शनिवार, सितंबर 25, 2010

बिछड़े सभी बारी बारी-५






भाग-१भाग-२,  भाग-३भाग-4 और  अब आगे झेलिये

सुबह के लगभग आठ बज गये थे और हम झिलमिल गुफ़ा के बाहर बने खोखों में चाय पी रहे थे और साथ में कुछ खा भी रहे थे जिन्हें दुकानदार पकौड़े बता रहा था। आगे का चार्ज अब भोला को सौंप दिया गया था। भोला ने दुकानदार से वापिस जाने के  रास्ते के बारे में पूछा। दुकानदार बोला, “यहाँ से ऋषिकेश जाने के दो रास्ते हैं।” भोला बीच में ही बोला, “ओ यार, दो रंग ते दो रस्ते प्यार दे  पता है सानूं, ओ रस्ता बता जिसदे आसपास तीन चार किलोमीटर तक कोई मन्दिर न हो, इन बंदों का पता ठिकाना नहीं कुछ।” फ़िर जैसा कि पता चला, एक रास्ता तो वही था जिसपर चलकर हम पहुंचे थे, दूसरा एक कच्चा रास्ता था जो जंगल में से होते हुये गंगा बैराज के पास निकलता था। उसी lesstrodden रास्ते पर चलने का फ़ैसला करके हम चल पड़े।
वापिसी में और भी कई टोलियाँ मिलीं, थे लगभग सारे ही छड़े। ये सारा रास्ता उतराई का था तो मुझे लग रहा था कि वापिसी में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। अब जो हालत हो रही थी तो विजय सिंह की वो गज़ल याद आ रही थी, ’कल जो पी थी अजी ये तो उसका नशा है, तुम्हारी कसम आज पी ही नहीं’।  पिछली सारी रात जो पहाड़ों में चलते रहे थे, अंधेरी रात, ठंडी हवायें, कोई इंसानी कोलाहल नहीं, और मंजिल तक पहुंचने का रोमांच और सबसे बड़ी बात ये कि भीड़ का हिस्सा न बनकर कुछ अलग चलने और अलग से कुछ करने का थ्रिल, उस समय तो कुछ महसूस नहीं हो रहा था लेकिन अब उतराई में भी पैर कहीं रखते थे और पैर कहीं पड़ता था।  भोला रूट इंचार्ज तो बन गया था लेकिन इस परेड में हमारी पोजीशनिंग वही थी पुराने वाली। भोला कहने लगा, संजय बाऊ दे मैं अग्गे नहीं चल सकदा और लोक दे पीछे नहीं रैणा। मतलब, हरावल दस्ते में मैं, बीच में भोला और कवर अप देते हुये आलोक, असली बात उसका ये  डर था कि कोई जानवर कहीं आकर हमला न कर दें। अपन आगे इसीलिये थे कि काश इसका सोचा सच हो ही जाये और खुदा की कसम मजा आ ही जाये। खैर एक्दम पथरीला रास्ता था, ऊबड़ खाबड़। जंगल कुछ घना नहीं था लेकिन फ़िर भी माहौल तो अच्छा सा था ही। एक जगह पर आये तो देखा कम से कम तीस चालीस लड़के इकट्ठे होकर रुके हुये हैं एक जगह।  पास जाकर देखा तो रास्ते को घेर कर लंगूरों का एक जत्था बैठा था जैसे हर दूसरे तीसरे दिन हमारे देश में  चक्का जाम होता रहता है।  अब लड़के तो लड़के, कोई हुश्श शुश्श करता तो उधर से वो काले मुंह वाले भी दांत पीसते। एक लड़के ने एक पेड़ की टूटी हुई टहनी  उठाई और जैसे ही उस झुंड की तरफ़ फ़ेकंने लगा, भोला ने बहुत गुस्से से उसे डांटा और फ़िर हमुमान चालीसा पढ़ने लगा। सच कहूँ, तो मुझे खुद अजीब सा लग रहा था लेकिन उसमें श्रद्धा बहुत है, और हर धर्म और हर देवी देवता के  बारे में। लड़कों को समझाया कि शरारत न करें और पांच सात मिनट बाद रास्ता क्लियर हुआ।
अब पहाड़ी रास्ता लगभग खत्म हो गया था, ढलान भर रह गई थी। दोनों तरफ़ ऊंची ऊंची घास, इतनी ऊंची की  छोटा मोटा हाथी  तो दिखे भी नहीं, इसीलिये शायद हाथीघास कहते हैं उसे। अब हमारी व्यूह संरचना छिन्न-भिन्न हो गई थी, क्योंकि दिन निकल आया था अच्छी तरह और जंगली जानवरों का खतरा अपेक्षाकॄत कम हो गया था। ऐसा ही तो होता है हम अबके साथ, किसी आसन्न संकट के समय हम चौकन्ने होते हैं, और संकटकाल के बाद या शान्त समय में लापरवाह और हमारी इसी गफ़लत का फ़ायदा शरारती लोग उठा जाते हैं। खैर, अब हम लोग थके हुये थे, हंसी-मजाक वगैरह भी न के बराबर हो रहा था और रास्ता बहुत लंबा लग रहा था। कोई थक जाता तो बिना किसी से कुछ कहे थोड़ा सा सुस्ता लेता और फ़िर जो आगे निकल जाता वो इंतज़ार करता और इस बहाने सुस्ता लेता। ऐसे ही एक समय में भोला पीछे रह गया, एक मोड़ पर मैं और आलोक खड़े उसे देख रहे थे। कुछ देर में वो दूर से तेज तेज कदमों से  आता दिखाई दिया।  आलोक ने मुझे इशारा किया और हम थोड़ा सा घास में होकर खड़े हो गये। भोला ने मोड़ पार किया, आगे दूर दूर तक कोई नहीं दिखा और भोला ने एकदम से फ़र्राटा भरा और भाग लिया। अच्छी से अच्छी मेक की गाड़ी फ़ेल हो जाती उसकी एक्सेलेरेशन देखकर।  जब तक हम घास से बाहर निकल कर उसे पुकारते, तब तक हमारा देसी ’ओसान बैल्ट’  सीमा रेखा से बाहर पहुंच चुका था।
