सोमवार, मई 09, 2016

अगड़म बगड़म


                                                                        
(चित्र गूगल से साभार)

मैं और श्रीमति जी किसी परिचित की गाड़ी में एक विवाह समारोह से लौट रहे थे। एक और वयोवृद्ध परिचित साथ में थे जिन्हें रास्ते में उनके किसी रिश्तेदार के घर ड्रॉप करना था। जहाँ इन वृद्ध रिश्तेदार को छोड़ना था, वो घर नदी के दूसरी तरफ़ था। हम दूर से आ रहे थे, ड्राईव कर रहे परिचित कुछ थकान महसूस कर रहे थे तो तय किया गया कि वो नदी के इस तरफ़ ही किसी टी-स्टॉल पर रुककर चाय पियेंगे और थकान मिटा लेंगे। मैं गाड़ी चलाकर पुल के रास्ते नदी पार करके वृद्ध परिचित को उनके गंतव्य तक पहुँचा आऊँगा। यही किया गया, अब गाड़ी में रह गये तीन व्यक्ति। ड्राईविंग में बहुत एक्सपर्ट नहीं हूँ, आराम से गाड़ी चलाता हुआ पुल पार करके बताये गये पते वाली कालोनी में पहुँच गया हूँ। उम्मीद के खिलाफ़ भीड़भाड़ वाला इलाका है। दिल्ली साली दिल्ली नहीं रह गई है, हर नई कालोनी बिहार, बंगाल और बंगलादेश की कोई कालोनी लगती है। संभलकर गाड़ी चलाते हुये लगभग उस एड्रेस पर पहुँच गये हम। वृद्ध आदमी को घर तक पहुँचाये बिना लौट नहीं सकते, गाड़ी अंदर तक जा नहीं सकती, पार्किंग है नहीं। एक रेस्त्रां वाले से कुछ देर गाड़ी करने की पूछी, उम्मीद नहीं थी लेकिन उसने सड़क घेरकर रखी गई कुर्सी मेज इधर-उधर करके अपने रेस्त्रां के बाहर गाड़ी की जगह बना दी। मैं चकित रह गया, "कोई प्रोब्लम तो नहीं होगी न आपको?" 
"अरे नहीं सर, फ़ोर्मैलिटी के लिये अपनी इस बिल बुक में आपका नाम लिख देता हूँ। ज्यादा देर मत लगाईयेगा बस।"
लौटते-लौटते फ़िर भी आधा घंटा लग ही गया। इन कालोनियों की गलियाँ भी भूल भुलैया ही होती हैं, लौटते समय संयोगवश उसी रेस्त्रां वाली गली में ही लौटे। मेन दरवाजे तक जाने की बजाय हम साईड वाले दरवाजे से ही अंदर घुसे, सोचा कि भले आदमी का थैंक्यू तो करता जाऊँ। रास्ते में श्रीमती जी को को टैटू डिज़ाईन बनाने वाली दुकान दिखी तो वो अपनी फ़रमाईश करने लगी थी। और मेरा दिमाग हो जाता है इन बातों पर खराब, अक्ल तो घुटनों से ऊपर आएगी नहीं कभी। पहले जमाने में गोदना करवाने का प्रचलन था तो वो औरतों को पशु समझने की पुरुषों की चाल थी? और आज टैटू सबको करवाना है क्योंकि फ़िल्मों वाले भांड ये करवा रहे हैं? मेरी बड़बड़ और उनकी भुनभुन दोनों चालू थी। खैर, काऊंटर पर पहुँचे और भाई का धन्यवाद किया तो उसने आठ सौ कुछ रुपये का बिल थमा दिया। ढाई सौ रुपये प्रति व्यक्ति दो लोगों के खाने के, ढाई सौ रुपये पार्किंग और १५% सर्विस टैक्स। समझ आ गई बदमाशी, आसपास वाले भी सब इसी की सपोर्ट करेंगे। श्रीमती पर आ रहा गुस्सा सब उस लड़के पर उतर गया, "तेरी माँ का ...", खैर यहीं रुक गया। याद आया आज ही मदर्स डे था तो माँ की गाली नहीं देनी। "साले, ऐसे करोगे भलाई का ड्रामा? नाम बता क्या है तेरा, अभी तो तेरा बिल चुका कर जाऊँगा फ़िर इसे छोड़कर आता हूँ तेरी ऐसी तैसी करने।" लड़के ने पता नहीं क्या सोचकर सिर्फ़ सर्विस टैक्स वाले पैसे लिये। मुझे तो ये भी चुभ रहे थे, लॉजिक समझ नहीं आ रहा था कि जब सर्विस कोई नहीं तो सर्विस टैक्स किस बात का? ज्यादा नहीं सोचने का मैन। बह्त सी बातों का लॉजिक नहीं समझ आता, एक और सही। एक सौ बीस रुपये काऊंटर पर फ़ैंके और श्रीमती को लेकर बाहर आ गया।
बाहर आकर देखा तो गाड़ी गायब थी। उसकी जगह कोई पुराना सा स्कूटर खड़ा था। अब तक मुझे गुस्सा आ रहा था, अब पसीने छूट गये। अपनी गाड़ी होती तो फ़िर दूसरी बात थी, गाड़ी किसी परिचित की थी। उनके नुकसान का जिम्मेदार मैं? और वो वहाँ बैठे चाय फ़ूँक रहे होंगे..
मेरी आँख खुल गई। मोबाईल समय बता रहा है २.२७ pm. मतलब भोर का सपना तो नहीं ही था। कमरे में एसी चल रहा था लेकिन मुझे सच में पसीने आये हुये थे। सही समय पर नींद खुल गई, परिचित की गाड़ी बचने की बहुत खुशी हुई। सोच लिया कि अगली बार ऐसे सपने में गाड़ी अधिकृत पार्किंग में ही रखी जायेगी। ख्वाम्ख्वाह टें बुल जाती।
सात साल हो गये नेट चलाते हुये, कल पहली बार कोई फ़िल्म डाऊनलोड की। यही सोचा था कि आज यहीं सो जाता हूँ, नींद खुलेगी तो फ़िल्म की प्रोग्रैस चैक कर लूँगा। इतनी सी देर में ये सब ड्रामा हो गया। एक बार तो उसी समय सोचा कि लिख दूँ, सुबह तक शायद भूल ही न जाऊँ क्योंकि ऐसा कहते हैं कि हर इंसान सपने देखता है लेकिन ९०% भूल जाते हैं। विचित्र संसार है ये सपनों का भी, कुछ बातें जो हम सोचते रहते हैं वो सपनों में दिखती हैं और कुछ बातें जो हमने कभी सोची भी नहीं होती। टैटू वाली बात कल सोच रहा था और नेट पर कुछ पढ़ा भी था इस बारे में, बिना खाये बिल देने वाली बात एक बार ब्लॉग पर लिखी थी और एक बार बहुत पहले घर से चोरी एक रेस्त्रां में गया था तो आपबीती भी थी। मोदिया के बारे में तो खैर सोचते ही रहते हैं 
smile emoticon
 कोई कहता है कि सपनों का पेट से सीधा संबंध है, इसका मतलब कल पेट में क्या गया था ये भी याद करना पड़ेगा। बोत लफ़ड़े हैं भाई जिंदगी में।
फ़िर से मिट्टी के लोटे में भरा पानी पीकर संतुष्ट हुआ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिन द ब्लॉग पढ़ने का मन हुआ तो यही अगड़म बगड़म पढ़ने को मिला. :(

