आजकल एक चींटी ने बहुत परेशान कर रखा है। हो सकता है कि एक चींटी न होकर कई हों, लेकिन काटती एक ही जगह पर है, बायें पैर पर, तो मैं यही मानता हूं कि एक ही चींटी है। वो काटती है, और मैं एकाएक मसल देता हूँ। अगले दिन फ़िर से वही करण-अर्जुन वाली, कर्ज वाली पुनर्जन्म की कहानी………..
सुबह के समय अखबार पढ़ने का समय, जगह और अंदाज एक ही है अपना। अनार का पेड़ है एक, उसके नीचे कुर्सी बिछाई और पढ़ना शुरू। चिड़िया है एक, कई दिन से ऐन ऊपर वाली टहनी पर बैठ जाती है और चूं, चूं, चूं, चूं उसकी चलती रहती है जैसे समाचार वादन कर रही हो। दो तीन बार भगाया भी तो उड़ जाती है और दो ही मिनट में फ़िर से आकर निशाना बांधकर गोली सी मारती है, पोंछते रहो और बोलते रहो ’दाग अच्छे हैं।’ आ जाता हूँ अखबार समेटकर अंदर। उस दिन निकाली एयरगन, और निशाने से कम से कम डेढ़ फ़ुट दूर का टार्गेट बनाकर दाग दी, तो सीधे जमीन पर गिरी। हम जैसे टपंचों का निशाना लगाने का तरीका ऐसा ही होता है, slightly deviated from target to hit the aim.
एक बिल्ली भी है, वो कौन सा कम है? जब बाईक उठाकर बाहर निकलने को होता हूँ, सामने से जरूर निकलेगी, शगुन जो करना होता है। एक बार अवायड किया, दो बार अवायड किया – एक दिन पकड़ कर जमकर भिगोना, निचोड़ना किया, तब से दिखाई नहीं दी।
भैयो, हूँ तो ज्यादा सताया हुआ इन चींटी, बिल्ली, चिड़िया का ही, लेकिन जिनसे कहीं न कहीं कुछ लैंगिक समानता समझता हूँ, पीछे वो भी नहीं हैं। कुत्ते भी अब इन्सान होते जा रहे हैं, जमाना खराब आ गया है। एक कुत्ते ने पहले एक बार टेस्ट किया था मुझे, खून तो खैर मीठा है ही मेरा, जरूर लिंक डाल दिया होगा उसने बिरादरी में। अब एक और है झबरा सा, आजकल उसकी नजरें इनायत हैं मुझपर। दूर से देख लेता है, आंखों में चमक आ जाती है उसकी, दांतों में नमक वाली पेस्ट की मुस्कान दिखने लगती है और स्साला टेढ़ी पूंछ वाला दूर से ही यल्गार के ललकारे लगाता हुआ बढ़ा आता है। हरदम हाथ में ईंट रखनी पड़ती है मुझे, किसी दिन कर ही देना है उसका हैप्पी बड्डे।
एक पड़ौसी है हमारा। ऐसे पडौसियों के कारण ही लोग कहा करते हैं कि ’अफ़सोस, इतिहास को बदला जा सकता है लेकिन भूगोल को नहीं।’ घर में ही कैसीनो टाईप कुटीर उद्योग चलाता है, काऊ ब्वाय्ज़ की तरह बाईक्स पर शहर भर की क्रीम आती है जाती है, आपसी वार्तालाप में मातृभाषा का जमकर प्रचार-प्रसार करते हैं, wwf बिग बॉस टाईप के रियैलिटी शोज़ गाहे बगाहे देखने को मिलते रहते हैं। पानी सर से ऊपर जाता है तो फ़िर जो होता है, उसे इतिहास में दर्ज करें तो पानीपत की पहली, दूसरी, तीसरी लड़ाईओं वाली गिनती बहुत कम रह जायेगी। उस दिन एक दूसरा पड़ौसी कह रहा था सच में किसी दिन गोली मार देनी है इसके। मैंने कहा फ़िर तू बच जायेगा? कहने लगा, आप रोज चींटी, चिडि़या, बिल्ली, कुत्ते को ......। मैं सिर खुजाने लगा, अपना यार, और किसका खुजाता? क्या तर्क दिया है बंदे ने, मान गये।
बहुत हो गया जी दुख-दर्द मेरा, बात करते हैं ब्लॉग-जगत की। ताजा हालात में जिधर देखो, जो चर्चा देखो, एक चीज कामन है, मीट। ब्लॉगर मीट छाई हुई हैं आजकल और दूसरे मीट की चर्चा भी यानि शाकाहार और मांसाहार। हर कोई इस चर्चा में या उस चर्चा में योगदान दे रहा है, जो ज्यादा कर्मठ हैं वो दोनों तरफ़ बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। हम भी करेंगे जी, जितनी समझ हममें है, सारी उंडेल देंगे।