अपनी वो पेट दर्द और पीछे पुलिस वाली पोस्ट तो याद ही होगी आपको, कुछ वैसा ही सीन था। मैं और आलोक अब आराम से चलते हुये बैराज की तरफ़ बढ़े और सोच रहे थे कि हमारा स्वागत किस अंदाज में होगा। लो जी, शिव-शंभू, शिव-शंभू करते हमारा रास्ता खत्म हुआ, गंगा के किनारे एक स्टाल बना हुआ था, जिसकी हालत पिछली शाम से देखी गई सभी दुकानों से बेहतर थी और हमारा भगौड़ा भोला   ब्रैड पकौड़े खा रहा था। हमने उससे पूछा कि भागा क्यों, तो हमीं पर इल्जाम लगा दिया कि हम उसे अकेले को छोड़कर भागे थे और वो हमें पकड़ने के लिये भागा था और फ़िर उसने ब्रैड-पकौड़े की कड़ाही के पास ही आकर दम लिया था। मैंने कहा, फ़िर खाना भी यहीं खा लेते हैं, टाईम तो हो ही रहा है, लेकिन उसने वीटो लगा दिया कि इस दे कोल भरथा नहीं हैगा। अब साहब,एक बेगुणी चीज के लिये ऐसे गुणीजन को नाराज करना हमारे भुरभुरे स्वभाव के विरुद्ध था। उसे लेकर बाजार में आये, एक ढाबे से उसकी पसंदीदा डिश के साथ खाना खिलाया। कुछ देर आराम करके हरिद्वार को वापिसी, और रात में ट्रेन पकड़ी और लौट के …………..।
मैं फ़ोन या दूसरे संपर्क  के मामले में बहुत आलसी, चूज़ी और जो जो नैगेटिव गुण हो सकते हैं, उनसे लबरेज हूँ। मैं नहीं करता फ़ोन, लेकिन उसका फ़ोन अब भी हर दस पन्द्र्ह दिन बाद आ जाता है, ’कदों चलना है दुबारा?”  शेर के बच्चे ने पेंशन ऑप्शन नहीं दिया ’कौन करेगा जी हर महीने बैंक वालों के दर्शन?’इक्को वार पी.एफ़. लैके चले जाना है।” पी.एफ़. में अभी तक नोमिनेशन नहीं किया किसी का। सनझाता था मैं तो आखिर में इस बात पर तैयार हुआ कि मेरा नाम लिखवा देता है, अब मैं मुकर गया। जिम्मेदारी से मुकरने में वैसे ही बड़ा नाम है अपना। फ़ोन पर एक और ताकीद हर बार करता है, “बच्चों पर गुस्सा न करना।”  अपने बच्चों को प्यार भी नहीं कर सकता और दूसरों को सीख देता है। आखिर में फ़िर वही सवाल, “कदों चलना है हरिद्वार दुबारा?”  उसे तो झूठमूठ कह देता हूँ हर बार कि आ रहा हूँ अगले महीने, छुट्टियां बचा कर रखे और वो यकीन भी कर लेता है लेकिन मैं ही कहाँ निकल पाता हूँ अब?
लेकिन जाना जरूर  है एक अनजाने और लंबे  सफ़र पर, जिसकी कोई मंजिल  नहीं  और हर अनछुई और अनजानी जगह मंजिल हो, देखते हैं कब निकलना होगा। अपनी डैडलाईन  ज्यादा से ज्यादा २०१५ तक तय है, बाकी तो देखी जायेगी।
अगर आप सबको घुमक्कड़ी का शौक है या यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं तो इस ब्लॉग, मुसाफ़िर हूँ यारों  पर नजर जरूर डालियेगा। बंदा एक मौलिक घुमक्कड़ है, सिंपल, जमीन का आदमी, मस्त। मुझ सहित कुछ लोग इसे घुमक्कड़ी का ब्रांड एम्बैसेडर कहते हैं और अगर आप इन महाराज की सारी पोस्ट्स पढ़ लें, तो शायद आप भी मान जायेंगे। एकदम सादगी से, बिना लाऊड हुये कहीं भी और किधर भी चल देना, मेरी नजर में तो परफ़ैक्ट घुमक्कड़ है।
पहले सिर्फ़ महिला ब्लॉगर्स से माफ़ी मांगी है, आज हिन्दी-ब्लॉगर्स से अग्रिम माफ़ी का अभिलाषी हूँ।
:) सफ़र में फ़त्तू महाराज को रात हो गई। एक मकान दिखाई दिया तो दरवाजा खटखटाने पर मालकिन जी बाहर आईं। सारी बात सुनने के बाद उन्होंने सहानुभूति तो दिखाई लेकिन साथ ही कहा कि इनके पति घर में नहीं हैं, कमरा एक ही है  और वे अकेली हैं। चरित्र पर इस तरह से शक किये जाना  फ़त्तू को बहुत नागवार गुजरा। उसने महिला से कहा, “देखिये जी, मैं एक हिन्दी-ब्लॉगर हूँ।  आप सबको एक नजर से मत देखिये। मैं एक शरीफ़, इज्जतदार इंसान हूँ, कोई ऐरा गैरा नहीं। पिछले लगभग दो साल से मैं हिन्दी ब्लॉगिंग कर रहा हूँ। मेरे देश विदेश में इतने फ़ॉलोअर्स हैं, इतने कमेंट मुझे मिलते हैं, ऐसा और वैसा।” इतना सुना दिया अपने हिन्दी ब्लॉगर होने पर कि महिला को उन्हें शरण देनी ही पड़ी। बातचीत चलने पर महिला ने बताया कि छोटी जगह है, ज्यादा खर्चे हैं नहीं, एक छोटा सा पौल्ट्री फ़ार्म है, गुजारे लायक कमाई वहाँ से हो ही जाती है। खैर, फ़त्तू अग्निपरीक्षा से सकुशल पार हुआ और  सुबह जाते समय फ़त्तू ने पौल्ट्री फ़ार्म पर नजर डाली तो मुर्गे और मुर्गियों की लगभग बराबर संख्या देखकर महिला से कहा, “ मेरी जानकारी के हिसाब से इतनी मुर्गियों के साथ इतने मुर्गे पालना बेकार है। एक मुर्गा रहने पर भी आपका इस साईज का पौल्ट्री फ़ार्म बखूबी चलेगा। महिला बोलीं, “जी,आप ठीक कहते हैं, लेकिन आप को गलती लगी है। इनमें से मुर्गा तो एक ही है, बाकी सारे तो हिन्दी-ब्लॉगर्स ही हैं।”
बहुत हो गई जी कुक्क्ड़-कूं, आज के लिये इतना बहुत है। गाना सुनिये सीनियर बर्मन साहब की आवाज में, हम करते हैं सफ़र की तैयारी।

