tag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post8364271488051292026..comments2023-12-21T16:22:10.490+05:30Comments on मो सम कौन कुटिल खल कामी.. ?: यक्ष प्रश्नसंजय @ मो सम कौन...http://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comBlogger69125tag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-89759792454803799342020-06-15T22:57:06.666+05:302020-06-15T22:57:06.666+05:30Nice Nice खरसूपhttps://www.blogger.com/profile/07770444742341857753noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-20109193573752866422020-06-15T20:55:46.770+05:302020-06-15T20:55:46.770+05:30'आत्म'हत्या अपने अर्थ को सिद्ध नही करता, व...'आत्म'हत्या अपने अर्थ को सिद्ध नही करता, वास्तविकता में तो देखा जाए तो यह स्वयं के साथ पूरे परिवार की हत्या है। <br /><br />डॉक्टर ब्रायन वेइस एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ कई किताबें भी लिख चुके हैं, वे पास्ट लाइफ regression के द्वारा बहुत से अवसाद से ग्रस्त लोगों का इलाज कर चुके हैं... ने एक पुस्तक में लिखा कि एक व्यापारी के पिछले 6-7 जन्मों का रिग्रेशन करने के पश्चात पता चला कि वह हर जन्म में आत्महत्या करता आ रहा है और इस जन्म में भी आर्थिक नुकसान की वजह से आत्महत्या करना चाहता है। डॉक्टर उसे सम्मोहन के जरिये उसे दो भविष्य दिखाता है.. एक आत्महत्या के बाद का और दूसरा बिना आत्महत्या करे।<br />बिना आत्महत्या करें उसके आने वाले आगामी जन्मों में उसे खुशहाल दिखाया। किताब का नाम शायद- many life many masters है।<br /><br />कहने का अर्थ बस इतना भर है कि यह तो विशियस सर्कल है.. कर्म चक्र से बचना संभव नही, भोग तो भोगने ही पड़ेंगे। <br />नही जानता इस पोस्ट से मेरी कही बात कितना relate करती है, पर सबने अपनी कही सो मैनें भी कह दी।<br />बहराल सबके विचार पढ़कर अच्छा लगा।सुकेत राजपाल त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/13145624749738387653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-19952347366324251382014-02-07T21:00:01.116+05:302014-02-07T21:00:01.116+05:30I think there is some confusion due to this word ...I think there is some confusion due to this word 'natak.' Confining this particular word 'natak' to Sunanda's death is a wonderful analysis indeed :)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-42552740792416971332014-02-05T09:00:31.323+05:302014-02-05T09:00:31.323+05:30Sanjay "ji"
similarly accept that sunan...Sanjay "ji" <br />similarly accept that sunanda and for that matter thurur and all others also have a right to change according to their whims and fancy and lets not and never call all this "natak " रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-62896251272825915492014-02-05T06:01:28.364+05:302014-02-05T06:01:28.364+05:30Rachna ji, your replies/comments are already well ...Rachna ji, your replies/comments are already well planned.