(एक निम्न मध्यमवर्गीय एकल परिवार के स्टिंग ऑपरेशन का नाट्य रूपांतरण)
"इतवार के दिन भी घर की समस्याओं की तरफ़ ध्यान मत देना, तुम्हारे किताबों में सिर छुपा लेने से जैसे सब काम अपने आप हो जायेंगे। बच्चों के स्कूल खुल गये हैं। इस बार तीन महीने की फ़ीस जानी है, नई वर्दी और किताबें लानी हैं लेकिन तुम्हें इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पिछले महीने का मकान का किराया नहीं दिया अब तक। मकान मालकिन कैसे टेढ़ा टेढा बोलती है, मैं जानती हूँ। लेकिन तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता। करम फ़ूटे थे मेरे जो.....।"
"अरे पूरे हफ़्ते वो मालिक खून पीता है, कम से कम एक दिन तो चैन की साँस आने दो। एक बार बड़बड़ाना चालू करती हो तो फ़िर दुरंतो एक्सप्रेस की तरह नोन-स्टोप भड़भड़ भड़भड़..। कई दिन से सोच रहा था कि अब मैं भी कविता लिखूंगा। मुश्किल से विचार इकट्ठे हो रहे थे, तुम्हारी बकबक एक्सप्रेस ने सब बिखेर दिया। तुम्हारे फ़ूटे करमों को भुगत कौन रहा है? मैं ही तो। ये नहीं कि एक प्याली चाय बना देती।"
"चाय नहीं, गरमागरम खीर बना देती हूँ न। दूध की तो नदियाँ बहा रखी हैं जैसे तुमने घर में। बच्चे भी दिन में एक से दूसरी बार दूध मांग ले तो दूध में फ़ैट और मिलावट बताकर बहला देते हो। लिखेंगे कविता देश को आगे बढ़ाने की, हुंह। जैसे तुम्हारे लिखने से ही सारे हिंदुस्तानी देशभक्त बने हैं। पहले पता होता कि तुम्हें कागज काले करने का शौक है तो मेरे पिताजी मुझे यहाँ झोंकते भला?"
"रहने दो तुम्हारी खीर, तुम्हारी बातों से ही पेट भर जाता है। अगले हफ़्ते तन्ख्वाह मिल जायेगी तो सब शौक पूरे कर लेना। देशभक्ति पर लिखने के जनरली तीन मौके होते हैं - छब्बीस जनवरी, पन्द्रह अगस्त और चुनाव। आज देशभक्ति पर नहीं, सामाजिक समस्या पर लिखने की सोची है।"
"जानती हूँ तुम्हारी कलमिया तलवार को, सामाजिक समस्या पर लिखोगे तो एक नई समस्या और पैदा हो जायेगी।"
"अरे गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, शोषण पर लिखूँगा लेकिन आज मैंने कविता जरूर लिखनी है, आधी प्याली चाय ही बना दो यार।"
"एक बार जता दिया तो समझ लेना चाहिये कि दूध खत्म है, चाय नहीं बन सकती।"
"अच्छा बाबा, तुम सही कहती हो। देश नहीं, समाज भी नहीं, समस्या भी नहीं तो आज प्यार, रोमांस जैसी नाजुक भावनाओं पर ही कुछ कोशिश करूंगा लेकिन भगवान के वास्ते कुछ देर मुझे अकेला छोड़ दो। दिमाग वाला काम है बहुत।"
"नालायकों के बस्ते भारी, तुम लिखोगे प्यार-व्यार पर कविता? किंतु तुम खुद ही तो कह रहे थे कि ये बहुत दिमाग वाला काम है?" ........................................... क्या हुआ, चुप क्यों हो गये? कोई एक टॉपिक तो फ़ाईनल हुआ नहीं तुमसे, खाक कविता लिखोगे तुम।"
"मैं, मैं तुम पर कविता लिखूँगा।"
"मुझ पर?"