43 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ कमेन्ट तो सोचा था, फिर गाना सुनने में लग गया, तो सब भूल गया. भाई के पसंदीदा गानों में से एक. SD साहब गिने चुने गाने गातें थे, पर गाते थे छांट छांट के ! आपके शीर्षक पे भी गाने खूब फबता है ...
    दम ले ले घड़ी भर, ये छैयाँ पायेगा कहाँ.... क्या बात है ...
    लिखते रहिये ...

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  2. चले जाओ जी एक बार फिर से भोला के साथ,
    किसी का दिल तोडना अच्छा नहीं।
    पूरी यात्रा में मजा बहुत आया।
    हम तो मुसाफिर जाट के पुराने पंखें हैं जी, सच असली घुमक्कड तो वही है।
    जय हिन्दी ब्लॉगर्स की

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  3. हमें भी इसी तरह बंदरो का एक झुण्ड मिल गया था जब हम शिमला में किसी देवी के मंदिर के दर्शन करने थोड़ी पहाड़ी पर चढ़े थे | वो तो मंदिर का अन्दर घुस कर हमारे हाथ से उस प्रसाद को भी ले गये जो हम देवी पर चढ़ा रहे थे |

    और फत्तू :-)

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  4. अरे - संजय भाई, कहाँ नाक कटवा दी फत्तू की.

    च च च च ........... लगता है आने वाले समय में हिंदी ब्लोगर्स के लिए तीसरा कालम बनेगा. स्त्री लिंग, पुल्लिंग और हिंदी ब्लोग्गेर्स.


