मंगलवार, जुलाई 05, 2011

ऑल जगराँव ब्लॉगर(स) एसोसियेशन भंग, तंबू उखड़ा:)


बहुत पहले कभी एक कहानी सुनी थी, किसी व्यक्ति ने जप-तप करके यह वरदान पा लिया कि जब उसकी मृत्यु आयेगी तो उसे संबंधित डिपार्टमेंट द्वारा  पहले सूचित कर दिया जायेगा। मित्रों परिचितों ने बहुत उल्टा-सीधा कहा कि माँगना ही था तो कुछ ढंग की चीज़ माँगी होती लेकिन बंदे ने कुछ सोचकर ही वरदान माँगा था। उसकी योजना ये थी कि खुलकर ऐश(क्लैरिफ़िकेशन – ऐश बोले तो लक्ज़री वाली ऐश)  की जिन्दगी बितायी जायेगी और मृत्यु की सूचना तो मिल ही जानी है, अंत समय में फ़िर से पूजा पाठ, संयम से काम लेकर अपना परलोक सुधार लिया जायेगा। जिन्दगी की गाड़ी चौथे पांचवे गियर में चलती रही और एक दिन अचानक यमराज ने पहुँच कर कूच करने को कह दिया।     अब बंदे ने सीधे से वादाखिलाफ़ी का दावा ठोंक दिया जैसे सरकार आंदोलनकारियों पर और आंदोलनकारी सरकार पर आरोप ठोंकते रहते हैं, “मुझे ये वरदान मिला था कि म्रूत्यु के आने से पहले उसकी सूचना दी जायेगी, जब आज आप अचानक ही आ गये। ये वादाखिलाफ़ी है। कम से कम एक बार तो समय रहते मुझे सूचित किया जाना चाहिये था।”
     
उसके प्रोटैस्ट को ओवररूल करते हुये स्पष्टीकरण दिया गया, “कुछ साल पहले आपके बाल सफ़ेद होने लगे थे, उसके कुछ साल बाद आपकी नजर धुंधला गई थी, फ़िर आपके दाँत गिरने शुरू हुये और उसके कुछ समय बाद आपके हाथ-पाँव काँपने लगे थे । ये सभी आपकी आसन्न मृत्यु की सूचनायें ही थीं कि आप सावधान हो जायें। अगर आप नहीं समझे तो यह गलती आपकी है।” कहानी खत्म।

अब आप इल्ज़ाम लगायेंगे कि ऊपर ब्लॉगर एसोसियेशन का बैनर टाँगकर नीचे अंधविश्वास, आस्तिकता वगैरह वगैरह की कहानियाँ सुना रहा हूँ। लगा लो इल्ज़ाम, लेकिन पहले मेरी पूरी बात पढ़कर।

साल भर पहले हमारी शाखा में कुछ रेनोवेशन का काम हुआ। बेहद जरूरी वाले काम हो गये, जो टाले जा सकते थे वो बदस्तूर  टल गये। साल भर तक जिस केबिन में बैठकर  स्कैनिंग और ऐसे ही दूसरे बैक आफ़िस के काम करता  रहा,  पिछले महीने वहाँ लाईट और पंखे की फ़िटिंग हो गई।    दो सप्ताह पहले  स्टाफ़ के लिये बढ़िया वाली नई कुर्सियाँ स्वीकृत हो गईं,  पिछले सप्ताह ए.सी. की भी सैंक्शन आ गई। अपन तो तभी समझ गये थे कि चलाचली का वक्त आ चला है। 
ट्रेन में सफ़र करते हुये कुछ बात होने पर एक लड़की ने लड़के से कहा, “एक लात मारूँगी सीधे गाजियाबाद जाकर गिरेगा।” वो बोला, “जी थोड़ा धीरे से मार देना, मुझे साहिबाबाद उतरना है।” 
अपने को थोड़ा  धीरे वाली ही लगी है,   दिल्ली नहीं मिली लेकिन दिल्ली सी मिल गई है। शायद ये सप्ताह यहाँ आखिरी सप्ताह है।

