बुधवार, जनवरी 26, 2011

इंतज़ार.......(भाग तीन)



“इन पुरानी इमारतों, खंडहरों में पता नहीं तुम्हें क्या आकर्षण दिखता है, जब भी कहीं घूमने की बात करें तो  किसी किले या किसी मंदिर का प्रोग्राम बना लेते हो। दुनिया है कि आगे से और आगे को भाग रही है और तुम हो कि इन वीरान खंडहरों के दीवाने बने हो अब तक।”

“तुम मुझपर प्रोग्राम बनाने की जिम्मेदारी छोड़ा ही मत करो न, कोई दिक्कत नहीं होगी। खुद ही जोर देकर प्रोग्राम बनाती हो बल्कि बनवाती हो, फ़िर कमी निकालती हो।”

“अए सुबीर, बुरा क्यों मानते हो? मैंने कोई कमी नहीं निकाली तुम्हारी, ऐसा कहा कुछ?  मैं तो तुम्हारे अंतर्मन को जानना चाहती थी, इसलिये ऐसा कहा था।  सच कहूँ तो अब तो मुझे भी ये गुजरे ज़माने की निशानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं। पहले कभी देखा भी तो सिर्फ़ चमक-दमक पर ध्यान जाता था।  अब दूसरे नजरिये से देखती हूँ तो   मायने बदले दिखते हैं।”

“नये निर्माण से मुझे कोई परहेज नहीं, मैं भी सुंदरता और स्टाईल को नापसंद नहीं करता। लेकिन जो दिखता है, वही तो पूरा सच नहीं। नींव किसी को दिखती है क्या? मगर क्या एक पुख्ता नींव के बिना कोई भी इमारत तामीर हो सकती है?  ये जगह बेशक वीरान हैं, लेकिन मेरे कान तो यहाँ आकर  तलवारों की झंकार को भी सुनते हैं और पायल की झंकार भी, फ़ुसफ़ुसाती दुरभि संधियाँ होती भी महसूस करता हूँ, मंत्रों की ऋचायें भी सुनता हूँ  और मासूम प्यार को भी पलते बढ़ते सुनता हूँ। वो वक्त और उसकी निशानियाँ हमारे उस आज के वक्त की नींव है, जिसे दुनिया देख-सराह रही है। लोगों के पास शायद वक्त नहीं, सबको आगे से आगे निकलना है और सबकुछ पा लेना है। वहीं मेरे पास वक्त भी है और मैं सबकुछ पा लेना भी नहीं चाहता।  शाम हो गई है, चलें अब?”

“चलिये ऋषिवर, इस युग में तो लगता है मेनका ही तपस्विनी बन जायेगी।”  शुभ्रा हँस दी और सुबीर……..।  शुभ्रा ने हैंडबैग से आईना निकाला और लिपस्टिक ठीक करने लगी। सुबीर पर नजर पड़ी तो उसने आज फ़िर वही महसूस किया,  बेहद हल्की सी एक नागवारी।  उसने आज पूछ ही लिया, “सच कहना, जब भी मैं मेक अप ठीक करती हूँ तो तुम कुछ अजीब से अंदाज में  क्यों देखने लगते हो?  झूठ मत बोलना।”

कुछ सोच में पढ़ गया सुबीर, बोला, “मैं बताऊँगा तो सच ही बताऊँगा, लेकिन हो बहुत शार्प, एकदम एक्स-रे की सी नजर। कोई कोर्स किया है क्या, चेहरे पढ़ने का?”  और हँस दिया।“

"हाँ, पी.एच.डी. की है मैंने। बात को पलटो मत। सीधी बात करो।”

सुबीर कहने लगा, “वजह पूछोगी तो नहीं बता सकूँगा, मुझे खुद नहीं मालूम।   लेकिन खूबसूरत दिखने के लिये लिपस्टिक लगाना मुझे फ़ूहड़ता के सिवा कुछ नहीं लगता। खैर, मुझे इस बात से और किसी को मेरी इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिये।”

शुभ्रा खिलखिला दी, “तुम जरूर कभी लिपस्टिक के कारण रंगेहाथों पकड़े गये होगे।” और लिपस्टिक का रोल झाडि़यों के पीछे उछाल कर गाड़ी की तरफ़ चल दी, “चलो अब जल्दी से।”

“रंगे  हाथों?  हा हा हा, कभी नहीं। और ये फ़ेंक क्यों दी तुमने?”

