एक गज़ल लगाई थी कभी अपनी एक पोस्ट में, ’चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना डाला,’ फ़िल्म थी आवारगी और गाने वाले थे गुलाम अली साहब। चाँद, टूटा-फ़ूटा, आवारगी और गुलाम अली, इन चारों में अपनी पसंद के हिसाब से रैंकिंग देनी हो तो चारों संयुक्त विजेता सिद्ध हो जायें। चारों एक से बढ़कर एक पसंदीदा चीजें हैं अपनी। यही वजह थी कि गज़ल बहुत पसंद थी, है और रहेगी। एक लाईन है इसमें, ’मैं इस दुनिया को अक्सर देखकर हैरान होता हूँ’ - ये जी हमारी पर्सनैल्टी का बड़ा अहम हिस्सा है। देखना और हैरान होते रहना, न देखने से हटते हैं और न हैरान होने से बचते हैं।
पौने तीन साल पहले जब यहाँ आया था तो शायद शुरू के दूसरे तीसरे दिन ही बैंक में एक ग्राहक आया, छ; फ़ुटा बंदा, खड़ी मूंछें, भरी-भरी दाढ़ी, भव्य पर्सनैल्टी और जो भी दूसरा ग्राहक आता, ’बाई जी, सत श्री अकाल’ कहकर अभिवादन कर बुलाता उसे। हो गये जी हम हैरान कि भाई ये कैसी\कैसा बाईजी? इससे पहले बाईजी से अपना वास्ता या तो कोठों पर पड़ा था, मेरा मतलब है जी कि इस शब्द से अपना परिचय फ़िल्मों, उपन्यासों में दिखाये गये कोठों की मालकिन को संबोधित किये जाने तक से संबंधित था। समझाया खुद को कि जमाना बदल रहा है, हो सकता है ……। दुनिया इतने में कहाँ रुकने वाली थी, थोड़े दिन में कोई बंदा हमें भी बाई जी कहकर बुला गया। धरे रह गये सारे चरित्र प्रमाणपत्र, शराफ़त का ये अंजाम? हमें डेली पैसेंजर साथी संजय भाई साहब या संजय भैया कहकर बुलाया करते थे, हमारा प्रेमी स्टाफ़ भोला हमें संजय बाऊ कहकर बुलाया करता था लेकिन ’बाईजी’ ? लेकिन क्या कर सकते हैं जी, कहते हैं कि कोई मार पीट कर रहा हो उसका हाथ पकड़ा जा सकता है लेकिन बोलने वाले की जबान नहीं पकड़ी जा सकती। वैसे भी बापू ने बुरा न देखने, सुनने और बोलने के अलावा ऐसा भी कहा बताते हैं कि ’ग्राहक भगवान होता है।’ ठीक है भगवान, बना दो जो बनाना है तुम। हमारा क्या है, हमने कौन सा यहाँ परमानेंट लंगर डालना है, चले ही जाना है यहाँ से तीन साल बाद।
लेकिन बात खटक तो गई ही थी, शाम को हमारे गार्ड साहब से जिक्र चला। हथियार वाले बंदों से अपनी सैटिंग हमेशा से सही बैठा करती है। जब उनसे बात की तो वो हँस दिये, “साबजी, मैं फ़ौज विच नौकरी दे दौरान राजस्थान रया सी, उत्थे मैं वी इस ’बाईजी’ दे चक्कर विच बड़ा परेशान रया। अलग अलग जगह ते एक ही शब्द दे अलग अलग मायने होंदे ने।” उन्होंने बताया कि पंजाब के इस इलाके में बाई जी, या बाई, या बई अपने से बड़े भाई को कहते हैं। आदरसूचक शब्द है, इसलिये चिंता की कोई बात नहीं। कुहासा छंट गया, अब याद आया कि एक गाना देखा था ’जी नईं जान नूं करदा रंगली दुनिया तों’ और उसके गायक का नाम लिखा हुआ आता था पम्मी बाई। लो जी, खुश हो गये हम। हमें खुश या दुखी होने के लिये बहुत बड़ी बातों की दरकार कभी रही भी नहीं, जरा जरा सी बात पर हो जाया करते हैं, हा हा हा।