गौर से देखेंगे तो मैंने ऊपर पांच पैरा लिखे हैं और पांचों में मैंने हिंसा की है, हिंसा की बात की है। हम मानते हैं कि मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। वनस्पति से शुरू होकर(जल तत्व), आरोह क्रम में कीट जगत, पक्षी, पशु वर्ग से मानव श्रेणी तक आते आते तत्व-संख्या बढ़ती रहती है और उसीके अनुसार की जाने वाली या होने वाली हिंसा का परिणाम भी। फ़िर जीने के लिये न्यूनतम साधन अपनाना, और केवल स्वाद के लिये हिंसा का अपनाना, इन दो बातों में तो अंतर होना ही चाहिये। कहाँ हिंसा बाध्यता है और कहाँ वैकल्पिक, इस बात को हम अपने सबसे विशिष्ट तत्व विवेक का इस्तेमाल करके देखें तो हो सकता है कि कुछ ……..। खैर हरेक का सोचने का अपना नजरिया है। जुटे हैं विद्वान, आलिम-फ़ाजिल - लगता है कुछ न कुछ फ़ैसला हो ही जायेगा।
मेरी नजर में तो ये दोनों व्यक्तिगत विषय हैं, हाँ महिमा मंडन नहीं समझ में आता। मैं खुद जनरल सेंस में शाकाहारी हूँ, लेकिन मेरे बहुत से मित्र मांस खाते हैं। न वो मुझे मजबूर करते हैं खुद को बदलने के लिये और न ही मैंने आजतक किसी को कहा है बदलने के लिये, सिवाय एक के। और फ़िर जब कुछ दिन के बाद उसने बताया कि उसने भी नॉन-वेज खाना बंद कर दिया है तो मुझे अफ़सोस हुआ कि मैं कहाँ का जज या ऐडवाईज़र हूँ जो फ़ैसले सुनाता फ़िरूँ या सलाह देता फ़िरूँ? उसका अहसानमंद हुआ और उसे भी छूट दे दी कि अपने विवेक से निर्णय ले।
तो बन्धुओं, ज्यादा नहीं भाषण देना है अब, नहीं तो साम्प्रदायिकता और पता नहीं कौन कौन सी ता का आरोप लग जाये। कुछ हो गया न तो सारे पल्ला छुड़ाकर भाग जाओगे, पता है मुझे। पहले नहीं डरता था किसी बात से, अब डरने लगा हूँ, जब से चार लोग जानने लगे हैं, जिम्मेदारी बढ़ जाती है जी। विचारशून्य बन्धु की भाषा में बोले तो ’नालायक का बस्ता और भारी हो जाता है। वो गज़ल है न जगजीत साहब की गाई हुई, ’मैं तनहा था मगर इतना नहीं था।’ सामान जितना ज्यादा हो, सफ़र में टेंशन भी उतनी ही होती है मुझे तो। खाली हाथ झुलाते, भीड़ के बीच अकेला, मजा आता है सोचकर भी, वो दिन भी क्या दिन थे सनम, बिंदास।’ लौटेगा जरूर वो गुजरा जमाना, तब देखेंगे सबको, एक एक करके, हा हा हा।
:) फ़त्तू चारपाई पर लोटा हुआ था और गा रहा था, “सीसी भरी गुलाब की, पत्थर से फ़ोड़ दूँ….।”
बापू बोल्या, “ओ बौअली बूच! सीसी लेगा, गुलाब इकट्ठे करेगा, रस काढेगा उनका, सीसी में भरेगा फ़िर उसने पत्थर मारके फ़ोड़ेगा। मेरे यार, इससे तो अपनी भैंस के चीचड़ काड लै, कुछ तो सुख पायेगी वो बेचारी।
आदरणीय, माननीय, परम श्रद्धेय प्रचारकों, उपदेशकों आदि आदि, ये इधर उधर जाकर कापी पेस्ट भड़काऊ टिप्पणियां करने की बजाय आप भी अपनी अपनी भैंस के चीचड़ निकाल लो न यारों, वो भी थोड़ा चैन पा लेगी। दूसरे धर्म की कोई अच्छी चीज भी दिखती है तुम्हें क्या?
गाना सुनवा देता हूं तलत महमूद का, मुझे बहुत अच्छा लगता है ये गाना भी और तलत महमूद की आवाज
भी। उम्मीद है अभी तक ऐसे लोगों की पहचान फ़नकार के रूप में ही होती है, न कि किसी धर्म विशेष के अनुयायी होने से। गाने का गाना हो जायेगा और हम भी सैक्यूलर समझ लिये जायेंगे। दोनों हाथों में लड्डू हैं आज तो, हा हा हा।
p.s. - सुबह नैट और ब्लॉगर ने मिलीभगत करके मेरी बेइज्जती की इज्जत खराब कर दी। क्या करें, बड़े लोग हैं ये गूगल और रिलायंस वाले, इनकी तो...:)
बहुत अच्छा गाना है..