<br />I wrote both things which may appear contradictory but I presume nothing is stationary, neither me nor the contexts. Had I known that I am taken that seriously, I would've prefixed 'all the time' to '’जल्दी अधीर न होना’ and 'many a time' to ' मैं उकसाये में आ जाता हूँ ' :) <br /><br />Everything in this universe undergoes constant changing(though exceptions are everywhere), as such It has been decided to hold reserve my right to change further :)संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-26504685126655891452014-02-03T10:24:15.477+05:302014-02-03T10:24:15.477+05:30@मैं उकसाये में आ जाता हूँ :)
oh my god , just o...@मैं उकसाये में आ जाता हूँ :) <br /><br />oh my god , just on 3rd dec 2013 i read the following exchange of thoughts <br />पर संजय जी फिर भी कहूँगा कि आपकी बातों में एक ठहराव है आप जल्दी अधीर नहीं हो उठते पता नहीं मेरे अंदर ऐसा धैर्य क्यों नहीं है जबकि मुझे पता है मैं कुछ बदल नहीं सकता।खैर ये सब चलता रहेगा ।<br />राजन, प्रयोग तो कर ही सकता हूँ लेकिन उसे मानने के लिये औरों को मजबूर नहीं कर सकता :)<br /><br />राजन,’जल्दी अधीर न होना’ तारीफ़ की बात नहीं है। सीरियसली कहता हूँ अगर सब मेरे जैसे अधीर न होने वाले होते तो हम बहुत पिछड़े होते, <br /><br />and today you are saying मैं उकसाये में आ जाता हूँ :) <br /><br />decide sir so that accordingly we can plan our replies :) <br /><br />रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-17787840832218632612014-02-02T22:50:06.301+05:302014-02-02T22:50:06.301+05:30इसी बारे में ’नाटक’ शब्द लिखा था।इसी बारे में ’नाटक’ शब्द लिखा था।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-19990822685031405592014-01-30T06:01:22.448+05:302014-01-30T06:01:22.448+05:30व्यावहारिक सच्चाईयों के बारे में बाकी लोग मुझसे अच...व्यावहारिक सच्चाईयों के बारे में बाकी लोग मुझसे अच्छा ही जानते होंगे लेकिन वो लोग इन्हें पेट में रखना और भी अच्छे से जानते हैं, अंतर सिर्फ़ ये है कि मैं उकसाये में आ जाता हूँ :) <br />संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-61806906877554029682014-01-29T04:59:20.570+05:302014-01-29T04:59:20.570+05:30यक्ष प्रश्न है उसका उत्तर है..आजकल तो आत्महत्या के...यक्ष प्रश्न है उसका उत्तर है..आजकल तो आत्महत्या के इतने कारण होने लगे हैं कि पूछिए मत..कोई इज्जत की खातिर जान लेता है..तो कोई झूठा लांछन लगने पर छत से कूद जाता है...कोई रोटी कपड़े का इंतजाम न होने के कारण तो कोई प्यार में नाकाम होकर..भावना में बहकर होने वाली आत्महत्या पर रोक लग सकती है बशर्ते कोई अपनी दुख बांटे..पर जिससे बांटे वो उसका मजाक न उड़ाए...बाज बार परिस्थितियां ऐसी होती है कि इंसान आत्महत्या की ओर अग्रसर हो जाता है। Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-65849230434733022992014-01-28T11:09:24.284+05:302014-01-28T11:09:24.284+05:30संजय जी,आप जो सवाल उठाए इसका जवाब आप खुद ही दे चुक...संजय जी,आप जो सवाल उठाए इसका जवाब आप खुद ही दे चुके हैं।वैसे आँकडो की ही बात करें तो जितनी महिलाओं ने रिश्तों के चलते आत्महत्या की उतने ही पुरुषों ने भी की ही है।इसलिए इस मामले में तो दोनों बराबर या लगभग बराबर ही है।वैसे आत्महत्या के कारणों को आंकडो के जरिये ही नही समझा जा सकता।पुरुषों की आत्महत्या की दर ज्यादा इसीलिए है क्योंकि रिश्तों के साथ साथ आर्थिक पक्ष भी वहाँ है।