अब आपको इसीसे संबंधित एक मजेदार बात बताते हैं। पच्चीस छब्बीस साल का जमींदारों का एक लड़का है इसी गांव का, मस्तमौला सा,। स्वभाव ऐसा सरल है उसका कि कुछ पूछिये नहीं। न उसे किसी की जाति बिरादरी से मतलब है, न किसी की माली हैसियत से। यारों का यार और स्वभाव वही कि ’दिलबर के लिये दिलदार हैं हम और दुश्मन के लिये तलवार हैं हम। अपनी सही जमने लगी थी उससे। सारे गांव के जितने छंटे हुये, उभरे और उभरते सितारे, उम्र में चाहे उससे पन्द्रह बीस साल बड़े ही क्यों न हों, उसे बाईजी ही कहकर बुलाते हैं। तो हमारे इस बाईजी के बापू एक दिन कहीं जा रहे थे और सड़क के दूसरी तरफ़ एक दुकान पर अड्डा जमाये तीन चार क्रीमी लेयर के बंदे कुछ प्रोग्राम बना रहे थे। प्रोग्राम में बाईजी की शिरकत जरूरी थी, सामने से उसके बापू को आते देखकर एक ने आवाज लगाई, “ओ रूपे......., बाईजी कित्थे है, घर हैगा या खेत ते?” अब बापू ने बोलना शुरू किया, “भैण दे यारों, इधर आओ तुसी। मैं दसदा हां त्वानूं(मैं बताता हूं तुम्हें), मुंडे नूं कैंदे ओ बाईजी ते उसदे बापू नूं बुलांदे हो, ओये रूपे?(लड़के को कहते हो बाईजी और उसके बाप को बुलाते हो ओये रूपे?)
मैं लेट हो गया यारों, मेरा ब्लॉग बनाने से पहले ही बाईजी चला गया है दूसरे मुल्क। न तो एक और फ़ौजी आ गया होता अपनी साईड:))
एक और पेंशनर है हमारा, जब भी पेंशन लेने आता है तो अपनी एंबैसेडर कार में आता है। हर बार कह्ता था, कभी जरूरत हो गाड़ी की तो मुझे फ़ोन कर देना। एक बार सरकारी काम से स्टाफ़ को कहीं जाना था और उस दिन शादियों का मुहूर्त होने के कारण कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी, मुझे उसकी याद आई। मैंने कहा कि उस बाई को फ़ोन कर देता हूँ, वो जरूर आ जायेगा। स्टाफ़वाले बिदक गये, “न जी, उसकी गाड़ी में कौन बैठे? दिखता तो है नहीं उसे।” मैंने कहा, “यार, हर महीने तो गाड़ी लेकर आता है वो। अगर दिखाई न देता हो तो कैसे इतने दिन हो गये और कोई एक्सीडेंट वगैरह की बात नहीं सुनी?” बताया गया कि बचपन से इसी गांव में रहा है तो एक एक रास्ता उसका नापा हुआ है, रही बात सड़क पर चलने वालों की, तो जहाँ दूर से उसकी एंबैसैडर दिखाई देती है, शोर मच जाता है ’आ गई बाई दी गड्डी’ और लोग बाग खुद ही दौड़ कर और भाग कर रास्ते ऑल-क्लियर कर देते हैं।”
मैं सोचने लगा और महसूस करने लगा वो नजारा और सुगबुगाहटे – एंबैसैडर का घर्घर नाद सुनो, सड़कें खाली करो कि बाई की एंबैसैडर आती है। रैप्युटेशन और गुडविल कितनी मुश्किल से बनती है? कितनी मेहनत लगी होगी बाई को अपनी दहशत कायम करने में, शायद बहुत ज्यादा। अगली पेंशन लेने आयेगा तो करूंगा रिक्वेस्ट कि बाई, मेरा फ़ालोवर बन जा न यार। थोड़ा सा संगति का असर हो जाये मुझपर भी कि दूर से कहीं पोस्ट आती दिखे तो शोर सा मच जाये ’आ गई संजय बाई दी पोस्ट, आ गई।’ मेरी गुडविल बन जायेगी और संभावित मठाधीशी की तरफ़ एक कदम और उठ जायेगा:))
ह्म्म्म्म्म् तो आ ही गई.....