“अब वो मेरे किसी काम की नहीं रही।  खत्म हो गई थी।   हा हा हा।        
कहीं भूल से ये न समझ बैठो कि मैं ……..।”  आवाज तो अच्छी हमेशा से ही लगती थी शुभ्रा की, लेकिन सुबीर के कानों को शुभ्रा का आखिरी अधूरा वाक्य रेडियो पर चल रहे गाने की झलक का हिस्सा सा क्यों लगा, वो यही सोच  रहा था।

“तुम सच में एक मिस्ट्री हो। मैं चुप था तो ही अच्छा था।”

शुभ्रा ने आँखें तरेरीं,  “हाँ हाँ, तुम चुप ही करो अब।”

गाड़ी में कुछ देर मौन पसरा रहा। शुभ्रा ने ही बात छेड़ी, “वो कहानी पढ़ी जो मैंने बताई थी, ’उसने कहा था’    या रेडियो के आगे हमारी फ़रमाईश बेकार गई?”

“पढ़ी है, पढ़ता रहता हूँ। पहली बार कुछ खास नहीं लगी थी, लेकिन फ़िर हर बार पढ़ने पर उसके मायने बदलते दिखते हैं। अब बहुत पसंद है और हर बार ये पसंदगी पहले से ज्यादा बढ़ रही है। किताबें भी आदमी से कम नहीं होती,  हर किस्से-कहानी  में जाने कितने चेहरे छिपे रहते हैं।  सुना तो ये था कि every human is an encyclopedia, if you know how to read     लेकिन अब लगता है each book is like a human, different faces at different occassions.  बहुत बोलने लगा हूँ मैं आजकल, है न?”

शुभ्रा ने गाड़ी सुबीर के घर के पास रोक दी,  “No, you need to speak-up more, much more.  गुड   नाईट, सुबीर। और सुनो,  बारिश हो रही है, जल्दी से अंदर चले जाना।  बेमौसम की बरसात है भीगना मत  नहीं तो बीमार हो जाओगे,  कोई है भी तो नहीं जो तुम्हारा ध्यान रखे। बाय, सुबीर,  गुड नाईट”

सुबीर उतर गया,   खिड़की से झाँककर उसने भी गुड नाईट विश कर दी। जाने कैसे आज उसके  मुंह से निकल गया,    “गुड नाईट,  मेनका।” अवाक सी देखती रह गई शुभ्रा, और खुद सुबीर भी हैरान सा खड़ा रह गया। 
वो   कार को जाते देख रहा था और कार में बैठी शुभ्रा का ध्यान रियर-व्यू मिरर में था।  गली के मोड़ तक पहुँच गई थी वो, लेकिन एक साया अब भी अपनी जगह पर खड़ा दिख रहा था, बारिश में भीगता हुआ। बाहर की बारिश, अंदर की बारिश………….. बुदबुदा उठी शुभ्रा, “पागल,  बुद्धू,  ईडियट कहीं का। कितना समझाया कि मत भीगे, जरूर बीमार पड़ेगा अब।“

अगली सुबह शुभ्रा के पापा सुबीर के कमरे पर पहुँचे और शुभ्रा की छुट्टी की एप्लिकेशन सुबीर को देते हुये बताया कि सुबह शुभ्रा को बुखार  लग रहा था,  इसलिये आज वो ऑफ़िस नहीं जायेगी। सुबीर खुद को कोस रहा था,  क्यों शुभ्रा का कहा नहीं माना कल उसने?  क्या जरूरत थी उसे भीगने की?

जा..जा..जारी……:))

भारत के गणतंत्र दिवस की सभी को शुभकामनायें। 

29 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं, मैं नहीं कहूँगा कि मुझे अच्छी कहानी सच्ची भी लग रही है. जिसे कहना है कहे :)

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  3. कहानी के संवाद बहुत ही अच्छे लिखे है आपने....... गणतंत्र दिवस की सभी को शुभकामनायें।

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  4. मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोई
    जा तन की झाईं परे, श्याम हरित द्युति होई
    भीगे कोई और बीमार पड़े कोई - वाह, क्या मुगलिया प्यार है. आनंद आ गया. गाने में सड़क कितनी साफ़ हो गयी है धुलकर|

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  5. "किस्सा-गो कहता रहा रात भर बात सच्ची,
    नींद उन्हे आ गई तलाश जिन्हे तिलिस्म की थी!"

    सब पढने वालो को गणतत्रं दिवस की शुभकाना!

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  6. वाह क्या मोहब्बत है भीगा सुबीर और बुखार शुभ्रा को,
    आज की कडी लाजवाब लगी,
    अगले भाग का बेस्रबी से इन्तजार है।

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  7. लिपिस्टिक पुराण, अच्छा लगा।

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  8. कमबख्त वो दोनों बाहर भीग रहे हैं और गीलापन हम महसूस कर रहे हैं ! प्रेम कहानियां पढते हुए सब्र नहीं होता पर क्या करें प्रेमी युगल भी तो किश्त किश्त कई दिन गुज़ार कर ही इस हद तक पहुंच पाया होगा !

