो खैर हमेशा की तरह उम्मीद से ही थे, अरे मतलब उस उम्मीद से नहीं है यारो, इस उम्मीद से थे कि बिजली रानी लौटेगी, और हम अपनी विदाई की हृदय विदारक सूचना वाली पोस्ट पब्लिश कर सकेंगे।  सोचा कि तब तक शेव कर लेते हैं, वो कौन सा आसान काम है, तब तक लाईट आ जायेगी। शेव आधी अधूरी हुई थी कि इन्वर्टर बैठ गया। अबे यार, मुझे तो शिव बटालवी वाला जवाब ले बैठा था पर तुझे किसके जवाब ने बैठा दिया।  समझा, इन्वर्टर का कम्बीनेशन तो बैटरी के साथ होता है तो यह तय पाया गया कि इसकी बैटरी का जवाब मेरे इन्वर्टर को ले बैठा। वो सारी रात अपने आधे चिकने और आधे खुरदरे चेहरे पर हाथ फ़ेरते हुये, बिजली के इंतज़ार में काटी जी। ’रात भर आपकी याद आती रही’ की तर्ज पर बिजली की याद आती रही लेकिन वो नहीं आई।
सुबह दिन निकलने के बाद उधर तो गाड़ी वाला आकर सर पर सवार हो गया, उधर पैकिंग चालू और बीच बीच में शेविंग चलती रही। कूच का नगाड़ा बज गया, चलो रे पालकी उठाओ कहार का समय आ गया, हम सपरिवार अपनी तशरीफ़ का टोकरा लेकर प्रस्थान कर गये, बड़े अरमानों से लिखी गई वो अति इमोशनल पोस्ट धरी की धरी रह गई।  हमने कई हिलते डुलते सबक सीख लिये इस बात से, गौर फ़रमाइये:_
1. ऊपर वाला बहुत कठोर, बेरहम, बेपरवाह है।     ये जब अपनी पर उतर आये तो इतनी मोहलत नहीं देता बंदे को कि पब्लिश का बटन भी दबाया जा सके। तो भाई, क्या जरूरत है ज्यादा ताम झाम इकट्ठा करने की? झूठ थोड़े ही कह गये हैं बाबा कि ’सब ठाठ धरा रह जायेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।’ पर समझ तभी आती है जब खुद पर बीतती है, और उस समय पछताने के अलावा और कुछ रहता नहीं है।
2. ऊपर वाला बहुत दयालु, रहमदिल है।     कमजोर बन्दों को आजमाईश के मौके नहीं देता कि कहीं टूट न जायें। अगर मोहलत मिल जाती तो अपनी औकात, हैसियत पता चल जानी थी।  हम जैसों के आने से या जाने से कहीं पत्ता भी नहीं खड़कता, खाम्ख्वाह दिल को धक्का सा लगना था।  हमें धक्के से बचाने के लिये उसने कितने बहाने बना दिये।
3. ऊपर वाला जो है, जैसा है, उसे हमारे किसी सर्टिफ़िकेट की जरूरत नहीं है, ये पक्का है कि हम नहीं सुधरने वाले हैं।  बिना बात की बात से तिल का ताड़ बनाये जायेंगे, लंबे लंबे लेख लिखे जायेंगे।  बहुत सताया है मुझे इस बेदर्द जमाने ने, हम भी सबको पका पकाकर थका थकाकर बोर करके बदले लेंगे और लेते रहेंगे।
एक दोस्त है, उसे मुझसे बहुत शिकायत है।  वैसे तो कोई विरला ही परिचित होगा जिसे मुझसे शिकायत न हो, पर अभी बात इस दोस्त की ही।  नाराजगी इस बात की है कि हर पोस्ट में कहीं न कहीं ये क्यों लिख देता हूं कि ’अपना क्या है, देखी जायेगी।’  शिकायत तो मुझे भी बहुत हैं दोस्त, लेकिन तुम्हारी बात मान लेता हूं।  आज ये नहीं लिख रहा हूं कि ’’अपना क्या है, देखी जायेगी’,      आज लिख रहा हूं कि ’यारो, सब अपनी अपनी जिन्दगी देखो, अपना क्या है, देखी नहीं जायेगी तुमसे।’   अब तो खुश हो, मिलाओ हाथ……हा हा हा।
:) फ़त्तू जब स्कूल में पढ़ा करता था, एक बार उसके मास्टर जी ने पूछा, “पांडवों के नाम बताओ?”  फ़त्तू ने सबसे पहले अपना हाथ ऊपर उठाया।  मास्टर जी ने उसे खड़ा किया और जवाब देने के लिये कहा। फ़त्तू, “पांडव पंज हैगे सी जी, एक सी भीम। एक सी ओसदा भरा। एक होर सी, ते एक होर हैगा सी। ते मास्टरजी पंजवें दा मैन्नूं नाम याद नहीं आ रया।”
इसे कहते हैं जी कान्फ़ीडेन्स, और यही हमें फ़त्तू से सीखना है।
आज एक नजर इधर भी ।

17 टिप्‍पणियां:

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  2. ha ha ha fattu ji to bahutahi badhiya nikle...aur ooparwala kuch bhi ho bas ye zaruri hai ki ham jaane ki wo hai...