"हाँ रानी, तुम पर। कैसे इतनी तकलीफ़ में भी तुम मेरा सहारा बनी हुई हो, मेरी हर समस्या से आगे बढ़कर जूझने लगती हो। कोई और होती तो कब की मुझे छोड़ गई होती।"
"तुम भी न बस्स, बाल पकने लगे लेकिन ..। मैं अभी तुम्हारे लिये इलायची वाला दूध गरम करके लाती हूँ फ़िर आराम से बैठकर सोचना। बच्चों के साथ बाजार मैं ही चली जाऊंगी। तुम्हें भी तो आराम के लिये सप्ताह में एक ही दिन मिलता है।"
पति के बालों में उँगलियाँ फ़ेरकर प्रफ़ुल्लित मन से पत्नी कमरे से बाहर निकल जाती हैं।
:D :D :) :)
जवाब देंहटाएंजय श्री राम।
हटाएंभाई कहाँ की घटना बता ड़ाली?
जवाब देंहटाएंबताया तो भारत के ’एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार’ की :)
हटाएंआनंद दायक रचना ...
जवाब देंहटाएंमगर ऐसा कहीं होता है यार..
न इनपर कविता लिखने का मन हो और न कभी चाय मिली !
बड़े भाई, चाय की तलब जो न करवा दे थोड़ा है:)
हटाएंइस इलायची वाले गुनगुने दूध में बहुत ताकत होती है जनाब । मेरी दो कहानियां इसी से जन्मीं हैं।
जवाब देंहटाएं:) कुछ लोग लाजवाब होते हैं!
हटाएंदीप पांडेय,
हटाएंऔर कितनी कहानियाँ अजन्मी ही रह गई होंगी :)
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जवाब देंहटाएं:)
हटाएंभोले तो पति परमेश्वर होते हैं जी, आधी प्याली चाय के लिये क्या कुछ नहीं करना पड़ा बेचारे को।
हटाएंचलिये ओपरेशन वाली बात पर समझौता कर लेते हैं, इसे कह देते हैं ’एक झाँसा ऑपरेशन का स्टिंग ऑपरेशन’ चलेंगा न?
:)
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंहिंदी में शायद डंक अभियान कहेंगें ।पर संजय जी के बताए इस वाकये में डंक किसने मारा और किसे लगा स्पष्ट नहीं और कोई नई बात भी नहीं पता चली।ये तो मध्यमवर्गीय क्या हर वर्ग के परिवारों में होता है।अपने साथी को कभी कभी ये बताना पडता है कि उसका हमारे लिए क्या महत्तव है।अब ऐसी सिचुएशन में पति खुद जा के चाय बनाने लगे या विवाद शांत करने के लिए बात करना बंद कर दे तो आप ही यूँ कह देंगें कि देखो प्यार के दो बोल बोलने में इनका अहम् आडे आता है और बोल देंगे तो कहेँगें कि झाँसा दे दिया।तो फिर पति क्या करे ।
हटाएंराजन,
हटाएंराजन,
अरे बाबा मुझे 'स्टिंग ओपरेशन' शब्द से ओब्जेक्शन है। ऐसे में लगता है पत्नी अपराधी है और उसको पकड़ने की साजिश हो रही है। तभी तो कहा झाँसा ओपरेशन है ये।
पति को पत्नी से बहुत प्यार से लेकिन सच कहना चाहिए। झूठ-मूठ कह दिया कविता लिखूंगा तुम पर और फिर नहीं लिखा तो पत्नी को एक और मौका मिलेगा अविश्वास करने का, इसलिए कविता तो अब लिखनी ही पड़ेगी संजय जो को। :)
बाय दी वे ...वो कविता कहाँ है, जिसके लिए इतना ताम-झाम किया गया ? :)
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हटाएंलीजिए बताइये अदा जी की टिप्पणी पर कुछ कहने आए पर वह कमेंट तो स्पाम में गया।भाई संजय जी यदि मेरा भी ये कमेंट स्पाम में चला जाए तो इसका कान खींचकर बाहर निकाल लेना और दो चपत भी लगाना मेरी ओर से ।वैसे जाएगा नहीं, मुझे पता है।
