ड्राइविंग लाईसेंस बनवाना था और समस्या ये सामने आ रही थी कि मेरे पास छुट्टी की कमी थी| अथोरिटी का हाल तो मालूम ही था, बिना किसी एजेंट के जाने का मतलब था पूरा दिन खराब करना| मेरा भारत महान की एक खास बात ये है कि यहाँ हर काम के लिए मध्यस्थ उपलब्ध रहते हैं, यत्र तत्र सर्वत्र| एक ऐसे ही बंदे का पता चला तो उससे इस बारे में बात की| पैसों की बात तय हो गई, साथ ही यह बात कि एक घंटे में फ्री कर दिया जाऊँगा, जिसमें लिखित परीक्षा, फोटो, फिंगर प्रिंट्स वगैरह सब काम निबट जायेंगे| सरकारी फीस से जितने ज्यादा रूपये देने पड़ रहे थे, एक छुट्टी बचाने और बिना किसी सिफारिश के अथोरिटी में जाने पर पेश आने वाली जिल्लतों के बदले ये अतिरिक्त खर्चा ठीक ही लगा|
नियत दिन और समय पर सिंह साहब के दफ्तर में पहुँच गए| देखा पांच छ हमारे जैसे बकरे पहले से ही मौजूद थे| लिस्ट के नाम पूरे होते ही सिंह साहब ने नारा लगाया, 'चलो जवानों' और सब जवान उनकी स्कोर्पियो में सवार होकर चल दिए | गाड़ी स्टार्ट करने से पहले उन्होंने हम सबको ब्रीफ करना शुरू किया, "मेरी गल्ल सारे ध्यान नाल सुन लओ, ओए अंकल बंद कर ऐ तेरी हनुमान चलीसा, अगले घंटे डेढ़ घंटे तक सिर्फ मेरी गल्ल त्वाडी सबदी गीता कुरआन हैगी| जो मान लेगा, सुख पायेगा और जिसने अपना दिमाग इस्तेमाल किया और मेरे कहे से हटकर कुछ काम कीता तो अपने नफे नुकसान का जिम्मेदार वो खुद होएगा| पैसे वापिस नहीं मिलने वाले हैं, इसलिए चंगा ये होगा कि मेरी मानो और कामयाब होवो| सबसे पहले अथोरिटी में written test होना है और उसमें पास होना जरूरी है| तुसी सारे पेन्सिल नाल आंसर शीट विच सारे जवाब दे 'C' ओप्शन नू टिक करना है, कुछ नहीं पढ़ना कुछ नहीं सोचना सिर्फ इक चीज ध्यान रखनी है 'C', वाधू(ज्यादा) पढ़े लिखे बंदे ज्यादा गौर नाल सुन लओ, अपना दिमाग नहीं इस्तेमाल करना है| ओके, कोई सवाल?" किसीकी मजाल नहीं थी कि कोई सवाल पूछता, जब पहले ही आज्ञापालन न करने पर कार्यसिद्धि न होने की और स्थानविशेष पर कायदे-क़ानून की लात पड़ने की भी चेतावनी मिल चुकी थी| गाड़ी स्टार्ट हुई और हम सब चल दिए परीक्षाकेंद्र की तरफ|
परीक्षा शुरू हुई और सब जवाबों के 'C' option टिक कर दिए गए| हालांकि कोई जरूरत नहीं थी कि प्रश्नपत्र पढ़ा जाए लेकिन फिर भी पढ़ा गया| यूं भी सामाजिक व्यवहार में हम सब मौक़ा लगते ही क़ानून तोड़ने के जुगाड में रहते हैं - थूकने की, मूतने की, कूड़ा फेंकने की मनाही लिखी हो तो हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कारने लगती है कि हम कोई गुलाम हैं इस लिखने वाले के क्या जो यहाँ ये सब न करें? मौक़ा लगते ही अपना विरोध प्रदर्शन कर देते हैं, चाहे छुपकर ही क्यूं न करना पड़े| प्रश्नपत्र पढकर दिमाग और खराब हो गया, अधिकतर सवाल आते थे और उनमें से अधिकतर का जवाब 'C' नहीं था| बार बार यही लगता था कि सरदार ने मरवा दिया, पैसे भी गए और जब कल के अखबार में ये खबर छपेगी कि साधारण सी परीक्षा में भी पास नहीं हुए तो क्या मुंह दिखाएँगे बिरादरी वालों को? खैर, जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा को याद करते हुए आंसरशीट जमा कर दी और पन्द्रह मिनट में ही सिंह साहब के सारे केस पास घोषित होकर बाकी औपचारिकताएं पूरी कराने चल दिए|
दो दिन बाद शाम को जब लाइसेंस लेने गया तो फुर्सत में सिंह साहब के साथ बातचीत हुई और फिर समझ आया कि 'C' option उनका उस दिन का कोड था जिससे अथोरिटी वालों को पता चल जाए कि ये सब सिंह साहब के केस हैं| इस प्रकरण से मैंने ये समझा कि कैसे एक तंत्र को अपने हितानुसार साधा जा सकता है| जैसे बेईमानी के धंधे में ही अब ईमानदारी बची है, वैसे ही एक जटिल तंत्र को एकदम साधारण कोड से काबू किया जा सकता है| all you need is to find the right person at the right time. आप भी कहोगे कि एक तरफ सम्मान लेबल वाली पोस्टों की बहार हैं और ये जनाब ले बैठे रूखे-सूखे किस्से|
