रविवार, जून 13, 2010

यादों की महक है या महक की यादें? confused as always...........

कभी तुम्हारी महक से बहकता रहा था मैं,
तुम्हारे प्रेम की शीतलता से दहकता रहा था मैं,
एक अरसे बाद लौटा है, वो गुज़रा वक्त माज़ी का,
जिसे ओढ़ा था, पहना था, जिससे चहकता रहा था मैं।

तुम नहीं हो, लेकिन तुम्हारी यादों की महक अब भी बहकाती है,
या फ़िर तुम्हारी महक की यादें हैं, जो हंसाती हैं रुलाती हैं,
बहकती तुम ही थीं पहले, तुम्हीं मुझको बचाती थीं.
सताती भी तुम्हीं थी और तुम्हीं मुझको मनाती थीं।


तुम्हें तब रोक न पाया, न तुमको बांध पाया था,
याद हर सांस करती थी, कहां मैं भूल पाया था,
जाना था, गई थी तुम, तो वापिस फ़िर क्यूं आती हो,
चेहरे तो बदलते  हैं, महक से पकड़ी जाती हो।


अब जब लौट आई हो, तो फ़िर से वापिस भी जाओगी,
मेरी फ़िक्र मत करना, मुझे तुम यहीं पर पाओगी,
न पहले रोक पाया था, न अब ही रोक पाऊंगा,
तुम्हारी बात पर तुमको कहां मैं टोक पाऊंगा।


(***) अब इतनी बात मानोगी, तो मैं जी लूंगा अच्छे से। अबके जाओ तो अपनी यादें, अपनी बातें, अपनी वही महक, अपने करम, अपने अहसान साथ ले जाना। ये कीमती चीजें मेरे किसी काम नहीं आती हैं, उल्टे मेरी आवारगी को बांध लेती हैं। मैं भी एक बार फ़िर से आजाद रहना चाहता हूं, जो था कभी फ़िर से वही होना चाहता हूं। मानोगी न मेरी बात?
--------------------------------------------------------------------------------- दोस्त ने मेरे मरवा दिया है मुझे। उठाकर आर्डर दे देते हैं कि अबके कविता लिख(शायद सोचते होंगे कि कहीं तो दाल गलेगी)। और मैं भी ऐसा कि आ जाता हूं बातों में। शुरू में तो कुछ तुकबन्दी सी हो गई, (***) यहां तक आये थे तो सांस फ़ूल गई जी अपनी। सुन ले प्यारे, सामने तो मैं कह नहीं सकता कुछ, ये कविता-सविता रचना अपने बस की हैं नही। कहो तो चार मील का चक्कर लगा देंगे दौड़ते हुये, ये काम न कहियो आज के बाद। अब तक सांस काबू में नहीं आई है।
टैम थोड़ा ठीक नहीं चल रहा है जी अपना, फ़त्तू भी अब बड़ा आदमी हो गया है। नाराज हो गया है अपने से, कुछ ’ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट’ का आरोप लगा रहा है हमपर। हमने तो फ़िर भी दोस्ती निभाई है, कहीं से जुगाड़ भिड़ाकर एक MNC के franchise store में मैनेजर लगवा दिया था। थोड़ी बहुत इंग्लिश भी सिखा दी थी, जैसी हमें आती थी। बता दिया कि सबसे आसान है interrogative सवालों के जवाब देना। who, when, what की जगह एक शब्द लगाओ, बाकी सारा कट-पेस्ट कर देना, जैसे अपने ब्लॉगजगत में करते हैं।
:) फ़त्तू की कंपनी के MD दौरे पर आये। स्टोर की अस्तव्यस्त हालत देखकर गुस्से से सवाल जवाब करने लगे।
MD, "who is the manager?" 
फ़त्तू मैनेजर, "I is the manager." 
MD, "oh, you are the manager?" 
फ़त्तू मैनेजर, "yes, sir, I are the manager. वैसे सर, अगर इंग्लिश में आपको दिक्कत है तो हिन्दी में बात कर सकते हैं।"
तो जी हमारा प्रिय अपना हृदय तुड़वाकर, तड़पता हुआ छूटकर हमारे खुले हुये दर से आ गया है हमारे पास, लेकिन समझ नहीं पा रहा है कि आखिर MD की इंग्लिश कमजोर होने की सजा उसे क्यों मिली है। हो जायेगा धीरे धीरे ठीक। न हुआ तो फ़िर,  देखी जायेगी अपनी तो.........।

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http://mosamkaun.blogspot.com/

14 टिप्‍पणियां:

  1. guru ji namskaar ...aaj kuchh jaldi me hai ham....,,shahar se bahar hai..//aap lage raho ....jalad aakar sab kuchh padhunga tippani tabhi melegi...abhi alvida

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  2. Kuchh der sanjeeda ho gayi...phir pol khul gaya!
    Bahut mazedar!

