कुछ दिन पहले इस विषय में श्रीमान आनंद राजाध्यक्षा जी ने पोस्ट लिखकर विचार माँगे थे हालाँकि वहाँ परिपेक्ष्य कुछ अलग था, उन्होंने inter religion marriage/लव जेहाद से जोड़कर पोस्ट लिखी थी। मेरे परिचय में ऐसी तीन घटनायें सामने आ चुकी हैं, जिनमें से नवीनतम घटना कल की है। पहले वही घटना बता देता हूँ, जैसी जानकारी मिली।
हमारे पड़ौस में एक अंकलजी रहते हैं, ’होर वड़ो’ वाला बयान जिनका था, वही। आयु ७०+ है लेकिन शारीरिक रूप से बहुत अच्छी तरह सक्रिय हैं। सुबह ५ बजे से पहले उठकर नंगे पाँव पैदल चलकर ही गुरुद्वारे जाते हैं, वहाँ से लौटकर संयुक्त परिवार के लिये फ़ल, सब्जियाँ लेने जाते हैं। फ़िर लौटकर कुछ और फ़ुटकर काम के लिये इधर उधर जाना मतलब जब देखो मूवमेंट करते ही दिखते हैं। दोपहर खाना लेकर बच्चों के पास दुकान पर चले जाते हैं, वहाँ से फ़िर किसी बच्चे के साथ दुकान के लिये खरीद्दारी करने। सुबह से लेकर रात तक वो ऐसे ही व्यस्त रहते हैं।
कल दिन में दस बजे के करीब ऐसे ही बिजली का बिल जमा करवाने जा रहे थे। घर से कुछ दूर ही एक आदमी ने उन्हें रोका और कहा कि उसके साहब उन्हें बुला रहे हैं, कोई वारदात हो गई है और इस बारे में पूछताछ करनी है। कुछ कदम चलकर वो उसके साथ आये तो तथाकथित साहब अपनी मोटरसाईकिल खड़ी करके उसका सहारा लेकर खड़े थे। अभिवादन के बाद पूछा गया कि आप यहीं रहते हैं, नाम वगैरह। फ़िर उसने कहा कि यहाँ कुछ देर पहले कोई अपराध हुआ है, इसलिये आपसे कुछ जानकारी लेनी है। बताया कि जीप थोड़ी दूर खड़ी है, वहाँ तक चलना होगा। और इतने में बोला कि अरे, ये कड़ा आपने पहना है क्या सोने का है? इसे उतारकर जेब में रख लीजिये। यह बातचीत चल रही थी तो एक और आदमी के साथ उसका दूसरा साथी यही सब बात कर रहा था और उसने अपनी सोने की चैन उतारकर जेब में रख ली। हमारे सिंह साहब अंकल ने भी उसे चैन उतारते देखकर अपना कड़ा उतार दिया। उन लोगों ने अखबार में लपेट कर जेब में रखने का सुझाव दिया और खुद ही इस काम में मदद करने लगे। अखबार में लिपटा कड़ा जेब में रखवा दिया और उसके बाद सिंह साहब चले गये बिल जमा करवाने और वो दोनों लोग अपनी मोटरसाईकिल पर बैठकर गये अपने रास्ते। सिंह अंकल बिल जमा करवाकर घर आ गये, इस सब में करीब एक डेढ घंटा बीत गया था। दुकान पर जाने लगे तो जेब से पुड़िया निकालकर कड़ा डालने लगे तो अखबार मेंं से एक आर्टिफ़िशियल कड़ा निकला, वैसे तो उसपर कई चमकीले शोख से नग लगे हुये थे और लेकिन वो सरदार जी का ५ तोले का कड़ा नहीं था। इस बार ’होर वड़ो’ हमारे अंकल जी के साथ ही हो गई है।
दिन दिहाड़े और अच्छी भीड़ भाड़ वाली सड़क पर वो भी अपने परिचित इलाके में यह सब हो गया। इसी तरह की दो घटनायें पहले भी परिचितों के साथ हो चुकी हैं हालाँकि वो कुछ पुरानी बात हैं और इस एरिया से दूर घटित हुई थीं। घटनाक्रम ऐसा ही, कोई अचानक से आकर किसी बहाने से बात करता है और उसके बाद आप वही करते जाते हैं जैसा आपको कहा जाये। एक मित्र की माताजी के शरीर से सब गहने उन्होंने स्वयं ऐसे ही एक एक करके उतारकर दे दिये थे, दूसरे मामले में लड़के ने अपना महंगा सा फ़ोन। आंखें खुली रहती हैं लेकिन चैतन्य होते हैं घंटे दो घंटे में।
अब कुछ लोग इसे हिप्नोटिज़्म बता रहे हैं, कुछ का कहना है कि इस तरह की सिद्धि या शिफ़ा कुछ लोगों के पास होती है। ताजा घटना तो एक सीसीटीवी फ़ुटेज में भी आई हैं और उनमें किसी तरह की जोर जबरदस्ती जैसा कुछ नहीं दिख रहा। मैं अब भी इसे ऐसा कुछ न मानकर चालाकी से किसी कैमिकल वगैरह के प्रयोग से प्रभावित करने वाला मामला मान रहा हूँ लेकिन सच तो ये है कि मैं अल्पमत में हूँ। मेरे पास अपनी बात के पक्ष में सिर्फ़ एक ही दलील है कि ऐसी सिद्धि जिसके पास हो वो ऐसे सड़कों पर अपनी सिद्धियों को व्यर्थ नहीं कर सकते, वो बहुत बड़े काम कर सकते हैं।
इस तरह की कुछ हजार या लाख रुपये की ठगी में सम्मोहित करने वाली बात या ऐसी किसी आलौकिक शक्तियों के प्रयोग पर आपको विश्वास आता है?