जवाब देंहटाएंबाई जी! अपना ब्लॉग खोलते ही टॉप में आपके एम्बैसेडर की गुर्राहट सुनाई दे गई..
जवाब देंहटाएंमो सम कौन.. बात एक मायने दो... 10 मिनट पहले...
भगवान का लाख लाख शुक्र अदा किया कि दस मिनट पहले आ जाता तो बस हो ही जाती अपनी बल्ले बल्ले, एम्बैसेडर के थल्ले!! सो चले आए नारियल फोड़ने... बस जी अब हँसते हँसते सोने जाएँगे तो ख़ाब भी सुंदर आएँगे!!
और हाँ.. ये जो आपने बाई जी लोगों का मुजरा.. सॉरी पंगड़ा दिखाया तो उसते उत्ते भी दिल गार्डेन गार्डेन हो गया! आपके मठ के बाहर ही हम भी धूनी रमाए बैठे हैं!!!अलख निरंजन!!
बन गई गुडविल.......
जवाब देंहटाएंक्या लिखूँ?
जवाब देंहटाएंसुबह खुशनुमा है, और उस पर यह पढना। :)
बाई जी के किस्से जबरदस्त हैं, खास कर सरल स्वाभाव वाले बाई जी का।
बीते दिनों एक चाईनीज़ फिल्म देखी, "आई पी मैन"। अगर ऐसे लोगों को भी कोई मठाधीश कहता है तो कहता रहे, उन्हें क्या फर्क पड़ जाना है।
@रैप्युटेशन और गुडविल कितनी मुश्किल से बनती है?
सब कुछ तो इसी में है :)
एक सवाल: फत्तू साहब की छुट्टियाँ लम्बी नहीं हो गयीं इस बार?
इस बार जल्दी आ गया, अपनी पीठ ठोकना तो बनता है।:)
दादा/ सर जी/ बाई जी/ गुरु जी
जवाब देंहटाएंआपकी गुडविल तो पहले से ही बनी हुई है जी पर डर वाली नहीं प्यार वाली। आपको आता देखकर लोग डरकर भागते नहीं हैं बल्कि आपके पास खिंचे चले आते हैं आपके गले लगने के लिए/ बातें करने के लिए/ आपका सानिध्य पाने के लिए/ आपका आशीर्वाद पाने के लिए।
और आपने ही कहा था कि आप पहले से ही मठाधीश हैं फिर आज ये संभावित का राग क्यों छेड़ रहे हैं? तो आप मठाधीश हैं और रहेंगे जिसकी सेहत पर पड़ता है पड़ा करे।
नमस्कार :)
चाँद, टूटा-फ़ूटा, आवारगी और गुलाम अली - मेरे लिये तो आवारगी अभी भी प्रथम है।
जवाब देंहटाएंशब्द का स्वर भी सुने, स्वर में अर्थ का भेद छिपा रहता है।
काम वही, कहानियाँ वही, नौकरी का ज़िला भी वही। और तो और पसन्दीदा गज़लें भी वही। गनीमत है कि यह विडिओ अलग निकला।
जवाब देंहटाएंहमें तो कल दिन भर लगता रहा था जी कि मो सम ... की पोस्ट आ रही है, क्यूं पता नहीं. महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में गजरा और बाई का सम्मान और उत्तर भारत में इसका मतलब... लाठी-गोली चल जाए. और मराठी बा (ज्योतिबा) का गुजराती बा (कस्तूरबा)में लिंग परिवर्तन हो जाता है. एक गंभीर हो गई बहस में (गूगल दौर के पहले)यह साबित करने के लिए कि ज्योतिबा फुले पुरुष हैं, मुझे उनकी पत्नी की तस्वीर खोज कर लानी पड़ी थी.
