भोजनावकाश से पहले का पीरियड अंग्रेजी का होता था। चौधरी सर हमेशा की तरह हाथ में लचीली सी संटी, जिसे हम लोग उस पीरियड में ’रूल’ बोलकर अपने अंग्रेजी का अभ्यास पैना करते थे, लिये कक्षा में अवतरित हुये। वैसे तो ’रसरी आवत जात से सिल पर पड़त निसान’ की तर्ज पर एक कहावत ’संटी आवत जात से .......निशान’ की खोज, आविष्कार, निर्माण हम उस प्राईमरी की कक्षा में कर चुके थे क्योंकि संटी और हमारे शरीर के स्थान विशेष के बीच ’आन मिलो सजना’ वाला ड्युएट प्राय: बजता ही रहता था, लेकिन चौधरी सर के पीरियड में संटी ही ’रूल’ था और यूँ समझिये कि ’रूल’ का ही रूल था। खैर, अंग्रेजी के पीरियड की बात सुना रहे हैं तो लेट अस कम टु द प्वाईंट।
’गुड मार्निंग सर’ और ’सिट-डाऊन प्लीज़’ की औपचारिकताओं के बाद हम सब अपने बेंच पर और चौधरी सर कुर्सी पर बैठ गये और सामने बैठे छात्र-छात्राओं को तौलती नजरों से देखा और मुझ छुएमुए से बोले, "कम हियर।" अपनी कुर्सी से कुछ दूर मुझे ख़ड़ा कर दिया और ’फ़ादर ऑफ़ द नेशन’ पर पांच लाईन बोलने का आर्डर दे दिया। उनकी कुर्सी और वक्ता की दूरी उनके हाथ के रूल के अनुसार निर्धारित होती थी।
हमारा भाषण यानि की स्पीच शुरू हुई और चौधरी सर की गर्दन हिलनी शुरू हुई।
Mahatma Gandhi were born on ... सटाक.....बोलो, महात्मा गाँधी वाज़ बोर्न ऑन...
हमने वाज़ बोल दिया, सोचा कि गलती तो बड़ों बड़ो से हो जाती है, सरजी से भी हो रही होगी। अगली लाईन सोची और फ़िर बोलना शुरू किया।
Mahatma Gandhi were an ordinary...सटाक..सटाक......बोलो महात्मा गाँधी वाज़ एन ऑर्डिनरी स्टूडेंट..
हमने फ़िर भी धैर्य नहीं खोया। एक बात और बता दें, हमारे चौधरी सर का एक और रूल था कि पहली गलती पर एक सटाक, और दूसरी पर दो और तीसरी पर तीन। इस तरह आखिरी सटाक सटाकों तक अलग से ये हिसाब नहीं रखना पड़ता था कि कितनी गलतियाँ हुईं, बस आखिरी वाले सटाक-सटाक याद रखते थे। अकेले में हम इसे दस मारना और एक गिनना कहकर अपनी खीझ उतारते थे।
शार्टकट में बात ये है कि हमने अपने उसूलों से न डिगते हुये हर बार Mahatama Gandhi were... बोला और उसके बदले में कुल जमा पन्द्रह सटाक झेले। हर सटाक एक ही जगह पर पड़ता था और उस दर्द को वही महसूस कर सकता है जिसने ऐसी लचीली छड़ी को एक ही जगह पर बारबार झेला हो। लौटकर सीट पर पहुँचे और पूरे पीरियड में वामार्ध को उस लकड़ी के बेंच से दो तीन इंच ऊपर रखना पड़ा। ’फ़िसल पड़े तो हर गंगे’ का नारा लगाकर हमने खुद को तत्कालीन वामपंथी घोषित भी किया और दुनिया को तिरछे कोण से देखने का अनुभव भी प्राप्त किया।
भोजनावकाश हुआ भी और खत्म भी हो गया। अगला पीरियड हिन्दी का था और याद आया कि दिन यही चल रहे थे, छब्बीस जनवरी और तीस जनवरी के आसपास के ही। हिन्दी की मैडम का नाम नहीं बताऊंगा। क्यों नहीं बताऊँगा, ये भी नहीं बताऊंगा। समय खराब होता है तो ऐसा ही होता है जैसा उस दिन हुआ। मैडम ने शायद ’पिटते के चार जूते और सही’ वाली कहावत सुन रखी थी, उन्होंने भी मुझ टेढ़े से बैठे हुये को ही तलब कर लिया। पहले पूछा कि ऐसे क्यों बैठे हो और वजह जानने के बाद मुझे ही दोषी करार देते हुये अपने बाँयी तरफ़ खड़ा कर दिया और राष्ट्रपिता के बारे में कुछ बोलने के लिये कहा। दाँये-बाँये करने के पीछे मैडमजी का वास्तुशास्त्र से कुछ लेना देना नहीं था, ये उनकी दूर दृष्टि का प्रताप था।