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  4. सर जी मुझे तो कविता कन्फ्यूज कर देती हैं. वैसे भी मेरे लिए क से कविता और क से मेरी घरवाली . इन दोनों से मैं डरता हूँ. इन दोनों पर कोई कमेन्ट नहीं करता. और अब आपसे भी डर लगेगा. इन चार शब्दों को लिखने में दस गलतियाँ हो गयी फिर ठीक की. फत्तू बढ़िया है. . मुझे तो आपके लेखो में ही कविता का सा प्रवाह ही देखने को मिलता है.

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  5. अति सुन्दर! आप तो कवि भी हैं. अभी कितने रंग और छिपाकर रखे हुए हैं?

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  6. धन्य हो महराज! कहाँ से चले और कहाँ पहुँच गए !!
    अलग सा।
    एक बात पूछूँ - आप और डीहवारा वाले Kant मित्र हैं क्या?
    कविता पढ़ कर पूछने का मन कर दिया।

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  7. @ फ़िरदौस खान:
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    आपका शुक्रिया।

    @ शेखर कुमावत:
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    शुक्रिया शेखर।


    @ राजेन्द्र मीणा:
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    प्यारे तुला राशि, क्यूं भार चढ़ा रहा है? ये गुरूजी टाईप बात मत किया करो यार। हम तो न गुरू बन सकते हैं किसी के और अब किसी के नये चेले भी नहीं बन सकते। हो लिया जो होना था। सच में ये गुरू टाईप का कमेंट मत करना यार।

    @ kshama ji:
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    मैडम, स्वास्थ्य कैसा है अब? हमारी शुभकामनाये लें स्वास्थ्यलाभ के लिये।

    @ अदा जी:
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    दाद तो जी हमें देनी चाहिये आपकी हिम्मत की। हमारे जैसे झेलाऊ की हर पोस्ट पर आप उत्साह बढ़ा जाती हैं।
    ये गाना हमें तो पसंद है जी बहुत। पसंद अपनी अपनी, ख्याल अपना अपना। और सरकार, फ़ायर ब्रिगेड हर आग कहां बुझा पाती है? बहरहाल आपका धन्यवाद।

    @ विचार शून्य:
    -----------
    तुम काहे डरते हो भैया? हम निरापद किस्म के हिलेले हैं, न छॆड़ो हमें और न डरो :)

    @ अनुराग शर्मा जी:
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    आपको ये भी सुन्दर लगी, सर? आप भी वैसे मजाक अच्छा कर लेते हैं, सीरियस दिखने वाला।

    @ गिरिजेश राव जी:
    -------------
    आपकी उपस्थिति से धन्य तो हम हो गये, महाराज। हम तो माने बैठे थे कि हम भुलाये जा चुके हैं।
    मैं ’डीहवारा’ वाले रजनीकांत जी का फ़ॉलोवर हूं सर, a proud early bird follower. कल को जब उनके followers की लाईन लगी होगी तो मुझे खुशी होगी कि मैं उनका तीसरा या चौथा फ़ॉलोवर था, बिना किसी परिचय के।

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  8. लगता है आप पर भी ब्लाग कवियों की (कु)संगति का असर हो लिया. वैसे होता है किसी किसी पर ऎसा असर भी होता है, ओर किसी किसी पर नहीं भी होता है...बहरहाल आपकी कविता और फत्तू मियाँ की अंग्रेजी दोनों असरदार हैं :)

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  9. वैसे यह तो महक की यादें ही लग रहीं हैं..... पर कविता का यह नया अंदाज़ ....बहुत बढ़िया लगा..... मेरे फत्तू की तो बात ही अलग है..... आजकल फत्तू बहुत इंटेलिजेंट हो गया है..... और आपके कलेक्शंस के तो क्या कहने..... दिल छू लेते हैं आप.....

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  10. साँस काबू में करिए भाई.. सास नहीं.. :)
    कविता इत्ती बढ़िया लिखेंगे तो लोग कहेंगे ना.. सही है अपनी-अपनी अंग्रेज़ी है, क्या गलत-क्या सही सब एक ही सिक्के के पहलू हैं..
    और ये वीडिओ क्या सही छंट कर लाते हैं आप!!!!!

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  11. @ पं. श्री वत्स जी:
    --------------
    महाराज, कवि बेचारों को नाहक ही दोष दे रहे हैं आप। कविता को कोई बुरा नहीं बताता :)

    @ महफ़ूज़ अली:
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    भाई जान, लगता है मुझसे ज्यादा फ़त्तू से दोस्ती हो गई है, खैर वो भी अपना ही है। और धन्यवाद, ये गाना तुम्हें तो अच्छा लगा, नहीं तो इस बेचारे का तो अदा जी ने भी मजाक उड़ा दिया।

    @ दीपक:
    ------
    भाई, सांस ही लिखा है,ये बिन्दु ऊपर वाले हु के हुक में फ़ंस गई है। ये बिन्दु रेखा वगैरह ऐसे ही उलझाती रही हैं मुझे:)

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  12. अरे इत्नी बढिया कविता बनी है...क्यों कहते हैं कि आप कविता नहीं लिख पाते? बहुत सुन्दर पोस्ट.

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