तो साहिबान, कदरदान     ’ऑल  जगराँव    ब्लॉगर(स)  एसोसियेशन’  के पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर      होने के नाते आप सबको सूचित कर रहा हूँ कि तत्काल प्रभाव से इस स्वयंभू संस्था, जिसका कभी गठन हुआ ही नहीं था, भंग की जाती है। वैसे टीन-टप्पर समेटने में दो चार दिन लगने तय हैं। जिसका कोई हिसाब किताब रह रहा हो, अभी चुकता कर ले, बाद की अपनी कोई गारंटी वारंटी नहीं है। वैसे तो अभी की भी नहीं है लेकिन फ़िर भी कहकर अपना फ़र्ज पूरा कर रहे हैं। बाद में तो हम सीधे से मुकर ही जायेंगे, उस काम में वैसे भी माहिर हैं। किसी के सामने दूसरे की चुगली करेंगे, कान भरेंगे, गालिब वाला शेर पढ़ेंगे ’ये होता तो क्या होता’ और मौके पर मुकर जायेंगे कि हमने तो ऐसा कुछ कहा नहीं:)

ठीक है, मान लिया कि पुराना हिसाब  क्लियर और  किसी ने कुछ लेना देना नहीं है। नई जगह पर जाकर नई बही बनायेंगे, नये हिसाब शुरू होंगे।

लगभग डेढ़ साल पहले यहीं एक छोटे से टैंपो पर लिखा देखा था, "मैं वड्डा होके ट्रक बनांगा"   वो पता नहीं ट्रक बना कि नहीं लेकिन मुझे जहाज बना गया:)  घर से बहुत दूर रहते हुये यहाँ  इतना प्यार, अपनापन  मिला जिसका कोई हिसाब नहीं। जैसे बीरबल की खिचड़ी वाली कहानी में दूर कहीं दूर जलते दीपक को देखकर किसीने सर्दियों की रात पानी में नंगे बदन रहकर निकाल दी थी, अपन ने भी सवा तीन साल निकाल लिये। होगी बहुतों के लिये ये ब्लॉग की दुनिया बेकार, हमने तो   बहुत कुछ पाया है इस ब्लॉगिंग से, आप ब्लॉगर्स से। 

अभी कल ट्रेन के एक पुराने डेली पैसेंजर साथी का फ़ोन आया था। पूछ रहा था,  “भाई साहब, गर्मी कैसी है?’  मैंने बताया, “गर्मी काफ़ी गरम है यहाँ, मजा  आ रहा है।” वो हँसने लगा, और बातों के बाद कहने लगा, “भाई साहब, सच तो ये है कि आप सजा काट रहे हो और बात मजे की कर रहे हो।”   क्या कहता भोले बंदे को, है कोई जवाब?   अबे भैये, सच तो ये है कि मजा के बाद सजा भुगतनी पड़े तो बहुत मुश्किल और सजा के बाद मजा आये तो आनंद ही आनंद।   और जो कहीं सजा और मजा का साथ हो जाये तो क्या कहने?

देख लो, ब्लॉग मेरा,  मेहनत मेरी और गाना भी वैसे तो मेरे मन का ही है, बहुत प्यारा, लेकिन ये क्या बात हुई कि गन प्वाईंट पर मजबूर किया जाये कि इस पोस्ट पर यही गाना लगना चाहिये, नहीं तो….।  मरता क्या न करता, लगाना पड़ा। भुरभुरे स्वभाव का ये अंजाम तो होना ही था:)

बाय बाय पंजाब, फ़िर मिलेंगे……..


64 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्र है अंत में बाय बाय पंजाब लिखा है शुरू में पढ़ कर तो लगा अंत में बाय बाय ब्लोगिंग लिखने वाले है | अभी के लिए इतना ही बाकि कल क्योकि जरा बही खता तो देखा ले की आप से कितने की लेनदारी बाकि है फिर पक्का हिसाब देते है |

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  2. लात वाली बात के सन्दर्भ में एक डाउट है: "कुछ बात होने पर" में ऐसी क्या बात थी जो लड़की ने ऐसा कहा ?
    [अजमाना है. गोल-मटोल जवाब नहीं चलेगा. नो स्माइली, आई एम सीरियस ! ]

    मजा में मजा वाली बात नहीं जब तक वो सजा के बाद वाला मजा ना हो. जब तक सजा का तड़का ना हो फील ही नहीं आता कि मजा किस चिड़िया का नाम है !

