"जुताई करते करते एक जगह उसका हल जमीन में अटक गया| आसपास खोदने पर पता चला कि कोई कलश गड़ा हुआ है| स्वाभाविक है कि उस कलश में स्वर्ण मुद्राएँ ही थीं| कुछ दिनों के बाद राजा के पास न्याय के लिए एक वाद प्रस्तुत हुआ, जिस किसान को वो स्वर्ण मुद्राएं मिली थीं, वो उन मुद्राओं को उस व्यक्ति को देना चाह रहा था जिससे कुछ समय पहले उसने जमीन खरीद ली थी| उसका तर्क ये था कि उसने खेती के लिए जमीन के पैसे दिए हैं, जमीन के नीचे से इस प्रकार मिला अनपेक्षित खजाना उसका नहीं है| जिस किसान ने जमीन बेची थी, उसका तर्क था कि जमीन के पैसे ले लिए तो वहाँ अब सोना निकले या पत्थर, उसके लिए स्वीकार्य नहीं हैं| राजा भी उसी ब्रांड का था, उस खजाने को अपने हवाले करने की बजाय उसने अपने खजाने से कुछ रकम और मिलाई और उस धन से जनता के लिए एक तालाब का निर्माण करवा दिया|"
पिछले ज़माने की कोई कहानी है ये, इससे पता चलता है कि विवाद क्या है, ये ज्यादा निर्भर इस बात पर करता है कि साधारण जनता की मानसिकता कैसी है|
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एक अपना भाई-दोस्त cum दोस्त-भाई है(वे दो भाई हम दो भाईयों के दोस्त हैं तो ये संबोधन दिया है), परसों शाम उसका फोन आया, "भाई साहब, कुछ पैसे एकाऊंट में डालने थे| शाम को आपको दे दूं क्या? मेरा बैंक जाना बच जाएगा|" मामूली सा काम था, एक हाँ में अपना काम चल सकता था लेकिन आजकल अपनी आदत हो गई है कि अपने से छोटा कोई मामूली सी बात भी करे तो अपने से सीधा जवाब नहीं दिया जाता| मैंने कहा, "भरोसा है तो मुझे पैसे पकड़ा दियो|" स्माईली लगाया भी था लेकिन फोन पर दिखा नहीं होगा| खैर, "क्या भाई साहब, आप भी किसी बात करते हैं" वगैरह वगैरह के बाद बात खत्म हो गयी|
अगले दिन सुबह बैंक के लिए तैयार हो रहा था तो बन्धु आया और पॉलीथीन से निकालकर अडतालीस हजार रुपये नकद और तीस हजार का एक बियरर चैक समर्पित करने लगा| जैसे बाबा लोग टाट उठाकर नोट वहाँ रखने का इशारा करते हैं कि हम तो माया को हाथ भी नहीं लगाते, उसी तर्ज पर मैंने भी यही कहा कि यार नोट और चैक पॉलीथीन में ही रहने दे, मैंने हाथ में लेकर क्या करने हैं? असल में पॉलीथीन मेरे हिसाब से थी ही बहुत प्यारी| प्यारी कहने से पॉलीथीन का उत्पीडन वगैरह होता हो तो इसे प्यारा भी मान सकते हैं, आई मीन प्यारा पॉलीथीन|
खैर हमने विमर्श को भटकने नहीं देना है, इसलिए मुद्दे पर आईये| आजकल प्रायः सभी बैंक, सिवाय वोट बैंक के, ओनलाईन और सेंट्रलाईजड हैं और उस दिन सुबह से नेटवर्क फेल्योर के चलते काम ठप्प था| क्लियरिंग वगैरह कुछ काम बहुत टाईमबाऊंड रहते हैं, तय किया गया कि कुछ फाईल्स किसी दूसरी ब्रांच से जाकर लाई जाएँ और बहुत जरूरी वाला काम निबटाया जाए| दुल्हन को उसके मायके से लेकर आना हो तो क्या दूल्हा, और क्या दूल्हे के भाई, यार दोस्त सब के सब भाईचारा निभाने को तत्पर रहते हैं लेकिन लेकर आना था फाइल को, काम के ढेर को तो फिर कौन जाएगा? जो बहस से बचता हो, वही न? आप सब बहुत समझदार हो वैसे:)
अपनी ब्रांच में काम ठप्प था और दूसरी ब्रांच में जाना ही था तो सोचा कि भाईदोस्त वाले पैसे वहीं जमा करवा दूंगा, अब तक पॉलीथीन में रखे थे| उसी पॉलीथीन में कुछ दुसरे जरूरी कागज रखे, पैन ड्राईव डाला और पानी की बोतल रख ली और चल दिए हम अपने दोपहिया वाहन पर| मैंने चैक किया भी कि गौर से देखने पर नोट चमक रहे थे लेकिन फिर सोचा कि कौन इतने गौर से देखेगा? और चीजें थोड़ी है बाहर देखने को, जो मेरी बाईक से टंगी पॉलीथीन को आँखे फाड फाडकर कोई देखेगा? दूसरी ब्रांच में जाकर पॉलीथीन फिर से अपने साथ ले गया, जहां बैठकर काम कर रहा था अपने सामने ही ज्यादा से ज्यादा एक डेढ़ फुट की दूरी पर टांग दी| करीब आधा घंटा उस ब्रांच में रहा, वहाँ भी भीड़ बहुत थी और इस बीच मेरी ब्रांच से भी फोन आ चुका था कि वर्किंग शुरू हो गई है तो सोचा कि अब पैसे अपनी ब्रांच में जाकर ही जमा करवा दूंगा|
