लॉकडाऊन काल के मेरे अनुभव तो अच्छे ही रहे, विशेषरूप से लॉकडाऊन १ और २ के। वेतन नियत समय पर और बिना कटौती के मिलना तय था तो आर्थिक रूप से कोई प्रत्यक्ष हानि नहीं हुई, अप्रत्यक्ष लाभ ही हुआ होगा। आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत आते हैं इसलिए घर से निकलना पड़ता था और मेट्रो सेवाएं बन्द थी तो अपने दुपहिया पर जाना होगा, यह सोचकर कष्ट था किन्तु सीमित ट्रैफिक और सिग्नलरहित सड़कों के कारण आनन्द ही रहा। पुलिस कर्मियों की डण्डेबाजी भी नहीं झेलनी पड़ी, रोके जाने पर सभ्यता से आईकार्ड दिखाने से ही काम चल गया यद्यपि ऐसी स्थिति भी दो-चार बार ही आई। समय के सदुपयोग की बात की जाए तो महाभारत का प्रथम खण्ड पिछले वर्ष पढ़ना आरम्भ किया था, कतिपय कारणों से वह बाधित था, उसे सम्पन्न करने का मन बनाया। पिछले अनुभव से नियमित न रहने को लेकर कुछ शंकित अवश्य था। लक्ष्य बनाया कि भले ही कम पढ़ा जाए लेकिन नियमित रूप से दो से तीन पृष्ठ भी प्रतिदिन पढ़ पाया तो २०२० में यह सम्पन्न हो जाएगा। मई समाप्त होते तक उस स्थिति तक पहुँच गया कि बचे हुए दिनों में यदि दस पृष्ठ प्रतिदिन पढ़ सका तो लक्ष्य जून 2020 तक प्राप्त हो सकेगा। आरम्भ में प्रतिदिन के 3 पृष्ठ भारी लग रहे थे, अब दस पृष्ठ तक achievable लग रहे थे।
अब एक अन्य बात पर ध्यान गया, यदि यह खण्ड पढ़ लिया तो उसके बाद? द्वितीय खण्ड उपलब्ध नहीं है, यदि उसकी प्राप्ति में समय लग गया तो बना हुआ momentum समाप्त होने की आशंका आदि आदि..... ऐसे समय में संकटमोचक रहते हैं 'छोटे पण्डित', काम बता भर दो और काम उसका हो जाता है। कोरोनाकाल की एकमात्र अड्डेबाजी में यह बात छेड़ी, उसने लपक ली। इसी बीच 'लालबाबू' बोले कि ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं। एक रविवार को मैंने चैक किया तो पाया कि वास्तव में गीताप्रेस की online पुस्तक सेवा है। ऑर्डर कर दिया, पेमेंट भी कर दी। अगले दिन कन्फर्मेशन के लिए फोन किया(मेरे लिए दुनिया के कठिनतम कार्यों में से एक) तो पता चला कि जो सज्जन यह सब देखते हैं वो अगले दिन आएंगे, वाराणसी में वहाँ भी 'आज मैं तो हरि नहीं, कल हरि होंगे मैं नांय' अर्थात alternate day duty सिस्टम चल रहा है। अगले दिन हरि ने कन्फर्म किया कि पेमेंट प्राप्त हो गई है और पैकेज तैयार है। अब लोचा यह आया कि दिल्ली के लिए डाकविभाग 30 जून तक स्पीडपोस्ट/रजिस्टर्ड पोस्ट स्वीकार नहीं कर रहा। मैंने अपना लॉजिक दिया कि प्रथम खण्ड समाप्त होने के पूर्व मुझे द्वितीय खण्ड क्यों चाहिए। सामने से विकल्प दिया गया कि कुरियर से भेज सकते हैं लेकिन वो महंगा पड़ेगा। डाक विभाग जो कार्य ₹80/- में करता, निजी कुरियर उसके लिए कम से कम ₹200/- अतिरिक्त लेगा। "भेजिए, मैं अतिरिक्त राशि ट्रांसफर कर रहा हूँ।"
अगले दिन हरिजी ने कुरियर की रसीद व्हाट्सएप्प कर दी। चार-पाँच दिन और व्यतीत हो गए, कुरियर नहीं आया। अब अपने तुरुप के पत्ते 'बाबा' को गुहार लगाई गई कि किसी चेले को कुरियर ऑफिस भेजकर पता करवाएं, उन्ने अगले दिन का आश्वासन दे दिया। तभी कुरियर वाले का फोन आ गया कि लोकेशन बताईये, आपका कुरियर आया है।
सार यह है कि आज छब्बीस जून २०२० है और प्रथम खण्ड सम्पन्न हो गया है। लॉकडाऊन तेरी सदा ही जय हो।
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