हटाएंअदा जी
हटाएंमै हमेसा कहती हूँ लड़कियों को पत्नियों को हर बात में ज्यादा सेंटीमेंटी नहीं होना चाहिए, सेंटी बनो मेंटल नहीं :) इन्हें क्या लगता है की पत्निया समझती नहीं है , ज्यादातर तो ये देखती है की लो सामने वाले ने तो अभी ही अपना आखरी हथियार चला दिया अब इसके पास कुछ बचा ही नहीं तो ऐसे से अपना सर क्या फोड़ना , ये करेंगे तो वही जो चाहेंगे :)
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हटाएंअदा जी ,लेखक पति को लगा होगा कि पत्नी इससे कम पर मानेगी नहीं इसलिए कह दिया होगा।वैसे ये काम पति पत्नी दोनों ही करते हैं।आपने भी अपने लिए स्वीकार किया है।और दोनों को ही पता रहता है कि सामने वाला यूँ ही कह रहा है पर इतना सुनकर ही दोनों खुश हो जाते हैं कि चलो कहा तो सही,मुझे मनाया तो सही।हाँ लेकिन बार बार ऐसा करना ठीक नहीं होगा ।जो कहा है कभी कभी उस पर अमल भी करना चाहिए ।
हटाएंअदा जी,
हटाएंताम झाम कविता के लिये? न जी, बिलकुल नहीं। वो तो चाय के लिये था :)
इलायची वाला दूध? मजबूरी जो न कराये! एक पुत्र के दूध मांगने पर आटा घुला पानी पिलाना पड़ा तो देखो "दूध घी का खाण" गुरूग्राम से गुड़गाँव हो गया
जवाब देंहटाएंबरोबर सरकार, मजबूरी जो न कराये.
हटाएंसुखान्त -जैसे इस दम्पति के दिन बहुर रहे हैं भगवान् सभी का करें! :-)
जवाब देंहटाएंसही कामना है अरविन्द जी, चाय के तलबगार को चाय मिले और कविता के तलबगारों को कविता :)
हटाएंदिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छे ही होते हैं . निम्न्मध्यवर्ग किसी भी तरह मुस्कुरा पाता है , क्या कम बड़ी बात है !
जवाब देंहटाएंबड़ी बात ही मानते हैं जी हम भी.
हटाएंइसी बहाने सही ...
जवाब देंहटाएंहम्म, इसी बहाने सही चाय तो मिली भाई साहब को। है न?
हटाएंRam Ram ji darbar main hajir hai...
जवाब देंहटाएंसामाजिक समस्या पर लिखोगे तो एक नई समस्या और पैदा हो जायेगी।"
jai baba banaras...
हटाएंकाम की बात ढूँढ ही लेते हो कौशल भाई आप भी :)
इगो पर सटीक डंक है........
जवाब देंहटाएंयह कटाक्ष है मनुष्य के उस दंभी वर्ताव पर, जब मनुष्य दूसरों की आलोचना कर उनके गर्व को चूर चूर करने में रत रहता है पर अपनी प्रशस्ती का प्रश्न आते ही स्वाभिमान की शरण में खुद को समर्पित कर देता है.
सुज्ञ जी ,ऐसा भी हो सकता है पर यदि कोई दूसरे की आलोचना कर रहा है या उसे कोई शिकायत या समस्या है तो वह जेनुइन भी तो हो सकती है।क्या शिकायत नहीं करनी चाहिए ?यहाँ ईगो वाली बात लागू नहीं होती।बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है कि उस समय व्यक्ति का मूड कैसा है।हाँ अपनी प्रशंसा सुनना तो सभी को अच्छा लगता है।
हटाएंजी,राजन जी,
हटाएंआलोचना शिकायत या समस्या जेनुइन भी हो सकती है और निर्थक भी. किंतु वे आलोचनाएँ भी जहाँ जाकर चोट करती है उसके भी ईगो होता ही है.इसलिए स्व और पर, ईगो को समान दृष्टि से मानना चाहिए. मूड पर नहीँ, अन्यथा दूसरे को हर्ट करते तो महसुस भी ना होगा किंतु अपना हर्ट होते ही दुख का मूड बन जाएगा.