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  3. @ सीरियस ओझा:
    लड़के ने लड़की की तारीफ़ की थी, लड़की ने बोला थैंक्यू। लड़का बस इतने में पजामे से बाहर हो गया, लड़की की टाँगों की तारीफ़ करने लगा। तत्पश्चात यह वार्तालाप हुआ।
    जवाब इससे ज्यादा सीधा नहीं हो सकता। यार, सीरियस मत हुआ करो।

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  4. ओ जी जहाज जी,
    तो उड़ने की तैयारी है आपकी...आपके क्या कहने..हम तो आज तक टैंपो भी ना बन पाए...मुबारकां !!
    लिखने में आप सम कौन भला..हम तो जीवन की उठा-पटक से जब भी घबराते हैं...आपका ब्लॉग पढ़ने चले आते हैं...
    वैसे हवा-हवाई भी आप सा कोई नहीं है...कितनी लम्बी फेंकते हैं....आप और गन पॉइंट पर..?ऐसन कौन है भला ? कभी मिलवा ही दीजिये आपकी/आपके तमन्ची/तमंचे वाले/वाली से कुछ हम भी सीख लेंगे...काहे की गाना हमरा महाफेवरेट है...माना कि नवीन साहब एक नंबर के फ्लॉप स्टार थे..लेकिन इस गाने में उनकी बात ही कुछ और है..
    अब एक राज़ की बात कहें...हम इस गाने का ज़िक्र वाणी जी के ब्लॉग पर करने वाले थे जहाँ उन्होंने प्रेम/प्रीत की बखिया उधेडी थी....अच्छा हुआ नहीं किया...
    हाँ नहीं तो...!!

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  6. संजय भाई
    आपसे से अच्छा वार्तालाप कोई नहीं लिख सकता है,
    इससे पहले एक और लेख तीन चार भाग में था,
    वो वाला जिसमें लडकी चडीगढ जाती है,
    और उसे मिल कोई अपना पुराना दोस्त जाता है बैंक वाला।

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  7. मजेदार विदाई भोज के साथ बीच-बीच में चटनी पंच.

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  8. आपके होने से एक आफिस का रेनोवेशन हुआ अब अगले का भी होना है :)

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  9. आपकी पोस्ट पढ़कर शोले फिल्म की बसंती याद आ गई। बड़ी प्यारी और ढेर सारी बातें करती थी।

    आपकी पोस्ट को पढ़कर यह भी समझा जा सकता है कि जीवन में
    दुःख सुख का महत्व नहीं, महत्व है कि आप उसे कैसे जीते हैं।

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  10. ऐ भाई ( कुटिल ...खल और पता नहीं क्या क्या ...)
    और हम जैसे आपके चेले कहाँ जाएँ ...???
    यह भी बताते जाओ !

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  11. एक कहानी के भीतर कई कहानी...
    पंचतंत्र वाली शैली पसंद आई,
    पंचतंत्र में पंच के सभी संभावित अर्थ फिट कर लें।

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  12. @ अदा जी:
    ऐसी बखिया उधेड़ती हैं आप कि इंसान हो तो गनप्वायंट भी भूल जायें:)
    हाकिमो-मुख्तार ऐसे कहाँ जो अरजी मान लें? उनसे तो यूँ कहा जाये कि और कहीं बेशक भेज दीजिये, बस कनाडा मत भेजियेगा तब कहीं जाकर लात की डायरेक्शन और फ़ोर्स towards & to Canada होगी। बहुत बेदर्द हाकिम हैं हमारे, हां नहीं तो..!!

    @ संदीप:)
    बहुत पीछे पहुँच गये महाराज, हो पहुँचे हुये तुम भी:)
    धन्यवाद इतना टाईम देने के लिये।

    @ सतीश सक्सेना जी:
    ए भाई, ये नया इश्टाईल, वो भी हमसे ही? चेले शब्द पर स्ट्रांग वाला प्रोटैस्ट और बाकी आपके कमेंट में ’जा’ को ’आ’ करके पढ़िये तो जरा। हम आ रहे हैं, और आप जाने की बात करते हैं:)

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  13. मैंने पाया है सिग्नल पहचानने वाले अक्सर परेशान रहते हैं , शायद अपन भी इसीलिए परेशान हैं :(
    अब बात ब्लोगिंग की .....अपना तो मानना है ... ब्लोगिंग बहुत काम की चीज है , अपन ने तो इससे दुनियादारी सीखी है .. इन फ्यूचर काम आएगी :) एक दम पक्की बात है . एक फंडा बताता हूँ .. जहां असहमति हो वहां मौन साध लो .. बस...
    ..बिना ज्यादा साइड इफेक्ट के दुनिया देख ली और क्या चाहिए :)

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  14. पता नहीं कितने ऐसे ही नोटिस हम कूड़ेदान में फेंक देते हैं।

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  15. apan to dar hi gaye......kahe se ki......aaj-kal
    hawa(blogging) ke......ulta chal raha hai.......
    post ke suruaat me jo suspence bana......o antim
    line me jakar khatam hua.....nahi to hum kis se
    sahmat hote..........

    pranam.

