रविवार, अगस्त 19, 2012

किस्सा\किस्से

ऑफिस से स्वतंत्रता दिवस के बाद दो दिन का अवकाश ले रखा था, कुछ जरूरी काम थे|  ये ऐंवे ही  आपको बता रहा हूँ, कहीं इसे प्रार्थी का निवेदन   न समझ लीजियेगा :-)          हुआ ये कि गैस एजेंसी का एक स्टाफ कुछ दिन पहले  KYC compliance    (Know Your Customer कम्प्लायेंस )  का  एक  फ़ार्म दे गया था मय एक मीठी  सी  चेतावनी,  कि इसके  जमा न करने पर कंपनी की तरफ से गैस सप्लाई बंद करने के आदेश हैं| अब हम ठहरे महासुस्त आदमी, ये सोचा कि अगली सप्लाई न देंगे इस डर से अपनी  इस मानव  देह जिसे पाने के लिय देवता भी वोटिंग लिस्ट में रहते हैं, को क्यों परेशान किया जाए?  जो सिलेंडर इस्तेमाल में है, उसे थोड़े ही न उखाड कर ले जायेंगे कंपनी वाले? तो उस फ़ार्म को  'रेफर टू  ड्राअर' करके सुस्ताते रहे|  यूं भी बैंकर होने के नाते KYC अपनी जानी पहचानी चीज थी  और जानियों पह्चानियों चीजों  को हम हल्के-फुल्के तरीके से नहीं लेते, हैंडल विद केयर करने की कोशिश करते हैं|    इस तरह के दो तीन काम इकट्ठे हो गए तो फिर पाला बदलकर सोचने लगे कि कंपनी ने सचमुच सप्लाई रोक दी तो रोटी के लाले इस मानव देह को ही पड़ने हैं, देवताओं का कुछ आना जाना नहीं है| हमने अवकाश लेकर गैस एजेंसी जाने का निर्णय कर  लिया|

कागज़ पत्तर इकट्ठे करके जब जाने लगा तो देखा माताश्री अन्य सब्जियों  के साथ साथ करेलों का भी  कलेजा काटने को तत्पर हैं| अब करेला उन चुनिन्दा कड़वी चीजों में से एक हैं, जिन्हें देखकर हमारे मुंह में पानी  आ जाता है और मेरे घर में सिर्फ मैं ही हूँ जो करेला बड़े शौक से खाता हूँ|  समझ गया कि हमारी छुट्टी को स्पेशल बनाने का यह  माताश्री की तरफ से प्रयास है| कहने लगीं, "देख ज़रा, कितना वजन होगा इनका अंदाजे से?"   मैंने पूछा, " क्या हुआ?"   कहने लगीं, "दस रुपये के ढाई सौ ग्राम  बता रहा था, लेकिन वजन कम लग रहा है| उस समय तो सारी सब्जियां  उसने एक ही थैली में डाल दीं,  ये ढाई सौ  ग्राम तो नहीं लगते|" अपन तो फुर्सत में थे ही, दुकान से वजन करवाया, निकले 180 ग्राम| माताजी सब्जीवाले को लक्ष्य करके बार बार यही कह रही हैं, "पन्द्रह रुपये के ढाई सौ ग्राम देता, लेकिन तौल तो सही रखना चाहिए था|" सब्जीवाला तो कब का जा चुका था, मैं सुन रहा था बल्कि मैं भी कहाँ सुन रहा था? मैं तो हिसाब लगा रहा था -
a. 28% की हेराफेरी 
b. वजन के हिसाब से देखें तो सिर्फ 70 ग्राम की ठगी
c. रुपयों में गिने तो कुल दो रुपये अस्सी पैसे की हेराफेरी
d. करने वाला गरीब आदमी 
e. हम ही कौन सा बहुत ईमानदार हैं. 

कौन सा विकल्प सबसे सही है
a/b/c/d/e/none of these/all of these ?

गैस एजेंसी पहुंचा और काऊंटर पर फ़ार्म जमा कर रहा था कि ग्राहकों की भीड़ को जल्दी निबटाने के लिए वहाँ के मैनेजर\मालिक काऊंटर पर आये और कुछ कस्टमर्स को अपने साथ ले गए|  उन्होंने KYC वाला  फ़ार्म ले लिया तो मैंने उनसे कहा कि मैंने नैट पर चैक किया है कि मेरे नाम पर DBC कनेक्शन जारी दिखाया जा रहा है|  मैं आपकी एजेंसी की तत्परता, ग्राहक सेवा वगैरह का शुक्रगुजार होना चाहता हूँ, आजतक से भी तेज, सबसे तेज| मेरे मन में अभी ये DBC वाला विचार आया ही था और आपने उसे  इम्प्लीमेंट   भी कर दिया, 'वाह  ताज|' बस मुझे वो कागज़ देखने हैं कि कब मुझे DBC अलोट हुई थी?"   शुरू में तो मालिक साहब ने इसका श्रेय मुझे ही दिया कि मैंने अप्लाई किया होगा और सिलेंडर लिया होगा, तभी रिकार्ड DBC दिखा रहा है  या फिर ये कि आपका एकाऊंट तो कहीं और से ट्रांसफर होकर आया होगा, वगैरह वगैरह वरना उनके एजेंसी इतने भी तेज नहीं है| लेकिन फिर धीरे धीरे धरती पर लैंड कर गए कि भाई साहब, आज  शुक्रवार है और अलविदा की  नमाज है| माहौल थोड़ा ठीक नहीं है, इसीलिये मैं आधे कस्टमर्स को खुद अटेंड कर रहा हूँ| मुझे थोड़ा सा वक्त दीजिए,  हम फिर किसी दिन  बैठकर बात कर लेंगे|" जिस दिन जाऊंगा, यकीन है कि बात हो जायेगी और मुझे सिलेंडर मिल जाएगा| लेकिन  मेरे साथ या औरों के साथ जो हो चुका या होता रहता ........................ विकल्प दूं फिर से ?