जवाब देंहटाएंहिंसा, शाकाहार, बहस और निर्णय, इन सब पर ब्लॉग जगत स्वस्थ बना रहे और आप अपने पड़ोस में मस्त बने रहे।
जवाब देंहटाएंसुबह आपकी पोस्ट देखी थी पर पेज उपलब्ध नहीं था. पर अब कहीं जाकर दिल को चैन और जिगर को करार आया है... हैं जी ऐसा ही कुछ कहते हैं क्या उर्दू में.
जवाब देंहटाएंसचमुच आज आपने यह सिद्ध कर ही दिया कि आप जैसा कुटिल खल कामी और कोई नहीं हो सकता । बधाई।
जवाब देंहटाएं-सो पहले एक मर्डर कर दिया उस बेचारी की क्या गलती थी ??? उसके बच्चों का क्या होगा ! सोचा है कभी - निर्मम हत्या
जवाब देंहटाएं-बेचारी चिड़िया ...मार ही दिया - हत्या
-अशकुन के चक्कर में शेर की मौसी को पीट दिया - जीवों के प्रति निर्दयी अत्याचारी
-कुत्ते से पंगा मत ले लेना इनकी यूनियन है यहाँ .....काट लिया तो इंजेक्शन लगवाने चक्कर लगाते रहोगे
मीट के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा ...:-(
"slightly deviated from target to hit the aim. "
जवाब देंहटाएंवारे जाऊँ सर जी… क्या खूब जुमला दिया है। आज सच में बहुत जरूरत थी मुझे इस जैसे पोस्ट की।
विशेष कुछ कहुँगा जब खुद में वापिस आ जाऊँ तब। अभी तो बस नमस्ते कहने आया था और ये कि भी अनुज लौट आया है :)
नमन।
अब जा के पोस्ट पढने को मिली, दोपहर से परेशान था कि क्या हुआ, एक मेल भी भेज दी आपको खैर..................
जवाब देंहटाएंपोस्ट अच्छी लगी।
मेरा मानना है कि यदि हम किसी को बुराई (शराब या कबाब) छोडने के लिए प्रेरित करते है तो इसमे हर्ज ही क्या है।
ये तो पता नही आपने किस धर्म की अच्छाई देखने को कहा है लेकिन दुनिया मे सिर्फ इस्लाम धर्म ऐसा है जिसमे पाँच टाईम ईश्वर को याद किया जाता है जबकि अन्य मे सुबह शाम ।
आज कुछ ज्यादा ही बोल गया.................
@ पहले नहीं डरता था किसी बात से, अब डरने लगा हूँ, जब से चार लोग जानने लगे हैं, जिम्मेदारी बढ़ जाती है जी।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ। आप से नहीं सहमत हुआ भी नहीं जाता।
कुछ दिनों से चूहा उन्मूलन अभियान में लगा हूँ। अब तक 4 को मारकर दफन कर चुका हूँ। दफन करने की दिव्य दृष्टि आप के उस्ताद जी से प्राप्त हुई। आगे वह जब आएँगे, खुदे बताएँगे।
अब पता चला कि की फरक पैंदा दुसरो की चर्चा पढ़ने पर , ना कहते हुए भी खुद ही चर्चा करनी पड़ जाती है | मै भी आप से सहमत हु की शाकाहारी मै भी हु पर इस विषय में किसी से बहस नहीं करती जानती हु की मेरी ही उर्जा व्यर्थ खर्च होगी और फिर मुझे कुछ खाना पड़ेगा और ये तो खाना छोड़ेगा नहीं | सो बहस से क्या फायदा पर चाहती जरुर हु की सभी लोग शाकाहारी बने |
जवाब देंहटाएंजहा तक बात हिंसा की है तो मै अपने हाथ से कभी भी चीटी काकरोज नहीं मारती हु, हा पेस्ट कंट्रोल वालो के कारण भले वो मर जाते है | यानी कीड़े मोकोड़े तब तक सुरक्षित है जब तक की वो मुझे नुकसान ना पहुचाये |
और ये बढ़िया तरीका है की चिट्ठी भेजने से पहले उसे भेजने का टेलीग्राम १२ घंटे पहले दे दिया जाये " जी मेरी चट्ठी आने वाली है "|
संजय बाऊजी!