जबकि महिलाओं के मामलों में ऐसा नही है।पर जब महिलाएँ भी घर की चार दिवारी से बाहर निकल दुनिया देखेंगी तो दोनों की आत्महत्या दर समान हो जाएगी।(देखिए मै कैसी मनहूस बात बोला ।पर यह सच है यारा।नास्तिक होने के कारण ईश्वर न करे भी नही बोल सकता)।एक बार यह अध्ययन में आया था कि ब्रेकअप के बाद जहाँ लड़किया सच को स्वीकार कर आगे बढ़ जाती है वहीं ज्यादातर लड़के अवसाद में चले जाते है या खुद को शराब सिगरेट में डुबो लेते है या खुदखुशी कर लेते है।इसका कारण यह कि वे अपनी समस्या दूसरों से शेयर नहीं करते।हाँ कुछ तेजाब ले निकल पड़ते है लेकिन उनकी संख्या वैसे ही अपवाद जैसे अवैध संबंधों के चलते अपने पति या बच्चों को मौत की नींद सुला देने वाली महिलाए।कम से कम अपनी समस्या दूसरों को बताकर मन का बोझ कम करने वाली बात पुरुषों को महिलाओं से सीखनी चाहिए.और जेंडर कि क्या बहस करूँ.जितना करता हूँ बढ़ती ही चली जाती है.कि करां पिट्रोल ख़तम ही नहीं होंदा.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-81315161269684472632014-01-28T11:08:29.482+05:302014-01-28T11:08:29.482+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-67996838774943434102014-01-27T21:40:12.355+05:302014-01-27T21:40:12.355+05:30न तो रिश्ते इतने सरल होते हैं न ही जीवन कम्पार्टमे...न तो रिश्ते इतने सरल होते हैं न ही जीवन कम्पार्टमेंट में बंटा होता है कि हैम सोचें पहली बोगी का काम अब ख़तम हुआ अब दूसरी बोगी में चलते हैं । विमर्श करने के लिए तो हम बहुत आसानी से जीवन को एक फॉर्मूले में बाँधने की कोशिश करते हैं, लेकिन हर जीवन की अपनी पेचीदगियाँ होतीं हैं, ख़ास करके तब जब आप और भी रिश्तों से जुड़े होते हैं, मसलन बच्चे । <br /><br />नैतिकता का तकाज़ा तो यही है कि जीवन में सब कुछ साफ़-सुथरा हो, लेकिन क्या हर किसी के साथ ऐसा है ?? और अगर ऐसा नहीं है तो क्या सिर्फ अपनी बात साबित करने के लिए आत्महत्या या हत्या करना सही है ??? ऐसे कदम उठाने से किसी एक तो आपने सबक सिखा दिया लेकिन उसके साथ कितनो के साथ आप अन्याय कर जाते हैं.। सुनंदा की ही बात लीजिये, अगर उसने आत्महत्या की है तो शायद ही शशि थरूर को एक सबक़ मिला हो, शायद ही उसको राजनैतिक आघात भी लगा हो लेकिन ऐसा कदम उठा कर सुनंदा ने अपने बच्चे को दुनिया में बिलकुल अकेला ज़रूर छोड़ दिया । वो भी कुछ वर्षों में सम्हाल जाएगा और सब भूल-भाल जाएगा।<br /><br />और सच्ची बात कहूं तो इस वक्त तो यही लग रहा है न वो कुछ साबित कर पाई, न ही किसी को कोई आघात लगा है, उसके बिना भी सबका जीवन बदस्तूर चल रहा है.। उसका अपना भाई कहता है शशि ऐसा कर ही नहीं सकता, बेटा भी यही कह रहा है, शशि की पार्टी ने भी शशि को कोई सज़ा नहीं दी, तो निष्कर्ष क्या हुआ ऐसे कदम उठाने का, इससे बेहतर तो ये होता कि वो जीवित रहती और इस थरूर को नाकों चने चबवाती, टाईट फ़ाईट की बात तब होती। स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-29401189142763182692014-01-27T13:26:57.239+05:302014-01-27T13:26:57.239+05:30@ मुझे आश्चर्य में यही बात डाल रही है कि रिजेक्शन ...