अभी आज की ही बात है, बाईक में पेट्रोल डलवाना था| एक पम्प पर दो अटेंडेंट आपस में बातों में मस्त थे लेकिन इशारा करके मुझे बुला लिया| दो सौ रुपये का पेट्रोल डलवाना था, मेरे बताने के बाद उन्होंने टंकी में पाईप रख दिया और फिर मीटर में अमाऊंट सेट करने लगा,  बल्कि  ज्यादा देर लगाकर और  ख्वामख्वाह की झल्लाहट दिखाते हुए अपसेट करने लगा|   अब बातों में मुझे भी शामिल करने लगे, 'सर ये दस दस के नोट दीजियेगा न, हमारे काम आ जायेंगे|'  बिना मतलब की बेसिरपैर की बातें,  और उसके बाद उनमें से पहला  दूसरे से पूछने लगा, 'मशीन कितने पर रुकी थी, पचास पर?'  दूसरे  ने हामी भरी, 'हाँ, पचास पर रुक गई थी|  अब डेढ़ सौ का और डाल  दे|'  पचास रुपये का चूना?  माँगा था पेट्रोल, लगाते  चूना:)   लेकिन बंदे थे बड़े शरीफ cum ईमानदार,  जल्दी ही पटरी पर आ गए|  पहली ही घुडकी के बाद  हामी भरने वाला प्रश्वाचक मुद्रा में आ गया, 'अच्छा, मशीन चली ही नहीं थी?'  पूछने वाला डांटक मुद्रा में आ गया उस पर, 'तूने अच्छे से  देखा नहीं था फिर बोलता क्यूं है?'   कल्लो बात, हमने तो जैसे  ऐसी नूरा कुश्ती कभी देखी ही न  हो|  हाँ तो, दो सौ रुपये में से पचास रुपये का कितना प्रतिशत बैठा जी?   विकल्प..........

कुछ साल पहले एक परिचित के यहाँ कुछ पार्टी शार्टी थी| मित्र का एक रिश्तेदार भी आया हुआ था, किसी सरकारी पशु चिकित्सालय में कार्यरत था| उसी की ज़ुबानी उसका किस्सा सुन लीजिए, "नौकरी करते हुए साल भर ही हुआ था कि मैं भयंकर रूप से  बीमार हो गया| दो महीने तक ड्यूटी पर नहीं जा सका| फिर एक दिन थोड़ी तबियत ठीक थी तो चला गया|  स्टाफ के सब लोगों से मिला, उन्होंने अलमारी में से वेतन  रजिस्टर निकाला, रसीदी टिकट पर मेरे साइन करवाए और मुझे पैसे पकड़ा दिए| जब मैंने पूछा कि ये क्या है, कितने हैं तो बताया गया कि दो महीने की तनख्वाह है| मैं अकड़ गया कि ये तो मेरी तनख्वाह है ही, मेरा हिस्सा किधर है?  हिस्सा देने पर  स्टाफ के लोग  नहीं  मान रहे थे तो  मैंने कहा कि ठीक है फिर,  कल से मैं रोज आऊँगा|   सबको सांप सूंघ गया हो जैसे, आपस में सलाह मशविरा करके मुझे हजार रुपये और दिए और समझाने लगे कि मैं अपनी तबियत का ध्यान रखूँ, सरकारी काम तो यूं  ही चलते रहेंगे| तब से मैंने अपनी तबीयत का ध्यान रखना शुरू कर दिया, महीने बाद जाता  हूँ, तनख्वाह और पांच सौ रुपये लेकर उसी में से दो-तीन  सौ रुपये की उनकी पार्टी कर देता हूँ, वो  भी खुश और मेरा भी काम चल रहा है| महीने में एकाध कोई प्रोपर्टी का सौदा करवा देते हैं  और यूं ही बस गुजारा चल रहा है|

पहले तीन वाकये पिछले तीन दिन के हैं वो भी खुद के साथ घटित, औसतन एक दिन में एक किस्सा| इसका एक मतलब ये भी निकलता है कि क्या  this international phenomenon i.e. corruption समाज की रग-रग में इस तरह पैबस्त हो चुका है कि अब ये सब खलता नहीं है?  सबके पास अपने तर्क हैं, कोई गरीबी ज्यादा बताता है तो कोई महंगाई ज्यादा बताता है|  मेरा मुंह तो पेट्रोल पम्प वाले ने सिर्फ एक बात से बंद कर दिया, 'सरजी, हमें पचास रुपये की गलती पर आप गाली निकाल दोगे लेकिन वो कोयले वाला घोटाला हुआ है उसमें जीरो कितनी लगेंगे, ये बताओ तब जानें आपको|'  जा यार, मुझे तो कसम से एक लाख की जीरो  नहीं  मालूम  और तू पूछ रहा है 1.86 लाख करोड़ की जीरो का? not my rake of coal :)