अबकी बारी हमने भाषण देना शुरू किया तो पिछली गलतियाँ न दोहराने की सौगंध खा ली। अंग्रेजी में Mahatma Gandhi were... ने मार लगवाई थी, वो नहीं भूले थे इसलिये इस बार अपनी मातृभाषा में शुरू हुये तो कुछ इस तरह से कि ’महात्मा गाँधी दो अक्टूबर अठारह सौ उनहत्तर को पैदा हुआ था’ - और परिणति एक सटाक से हुई जो पांचवी लाईन तक आते आते सटाक X 5 तक पहुँची। न हम था कहने से रुके न छड़ी आकर हमसे टकराने से रुकी। हाँ, इस बार दक्षिणार्ध को तानाशाही झेलनी पड़ी और हम वामपंथी के साथ साथ दक्षिणपंथी भी हो गये।
इन घटनाओं से हमने निष्कर्ष निकाला कि -
- भारतवर्ष में महात्मा गाँधी के कारण पिछले कई सालों से अध्यापकों के द्वारा छात्रों का शोषण किया जाता रहा है।
अथ श्री बालशोषण कथा।
सटाक वाले मास्टर जी भी गजब ढहाते थे, सारे पंथों की दिशा भ्रमिताई करा दी। शोषण कथा, सत्य वचन।
जवाब देंहटाएंउत्साह बढ़ाने के लिये धन्यवाद जाटदेवता, बहुत तरह के शोषण की कथायें सामने आयेंगी।
हटाएंआपकी इस व्यथा काथा को सुनकर चंद्रशेखर आज़ाद का स्मरण हो आया.. जिन्हें अँगरेज़ चाबुक से पीट रहे थे और पूछ रहे थे कि तुम्हारी माँ का नाम क्या है वगैरह वगैरह!! तो संजय बाउजी, तीस जनवरी को हमारे पडोस के एक बच्चे ने मुझसे हिन्दी में एक भाषण लिखकर देने को कहा है.. कौन सा लिख दूं, 'था' वाला या 'वाज़' वाला.. धत्तेरे की एक ही बात लिख दी.. मेहरबानी है कि चौधरी सर या वो मैडम (अब जो भी नाम रहा हो उनका) नहीं हैं यहाँ नहीं तो आज रात हम भी 'पंथ-निरपेक्ष' हो ही जाते!!
जवाब देंहटाएंसलिल भाई, बालक को शाबाशी ही मिलेगी। हाँ, करम ही माड़े हुये तो ’था’ वाले पर भी डांट खायेगा और ’वाज़’ वाले पर भी, छड़ियाई सटाक वाले जमाने तो हमारे साथ ही विदा हो लिये स्कूल से :)
हटाएंविदा हो लिये? भ्रम होगा… कभी कभी लगता है दुख भरे दिन बीते रे भैया……… किन्तु जब तक जालसाज़ रहेंगे, परपीड़न में आनन्द उठाने वाले होंगे… वामार्ध और दक्षिणार्ध की शहादत अन्तिम नहीं होगी। कभी सर जी के हाथ तो कभी मैडम जी के हाथ मजे से लपलपाते रहेंगे… :)
हटाएं..........जिन्दाबाद!...(हम कुछ नहीं बोलेंगे...)
जवाब देंहटाएंऔर हम बोले बिना नहीं रहेंगे।
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पद्म सिंह जी।
हटाएंसटाक!! आज्ञाकारी विनयवान विद्यार्थी.......भारतवर्ष में शोषण आडम्बर की कईं प्राचीन पद्धतियाँ प्रचलित थी!! :)
जवाब देंहटाएंआपने तो खैर हमारे वाले निष्कर्ष से सहमत होना ही था:)
हटाएंगणित का एक फार्मूला याद करा दिया. AP/GP निकालने का. :D वैसे हमारे एक गुरु जी थे (मतलब अब रिटायर्ड) जिस दिन उनकी कलाई घड़ी उतरती थी, किसी न किसी विद्यार्थी को कयामत दिखने लगती थी. उनका नियम था कि इस लेखक को बुलाते और दो-तीन धरने के बाद पढ़ाना प्रारम्भ करते. पिताजी भी उनसे कह चुके थे कि लड़के का थोड़ा ख्याल रखना, मुझे यह पता न था कि ख्याल रखने का मतलब यह होता था. खैर, जो भी पढ़ सके, गुरुदेव के थप्पड़ों का ही प्रताप है.