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  16. तो आपने बता ही दिया कि आप सचमुच के कुटिल खल कामी हैं। एक तीर से दो शिकार। जो असोसियेशन बनी ही नहीं उसको भी भंग कर दिया। भैया उनका क्‍या होगा जो एक दो नहीं दर्जनों बनाकर बैठे हैं। शुभकामनाएं।

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  17. .मनोरँजक पोस्ट !
    कृपया कारण स्पष्ट करें कि,
    क्यों न आपको चुटकी-सम्राट की उपाधि न दे दी जाये ?

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  18. jai baba banaras.....

    abhi puri chutti nahi huyee hai.....

    jai baba banaras....

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  19. लिखने से पहले सोच लिया करे नहीं तो भारी पड़ेगा | जहा जा रहे है वह वालो ने ये पढ़ लिया तो तीन के बजाये हर साल आप के चला चली की बेला आने लगेगी लोग कहेंगे की यदि आफिस में कुछ सुविधाए रिनोवेशन चाहिए तो संजय जी को चलता करने का परमिट पास करवा लीजिये हो जायेगा काम | और ये तो सुना था की कमरिया के धक्के से बलम कलकते गिरा करते थे लात से गाजियाबाद गिरने की सुविधा के बारे में पहली बार पता चला गाजियाबाद जाने वालो को सजा और मजा दोनों मिलता होगा | अच्छा हुए असोसियेशन टूट गई जहा कोषाध्यक्ष जैसा पद न ही ऐसे एसोसियेशन का बनना न बनना बराबर है | और आप कैसे कह सकते है की पुराना हिसाब किताब सब बराबर है एक सी ए बिठा दिया है मेरी दी गई टिप्पणियों और आप की दी गई टिप्पणियों की वजन उच्चाई लम्बाई आदि आदि का हिसाब किताब कर रहा है पूरा होते ही आप को खबर करती हूँ |

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  20. हमें भी ऐसा ही लगा कि शायद ब्लोगिंग को ही बाय कहा जा रहा है...
    बाय पंजाब के बाद हाय '...... ' का इंतज़ार रहेगा

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  21. बाउजी आप तो सिर्फ जगह ही बदल रहे हो लोग तो ब्लॉग तक बदल देते हैं...जहाँ जाओ खुश रहो ते बाकियां नू खुश करते रहो...

    नीरज

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  22. ऐसे टाईटल लगा कर डराया मत करो जी
    एक तो आपने ब्लॉग फीड आधी कर दी है। यानि आपका ब्लॉग खोले बिना पूरी पोस्ट पढ ही नहीं सकते। कहीं आपको ये डर तो नहीं हैं कि हम आपकी पोस्ट पढकर बिना टिप्पणी दिये खिसक सकते हैं ;)
    दिल्ली के आस-पास यानि कहां तक पहुँचे, बता तो देते, प्रभो!
    "ना जी भर के देखा ना कुछ बात की
    बडी आरजू थी मुलाकात की"

    समझ गये ना, हिसाब अभी बाकी है, भगवन

    प्रणाम

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  23. एक तीर दो निशाने? लाजवाब!! शुभकामनाएं, पुराने हिसाबों-किताबों से फ़िर शुरू करेंगे। बधाई

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  24. ये एक संस्मरण जैसा नहीं लगता है..है कौन वो/?
    हम दिल्ली में रहते हैं..कभी कभी ग़ाज़ियाबाद तक जाते हैं....मगर साहिबाबाद दर्शन नहीं हुआ,,
    और लात खा कर नहीं खुद से ही भ्रमण कर लेते हैं

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  25. @ देवेन्द्र पाण्डेय जी:
    देवेन्द्र भाई, मेरी एक आगामी पोस्ट की आखिरी लाईन चुरा ली है आपने, बस थोड़ा सा मोडिफ़िकेशन के साथ। बसन्ता भी चलता:)