    अभिषेक ओझा और अदा जी अब भी ? आप पर इतना शक क्यों कर रहे हैं :)

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  9. सोचता हूँ कि रोमांस के.. सॉरी!! सच्चे रोमांस के सारे सिम्बल ऐटीरोमाण्टिक क्यूँ होते हैं.. सम्वादों को बस सुन रहा हूँ(ग़ौर तलब है कि पढ़ रहा हूँ नहीं कहा)...मक़तब में किसी को छड़ी पड़ती थी और किसी की हथेली पर निशान दिखते थे.. आज देखा कि कैसे कोई भीगता है तो कोई और बीमार हो जाता है!!
    और आख़िर में
    तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई.. तभी तो मेरे मोबाईल के रिंगटोन (इंस्ट्रूमेण्टल)का वीडियो दिख रहा है यहाँ!!

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  10. हमें लगा कि आप गीत सुनाएंगे- ''वो जवानी, जवानी नहीं, जिसकी कोई कहानी न हो.

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  11. @किताबें भी आदमी से कम नहीं होती, हर किस्से-कहानी में जाने कितने चेहरे छिपे रहते हैं।
    :)
    judge करना न तो आसान काम है न उचित, समझने की कोशिश हो वही बहुत है।

    और ये भीगने-बीमार होने का नाता अच्छा लगा, जारी है तो अच्छा है। अच्छी चीजें लम्बी चलें, हमें ऐतराज नहीं। :)
    और जैसा कि सभी गुणीजन कह रहे हैं, मैं भी सुन रहा हूँ, गुन रहा हूँ, मिठास घोलते हर शब्द।

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  12. Happy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..

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  13. अब लम्भी टिप्पणी कैसे करू जो पोस्ट ही इतनी छोटी सी थी सिर्फ घुमाया फिराया दार्शनिक बाते की और भिगाया किसी को और बीमार किसी और को कर दिया | रोमांटिक कहानियो में ही लोग ऐसी दार्शनिक बाते करते हुए रोमांस करते है |

    एक बात कहूँगी जो ऊपर सब कह चुके है तो मानेगे नहीं फिर पोस्ट आ जाएगी आप की सफाई देने वाली " पोस्ट के साइड इफैक्ट" कहानी ख़त्म करने के बाद इस पोस्ट की पूरी गुंजाईश बनती दिख रही है |
    आप खुशनसीब थे जो आप को पिछली बार मेरी तरफ से छोटी टिप्पणी मिली थी वरना यहाँ तो सब मेरी पोस्टनुमा लंबी टिप्पणियों की मार से दुखी रहते है |

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  14. @ अभिषेक ओझा:
    सच में बहुत भले हो, कहते नहीं हो कुछ।

    @ भारतीय नागरिक:
    शुक्रिया सर।

    @ अदा जी:
    "कोई कहानी-उहानी नहीं है?" तो जी हमीं कहाँ के सलीम-जावेद हैं? जैसी बन पड़ी, लिख डाली, हाँ नहीं तो..!! ’रंगे-हाथों’ कतई टाईपिंग मिस्टेक नहीं है, हीरो को बचाना भी तो था। हम बेकार हैं और अपने जैसों के साथ ही उठते बैठते हैं, सलाम-परणाम खुदै पहुंचा दीजियेगा। और लंबू जी हैंडसम इसीलिये दिख रहे हैं क्योंकि ठिंगू जी उनके साथ हैं।
    आ..आ...आभार स्वीकारियेगा, हमारी तो देखी जायेगी।

    @ उपेन्द्र ’उपेन’:
    धन्यवाद उपेन्द्र जी।

    @ स्मार्ट इंडियन:
    क्या उस्ताद जी, आप ही तो कहा करते हैं कि संयोग होते है:)

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  15. @ ktheLeo:
    क्या बात कही है सरजी, दोनों का काम हो गया। किस्सागो को जागने का सबब मिल गया और सुनने वालों को नींद नसीब हुई। बहुत खूब।

    @ जाकिर अली ’रजनीश’:
    धन्यवाद।

    @ दीपक सैनी:
    छोटे भाई, होती थी ऐसी मोहब्बत और ऐसी कहानियाँ भी पिछले जमाने में। पसंद आई तुम्हें, शुक्रिया।

    @ प्रवीण पाण्डेय:
    आप तो हमेशा से मतलब की चीज बांच लेते हैं:))

    @ अली सा:
    ऐसा ही हुआ होगा, अगर ऐसा हुआ था। अब हम तो अंदाजा ही लगा सकते हैं, आपकी तरह।
    अब ये शक यकीन वाली बात पर किसी को क्या दोष दें,हमारी छवि ही इतनी शानदार बन चुकी है:))