    और हाँ "संजय बाऊ दे मैं अग्गे नहीं चल सकदा" रास्ते में मेरा भी डाइलोग यही रहेना वाला है."

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  5. तनेजा साहब मैं तो शुरू से ही मानता रहा हूँ कि हिंदी ब्लॉगर एक डंक विहीन, हानि रहित जीव है जो तभी सच बोल पता है जब उसका चेहरा छुपा होता है और प्रत्यक्ष में बहुत बढ़िया , शानदार, बेहतरीन प्रस्तुति, लाजवाब और नाइस जैसे शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं कह पाता और अपने फत्तू ने इसे प्रमाणित कर दिया.

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  6. @ Majaal:
    भाई भूल नहीं गया, कुछ लिहाज से चुप रह गया, है न? मज़ाल भाई, कह देते तो अच्छा रहता, मेरे लिये भी।
    सचिन साहब का गाया एक एक गीत मीलपत्थर है। ’मेरे साजन हैं उस पार’ की टक्कर का गीत इस रेंज में मुझे तो लगा नहीं। आपको गीत पसंद आया, शुक्रिया।

    @ जाकिर अली ’रजनीश’:
    जाकिर भाई, मज़ाक में ही लीजिये। हम सभी एक ही जहाज के तो सवार हैं।

    @ अन्तर सोहिल:
    जायेंगे भाई, जरूर मानेंगे यारों की बात।

    @ anshumala ji:
    शिमला में तो जाखू पहाड़ी वाले मन्दिर पर बन्दर काफ़ी होते हैं। एक बार हमारे ग्रुप की एक लड़की की चुन्नी खींच कर ले गया था। यही क्यों, वृन्दावन में निधि वन में वानर यूथ अपनी पूरी चपलता से सक्रिय रह्ता है, आंखों पर लगाया चश्मा तक ले जाते हैं और फ़िर अपनी चीज वापिस लेने के लिये रिश्वत देनी पड़ती है।
    और फ़त्तू? शरीफ़ आदमी है जी, नौसिखिया हिन्दी ब्लॉगर:)

    @ दीपक बाबा जी:
    डायलॉग अपना भी वही है भाईजी - ......देखी जायेगी........।

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  7. "मैं ............ बहुत आलसी, चूज़ी और जो जो नैगेटिव गुण हो सकते हैं, उनसे लबरेज हूँ। "

    संजय जी वह तो लग ही रहा है आपकी इस पांचवी कड़ी से जो चुथी कड़ी के कितने दिनों बाद आई !

    "अगर आप सबको घुमक्कड़ी का शौक है या यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं तो इस ब्लॉग, मुसाफ़िर हूँ यारों पर नजर जरूर डालियेगा। बंदा एक मौलिक घुमक्कड़ है, सिंपल, जमीन का आदमी, मस्त। मुझ सहित कुछ लोग इसे घुमक्कड़ी का ब्रांड एम्बैसेडर कहते हैं"

    सही कहा , हम भी इन नीरज शाब की घुमक्कड़ी के दीवाने है और कई बार इनकी दाद दे चुके१ इनकी उम्र में थोड़ा बहुत हम भी ऐसी ही थे !

    अब एक सलाह संजय जी , वह यह कि टिपण्णी बॉक्स पर जाते वक्त ब्लॉग पर आपके द्वारा लगाया गया वीडियो व्याधित हो जाता है , क्या ऐसा कोई जुगाड़ कि टिपण्णी बॉक्स अलग से खुले और वीडियो चलता रहे ?

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  8. 4 साल पहले हरिद्वार गया घूमने। अम्मा पिताजी के साथ। उनलोगों को बहला कर ऋषिकेश तक ल गया और फिर बरसात के महीने में एक एटीम कार्ड और टैक्सी वाले जवान के भरोसे बद्रीनाथ को चल दिया। जैसा कि होना ही थी - भू स्खलन से राह बन्द मिली। स्वयं पैदल और अम्मा पिताजी को कुलियों के सुपुर्द कर रिमझिम बारिश में पहाड़ी की चढ़ाई और फिर उतराई शुरू कर दिया। मेरी हिम्मत से पिताजी को हिम्मत मिली थी, उनसे अम्मा को और हम तीनों से करीब दस लोगों को और। जय बद्री विशाल... उस रोमांच और जान हथेली पर लेकर दरकती ढलानों से गुजरने की याद दिला दी आप ने। कहने का मतबल जे कि अपन को भी सिर उठा कर यूँ ही निकल्लेने में कोई उज्र नहीं। लेकिन चांस ही नहीं मिलता।
    फत्तू तो फैंटास्टिक है। वैसे हिन्दी बिलागर इत्ते मुर्गे भी नहीं हैं।
    गाना मुझे बहुत पसन्द है। इसे तो देख सुनूँगा, भले पौना घण्टे ढिक चिक करनी पड़े।

