शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2016

बसंत पंचमी - हकीकत

अपनी कुशाग्र बुद्धि, मेधा और संस्कारित व्यवहार के कारण जहाँ वह मदरसे के अपने सहपाठियों व शिक्षकों में लोकप्रिय था, वहीं हिन्दु होने के कारण बहुतों की आँखों में खटकता भी था। एक दिन उसके साथ पढ़ने वाले बच्चों ने हिन्दुओं की आराध्या ’दुर्गा’ के बारे में अपशब्द कहे और मजाक उड़ाया। उस बालक ने आपत्ति की तो मानना तो दूर रहा, उसे चिढ़ाने के लिये सब उन्हीं अपशब्दों को बार-बार  दोहराने लगे। उत्तेजित होकर उसने कहा, "ऐसी ही बातें अगर तुम्हारे पैगंबर की बेटी के बारे में कही जायें तो कैसा लगेगा?" उसके यह कहते ही ईस्लाम की तौहीन हो गई। मदरसे के उस्ताद तक बात पहुँची और वहाँ से इंसाफ़ की सीढ़ियाँ चढ़ती हुई शहर काजी तक। एक काफ़िर के द्वारा पैगंबर की बेटी की तौहीन कैसे बर्दाश्त की जा सकती थी? विकल्प दो ही थे - गुनाहगार ईमान लाये और जिन्दा रहे या सिर कलम। जबरन मुसलमान बनने से उसने साफ़ इंकार कर दिया तो शरीयत के मुताबिक सबके सामने उसका सिर कलम कर दिया गया।
किसी न्यूज़ चैनल पर यह समाचार आपको नहीं दिखेगा, फ़िर मैं ये सब क्यों लिख रहा हूँ?
इसका उत्तर ये है कि जिस समय की यह बात है, उस समय यह भाँड चैनल नहीं हुआ करते थे।(अब ये मत पूछियेगा कि मालदा के समय ये चैनल थे तो इन्होंने क्या किया?) 
यह घटना लगभग १७४० ईस्वी की है। वीर बालक का नाम हकीकत राय था, घटना लाहौर की है।
आप सोच सकते हैं कि आज यह सब क्यों लिख रहा हूँ?
उत्तर ये है कि वीर बालक हकीकत राय का सिर कलम बसंत पंचमी के दिन ही किया गया था।
आप सोच सकते हैं कि ३०० साल पहले के जख्मों को कुरेदने की क्या जरूरत है?
उत्तर ये है कि रेत में मुँह गाड़ने से तूफ़ान आने बंद नहीं होते। आज भी देवी दुर्गा को अपमानजनक विशेषणों से पुकारने का काम खत्म नहीं हुआ, सरकारी ग्रांट पर पल रहे जे एन यू जैसे संस्थान के किसी छात्र से बात करके देखियेगा, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसे काम धड़ल्ले से चल रहे हैं। हममें से किसी ने पलटकर जवाब दिया तो असहिष्णुता, असुरक्षा, भय का माहौल हो जाता है।   मालदा, पूर्णिया, बिजनौर, इंदौर के भीड़ एकत्रीकरण और दंगों की थोड़ी सी तह में जाने की कोशिश करेंगे तो पता चल जायेगा कि दूसरे धर्म की तौहीन हो जाती है।  न पैटर्न बदला है और न नीयत, न उनकी और न हमारी। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा करने की परंपरा रही है। मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाला में सरस्वती पूजा की जाती थी, बसंत पंचमी कभी-कभी शुक्रवार को आ जाती है इसलिये पूजा पर रोक लग जाती है। हम सोच लेंगे कि वहाँ नहीं तो कहीं और कर लेंगे, भगवान तो कण-कण में व्याप्त है। दस-बीस साल बाद सिमटते सिमटते घर में करने लगेंते तो अगरबत्ती का धुँआ और फ़ूलों की खुशबू से भावनायें आहत होंगी। तूफ़ान आने बंद नहीं होंगे।
पिछले साल बसंत पंचमी के दिन फ़ेसबुक पर एक मित्र ने दुखी होते हुये कहा था कि वीर हकीकत राय को हमने भुला दिया। उनकी भावुकता से सहमत होते हुये भी मैंने कहा था, "न भूले हैं और न भूलने देंगे।" 
बसंत पंचमी के अवसर पर  बलिदानी वीर हकीकत राय को नमन।

3 टिप्‍पणियां:

  1. "न भूले हैं और न भूलने देंगे।" ............ naman unoko

    prnam.

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  2. अभी भी हम लोग डर-डर कर रह रहे हैं। जेएनयू जैसे विश्‍वविद्यालयों के वामपंथी धड़ों ने वैचारिकता और बौद्धिकता का जहर घोल दिया है। अफजल जैसों के मामले में उनके छात्रसंगठन के किसी सदस्‍य ने एबीवीपी के छात्रों पर तमंचा तक तान दिया। हद हो गई है अब तो।

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  3. नमन...हां ये भूल गया था कि आज ही के दिन उनका सिर कलम किया गया था

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