जुटे रहो भाई आम-ओ-खास बन्दों, बेडा डुबोने में  अपना अपना योगदान देते रहो|  बेस्ट ऑफ लक|                                                       

68 टिप्‍पणियां:

  1. मो सम कौन कुटिल खल कामी ।

    नाहक करते हो बदनामी ।

    पशु की दवा चले दिन राती ।

    मुद्रा का क्या आती -जाती ।



    कृष्ण कोयला करे दलाली ।

    मोहन के भी ऊपर वाली ।

    यार करेला क्यूँ खाते हो ।

    तौल-नाप कर क्यूँ लाते हो ?



    डबल सिलिंडर है कागज़ पर ।

    घर में लेकिन एक सिलिंडर ।

    झूठ मूठ का बना फ़साना ।

    आज ईद है कल ले जाना ।।

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    1. बाँट सका न अपना हिस्सा |
      भूल गया ईंधन का किस्सा |
      अपना अपना धंधा चालू |
      तेल निकाले सूखा बालू ||

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    2. रविकर जी,
      आपकी प्रतिभा को नमन, आभार|

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  2. आपकी ये तीन दिन की कहानी पढ़कर आपको वैसे ही गाली देने का मन हो रहा है,जैसे कुछ साल पहले तक हर उस साइंटिस्‍ट पर होता था जो कहता था कि आलू खाओगे तो कैंसर हो जाएगा,चाय पीओगे तो कैंसर हो जाएगा,लहसुन खाओगे तो कैंसर हो जाएगा। तब हम कहते थे कि अरे यह बताओ कि क्‍या खाने से कैंसर नहीं होता है।
    चलो अब गाली तो आप पेट्रोलपम्‍प वालों से खा ही चुके हैं, सो हम छोड़ देते हैं। पर पता नहीं इन घाटों और घोटालों से कब छुटकारा मिलेगा।

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    1. गाली वगैरह तो पेट्रोल पम्प वाला क्या देता, हमाने कहने लिखने में कोई लोचा हो गया दिखता है|

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    2. संजय भाई हमारे यहां तो ताने कसने को भी गाली देना कहते हैं। आपका लिखा बिलकुल स्‍पष्‍ट है। और गाली तो हम भी आपको क्‍या देंगे...देने होंगे तो वही बस दो चारे ताने। अब आप मानें या कि न मानें।

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    3. मान तो रहे हैं हुज़ूर, कुछ दे ही तो रहे हैं आप:) यूं भी इस हिसाब से तो मैं खुद भी बहुत गाली गलौज करता हूँ|

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  3. Ram Bharose ki dunia Ram Ji ke Bharose chal rahi hai hai...


    jai baba banaras....

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  4. आज कबाड़ी आया. बड़ी सी सिंथेटिक बोरी में सारी रद्दी भरकर स्प्रिंग कांटे से तौलता है और वजन बताता है मात्र सत्रह किलो. वह रद्दी जिसे मैं पांच बार अपने हाथों में ढो कर दरवाज़े तक लाया वह मात्र सत्रह किलो!? खैर, मैंने बोरी उठाई और मुझे यकीन हो गया की वह तीस किलो से कम नहीं है. मैंने वहीं दरवाज़े पर रखा भरा सिलेंडर उसे अपने सर से ऊपर उठाकर दिखाया कि मैं सिलेंडर उठा पा रहा हूँ लेकिन बोरी नहीं. मतलब, बोरी ज्यादा भारी है. कांटे पर सिलेंडर तुलवाया तो वज़न मात्र पंद्रह किलो! अब मुफलिस करे तो क्या करे! बाईस किलो की रद्दी के लिए वह भी राजी हो गया और हम भी. न होते तो अगले हफ्ते किसी और के साथ यही होता. हम तो हर हफ्ते भरा सिलेंडर सर से ऊपर नहीं उठा सकते!

    हर चार-पांच महीने में भोपाल आते-जाते समय स्टेशन पर कुलियों से चिक-चिक. बारह-पंद्रह किलो के दो-तीन बैग तीन प्लेटफार्म पार ले जाने का भाड़ा दो सौ रूपये. अब एक हल्का बैग पत्नी के हवाले और खुद बन गए हम्माल. अब ले ले बेटा दो सौ रुपये! लेकिन वे बोलते हैं कि हम गरीब के पेट पे लात मार रहे हैं.

    किस-किस से गाली खाएं!? पेट्रोल वाला भी एक किस्सा दफ़न है. पार्किंग वाले बड़ी सफाई से पर्ची फाड़कर देते हैं, आप भी यही मानेंगे कि वाकई दो घंटे की पार्किंग तीस रुपये की है. जायज़ दस रुपये के बदले बीस के लिए भी वे तैयार न होंगे.