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  9. अजी मुर्गों के सरदार जी कभी यायावरी करतें हमारें दबड़े में भी पहुँच जाइये, भोलाजी के साथ-साथ (आ) लोक-परलोक सारे साथियों को भी लेते आइयेगा :)

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  10. भोलाजी के लिए सगुनी-बेगुनी सारे भरतें खुद बनाऊंगा.............एक बार "पधारो म्हारे देश"

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  11. @ अपनी डैडलाईन ज्यादा से ज्यादा २०१५ तक तय है..................ये डैडलाइन कहे की है ??????? डैड बनने की या डैड होने की !!!!!!!!!!.....................पहली वाली ही रहने दो, बाद वाली तो "राम ही रुखाल"

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  12. महिला बोलीं, “जी,आप ठीक कहते हैं, लेकिन आप को गलती लगी है। इनमें से मुर्गा तो एक ही है, बाकी सारे तो हिन्दी-ब्लॉगर्स ही हैं।”

    लगता है आज फ़त्तू को करारा जवाब मिल ही गया.:)

    रामराम

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  13. @ VICHAAR SHOONYA:
    बन्धु, तुम्हारे विचारों की स्पष्टता मुग्ध करती है, मोहित करती है। बहुत बढ़िया , शानदार, बेहतरीन प्रस्तुति, लाजवाब और नाइस कहने का मन कर रहा है।

    @ पी.सी.गोदियाल जी:
    गोदियाल साहब, चौथी और पांचवी किस्त के बीच एक पंगा और लिया था, जो आपकी नजर से तो बच गया लेकिन जिनकी नजर नहीं पड़नी चाहिये थी उनसे नहीं बचा। आफ़त हो गई मेरी, मतलब अपने नैगेटिव गुणों की पर्याप्त सजा पा चुका हूं। खैर, वो कहानी फ़िर सही।
    आपकी घुमक्कड़ी की झलक आपके ब्लॉग पर देख चुका हूँ, वो बस की छत पर बैठकर सफ़र करना, याद है। आप भी नीरज से कम नहीं रहे होंगे, पक्का।
    @ वीडियो जुगाड़ - ये ही अपने बस का नहीं है जी, जुगाड़। करने को तो कमेंट्स का फ़ोर्मैट अलग विंडो वाला कर सकता हूँ लेकिन कम से कम मेरी पोस्ट पर कमेंट्स का कंटेंट पोस्ट से कहीं बेहतर होता है, चाहता हूं कि विज़िबल रहे ये कमेंट्स। एक तरीका यही हो सकता है कि वीडियो की कमांड देकर म्यूट कर दें और मिनिमाईज कर दें। दूसरी विंडो में जो मर्जी करिये और जब इधर पूरी लोड हो जाये तो गाने का लुत्फ़ उठाईये।
    आपका शुक्रिया।

    @ Girijesh Rao Ji:
    चलिये राव साहब, इस बहाने आपको अपने अनुभव याद आये।(वैसे आपकी सीरिज़ से हमें अपने अनुभव याद नहीं आये)

    @ अमित शर्मा:
    अमित, हंसी मजाक को सीरियस ले लेते हैं हम कई बार, किसी दिन पहुंच ही जायेंगे सच में, फ़िर मत कहना कि मजाक किया था या फ़िर - अतिथि, तुम कब जाओगे?

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  14. उतराई पर उतार की गज़ल याद आई ? ब्लागर्स के लिए पोल्ट्री फ़ार्म से पहले भी एक गुंजायश बनती थी :)

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. अजी मरने जा रहा हूँ मैं तो................... जो इतनी मनुहार से कही बार भी आपको किसी लापाड़ी की कही सी लगी..................फिर ना कहना की हमें तो बुला लिया और टिक्कड़ खिलाने के डर से सुरग(स्वर्ग) में जा बैठ्या :)

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  17. .

    @--पहले सिर्फ़ महिला ब्लॉगर्स से माफ़ी मांगी है, आज हिन्दी-ब्लॉगर्स से अग्रिम माफ़ी का अभिलाषी हूँ...

    लगता नहीं आपको माफ़ी मिलेगी । अगर आप मेरी ज़द में आ गए तो मुर्गा बनाकर , कुकड़ू-कु करवा दूंगी।

    फत्तू और मैडम का सम्वाद बढ़िया लगा। फत्तू ने अपनी होशियारी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन मैडम ने भी बता दिया - " तुम सेर तो मैं सवा सेर। "

    फत्तू और मैडम , दोनों ही पुराने घाघ- ब्लॉगर लगते हैं।

    बढ़िया पोस्ट --आभार।

    PS-- Hope the humor will be seen in right perspective. Very rarely I feel confident in using pun on anyone's post.

    The song is very nice and close to my heart. It made me emotional.

    Regards,

    .

