इस बार क्रिसमस का त्यौहार बहुत बढ़िया दिन था। आप कह सकते हो कि हर बार ही २५ दिसंबर को होता है, इस बार बहुत बढ़िया दिन कैसे हो गया? बात ये है कि इस बार पच्चीस दिसंबर शनिवार को था। दो दिन की छुट्टी एक साथ मिल जाये तो हमारे लिये तो जैसे जैकपॉट लग गया हो। बच्चों के स्कूल वालों ने इस बार छुट्टियों और परीक्षाओं का ऐसा घालमेल किया कि सर्दी की छुट्टियों में हमारा पेरेंट्स के पास जाना संभव नहीं हो पाया। अपने दो दिन की छुट्टी का जब पता चला तो हमने बहुत दिनों से थमी अपनी आवारगी को फ़िर से जिन्दा करने का फ़ैसला किया। सर्दी इतनी ज्यादा थी कि रजाई छोड़कर जाने का मन नहीं किया। वैसे भी अब हम कोई ऐंवे से बंदे नहीं रहे अब, हम हो गये हैं ब्लॉगर। अपनी बिरादरी के अकेले ब्लॉगर, अपने ऑफ़िस के अकेले ब्लॉगर, अपनी गली मुहल्ले शहर के भी संभवत: अकेले ब्लॉगर। तो सोचा कि चलो वैसी आवारगी न सही, आज वर्चुअल आवारगी ही सही। जानी पहचानी साईट्स को छोड़कर नई राहों पर चला जाये। लेकर ऊपर वाले का नाम, गूगल सर्च पर पता नहीं क्या डाला था, भूल गये अब और खुल गया एक नया रास्ता, एक नई डगर। पहला ही कदम और वो मुहावरा सच होता दिखा कि ’जहँ-जहँ पड़े पैर संतन के, तहँ-तहँ बंटाधार।’ अपनी तो आँखें और मुँह खुले के खुले रह गये। आश्चर्य भी हो रहा था और कभी खुशी कभी गम भी। आप भी देखें जरा, ।
सम्मान योग्य पुजा देवी उर्फ़ पुजा देबी अलियास puja jha, यही पोस्ट मय फ़त्तू फ़ीचर, मेरे ब्लॉग पर 17 जून 2010 को छप चुकी है। जो मैंने लिखा था, वो किसी और को भी पसंद आया और इतना पसंद कि उसे अपने ब्लॉग पर छाप डाला, सही मायने में तो खुशी हुई अपने को। आखिर किसी को तो हमारा उंगलियां तोड़ना भाया:) धन्यवाद पुजा देबी जी। फ़िर हमें तो वैसे भी चोरी की आदत हो चुकी है। कभी दिल चुरा लिया किसी ने, कभी चैन। किसी ने ख्वाब चुरा लिये तो किसी ने नींद ही चुरा ली। फ़िर हमने भी तो ये प्लॉट कहीं से चुराया ही था। यूँ समझ लेंगे कि चोरों को मोर पड़ गये। बस थोड़ा सा अफ़सोस है कि खबर न हुई हमें।
इसी बहाने आपका सारा ब्लॉग देखा। धर्म, व्रत, त्यौहार जैसी चीजों से अटा पड़ा है आपका ब्लॉग। फ़िर ये पोस्ट, बात कुछ हजम सी नहीं हुई।
हमारे पड़ौस में एक बुढि़या एक दिन सुबह सुबह घर के बाहर झाड़ू बुहारी कर रही थी और गुनगुना रही थी ’तेरे मन की गंगा और मेरे मन की जमुना का, बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं, बोल राधा बोल….’ लड़कों ने पूछा, “चाची, सुबह सुबह ये क्या गा रही हो, फ़िल्मी गाना?” चाची ने तमक कर झाडू हाथ में ऐसे उठाया जैसे यल्गार कहकर क्राँति ज्वाला में कूदने ही वाली हो। “शर्म नहीं आती तुम्हें, फ़िल्मी गाने का नाम लेकर मुझे बदनाम करते? भजन भी नहीं बोलने देते।” लड़कों ने हैरान होकर पूछा, “भजन?” “तो और क्या नासपीटों? राधा, गंगा, जमना, संगम जैसे पवित्तर नाम तुम्हें सुनाई नहीं देते?” भोली-भाली चाची गच्चा खा गई थी इन नामों को सुनकर। ये कहानी सुनाने का मतलब ये है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि चांद, पूर्णिमा, शांति दूत जैसे शब्द पढ़कर आपने भी इस पोस्ट को कोई धार्मिक पोस्ट समझ लिया हो? हा हा हा।