लेकिन सच ये है कि इस किस्से की याद ही इन आयोजनों को देखकर आई है, वैसे अपना मूड इस समय एकदम सकारात्मक है| सम्मान करने वालों से अपने को कोई शिकायत नहीं है, उनका अधिकार है जिसे मर्जी सम्मानित कर दें| असहमति जताने वालों, सुझाव देने वालों से भी अपने को कोई शिकायत नहीं, अपनी राय स्वस्थ तरीके से रखने का उनका भी अधिकार है| और तो और, सवाल उठाने वालों पर बरसने वालों से भी अपने को शिकायत नहीं है अपने को तो ये सब देखकर मजा आ रहा है| वरिष्ठों और would be वरिष्ठों का व्यवहार देखकर यकीन पक्का हो जाता है कि फेसबुक, ट्विटर अपनी कितनी ही ऐसी तैसी करवा लें, हिन्दी ब्लोगिंग अमर रहेगी| लोगों का उत्साह अचम्भित करने वाला है, और खुद की निर्लिप्तता\किम्कर्त्व्यमूढ़ता एक अब्नार्मलिटी लग रही थी| अगर आलसी महाराज भी इसमें न कूदे होते तो अपन इस सारे प्रकरण में मौनी बाबा बने रहते| परिकल्पना आयोजन में मुझे भव्यता झलकती लगी है तो उस अकेले के आयोजन में कहीं ज्यादा जीवन्तता| अपना हाथ, अकेले के साथ, अपने को ज्यादा इन्तजार 'आलसी का चिटठा' पर आने वाले निष्कर्ष का रहेगा, नतीजों से भी ज्यादा निष्कर्ष का|
कोई भी आयोजन सबको तुष्टि देने वाला नहीं हो सकता, इस बात को मैं मानता हूँ लेकिन इसे और भी स्वस्थ तरीके से किया जा सकता होगा, ये भी मानता हूँ| सुधार की गुंजाईश हर जगह है|
बड़ी विसंगतियाँ जो औरों की तरह मुझे भी दिखती हैं-
१. लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का नाम तो दिया जा रहा है लेकिन लोकतंत्र में अभ्यार्थी खुद आवेदन करता है, यहाँ ऐसा नहीं है| वोट देने न देने का या किसे देना है, यह अधिकार वोटर के पास बेशक होना चाहिए लेकिन जिन्हें प्रतियोगी बना दिया गया, क्या वो इस सबके लिए तैयार हैं? उनके अधिकार का भी सम्मान होना चाहिए|
सुझाव - पहले श्रेणी अनुसार नामांकन आमंत्रित किये जाए, उसके बाद आगे की प्रक्रिया चले| spadework करने में शुरू में मेहनत बेशक ज्यादा हो, लेकिन कार्य व्यवस्थित रूप से होता है|
२. जो निर्णायक मंडल में शामिल हैं, उनका नाम प्रतियोगियों में भी होना अजीब सा लगता है|
सुझाव - पिछले वर्ष\वर्षों के सम्मानित ब्लोगर्स को निर्णायक मंडल में शामिल किया जाना चाहिए, इससे दूसरों की प्रतिभा भी सामने आयेगी अन्यथा तो घूम फिरकर वही नौ-दस नाम हैं| नई प्रतिभाओं की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक अच्छा लिखने वाले हैं|
और भी बातों पर लिखा जा सकता था लेकिन सादेपन में लिखते समय जल्दी ही हमारी हंफनी छूट जाती है| वो तो बेगम ने तीन चार दिन पहले किसी बात पर टोक दिया था कि कभी सोचकर सोचियेगा कि कितनी तीखी बात कह देतें हैं आप, तो हमने सोचा कि केंचुली बदल लेंवे धीरे धीरे, आज शुरुआत कर दी है|
सबसे पहले एक बात स्पष्ट कर दूं कि अपनी इस आयोजन में सम्मानित होने की न तो कभी कोई आकांक्षा थी, न है, और न ही भविष्य में होगी| मैं जो सोचकर ब्लोगिंग में आया था, उससे बहुत ज्यादा पहले ही पा चुका हूँ| यह बात लिखना इसलिए भी जरूरी है कि यहाँ लोग लोकतंत्र, विमर्श और दुसरे लुभावने शब्दों की जुगाली जितनी मर्जी कर लें, खुद इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरते और विरोध, सुझाव, असहमति को अपने चश्मे से ही देखते हैं| देखा कि एक दो मित्रों ने वहाँ मेरा भी नाम किसी श्रेणी में प्रस्तावित किया है, पूरी विनम्रता से उनका आभार और ये गुजारिश कि मुझे मेरी कमियों से अवगत करवाते रहें तो वो मेरे लिए ज्यादा बड़ा सम्मान है, असली सम्मान है|
वहाँ न लिखकर अपने ब्लॉग पर इसलिए लिख रहा हूँ कि जो मुझे जानते हैं वो मेरे ब्लॉग को भी जानते हैं और जिन्होंने सिर्फ 'C' option को टिक करना है, वो करेंगे ही| छूटती नहीं है काफिर तल्खी, मुंह की लगी हुई :-)
सम्बंधित कड़ियाँ जिनमें दिखते हैं अलग अलग तेवर -
- http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_354.html
- http://girijeshrao.blogspot.in/2012/05/blog-post_20.html
- http://hindini.com/fursatiya/archives/2979
- http://lalitkumar.in/hindi/1179
- http://vichaarshoonya.blogspot.com/2012/05/2011.html