रविवार, दिसंबर 07, 2014

देश-विदेश


मास्टरजी ने बच्चों से पूछा, "अंटार्कटिका कहाँ है?"
बालक चुप।
"एंडीज़ पर्वत श्रृंखला किस किस देश से होकर निकलती है?"
बालक चुप।
"बाल्टिक सागर की लोकेशन बतायेगा कोई?"
बालक चुप।
मास्टरजी ने खूब डाँटा, "सुसरयो, घर में पड़े रहे हो और आँख फ़ोड़ो हो टीवी, कंप्यूटर में। थोड़ी घणी बाहर की जानकारी भी रख्या करो।"
फ़त्तू ने डरते डरते एक प्रश्न पूछने की अनुमति माँगी, "मास्टर जी, आप बता सको हो कि मलखान कौन सै?"
मास्साब ने सोचा और उसीसे पूछा, "कौण सै मलखान?"
फ़त्तू बोला, "मास्साब, गोभी खोदन लग रया सै थारी। थोड़ी-घणी घर की भी जानकारी रख्या करो।"
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नेपाल में ये शानदार स्वागत हुआ, अमेरिका-आस्ट्रेलिया लूट लिया, सारी दुनिया से लोहा मनवा लिया।

कोई शक नहीं कि इससे हमारा भी सिर गर्व से ऊँचा हुआ है लेकिन परधान मास्टर जी, हमारी समझ

में घर का ध्यान पहले रखना चाहिये। कोई शक नहीं कि हमारी सोच और जानकारी और आपकी

सोच और जानकारी एक बराबर नहीं हो सकती। इसमें भी कोई शक नहीं  कि फ़ेसबुक पर हमारे 

लिखने से आप तक ये बात पहुँचने वाली भी नहीं लेकिन आप अपने ’मन की बात’ रेडियो पर कर सकते 

हैं तो हम भी अपने ’मन की बात’ तो यहाँ करेंगे ही। छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले, कश्मीर में

सीरियल अटैक - इन सब पर अमन के दुश्मनों की बौखलाहट, चुनाव में भारी मतदान से उनका चिढ़ना,

भारत को उकसाने की कोशिशोंं जैसे बयान कोई  सांत्वना नहीं पहुँचा रहे हैं। हमारे जवान पहले भी मर

 रहे थे, अब भी मर रहे हैं। इनका जान देना ही नियति है तो फ़िर कोई  सरकार हो, कोई फ़र्क नहीं पड़ना। 

वर्दी पहन लेने भर से कोई किसी का भाई, बेटा, पति, पिता होने से मुक्त नहीं हो जाता।


अपने लोगों की लाशों पर नहीं चाहिये हमें सारी दुनिया का सम्मान और वाहवाही। करिये बहिष्कार 

हर उस सम्मेलन का और हर उस कांफ़्रेंस का जिसमें देश के दुश्मनों की भागीदारी होती हो फ़िर वो

चाहे देश के बाहर के हों या अंदर के। ये सोच सोच कर दिमाग खराब हुआ पड़ा है कि मानवाधिकार क्या

सिर्फ़ आतंकवादियों के होते हैं या इन शहीदों के भी कोई अधिकार होते हैं?