    @ Global:
    अपन बिल्कुल परेशान नहीं हैं गौरव, वो तो सहानुभूति, बेनेफ़िट ऑफ़ डाऊट वगैरह लेने के लिये परेशान दिखने का ड्रामा करते हैं:)
    फ़ंडा डाल लिया है थैली में, धन्यवाद।

    @ नामराशि:
    डरना मना है, सहमत होने का मौका हमें भी मिलना चाहिये भाई।

    @ डाक्टर साहब:
    उपाधि लेकर तो वाहवाही करनी होगी सरजी, ऐंवे ही ठीक हैं बेउपाधे से:)
    आपकी नजर पड़ी, ये उपाधि कम नहीं डाक्टर साहब। आभारी हूँ।

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  26. @ अंशुमाला जी:
    अगली एसोसियेशन भी जरूर भंग होगी, आप तो जज़्बा देखिये:)
    और खबर..देखी जायेगी..!

    @ अन्तर सोहिल:
    there are so many slips, between cup & lips..पहुँचने दो अमित प्यारे, खुद फ़ोन करके बतायेंगे।
    औरे ये फ़ीड फ़ाड पर ध्यान नहीं गया अपना, चैक करेंगे अब। कमेंट की भली कही:)

    @ आशुतोष:
    ’सकल पदारथ हैं जग माहीं, ..’ वैसे भी अच्छे बालक खुद से ही ब्रमण करते हैं:)

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  27. hindi font gadpad dikha raha tha fir bhi kahaani ne ruchi banai rakhi....ant tak padha...achha laga..

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  28. पंजाब को तो बाये कह दिया लेकिन हाय किसे कहा ये नहीं बताया
    ये गाज़ियाबाद वाली सर्विस अच्छी है

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  29. संजय बाउजी!
    मुझे तो ऐसा लग रहा है कि जैसे आपके फेयरवेल का टाइम आ गया है और आप भाषण दे रहे हैं (हमारे प्रतिष्ठान में तो हर साल यह होता ही रहता है).. अपने स्वभाव के अनुसार बीच नीच में चुटकियाँ लेते हुए (डा. अमर कुमार जी की बात का अनुमोदन करते हुए).. मैं भावुक हो रहा हूँ.. मुझे तो याद आ आरहा है वो पंजाबी भाई जिसके बारे में लोग कहते थे कि हाथ मिलाने के बाद उंगलियां गिन लो, या फिर वो जो भोला के साथ हरिद्वार घूम आया और भोला अपनी उसी सैलेरी में मगन, वो जो अँधेरे बियाबान में मकान लेकर रहता है और आधी रात को निकल जाता है किसी पगले का गाना सुनने.. जिसने कई झूठी कहानियां सुनाईं, और लोगों ने आप बीती मान लिया, वो हंसता रहा मगर कई वेदनाएं छिपाता रहा.. वो जो हमेशा कहता रहा कि किसी रोज लपेट कर तम्बू चल देंगे.. वो जो..... अब बस.. शहीदी तेवर उबाल मारने लगा. सवा तीन साल के दरमियान एक साल का लेखा जोखा, हिसाब किताब, बैलेंस शीट में तो हमारा भी हिसाब बनाता है भाई!!
    आज की पोस्ट के बारे में कुछ नहीं.... मज़ा हो या सजा, गाज़ियाबाद या साहिबाबाद, पानीपत या सोनीपत.. दिल्ली ना सही दिल्ली सी सही, कुछ तो और करीब आए...

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  30. सुनने में आया है कि ब्रांच के बाहर कोई/कई गा रहा/रही/रहे था/थी/थे
    रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
    अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह ...

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  31. संजय भाई,
    साध चलदे भले,
    नगरी बसदी भली.

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  32. लगता है RO पता चल गया है, ब्रांच नहीं.
    फत्तू को संग लेते आना...

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  33. @ CS Devendra Sharma ji:
    thanx kahaani pasand karne ke liye:)

    @ दीपक सैनी:
    बाय का मालूम था बता दिया प्यारे, हाय का नहीं मालूम तो क्या बताऊँ अभी। गाजियाबाद वाली सर्विस तो SST है ही:)

    @ चला बिहारी...:
    सलिल भाई, फ़ेयरवैल पर एक पोस्ट फ़िर सही, है शेयर करने लायक। आपका हिसाब को टाईम फ़ैक्टर से नापना है या वजन के पैमाने से? आप भी आ जाते हैं बातों में:)
    और आप भावुक होंगे.. हे भगवान, मुश्किल से तो सतीश भाई जी काबू में आये हैं, अब आप?