जवाब देंहटाएंआखिरी वाक्य में 'फर्क' लिखना भूल गया था जी तो सुधार कर पढ़ लें।
जवाब देंहटाएंओये !!! आ गयी बे !!! संजय बाईजी की पोस्ट आ गयी ... ओये रास्ता दो ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट है | एक किस्सा हमारा भी है , गढ़वाली में बहु को जो शब्द कहा जाता है, जो सुनने में राजस्थान में झाड़ू लगाने वाली को संबोधित करने जैसा हैं | बड़े भाई की ससुराल राजस्थान में है | तो अब आप लगा सकते हैं हमारे घर के बड़े जब भी भाभी को संबोधित करते हैं तो भाभी को कैसा महसूस होता होगा | :)
भाई से बाई बन गया दिखता है। राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में बाई जी का अर्थ माँ, बड़ी बहन और मालकिन होता है।
जवाब देंहटाएंराजस्थान में भाई को बाई नहीं कहते हैं ...बाई अपनी बहन बेटी के लिए प्रयुक्त किया जाता है ...भाभियाँ भी अपनी ननद के नाम के आगे बाई जी लगाकर बात करती हैं ...बच्चे अपने स्कूल की सफाई कर्मियों को बाईजी(स्त्रीलिंग ) या भायजी (पुल्लिंग )कहकर बुलाते हैं , मतलब सिर्फ मेरे बच्चे नहीं , स्कूल का हर विद्यार्थी स्त्रीलिंग /पुल्लिंग दोनों ही :)
जवाब देंहटाएंननिहाल में तो किसी भी बच्ची को बाई ही कहा जाता है ..और मेरी हमेशा इनसे ठनी रहती थी !
बाईजी आपकी पोस्ट आते ही हम भी साईड हो लेते है सब काम छोड-छाड के और जम जाते हैं कम्पयूटर पे।
जवाब देंहटाएंमठाधीश्वर तो बन ही गये है हमारे।
गुडविल की चिंता काहे करते हो वो तो आपकी है ही तभी आपकी पोस्ट का इंतजार सारा ब्लागजगत करता है।
फत्तू खो गया है जी अगर आपको मिले तो ...................................
हाँ एक बात और पूछनी थी यदि बुरा ना माने तो
सारा दिन की थकान के बाद भी आप रात को 12 बजे पोस्ट लिखते है नींद नही आती
विडियो अभी देखा नहीं ...
जवाब देंहटाएंगुलाम अली जी की आवाज़ के तो हम दीवाने हैं और ये ग़ज़ल तो और भी खास है ....
मजेदार रचना...स्वाद आ गया भाई जी...
जवाब देंहटाएंनीरज
बचपन में जब गांव आते थे, तो मिलने बुआजी भी आ जाती थी. अब उन्हें मम्मी हरदम 'बाईजी बाईजी' कहती रहती थी....हमें कुछ समझ नहीं आता था....सोचते थे मम्मी से बुआजी नहीं कहा जा रहा...सो बाईजी कह रही हैं
जवाब देंहटाएं;)
हाँ जी....हम भी राजस्थानी हैं !!!
वैसे हम दरअसल हैं mixed fruit jam, पैदाइश भुज गुजरात की, परवरिश बंगलौर में....और अब रहते हैं अम्बाला में....दिल तो है बंग्लोरियन, पर टांग...राजस्थानी ! जितनी कोशिश करते थे राजस्थान से बचने की....उतना ही वहीँ जा गिरते थे...जा गिरते हैं ;) रहे बंगलौर में, अमरीकन कंपनी में जॉब कर लिया...आधे अमरीकन आधे बंग्लोरियन हो गए....पर जिंदगी खींच कर ले गई राजस्थान.....शादी हो गई ! फिर हुज़ूर के साथ आ गए अम्बाला.....पर हर दूसरे महीने पहुँच जाते हैं ससुराल....राजस्थान !!!! इस शब्दों और बोली के हेर फेर में हम भी खूब पड़े हैं..... हीही
:)
is se hum bhi 2-4 'culcutta' ke 'kalakar street' me varsh '93 me hue the...kuch dino tak, jab tak hame pata nahi tha .... sochte the 'kalakar street' me kalakar hone chahiye.....likin yahan to'byji' ka bolbala.....is kadar hai.....ke awaz ke nam pe bus ki po-pan ya phir rehri-patriyon wale ki 'a baiji' 'o baiji' hi sunne ko milta tha.
जवाब देंहटाएंbakiya kashvi bachi rahe 'mathadhishi' to ati-jati rahegi.....
"jis me himmat hai...mousam ke sitam sahta hai..
pate to jhar jaya karte hain per khara rahta hai
pranam.