खैर अपने तो पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं, फ़िर से शुक्रिया। अब आपने तो मुझे जाने अनजाने खुशी दे दी है, मेरा भी फ़र्ज बनता है कि अपको थोड़ा सा आगाह कर दूँ। मेरी वैफ़(गिरिजेश जी, वैफ़ ही लिखा जायेगा यहाँ पर, काहे कि जब हम अंदर से खुश हों और ऊपर ऊपर से गुस्सा दिखाने का प्रयत्न करते हैं तो वाईफ़ को वैफ़ कहकर बुलाते हैं), हां तो पुजा देबी जी, अगर मेरी वैफ़ को ये सब प्रकरण पता चल गया तो मेरा तो जो हाल वो शक और हालात के मद्देनजर करेगी सो करेगी, आप को दिक्कत आ सकती है।
मेरे से इतना प्यार करती है मेरी वैफ़ कि मेरी तरफ़ आने वाली हवा, धूप, टिप्पणी गरज ये कि स्त्रीलिंग वाली कोई भी कुदरती या मानव निर्मित चीज उसे अपने लिये खतरा लगती है। इज्जत भी पूरी करती है वैसे तो मेरी, करती है तभी तो उतारती है:) उसका सबसे पहला डायलाग ये होना है, “मैं उसकी गुत काटकर उसके हाथ में दे दूंगी(और आपका गला) ” दूसरा, “आ गई एक और मेरी जान की दुश्मन(एक को भगाओ तो दूजी चली आती है)” तीसरा, “पता नहीं सारे मेरी जान के पीछे ही क्यों पड़ी हुई हैं(जैसे जान नहीं रसगुल्ला है)?” चौथा, “जरूर पहले से कुछ गड़बड़ चल रही होगी, आप तो हो ही ऐसे शुरू से ही (गुडविल\बैडविल बहुत है अपनी)” पांचवा, “मुझे पता था, एक न एक दिन ये होना ही है(अब तक कैसे नहीं पकड़े गये?)” और मैं, थोड़ा उसके प्यार को समझते हुये और ज्यादा अपनी इज्जत की परवाह करते हुये कुछ कह नहीं पाऊँगा। वैसे भी ये वाली पोस्ट मेरी ’ओ जी’ की बड़ी फ़ैवरेट पोस्ट है। अरे देबी जी, आपको लेकर ही जानी थी तो कोई और पोस्ट ले जातीं, या फ़िर ले जाने से पहले या बाद में एक सूचना भर दे देतीं तो इससे आपकी इज्जत कोई कम नहीं हो जानी थी और मेरी थोड़ी सी इज्जत अफ़जाई हो जाती।
सच में आपको इस बात की खैरियत मनानी चाहिये कि अभी मेरी बेचारी पत्नी(मेरी पत्नी है, ये ही अपने आप में उसकी बेचारगी का सुबूत है) अपने स्वास्थ्य आदि व्यक्तिगत समस्याओं के कारण मसरूफ़ है और इस तरफ़ उसका ध्यान गया नहीं है, नहीं तो बस हो जानी थी दो पडौसी राज्यों की टक्कर।
आगे से ध्यान रखियेगा, गलती हम सबसे होती है लेकिन आगे के लिये हम सबक सीख लें तो बेहतर ही है। मानें आप तो अच्छा है नहीं तो हमारी तो देखी जायेगी..!!
:) फ़त्तू शादी के बाद बहू को लिवा कर घर आ रहा था। दोनों पैदल ही लौट रहे थे। रास्ते में एक छोटा सा नाला आया। फ़त्तू ने तो लगाई छलाँग और हो गया पार, बहू अटक गई।
हारकर बोली, “ए जी, मुझे भी नाला पार करवाओ न”
फ़ेरों और जयमाला के दौरान फ़त्तू उसके बहुत नखरे झेल चुका था, बोला, “इब आई ना ऊँटनी पहाड़ के तले? पार तो करवा दूंगा पर पहल्यां तीन बार काका बोल मन्ने।”