जवाब देंहटाएंहम भी उस प्रताप के कर्जदार हैं सरजी।
हटाएंहम तो ये कर्ज़ कभी नही उतार पायेंगे. वैसे आपकी कहानी सुनने के बाद मैडम का कहना हैकि 'बालक इंटेलिजेंट रहा होगा'...
हटाएंअङ्ग्रेज़ी हिंसा ने हिन्दी अहिंसा को इतना प्रभावित कर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नायक का जन्म वृत्तान्त भी अहिंसक नहीं रहने दिया - ये अच्छी बात नहीं है ...
जवाब देंहटाएं’हंसा हीरा मोती चुगना’ आप हमारा निकाला निष्कर्ष देखो जी बाकी दियाँ गल्लां छड्डो:)
हटाएंदिमाग़ में इस क़दर ठूँसे गये हैं सब लोग कि अब चाह के भी नहीं निकल पा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल प्रवीण जी, कुछ लोग भुलाये नहीं भूलते।
हटाएंगुरुजी की जय हो!
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ लिंक बिखेरकर जाने वाले महानुभाव कृपया अपना समय बर्बाद न करें। जितनी देर में आप 'बहुत अच्छे' 'शानदार लेख\प्रस्तुति' जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे उतना समय किसी और गुणग्राहक पर लुटायें, आपकी साईट पर विज़िट्स और कमेंट्स बढ़ने के ज्यादा चांस होंगे।
जवाब देंहटाएं'बहुत अच्छे' 'शानदार लेख\प्रस्तुति'!
विरोधाभास पर महीन तंज है। गांधी की जीवनी याद कराने वाले कितनी सहजता से हिंसा का सहारा लेना अपना कर्तव्य समझते थे। यही विरोधाभास हर क्षेत्र में दिखता है। अच्छी लगी यह पोस्ट।
जवाब देंहटाएं’हे राम’
हटाएंकैसे कैसे मतलब निकाल लेते हैं लोग:)
:)
हटाएं:(
जवाब देंहटाएं:(
:)
हटाएंरॉचक लिखे या त्रासद , अंग्रेजी और हिंदी दोनोमे ही नहीं समझ आ रहा !
जवाब देंहटाएंजी, समझ गया.
हटाएं.........
जवाब देंहटाएं.........
pranam.
सदा प्रसन्न रहो बंधु।
हटाएं
जवाब देंहटाएंइन घटनाओं से हमने निष्कर्ष निकाला कि -
- भारतवर्ष में महात्मा गाँधी के कारण पिछले कई सालों से अध्यापकों के द्वारा छात्रों का शोषण किया जाता रहा है।
भारतवर्ष में महात्मा गाँधी के कारण khangress janta ka sosan kar rahi hai...
jai baba banaras....
जनता करवा रही है कौशल जी
हटाएंगुरुजी याने सर जी याने टीचर यह नहीं समझ पाए शायद कि ''महात्मा गाँधी वाज़ एन ऑर्डिनरी स्टूडेंट...'' की परम्परा है.
जवाब देंहटाएंगुरुजन तो सब समझते हैं सरजी, कभी कभी अनजान बनने का दिखावा करते हैं बस
हटाएंसंजय बाऊ एक प्रखर गांधीवादी संस्थान की तरफ से बकबकापति की उपाधि स्वीकार करें. इस पुरूस्कार को आपके खेने में लाने के लिए निसंदेह: बाबा की अनुसंशा भी काम आयी. पर गांधी की वजह तक कब तक बच्चे पिटते रहेंगे, और कब तक वाम-दक्षिण पंथ में विभाजित होते रहेंगे इसके लिए वर्तमान कांग्रेस सरकार की महारानी ने एक सदसीय कमेटी का गठन किया है. जाहिर सी बात है इसके भी एक मात्र भिश्ती-चिश्ती बक बक वाले बाबा ही हैं. महारानी का हुक्म है कि जरा गाँधी जी के बारे में देश जाग रहा ... गाँधी के बारे में was और were देश में भ्रम बना रहे इसी में इस महान खानदान का भला है.
