शुक्रवार, अक्तूबर 08, 2010

हम एक नहीं हैं ----

१.  “अच्छा, तो श्रीमान जी पंजाबी हैं? वैसे रहने वाले कहाँ के हो?”
“दिल्ली।”
“दिल्ली? अरे बाप रे।” कहकर उसने अपने हाथ की उंगलियाँ चैक कीं, और दूसरे लोगों को सुनाकर कहने लगा, “उंगलियां चैक कर रहा था, कहीं एकाध कम तो नहीं हो गई” और ठठाकर हंस दिया।
पंजाबी होना  और दिल्लीवासी होना गोया एक तो करेला और दूजे नीमचढ़ा। दो चार सवाल और पूछे गये, भरसक तल्खी भरे जवाब सुनकर पता नहीं क्या लगा उसे कि हमें कमरा किराये पर मिल गया।
इन दिनों गैस सिलेंडर की सप्लाई बहुत अनियमित थी, और खुदा मेहरबान की तर्ज पर हमारी एक ब्रांच में गैस एजेंसी वालों का एकाऊंट था। स्टाफ़ में किसी को सिलेंडर चाहिये होता तो ब्रांच में फ़ोन कर देते। ब्रांच वाले हैड आफ़िस वालों की परवाह करते थे और गैस एजेंसी से जो कलाम मियां बैंक आया करते थे वो ब्रांच वालों का पूरा ध्यान रखते थे। हमें या हमारे किसी परिचित को कभी गैस की दिक्कत तो नहीं आने पाई।
उस मकान में रहते हुये तीन चार महीने हो गये थे, रिश्ता अपना सिर्फ़ शुरू की एक या दो तारीख में किराया दे देने तक का ही था। इतनी जल्दी का मकानमालिक की तरफ़ से कोई तकादा नहीं था, हमें अपनी पैंटों के फ़टे छेद का पता था सो समय से हिसाब बराबर कर देते थे वैसे भी किसी को कुछ देना हो तो दे दाकर साईड करो, ये उसूल अपने को तब भी पसंद था। दिमाग में साली और बातें कम हैं रखने को, जो ये भी याद रखें कि किसे, कब, क्या, क्यों और कितना देना है?
सुबह उठकर लगे हुये थे यारों के साथ घालामाला करने में कि मकान मालिक साहब आये। नमस्कार लेन देन करने के बाद कहने लगे कि सिलैंडर खत्म हो गया है, और घर में आज श्राद्ध है, सिलैंडर दिलवाने में मदद करनी होगी। साथी हमारा चाय बना चुका था, उन्हें भी चाय की प्याली थमाई। चाय पीते पीते उन्होंने फ़िर से वही कहा, गैस जरूरी है आज तो मदद करनी होगी।
“मुझसे मदद के लिये कह रहे हैं?”
“हाँ, आप से ही कह रहे हैं, उस दिन सुना था कि आपकी जान पहचान है।”
“लेकिन भाई साहब, मैं पंजाबी हूँ। और साथ में दिल्ली का रहने वाला हूँ। लोग तो हाथ मिलाने के बाद उंगलियां चैक करते हैं कि कहीं कम तो नहीं हो गई और आप मुझसे मदद की कह रहे हैं।”
“अब काहे शर्मिंदा करते हो जी? एक छवि ही ऐसी बनी है मन में, क्या करें। लेकिन उस दिन तुम्हारे जवाब सुनकर लग गया था कि बंदा सुनने वाला नहीं है इसलिये तो कमरा दिया था। अब इतनी पुरानी बात दिमाग से निकाल दो।”
“आप का काम तो हो जायेगा, लेकिन आईंदा जबतक किसी को आजमा न लें, किसी की व्यक्तिगत विशेषता के बारे में मजाक न उड़ायें। रही बात दिमाग से निकालने की, तो ये मौका दस साल तक न मिलता तो ये बात दिमाग में रहने वाली थी।”
बहुत अच्छे संबंध रहे हमारे उन साहब के साथ, लेकिन भूले वो भी नहीं ये बात और मजाक मजाक में कभी कभी सुना ही दिया करते थे कि मौका नहीं चूके तुम।