@ मुझे आश्चर्य में यही बात डाल रही है कि रिजेक्शन का ज्यादा प्रभाव स्त्री पर ही क्यों? स्त्रियाँ क्या इस बात को मानकर ही चलती हैं कि उन्हें रिजेक्शन नहीं मिल सकता या नहीं मिलना चाहिये? आसपास ऐसे पुरुष भी देखे हैं जो अपनी पत्नी स दुत्कारे जाते हैं और इस वजह से समाज में भी उनको हेय दृष्टि से भी देखा जाता है लेकिन वो आत्महत्या नहीं करते। तो इसका मतलब ये निकाला जाये कि पुरुष प्राय: स्वाभिमानी नहीं होते? <br />इस मामले में स्त्री कि स्थिति बड़ी ख़राब है दोनों ही स्थति में नुकशान उसका ही होता है ,पुरुष को जब रिजेक्शन मिलता है तो क्या होता है ये सब आप अक्सर खबरो में तेजाबी कांड , "अवैध संबंधो " के शक में पत्नी बहन बेटी की ह्त्या , आदि के रूप में पढते होंगे , तेज़ाब कांड में तो रिजेक्शन में रिस्ते होते ही नहीं है किन्तु वहा भी भुगतना स्त्री को ही पड़ता है , ऑनर किलिंग में भी कई बार सलेक्शन को भुगतना पड़ता है , जबकि पति के पत्नी को छोड़ने वाले किस्सो में अपनाने के बाद रिजेक्शन कि बात आती है , मझधार में छोड़ देने जैसा , कई बार होता है न जब हम समाने वाले को सजा नहीं दे पाते है तो खुद को सजा दे देते है इस उम्मीद में की उसे सबक मिलेगा , आत्महत्या कर सबक देने कि सोच रखने वाली मुर्ख पत्निया नहीं जानती की उनके आत्महत्या करने के बाद सबक तो दूर उन्हें ही पागल डिप्रेशन की मरीज , स्त्री को तो भगवान भी नहीं समझ सकते जैसे ढेरो जुमले से उन्हें ही गलत साबित कर दिया जाता है ।anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-84679772953156848502014-01-27T13:12:52.269+05:302014-01-27T13:12:52.269+05:30देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ जानती हूँ इतनी दे...देर से आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ जानती हूँ इतनी देर तक किसी एक ही विषय को दिमाग में बना कर रखना सम्भव नहीं है और उसी क्रम में जवाब देना भी मुश्किल होता है , इसलिए जवाब देने की कोई भी आवश्यकता नहीं है , बस विचार भर रखे है , आप के और कोई प्रश्न हो तो जरुर जवाब देने का प्रयास मै करुँगी एक स्त्री के रूप में । <br />anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-2879956388823319892014-01-27T13:08:29.664+05:302014-01-27T13:08:29.664+05:30@अंशुमाला जी की सधी और संतुलित बातों का मैं शुरू स...@अंशुमाला जी की सधी और संतुलित बातों का मैं शुरू से ही प्रशंसक रहा हूँ.<br />सलिल जी <br /> ये आप की निजी राय है बहुत सारे लोग आप के इस राय से असहमत होंगे , किन्तु आप ने लिखा क्योकि आप निजी रूप से ऐसा सोचते है सम्भवतः मेरा व्यवहार आप के प्रति अलग और दुसरो के प्रति अलग हो ,समाज मेरे बारे में क्या सोचता है ये बाते आप को ये लिखते समय प्रभावित नहीं करती है , और आप ने जो लिखा वो मेरी वर्तमान सोच के कारण लिखा होगा भविष्य में मै क्या करुँगी ये तो मै स्वयं भी नहीं बता सकती । विवाह भी ऐसे ही है ये बहुत ही निजी विचार होता है हम इस बात की परवाह नहीं करते कई बार की लोग उसके बारे में क्या राय रखते है या लोगो के प्रति उसका व्यवहार कैसा है , वयक्ति का व्यवहार हमारे प्रति कैसा है हम इसे ही देखते है , और भविष्य को लेकर विचार भी उसी हिसाब से बनाते है , थरूर जरुर राजनीति के लिए युवा है किन्तु सामाजिक और विवाह के परिपेक्ष में देखे तो उनकी आयु प्रौढ़ की हो चुकी है कोई भी इस आयु में कुछ साल के साथ की बात नहीं सोचता होगा , या ये अनुमान नहीं लगा सकता कि इस सामाजिक और राजनीतिक जीवन को जी रहा व्यक्ति का व्यवहार ऐसा हो सकता है , या जो पत्नी के साथ "हाथापाई " जैसा कुछ कर सकता है जिसके निशान उसके चहरे पर दिखाई ही न दे । हमारे समाज में तो विवाह केवल विश्वास पर ही बन जाते है , फैसला सही था या गलत ये तो बाद में ही पता लगता है । anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-30019360871134351882014-01-27T12:54:12.850+05:302014-01-27T12:54:12.850+05:30दूसरी बात आप ने कही स्त्री ताकतवर क्यों नहीं है , ...