’अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना’, यह कथन आपने जरूर सुना होगा और इसका अर्थ भी जानते होंगे। हम आपको जो बताने जा रहे हैं, वो उदाहरण है ’कुल्हाड़ी पर पैर मारने का।’ जैसे दुख तो अपना साथी है और मौत महबूबा है अपनी टाईप बातें होती हैं, इस तरह के पंगे और अपना चोली दामन का साथ है। जिन्दगी थोड़े दिन सीधे रास्ते पर चल दे तो अंदर से ही कुछ खटकना शुरू हो जाता है कि यार, बहुत दिन हो गये कोई नया पंगा नहीं हुआ। फ़िर जब कुछ हो जाता है तो तसल्ली होती है कि अभी ऊपर वाले ने हमें नजरअंदाज नहीं किया है।
लेटेस्ट घटना जुड़ी है अपनी पोस्ट ’यादों के जंगल से’ के बाद हुई प्रगति(नकारात्मक प्रगति) से। बॉलीवुड वाले ऑफ़बीट फ़िल्में बना दें तो कोई बात नहीं। युवराज, भज्जी जैसे खेलना छोड़कर रियलटी शोज़ में या रैंप पर आ जायें तो कोई बात नहीं, एक और युवराज हैं वो जहाज से ट्रेन में और महलों से गरीब के झोंपड़े में आ जायें तो कोई बात नहीं लेकिन हमने थोड़ा सा एक प्रयोग क्या किया, हमारे गले का हड्डा बन गया है।
बाजपेयी जी की सरकार ने जब परमाणु परीक्षण किया था तो अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये थे। हमने प्रेम परीक्षण किया तो हमपर हमारी सरकार ने जैविक, दैहिक और भौतिक सभी तरह के प्रतिबंध लगा दिये हैं। रफ़्तार भारत की भी नहीं रुकी, इस भारत कुमार की भी नहीं रुकेगी, अब और कितना धीरे चलें भाई? राजे महाराजे हमारी उम्र तक पहुंचते पहुंचते हरम के हरम खड़े कर लेते थे, हम से एकवचन से द्विवचन न सीखा गया अभी तक। और धीरे चलते तो जो थोड़ी बहुत घास गिर रही है सामने, वो भी न गिरती।
ऊपर ही लिख दिया था (एक कहानी),
लेकिन उसने मेरी एक न मानीमैंने दौड़ाये थे कल्पना के घोड़े,
वो इसको सच्चाई जानी।
मैंने दी भी बहुत सफ़ाई,
पर न मानी, तो न मानी।
ऊपर वाले के फ़ज़ल से रैपुटेशन में कोई कमी नहीं है अपनी। न देखी हो तो ’वैलकम’ फ़िल्म देखियेगा और नाना पाटेकर का डायलाग ’भगवान का दिया सब कुछ है, नाम, इज्जत, शोहरत….’ सुनियेगा। हमारा गॄह मंत्रालय हमारी काबिलियत पर इतना विश्वास करता है कि एक्दम स्थानीय बातों से लेकर गली, मोहल्ला, शहर, देश, महाद्वीप, पृथ्वी और यहाँ तक कि आकाशगंगा में होने वाली किसी भी गड़बड़ी का क्रेडिट हमें दे दिया जाता है। अफ़ज़ल गुरू, कसाब सरकारी जमाई बनकर सेवा करवा रहे हैं, सरकार ने ’साध्वी प्रज्ञा और कैप्टेन पुरोहित’ को भी लपेट लिया कि अब कम से कम भेदभाव का आरोप तो नहीं लगेगा। इसी नीति के तहत हमारा भी सर्वेलैंस चल रहा था पिछले कई दिन से। इधर उधर ताक-झांक कर रहे थे थुरूर साहब, तिवारी जी, शाहिद कपूर, जैसे बड़के बड़के लोग, धर लिये गये हम ताकि भेदभाव का आरोप न लग जाये।
जैसे चालाक से चालाक अपराधी कोई न कोई सुबूत छोड़ देता है, हमसे भी चूक ओ गई। ताव ताव में एक पोस्ट लिख मारी, ये दिखाने के लिये कि सिर्फ़ हल्की फ़ुल्की बातों का सत्यानाश नहीं कर सकते, हमें मौका मिले तो भारी भारी यादों का, आई मीन बातों का भी सवा सत्यानाश कर सकते हैं। इधर पोस्ट छपी, उधर बाहर अखबार वाला पैसे लेने आ गया। मैं भी उन दिनों छुट्टी पर चल रहा था, मगजमारी करने लगा उससे। अपना तर्क ये था कि ब्लॉगिंग में या नैट पर विज्ञापन देखने के पैसे मिलते हैं, हम पूरा महीना भर तुम्हारी अखबार देखते हैं, बिल तो हमें वसूल करना चाहिये तुमसे। जब अखबार वाले को ये पता चला कि हम भी ब्लॉग लिखते हैं तो उसने बड़ी तरस खाती नजर से देखा हमें।
"अबे, क्या बुझते चिराग से दिख रहे हैं क्या हम, जो ऐसी करूणामयी दॄष्टि से देख रहा है?" वो कहने लगा, "सरजी फ़िर त्वाडा कोई कसूर नहीं है। मैंनूं पहले ही लगदा सी कि कोई गड़बड़ है।"