२. उसका नाम राम विलास था। हम बी.काम में पढ़ते थे और वो बी.ए. मे।
कभी हमारे दोस्त कृष्ण का क्लासमेट रहा था और उन दिनों राजीव के पडौस में रहता था। एक नंबर का टाईमपास  आईटम था। ’मिस-क्लास’ ने एक बार उससे किसी किताब के बारे में फ़र्स्ट ईयर में पूछ लिया था और वो कालेज छोड़ते तक उसके पीछे भी रहा था और उससे नाराज भी रहा था। उसे दूसरों के साथ हंसते बोलते देखकर हमसे कहता था, “जब इसे हमारी बनना ही नहीं था तो उस दिन बात क्यों की थी?” और हमारे में से कोई खड़ा होता कि मैं अभी जाकर बात करता हूँ इस साली से, मजाक समझ रखा है किसी के दिल के साथ ऐसा खेलना? और वो कसमें खिलाकर हमें रोक लेता था। ये ड्रामा रोज का था।
कालेज छूटा तो सब एकबारगी तो बिखर गये। ग्रुप के बाकी लोग तो टच में अब तक हैं लेकिन ऐसे टाईमपास कहाँ रह गये, नहीं पता चला। छह सात साल बाद  उससे मुलाकात हुई एक दिन रेलवे स्टेशन पर, उसीने पहचाना। “संजय, क्या हाल हैं?” 
“ठीकठाक, अपनी सुना।” सुनाई उसने। इतने सालों में एक शादी, तीन बच्चों का बाप और छ जगह पर नौकरी कर चुका था। “तीन हजार रुपये मिलते हैं, इतना परिवार है और महंगाई इतनी। फ़िर प्राईवेट नौकरी का तुझे पता ही है, पता चले कि कल गये तो मालिक ने जवाब दे दिया।” उसके बाद उसने मेरे बारे में पूछा। फ़िर लगभग रोज ही गाड़ी में मिलने लगा। और वही पुरानी आदत के हिसाब से उसके रिकार्ड की सुई एक ही जगह फ़ंसी रहती। “तू बढ़िया है, बैंक की नौकरी है। यहाँ तो बुरा हाल है। अच्छा, जिस गाड़ी में तू जाता है वो अमुक स्टेशन पर कितने बजे पहुंचती है, कितना हाल्ट है, प्लेटफ़ार्म ऊंचा है या नीचा है, लगभग कितने लोग चढ़ते हैं और कितने उतरते हैं, ऐसा और वैसा…….” और ये जानकारी उसे हर स्टेशन के लिये चाहिय होती थी। कई बार माथा फ़िरता भी, मैं सोचता जाने दो यार पहले से ही दुखी है।
मेरे एक परिचित थे जिनका स्पेयर पार्ट्स का अच्छा कारोबार था। एक दिन बातों बातों में उन्होंने कहा कि किसी विश्वासपात्र आदमी की जरूरत है, कोई हो तो बताना। उधर राम विलास कई बार कह चुका था कि कहीं ढंग की नौकरी का जुगाड़ बने तो ध्यान रखा जाये उसका। मैंने पांच हजार में उसकी नौकरी की बात कर ली, आदमी ईमानदार ही दिखता था। शाम को गाड़ी में मिला तो मैंने उसे उनका कार्ड दिया और उसे कहा कि अच्छी नौकरी है, जाकर मिल लेना।
रोज मुलाकात होती और उसका जवाब होता कि जाऊंगा किसी दिन। एक दिन मैं उसके कुछ ज्यादा ही पीछे पड़ा तो उसने मुझसे पूछा, “वैसे तुम्हारे ये परिचित हैं कौन?”
“मेरे अच्छे परिचित हैं यार, बहुत मानते हैं मुझको।”
“नहीं वैसे हैं कौन?”
“अरे, उनका स्पेयर पार्ट्स का बिज़नेस है बहुत अच्छा, और खुद बहुत बढि़या इन्सान हैं।”
“वो तो ठीक है, मेरा मतलब वैसे कौन हैं?”
“बता तो रहा हूँ यार, फ़िर तू वही वैसे कौन और वैसे कौन ……।   अच्छा…, अब समझा। भाई, वो भी पंजाबी हैं।”
फ़िर उसने थोड़ा सोचकर कहा, “मुझे भी ऐसा ही लग रहा था। यार, नौकरी और तनख्वाह तो बढ़िया लग रही है पर जो पंजाबी होते हैं न, बहुत बदमाश होते हैं।”
मैंने उसके हाथ से कार्ड लेकर फ़ाड़ दिया और कहा, “तू तो ऐसे इंटरव्यू ले रहा है जैसे लड़की का रिश्ता करना हो तूने।"
आज भी घर जाता हूँ तो हाथ में थैला लिये हुये दिख जाता है, लोकल टेलर्स को बटन और चैन वगैरह सप्लाई करता है। हाँ, इतना संतोष जरूर है उसे कि किसी बदमाश पंजाबी के यहाँ नौकरी नहीं करता।
                                                       ............................................