दूसरी बात आप ने कही स्त्री ताकतवर क्यों नहीं है , रिश्तो के सामने कमजोर क्यों पड़ जाती है तो आप के यक्ष प्रश्न का उत्तर ये प्रश्न है कि क्या पुरुष एक ताकतवर स्त्री को बर्दास्त कर पायेगा <br />१- एक बेटी जो कहे की उसे अभी आगे और पढना है या उसे नौकरी करनी है इसलिए वो अभी शादी नहीं करना चाहती या उसे इस तरह के लडके से विवाह करनी है इसलिए लड़का उसकी पसंद का खोज जाये या लड़का पसंद किया है उससे विवाह किया जाये । क्या ऐसी मजबूत बेटी पिता बर्दास्त कर पायेगा <br />२- बहन कहे की भाई जब पिता के हम सभी बच्चे है तो उनकी संम्पत्ति में केवल भाइयो का ही हक़ क्यों, घर न सही कम से कम पैसे में तो उसे हिस्सा दो, जब बाकि भाइयो में उसे बांटा जा रहा है तो उसे क्यों छोड़ा जा रहा है , हिस्सा लेने वाले भाई जब बुरे नहीं है तो बहन क्यों बुरी बन जाती है , रिस्ते रखने की ये शर्त क्यों केवल बहन से क्यों कि सम्पति का हिस्सा छोडू , पैसे तो सभी के पास भरपूर है , भाई बर्दास्त कर पायेगा मजबूत बहन । <br /> ३- ससुराल में पति के बराबर का सम्मान और जीवन जीने की आजादी , माँ कब बनना है की आजादी , और घरेलु हिंसा को तथाकथित हाथपाई न मामने की आजादी जिसमे चोट के निशान केवल पत्नी में ही दिखे पति पर एक भी नहीं , पति के गलत ख़राब होने पर उसे छोड़ देने की आजादी वाली ताकतवर पत्नी को क्या पति और समाज बर्दास्त कर पायेगा । <br /> जो आज अपने समाज का हाल है वहा हम ताकतवर नहीं कमजोर स्त्री को ही बर्दास्त कर सकते है , शुक्र मनाइये की स्त्री रिश्तो को लेकर कमजोर है कुछ हजार बर्दास्त नहीं कर पाने पर मर जाती है तो मरे कम से कम समाज में परिवार रिश्ते तो बचे है , जिस दिन स्त्री ताकतवर बनेगी तो हर तरफ से बनेगी समाज चाहेंगे की समाज की इच्छा से कही बने और कही नहीं तो ये सम्भव नहीं है , इसलिए उसका कमजोर होना समाज के सुचारु रूप से चलते रहने के लिए जरुरी है इसलिए उसके कमजोर होने पर प्रश्न ने खड़ा करे और स्त्री को शुरू से ही कमजोर बनाने का सृजनात्मक काम होते रहने देना चाहिए । <br />anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-62752475092116457402014-01-27T12:34:39.415+05:302014-01-27T12:34:39.415+05:30सुंनदा ने आत्महत्या की या हत्या आदि आदि से परे एक ...सुंनदा ने आत्महत्या की या हत्या आदि आदि से परे एक आम सी बात करती हूँ , और मेरे द्वारा लिखे गए स्त्री - पुरुष ,स्त्री - पुरुष समाज और पुरुष मानसिकता में सभी स्त्री -पुरुष नहीं आते है , । जैसा आप ने पूछा है की स्त्री पुरुष के आत्महत्याओ की वजहों में इतना फर्क क्यों है , मेरी निजी राय है दोनों की परवरिश का फर्क दोनों के सामाजिक स्थिति में फर्क के कारण , जो पुरुष घर में कमजोर माँ, बहन, पत्नी, छोटे भाई के सामने शेर रहता है वही बाहर की ताकतवर दुनिया के सामने चूहा बना जाता है , वो उनसे लड़ नहीं पाता है , सहने कि शक्ति तो परवरिश में ही उसे नहीं मिली