मुंबई में घरो में काम करने वाली को बाई यानी कामवाली बाई कहते है, ये वाले बाई जी मेरा एक काम तो करते है एक हँसने वाली पोस्ट के साथ | एक समय था जब ब्लॉग ओपन करती थी तो सबसे पहले हास्य फुहार ब्लॉग को पढ़ती थी पर वो जगह काफी पहले आप ने ले ली, और मठाधीशी शुरू करने की पहली शर्त ये है की दो चार चम्मच छुरी बनाया जाये और आप की अम्बेसडर जैसी गुड - फिल तो आप पहले ही कर चुके है " चिड़िया बिल्ली " वाली पोस्ट पर जब सुबह प्रकाशित करने के बाद उसे वापस ले लिया और सभी ने आप की पोस्ट पढ़ने की बेकरारी का जिक्र टिप्पणियों में किया |
जवाब देंहटाएंइतनी तारीफ काफी है की और करू काहे की आज तो अच्छी पोस्ट ठेली है देखिये सब के सब तारीफों के पुल बनाये जा रहे है अब आप की अम्बेसडर आराम से इस पर से गुजरेगी डरे नहीं पुल असली और मजबूत है |
बात एक और मायने दो...
जवाब देंहटाएंइसी तरह किस्सा एक घटी दो जगह ..........बाकि जवाब मेरी पोस्ट पर |
इस संजय दी गड्डी का इंतजार हमेशा रहता है. जो हमेशा मुजिक सिस्टम के साथ आती है. ........आपकी तो गुडविल ही गुडविल है. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंवाह बाई जी...सारी भाईजी वाह.:) वैसे हमारे इधर मालवा प्रांत में मां को बाई कहकर बुलाते हैं. शब्द हर जगह पर अलग अलग मायने रखते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@ अर्चना जी:
जवाब देंहटाएंहाँ जी, आ ही गई है।
@ चला बिहारी....:
अरे सलिल भैया, बाहर काहे बैठे हैं? भीतर आना था न:))
@ भारतीय नागरिक:
हाँ सरजी, विल तो गुडगुड ही है।
@ अविनाश चन्द्र:
अरे राज्जा, तुम जल्दी आये, पीठ तो हमें अपनी ठोकनी चाहिये।
@ सोमेश:
राग छेड़ने की कोई बात नहीं यार, किसी ने खुश होने का मौका दिया तो उसे सेलिब्रेट कर रहे हैं:)
लेकिन बात खटक तो गई ही थी, शाम को हमारे गार्ड साहब से जिक्र चला। हथियार वाले बंदों से अपनी सैटिंग हमेशा से सही बैठा करती है।
जवाब देंहटाएं:):)
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
जवाब देंहटाएंपसंद अपनी अपनी जी, अपने लिये चारों एक सम हैं।
@ स्मार्ट इंडियन:
अच्छा उस्ताद जी, गनीमत सिर्फ़ उसी बात की है जो अलग है? कोई बात नहीं जी।
@ राहुल सिंह जी:
सही कहा आपने, और बहुत से शब्द हैं - काका कहीं चाचा और कहीं छोटा बच्चा।
@ नीरज बसलियाल:
शुरू में तो बड़ी भाभीजी बहुत हैरान हुई होंगी, है न?
ek arase baad blog par aana hua.lagta hai bhaijee ka uccharan nahee kar pate hai vo bh ,, ,b ,,, kahte hai...koi baat nahee......filhaal aapkee lekhan shailee ke to hum shuru se hee kadrdaan hai jee Sanjay Bhaijaan .
जवाब देंहटाएंहुकुम !
जवाब देंहटाएं"हथियार वाले बंदों से अपनी सैटिंग हमेशा से सही बैठा करती है"…
हा हा हा……!
"रैप्युटेशन और गुडविल कितनी मुश्किल से बनती है? "……
सत्वचन बाई सत्वचन ! बड़ी मुश्किल से !
अपन तो अभी तक इस द्विअर्थी घालमेल से बचे हुए हैं पर मुस्तकबिल की कौन जाने ! जेनरल नालेज पहले से बढा लेना अच्छा है :)
नमन !