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  18. दमदार गीत जिसने बहुत प्रभावित किया है।

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  19. @ ताऊ रामपुरिया:
    ताऊ, यो साके तो नयूऐ चालै जायंगे, कदे फ़तू हलका, कदे भारा।
    राम राम।


    @ महेन्द्र वर्मा जी:
    स्वागत है सर आपका भी, प्रोत्साहन देने के लिये शुक्रिया।

    @ अली साहब:
    अली साहब, गुंजाईश ही गुंजाईश है, शक्करखोर शक्कर ढूंढ ही लेते हैं। आप आकर हिम्मत सी दे जाते हैं, आभारी हूँ आपका।

    @ अमित शर्मा:
    रहने दो यार नहीं आते, तुम तो सीरियस ही हो गये। अभी तो आने की वार्निंग दी थी, लेकिन स्वर्ग जाना मंजूर है तुम्हें, हमें झेलना ज्यादा भारी लग गया।
    हा हा हा। हम भी हम हैं, पीछे पड़ गये तो यारों से टिक्कड़ खाने के लिये कहीं भी चले आयेंगे पीछे-पीछे।
    --------आज के बाद मजाक में भी ऐसी बात मत कहना, सीरियसली कह रहा हूँ------

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  20. संजय भाई, सफर तो एक बार फिर से रोमांटिक रहा... जंगल और हाथी घास की बात से तो ख़ौफ भी खाने लगा था मैं... और इसलिए भी डर बना था कि अपुन तो पहले से ही नास्तिक डिक्लेयर्ड हैं, सो भगवान से पंगा कौन ले. इसलिए आज शनिवार को दोपहर में पढी ये पोस्ट और बहुत हौसला जुटाकर अभी कमेंट लिखने बैठा हूँ.
    एक बात समझ में नहीं आई.. ये भोला आपकी अगाड़ी चलने से परहेज़ कर रहा था उसकी वज़ह तो समझ में आई , मगर आलोक जी के पिछाड़ी चलने में उसे क्या प्रॉब्लेम थी, और आपने कहा कि उसे किसी जानवर से डर भी था. ख़ैर सवाल दिमाग़ में रूपा फ्रंट्लाइन पहनकर ( अनूप शुक्ल जी से बिना माँगे चुराते हुए) खड़ा हो गया तो पूछ लिया.
    फत्तू ..बेचारा! सचिन दा बेजोड़!!

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  21. Nice joke on bloggers like us, sir..Keep sharing your travel experience. Happy Journey in Advanced.

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  22. हिन्दी ब्लोगर का अपमान- नहीं सहेगा हिन्दुस्थान... :P
    रोचक यात्रा वृतांत.. सोचता हूँ जिंदगी में कभी मैं भी ऐसी यात्रा करुँ..
    गाना तो मेरा आल टाइम फेवरिट है भाई जी.. :)

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  23. आपकी पोस्ट पड़ते हुए हंसी भी आ रही थी। भोला ने हुनमान जी की शरण लेकर बहुत ही बढ़िया काम किया, अब जिसकी सेना हो उन्हीं से तो गुहार लगानी पड़ेगी।

    पिछली कहानी अच्छी थी औऱ ऐसा होता भी है असल जिंदगी में। आप कहते हैं कि आपके साथ घटित नहीं हुआ है सो मान लेते हैं। वैसे लगता है कि कोई एक प्रकरण जरुर. चाहे किसी का जन्मदिन वाला हो, या किसी के फोन का इंतजार....जरुर आपके जीवन से जुड़ा होगा। क्योंकि कहानी में कई बार अपना अनुभव अचानक से आ जाता है। फिर भी आपकी बात मान ली है ..हीहीहीही

    फत्तू के बारे में कै कहूं....य़हां तो खैर वो मुर्गा बन गया। पर पिछली पोस्ट में उसकी धोती कि चिंता ने देश के बहुसंख्यक लोगो के हालात को बयां किया है। जाने कब तन पर कपड़ा, पेट में भोजन, सिर पर छत नसीब होगी..हाय रे भाग्य विधाता....

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  24. रोमांचक यात्रा वर्णन ...
    फत्तू को इस बार ढंग का जवाब मिल गया ...!

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  25. @ ZEAL:
    @ अगर आप मेरी ज़द में आ गए तो मुर्गा बनाकर , कुकड़ू-कु करवा दूंगी।
    डा.दिव्या, आपकी क्षमता पर कोई शक नहीं है, लेकिन पक्का है कि आपकी कोशिश व्यर्थ जायेंगी - क्योंकि मैं पहले से ही कुकड़ुकूं कर रहा हूं:) आपको कुछ भी पसंद आया इस पोस्ट पर, धन्यवाद देता हूँ।