है , इसलिए वो कई बार गिर कर उठना भी नहीं जानता है , उसकी परवरिश उसे ये सिखाती है कि उसे हर जगह सम्मान मिलना चाहिए , जबकि समाज आप को सम्मान आप की आर्थिक स्थिति और आप की सफलता पर आप को देता है ,जब वो वहा से हारता है वो बर्दास्त नहीं कर पाता है , घर की मुर्गी साग बराबर की तरह घर के प्यार सम्मान की उसे कभी कद्र नहीं होती है , बस ट्रेन और लड़की के पीछे कभी नहीं भागने का एक जायेगी दूजी आएगी जैसे चालू कहावते बनाने वाले पुरुषो के लिए स्त्री से रिश्ते या कोई भी रिश्ते मायने नहीं रखते है ( संपत्ति के लिए भाइयो और पिता के बिच खून खराबे के किस्से आम है ) , पत्नी के आते ही परिवार को भूल जाना और यदि पत्नी का भी साथ छूटता है , चाहे तलाक मृत्यु या कोई अन्य वजह हो , वो तुरंत दूसरी पत्नी ले कर आता है , नए रिस्ते बनाता है पुराने की तो याद भी उसके जीवन में नहीं बचती है , उसके जीवन में ये सवाल तो कभी होता ही नहीं की पत्नी और परिवार नहीं रहा तो उसका क्या होगा , पत्नी चाहिए के विज्ञापन पर सभी अपनी पत्नी देने चले आये वाला चुटकुला हो या , इस कार से तिन बार दुर्घटना होने पर केवल पत्नी ही मरी हर बार इसलिए इसे लेने के लिए पतियो की लाइन लगी है वाला चुटकुला ये पत्नी के प्रति मानसिकता को दर्शाता है , कभी ऐसा चुटकुला सूना है जिसमे पति के मर जाने या उसे दूसरे को दे देने की बात कही गई हो , मजाक में भी पत्नी माँ बहन अपनो के मृत्यु या उससे अलग होने की बात नहीं करती है , क्योकि उनकी परवरिश ऐसी हुई है , उन्हें समाज से लड़ना और उसकी बाते सहना सिखाया जाता है , उन्हें सब कुछ सह कर हर हाल में मजबूत बने रहना है , किन्तु जब बात अपने पिता , भाई पति बेटे का हो तो उन्हें देवी बन जाना है सब त्याग कर देना है अपना पूरा जीवन उनके ही चारो तरफ गुजारना है , हम तो उस समाज में रहते है जहा कहा गया की पति के बिना तो पत्नी का जीवित रहना भी ठीक नहीं है उसे तो उसी के साथ सति हो जाना चाहिए , उसके पुरे जीवन में एक ही दौलत प्रदान कि गई है वो है रिश्ते और और उन रिश्तो को निभाने के लिए उन्हें कमजोर बनाया गया है , और ये रिश्ते एक तरफ़ा निभाए जाते है , जहा एक के पास अधिकार होता है तो दूसरे के पास बस कर्तव्य , और जब स्त्री अपने जीवन की बना दी गई धुरी इन रिश्तो को वो खो देती है तब उसे लगता है कि उसके जीवन में कुछ बचा ही नहीं जीवित रहने के लिए , क्योकि अपने लिए जीना तो उसे सिखाया ही नहीं गया , इसलिए समाज के ताने वो तब तक आराम से बर्दास्त कर लेती है जब तक उसका परिवार उसका साथ देता है , ससुराल के जुल्म भी सह लेती है क्योकि पति उसके साथ है भले ही सबके सामने नहीं किन्तु बंद कमरे में तो उसे झूठी दिलासा दे ही देता है ना की वो उसके साथ है , पति के जाने के बाद बच्चो के लिए जीना है जैसी बाते उसे जीवित रखती है किन्तु जब यही परिवार पति और बच्चे उसका साथ छोड़ देती है तब उसे लगता है कि उसके जीवन की तो धुरी ही चली गई जो उसके जीवित होने का कारण थी , इसलिए स्त्री के लिए रिस्ते और पुरुष के लिए रिश्तो के आलावा दूसरी चीजे ( आप उसे क्या कहेंगे आप पर छोड़ती हूँ ) ज्यादा महत्व्पूर्ण होते है ।anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-58541179900510776032014-01-27T10:28:25.229+05:302014-01-27T10:28:25.229+05:30इस नाते तो मैं खुद को आपसे बड़ा नारीवादी मान सकता ह...