जवाब देंहटाएंआज दी पोस्ट : यानी मौजां दुबई दियां ...
जहर हो या अमृत, स्वीकारेंगे बाबाजी:)
हटाएंजब जब अहिंसक(?) गंदगी(टंकण त्रुटी से गाँधी समझे) का जिक्र हुआ है हिन्दुओं पर हिंसा हुई है . बेहतर है मदरसे में पढ़ते होते तो गान्धियाका चैप्टरवे नहीं आता ...न हीं was were का लट्ठपेल होता ..सीधे ओसमा जी और कायदे आजम की AK 47 का प्रयोगात्मक ज्ञान दिया जाता ..निबन्ध से छुट्टी ..वजीफा अलग से मिल जाता
जवाब देंहटाएंये भी ट्राई करना है आशु, आखिरी उम्र में करेंगे।
हटाएंभाई बात तो बिल्कुल सही कही है, गंगाराम की याद आगई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गंगाराम का परताप कित भूल सकांगे ताऊ? :)
हटाएंIf he were a God........ :-) Yes he were! :-)
जवाब देंहटाएंYes he were :(
हटाएंगुरु की महिमा और गुरु प्रेम के साथ अनुशासन , निरिक्षण, पूर्व शिक्षकों की निष्ठां का अभूतपूर्व लेखा .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सिंह साहब.
हटाएंगाँधी जी के विषय में हमारे पास भी एक किस्सा है लेकिन अभी नहीं बताऊंगा।क्यों नहीं बताऊंगा ये भी नहीं बताऊंगा।पर इतना जरूर बताऊंगा कि इसे पढ हमने ये निष्कर्ष निकाला है कि मनमाफिक निष्कर्ष निकालने में भारतीय माहिर है।
जवाब देंहटाएंसही निष्कर्ष निकालने पर बधाई। अपनी सुविधानुसार और अवसरानुसार कोई भी किस्सा बताना, इंतज़ार करेंगे।
हटाएंहाँ यार, भारतीय मनमाफिक निष्कर्ष निकालने में माहिर क्यों है। बधाई देकर...किस्सा सुनना हम भी चाहेंगे!!
हटाएंमस्त....
जवाब देंहटाएंओये....मस्त से तात्पर्य आपका "सटाक क्षेत्र" नहीं ....बल्कि पोस्ट मस्त है :-)
हां यार बताना पड़ता है वरना फत्तू का क्या...मनमाफिक निष्कर्ष निकाल ले तो :)
jai ho....
हटाएंअच्छा किया क्लैरिफ़ाई कर दिया, नहीं तो यार ...:)
हटाएंहा-हा-हा,,,,,,,,,,,, सही मायने में एक इसी चीज की आजादी मिली हमको :)
जवाब देंहटाएंऔर, अपनी (इस) आजादी को हम हरगिज लुटा सकते नहीं :)
हटाएंजहाँ तक मुझे याद है, मास्टर जितना गँवार आैर नालायक होता था वो पिटाई पर उतना ही ज़्यादा भरोसा रखता था. उन्हें लगता था कि अनुशासन बस डंडे के ही ज़ोर से आ सकता है. उन्हें अपनी इस बेग़ैरत नालायकी पर घमंड होता था, वो अलग. जबकि दूसरे मास्टर जो बढ़िया होते थे मार-पीट नहीं करते थे, उनके टोकने से ही शर्म आ जाती थी.
जवाब देंहटाएंसबके अपने अपने USP रहते हैं काजल भाई, मुझे ये लगता है कि कई बार और कुछ के लिये ये ट्रीटमेंट भी जरूरी होता है।
हटाएंमंगलवार 29/01/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
जवाब देंहटाएंआपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!
