दिल्ली के साथ भी एक विचित्र सा सम्बन्ध रहा है, न हम बंधें और न ही छूट सके। जीवन में दो ही मुख्य उद्देश्य रह गए लगते हैं, दिल्ली में कुछ वर्ष रहो तो 'चलो दिल्ली से' और कुछ वर्ष दूर रहो तो 'चलो दिल्ली।' एक बार पुनः दिल्ली छूट रही है, एक बार पुनः मैं अनिश्चय की स्थिति में हूँ कि प्रसन्न दिखना चाहिए या अप्रसन्न। मेरी चिंताएं भी तो विचित्र हैं, साथी लोग बताते हैं कि मुम्बई में आवास मिलना बहुत कठिन है और मुझे चिंता है कि छाता तो नहीं खरीदना पड़ेगा?
अन्ततः यही तय पाया गया कि देखें आगे क्या होता है। और कुछ नहीं तो इस बार नॉस्टैल्जिक होने का अभिनय भी सीख लेंगे☺️
मुम्बई में आपका स्वागत है,
जवाब देंहटाएंमैं ठाणे में रहता हूँ लेकिन मुम्बई आना जाना लगा रहता है, शायद इसी बहाने कभी आपसे मुलाकात हो, आपको एक लंबे समय से पढ़ रहे हैं।
nrohilla@gmail.com
धन्यवाद नीरज भाई। कौन जाने ठाणे का ही पानी पीना पड़े☺️ हमारे बैंक के मुम्बई जोन में मुंबई के अतिरिक्त ठाणे और गोआ राज्य भी आते हैं।
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जवाब देंहटाएंदिल्ली वालों को मराठे ज्यादा नहीं भाते फिर धीरे धीरे आदत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंसहानुभूति विचित्र चिंताओं से..
जवाब देंहटाएंचलो दिल्ली..
चलो दिल्ली से..
🙂🙏