जवाब देंहटाएंमैं तो गुरूदेव सतीश सक्सेना का फॉलोवर हूँ.. टिप्प्णी करो तो ऐसी कि पोस्ट से बेहतर बन जाए, वर्ना टिप्पणी क्या ख़ाक हुई!.. तो झेलो भाई मुझे भी.. बात सीरियस..
अहिंसा/हिंसा परः कमबख़्त सीख ही ग़लत है हमारी.. सिखाते हैं जीव हत्या पाप है और अहिंसा परम धर्म है... प्यार तो सिखाया नहीं कि इतना प्यार करो हर जीव से कि भूले से भी उसे चोट लगे तो दर्द तुम्हें हो. अहिंसा अपने आप आ जाएगी.
शाकाहार/मांसाहार परः पूरे मांसाहारी परिवार में इकलौता शाकाहारी हूँ, पैदायशी. और उस ख़ानदान में पैदा हुआ जिसके बारे में डॉ. बच्चन कह गए थे कि उसने माँ के गर्भ में माँ का मांस कैसे नहीं खाया.. और जवाब भी दिया कि दाँत नहीं थे, वरना छोड़ता नहीं.
व्यक्तिगत निर्णयः समर्थन.
फ़त्तूः ऐज़ युज़ुअल, दिल्ली 6 का गोबर.
गानाः मेरे फेवरिट सिंगर का बेहतरीन गाना, जिसके बजते ही एक बार मेरे हाथ का निवाला हाथ में रह गया था( अतिशयोक्ति नहीं, सच)..
तलत महमूद के नाम पर साम्प्रदायिकताः डॉ. राही मासूम ने भी मेरे ख़ानदान के बारे में कहा था कि हम आधे मुसलमान हैं.
.
बहुत लम्बी हो गई टिप्पणी. अब दिन भर का सस्पेंस बनाया है तो झेलो.
मराठी में नमक को मीट कहते हैं ...............
जवाब देंहटाएंऔर जिनकी भैस ना हो वह क्या करे?............ लेकिन मेरे पास है गाय भी और भैस भी . कल सुबह आपका बताया कार्य करेंगे .गूगल और रिलांयस वालो की क्या.............
जैव-विविधता के प्रति दुर्लभ जागरूक नजरिया.
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह अपने ही गोबर काड के आ रहे हैं जी ... अब कोनों भैसन की ज़रूरत नहीं है ...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ उन चींटी, चिड़िया और बिल्ली के वजह से आपको तकलीफ हुई या फिर आपकी वजह से उनकी जान आफत में आई ये तो देखने की नजरिया है ... ज़रा अपनी कुर्सी ही सरका लेते सरकार ...
अब पडोसी के पीछे लगने की वजाय जम जाइये जाकर उनके जमात में ... हमें भी बुला लीजियेगा ...:)
मो सम कौन ? जी ,
जवाब देंहटाएंभाई बड़ी ही हिंसात्मक पोस्ट है ये ! अव्वल तो 'ज़िक्र-ए-मीट' उसके बाद चींटी / चिड़िया भी निपटाई...आगे उस बेचारे कुत्ते के लिए हाथ में पत्थर और नेक इरादे हैं सो अलग ! ...फिर उस "सिवाय एक" को बदलने का फरमान ! उसपे तुर्रा ये कि बेचारी बिल्ली का व्यक्तिगत भी सार्वजनिक कर दिया !
अब अल्लाह के बन्दों के 'व्यक्तिगत' में इस कदर भिड कर , इतनी अडंगेबाजी पहले कभी देखी ना सुनी :)
... vaah vaah ... kyaa baat hai !!!
जवाब देंहटाएं@ भारतीय नागरिक:
जवाब देंहटाएंगाना है ही बहुत खूबसूरत। पसंद की ताल में ताल मिलाने के लिये आभार।
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
मतलब बसे रहें, जहाँ हैं:) गुरू नानक जी की एक कहानी है इन्हीं शब्दो पर, कभी पढ़ियेगा...
@ विचार शून्य:
यार ये उर्दू का बड़ा क्रेज़ है आजकल। आज सुबह राव साहब का भी एक कमेंट देखा, उर्दू के बारे में कोई शंका थी उन्हें।
पंजाबी में ऐसे हालात में कहते हैं, ’ठंड पै गई’
@ राजेश उत्साही जी:
आज आपने माना है, कल सब मानेण्गे सर। धन्यवाद।
@ सतीश सक्सेना जी:
बड़े भाइयों के दम पर उछल कूद लेते हैं जी हम थोड़ा सा, पता है संभाल लेंगे आप। बहुत भरोसा हो गया है जी आप पर अब, फ़ो कौन सी ऐड आती है, किसी सीमेंट की, याद नहीं आ रहा। आप तो भावना समझ लेना जी, शब्दों का क्या है।
शाकाहारियों के घर इतनी मार- काट...!!!!!!!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गीत !