इस नाते तो मैं खुद को आपसे बड़ा नारीवादी मान सकता हूँ।<br />lijiyae mae naari vadi hun yae aap sae kisnae kehaa ? aap haen yae aap khud keh rahey hae :)<br /><br />तलाक या छोड़ दिये जाने का डर पत्नी को और आत्महत्या की धमकी पति को वश में रखने के सर्वोत्तम व्यावहारिक उपाय हैं। <br />good you have atleast said the practical truth what i call as comfort zone and people dont agree <br />अपने स्तर पर अनॉफ़िशियली ऐसे बहुत से तथ्य इकट्ठे कर रखे हैं, दुख ये है कि उनकी विश्वसनीयता असंदिग्ध मानी जायेगी।<br />please share because that what blog writing is all about रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-11063482486867944152014-01-27T10:20:48.471+05:302014-01-27T10:20:48.471+05:30टाईट-फ़ाईट वहीं किया जायेगा जहाँ सुधार की गुंजाईश ह...टाईट-फ़ाईट वहीं किया जायेगा जहाँ सुधार की गुंजाईश है, <br />solutions are needed to break the conditioning how many years more and how many generations more we need to "correct " the people who dont keep the sanctity of marriage alive . they are bad example setters and its high time the society started punishing legally the couples who creat such situations in society and set bad examples. the best is to separate and live alone rather then the showing off that how much forgiving the couple is and how much they love . some "miistakes " cant be forgiven and we need to think a better option then the old options because old options are now leading to so much mental pressure that deaths take place . do you remember the chand - fiza episode ?? रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-70282188924654399932014-01-26T19:55:05.928+05:302014-01-26T19:55:05.928+05:30मानवीय स्वभाव ही है जो असंतुष्टता बनाये रखता है। स...मानवीय स्वभाव ही है जो असंतुष्टता बनाये रखता है। स्वागत है पल्लवी जी।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-80505942027049140812014-01-26T19:51:50.998+05:302014-01-26T19:51:50.998+05:30मतलब की बात लेनी चाहिये बस, हमने अपने मतलब वाली ले...मतलब की बात लेनी चाहिये बस, हमने अपने मतलब वाली ले ली।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-73414158154824500892014-01-26T19:43:54.753+05:302014-01-26T19:43:54.753+05:30पूरा दोहा तो ऐसे है :)
'रहिमन' नीचन संग ब...पूरा दोहा तो ऐसे है :)<br /><br />'रहिमन' नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि।<br />दूध कलारिन हाथ लखि, सब समुझहिं मद ताहिस्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-20260393919945451032014-01-26T17:45:31.421+05:302014-01-26T17:45:31.421+05:30हां तो ठीक ही कहा है न, शादी बचाने के लिये पति या ...हां तो ठीक ही कहा है न, शादी बचाने के लिये पति या पत्नी(जैसा भी मामला हो) उसे टाईट करना पड़े या फ़ाईट करनी पड़े तो करनी चाहिये। टाईट-फ़ाईट वहीं किया जायेगा जहाँ सुधार की गुंजाईश है, एकतरफ़ा सरेंडर करके झेलते रहने की सलाह भी नहीं दी और जान लेने देने की सलाह भी नहीं दी। अनैतिकता को बढ़ावा देने वाली फ़ाईट की हिमायत नहीं की जा रही। <br />लिंक वाला विमर्श भी जरूर देखेंगे।