बुधवार, जून 10, 2020

समय का फेर

लगभग दस वर्ष किराए के मकानों में रहना पड़ा, कुल 5 मकानमालिक मिले। ऐसा नहीं हुआ कि इनमें से किसी मकानमालिक से मतभेद के चलते एक रात्रि भी उस मकान में बितानी पड़ी हो। एक के साथ ऐसी स्थिति बनी भी तो दो घण्टे में रूम बदल लिया था। हुआ यूँ था कि मेरा एक मित्र अस्थाई ट्रांसफर पर अपने गृहस्थान में एक लम्बा काल बिताकर एक सुबह अचानक मेरे रूम पर प्रकट हुआ, "वापिस आ गया। नया मकान मिलने तक यहाँ रुक सकता हूँ न?" पूछने वाले ने अपने तरीके से सूचना ही दी थी। मैं उन दिनों अकेला रहता था और उसे उसे अपनी पत्नीश्री को भी लाना था, तो उनके लिए मकान देखने में हमें कुछ अधिक सेलेक्टिव भी होना पड़ रहा था।
मेरे मकानमालिक के पूरे परिवार से अपने सम्बन्ध अच्छे थे लेकिन प्रोटोकाल को लेकर मैं असावधान नहीं रहता था, मैंने भी मकानमालिक को यह सूचना दे दी। उनकी ओर से लेशमात्र भी ऑब्जेक्शन नहीं हुआ। अब हुआ यूँ कि हमारे उस मित्र को संयोगवश उन दिनों बहुत जुकाम लगा हुआ था। कुछ उसका भयंकर जुकाम, कुछ मकान ढूंढने में हमारे अतिरिक्त पैमाने और कुछ यह आश्वस्ति कि कुछ दिन अतिरिक्त लग भी गए तो हम सड़क पर नहीं हैं, इस सबमें सप्ताह भर लग गया। एक दिन ऑफिस से लौटे तो मकानमालिक के बड़े लड़के ने मुझे बुलाया कि चलो कुछ दूर टहल कर आते हैं, बहुत दिन हुए हमारी चर्चा भी नहीं हुई। वह अच्छा पढ़ा-लिखा अधिकारी आदमी था, विभिन्न विषयों पर उससे चर्चा हुआ भी करती थी। मेरे मित्र के बारे में उसने बोला कि इनकी तबीयत ठीक नहीं लगती, ये आराम कर लें। 
हम निकल लिए। उस दिन वो कुछ असहज था। कुछ देर बाद मेरे मित्र का नाम लेकर बोला, "उसे बहुत भयंकर जुकाम लगा हुआ है। कोई गम्भीर बीमारी है?"
मैंने बताया कि ऐसा कुछ नहीं है, जुकाम है तो जाने में समय लगता ही है। फिर घर से बाहर रहते हैं तो घर जैसी केयर भी नहीं मिल पा रही होगी।
कुछ देर चुप रहकर वो बोला, "यह छूत की बीमारी जैसा होता है, आपको भी रिस्क है।"
मैंने बात टाली कि ऐसा कुछ नहीं है।
उसने कई प्रकार से समझाया कि मित्रता आदि अपने स्थान पर ठीक है लेकिन इस कारण मुझे स्वयं को खतरे में न डालते हुए उस मित्र को कहीं और शिफ्ट कर देना चाहिए। मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि उसके स्थान पर मैं अस्वस्थ होता तो मेरा वो मित्र मुझे नहीं छोड़ता, मैं भी अस्वस्थ होने का रिस्क लेकर भी उसे कभी बाहर नहीं करूँगा।
वो चलते-चलते रुक गया, बोला, "रिस्क आपको भी लेना नहीं चाहिए लेकिन मैं समझा ही सकता था। तो अब ऐसे सुनो कि मैं मेरे व मेरे घर के सदस्यों के लिए रिस्क नहीं ले सकता। अब?"
मैंने कहा, "अब? वापिस चलते हैं।"
दोनों चुपचाप लौट आए। घर पर गेट खोलकर जब वो अंदर जाने लगा, मैंने कहा, "भाईसाहब, आज रात से आप व आपके परिजन हमारी ओर से रिस्कफ्री होंगे।"
दो घण्टे में पूरी मण्डली ने टीन-टप्पर ढो-ढाकर नए अड्डे में जा टिकाया। यहाँ अकेले थे, नए अड्डे में पूरी मण्डली पुनः जुड़ गई।
कुछ घटनाओं में मैं किसी एक पक्ष को ठीक या गलत नहीं सिद्ध कर पाता, सभी पक्ष ठीक ही लगते हैं। यह भी ऐसी ही घटना रही। पूर्व मकानमालिक और उनका लड़का बाद में भी यदाकदा मिलते थे, बात होती थी और हम हँस देते थे। वो भी कहता था कि अपनी अपनी जगह हम दोनों ही ठीक थे, और मैं पहले से ही यह मानता था☺️
वही मित्र आज ऑडिट के चक्कर में अपने गृहस्थान से हमारे ऑफिस वाली बिल्डिंग में आया था। संयोगवश जिन सीनियर के साथ आया था, वो हम दोनों के कॉमन मित्र रहे हैं। वही सीनियर मुझे मिलने आए तो उन्होंने बताया कि अमुक भी आया हुआ है। आज भेंट होती तो सम्भवतः चौबीस वर्ष बाद आमने-सामने मिलते, एक ही बिल्डिंग में अलग-अलग मंजिल पर बैठे रहे। कोरोना, दूसरे शहर से आने के प्रोटोकॉल, पहले से परिपक्व हो गए हम☺️ फोन पर बात हुई तो हँसते हुए कल मिलने का तय हुआ है। अपनी-अपनी जगह सब ठीक हैं।
ऐसी बातों के लिए भी कोरोना काल याद रहेगा।☺️