ऐसा नहीं कि ये पूर्वाग्रह सिर्फ़ पंजाबियों को ही झेलने पड़ते हैं। पंजाबी, बंगाली, बिहारी, नेपाली, मद्रासी, सिंधी, मुसलमान, गांव वाले, शहरवाले, सरदार – अनगिनत पैमाने हैं जिनके आधार पर हमने अपने दिलों में पूर्वाग्रह बना रखे हैं। जरा सोचें कि इनमें से कोई एक होने में हमारा या किसी का क्या योगदान है? जब जन्म लेना अपने हाथ में नहीं है तो किस धर्म में, किस देश प्रदेश में, किस लिंग में जन्म लेंगे यह कौन तय कर सकता है?
देखा जाये तो हम सब में एक समानता है कि हम सब इंसान हैं। इसके बाद के सभी वर्गीकरण हमारे खुद के बनाये हुये हैं। जहाँ हमारा जन्म हुआ, जिस परिवार में हम पले बढ़े , जैसे माहौल में रहे, शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की इन सब का हमारे व्यक्तित्व पर असर पड़ता है। और बहुधा ये चीजें हमें विस्तार देने के बजाय बाँधती ही हैं। बचपन से ही कुछ बातें हमारे दिमाग में ऐसी बैठ जाती हैं कि इन्हें बाहर निकालना  मुश्किल हो जाता है। लेकिन पूर्वाग्रहों से बाहर निकलना मुश्किल जरूर है, असंभव नहीं। किसी के बारे में सुनी सुनाई बातों के आधार पर छवि बना लेना कहाँ तक उचित है?
इन सब चीजों से बचने का सबसे सरल उपाय है दिमाग की खिड़कियाँ-दरवाजे खुले रखना। किसी से संवाद हो, एक दूसरे के व्यू प्वाईंट जानें तो हम बेहतर निर्णय ले सकेंगे। हम सब अपनी व्यक्तिगत पहचान रखते हुये भी एक सामूहिक पहचान तो रख ही सकते हैं। हम किसी भी धर्म. किसी भी जाति, लिंग, वर्ग से संबंध रखते हुये भी एक देश के वासी हैं। हमारी बड़ी और पहली पहचान तो एक भारतवासी के रूप में होनी चाहिये। और जो अपना दृष्टिकोण और व्यापक कर सकें और मानवता को अपना कॉमन धर्म और विश्व बंधुत्व को अपनी पहचान बना सकें तो कैसा रहे?
"’दिल के बहलाने को गालिब, ख्याल अच्छा है न?”

:) कामनवैल्थ खेलों के चलते फ़त्तू अपने ग्रुप के लोगों को लेकर कुश्ती के मैच देखने दिल्ली को चला। दिल्ली पहुँचने पर जल्दी जल्दी में गाड़ी से उतरते समय फ़त्तू का पैर एक पहलवान के पैर पर पड़ गया। पहलवान ने घुमाकर एक झन्नाटेदार झापड़ फ़त्तू के रसीद किया। फ़त्तू ने भी मोर्चा थाम लिया।
“तन्नै मेरे रहपट मार दिया, सोच्या ना कि मेरे गैल मेरा यार जैला सै?” जैले के कंधे पर हाथ रखके फ़त्तू ने पहलवान को ललकारा।
पहलवान ने अबके जैले के चांटा रसीद किया।
फ़िर फ़त्तू ने इसै तरयां बलबीरे के और राजेन्द्र के नाम पर पहलवान को ललकारा और पहलवान ने उन दोनों के भी कनटाप दिये।
फ़त्तू, “ठीक सै पहलवान जी, धन्यवाद।” हाथ जोड़कर पहलवान को विदा करने की कोशिश की।
पहलवान ने पूछा, “रै खागड़, सुनूँ था थारी बातें गाडी में, तू तो घणा स्याणा दीखे था और तन्नै ही सारे अपने यार पिटवा दये,  और ईब कहे सै धन्यवाद,  यूँ क्यूँकर?”
फ़त्तू, “बात यो सै जी कि मैं एकला पिटता तो गाम में जाकर सुसरे सारे मेरा मजाक करते, इब कोई सा बेटी का यार  किमै न बोलेगा।”

नये नये बनते मेरे यारों, अब भी टाईम है चेत जाओ, फ़िर न कहना कि अपने साथ हमें भी पिटवा दिया। अपना काम है आगाह करना, मानना है तो मान लो, नहीं तो ,,,,,देखी जायेगी और क्या..!!

37 टिप्‍पणियां:

  1. किसी पंजाबी के ब्लॉग पर टिप्पणी करने में तो बुराई नहीं है न? :)
    अपन सोच रिया हूँ कि बढ़िया कहूँ या अच्छा?
    चलो, बहुत सुन्दर- कह देता हूँ। (-) उपदेशात्मक बात के लिए। पंजाबी से उपदेश कौण सुणना चाहेगा जी?

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  2. Are Madvadiyo ko kyo lapet me nahee liya............?