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  34. ये लम्बे delay के साथ आने पर बड़ी कसर, बड़े अरमान रह जाते हैं, खैर अमूमन जैसा होता हूँ यहाँ... खुश हूँ, चुप हूँ।
    कुछ पढ़कर बहुत खुश होता हूँ, और बहुत खुश होने पर बोलने को नहीं रहता कुछ।
    और हमेशा ही की तरह बटोर रहा हूँ वो सब जो आप लिख देते हैं हँसी-मुस्कान के बीच।
    ’ऑल जगराँव ब्लॉगर(स) एसोसियेशन’ कोई भंग हुआ दिखता तो नहीं है, globalization है, relocate हुआ है।
    P.S. देर से आना कोई बहुत देरी की बात नहीं है। :)

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  35. बहुत आनंद आया ..............
    मजेदार बात बतकही ..............बहुतै अच्छा गीत

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  36. @ स्मार्ट इंडियन:
    हमारा हजारों का संडे की रेड़ लगवा दी जी, घर न जाकर ब्रांच के आसपास चक्कर काटे गये, कोई नहीं रो रहा\रही\रहे:)

    @ विशाल जी:
    सतबचन महाराज।

    @ Avinash:
    सही है भाई, relocate ही सही। किस्मत की बात है, कोई सागर पार और कोई नदिया के पार:)
    तुम्हारा P.S. भी इतना शानदार है कि हमारा सफ़र भी एक हफ़्ते देर से होना तय हुआ है।

    @ सुरेन्द्र सिंह जी:
    प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद जी।

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  37. :)
    Thanx for motivating me to form All Phillaur National Democratic United Progressive Bloggers Association!
    And the clarification on A(i)sh was indeed necessary!
    Sanjay Bauji, U rock!
    Ashish

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  38. ye smile yanha isliye chodee thee ki ab jab bhee Delhi aaungee to Salil satish Sangeeta aur aapse ek sath milne ka avsar milega.......Ittefaak dekhiye sabhee S naamrashi ke hai.
    Fattoo ke kya haal hai....?
    vaise janha tak mujhe yaad hai abhee thode din pahile hee makaan aur naye school me admission kee baate huee thee ........
    yaaddasht kamzor bhee ho rahee hai....:)

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  39. @ आशीष:
    ओये काके, NDA और UPA दोनों एक ही बैनर तले, & dear, I do not rock, I ढेला:)
    हमने तो सुना था कि लुधियाना\जम्मु में हो, फ़िर अब भी फ़िल्लौर? हम जा रहे हैं अब, तुम भी आ जाओ मेरठ, दिल्ली से पास ही है न...

    @ Apnatva:
    सरिता दी, आईये दिल्ली और दर्शन दीजिये। इंतजार रहेगा।

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  40. सर जी, स्वागत है जी अपनी उसी दिल्ली के आस-पास जहाँ आल रूट पास पता नहीं अब कितने का बनता है और पता नहीं टोटे अब वैसे रहे या नहीं !!! स्वागत है सर जी ।

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  41. बाऊ जी बहुत खूब खेली पारी पंजाब दी!हुन दिल्ली नूँ गुलज़ार करो!

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  42. aaderniy sanjay ji..bahut dino baad aana hua..aapne kahin jaane ki baat ki to maine aapka hi anusaran kar liya..association to bhang kar di per blog sath le jayiyega..jahan jahan jaiyega wahan wahan paiyega..aapki lekhni ka prabah mujhe mantramugdh kar deta hai..sadar pranam ke sath
    drashumishra1970@gmail.com

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  43. गाजियाबाद में भाई साहब हम भी रह रहें हैं.
    मौका निकालिएगा इसी प्रकार से मिलने का.
    गाजियाबाद तो वे पहुंचा ही देंगें.

    आपकी अनुपम शैली की जितनी भी तारीफ़ करूँ कम है.

    मेरा ब्लॉग धन्य हो जाता है आपके दर्शन पाकर.
    आपका इंतजार है.

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  44. कहाँ गायब हो .....दर्शन दो !
    शुभकामनायें !

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  45. अपने ठौर पे पहुँच ही गए होंगे. कहाँ पहुंचे यह भी बताइओ. मुझे भी अपनी देनदारी पूरी करनी है.