    @ प्रवीण पाण्डेय जी:
    शुक्रिया आपका, गीत पसंद करने का।

    @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने:
    सर, सीधी बात ये है कि भोला को बीच में चलना था बस्स, बाकी तो सब एक्सक्यूसेज़ थे। नास्तिकता वाली बात पर हाथ तो मिला लें, लेकिन थोड़ा क्लियर कर दूं- बहुत ज्यादा या यूं कहिये थोड़ा भी कर्मकांडी मैं नहीं हूं। लेकिन सर्वशक्तिमान पर बहुत भरोसा है मुझे और जो आस्था रखते हैं, भले ही अंधी आस्था ही रखते हों वे, मैं उनसे ईर्ष्या रखता हूँ।
    आपसे संवाद मात्रा में बेशक कम हो लेकिन मस्त लगता है जी। आभारी हूँ आपका।

    @ Rahul Kumar Paliwal:
    राहुल जी, आपका आना और टिपियाना अच्छा लगा। थैंक्स।

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  26. इस यात्रा संस्मरण का अंत बड़े ही मनोरंजक तरीके से हुआ ,मजा आया ,कमाल का लेखन ।
    हिंदी ब्लागर की रेपुटेशन पता चल गई ,अब तो कहीं भी रात को पनाह मिल सकती है ।

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  27. @ दीपक मशाल:
    छोटे भाई, अबकी बार देश आओगे तो बनाते हैं प्रोग्राम, नहीं तो उससे अगली बार तो एकदम पक्का।

    @ boletobindas:
    रोहित, कल आपकी पोस्ट पढ़ कर कमेंट कर रहा था कि फ़िर चाँद का असर सर उठाने लगा, कसम से। मरीज एक ही बीमारी के हों तो भी ट्रीटमेंट अलग-अलग हो सकता है, right said? मिलते हैं तुम्हारे ब्लॉग पर, अभी तो चाँद नहीं दिख रहा आसमान में। हा हा हा। थैंक्स दोस्त, आने का।

    @ वाणी गीत:
    शुक्रिया वाणी जी, फ़त्तू को सही जवाब मिलने से महिलायें बहुत खुश दिखती हैं, अच्छा ही है।

    @ अजय कुमार जी:
    अजय जी, धन्यवाद देता हूँ फ़िर से आपको, एक्दम शुरू में आये थे आप और सलाह दी थी कुछ।
    यही नजरिया बैस्ट है जी, चीजों को देखने का। ब्लॉगर्स एक्दम निरापद, नखदंतविहीन टाईप के प्राणी हैं जो खुद को प्रस्तुत करने की इस सुविधा का भरपूर लाभ(अपने अपने तरीके से) उठा रहे हैं।

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  28. ओ रस्ता बता जिसदे आसपास तीन चार किलोमीटर तक कोई मन्दिर न हो,
    पूरी सहानुभूति है जी भोला साहब से अपनी तो :)

    आपके अनछुए सफ़र का इन्तजार सिर्फ भोला ही नहीं करते, और भी हैं फेहरिस्त में :)
    घर आया हुआ हूँ इस हफ्ते, वो लिंक पढता हूँ फुर्सत में..

    मीठा, कड़वा, खरा और सबके बाद खाँटी सच बोलने के लिए फत्तू साहब को फिर से बधाइयाँ :)
    गाना हमेशा की तरह, लाजवाब

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  30. जन्मदिन पर आपकी शुभकामनाओं ने मेरा हौसला भी बढाया और यकीं भी दिलाया कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ.. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें..

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  31. @ Poorviya:
    धन्यवाद, मिश्रा जी।

    @ अविनाश:
    enjoy your stay at home, Avinash. बहुत कीमती पल हैं ये, संजोकर रखना इन्हें। शुभकामनायें।

    @ अदा जी:
    देवि, फ़तू मुकरने में और हम कुबूलने में चैंपियन हैं। टार्चर होकर कुबूल करने से तो यही बेहतर है कि पहले ही कुबूल कर लिया जाये।
    वैसे आप ’लेडी दबंग’ हैं, हा हा हा। एक अभिवादन आज इस नाम का भी।

    विचार शून्य बन्धु दोस्त है अपना, कुछ भी पुकार सकता है। पहले कभी चैटिया लेते थे, अब वो बंद है। अगर टोकाटाकी की कुछ तो इतना भी बंद हो जायेगा, इसलिये मार्केट में बने रहने के लिये दूध(कमेंट) देने वाली गाय(ब्लॉगर) की तरह इनका ये संबोधन भी सुन लेते हैं और फ़िर हम तो भाव देखते हैं जी।
    शुक्रिया आपका।

    @ दीपक मशाल:
    :)

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  32. ਵੀਰ ਜੀ,
    ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
    ਫ਼ਤ੍ਤੁ ਤੋ ਫਟੂ ਨਿਕਲਾ!
    ਨਾਲੇ ਅਸ਼ਲੀਲ ਵੀ ਪੂਰਾ ਹੈਗਾ ਵਾ!
    ਹਾ ਹਾ ਹਾ!
    (ਏਹੋ ਚੁਟਕੁਲਾ ਮੈਂ ਹਾਈ ਕੋਰਟ ਦੇ ਜਜ ਵਾਰੇ ਸੁਨਯਾ ਸੀਗਾ!)
    ਆਸ਼ੀਸ਼, ਫਿਲੌਰ