    Bichare jitnee bhee khatirdaree kare KANJOOS hee kahlate hai..........

    Fattu jee to cha hee gaye........

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  3. bhoole visare gane ko sunvane ke liye bhee dhanyvaad.
    lisee jamane me pasandeeda gana tha ......
    Aabhar ......

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  4. achchha likha hai... ham sabhi dharnaon se pidit hain.. aur isi karan hai hamari ekata ki dor mein padi hui gathen...

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  5. एक कहानी[या कथा जो भी है ] है शोर्ट में सुनाता हूँ
    एक बार कृष्ण ने युधिष्ठिर और दुर्योधन दोनों को बारी बारी गाँव के भ्रमण हेतु भेजा और उनसे लोगों के ओवर आल चरित्र[सज्जन या दुर्जन ] के बारे में रिपोर्ट माँगी .... दुर्योधन की रिपोर्ट थी इस गाँव में सभी दुर्जन हैं और युधिष्ठिर ने कहा इस गाँव में सभी सज्जन है

    इस बात में वो सबकुछ आ गया जो मैं कहना चाहता हूँ

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  6. @ गिरिजेश राव जी:
    गुरूजी मजाक कर रहे हो, वो भी एक पंजाबी से? देख लेंगे:)

    @ Apnatva:
    सरिता मैडम, लपेटने को तो इतना कुछ है कि पोस्ट की लेंग्थ में हमीं खो जाते। हम लोगों का नजरिया ही ऐसा बन गया है कि नैगेटिव चीजों की तरफ़ ही तवज्जोह देते हैं। गाना पसंद आया आपको, धन्यवाद। जो खुद गा सकते हैं, उनका मुकाबला तो खैर कैसे भी नहीं कर सकते हम, लेकिन इस माध्यम से पिछले समय के मधुर और मीनिंगफ़ुल गाने फ़िर से याद कर सकें, इतना प्रयास तो कर ही सकते हैं।

    knkayastha ji:
    धन्यवाद सर। मैं भी यही मानता हूँ कि बिना अनुभव के पाली गई धारणायें ही सदभाव में गांठे डालती हैं।

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  7. हा हा हा हा फ़त्तू तो घणा समझदार निकला ...

    अब बात पंजाबी की तो मैं क्या कहूं जी ..अपना तो कंबीनेशन ही कमाल का निकला है ..खुद अपन ठेठ बिहारी हैं ...श्रीमती जी पंजाबन हैं ...पुत्तर लाल ..खालिस दिल्ली वाले ....अब होती रहे जिसे जो टेंशन होनी है ....वैसे दोस्त कमाल का लगा आपका ..वो आईटम टाईम पास एक हमारे पास भी होता था ऐसा ही ..रामदुलारे ..कभी लिखेंगे उसके बारे में

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  8. ....तो कहने का मतलब है "जो जैसा होता है वो वैसा ही सोचता है" अब की बार कोई कुछ बोले तो ये कहानी सुना देना..... अपने आप समझ जायेगा :))

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  11. दोस्त सही व्यथा व्यक्त की है आपने. हम यहाँ दिल्ली में कहते हैं - हम फलां पंजाबी नहीं है हम फलां पंजाबी हैं - वगैरा वगैरा.

    बाकि रही फत्तू कि बात तो आजकल हर नेता यही कर रहा है - खुद जैसा होता है - बाकि को भी वैसा नंगा करके मनाता है.

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  12. पहला और दूसरा वृतांत करीने से जिया गया है. इनमे अपनी संस्कृति और सभ्याचार के लिए बेहद आत्मीयता झलक रही है.

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  13. जिस विषय को आप ने उठाया है उस विषय को अगर अच्छे से समझना है तो आप एक बार मुंबई आइये आप सिर्फ पंजाबी की बात कर रहे है यहाँ भारत के हर हिस्से के लोगों के लिए एक पश्चिमाग्रह ( जी पूर्वाग्रह तो पुराना हो चूका है ) रेडीमेड बना हुआ है और सभी इससे ग्रस्त है एक दूसरे के प्रति | यहा लोग आप के नेम से ज्यादा आप के सरनेम जानने के इच्छुक होते है किसी से दो बाते कीजिये तीसरी बात यही होगी की आप का गाव कहा है मतलब की आप देश के किस हिस्से से है आप ने बताया नहीं की बन गई आप की एक छवि मराठी ,गुजराती , मारवाड़ी , यूपी वाले .बिहारी और सभी दक्षिण भारतीयों को एक कटेगरी में रखा जाता है और उसी हिसाब से उनसे बात की जाती है रिश्ते बनाये जाते है | ये सब कुछ सभी के दिल और दिमाग के गहराई में अच्छे से रच बस गया है |