    और कल की बात. गए मैट्रो से चांदनी चौक! पत्नीश्री बेटे का हाथ पकडे अतिउत्साह में चढ़ गयीं महिलाओं वाला डिब्बे में. मैं बिटिया को गोदी में लिए उनके पीछे चला इस उम्मीद में कि डिब्बे में घुसकर पुरुषों वाली साइड में खड़ा हो जाऊंगा लेकिन गेट पर खड़ा गार्ड ठेठ हरयाणवी में बोलता है, "आगे जा! इधर मत घुस! (ऐसा ही कुछ)". मैं असहाय सा आगे बढ़ चला तो उस डिब्बे में घुसना लगभग असंभव! ट्रेन भी चलने को तैयार! पत्नी इस पशोपेश में कि वे उतरें या चढ़ें! जैसे तैसे डिब्बे में घुस गया तो वहां भी गार्ड का ही कोई रिश्तेदार जैसा एक आदमी मुझे ज्यादा चौड़ा न होने की नसीहत देता है क्योंकि मैंने कुछ झल्लाते हुए उनसे जगह देने की गुज़ारिश की थी. उसे नज़रंदाज़ कर दिया क्योंकि पत्नीश्री की हिदायत है कि ऐसी बोली वालों से नहीं उलझना है. ये तो अपनी पत्नी और बेटियों से भी ऐसे ही बात करते हैं तो हमारी क्या बिसात!?

    हर मामले में हर आदमी शोषित है. उसका हर कृत्य बदले की कार्रवाई है. कबाड़ी, पेट्रोल/पार्किंग वाला, अँधेरे मुंह टोंटियों और टंकियों को नुक्सान पहुंचाने वाले प्लंबर, दूसरों के लिए हिकारत भरकर फिरनेवाले अजनबी, और मैं, जो यहाँ इस उम्मीद में यह लिखे जा रहा हूँ कि पढ़नेवाले सोचें, "बड़ी-बड़ी बातें करनेवाला ये बंदा बेईमान नहीं हो सकता", हम सब हमेशा ही यह उम्मीद कायम रखेंगे कि जब कभी हमारा निर्णय किया जाए तो विकल्प "none of these" ही चुना जाए.

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    1. निशांत भाई, हमारा छोटा बालक इन मामलों में बहुत एनर्जेटिक है| जब कभी मूड बनता है साल छः महीने में, उसकी मदद से रद्दी के बंडल बांधते-बंधवाते हैं और दूकान वाले कबाड़ी(इस धंधे में अपवाद ही है वो भी) को देकर आते हैं| sale proceeds को आधा आधा करते हैं, फिर भी घाटे में नहीं रहते|
      किस्सों की कमी नहीं है, पार्किंग और वो भी साईकिल पार्किंग के भी मजेदार वाकये देखे भुगते हैं, मिलने अपर सुनाता हूँ किसी दिन|
      स्टेशनों पर कुली करने वाली संभ्रांतता तो अपने से होती ही नहीं, हम भी खुद ही बोझा उठा लेते हैं|
      भाभीश्री ठीक ही कहती होंगी, फेयरर जेंडर आजकल जो कहे वही ठीक है| मुझे तो मेरी चाय का कप भी हाथ से फिसलता दिख रहा है:)

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  5. ये भी खूब रही.. तीन दिनों में तीन केस यानि छोटी पत्ती वाली चाय.. और अंत में बड़ी पत्ती वाला सवाल!! अब आप छुट्टी लेकर ऐसे ही पोल खोलक यंत्र बने घूमते रहेंगे तो लोग यही कहेंगे कि एक तो करेला - वो भी नीम चढ़ा!!

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  6. Aajkal apnee khudkee itnee pareshaniyon me ulajhee padee hun,ki aaspaas kya ghat raha hai,kuchh palle nahee padta...

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    1. ध्यान रखें आपका, परेशानियां साथ चलेंगी ही|

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  7. ऐसे भ्रष्टाचार अब तो हमें दिखना ही बंद हो गये हैं, जब से ये कोयला घोटाला सुना है ।

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    1. कोयले ने स्पेक्ट्रम भुलाया, आगे आगे देखिये होता है क्या|

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  8. बिरादर .... रात होने पर सूरज की विदाई के बाद तो हम जैसे छोटे से चिराग जितना हो सकता है उतना अंधेरे से लड़ते ही रहते हैं..अब हमारे में तेल ही कम है तो क्या करें....कम से कम बड़े चोरों के साये तले छोटी चोरी को जायज तो नहीं ठहराने लगते। भई जब गलती हो ही जाती है तो उसे सहर्ष स्वीकार भी करने में हिचकना न अपन की बस की बात है न आपके। भले ही कभी कलेजा जले तो जले..पर गलती मान ही लेते हैं। वैसे बड़े तो हैं नहीं ....पर हां जितना उपर हैं उससे कहीं ज्यादा हम नीचे हैं..हीहीहीहीहीही

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  9. चलो सब्ज़ी के स्वाद (कड़वाहट न समझ ले कोई भले मानस) के मामले में तो अपनी पसन्द मिलती है। :) कसम से, कल ही अपने खेत के दो करेले खाये हैं। खुशकिस्मत हैं आप कि दिल्ली के ऑटोरिक्शा वालों से पाला नहीं पड़ा आज तलक, वर्ना ब्लॉगिंग भी संस्मरणों के बजाय देशभक्ति गीतों की चल रही होती। ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का, मस्तानों का, इस देश का यारों क्या कहना ...