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  16. @ चला बिहारी...:
    आपका भी सुआगत है सलिल भैया, सारे मौज ले रहे हैं तो आप क्यों पीछे रहें? दूसरी पार्टी के साथ मिलकर मौज ले ली सच्चा रोमांस बताकर, अंत में हमारे साथ पहले का नाता जोड़ लिया। किसी सधे गुरू के चेले हो जरूर आप:))

    @ राहुल सिंह जी:
    सोचा था जी ये वाला गाना, फ़िर सोचा तो सिर्फ़ कहानी ही कहानी दिखी, जवानी नहीं। वैसे ये जवानी, कहानी वाला गाना फ़िर सही, बजाकर मानेंगे।

    @ अविनाश चन्द्र:
    किस्सा-कहानी वाली बात में शायद कुछ गलत कह गया मैं, ऐसा क्या? बता देना अनुज, ऐसा लगे तो।

    @ ManPreet Kaur:
    Thanx & same to you.

    @ anshumala ji:
    बड़ी पोस्ट लिख दूं तो लोग शिकायत करते हैं कि जरा सी बात पर तम्बू तान देते हो, छोटी पोस्ट लिखूं तो आप भिगोकर...।
    ’पोस्ट के आफ़्टर इफ़ैक्ट्स’ अब नहीं आएगी, नो चांस। आदत हो गई है अब संबंधित पक्षों को:)
    आपकी टिप्पणी की आखिरी पंक्ति से हम इत्तेफ़ाक नहीं रखते।

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  17. गलत!!
    न, न, वही मेरा सबसे अधिक पसंदीदा वाक्य है, अच्छा लगा इसे पढना इसलिए उल्लेख किया।

    P.S.:
    किसी ने कहा था, शब्द अक्षरशः याद नहीं हैं पर कुछ ऐसा ही था..

    People will come, people will see, people will spit on you.
    More people will come, more people will see, more people will clap on you.
    Neither of those behaviors are complete because they aren't you.

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  18. romanch se hi to romance nahi bana?

    masha-allah.....bhigta subir hai.....aur.....bukhar subhra ko.......

    agle kar ki pratiksha me.....

    pranam.

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  19. क्या कहूँ मैं, मुझसे उपर वालों ने वो सब कह ही दिया है जो मैं कहना चाहता था।

    एक ही बात कहूँगा- भाग एक से भाग तीन में आते आते आप धीरे धीरे कहानीकार से दार्शनिक की भुमिका में आते जा रहे हैं। और व्यंग्यकार तो आप हैं ही बेहतरीन।

    एक वाक्य में कहें तो -’बहुमुखी प्रतिभा के धनी’ :)

    (नोट: ये बात मैं अत्यंत गंभीरतापूर्वक कह रहा हूँ अतः अनुरोध है कि इस टिप्पणी को उत्पात न माना जाए)

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  20. @ Avinash Chandra:
    देखा, थोड़ा सा उकसाया और एक और खूबसूरत जुमला पा लिया तुमसे:))

    @ स्मार्ट इंडियन:
    धन्य भये हम।

    @ sanjay jha:
    झा बाबू, एक और मित्र हैं जो प्रणाम करने से नहीं मानते, आप तो मान जाओ यार! आपको रुचिकर लग रहा है, सो आभारी हैं।

    @ सोमेश सक्सेना:
    अरे यार, इससे तो उत्पात ही करते कुछ:))

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  21. कहानी अच्छी लगी ...हाला की कल से ही आपके ब्लॉग पे आ रहे है पर जब तक पिचले हिस्से ना पढ़ टी कमेंट्स क्या देती?

    गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाये !

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  22. arey kisi se kaho mujhe koi acche se comment karna sikhaye.....lafz kam pad rahe hain...

    i mean...u kno...its a sweet sweet story....aisa nahin ke koi twist ho koi surprise ho, koi hairaani ho....bas kabhi aisa lagta hai jaise ham bhi kisi khandhar mein ghoom rahe hain, kabhi aisa lagta hai ke kamre mein barish ho rahi hai....it just feels like i sway away....beautiful....

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  23. आदरणीय संजय जी
    आपका मेरे ब्लॉग पे टिप्पणीके लिए शुक्रिया .... जी हा हम इन्द्रनील जी का शुक्रिया किसी रचना द्वारा जरुर देंगे बस कुछ समय लगेगा ...
    धन्यवाद
    ___________
    बस एक और हो जाये ....

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  24. @ coral:
    डा. तृप्ति, बहुत बहुत आभार आपका। आपका खुद का और इन्द्रनील जी का ब्लॉग बहुत अच्छे ब्लाग्स में मानता हूँ। आपकी सराहना के लिये शुक्रिया।

    @ saanjh:
    लफ़्ज़ कहीं कम नहीं हैं आपके पास, वैसे ही कहती हैं आप:) थैंक्स।

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