मंगलवार, जुलाई 05, 2011

ऑल जगराँव ब्लॉगर(स) एसोसियेशन भंग, तंबू उखड़ा:)


बहुत पहले कभी एक कहानी सुनी थी, किसी व्यक्ति ने जप-तप करके यह वरदान पा लिया कि जब उसकी मृत्यु आयेगी तो उसे संबंधित डिपार्टमेंट द्वारा  पहले सूचित कर दिया जायेगा। मित्रों परिचितों ने बहुत उल्टा-सीधा कहा कि माँगना ही था तो कुछ ढंग की चीज़ माँगी होती लेकिन बंदे ने कुछ सोचकर ही वरदान माँगा था। उसकी योजना ये थी कि खुलकर ऐश(क्लैरिफ़िकेशन – ऐश बोले तो लक्ज़री वाली ऐश)  की जिन्दगी बितायी जायेगी और मृत्यु की सूचना तो मिल ही जानी है, अंत समय में फ़िर से पूजा पाठ, संयम से काम लेकर अपना परलोक सुधार लिया जायेगा। जिन्दगी की गाड़ी चौथे पांचवे गियर में चलती रही और एक दिन अचानक यमराज ने पहुँच कर कूच करने को कह दिया।     अब बंदे ने सीधे से वादाखिलाफ़ी का दावा ठोंक दिया जैसे सरकार आंदोलनकारियों पर और आंदोलनकारी सरकार पर आरोप ठोंकते रहते हैं, “मुझे ये वरदान मिला था कि म्रूत्यु के आने से पहले उसकी सूचना दी जायेगी, जब आज आप अचानक ही आ गये। ये वादाखिलाफ़ी है। कम से कम एक बार तो समय रहते मुझे सूचित किया जाना चाहिये था।”
     
उसके प्रोटैस्ट को ओवररूल करते हुये स्पष्टीकरण दिया गया, “कुछ साल पहले आपके बाल सफ़ेद होने लगे थे, उसके कुछ साल बाद आपकी नजर धुंधला गई थी, फ़िर आपके दाँत गिरने शुरू हुये और उसके कुछ समय बाद आपके हाथ-पाँव काँपने लगे थे । ये सभी आपकी आसन्न मृत्यु की सूचनायें ही थीं कि आप सावधान हो जायें। अगर आप नहीं समझे तो यह गलती आपकी है।” कहानी खत्म।

अब आप इल्ज़ाम लगायेंगे कि ऊपर ब्लॉगर एसोसियेशन का बैनर टाँगकर नीचे अंधविश्वास, आस्तिकता वगैरह वगैरह की कहानियाँ सुना रहा हूँ। लगा लो इल्ज़ाम, लेकिन पहले मेरी पूरी बात पढ़कर।

साल भर पहले हमारी शाखा में कुछ रेनोवेशन का काम हुआ। बेहद जरूरी वाले काम हो गये, जो टाले जा सकते थे वो बदस्तूर  टल गये। साल भर तक जिस केबिन में बैठकर  स्कैनिंग और ऐसे ही दूसरे बैक आफ़िस के काम करता  रहा,  पिछले महीने वहाँ लाईट और पंखे की फ़िटिंग हो गई।    दो सप्ताह पहले  स्टाफ़ के लिये बढ़िया वाली नई कुर्सियाँ स्वीकृत हो गईं,  पिछले सप्ताह ए.सी. की भी सैंक्शन आ गई। अपन तो तभी समझ गये थे कि चलाचली का वक्त आ चला है। 
ट्रेन में सफ़र करते हुये कुछ बात होने पर एक लड़की ने लड़के से कहा, “एक लात मारूँगी सीधे गाजियाबाद जाकर गिरेगा।” वो बोला, “जी थोड़ा धीरे से मार देना, मुझे साहिबाबाद उतरना है।” 
अपने को थोड़ा  धीरे वाली ही लगी है,   दिल्ली नहीं मिली लेकिन दिल्ली सी मिल गई है। शायद ये सप्ताह यहाँ आखिरी सप्ताह है।

तो साहिबान, कदरदान     ’ऑल  जगराँव    ब्लॉगर(स)  एसोसियेशन’  के पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर      होने के नाते आप सबको सूचित कर रहा हूँ कि तत्काल प्रभाव से इस स्वयंभू संस्था, जिसका कभी गठन हुआ ही नहीं था, भंग की जाती है। वैसे टीन-टप्पर समेटने में दो चार दिन लगने तय हैं। जिसका कोई हिसाब किताब रह रहा हो, अभी चुकता कर ले, बाद की अपनी कोई गारंटी वारंटी नहीं है। वैसे तो अभी की भी नहीं है लेकिन फ़िर भी कहकर अपना फ़र्ज पूरा कर रहे हैं। बाद में तो हम सीधे से मुकर ही जायेंगे, उस काम में वैसे भी माहिर हैं। किसी के सामने दूसरे की चुगली करेंगे, कान भरेंगे, गालिब वाला शेर पढ़ेंगे ’ये होता तो क्या होता’ और मौके पर मुकर जायेंगे कि हमने तो ऐसा कुछ कहा नहीं:)

ठीक है, मान लिया कि पुराना हिसाब  क्लियर और  किसी ने कुछ लेना देना नहीं है। नई जगह पर जाकर नई बही बनायेंगे, नये हिसाब शुरू होंगे।

लगभग डेढ़ साल पहले यहीं एक छोटे से टैंपो पर लिखा देखा था, "मैं वड्डा होके ट्रक बनांगा"   वो पता नहीं ट्रक बना कि नहीं लेकिन मुझे जहाज बना गया:)  घर से बहुत दूर रहते हुये यहाँ  इतना प्यार, अपनापन  मिला जिसका कोई हिसाब नहीं। जैसे बीरबल की खिचड़ी वाली कहानी में दूर कहीं दूर जलते दीपक को देखकर किसीने सर्दियों की रात पानी में नंगे बदन रहकर निकाल दी थी, अपन ने भी सवा तीन साल निकाल लिये। होगी बहुतों के लिये ये ब्लॉग की दुनिया बेकार, हमने तो   बहुत कुछ पाया है इस ब्लॉगिंग से, आप ब्लॉगर्स से। 

अभी कल ट्रेन के एक पुराने डेली पैसेंजर साथी का फ़ोन आया था। पूछ रहा था,  “भाई साहब, गर्मी कैसी है?’  मैंने बताया, “गर्मी काफ़ी गरम है यहाँ, मजा  आ रहा है।” वो हँसने लगा, और बातों के बाद कहने लगा, “भाई साहब, सच तो ये है कि आप सजा काट रहे हो और बात मजे की कर रहे हो।”   क्या कहता भोले बंदे को, है कोई जवाब?   अबे भैये, सच तो ये है कि मजा के बाद सजा भुगतनी पड़े तो बहुत मुश्किल और सजा के बाद मजा आये तो आनंद ही आनंद।   और जो कहीं सजा और मजा का साथ हो जाये तो क्या कहने?

देख लो, ब्लॉग मेरा,  मेहनत मेरी और गाना भी वैसे तो मेरे मन का ही है, बहुत प्यारा, लेकिन ये क्या बात हुई कि गन प्वाईंट पर मजबूर किया जाये कि इस पोस्ट पर यही गाना लगना चाहिये, नहीं तो….।  मरता क्या न करता, लगाना पड़ा। भुरभुरे स्वभाव का ये अंजाम तो होना ही था:)

बाय बाय पंजाब, फ़िर मिलेंगे……..