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    1. चलिए पसंद कहीं मिली तो:)
      इतने भी खुशकिस्मत नहीं है सरजी हम, पाला खूब पड़ा है| वो तो हमारी खिड़की क्रैश हो गई और ऑटो ड्राईवर्स पर लिखी एक पोस्ट जो कि लाइवराईटर की गोद में थी, फना हो गई न तो आपका कमेन्ट कुछ और ही होता|
      देशभक्ति सप्ताह खत्म, फिलहाल ईद मुबारक चालू आहे..

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  10. यह हम सब की कहानी है -अब ऐसे ही समीकरण आजाद भारत की खासियत है -हुजूरे आला अच्छी खासी नौकरी कर रहे हैं -खुद एक पैन बलेंस खरीद लीजिये मेरी तरह -सब्जी वाले और रद्दी वाले की अकड़ जाती रहेगी -धीरे धीरे उन सभी को पता लग जाएगा कि इस ग्राहक के सामने दाल नहीं गलने वाली ....फिर घर वाली भी खुश और माता जी को भी कोई टेंशन नहीं -पैसा वैसा नहीं यह ठगा जाना टीस देता है ....

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    1. कहाँ-कहाँ क्या-क्या लेकर चलेंगे अरविन्द जी? सामने वाले की पहली धोखाधड़ी उजागर होने के बाद हम दूसरी दूकान तलाश लेते हैं| ये सही कहा आपने कि पैसे-धेले की बात नहीं, ठगे जाने की टीस होती है| एक सहज विश्वासभंग होने की टीस ज्यादा दुखदाई है|

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  11. अभ्‍यस्‍त हो चुकी नजरों से ऐसे नजारे सपाट-ओझल से रह जाते हैं.

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  12. इस व्यवस्था के लिए हम सब भी कही न कही दोषी है , जब अपना काम अटकता है तो गली ढूंढ लेते हैं काम निकलवाने के लिए , बिना हाथ हिलाए लाखो करोडो डकार जाने वालों की तुलना में मेहनत की चाकरी कर बेचारे सौ पचास एक्स्ट्रा कमा लेते हैं तो क्या फर्क पड़ता है .
    पेट्रोल वाला किस्सा कई बार हो जाता है , जरा सी नजर चुकी और गये पैसे पानी में !
    एक बात और भी है होटलों में महँगी टिप देने वाले लोंग रिक्शा वाले , सब्जी वाले , रद्दी वालों पर इतना बरसते क्यों है ?

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    1. बोले तो आपका विकल्प d है, सही है ठगी-हेराफेरी में भी मेहनत तो लगती ही है:)
      होटल में टिप देना और ठगी का शिकार होना मुझे दो अलग अलग चीज दिखती हैं, वैसे बेहतर जवाब तो वही दे सकता\ती है जो ये दोनों काम करता\ती हो|

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  13. आपके लिए विकल्प -
    अ -चलती का नाम गाड़ी
    बी -बढती का नाम दाढ़ी
    किसी भी एक को लाक कर लें

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  14. अनैतिकता का बढ़ता सूचकांक……

    इसका सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इसकी उपस्थिति सहज सामान्य स्थापित हुए जा रही है इस सहजभाव को निरुत्साहित करना आवश्यक है विशाल स्तर पर चारों तरफ एक जाल की तरह पसरी अनैतिकताओं को रातों-रात दूर करना तो असम्भव कार्य है लेकिन छोटा सा प्रयास अभी भी हमारे उत्तरदायित्व में है , वह है बेईमानी से घृणाभाव। सहज होती जा रही बेईमानियों के बीच भी उसे बुरा बताने उससे वितृष्णा करने उसकी निंदा करने के स्मॉल-स्केल प्रयास होते रहेंगे तो अच्छाइयों के पुनः लौटने का मार्ग बचा रहेगा।

    आपकी इस किस्सागोई को इसी सार्थक उत्तरदायित्व के रूप में देखता हूँ…………

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    1. निंदा तो हम इसलिए करते हैं जी कि इसमें बहुत रस मिलता है:)
      इन बेईमानियों का सहज सामान्य तरीके से आसपास स्थापित होते देखने में हैरानी जरूर होती है सुग्यजी, हैरान होने के सिवा और कर भी क्या सकते हैं?