वाह! हुज़ूर! पोस्ट तो हमेशा की तरह है ही जिस में आपका मिजाज़ झलकता है। पर "रंगली दुनिया नूं... " आपके ब्लोग पर पढकर यकीनन "मज़ा" आ गया!
जवाब देंहटाएंजी हाँ गाना कानों से पढ रहा था, मैं!
जवाब देंहटाएंभाई ऐसा क्यों चाहते हैं आप?
जवाब देंहटाएं'आ गई संजय बाई दी पोस्ट, आ गई।’ और लोग साइड हो जायेंगे ? जैसे आई वैसे जाने दो. :)
@ रैप्युटेशन और गुडविल कितनी मुश्किल से बनती है?
जवाब देंहटाएंसंजय जी,
मठाधीशी के लिए इन दोनों की बिलकुल ज़रूरत नहीं होती, ज़रूरत होती है तो बस...हुड..दबंग..दबंग हुड..दबंग..दबंग..
जो आपके बस की बात नहीं है जी. आप तो खामख्वा मुन्नी की तरह बदनाम होने के जुगाड में लगे हैं :)
@ Dr. Ajit Gupta Ji:
जवाब देंहटाएंयकीनन भाई से बाई बना है। राजस्थान में बाई सा महिलाओं के लिये एक सम्माननीय संबोधन है। सवाई माधोपुर में मेरे एक मित्र के यहाँ मैंने देखा है, चार पांच साल की छोटी सी बच्ची को सब तँवरी बाईसा कहकर बुलाते थे।
@ वाणी गीत:
वाणी जी, राजस्थान का इस संदर्भ में जिक्र करते समय गार्ड साहब का कहने का उद्देश्य यह था कि स्वभाववश जब वह किसी पुरुष को बाईजी कह बैठते तो लोगों को बहुत अटपटा लगता था। आपकी दी जानकारी भी रोचक है।
@ दीपक सैनी:
तुम भाईयों(बाईयों) का प्यार स्नेह मिलता है, इसके आगे मठाधीशी गई ...।
और यार वो बारह वाली रेल गुजरती है तो नींद खुल जाती है न, कभी कभी:))
@ नीरज गोस्वामी जी:
शुक्रिया नीरज भा जी, तुसी आ जांदे हो तो मोगरे दी डाली ही आ जांदी है:)
@
अब मुझे आपकी टिप्पणी का कल तक इंतजार करना पडेगा
जवाब देंहटाएंअब 10:15 pm हो चुके है घर चलने का टाईम हो गया
कोई बात नही मठाधीश्रवर बिजी है शायद
लो हो गया लोचा मेरे कमेंट से पहले ही अपना ठोक दिया
जवाब देंहटाएं@ saanjh:
जवाब देंहटाएंहिन्दी में बायोडाटा!! भैरी गुड।
@ संजय झा:
ल्यो बाई, तुम भी मजे लो सिटी ब्यूटीफ़ुल के।
@ anshumala ji:
बहुत है जी इतनी तारीफ़,यही नहीं पचेगी:)) हमारी अंबैसेडर नहीं है जी, मितरां दी बैलगड्डी है। ’चिडि़या बिल्ली’ वाली मिस्टेक करी हमने थी लेकिन करवाई इस गूगले ने थी। आज भी कमेंट ऑप्शन नहीं खुल रहा था बहुत देर तक। आपकी पोस्ट पर जाकर, रुककर लौटा हूं। कसूर इसका होता है, लेकिन फ़ील गुड हमारा हो जाता है।
@ उपेन्द्र ’उपेन’:
धन्यवाद उपेन्द्र भाई।
@ ताऊ रामपुरिया:
जवाब देंहटाएंताऊ, घणे दिन में संभाल्या भतीजे को:)
बात से बात निकलती है, इधर लुधियाना, मोगा वगैरह का इलाका भी मालवा भी कहलाता है। इसे क्या कहेंगे?