    ये गाना तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है पर ये जान कर बड़ा दुःख हुआ की इसकी धुन अमेरिकी गाने से चुरा कर बनाई गई है ओरिजनल गाना भी सुना |

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  14. @ गौरव अग्रवाल:
    हाँ दोस्त, अबकी बार यही कहानी सुनाऊँगा(तुम्हारा लिंक भी दे दूँगा साथ में)। एकदम सही उदाहरण दिया है। धन्यवाद

    @ अजय कुमार झा:
    वकील साहब, आपका डैडली कॉम्बीनेशन हम जानते हैं, लेकिन हम इसे यूनिटी इन डाईवर्सिटी का उदाहरण मानते हैं।
    वैसे आपसे बदला लेंगे जरूर, चाहे अगले जन्म में ही सही :))

    कभी लिखिये ’रामदुलारे’ के बारे में, उत्सुकता रहेगी।

    @ अदा जी:
    क्यों बचके रहेंगे जी, हममे कौन सा किसी की भैंस खोल ली है?
    वाईट हाऊस की तो नहीं कह सकते जी, पर अगर लाईट हाऊस का डाऊट हो किसी को तो हम उसकी पूरी सपोर्ट करते।
    चोरी का इल्जाम कुबूल है जी। आपके हार्ड डिस्क तक पहुँच गये हम, और चुराकर लाये, गाने। हैं न फ़त्तू के पक्के चेले?
    फ़त्तू तो जी omnipresent हो गया है आजकल।
    हम पर चोरी का इल्ज़ाम लगाने के लिये बहुत बहुत आभार।

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  15. संजय भाई! बुझाता है कि आप कसम खाए हुए हैं कि जब भेंटाइएगा तब धीरे धीरे हमरे पुराना घाव पर लगा हुआ ज़िप खोल दीजिएगा अऊर जब हम चिल्लाएंगे त आप फत्तू का जोक सुनाकर अऊर लता दीदी का गाना सुनाकर घाव पर दवाई लगा दीजिएगा! आप जईसा पंजाबी से जब मिलते हैं त देखते हैं कि एगो नया घाव पैदा हो गया है दिल में.
    हमरे भी एगो बॉस एक स्टाफ के सादी में कई लोगों के बीच बोल बैठे कि बिहारी सब चोर होता है, अऊर ई बात बेजगह अऊर बा होसोहवास कहा गया था. इसलिए हम भी थोड़ा दिमाग पर जोर डाले अऊर उनको बताए कि ऊ जिस प्रदेस से आते हैं वहाँ का चार से पाँच लोग इण्टरपोल के मॉस्ट वांटेड के लिस्ट में है. नाम भी गिना दिए, सब लोग के बीच. ऊ सकपका गए अऊर अगिला दिन हमरा ट्रांसफर ऑर्डर आ गया.

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  16. @ दीपक बाबा:
    बाबाजी, बाकी सब तो ठीक है पर अब बताओ अब भी करोगे याराना फ़त्तू के ग्रुप से?

    @ anshumala ji:
    पश्चिमाग्रह जोरदार लगा।
    अंशुमाला जी, मैंने अपने साथ बिहारी, बंगाली, मद्रासी, सिंधी वगैरह सब का नाम लिया है। शायद स्पष्ट नहीं कर पाया। बात आपकी बिल्कुल ठीक है।
    गाने के विषय में अपने को इतनी बैकग्राऊंड नहीं मालूम था, और अब भी अच्छा ही लगा। संगीत की कोई भाषा नहीं होती और गीत अपनी भाषा में हो तो अच्छे से समझ आ जाता है। आपकी टिप्पणी अपने आप में पोस्ट से कम नहीं होती, तारीफ़ ही समझियेगा मजाक नहीं।

    @ किशोर चौधरी जी:
    किशोर साहब, आभारी हूँ आप पधारे।

    @ बिहारी ब्लॉगर:
    हा हा हा, आपसे इस प्लेटफ़ार्म पर नहीं जी, रात में बात करेंगे, फ़ुरसत में। हमौ दूध के जले हैं जी, छाछ के भी। हा हा हा।
    लेकिन हम नहीं बदले।

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  17. पुरानी बात याद दिला दि आपने . एक बार अपने जान पहचान वाले के घर गये उन्होने जोर से कहा आइये छोटे ठाकुर साहब . इतना सुनकर उनका छोटा बेटा घर के अन्दर भाग कर अपनी बहिन से बोला दीदी छुप जाओ छोटे ठाकुर अपने घर आ गया है . हुआ यह था एक दिन पहले उसने एक पिक्चर देखी थी जिसमे छोटे ठाकुर बिलेन बने थे .

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  18. ये ही बात हो गयी जी अब तो, हर किसी के लिए पूर्वाग्रह पाले बैठे है सब कोई. बात को समझाने के लिए जो संस्मरण बताये उनसे बात अन्दर तक पहुँच गयी.

