पिछले बहुत समय से कोई फ़िल्म नहीं देखी। एक तो टिकट बहुत महंगी है, अकेले जायें तो परिवार वालों के साथ अन्याय लगता है और बारात साथ लेकर जायें तो जेब के साथ अन्याय लगता है। दूसरे तीन घंटे तक बैठकर अपनी आंखे खराब करो और फ़िर अब तो हर बात पर टिप्पणी की आदत जो पड़ गई है, यह भी इसकी जिम्मेदार है। अब हम तो ठहरे ऐंवे से ही वेल्ले आदमी, टिप्पणी कर भी देंगे लेकिन ये हीरोईन खाली थोड़े ही हैं जो जवाब वगैरह देंगी या और कुछ नहीं तो धन्यवाद ही दे देंगी। ऐसा वनवे ट्रैफ़िक प्यार-मोहब्बत में तो बेशक चला लिया होगा लेकिन हर जगह ऐसे करने लगे तो अपनी कंपनी और भी घाटे में चली जायेगी।
लेकिन बकरे का अब्बा कब तक खैर मनाता, इबके वाले वीकेंड में आ ही गया छुरी के तले। दोस्त के यहाँ गया तो टीवी में आ रही थी ’हम दिल दे चुके सनम’ नाम काफ़ी सुन रखा था और फ़िर टाईटिल से लगा कि अपने ही किसी भाई-बंधु की कथा होगी। बैठ ही गये देखने। अज्जू भैया, सल्लू मियां जैसे एक्शन हीरो और ऐश्वर्या जैसी ग्लैमरस हीरोईन, लड्डू पे लड्डू फ़ूट रहे थे जी हमारी खोपड़ी में। लेकिन धोखा हो गया हमारे साथ, भंसाली जी ने बताया कुछ और दिखाया कुछ और। कोई एक्शन नहीं, लेकिन फ़िल्म ने बांधे रखा।
फ़िल्म तो सबने देख ही रखी होगी जिन्होंने नहीं देखी तो कुछ सोचकर ही नहीं देखी होगी:) अपन कोई समीक्षा वमीक्षा नहीं करने वाले। अपन तो बतायेंगे कि बाद में क्या चर्चा हुई। फ़िल्म के बाद सभी ने अजय देवगण के रोल की जमकर तारीफ़ की। नारी स्वतंत्रता का सम्मान करने वाले युवक की भूमिका में अभिनय तो वाकई अच्छा था। अब जब सब तारीफ़ कर रहे थे तो हम भी तारीफ़ कर देते तो मजा नहीं आना था। अपनी छवि के प्रति बहुत जागरूक रहने के कारण जरूरी था कि थोड़ा हटकर बात की जाये। लिहाजा हमने तो कहा कि एक नंबर का बुद्धू था हीरो। सुनते ही सारे he & she हमारी सोच को ’छि छि’ बोलने लगे। घटिया मानसिकता, पुरुषवादी, परंपरावादी, रूढिवादी, लकीर के फ़कीर आदि जितनी तारीफ़ हो सकती थी, की गई। देश के विकास न करने के पीछे, बढ़ती गरीबी, जनसंख्या, अपराध यहाँ तक कि भ्रष्टाचार बढ़ने तक का जिम्मेदार हमें और हमारी सोच को बताया गया। तब तक महिलायें महिला-कोच, सॉरी किचन में चली गई और यारों ने 8 P.M. की घोषणा कर दी।
लोकतंत्र में रहते हैं, जीतेगा वही जिसके वोट ज्यादा होंगे(वैसे भी पीने के बाद सारे खुद को नेता\अभिनेता समझते हैं और इतने सारे देवदासों के सामने मैं अकेला लस्सीटोटलर क्या झगड़ा करता?) लेकिन अपनी राय रखने का हक तो सबको है। यूँ भी ’बोर्न टु बी डिफ़ीटेड’ का कापीराईट होने के कारण हारकर अपने को तसल्ली ही होती है कि कोई अपना ही तो जीता है। जब अपनों की तरकश के सब तीर खाली हो गये, पूछा कि और पीनी है? एक बोला, “बस्स, हम chill हो चुके सनम।” उड़ा लो बेट्टे मेरा मजाक, देख लेंगे तुम्हें भी कभी:)
तो जी, फ़िर हमने भी अपना पक्ष सामने रखा। “मैंने कब कहा कि उसे अपनी बीबी को उसके पहले प्रेमी के पास छोड़ने नहीं जाना चाहिये था? मैंने तो उसे बुद्धू बताया है। उसका फ़ैसला बिल्कुल सही था, जब मन ही न मिलें तो यही फ़ैसला ठीक था। बुद्धू तो उसे इसलिये कहा कि इतना बड़ा काम करने गया था, तो पूरा करके आना था। हम लोग सरकारी खर्चे पर कहीं ट्रेनिंग या सरकारी काम पर जाते हैं तो घूमना फ़िरना वगैरह तो होता ही है वो तो खैर उसने भी कर लिया। लेकिन लौटकर जिस काम से गये थे, उसकी स्टेटस रिपोर्ट तो संतोषजनक होनी चाहिये थी। अबे बुधू, गया भी और ऐन मौके पर अगली के दिल और दिमाग ने क्या पलटा खाया कि समीर को बोल दिया ’ना जी’ इधर बोल दिया ’हां जी’ और तुम सारे कर रहे हो ’वाह-जी।’ अबे इतनी मुश्किल से ऐसा सुनहरा मौका हाथ आया था और इसने फ़िर से वही वाला माडल अपने गले बांध लिया। इससे तो ’अग्निसाक्षी’ वाला नाना पाटेकर सही था, बरबाद हो गया लेकिन अपनी बात से नहीं टला। दारू तुम्हारे हाथ में है, झूठ मत बोलना। तुम सब बताओ अगर उसकी जगह होते तो क्या करते? चलो, मैं ही बताता हूँ, मैं होता तो पहले तो उसे भला-बुरा समझाता, न मानती तो उसका हाथ थमाता उसके मन के मीत के हाथ में, हाथ मिलाता और गुडलक विश करके अपना कोट अपने कंधे पर टांग कर वापिस आ जाता। चलो, अब बारी बारी से बताओ कि तुम क्या करते?”
किचन साथ ही थी, सबने सहमकर उधर देखा और एक कहने लगा, “बना यार एक एक पटियाला और, स्साली सारी उतर गई।”
गीत के बारे में तो saddest और sweetest का रिश्ता मालूम है, कम से कम अंग्रेजी गीतों के बारे में लेकिन हँसी मजाक वाली बात में ये saddest और sweetest पता नहीं सही है या नहीं:))
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आज सुनवाते हैं आपको एक पुराना पंजाबी गीत। बोल बेशक अच्छे से न समझ आयें, अपने को पसंद आया था पहली बार ही। आज के युग के honour killing से इसका कोई वास्ता नहीं, बहुत पुराना गीत है अंग्रेजों के समय का। इस गीत में जो बात कही गई है वह है ’सुच्चा सिंह फ़ौजी’ और उसके पगड़ीबदल दोस्त ’घुक्कर’ और ’मल्ल’ के बारे में। मल्ल की मदद से घुक्कर ने सुच्चा सिंह के भाई नारायण सिंह की बीबी ’बीरो’ पर बुरी नजर रखी और फ़िर क्या हुआ? सुनिये ’खाड़ा लगया होया सी’ (’खाड़ा’ से मतलब है आल्हा या सांग टाईप का संगीतमय आयोजन)।http://youtu.be/fTvwlysqkMI