कई बार घटा बढ़ा कर बोलता हूँ, आज नहीं बोलूंगा, पहले की ही तरह नोट भी पॉलीथीन में थे, कुछ दुसरे सरकारी कागज़ भी(बिना किसी फाईल के), पैन ड्राईव भी और पानी की बोतल भी| मैं आकर बाईक पर बैठ गया, स्टार्ट कर दी फिर दिमाग में अचानक ही एक ख्याल आया कि पैसे इस पॉलीथीन में से निकालकर जेब में रख लिए जाएँ तो क्या बुराई है? पता नहीं उस एक हल्की सी सोच में क्या असर था कि मैंने वहीं बैठे पॉलीथीन के अंदर ही हाथ डालकर नोटों के पैकेट को और चैक को एक कागज़ में लपेटा और उसे शर्ट के हवाले कर दिया| मेरी ब्रांच के पास वाली लालबत्ती पर पहुँच गया था तो एकदम से कुछ गिरने की आवाज आई, देखा तो पॉलीथीन से पानी की बोतल गिरी है| जब तक झुककर उसे पकडता वो लुढकती हुई दूर चली गई थी, और इधर ग्रीन लाईट हो गई थी| हाय री दिल्ली की भीड़ भरी सड़कें, जाने वाली को रोक भी न सका मैं बेचारा| रुकती तो खैर क्या, बस अपनी तसल्ली हो जाती कि हमने अपनी कोशिश कर ली :)
ब्रांच में आकर देखा तो पॉलीथीन के तले वाले हिस्से में दिनों किनारे लगभग एक चौथाई तक कटे फटे हुए हैं| प्रथमदृष्टया ये चूहों का काम लगता है, विस्तृत जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजने की सोच रहा हूँ, ज्यादा शोर शराबा होने पर कोई आयोग वायोग भी खड़ा किया जा सकता है|
कुल जमा नुक्सान हुआ है एक पैन ड्राईव, एक पानी की बोतल और हाँ, वो प्यारा\प्यारी सी पॉलीथीन भी अब किसी काम की नहीं रही| घाटे वाली अर्थव्यवस्था को एक और झटका झेलना पड गया, उस पर तुर्रा ये कि हमारे गार्ड साहब, सफाईकर्मी, चायवाला और उनके कंधे पर बन्दूक रखके दफ्तर के दूसरे साथी भी जोर डाल रहे हैं कि पार्टी दी जाए| हमारा इत्ता नुकसान हो गया और लोगों को पार्टी की सूझ रही है, कहते हैं कि तीन चार सौ के घाटे को रोने की बजाय अठहत्तर हजार बच गए, उस पर ध्यान देना चाहिए| अगर ऐन वक्त पर दिल की आवाज न सुनता और नोट भी पॉलीथीन में ही रहने देता तो होता असली नुक्सान| वाह जी वाह, अपने दिल की बात क्यों न सुनता? और अगर नोट गिर ही जाते तो सबसे ऊपर लिखी कथा चेप देता दोस्त-भाई के सामने कि देख कैसे कैसे उच्च आदर्श रहे हैं हमारे सामने| पता नहीं मानता या नहीं:)
अब सवाल उठ रहा है कि घाटा हुआ या इसे फायदा समझूं? एक साथी हरदम सुनाते रहते थे कि शेयर मार्केट के चक्कर में डेढ़ लाख का घाटा खा चुके हैं| एक दिन फुर्सत थी, मैं घेरकर बैठ गया| पता चला कि जो शेयर उन्होंने एक लाख में खरीदे थे वो एक लाख पचास हजार में बेचे| मैं कामर्स का विद्वान रहा होता तो इस खेल में डेढ़ लाख का घाटा निकाल ही नहीं सकता था, कुरेदने पर साथी ने बताया कि शेयर मार्किट की ऊंचाई के समय में उनके शेयर्स की कीमत ढाई लाख तक पहुँच गई थी लेकिन उन्होंने नहीं बेचे थे, इस तरह से डेढ़ लाख का घाटा होना सिद्ध हुआ| मजा आता है ये सब देख देखकर, नफ़ा-नुकसान, उपदेश देने-लेने में कैसे पैमाने बदलते हैं|
कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि अंदर से कुछ आवाज आई हो और ......?