    लेकिन अब डर भी लगने लगा है की जब आप जयपुर आओगे और अपन मिलेंगे तो आप अपने स्वभाव-वश गले लगाओगे फिर कहीं मैं ही गायब ना हो जाऊं आपसे गले मिलने के बाद :)

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  19. @अंशुमाला जी, मैंने अपने साथ बिहारी, बंगाली, मद्रासी, सिंधी वगैरह सब का नाम लिया है। शायद स्पष्ट नहीं कर पाया।

    देखा ब्लॉग पढ़ने वाले भी कोई ना कोई ग्रह ले कर पढ़ते है दो लाइने पढ़ी और सोच लिया की अब क्या टिपियाना है उसके बाद पोस्ट में लिखी दूसरे छोटी बातो पर ध्यान ही नहीं जाता | और मेरी तरह वही लिख देते है जो पोस्ट में पहले ही लिखा होता है |

    @तारीफ़ ही समझियेगा मजाक नहीं।

    अच्छा हुआ बता दिया वरना आज की खुशदीप जी की पोस्ट पढ़ने के बाद तो तारीफ लेते और देते समय एक बार सोचना पड़ रहा है |

    @पश्चिमाग्रह जोरदार लगा।

    मुझे भी जोरदार लगा इसलिए सीधा डैकैती डाल दी रंजन जी के इस शब्द पर |

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  20. आज तो सर जी स्माइली स्माइली है बस!
    :) :) :)

    एकदम सच उतार दिया...बहुत सटीक संस्मरण...दोनों ही.
    सुना है गुलाब मोहल्ले का नाम पूछ के नहीं खिलते :)

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  21. हमारी बड़ी और पहली पहचान तो एक भारतवासी के रूप में होनी चाहिये


    -काश!!! हम समझ पाते.....बहुत उम्दा संदेश दिया है संजय तुमने..


    फत्तु के जैसे दोस्त के साथ तो घूमना भी गुनाह ही है. :)

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  22. @ dhiru singh ji:
    यह भी एक पूर्वाग्रह है। अधिकतर फ़िल्मों में ठाकुर जालिम विलेन के ही रूप में दिखाये जाते हैं।

    @ अमित शर्मा:
    ये लिखना मैं भूल गया था कि जिस पर प्रसन्न हो जायें उसकी उंगली बढ़ा भी देते हैं हम। भरथे वाली शर्त याद रखना, वो भी भोला के लिये(हमारी तो देखी जायेगी), कहीं गायब नहीं होने देंगे प्यारे, वादा है।

    @ अंशुमाला जी:
    ज्यादा लंबी पोस्ट लिखने पर ये भुगतना ही पड़ता है जी। हर बार सब कुछ पढ़ने का समय नहीं होता लोगों के पास। हम तो इतने में ही फ़ूले नहीं समाते कि कुछ तो पढ़ा आप जैसों ने।
    तारीफ़ वाली बात विचारशून्य ब्लॉग पर हमारी टिप्पणीयों के प्रकाश में थी। धनंजय का नाम मुझे ध्यान था, मैंने जानबूझकर नहीं लिखा था, मैं देखना चाहता था कि कितने लोगों का ध्यान छोटे लोगों के मामले पर भी जाता है।
    आप भी केवल कमेंट के लिये कमेंट नहीं करतीं।
    पश्चिमाग्रह वाकई मजेदार शब्द लगा था, अब आपने बताया कि डाके का माल है तो और भी अपीलिंग लगा।

    @ अविनाश:
    राज्जा, गुलाब पर एक शेर सुनोगे? मुझे पसंद है बहुत-
    "गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं,
    मोहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं।
    सुना है कि कभी हम महफ़िलों की जान होते थे,
    बहुत दिन से हम पत्थर हैं, न हंसते हैं न रोते हैं।"
    वाह-वाह करना जरूरी नहीं है। वैसे अब भी गुलाब खिलते हैं क्या?

    @ उड़न तश्तरी:
    समीर साहब, एक आप ही हैं जिसने कदर करी हमारी। न तो देख लो सारे मुझ गरीब से खुश्की ले रहे हैं। धन्यवाद आपका।

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  23. सही बात है ... वैसे हर समाज में अच्छे लोग और बुरे लोग होते हैं ...

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  24. अपना दृष्टिकोण और व्यापक कर सकें और मानवता को अपना कॉमन धर्म और विश्व बंधुत्व को अपनी पहचान बना सकें तो कैसा रहे? इस से बढिया और क्या हो सकता है। वैसे बता दूँ मै भी पंजाबी हूँ। शुभकामनायें।

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  25. पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा.......