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  46. bhaiji upar (comment) wale ki pukar suni jai.....

    intzarasya.....

    pranam.

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  47. संजय बाऊ - कित्थे रह गया हैं यार...... कोई गल बात नहीं... कुज ते बोल - बुवे दिल दे खोल.

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  48. भिक्षाटन करता फिरे, परहित चर्चाकार |
    इक रचना पाई इधर, धन्य हुआ आभार ||

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  49. भाई जी,खेल मदारी का कभी यहाँ कभी वहाँ!

    "पर लेने देने छोड कर लेना मज़े फ़कीरी के,
    ये दिन भी कट जायेंगे जब कट गये वख्त अमीरी के!"

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  50. यह तो पता चला पर दिल्ली के पास कहाँ गिरे यह तो बताया ही नहीं....उम्मीद है अगली बार पता चल जायेगा की गाजिअबाद में गिरे या साहिबाबाद में...

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  51. श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
    बहुत दिनों से आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन नहीं हुआ है.
    आशा है आपकी व्यस्तता कुछ कम हुई होगी.
    समय मिलने पर दर्शन दीजियेगा.
    मेरी हर पोस्ट आपके दर्शनों को व्याकुल रहती है.
    निराश न कीजियेगा.

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  52. संजय भाई, जैसे एक हिट हिंदी फिल्म में सब जरूरी लटके- झटके होते हैं ठीक वैसे ही आपकी इस पोस्ट में कोमल भावनाएं भी हैं, निर्मम व्यंग्य भी...खालिस मनोरंजन भी है, तो जिदगी का फलसफा भी! खास मो सम याना अंदाज़ में...तभी तो यह भी हिट है. मुबारक!!

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  53. @ prkant:
    प्रोफ़ैसर साहब, अब आल रूट पास कितने का भी बने लेकिन पक्का है उतने का नहीं बनेगा। बहुत कुछ बदल गया है:)

    @ ktheLeo:
    देखते हैं सरजी, गुलजार करते हैं या बेज़ार।

    @ Dr. Ashutosh Mishra:
    शुक्रिया डा. मिश्रा।

    @ Rakesh Kumar ji:
    राकेश साहब, धन्य हम होते हैं आपके सत्संग में। आभार।

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  54. @ सतीश सक्सेना जी:
    हाजिर हैं सरकार।

    @ P.N.Subranian Ji:
    पहुँची वही पे खाक, जहाँ का खमीर था। दिल्ली से चले थे और दिल्ली ही पहुँच गये हैं सर।

    @ नामराशि:
    ऊपर वाले का तो हर जगह बोलबाला है बंधु।

    @ दीपक बाबा:
    बुवे खुले ही हैं यारा, आने के भी और जाने के भी:)

    @ रविकर जी, कविता जी और चन्द्र भूषण साहब:
    बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  55. @ अपनत्व:
    सरिता दी, अभी पढ़ने में आनंद आ रहा है। बहुत कुछ छूट गया इस डेढ़ महीने में। यूँ भी अभी अन्ना भाऊ..

    @ SKT:
    प्रभु, आपकी ’खाने वाले दिखाने वाले’ सीरिज़ पढ़कर अकेले बैठे बहुत हँसा हूँ, बधाई स्वीकार करें।

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  56. फिर वही पुरानी पोस्ट...! एक गीत याद आया...
    हाल कैसा है जनाब का..
    हम तो मचल गये ओ हो हो
    खो गये क्यूँ कहां अब हो?

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  57. "अपना पता बता दे या मेरे पास आजा, दिल है उदास आजा" कृपया इमेल के द्वारा सूचित करें, किस बेंक में हैं.मैं भी कभी बैंकर हुआ करता था. मेरा इमेल पता है: paliakara @hotmail .com

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  58. सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .

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  59. सारी पोस्‍ट में आखि‍री से पहले दो पैराग्राफ मजेदार थे, सजा में मजा वाले अर्थ... उपयोगी हैं।
    पढ़ि‍ये नई कवि‍ता : कवि‍ता का वि‍षय

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  60. वाह ।
    अच्छा है की हमने यह पोस्ट साल भर बाद पढ़ी - जब आप जिस ब्रांच में गए थे वहां से भी ट्रान्सफर हो चुके होने की पोस्ट भी लगा चुके हैं । नहीं तो टाइटल से परेशान हो जाते हम ।

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