आभार विभा जी।
हटाएंगंगाराम मशहूर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएं:)
गंगाराम मशहूर भी और बदनाम भी :)
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जवाब देंहटाएंहमने तो जी पोस्ट लिखी ही गुरू की छड़ी का जादू-महात्म्य बताने के लिये है, समय पर लगी थी तभी तो अब हरदम were were नहीं करते....वैसे खुश तो बहुत हैं आप हमारी दारुण कथा पर, वाह। और आपको खुश देखकर हम भी अपना दर्द भूल गये हैं, हाँ..:)
हटाएंहिन्दी और अङ्ग्रेज़ी का इतना विरोधाभास पहली बार ही जाना .... वाकई काफी हिंसा की शिक्षकों ने अहिंसा के पुजारी गांधीजी के नाम पर । रोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंहमारे कर्म ही हिंसा को न्यौतते थे संगीता जी, जो भाषा हम समझते थे गुरू लोग उसी भाषा में समझाते थे।
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हटाएंwell said swapna - i too felt odd at the use of that word "hinsa" for teachers by people in a country who say "guru devo bhavah"
हटाएंmeanwhile - i was NEVER beaten up in school like that .... one or two slaps at one or two instances is the only physical punishment i remember ....
वैसे ऐसा होता है क्या कि केवल बच्चों को कुछ सिखाने के लिए ही गुरु हाथ उठाते हों? मुझे तो नहीं लगता ।बच्चा बार बार समझाने पर भी नहीं समझ पाता और गलती पर गलती करता है, गुरुजी गुस्सा होते हैं और पिटाई कर देते है।गुस्सा स्वाभाविक भी है लेकिन गुरू है तो उन्हें थोड़ा धैर्य भी तो रखना चाहिए।सिखाने के और भी तरीके हो सकते हैं।क्या वो ये नहीं जानते कि बच्चा कोई पिटने के लिए जानबूझकर गलती नहीं कर रहा बल्कि उससे गलती हो जा रही है।लेकिन फिर भी कोई गुस्से और खीज में आकर पिटाई कर दे तो क्या वो हिंसा नहीं है ?कई तो पहली और मामूली गलती पर भी रौद्र रूप धारण कर लेते हैं।और कौन कहता है पहले गुरु हिंसा नहीं करते थे।ये हमेशा से होता रहा है।और गुरु का सम्मान कोई जबरदस्ती सिखाने से नहीं किया जाता बल्कि जो अच्छे गुरु होते है उनके प्रति विद्यार्थी के मन में सम्मान हमेशा रहता है।ये अपने आप होता है।हालाँकि अपवाद यहाँ भी होते हैं।लेकिन जो गलत है उसे तो गलत ही कहा जाएगा।
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हटाएंअदा जी,न तो मैंने ये कहा कि सभी गुरु ऐसा करते हैं न ये कि अच्छे शिक्षक होते ही नहीं ।हाँ ये जरूर दोहराउँगा कि बच्चों पर हाथ उठाना केवल उन्हें कुछ सिखाने या अनुशासन के लिए ही नहीं होता।बल्कि बहुत बार हिंसा गैरजरुरी ही होती है।और बिल्कुल माता पिता भी बहुत बार ऐसा करते हैं यानी बच्चों पर गुस्से में आकर हाथ उठाना।माँ कई बार गुस्से में अपने छोटे बच्चे को ही धुन देती है जो अपना नाम भी नहीं ले सकता अनुशासन तो क्या ही समझेगा।ये नहीं कह रहा कि इस वजह से माता पिता या गुरु से नफरत की जानी चाहिए या उन्हें कोई सजा देनी चाहिए जैसा कि कुछ पश्चिमी देशों में कानून है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि ये कोई समाधान हैऔर वे कोई हमारे दुश्मन नहीं हैं।लेकिन हाँ ये जरूर मानता हूँ कि उनका ये व्यवहार हिंसक ही कहलाएगा और उन्हें इसे सुधारना चाहिए।बहुत से लोग ऐसे भी तो हैं जिन्होंने अपने बच्चों पर कभी हाथ नहीं उठाया लेकिन फिर भी उनके बच्चे अनुशासित हैं और उनमें नहीं कोई ऐब नहीं।
हटाएंyou really shown the true olden days teaching.loved it.
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जवाब देंहटाएंहा हा हा ..... :0 )
जवाब देंहटाएंगजब :) निष्कर्ष तो और भी !
जवाब देंहटाएंचलिए इसी बहाने दुनियाँ को तिरछी नज़र से देखने का अनुभव भी मिला :) वाम-मार्गी हो जाने का अनुभव काफी कम आयु में ही हो गया !!
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहा
जवाब देंहटाएंगांधी जी और रूल खाऊ विद्यार्थी समान रूप से शोषण का शिकार हैं.
जवाब देंहटाएं😂😂😂🤣🤣
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