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  26. @ Indranil Bhattacharjee:
    सैल साहब, मैं भी यह नहीं कह रहा कि किसी समाज में सभी लोग अच्छे या बुरे हैं, लेकिन सिर्फ़ कुछ लोगों के कारण सारे समाज को जिस नजर से देखा जाता है, वही पूर्वाग्र्ह हैं। आदमी अच्छा या बुरा हो सकता है, समाज नहीं।

    @ नीरज जाट:
    भाई छोरे, पहलवान कदे न हारते।

    @ निर्मला कपिला जी:
    मैडम, आप पंजाबियों की मान हो जी।

    @ hem pandey ji:
    इसी चीज को कोई 'unity in diversity' देखेगा और कोई 'diversity in unity', सबका अपना अपना नजरिया है जी। धन्यवाद।

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  27. .

    ऐसा नहीं कि ये पूर्वाग्रह सिर्फ़ पंजाबियों को ही झेलने पड़ते हैं। पंजाबी, बंगाली, बिहारी, नेपाली, मद्रासी, सिंधी, मुसलमान, गांव वाले, शहरवाले, सरदार – अनगिनत पैमाने हैं जिनके आधार पर हमने अपने दिलों में पूर्वाग्रह बना रखे हैं।

    @ मित्र संजय, पूर्वाग्रह यूँ ही निर्मित नहीं होते.
    आपने एक मोटी कहावत सुनी होगी :
    एक मछली सारे तालाब को. ......
    आज भी यही कहावत अन्य बिरादरियों के प्रति भी पूर्वाग्रह तैयार करने में जुटी हुई है.

    सरकारी कर्मचारी. ................
    घूसखोर, ...............
    ओ अच्छा तो उसकी सरकारी नौकरी है. मतलब घूसखोरी से अच्छी-खासी कमाई है.

    नेता / मंत्री ...............
    झूठे वादे करने वाला, ...........
    तू घणा नेता तो बणे मत. ये कर दूँगा, वो कर दूँगा. तू अपणा कर ले काफी है.

    सरकारी मास्टर .................
    घोर स्वार्थी, .............
    तो शर्मा जी गवर्मेंट स्कूल में मास्टर हैं, अच्छा तो वही तुम्हारे पडौसी हैं. फिर तो आड़े वक्त में ... तुम्हें सोचना पड़ेगा.

    मुसलमान ....................
    गंदगी में रहने का शौकीन ..........
    अरे भाई, मेरे घर के पास मोहमडन परिवार काफी हैं. घर लेने से पहले सोच लेना.
    बिहारी ....................
    कुटिल मति ....................
    तूने दोस्ती भी की तो बिहारी से, ज़रा सावधान रहना. देखना वो जरूर उधार माँगेगा.

    पंजाबी ................
    चापलूस, दूसरे बिरादरी वालों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति .......
    यार वो पंजाबी है उसे एक बार अपनी हाउसिंग सोसाइटी का रास्ता दिखा दिया तो मक्खन क्रीम सब कम पड़ जायेंगे, वो सोसाइटी का प्रेसीडेंट बनकर ही मानेगा, देख लेना.

    _________
    जरा सोचें कि इनमें से कोई एक होने में हमारा या किसी का क्या योगदान है? जब जन्म लेना अपने हाथ में नहीं है तो किस धर्म में, किस देश प्रदेश में, किस लिंग में जन्म लेंगे यह कौन तय कर सकता है?

    @ पहली दृष्टि में इन सभी रहस्यों का उत्तर वही है जो आपके पास है.

    दूसरी दृष्टि में ये तर्क का विषय है.

    तीसरी दृष्टि में यह विचारें कि :
    हमारे संस्कार और शिक्षा हमारे बच्चों का निर्माण करते हैं.
    उन्हें जैसी शिक्षा मिलेगी वैसा परिवेश बनायेंगे.
    क्यों मदरसों में पढ़ने वाले संकुचित सोच लिये होते हैं?

    दूसरी दृष्टि को थोड़ा विस्तार दे दूँ :
    जैसा इस जन्म में कर्म करेंगे वैसी ही गुणवत्ता का पुनर्जन्म में परिवार पायेंगे ....... ऎसी मान्यता है.
    अलग-अलग मशीनरियों में अलग-अलग बैटरियाँ लगा करती हैं. आप घड़ी के सेल से ट्रांजिस्टर नहीं बजा सकते और न ही मोबाइल ओन कर सकते हैं.
    फिर कैसे कह सकते हैं कि "इनमें से कोई एक होने में हमारा या किसी का क्या योगदान है?" उत्तर के लिये विचार-विमर्श के लिये तैयार हूँ....... चुनौती है मित्र आपको. चलो छेड़ते हैं एक बहस.
    .

