आज फिर से फ़िल्म 'नमक हराम' की बात से शुरू करते हैं । 'नमकहराम' फिल्म में विक्की सेठ(अमिताभ) के सोनू(राजेश) से
यह पूछने पर कि ये लोग कई साल से मेरे नौकर हैं और तुम्हें यहाँ आए अभी कुछ
दिन हुए हैं लेकिन ये तुम्हें मुझसे ज्यादा क्यों चाहते हैं, सोनू पलटकर
विक्की से उसके माली/ड्राईवर का नाम पूछता है जो विक्की नहीं बता पाता।
सोनू कहता है कि आज इन लोगों को उनके नाम से पुकारना और देखना वो कैसे
तुम्हारे लिए जान देने को तैयार हो जाएंगे। वो तो खैर फ़िल्म थी, कुछ ज्यादा
ही हो गया लेकिन बात में दम है। व्यवहार में मैंने भी यह देखा है, यह बात
प्रभावी है। खासतौर पर तब, जब सामने वाला आपको अपने से कहीं बहुत ऊंचा
मानता हो।
एक कहावत भी है कि सबसे कर्णप्रिय आवाज 'अपना नाम' है।
कहने को शेक्सपियर ने भी कहा बताते हैं कि नाम में कुछ नहीं रखा है लेकिन उसके सामने कोई यही बात किसी और के नाम से क्वोट कर देता तो पक्की बात है शेकूआ उससे गुत्थमगुत्था हो जाता
अक्सर फेसबुक पर भी देखा है कि कोई कहानी या कविता किसी अखबार या कवि सम्मेलन में छपती या पढी जाती है तो बाद में रौलारप्पा हो जाता है। खैर, यह भी सम्वाद का एक तरीका ही है। प्रसिद्धि के लिए तो लोग कपड़े तक उतार लेते हैं और कई अपने कपड़े फाड़कर भी नाम जरूर कमाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर भी बहुत उदाहरण मिल जाते हैं, लोग बहुत कुछ सिद्ध कर लेते हैं।
मैं अक्सर बहक जाता हूँ। सोचता कुछ हूँ, लिखना कुछ और चाहता हूँ और लिख कुछ और जाता हूँ।
एक कहावत भी है कि सबसे कर्णप्रिय आवाज 'अपना नाम' है।
कहने को शेक्सपियर ने भी कहा बताते हैं कि नाम में कुछ नहीं रखा है लेकिन उसके सामने कोई यही बात किसी और के नाम से क्वोट कर देता तो पक्की बात है शेकूआ उससे गुत्थमगुत्था हो जाता
अक्सर फेसबुक पर भी देखा है कि कोई कहानी या कविता किसी अखबार या कवि सम्मेलन में छपती या पढी जाती है तो बाद में रौलारप्पा हो जाता है। खैर, यह भी सम्वाद का एक तरीका ही है। प्रसिद्धि के लिए तो लोग कपड़े तक उतार लेते हैं और कई अपने कपड़े फाड़कर भी नाम जरूर कमाना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर भी बहुत उदाहरण मिल जाते हैं, लोग बहुत कुछ सिद्ध कर लेते हैं।
मैं अक्सर बहक जाता हूँ। सोचता कुछ हूँ, लिखना कुछ और चाहता हूँ और लिख कुछ और जाता हूँ।
सिखों के प्रथम गुरु श्री नानक देव जी की आज जयन्ती है। उन्हें प्रणाम
करने लगा तो उनका कहा 'नाम खुमारी नानका, चढी रहे दिन रात' याद आ गया मन में सवाल ये आयाकि गुरु नानक देव जी ने जब यह उचारा तो वो
किस नाम की खुमारी की बात कर रहे थे?
गुरु नानक देवजी द्वारा की गई यात्रायें 'चार उदासियों' के नाम से जानी
जाती हैं। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान वो सिद्धों के इलाके(आज तारीख में तराई का इलाका) में पहुँचे। अपने
वर्चस्व वाले इलाके में एक नये साधु का आना सुनकर उन्होंने एक बर्तन भेजा,
जो लबालब दूध से भरा हुआ था। लाने वाले ने वो बर्तन पेश किया और चुपचाप
खड़ा हो गया, गुरू साहब ने उस बर्तन में गुलाब के फ़ूल की पंखुडियाँ डाल
दीं जो दूध के ऊपर तैरने लगीं। इन यात्राओं में बाला और मरदाना उनके सहायक
के रूप में शामिल थे। ये माजरा उन्हें समझ नहीं आया तो फ़िर गुरू नानक देव
जी ने उन्हें समझाया कि सिद्धों ने उस दूध भरे बर्तन के माध्यम से यह संदेश
भेजा था कि यहाँ पहले से ही साधुओं की बहुतायत है, और गुंजाईश नहीं है।
गुरूजी ने गुलाब की पंखुडि़यों के माध्यम से यह संदेश दिया कि इन
पंखडि़यों की तरह दूध को बिना गिराये अपनी खुशबू उसमें शामिल हो जायेगी,
अत: निश्चिंत रहा जाये। उसके बाद दोनों पक्षों में प्रश्नोत्तर भी हुये।
सिद्धों ने एक प्रश्न किया था कि आप ध्यान के लिये किन वस्तुओं का प्रयोग
करते हैं?
उत्तर देते हुये गुरू नानक देव जी ने कहा था, "नाम खुमारी नानका
चढ़ी रहे दिन रात" कि प्रभु नाम सिमरन की ये खुमारी दूसरे नशों की तरह
नहीं कि घड़ी दो घड़ी के बाद उतर जाये। ये तो वो नशा है जो एक बार चढ़ जाये
तो दिन रात का साथी बन जाता है।
अपना या अपनों का ही नहीं, सबका सुख यानी 'सरबत दा भला' माँगता ये गीत सुनिए -