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  15. बिल्कुल भी अभ्यस्त होने की जरुरत नहीं है गलत कोई भी करे उसे तुरंत टोके , नीजि अनुभव बताऊ तो मैंने कई बार देखा है की सब्जी वाला तब ही कम तौलता है जब हम उससे मोल चाल कराते है ( अपवाद कई जगह हो सकते है ) ग्राहक भाग ना जाये इसलिए जब हम एक दो रु कम करते है तो वो मान जाता है किन्तु कम में दे कर वो अपना घाटा क्यों करे सो कम तौल कर वो हिसाब बराबर कर लेता है , हमारे यहाँ आगे के दुकानों से सब्जिया लीजिये तो एक दो रूपये महंगे मिलते है जैसे जैसे आगे बढिए सब्जियों के दाम कम हो जाते है और आप को साफ दिखता है की सब्जी मात्रा में कम है , पेट्रोल पम्प पर ग्राहक को मीटर जीरो दिखाए बिना वो शुरू ही नहीं करता है फिर चोरी कैसे करते है , हा मिलावट वाली बात मैंने कई जगह सुना है [ मंजुनाथ की घटना याद है :( ] किन्तु रद्दी वाले का किस्सा हर जगह एक सा की ही है सरल उपाय है स्प्रिंग वाला एक बेहद छोटा मापन मिलता है एक बार में बस ५ किलो तौलता है ( चीनी माल जिन्दा बाद ) बस शुरू के दो चार बार तौल के भेजा उसके बाद से वो समझ गया और कम तौलने की गलती नहीं करता है , इस तरह के छोटे छोटे उपाय यदि सभी अपनाये तो जरुर हम छोटी चायपत्ती की चाय भी पी सकते है |

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    1. सच में अभ्यस्त हो चुके होते तो ये सब लिखते ही नहीं| ये किस्से तो tip of the iceberg हैं, और फल सब्जी वालों से लेकर पेट्रोल पम्प वाले और रद्दी वालों के वाकये हम सब के साथ घटित होते हैं| क्या आप मानेंगी कि किसी पेट्रोल पम्प का मालिक नहीं बल्कि मैनेजर कार में पेट्रोल डलवाने के पैसे लेने से मना कर दे सिर्फ इसलिए कि उनका गाड़ी वाले के बैंक में अकाऊंट है? कहाँ से पूरे करेगा वो उस टंकी फुल के पैसे? बहुत अजूबे हैं इस दुनिया में, बस कभी हम मैंगोपीपलों की let go आदतें, मेरा तो फायदा हो रहा है, मुझ क्या? और कभी सब ऐसे ही तो करते हैं यार & the show goes on & on.

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  16. किस-किस का नाम लीजिये किस-किस को रोइए...घोटालों के देश में...गरीब आदमी से क्या अपेक्षा की जाए...जब बड़े-बड़े चोर और डकैत खुल्ला घूम रहे हैं...ईमारत नीचे से ऊपर जाती है...पर सफाई ऊपर से नीचे होती है...इमारत तो बन गयी है अब सफाई की ज़रूरत है...

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    1. कौन करे जी सफाई? आराम बड़ी चीज है, मुंह ढांपकर सोइए :)

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  17. मानना पड़ेगा भाई साहब आपको भी .

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  18. वैसे अब लगने वाली जीरो की संख्या देख कर इन छोटे-मोटे 'गरीब-ईमानदार' वाले करप्शन को छोड़ दिन चाहिए,

    छोड़ दीजिए संजय बाबू, अभी बच्चों को सेट करना है :) यानी कुछ साल और जीना है.

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    1. छोड़ तो दें, पर ये जीना भी कोई जीना है बाबा?

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  19. .
    .
    .
    हाँ संजय जी, यही हकीकत है आज... जिसे देखिये वही अपनी हैसियत व औकात के हिसाब से बेईमानी व चोरी कर रहा है... बस अपने से ऊपर वाले की चोरी उसे गलत लगती है... ईमानदारी अपवाद है आज हिन्दुस्तान में... या यों कहें कि हमेशा से ही ऐसा रहा है, फर्क सिर्फ यह है कि आज लोगबाग इस बारे में बतिया लेते हैं बड़े और सार्वजनिक मंचों पर....



    ...

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    1. कुछ दिन और प्रवीण भाई, फिर ये बोलना बतियाना भी आऊट ऑफ डेट हो जाना है..

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  20. परसों अपने एक तमिल और एक तेलगु मित्र को ले कर आगरा गया था।
    आगरा भ्रमण तो खैर एक अलग ही दर्द की दास्तान है, पर रास्ते में इस तरह की जो फजीहतें हुईं हैं कि बस जी में आया खुद अपनी नाक काट के उनके हाथ में रख दूँ।
    MRP से अधिक मूल्य पैक्ड सामान के मांगते हैं - और तुर्रा ये है, "लेना है तो लो वरना आगे बढ़ो।" अब लड़ लीजिये, कर लीजिये हाथापाई।

    बचपन में कई तरह के घर-आँगन-छत पर खेले जाने वाले खेलों में सबसे छोटे बच्चे को विशेषाधिकार देते थे (अब वो बचपन कैसा है पता नहीं), मसलन उसे आउट नहीं माना जाएगा, उसकी बारी २ बार आएगी इत्यादि, जिसे हमारे यहाँ 'दूधभात' candidate कहते थे।
    हमारी जीवन में भी ऐसी आदत लगी है। हम छोटे हैं, छोटी चोरी करते हैं, हमसे बड़े वालों को तो कुछ कहते नहीं तुम!
    जबकि जीवन खेल नहीं है - किसी ने खून किया तो दूसरे का कान काटना सही नहीं साबित होता, आपकी रैगिंग हुई तो आप अगले साल जा कर यही करें तो वो सही नहीं है, अगर किसी ने २०० करोड़ डकारे तो मात्र इसलिए कि उसमे बहुत सारे शून्य हैं किसी को अधिकार नहीं मिल जाता कि १२ रुपये अधिकतम खुदरा मूल्य का बिस्कुट १५ रुपये में बेचे।