पते की बात कह दी है आपने. इसी मार्के वाला शाकाहारी मैं भी हूँ. जिसे मुर्गा नोचना है नोचे. हम क्यों उसके मुर्गे में टांग घुसाएँ.
जवाब देंहटाएं@ Ravi Shankar:
जवाब देंहटाएंमेल करने की सोची थी कि भाई, सवालों से नाराज हो गये हो क्या? लेकिन प्रोफ़ाईल में आई डी नहीं थी। रवि, जो हुआ है, उसपर कोई वश नहीं। धर्य रखो भाई, खुद में आओ वापिस, हम सब इंतजार में हैं। शुभकामनायें।
@ deepak sain:
दीपक, मेल का जवाब दे दिया था भाई। परेशान मत हुआ करो। कोई हर्ज नहीं है किसी को बुराई छोड़ने की सलाह देने में, लगे रहो। ईश्वर क्या खास दिन, खास समय में याद करने की चीज है? फ़िर अपन कोई धर्माधिकारी नहीं।
ज्यादा कम बोलने की कोई बात नहीं, संवाद में कुछ सीखेंगे ही हम दोनों। मस्त रहो, खुश रहो।
@ गिरिजेश राव जी:
आपके प्यार के अहसान तले दबा जा रहा हूँ जी, कैसे उतारूँगा?
सुनेंगे जी हमारे वाले उस्ताद जी की भी बात।
वैसे तो सब से सुन ही रहे हैं पता नहीं कब से, हा हा हा।
@ Anshumala ji:
हमें अभयदान मिल गया जी, हम सुरक्षित रहेंगे।
ये चिट्ठी टेलीग्राम वाला मामला भी मस्त है। हम चेतावनी देकर ही कुछ क्रना चाहते हैं जी:)
@ सम्वेदना के स्वर:
सक्सेना साहब की हूल मत देना जी मुझे,आप उनके फ़ालोवर हैं तो मैं उनका छोटा भाई ठहरा। मेल में कहा था उन्होंने एक बार। उनका नहीं मालूम लेकिन मैं नहीं भूला। सो आपकी कमेंट को पोस्ट पर भारी मान लेते हैं, लेकिन धमकी नहीं चलेगी जी।
वैसे तो बिना कसूर के झिलवा रहे हैं आप,लेकिन झेलेंगे जी। और कोई रास्ता है भी तो नहीं:)
vaah...bahut badhiya post.
जवाब देंहटाएंसर जी,
जवाब देंहटाएंलिखूंगा कि छा गए आज तो, हमेशा की तरह...तो आप बीच में ही रोक लेंगे.
"हम जैसे टपंचों का निशाना लगाने का तरीका ऐसा ही होता है, slightly deviated from target to hit the aim."
इस slight deviation को ही standard deviation कहते हैं? यक़ीनन कहते होंगे.
"खून तो खैर मीठा है ही मेरा" ... सहमत, पूर्ण सहमत. :)
बहुतों को आदत लगी है इस तासीर की...चखने के लिए Count Dracula होना जरुरी नहीं वैसे.
"जुटे हैं विद्वान, आलिम-फ़ाजिल"... इसी का तो रोना है.
फत्तू साहब के पिताजी को सीधे जातक कथाओं से टेलीपोर्ट किया न? भला लगा...
गाना इतना अच्छा लगायेंगे तो कमेन्ट लिखने में देर होगी ही...इस बार गलती मेरी नहीं है :)
गीत बहुत अच्छा है। मस्त पोस्ट । और सब सुधिजनों ने कह दिया। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकोसिस करूँगा जी, अपनी भेंस के चीचड़ काड़ने की..... फिलहाल तो थारा गाना सुनने का मन से.
जवाब देंहटाएं@जुटे हैं विद्वान, आलिम-फ़ाजिल - लगता है कुछ न कुछ फ़ैसला हो ही जायेगा
जवाब देंहटाएंअगर इस रुके हुए फैसले प्रकाशित हो जाए तो कृपया सूचित करना...... इतेजार रहेगा.
भैंस तो सै कोनी म्हारे धोरै, पर बैठे-बैठे अपने ही चीचड-कलीली काढे जाऊं सूं।
जवाब देंहटाएंजै राम जी की
आपका फत्तू सीरियसली बहुत 'क्यूट' है|
जवाब देंहटाएं@ धीरू सिंह जी:
जवाब देंहटाएंगूगल और रिलायंस वालों की....बल्ले-बल्ले है और क्या? मरवाओगे यार मुझे, खैर, दोस्त हो तो देखी जायेगी...।
@ राहुल सिंह जी:
राहुल सर, यू टू...:)
@ Indranil Bhattacharji:
सैल साहब, ये तो सूझी ही नहीं ’सरकाय लो कुर्सी’ वाली बात, आईंदा ध्यान रखेंगे।
@ अली साहब:
हम फ़रमान देने वाले कभी नहीं रहे जी। वैसे बड़े हैं आप, जो कहेंगे चुपचाप मान लेंगे हम, हर कुसूर हमारा।
@ उदय जी:
धन्यवाद।
धन्यवाद संजय !