सुज्ञ जी ,ये झुँझलाहट तनातनी तब होती है जब एक बार शिकायत का कोई फायदा नहीं हुआ हो।ऐसे में जिस पक्ष की गलती हो उसे ही उलझने के बजाए पीछे हट जाना चाहिए और अपनी गलती सुधारनी चाहिए ।
हटाएंहोना तो यही चाहिए, किंतु 'पीछे हट','सुधार' आदि में भी जिस-तिस पक्ष का ईगो ही आ खडा होता है.
हटाएंसच कहु तो जब से मै ब्लॉग जगत में हूँ तो सोचती हूँ की ये पति लोग जो ब्लॉग पर रात दिन नजर आते है अपने बीबी बच्चो को समय कब देते है , उनकी पत्निया ये सब झेलती कैसे है की पति घर आया और बैठ गया ब्लॉग पर , मै तो तब ही रहती हूँ जब अकेली हूँ और कोई काम नहीं है समय हो तब , पति बच्चो को छोड़ कर ये सब करना .................................।
जवाब देंहटाएंमतलब पति लोगों को कभी भी ब्लॉगिंग नहीं करनी चाहिए ।
हटाएंदिन रात नजर आने वालों के बारे में ऐसा सोचना स्वाभाविक है, हम तो रात बेरात वाले हैं.
हटाएंअब यारों के घर के भी स्टिंग आपरेशन होंगे
जवाब देंहटाएंहोर करो यारी बुड्डों ठालों से :)
हटाएंकभी तो बड़ा मारक हो जाता है स्टिंग आपरेशन. बहरहाल इसी तरह की कहानी प्रेमचन्द साहब की होती तो आलोचना के स्थान पर वाह वाह हो रही होती.
जवाब देंहटाएंसरजी, ये आलोचना ही तो हमारी दूध् मलाई है आजकल।
हटाएंभैया जी आपने चाय में बड़े दाने वाली पत्ती डाली इसीलिये ये चाय बड़ी अच्छी लगी . मेरा दावा आपके सिवाय इतनी खुबसूरत पोस्ट मेरे अलावा कोई नहीं लिख सकता था लेकिन हाय री किस्मत हम तो बिन घर आली के हैं .....
जवाब देंहटाएंकविवर, आपका ब्लॉग खुल नहीं रहा था। कुछ फ़ेरबदल किये हैं क्या?
हटाएंबिग बासात्मक दृष्टि.
जवाब देंहटाएंहमें तो इसमें नाटक से परे अपना रोल दिखाई दे रहा है.. ज़रा हमारी छुटकी (अर्चना चावजी) बहन लौट आयें, तो फिर सोचते हैं.. हल्का फुल्का स्वस्थ मनोरंजन.. जिसके लिए तरस गए हम पिछले एक क्वार्टर.. कमबख्त यहाँ भी वही निकल रहा है.. पिछले तीन महीनों से!!
जवाब देंहटाएंआप सोचेंगे\करेंगे तो फ़िर सँवरना तय ही है सलिल भाई।
हटाएंम्हारे देस पधारने का शुक्रिया :)
किस पत्नी को अपनी तारीफ अच्छी नहीं लगती, तारीफ करने का स्टाइल बढिया होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसमस्या की कटुता पर संबंधों की मधुरता जीत जाती है।
जवाब देंहटाएंहा हा हा.... कल की आप बीती याद आ गई...
जवाब देंहटाएंश्रीमती जी मुंह बनाते हुए कह रही थी मुझे पता होता कि पत्रकार ऐसे होते हैं तो कभी ब्याह नहीं करती तुमसे...
तुम्हे तो किताबों से प्रेम है... मेरी तो फिक्र ही कहाँ...
फिर उसकी जरा सी तारीफ क्या कर दी. सब शिकायतें दूर. दुनिया का सबसे अच्छा दूल्हा राजा मैं ही बन गया.
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
जवाब देंहटाएंतस्मात् तद् एव वक्तव्यम् वचने का दरिद्रता।