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-87717120785014687902014-01-26T17:37:13.380+05:302014-01-26T17:37:13.380+05:30स्त्री की विवशता - ऐसा नहीं कि मैं जिन्दा रहने को ...स्त्री की विवशता - ऐसा नहीं कि मैं जिन्दा रहने को ही सबसे बड़ी उपलब्धि और उद्देश्य मानता हूँ लेकिन रिश्ता टूटने/धोखा दिये जाने को पुरुष के मुकाबले स्त्री के लिये जिन्दा रहने पर वरीयता देने को सही नहीं मानता। हो सकता है कि ऐसा कहकर मैं अपनी कायरता महिमामंडित कर रहा होऊं लेकिन मैं ऐसा ही सोचता हूँ। आपके लिये पत्नी द्वारा पति को येन-केन-प्रकारेण डिफ़ेंड करना ही विवशता है, सुनंदा के साथ जो हुआ(ऑफ़ कोर्स, आत्महत्या मानने में पूर्वाग्रहग्रस्त हो सकता हूँ मैं), मेरी नजर में वो भी स्त्री की विवशता ही है। इस नाते तो मैं खुद को आपसे बड़ा नारीवादी मान सकता हूँ।<br />हत्या या आत्महत्या और छोड़े गये तथ्य और जाँच के बारे में मेरे जो अंदेशे थे, सलिल वर्मा जी ने उसी संदर्भ में ’नाटक’ शब्द का प्रयोग किया था। वो भी अपनी बात पर कायम हैं, और मैं भी उसी जवाब पर कायम हूँ कि ऐसे नाटकों के हम आदी हो चुके हैं। न्याय, कैरियर वगैरह सब समय सिद्ध कर देगा।<br />मैं असहमति को आरोप नहीं मानता, अपनी (अ)क्षमतायं जानता हूँ इसलिये माफ़ी और सादर जैसे डिस्क्लेमर अनावश्यक हैं, इतना आप मान लें तो आप डिस्क्लेमर लगाने से बच जायेंगी और मैं बार-बार सफ़ाई देने से। मेरी पोस्ट संपूर्ण नहीं थी, हो भी नहीं सकती। वैसे भी मैं मुद्दे विशेष की बजाय एक ट्रेंड की बात कर रहा था। अगर पढ़लिखकर, आर्थिक रूप स आत्मनिर्भर होकर, मनमर्जी से जिन्दगी जीकर भी परिणाम वही निकालने हैं तो फ़िर पुरानी सोच को ही कोसते रहने से काम नहीं चलने वाला। सोच सिर्फ़ पुरातन है इसलिये गलत है, मुझे नहीं लगता।<br />’रचना जी नहीं चाहतीं...’ जरूर सुना होगा, सुनने के लिये तत्पर रहना ही होगा। हर बदलाव का स्वागत फ़ूलमालाओं से नहीं होता।<br /><br />सबसे बड़ी विवशता तो मेरी है कि बहुत समय तक सीरियस नहीं रह पाता, गंभीर से गंभीर बात पर कुछ देर के बाद हल्के-फ़ुल्के विचार आने लगते हैं। विवश समाज और विवश मानसिकता के बारे में मैं अपने दोस्तों से मजाक में कहता हूँ कि तलाक या छोड़ दिये जाने का डर पत्नी को और आत्महत्या की धमकी पति को वश में रखने के सर्वोत्तम व्यावहारिक उपाय हैं। अपने स्तर पर अनॉफ़िशियली ऐसे बहुत से तथ्य इकट्ठे कर रखे हैं, दुख ये है कि उनकी विश्वसनीयता असंदिग्ध मानी जायेगी।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8140631366854578091.post-7559587163334598182014-01-26T15:18:55.335+05:302014-01-26T15:18:55.335+05:30असली बात तो यही है जो mumbo-zumbo saidne के बाद लि...असली बात तो यही है जो mumbo-zumbo saidne के बाद लिखी है, शादी बचाने के लिये टाईट-फ़ाईट जो करना पड़े वो किया जाये। to give-up is not a sane thing.<br /><br />सप्तपदी में लिये हुए वचन जिस दिन तोड़ दिये गए शादी उसी दिन समाप्त होगयी। जो पुरुष या स्त्री शादी से इतर सम्बन्ध बनाता हैं उसके लिये तो वही लड़ेगा जो विवश होगा। शादी बचा ली गयी सैनिटी का परिचायक हैं या अनैतिकता को बढ़ावा देने का इस पर भी आप कभी विमर्श करवा दे http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2008/04/blog-post_30.htmlरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com