जवाब देंहटाएंभापड़ी चेंटी, चिड़िया, बिलाई, कुकुर सबके पाछे नहा धोकर पड़े हो बाउजी...................काल को कोई ऊंदरा भी आवेगा, तो पींजडा त्यार राखना ............. अर कोई नाहरसिंग आ गया तब्ब !!!!!!!! ..............पर सही है जो छेड़खानी करे उनको कभी न कभी तो पटखनी देनी ही पड़े.................. कब तक टाल टाल कर खुद को सहनशीलता का तमगा खुद ही टांगते फिरे..................तत्त्व मीमांसा से मेरे जैसे कुतत्वों की बुद्धि में अगर थोड़ी सी भी तत्व की बात समझ में आ जाये तो फिर कोई तात्विकता की बात बने O_O .................अब्ब तो भैंस के चिचड़ भी ना छूट रिये हैं, देखने पर कभी न्यो लगता है कै भैंस के मुस्स हैं..................अब तो मान गए ना की अपनी खोपड़ी में भी भरा भुस्स है..
जवाब देंहटाएंअर अब क्या भुडापे में जाकर लाज शर्म करना सीखे हो !!!!!!!!!!!! हटाओ यह घूँघट,
जवाब देंहटाएं@ जीने के लिये न्यूनतम साधन अपनाना, और केवल स्वाद के लिये हिंसा का अपनाना, इन दो बातों में तो अंतर होना ही चाहिये।
जवाब देंहटाएं# सारी की सारी माथापच्ची का सार इसी एक लाइन में है सरजी, पर कोई समझना ही ना चाहता............पर गुरूजी बस यही आस है आप समझाते रहो हम समझते रहे ...................औरो की और जाने......फिर भी ना माने तो "राम जाने"
@ वाणी गीत:
जवाब देंहटाएंहां जी, कर्णप्रिय है गाना।
@ अभिषेक ओझा:
हा हा हा, कभी कभी संजय अनेजा जी पते की बात भी कर देते हैं:)
@ अरविन्द:
शुक्रिया,के.डी.।
@ अविनाश चन्द्र:
अमां हमारे रहते गलती तुम कैसे करोगे? हम हैं न तुम्हारे बड़े भाई, गलती सब हमारी हैं।
@ निर्मला कपिला जी:
आप जैसी शख्सियतों से आशीर्वाद मिलता है, खुशकिस्मत हूँ।
@ दीपक डुडेजा:
जवाब देंहटाएंबाबाजी, बाकी तो चलो ठीक सै पर यो गाना म्हारा ना सै भाई, हम तो बस टोह टाह के ल्याऐ सां।
@ अंतर सोहिल:
छोरा कामल सै भाई तू, किम्मै तो करे है। तोड़ाफ़ोड़ी से तो ठीके सै यो काम।
जै राम जी की।
@ नीरज बसलियाल जी:
फ़त्तू सबका है जी, आपका भी। थैंक्स नीरज जी।
@ अमित शर्मा:
नाहरसिंह आयेगा तो मारकर खा ही तो जायेगा? देखी जायेगी..। और यारा, पहले से ही मान रखा है "कि अपनी खोपड़ी में भी भरा भुस्स है"
काहे का घूंघट भाई, क्या छुपाया है? ऐंवे ही दोष देते हो:)
@ और यारा, पहले से ही मान रखा है "कि अपनी खोपड़ी में भी भरा भुस्स है"
जवाब देंहटाएं# महाराज सारे के सारे टिपण्णी मित्र कूटेंगे मिलकर मुझे......................... यह भुस्स वाली बात आपके नहीं मेरे मगज की है ..................
@ काहे का घूंघट भाई, क्या छुपाया है? ऐंवे ही दोष देते हो:)
जवाब देंहटाएं# कुछ मजा ही नहीं आ रिया...................अब आपको कौन जरुरत आन पड़ी खुद को बड़ा ब्लोगर जतलाने की जो मॉडरेशन का घूंघटा काड़ लिया ???
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअब हम क्या कहें जब हिन्दी फिल्मों के बडे बुज़ुर्ग पहले ही कह गये हैं:
जवाब देंहटाएंजब जानवर कोई इंसान को मारे
कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे
एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है
चुप क्यों है संसार ....
चुप क्यों है संसार ....