    लेकिन करेंगे क्या? Life is a vicious circle.
    सर्दियों के मौसम में जब टमाटर बेभाव बिकते हैं, एक टिश्यु पेपर महिला कार से उतर कर टमाटर के भाव पूछतीं हैं।
    "ले लीजिये मैडम, ताजे हैं बस पंद्रह रुपये पाव।"
    "How cheap! इतने कम का बेच के तुम क्या कमाते होगे?"
    मैं भुनभुनाते हुए अपने गैरवाजिब दाम पर सामन नहीं खरीदने की दो टके की सोच थैले में भरा चुपचाप निकल आता हूँ।

    PS: मेरा एक दोस्त है (मैं शायद ही कभी बाहर restaurants में खाता हूँ, इसलिए अपना उदाहरण तो बनेगा नहीं) वो अब कभी टिप नहीं देता कहीं,सर्विस टैक्स, होस्पिटालिटी टैक्स, अलाना, फलाना, चिलाना टैक्स उसे ही कहते हैं न आंग्ल भाषा में?

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    1. कहा न दोस्त, सबके पास तर्क हैं और हिमालय जैसे अकाट्य| अपने पास विकल्प यही हैं कि मौक़ा देखकर थोडा बहुत भुनभुना लें या फिर अपनी दो टकिया सोच को लाखों के थैले में डालकर लौट के ... घर को आ जाएँ| after all, life is a viscious circle and it hardly matters whether we are on the circle or within the circle.
      दास्तान-ए-आगरा भी हो जाए कभी, वेटियाएं क्या? :)

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    2. अनुज अविनाश!!
      इतना बड़ा कमेन्ट लिखने में हांफ तो नहीं गए होगे न???? जब से तुम्हें पढ़ रहा हूँ (कवितायें और कमेंट्स) शायद यह मेराथन कमेन्ट होगा.. कम से कम मेरी नज़र में.. बधाई!!

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  21. sorry to interfere, लेकिन बधाई पर हक अनुज संजय का बनता है!!

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  22. @ सरजी, हमें पचास रुपये की गलती पर आप गाली निकाल दोगे लेकिन वो कोयले वाला घोटाला हुआ है उसमें जीरो कितनी लगेंगे, ये बताओ तब जानें आपको|' ..........

    'hamen itti zero ginti karne ka kauno jaroorat nahi.....agala ek zero pe dher hota hai apan 2 nai to 3 par......'

    corruption means cancer ya phir cancer bole to corruption, aur hum
    pratishat hindustaniyon ka haal isme lage raho wali hoti ja rahi hai.

    bakiya, ee post aapke fan se a/c. me tabdil kar gaya??????????


    pranam.

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    1. चिंता नक्को नामराशि, अपन भी दूसरी तीसरी जीरो से आगे नहीं जा पायेंगे:)

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  23. प्रतिक्रिया-एक जीवन कसौटी, आठवें क्लास में हिन्दी में एक निबंध था पढ़ने को. आचार्य हज़ारी प्रसाद ने लिखा था या महावीर प्रसाद ने, ध्यान नही आ रहा है. और यह उतना महत्वपूर्ण भी नही है. महत्वपूर्ण यह हैकि हम उसे लेते कैसे हैं? लूटा जाता हूँ, ठगा जाता हूँ और यह कह कर चुप लगा जाता हूँ कि मैं लूटने के लायक हूँ तभी तो मुझे लूटा!!! शून्यों की गिनती हृदयाघात और बढ़ाएगी ही, और हो सकता हैकि पक्षाघात भी करा दे. अतः कौन सोचे इस बारे में??? छोटी सी जिंदगी है गुजर जाएगी. दूसरों को बेवकूफ़ बनाकर उससे चाय-नाश्ता कर लेने में ही अपनी बड़ाई है संजय जी. हमारे भोजपुरी में एक बहुत अच्छी कहावत है- बुड्बक के रुपया रही त चालाक खईला बिना मरी? दिक्कत तो यह हो गयी हैकि इस जहाँ में सभी हीं चालाक और बुड्बक हो गये हैं बारी बारी से. जो चालक बनता है, खुश हो जाता है और जो बुड्बक बनता है कुढता है और कोई अनंत शून्यों की चालाकी के बाद भी बुड्बक बने रहता है

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    1. सबसे कामयाब यही बाद की श्रेणी वाला है ललित भाई, बनो चालाक दिखो बुडबक|

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  24. संजय जी आपने बहुत ही रोचक और तल्ख़ तरीके से आज की सबसे गंभीर समस्या पर लिखा है. ये अनुभव हर किसी के हैं. ये सही है कि अब हम भ्रष्टाचार के आदी हो गये है इसलिए हम हर पञ्च साल बाद वही चूतियों को चुन लेते हैं

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    1. कुछ महकमों में तो लाभार्थी जब तक जेब ढीली करके कुछ खर्चा न कर दे, उसे यकीन ही नहीं होता कि उसका काम हो जाएगा| आदत तो ऐसी हो गई है बॉस|