10 टिप्‍पणियां:

  1. आहा आनंद आ गया भाईसाब🙏🙏🙏, मैनें भी ऐसे ही डिप्लोमा में घर बदला था, पर वहाँ किस्सा दूसरा था... मौका लगा तो लिखूँगा कभी। 😃

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    1. मौका और कैसे लगता है? ताल से ताल मिला दो, मौका ऐसे ही होता है☺️

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  2. बहुत कुछ श्रेष्ठ इस पटल पर अब भी लिखा जाता है।
    ❤️

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  3. किराये के मकान का मेरा भी एक मजेदार किस्सा है ... अचानक ही दिल्ली छोड़ के जाना पड़ा , शिफ्टिंग से पहले एक छोटा सा एक कमरे का मकान फाइनल कर गया ... मकान मालिक एक बनिया था ... कहीं की कुंडी नही थी , एक साइड की दीवार छोटी सी थी , पानी के लिए हैंडपंप था ... मैं तो ट्रक में बैठ के आ गया , श्रीमती जी को अगले दिन बस पे आने को बोल दिया ... अगले दिन जब श्रीमती जी आयी तो मकान देखते ही , पहले तो मेरी क्लास लगाई ( उसका भी कसूर नही था , 1991 में दिल्ली वाला मकान नया ही बनाया था और 1993 में ही छोड़ना पड़ा ) ... फिर बोला कि पहली फुरसत में नया मकान देखो। अब हमारे ऐलनाबाद में किराये के मकान ज्यादा मिलते नही थे।
    थोड़े ही दिनों में छोटी छोटी जो कमियां थी वो ठीक करवाई और शान्ति से रहने लगे , पर किस्मत में धक्के अभी और लिखे थे ... मकान मालिक के किसी गाँव के शरीक ने उंगली कर दी कि दिल्ली वाले तो मकान पे कब्ज़ा कर लेते हैं ... और दिल्ली वाले मकान का कब्ज़ा भी अच्छे खासे पैसे ले के छोड़ा है इसने ... अब बनिए के तो हो गयी मुश्किल , रात दस बजे ही आ खड़ा हुआ कि मकान खाली करो ... समझा बुझा के टपाया कि जल्द ही ढूँढता हूँ नया मकान ... उसके बाद सुबह दोपहर शाम गेड़े पे गेड़ा बांध दिया अगले ने , मैंने भी कलप के कह दिया कि भाई जब तक ढंग का मकान नही मिलेगा , मैं खाली नही करूँगा ... अब कह तो दिया पर उसकी शक्ल पे उड़ती हवाइयाँ देख के डर भी लगा कि कहीं रात को हार्टफेल ही ना हो जाये इसका ... सुबह छह बजे ही उसके घर पहुंच गया और जा के तस्सली दी कि भाई कोई जामिन चाहिए या कोई एडवांस चाहिए तो बता , पर मकान ढूंढने के लिए थोड़ी मोहलत तो दे ... उन दिनों खेत मे काम ज्यादा था तो दो तीन दिन मौका ही नहीं मिला मकान देखने का ... उधर वो रोज़ आ के पड़ताल करे ... चौथे दिन मैं सुबह खेत के लिये निकल ही रहा था कि आ गया भाई और लगा किलकिल करने कि खेत बाद में जाना पहले मेरे साथ चल मकान देखने ... बड़ी मुश्किल से टाला उसे और बोला कि शाम को चलते हैं ... शाम को खेत से आया तो भाई बाहर ही खड़ा था ... मैंने कहा कि बस अभी चाय पी लूँ फिर चलते हैं मकान देखने तो बोला कि मकान तो मैं देख भी आया और आपकी पत्नी को भी दिखा के पसन्द भी करवा आया हूँ , बस अब मेरे साथ चलो और किराया फाइनल कर के उसे एडवांस दे दो ... चाय भी नहीं पीने दी अगले ने , बोला कि वहीं पियेंगे ... मैंने कहा कि भाई बीवी से तो पूछ लेने दे ... एक घण्टे बाद मेरे हाथ से एडवांस दिलाने के बाद भी भाई को चैन नहीं आया और शिफ्टिंग का पूछने लगा ... मैंने कहा भी कि दो चार दिनों में करता हूँ , पर भाई सुबह सुबह आठ बजे ही खोता रेड़ी ले के आ गया और मेरा सारा सामान पैक करवा के लदवा के और साथ जा के वहाँ उतरवा के ही आया ... दो बजे तक सारी सेटिंग करवा के फिर कहता है कि चाय पिला ... चाय पीते हुए भाई ने पूछ ही लिया कि दिल्ली वाला मकान कितने पैसे ले के खाली किया था ?

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    1. हमें भी बताया जाए, कितने पैसे लेकर खाली किया था☺️

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  4. मुझे ऐसा लगता रहता है कि सूक्ष्म रूप से हम सभी से जुड़े हुए ही है। कुछ से थोड़े ज्यादा तंतु जुड़े हुए है, जिन से अधिक तंतु जुड़े होते है उन से स्वभाव व व्यवहार की समानता भी मिल जाती है। कुछ से घटनाए भी।
    जय श्री राम।।

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