मित्र जी। हाथ में पत्थर रखा करो जी जाने किसे मारनी पड़ जाए अपने बचाव में। हिंसा का इतना तो साथ दो ही कि अपनी फटने से बच जाए। औऱ जो हिंसा ऐसी हो जाए तो उसे वैदिक हिंसा हिंसा न भवति कि श्रेणी में डालकर चिंता मुक्त हो जाओ। अपन तो यही करतेहै औऱ सही मानिए सफल हो जाते कई बार तो, हां हर बार कि गारंटी नहीं देता। हीहहीहीवाइन इज फाइन। अब ये पता तो बुढ़ापे में ही जाकर चलेगा। अभी तक तो कभी साथ जमती है बैठ कर इसलिए है तो फाइन ही। हीहीहीहीही मित्र क्या कहूं। हार या जीत। बात वही है कि अपनी हालत तो कुत्ते की पूंछ वाली है कि सीधी करें या न करें। यानि की वही आदर्श औऱ लोकव्यवहार। दोनो में से एक चुनना हो तो हमेशा मत ही मारी जाती आदर्श नाम के चोंचले के कारण औऱ उसे ही हाथ थमा देते हैं हम। औऱ कई बार इतनी जोर का झटका लगता है कि संभलने के बात पता चलता है कि सब कुछ लूट गया। लेकिन जी दोस्त हों तो कहने क्या। अगर अच्छे हों तो सुभान अल्लहा। इनके बिना वैसे भी रहा नहीं जाता। और दोस्त तो जी ऐसे ही होते हैं कि फिल्म देख लेंगे फिर कह देंगे बकवास है यार। क्या पहले नहीं पता कर सकता था। काहे का इंटेलीजेंट है तू। ठीक वैसे ही जैसे बच्चे का एडमिशन न करवा पाओ तो आज कहते हैं क्या फायदा तेरे मीडिया में होने का। जैसे मीडिया में होना हर बुरे और गलत काम को करवाने का ठेका हो। हद है यार। वैसे जैन साहब ने भी आखिर विसर्जन का मजा ले ही लिया न। हाहाहाह.खैर हमें तो मजा आ गया। पर सही में मजा या कहें आनंद ऐसी छोटी छोटी चीजों में आता है जो बड़ी चीजों में नहीं आता। मिट्टी की सौधी खुशबू…बारिश में भींगना। बाकी जो खोया हुआ समान है उसे तो लौटाने कोई तो आएगा नहीं। सो खुद ही ढंढना पड़ेगा। वैसे भी आग तो चली गई है। पर अंदर की आग जल ही रही है। चौरासी पर हमें भी गर्व है कि कोई कुछ न कर पाया हमारे आसपास। हमारे तो किरायेदार थे सरदार। रात में 2 बजे उसी दिन उनको बचा कर लाए हमारे पिता उनके दोस्त और एक अंकल के लड़के। बाकी सजा कभी बड़े कसूरवार को हुई है आज तक। चाहे वो 84 या फिर 89 का कश्मीर। वैसे एक बात है कि हम चाहें कुछ भी कर ले अब इस उम्र मे आकर क्या सुधरेंगे औऱ बिगड़ेंगे..जितनी पूंछ टेढ़ी है उतनी तो लगभग रहेगी ही। हीहीहीहीहीही
जवाब देंहटाएंAapke blog par pahali bar aaya hun. pura padhne ke bad phir aunga.Plz. visit my blog.
जवाब देंहटाएं@ अमित शर्मा:
जवाब देंहटाएं"महाराज सारे के सारे टिपण्णी मित्र कूटेंगे मिलकर मुझे"
म्हारी गेल यारी डालेगा तो कुटापा पैकेज में फ़्री है,सोच ले यारा इब भी!
मॉडरेशन लगाने भर से बड़े बनते होंते तो क्या बात होती, ऐंवे ही लगा लिया था। ऐंवे ही हटा देंगे किसी दिन, फ़िकर नॉट।
@ अदा जी:
कल्लिया जी स्वीकार अ’भार’।
आप आभार स्वीकार करें।
@ स्मार्ट इंडियन जी:
सही कहा जी बुजुर्गों ने,
’खुश रहना मेरे यार’
@ बोले तो बिन्दास:
अमां, बड़े चालू निकले मीडियामैन!
ढाई मिनट में सारी पोस्ट्स निबटा दीं!!
शुक्रिया रोहित, टाईम खोटी करने के लिये।
@ प्रेम सरोवर जी:
sure sir, it will be my peasure to visit your blog. thanx.
संजय जी,
जवाब देंहटाएंभैंस की चीचड़ काढने के लिए भैंस भी तो चाहिए. यहाँ तो सारी भैंसे बीन सुनने में मगन हैं. नहीं-नहीं पगुरा भी रही हैं साथ-साथ.
बिल्ली धोने तक तो ठीक था लेकिन निचोडना.........