राम राम।
@ पी.सी. गोदियाल ’परचेत’:
सही कहा है गोदियाल साहब, मान लिया करो न कभी हमारी बात भी:)
@ सरिता मैडम:
बहुत समय के बाद ही सही, आप आईं तो, आभारी हूँ।
भ का ब वाली बात तो नहीं लगती, जब गाली देनी होती है तो खूब जबरदस्त उच्चारण करते हैं।
आप कदरदान नहीं हैं, पैट्रन हैं।
@ रवि शंकर:
अनुज, जो पिछली पोस्ट पर कहा था अवि को, वही कहता हूँ रवि को - बचे रहो कुछ चीजों से:) हर नालेज फ़ायदेमंद भी नहीं। जिनकी नीयत सही हो,नियति की परवाह वो नहीं करते।
@ ktheLeo:
मजा या मजा-सा? :))
@ अभिषेक ओझा:
जवाब देंहटाएंफ़ूहड़ चाले तो नौ घर हालै(फ़ूहड़ जब चलता है तो नौ घर हिलते हैं), अग्रिम चेतावनी देना गलत है क्या?:))
@ prkant:
प्रोफ़ैसर साहब, तभी तो हंसी आती है।
@ दीपक सैनी:
मजे ले रिया है बालक? हा हा हा।
कोई बात नहीं, ले ले। आज फ़िर नैट कनैक्शन दिक्कत दे रहा है नहीं तो जवाब देने की कब से कोशिश कर रहा था।
@ मो सम कौन ? जी ,
जवाब देंहटाएंबाई से छेड़छाड की ख़बरें पहले भी सुन रखी थीं पर किस्सा पहला हुआ :)
बाई-पास हो तो , रास्ते और जिंदगी दोनों ही बड़े हमवार हो जाते हैं जी :)
वैसे ये धोनी जैसी अदा कहां से सीखी आपने कि बाई को रोकने की एक्टिंग तो की पर बाइज्जत गुज़र जाने दिया :)
देखो जनाब जब बाई के हाथ बर्तनों ,उसकी गोद बच्चों , उसके पैर घुंघरुओं और उसके साथ से गाड को भी ऐतराज नहीं है तो खाली पीली भाई की चिंता क्यों करना :)
हम तो रोटियां बनाने वाले बंदे को भी नानबाई कहते हैं ! उसे नानभाई बोलें तो जमेगा क्या :)
संजय जी नमस्कार. मैं वही बेनामी हूँ जिसने आपको मठाधीश कहा था. लगता है आपने मेरी बात को सीरियसली ले लिया और खुद को सच में मठाधीश समझने लगे. मैं तो मज़ाक
जवाब देंहटाएंकर रहा था. हा हा हा :)
वैसे आपने सही समझा मैं आपका अपना ही हूँ. बस जरा टांग खिंचाई कर रहा था. नाम लेकर तो सब मजे लेते हैं मैंने सोचा कि बेनामी बनकर आपके मज़े लिए जाएं. पर अफ़सोस ये है कि आप मुझे पहचान नहीं पाए. चलिए अब कोशिश कीजिए.
Identify me if u can. :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसंजय जी आपके लेख चुराए जाते हैं. आपकी पोस्ट पर लोग जल भुन कर बेनामी टिप्पणियां कर जाते हैं. जनाब अब तो आप सेलिब्रिटी हो गए हैं. पोस्ट हमेशा कि तरह मजेदार है.
जवाब देंहटाएं@ अली साहब:
जवाब देंहटाएंअली साहब, न करें चिंता? मान लेते हैं। एक बाई की चिंता थी, दूसरे बाई की मान लेते हैं:)
@ बेनामी जी:
प्रति नमस्कार जी। यार, बहुत सीरियस मजाक करते हो आप। मैंने तो विज़िटिंग कार्ड भी बनने दे दिये थे:)
टांग अच्छे से खींचना,कसर बाकी न रहे नहीं तो अपने कैसे कहलवाओगे खुद को? जैसे मजे आयें आपको, वैसे ही लो।
न पहचान पाने का अफ़सोस नहीं है दोस्त,पहचान गये तो अफ़सोस होगा। भरम बना रहे, इसलिये नहीं पहचानते, जाओ.. हा हा हा।
@ अदा जी:
अपने ही लोग हमसे मजे ले रहे हैं,और आपकी खुशी छिपाये नहीं छिप रही है जी।
सरमद की कहानी याद आ रही है हमें, ..हाँ नहीं तो...!!