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  25. सभी तरफ लूट मची है, आपने इस लूट को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्‍तुत किया है। हम भी अभी 19 तारीख को दिल्‍ली स्‍टेशन पर लुट गए। पुलिस ने बड़े नाज नखरे से रिपोर्ट लिखी। मेरे जाने के बाद शायद चोर को पकड़ा होगा और उससे रकम वसूली होगी और कहा होगा कि अकेले ही कैसे खा सक‍ता है? इस देश का चरित्‍त ही समाप्‍त हो गया हैं

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    1. दुःख की बात है अजित दी, सफर में रहते तो और भी तकलीफदेह रहता है ये सब|

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  26. तो सबसे पहिले बाऊ जी को राम राम!
    हड़ताल में पैसे कटाके कर रहे हो विश्राम?
    सब्ज़ी/ कबाड़ की घटतोली बात है बेहद आम!
    इसीलिए ही अन्ना जी को नहीं है आराम!
    हमरा केवाईसी:
    नाम: आशीष ढ़पोरशंख
    पता: http://ashishdhaporshankh.blogspot.in/
    अऊर क्या? हा हा हा....
    --
    द टूरिस्ट!!!

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    1. HOUR विश्राम!! और कैडी ड्यूटी करनी पड़ती है भैये, देखते हैं कब तक ठाठ-ए-छडापन बरकरार रहता है, फिर पूछेंगे विश्राम या सावधान-विश्राम|
      KYC satisfied subject to personal visit, दरवाजा खुला रखना|

      हटाएं
    2. HOUR विश्राम!!
      HOUR?!?!?!
      हा हा हा....

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  27. करप्शन में बार्टर सिस्टम चल रहा है | बस प्रयास यह करना है कि अपना करप्शन सामने वाले से ज्यादा रहे तभी परता खायेगा और उत्तरोत्तर समृद्धि बढ़ेगी |

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  28. पता नहीं किस कलजीभे ने भारत को "बेड़ागर्क हो" कहा होगा जो हम उसकी वाणी को सत्य करने में जुटे है :(

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  29. कविता :बल्ले बल्ले है सरकार

    वागीश मेहता ,डी .लिट ,१२१८ शब्दालोक ,अर्बन इस्टेट ,सेकत- ४ ,गुडगाँव

    मजबूरी साझी सरकार ,
    हाथ में कोयले ,ऊखल में सिर ,
    करेंगे मिलकर भ्रष्टाचार ,
    चारा तो हम ही खायेंगे ,
    करनी अपनी भुगतो यार .

    संख्या बल है पास हमारे ,
    हमीं बनायेंगे सरकार ,
    यदि कहीं गिनती कम होगी ,
    थैलीशाह भी हैं तैयार ,
    दो घोड़ों पर कई सवार .

    तुम लोगों ने सांसद भेजा ,
    कर लीना इन पर एतबार ,
    कलम भी इनके ,निर्णय इनके ,
    अपने सुख ,भत्ते विस्तार ,
    सांसद करते बारम्बार .

    अन्ना खुद ,साथी अनशन पर ,
    साथ युवा हैं कई हज़ार ,
    काला धन ,जन लोकपाल पर ,
    प्राण विसर्जन को तैयार ,
    मूढ़ बनी बैठी सरकार

    क्या कर लेंगे बाबा -बूबा ,
    कृष्ण -बाल ,फिर कारागार ,
    सी .बी .आई .वैतरणी आगे ,
    करेंगे कैसे ,इसको पार ,
    डूब मरेंगे खुद ,मंझधार .

    ख़ास वोट पर गिद्ध निगाहें ,
    घाव देश पर लगे हज़ार ,
    मुंबई ,जयपुर ,पूणे,दिल्ली ,
    शहर -स्टेशन सब लाचार ,
    शीशे में सेकुलर सरकार ,

    साल सवा सौ ,बूढी औरत ,
    घर बैठे कई भरतार ,
    कुर्सी चस्का बहुत पुराना ,
    लंठ -शंठ सब साझीदार ,
    लेन देन का है व्यापार .

    भारत के सीने में खंजर ,
    इंडिया की है जय जयकार
    वोटर भकुए क्या कर लेंगे ,
    जन गण मन भी है लाचार ,
    बल्ले बल्ले है सरकार .

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  30. अरे भाई साहब वो अपनी इंदिरा मैया कह गईं -भ्रष्टाचार एक आलमी रवायत है ग्लोबल फिनोमिना है सो सरकार उसी का अनुसरण कर रही है अब उसका हाथ आम आदमी के साथ है तो भला आम आदमी इस सशक्त हाथ को कैसे छोड़े काला है तो क्या है तो माला माल .बहुत बढ़िया व्यंग्य धारदार ब्लॉग पर पहली मर्तबा पढ़ा है .शुक्रिया भी बधाई भी . .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 23 अगस्त 2012
    Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle
    Neck Pain And The Chiropractic Lifestyle

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  31. अब घोटाला गणित पढ़ाया जाना चाहिए. 'टेन टू दी पावर' वाला वरना तो जीरो काउंटिंग का लफड़ा होगा ही.
    वैसे रिलेटिविटी है जी. एक जीरो हो या १०-२०.. जितना मिल पाए प्रभु की माया और अपनी अपनी हैसियत से ले लेना है :)

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  32. जय हो
    भ्रष्टाचार के रंग निराले हैं,संजय भाई.
    लाईलाज सा हो रहा है,अब तो.

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