जवाब देंहटाएंराहुल सिंह की टिपण्णी से सहमत. मुझे खेद है की हमने आपके ब्लॉग की सदैव उपेक्षा की है. मुझे भ्रम हो गया था की यह कोई सांप्रदायिक ब्लॉग है. क्षमा कर दें.
जवाब देंहटाएं@ prkant:
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ैसर साहब, :)
@ शरद कोकास जी:
धोने के बाद तो जी निचोड़ना जमता ही है।
@ P.N. Subramanian Ji:
सुब्रमणियन साहब, आप शर्मिंदा कर रहे हैं। मुझे तो उपेक्षा की जगह अपेक्षा से डर लगता है। फ़िर आप का स्नेह तो मुझे पहले से प्राप्त है, जो अपने ब्लॉग की हर पोस्ट की सूचना आप मेल द्वारा देकर लाभान्वित करते रहे हैं। बहुट छोटा हूँ आपसे, कृपया क्षमा, खेद जैसी भाषा लिखकर शर्मसार न करें।
वैसे ब्लॉग सांप्रदायिक ही है:)
@मो सम कौन ?
जवाब देंहटाएं... sab theek-thaak hai ... tasveer puraanee nikaal kar nai lagaa dee hai ... latest cheharaa bhee jaruree hai !!!
nice sir
जवाब देंहटाएंचींटी..चिड़िया..को मारा गलत काम किया। बिल्ली को पीटना तो अंधविश्वासी की मूर्खता। यह सही बात कही कि शाकाहारी होना कोई गर्व करने जैसी चीज नहीं..पंसद अपनी-अपनी। साफ-साफ अपने मन की बात लिखी यह अच्छा काम किया। इससे सुधार होने की पूरी संभावना है।
जवाब देंहटाएंpichli baar aapke blog par aayi thi, to follow nahin kiya, badi galti hui, nazmon ghazlon mein ulajh ke reh gayi ;) shukr hai aaj yahan aana hua
जवाब देंहटाएंbilli aur chidiya na sahi, cheentiyon se to main bhi bohot bohot pareshaan hoon....ek nahin, poori fauj hai....aur bade saleeke se dhaava bolti hain sab. Ek to maa ke ghar mein kabhi rasoi nahin sambhalni padi thi, maa ne shaadi karwaake ye sukoon bhi cheen liya...ab roz raat ko har kone kachune mein ghuskar safaai karti hoon sone se pehle...par subah koi na koi qila inke kabze mein milta hai. aur kuch nahin to shelf ponchke jo rakh aayi thi, us napkin ke faaye choosti milti hain...bhagwaan bachaaye inse...napkin ko fatkaarti hoon subah neend mein, to do char mere hi upar aa girti hain...uff...roz roz rangoli banaati hoon poore ghar mein lakshman rekha ki...par Charles Darwin ki theory hai...SURVIVAL OF THE FITTEST, inhe badi kushalta se yaad hai. bade tashan se usi rekha ke upar chehelkadmi karti hain...goya mujhe chidhati hon...
ye nature ke inexhaustible resources hain dost...kitni bhi hinsa kar lo...inki kami nahin padegi ;)
behr-haal....aapko padhne aayi thi, aur itni bak bak kar baithi...bas yahi buri aadat hai, bolti bohot hoon...muaaf karna...aur fattoo ko raam raam kehna :)
prayshchit kahanee nahee padee kya........? lagta hai nahee varna billee ko lekar thoda satark rahte....... ha ha ha ha ........
जवाब देंहटाएंpareshaniyo se ghire rahne ke beech bhee muskan chehre par aa hee gayee..........
credit lekhan shailee ko jata hai.......
shailee koun hai mat poochana......... bhavo ko samajhana.......... :)
मेरे करण-अर्जुन आयेंगे!
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
नमस्ते!
शाकाहारी हैं तो फिर शिकार क्यूँ?
(वैसे ज़रुरत पड़ने पर और आत्म रक्षा में थोड़ा-बहुत अलाऊड है)
'अन्दर से आने/ ना आने वाली फीलिंग' के अलावा एक और समानता जोड़ लीजिये:
मैं भी बांचता नहीं हूँ. अंकल (सहकर्मी) दारू पीता हैं और मैं जूस. वो मच्छी के पकोड़े खाते हैं और मैं पनीर के!
और हां, आपने 'तू' कहा, अच्छा लगा. अगली बार 'तड़ाक' भी कहियेगा!
सादर,
आशीष
--
नौकरी इज़ नौकरी!
जब इसे पढ़ना चाहिए था तब तो पढ़ा नहीं पर अब पढ़कर भी आपके इस लेख का मर्म अच्छे से समझ गया हूँ।
जवाब देंहटाएं