@ विचारशून्य:
बन्धु, मान तो लिया उन्होंने कि अपने हैं, अब और क्या चाहिये?तुम्हें हमारी याद है अभी, अच्छा लगा।
संजय बाई जी !
जवाब देंहटाएंइससे पहले बाईजी से अपना वास्ता या तो कोठों पर पड़ा था, मेरा मतलब है.....
कोई अधिक चाहने वाला आ गया तो तुम्हारे इस वाक्य पर एक पोस्ट लिख मारेगा
फिर उसके बाद इकतारा बोले सुन सुन ....
:-)
खैर पोस्ट मस्त रही संजय ! शुभकामनायें बाई !
@ सतीश सक्सेना जी:
जवाब देंहटाएंसुन रहे हैं जी, और भी सुन लेंगे:)
आप सम बिग बाई की शुभकामनायें साथ हैं तो मो सम को क्या गम?
शुक्रिया।
@ हथियार वालों से कुछ ज्यादा ही सेटिंग....
जवाब देंहटाएंमुझे लगा ही था कि ये बंदा हथियारों के प्रति कुछ ज्यादा ही आकर्षित रहता है तभी जब देखो तब खुखरी सी धार लिये लिखता है :)
मस्त राप्चिक पोस्ट है.... एकदम मस्त।
हमारे एक मित्र थे. बैंक आफ़ बड़ौदा की, फ़ैजाबाद ज़िले के गांव की किसी शाखा में 1984 बैच में, सीधे अफ़सर होकर गए. वहां उस गांव में कभी एक सिनेमा-हाल हुआ करता था जिसे मालिक ने आलू के कोल्डस्टोरेज-गोदाम में बदल दिया था. उसके पास भी एक एंबेस्डर कार थी जिसमें सीटें नहीं थीं. ड्राइवर के लिए एक कुर्सी लगाई गई थी. एंबेस्डर कार, आलू-ढुलाई में काम आती थी, जब भी ये कार बैंक आती थी तो सभी लोग बाहर आकर उसे बड़ी हिकारत की नज़र से देखते थे कि -"आह, कितने दिन बाद कोई कार तो देखने को मिली"
जवाब देंहटाएं:)
badiya prastuti lagi
जवाब देंहटाएं@ सतीश पंचम:
जवाब देंहटाएं:))
@ काजल कुमार जी:
one more feather in my cap:) आपका इतना बड़ा कमेंट मैंने नहीं देखा कभी, मजा आ गया।
@ कविता रावत जी:
धन्यवाद कविता जी।
गुडविल की चिंता काहे करते हो sir ji
जवाब देंहटाएंsa ho jayega
अपन जितने व्यस्त आप उतने लिखने में मस्त। ढेर सारी कुटिलता जमा हो गई है। छो़डेंगे तो एक भी नहीं हाँ यह बताइये कि अपना फत्तुआ कहाँ है ?
जवाब देंहटाएंहैरानी में डाल देने वाली बातें. हां, गजल की खूब कही आपने.
जवाब देंहटाएंहोता है ऐसा भी. और हां, ग़ुलाम अली साहब की ये ग़ज़ल बहुत सुन्दर है.
जवाब देंहटाएं@ ओम कश्यप:
जवाब देंहटाएंभाई साहब, जो चीज कम होती हैं, वे परवाह ज्यादा मांगती हैं:)
@ देवेन्द्र पाण्डेय जी:
आप मत छोड़ना देवेन्द्र भाई, इस काम के लिये तो हम हैं न.., हा हा हा।
@ राजेश सिंह जी:
स्वागत है सर, हमारी बेसिर पैर की बातें तो हैरान ही करेंगी। आशा है स्वास्थ्य अच्छा है अब आपका।
@ वन्दना अवस्थी दुबे:
वन्दना मैडम, आपका आना अच्छा लगा। शुक्रिया।
हा हा हा बढिया बताया शब्दो का अर्थ अनर्थ भी करा देता है
जवाब देंहटाएंकाश उस समय साथ होता।
जवाब देंहटाएंउनका कमेंट उपर नही देखा तो चिंता हुई, फिर नीचे दिखा तो तसल्ली हुई।
लेले लेले हो गई भाईसाब... 😊
जवाब देंहटाएंलेले लेले हो गई भाईसाब... 😊
जवाब देंहटाएं