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  33. संजय जी.
    हाजिर जवाबी के खेल में कभी-कभी मात भी खानी पड़ती है.
    क्योंकि फत्तू और मेडम दोनों ही आपके अपने पात्र हैं तो कोई हार-जीत का मसला नहीं.
    हम अकाट्य संवाद में तभी तक फत्तू हैं जब तक हमें कोई मेडम जैसा प्रति-संवाद धनी नहीं मिल जाता.
    हिंदी ब्लोगर्स की स्थिति आज ऎसी ही है कि उन्हें एक ही दमदार मुर्गा ब्लोगर अपने अनुसार चला ले जाता है.
    एक मुर्गा-पोस्ट निकलती है और उनमें सहमती दर्शाने वाले ब्लोगरों की संख्या काफी होती है. कोई कहता है उम्दा, कोई बेहतरीन, कोई nice तो कोई वाह-वाह करके कुक-डू-कूँ में हामी का सर हिलाता दिखता है. कोई-कोई ही होता है जो सहमती या असहमती के अलावा बाँग देता है.

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  34. @ आशीष:
    छोटे वीर, जो तुसी सुनया सी ओही मैं सुनया सी। खुद नूं नाल लपेटन लई थोड़ा ज्या चेंज कीता है।
    फ़त्तू के बिगड़ने वाली बात पर मैं खुद आप से ज्यादा सहमत था, लेकिन जब लोगों को परिवार के साथ थ्री इडियट्स, दोस्ताना, गोलमाल रिटर्न्स जैसी फ़िल्में एन्जाय करते देखा तो अपना फ़त्तू मासूम ही लगा। औरों की क्या कहूँ, कल टीवी पर थ्री इडियट्स देख रहे मेरे ग्यारह साल के लड़के ने जब बलात्कार, स्तन जैसी चीजों के मतलब पूछने शुरू किये, मुझे ही उठकर कमरे से बाहर जाना पड़ा।
    फ़िर भी, बेबाक राय के लिये, वो भी एक यंगस्टर के मुंह से, दिल से बहुत बहुत धन्यवाद। हमपेशा हो, और डबल पड़ौसी भी(मैं दिल्लीवासी तुम मेरठवासी और पोस्टिंग भी हम दोनों की आस पास ही है) अच्छा लगेगा अगर आगे भी ओनेस्ट सजेशन देते रहोगे।
    फ़िर से शुक्रिया।

    @ प्रतुल जी:
    मुझसे सीधी बात नहीं होती, और तुमने मित्र धर्म निभाते हुये इतनी सुंदर व्याख्या कर दी है, आभारी हूँ।(इस बार आप से तुम पर आ गया हूँ, अगली बार से आभार वगैरह भी नहीं मिलने वाला है, ध्यान रखना।)

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  35. CHALAO ACHCHA HUA SARE hINDI BLOGGERS KO MURGA BANA DIYA. sABKO TO SHAYAD MASTERJE BHEE NA BAN PAYE HONGE.
    aUR BHOLA JEE KEE BAT BHarta khN WALI, 'अब साहब,एक बेगुणी चीज के लिये ऐसे गुणीजन को नाराज करना हमारे भुरभुरे स्वभाव के विरुद्ध था। उसे लेकर बाजार में आये, एक ढाबे से उसकी पसंदीदा डिश के साथ खाना खिलाया। YE BHUR BHURA SWABHAW KAISA HOTA HAI ? MAJA AAYA AAPKI YATRA KE BARE MEN PADH KAR.

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  36. बढ़िया चल रहा है चलने दीजिये ।

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  37. गीत और संस्मरण, दोनों पसंद आये. मुर्गा बयानी के बाद तो फत्तू की जान ही खतरे में है अब!

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  38. [आपकी प्रति-टिप्पणी पर प्रतिक्रिया]
    ______________________
    मित्र संजय,
    पहली बात, प्रेम से सब ग्राह्य है. आपका भी यही कहना है. जब तादात्म्य होता है तब 'तुम' और 'आप' का खयाल कहाँ रह जाता है. दूसरी बात, आभार वगैरह पाने की चिंता की होती तो अपने सृजन और पठन आनंद में कटौती कर रहा होता.

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  39. फत्तू की तो खोपड़ी ही घुम गई होगी..हिन्दी ब्लॉगर! अब कैसे कहे कि मैं हिन्दी ब्लॉगर नहीं मुर्गा हूँ!
    ..रोचक लेखन शैली इस यात्रा वर्णन की खासियत है।

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  40. फत्तू का मुर्गा वाला पोस्ट भर पढ़ा हूँ, पुराने पोस्ट भी पढूंगा , फत्तू तो बीरबल , तेनाली रामा, और गोनू ओझा जैसा लगता है

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