    जवाब देंहटाएं
  2. https://bnc.lt/m/GsSRgjmMkt

    निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
    बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

    बात मात्र लिख भर लेने की नहीं है, बात है हिन्दी की आवाज़ सुनाई पड़ने की ।
    आ गया है #भारतमेंनिर्मित #मूषक – इन्टरनेट पर हिंदी का अपना मंच ।
    कसौटी आपके हिंदी प्रेम की ।
    जुड़ें और सशक्त करें अपनी हिंदी और अपने भारत को ।

    #मूषक – भारत का अपना सोशल नेटवर्क

    जय हिन्द ।

    https://www.mooshak.in/login

    जवाब देंहटाएं
  3. बन्धु, यदि यह सपना सच करना हो तो कश्मीरी गेट के बस अड्डे में स्थित किसी भी ढाबे पर मिलने वाली 30 रूपये की थाली चख लो. 200 से 250 रूपये पर पिंड छूट जाये तो भी गनीमत है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बड़े भाई भारी आपत्ति दर्ज की जाए.....
    '''''' हर नई कालोनी बिहार, बंगाल और बंगलादेश की कोई कालोनी लगती है''''''

    बंगलादेश कि तुलना बिहारियों और बंगालिय़ों की तुलना अवैध एहसानफरामोश अपराधी बांग्लादेशियों से क्यों...क्यों..क्यों ...क्यों ....??????????????????????????????????????????????????????

    देश सबका है......आहत करने वाली टिप्पणियों को हटाया जाए.............

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपत्ति दर्ज कर ली रोहित भाई।
      नई कालोनियों में अधिकांश आबादी इन्हीं जगहों से आये लोगों की होती है, इस फ़ैक्ट से इंकार है?

      हटाएं

सिर्फ़ लिंक बिखेरकर जाने वाले महानुभाव कृपया अपना समय बर्बाद न करें। जितनी देर में आप 'बहुत अच्छे' 'शानदार लेख\प्रस्तुति' जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे उतना समय किसी और गुणग्राहक पर लुटायें, आपकी साईट पर विज़िट्स और कमेंट्स बढ़ने के ज्यादा चांस होंगे।