"चल यार, तू ये ले पैसे और जा अब।"
वो चला गया और मैं अंदर आ गया। आ क्या गया जी, अंगारों पर आ गिरा सीधा। कारवां गुजर गया था और गुबार हम अब तक देख रहे हैं।
वैसे हमारी इस शानदार छवि बनाने में आप सबका योगदान भी कम नहीं है। किसी ने मजाक में तो किसी ने सीरियस होकर इस अफ़वाह को बढ़ाबा दिया है कि सारी दाल काली है। एक ने भी झूठे से नहीं कहा कि लिखा बहुत अच्छा है। किसी ने कहा भी तो ऐसे कहा कि आप कहते हैं कि कहानी है तो मान लेते हैं। ना, और कैसे जताओगे कि वैसे नहीं मानने वाले थे कि कहानी है। ले लो मजे, आयेगा हमारा भी टाईम। फ़िलहाल तो हमारे ऊपर सेंसरशिप चालू आहे…। उस पोस्ट को कहानी न मानकर संसमरण माने जाने का नोटिस जारी हो चुका है। इसे हमारा इकबाले जुर्म मान लिया गया है। अब तो खुश हो सारे? जिस तरह से अफ़ज़ल गुरू और कसाब जैसों की खातिरदारी में कमी नहीं होती और हिसाब बराबर करने के लिये सरकार ने ’भगवा आतंकवाद’ का मुद्दा बना दिया है ताकि यह दिखाया जा सके कि आतंकवादी किसी एक धर्म, मजहब के नहीं या वो अकेले कसूरवार नहीं हैं, हमारे कंट्रोल मंत्री ने भी अपनी वक्र दॄष्टि हम पर डाल दी है। नारको, मारको सभी प्रकार के टैस्ट्स से होकर गुजरना पड़ रहा है। सवाल पर सवाल दागे जा रहे हैं,
"कौन है?"
हम बोले, "कोई नहीं है।""अच्छा है नहीं, इसका मतलब थी तो जरूर?"
"अब होने को क्या दुनिया से लड़कियां खत्म हो गई थीं क्या? होगी कोई हमें क्या?"
"अच्छा, अब पकड़े गये तो हमें क्या, नहीं तो बड़े गिफ़्ट दिये जा रहे थे? हमें तो कभी हैप्पी बर्थ डे भी नहीं कहा।"
"अरे, उस समय तुम्हें ही सामने रखकर रचना के बारे में सोचा था।"
"अच्छा, तो रचना था नाम? अब समझ आई कि कल क्यों बालों में कलर लगवाकर आये हो। आजकल हर दूसरे दिन शेव भी हो रही है।"
"अरे भागवान, जब ऐसे रहता था तो कहती थी कि शक न करे कोई इसलिये ऐसे फ़कीरों की तरह रहते हो।"
"तो ठीक कहते थे हम तब भी। और अब हम क्या झूठ कह रहे हैं, ये देखो पढ़ो जरा कमेंट्स, पार्ट टू और पार्ट थ्री, और यहीं क्यों रुको, गिनती तो और भी आती ही होगी।"
अब ज्यादा लिखूं तो एक इलज़ाम और आयेगा कि मेरी कीमत तुम्हारी एक पोस्ट जितनी ही है। कैसे यकीन दिलाऊँ उसे कि उसकी कीमत क्या है और कितनी है? जानता हूँ ज्यादा समय तक नाराज नहीं रहा जायेगा उससे, लेकिन जो समय बीत गया नाराजगी में, वो लम्हे लौट आयेंगे क्या? और फ़िर रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी। ले ले, देखी जायेगी…….
:) मुश्किल समय में फ़त्तू ने एक नये नये धनवान बने सेठ के यहाँ नौकरी शुरू की। सेठ के मुछ मेहमान आ रहे थे, इम्प्रेशन जमाने के किये फ़त्तू को अग्रिम प्रशिक्षण दिया गया।
मेहमान आये, सेठ जी ने फ़त्तू को आवाज लगाई, :अरे भाई, कुछ पीने के लिये ले आ।” फ़त्तू, “क्या लाऊँ जी, जूस ले आऊँ, पैप्सी ले आऊँ या फ़िर बियर, व्हिस्की वगैरह कुछ लाऊँ?”
सेठ जी, “यार, प्यास तो पानी से ही बुझेगी, पानी ले आ।”
कुछ देर बाद चाय की फ़रमाईश हुई। अबकी बार सीखे सिखाये फ़त्तू ने पूछा, “चायपत्ती कौन सी चलेगी जी, आसाम वाली, दार्जिलिंग वाली या श्रीलंका वाली।” सही रंग जम रहा था।
कुछ देर के बाद मेहमानों की इच्छा पर सेठ जी ने फ़िर से आवाज लगाई, “यार, जरा पिताजी को तो ला जरा।”
फ़त्तू,”जी, कौन से वाले पिताजी को लाऊँ, बगल वाले गुप्ता जी को ले आऊँ, सामने वाले सिंह साहब को ले आऊँ, २९ नंबर वाले शर्मा जी को लाऊँ या जो बुड्डा सारे दिन खों खों करता रहता है घर में, उसे लाऊँ?”
अब ऐसा है जी, बदनाम तो हो ही गये हैं अपनी ओ जी के सामने(जैसे पहले तो बड़े पदमश्री, भारत रत्न से नवाजे जाते थे), आज थोड़ा सा नया गाना सुन लो, रोमांटिक सा। अच्छा लगे तो अपना लो, बुरा लगे तो जाने दो…