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  28. @ प्रवीण पाण्डेय जी:
    अपुन और बहुत अच्छा, और आप कहते हैं सीरियस में?
    सरजी, मानहानि का मुकदमा कर दूँगा:)

    @ प्रतुल वशिष्ठ:
    दोस्त, बहस करने की बजाय देखना ज्यादा अच्छा लगता है मुझे। फ़िर भी चुनौती है तो हार तय होने के बाद भी स्वीकार करनी ही होगी। शास्त्रों के संदर्भ नहीं दे पाऊंगा, बस अपनी देखी थोड़ी सी दुनिया के आधार पर अपना पक्ष रख सकूंगा।
    समस्या एक और है। मुझे किसी आवश्यक कार्य से कुछ समय के लिये इस ब्लॉगीय सक्रियता से अलग होना है। जाने का समय १ दिन से लेकर तीन दिन और पूर्ववत सक्रिय होने का समय दो दिन से लेकर दो सप्ताह तक कुछ भी हो सकता है। मेरे लौटने तक रुक सकेंगे क्या? नहीं तो फ़िर इसका भी उपाय किया जाये कुछ। इतनी तो अपेक्षा है कि इसे प्लायन नहीं समझा जायेगा।
    अंतिम निर्णय आपका ही मान्य होगा।
    जाते जाते एक पुछल्ला:
    एक हमारे जैसे फ़टीचर लिक्खाड़ से किसी भले आदमी ने हजार के नोट के छुट्टे मांग लिये।
    जवाब मिला, "हजार तो क्या, सौ के भी छुट्टे नहीं हैं मेरे पास। फ़िर भी, मेरे स्तर के आदमी से हजार के नोट के छुट्टे मांग कर आपने मेरी जो इज्जत बढ़ाई है, उसके लिये मैं आपका आभारी रहूँगा।

    दोस्त प्रतुल, मैं आपका आभारी हूँ।
    (एक जवाब पहले लिखा था, वो XXL साईज का था, ब्लॉगर से नहीं झिला और सेव करने की मुझे आदत नहीं, न पैसा और न कुछ और। XL साईज़ से ही काम चलाईये।)

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  29. मित्र संजय
    आपसे केवल बतरस की इच्छा थी मैंने सोचा एक मौक़ा आपने अपने लेख से मुझे दे दिया है तो थोड़ा लेते हैं आपकी मनोरंजक खोपड़ी का मज़ा. आपकी शैली और सोच से निकली बातें मन को रुचती हैं. कोई विशेष तकरार की इच्छा नहीं थी रे. आप निश्चिन्त होकर अपने कार्य करें. मैं तो बस आपसे दो बातें कर लेना चाहता था. आपकी वृहत सोच और नज़रिया मुझे बेहद भाते हैं. आपके इतने प्रशंसक यूँ ही अवतरित नहीं हो गये हैं. उनको कुछ तत्व मिलता है आपके ब्लॉग पर तभी तो आते हैं. आपसे क्षमा आपको उकसाने के लिये. फिर कभी बातें करेंगे. नमस्ते.

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  30. @ प्रतुल:
    बन्धु, ऐसा पाप क्यों चढ़ा रहे हो यार? उकसाना और क्षमा, ये सब क्या है? इतना बुड़्बक समझ लिया है क्या मुझे?
    ऐसे कैसे जाने दूंगा तुम्हें मैं, यहाँ नहीं मानोगे तो मंडावली पहुंच जाऊंगा माफ़ी मांगने या बहस करने, जो भी कहोगे कर लेंगे। मुझे जानते नहीं हो अभी।
    मैं खुद गौरवान्वित महसूस कर रहा था, अपन बात करेंगे न दोस्त। कोई गलतफ़हमी मत पालो, नहीं तो मैम ही खुद को माफ़ नहीं कर पाऊंगा।
    हम बात करेंगे और जरूर करेंगे।
    नमस्कार।

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  31. भाई मो सम कौन ? जी ,
    समुदायों और समूहों की इमेज बिल्डिंग और पूर्वाग्रहों पर आपकी पोस्ट आपके पर्यवेक्षण कौशल का बयान करती है ! बस इतना ही कहूँगा कि कुछ पूर्वाग्रह विषहीन से होते है और कुछ बेहद ज़हरीले !

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  32. इस पोस्ट का मसला ऐसा था कि कुछ भी टिपियाने से अपने को ज़बर्दस्ती रोकता रहा (न न, कीबोर्ड के कीज़ कम हो जाने का डर नहीं था) मगर प्रति-टिप्पणियाँ पढकर कहना ही पडा - वाह!

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  33. बहुत खूब संजय जी। गंभीर बात को भी हँसते हँसाते कहना कोई आपसे सीखे।

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