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  3. दिल खुश कर दिया. इस खुशी में पडले तो सायर-सीरोमनी वड्डे उस्ताद अनुराग शर्मा जी का एक दहाड़ता हुआ चीता (शेर से एक कदम आगे) सुनो (अरे हमने भी तो आपकी कहानी सुनी अब तक - अब हमारी बारी):
    कैसे कहूं खुदा नहीं करता है मुझको याद
    कैसे कहूं खुदा नहीं करता है मुझको याद
    हर पंगा मेरे साथ ही लेता रहा है वो!

    फत्तू की बात पर बचपन का एक किस्सा याद आया. सी आर पी ऍफ़ की कालोनी सी पी डब्ल्यू दी वाले बना रहे थे. मैंने अपने इंद्रजाल-कॉमिक्स मित्र डिम्पी से पूछा - CPWD का मतलब क्या होता है? उत्तर मिला
    c = सेन्ट्रल
    p = वोई जो CRPF में होता है
    w = पता नहीं
    d = डेवलपमेंट

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  4. भावनाओं (और बचपन की यादों) में बहकर यह बताना तो भूल ही गया की यह गीत अपना भी पसंदीदा है.
    लगता है पिछली पोस्ट वाले भी सुनने पड़ेंगे इब ;)

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  5. सबक याद कर लिए.........पर फ़त्तू से कान्फ़िडेन्स सीखना बाकी है ......नो बकवास....से पूरी महाभारत तक ले आए और ये तो पता ही नही चल पाया...गए कहाँ थे...

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  6. @ सायर सिरोमणि वड्डे उस्ताद जी:
    ------------------------
    उस्ताद जी, हो जाये एक दिन मुसायरा सेर, चीते, बघेरे और लकड़ब्ग्घों वाला भी, दिल खुस हो गया जी त्वाडा चीता सुनके।

    @ अर्चना जी:
    ---------
    पता करना है तो ये पता करो जी कि कान्फ़ीडेन्स किस दुकान पर मिलता है, फ़िर जवाब ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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  7. ... और हाँ, "एक दिन या पूरा एक जीवन?" का अगला भाग नहीं दिख रहा है कहीं...

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  8. अरे वाह॒ !
    क्या फ़त्तू मारा है।

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  9. @ वड्डे उस्ताद जी:
    -------------

    बड़े भैया, प्रणाम।
    हां जी, वही....। महाराज, यहीं ब्रेक लगी रहन दो, प्रार्थना है छोटे भाई की।

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  10. चंगा जी! मौका मिले तो इस पेज पर दूसरी कहानी सौभाग्य सुन लेना:
    http://www.radiosabrang.com/test_new/listenstory.php

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  11. वाह फत्तू ! सीख लो फिर सब फतह ।

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  12. @ smart indian:

    उस्ताद जी, मौका? हमें मौका मिले तो सबसे पहले मौका ही छोड़ें, हमारी तो देखी जायेगी।
    पढ़ तो पहले ही रखी थी सर जी, आज सुन भी ली और कमेंट भी मार दिया है, आपको मौका मिले तो नजर डाल लेना।
    आज तो आपने इज्जत बचा ली, चौदह में से सात कमेंट आपके और मेरे ही हो गये, हा हा हा।

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  13. अरे नंबरों में क्या रखा है? इसी बहाने आपसे बातचीत हो गयी वरना समझदार लोगों से बात किये हुए तो ज़माना गुज़र जाता है.
    [Disclaimer: समझदार पे फुर्सत नहीं होती न!]

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  14. ये दोस्त शब्द भी अजीब है.. पल भर में एक रिश्ते का बीज डाल के घना हरा-भरा दरख्त खड़ा कर देता है.. है ना सर??? :) फत्तू का कांफिडेंस जिंदाबाद.. गाने पर तो बस कुर्बान हूँ.

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  15. @ deepak:
    ---------
    ये तो अपनी सोच पर है दीपक, कि शब्दों को सिर्फ़ शब्द समझना है या उन्हें महसूस भी करना है। धर्मेन्दर भाजी जब कहते हैं, "कुत्ते, मैं तेरा खून....." में शब्द महज शब्द हैं और ’उसने कहा था’ कहानी में लहणा सिंह के लिये शब्दों का अर्थ कुछ और ही था। It is upto you as how you accept a message.
    फ़त्तू पसंद आया, उसके लिये धन्यवाद।
    और ..........(संबोधन खाली छोड़ दिया है, अपनी समझ से समझ लेना), कुर्बान वुर्बान होने के लिये ’सर’ लोग ही काफ़ी हैं, तुम्हें अच्छा लगा, अपन कुर्बान हो जायेंगे।
    regards.

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