बात छोटी सी है लेकिन हमेशा की तरह तम्बू-तम्बूरा पूरा ताना जाएगा| काम की बातें छोटी ही अच्छी लगती है, फालतू की करनी हों तो फिर XL या XXL से कम हम बात नहीं करते, पहले बताए देते हैं|
हम उन दिनों नौकरी के चक्कर में ट्रेन से डेली पैसेंजरी किया करते थे| ग्रुप में सिंचाई विभाग में कार्यरत एक जे.ई. साहब भी थे, मुदगल साहब| निहायत ही शरीफ, इतने शरीफ कि उनकी शराफत देखकर कभी कभी शक होता था कि ये इंजीनियर हैं भी या नहीं:) अपनी मुंहफट आदत के चलते एक बार मैंने उनसे ये कह भी दिया तो खूब हँसे| कहने लगे कि यार तुम्हारी भाभी भी यही ताना देती है| खैर, परिचय नया नया ही था कि कहने लगे कि उनके एक चचेरे भैया हमारे ही बैंक में हैं और उनका काफी रसूख भी है, मैं अपना बायोडाटा दे दूं तो मेरा दिल्ली ट्रांसफर करवाने की बात की जाए| अब इस मामले में हमारी सोच शुरू से ही खराब रही है, हमने 'No, Thank you ji' कह दिया और फिर से एक बार बहुत शरीफ(अहमक) होने का खिताब पा लिया|
कुछ दिन बाद पता चला कि हमारी ब्रांच में मैनेजर बनकर कोई 'मुदगल साहब' ट्रांसफर पर आ रहे हैं, जिस ब्रांच से आ रहे थे उसका नाम मालूम चला तो कन्फर्म हो गया कि वही हमारे जे.ई. साहब के कजिन हैं| उन दिनों अपन भी मानस पाठ कर रहे थे सो 'कोऊ नृप होय हमें का हानि' मोड चालू था, जे.ई. साहब से इस बात का कोई जिक्र नहीं किया| वो दिन भी आ गया, जिस दिन नए मैनेजर साहब ने ज्वायन करना था| सुबह गाड़ी पकड़ने स्टेशन पहुंचा तो देखा ओवरब्रिज पर ही जे.ई. साहब खड़े थे| समझ गया मैं कि अब क्लास लगेगी| मुझे देखकर जे.ई. साहब लपक कर आगे आये और हाथ मिलाने के बाद पूछने लगे कि आपके यहाँ ब्रांच मैनेजर बदल गए हैं क्या? मैंने हंसकर बताया कि हाँ, आज ही आपके भाईसाहब ज्वायन करेंगे| जे.ई. साहब ने फिर से मुझे अजीब आदमी बताया, "यानी कि आपको मालूम था कि मेरे कजिन आपके मैनेजर बनकर आ रहे हैं? सच में बहुत अजीब आदमी हो यार आप|" वहीं ब्रिज पर ही मुझे रोक लिया कि भाई साहब भी आ रहे हैं, साथ ही चलेंगे| कुछ देर में साहब आ गए और परिचय वगैरह होने के बाद हम गाड़ी में आकर बैठ गए|
अब मुदगल साहब शाखा की ज्योग्राफी, हिस्ट्री वगैरह जानने के लिए स्वाभाविक रूप से ही जिज्ञासा रही होगी, वो स्टाफ के बारे में पूछ रहे थे और मैं कहता था कि सरजी, खुद ही पता चल जाएगा आपको क्योंकि मैं किसी के बारे में बताऊंगा तो उस स्टाफ के प्रति अपनी भावनाओं के अनुरूप ही बताऊंगा| उधर ताश पार्टी वाले बार बार आकर 'संजय भाई साहब, आओ न जल्दी' की गुहार लगा रहे थे| मैंने मुदगल साहब से पूछा कि ताश खेलते हैं आप? न में जवाब सुनकर अपने ग्रुप में जाकर बैठ गया| दो तीन दिन तक ऐसा ही चला, मुदगल साहब ने पूछा भी कि ताश क्या इतनी जरूरी है? हमने वहाँ नहीं बैठना था तो नहीं ही बैठे| सच तो ये है कि ऐसा करने में अपने अहम को पोषित करता था शायद मैं, कि अपने सीनियर्स की परवाह नहीं करता , कितना महान हूँ मैं:)
3-4 दिन के बाद जे.ई. साहब ने बताया कि यार भाई साहब तो अपनी कार से जाया करेंगे, अब आपका और हमारा साथ छूटी जाएगा| मैंने आश्वस्त कर दिया कि ज्यादा लग्ज़री बर्दाश्त नहीं होती, अपन तो इस रेलगाड़ी से ही जाया करेंगे| उन्होंने भी और हमारे मैनेजर साहब ने भी बहुत समझाया कि रूट एक ही है तो क्यूं नहीं कार में साथ जाते? मैंने नहीं मानना था तो उस समय नहीं ही माना| पांच छह महीने बीत गए, एक बार फिर जे.ई. साहब ने मुझे भाई साहब के साथ आने जाने के लिए समझाया| तब तक वैसे भी हम लोग एक दुसरे को अच्छे से समझ चुके थे, मुदगल साहब सही मायने में एक True gentleman लगे मुझे, नतीजतन उनकी बड़ी सी कार में सुबह शाम का साथ भी हो गया| तब तक उनकी कार में एक दूसरे बैंक के मैनेजर और एक हमारा ऑडिटर भी साथ जाना शुरू कर चुके थे| त्रिकोण का चौथा खम्भा हुआ मैं| अब आते हैं अपनी छोटी सी बात पर|
शाम को लौटने का तय समय नहीं था लेकिन सुबह जाने का तो फिक्स्ड टाईम था| कुछ दिनों में सड़क पर बहुत सी ऐसी गाडियां दिखने लगीं, जो इसी समय सड़क पर उतरा करती थी| ज्यादा संभावना ये थी कि सब नौकरीपेशा ही रहे होंगे, उन्हीं का तय समय होता है| एक मारुती 800 कई बार दिखती थी, कम से कम मैं तो उस कार को उसके पीछे लिखे एक स्लोगन के कारण पहचानता ही था | कार ड्राईव करते हुए मुदगल साहब ने उस दिन शायद पहली बार उस मारुती 800 पर गौर किया| हँसते हुए कहने लगे, "ये पढ़ो ज़रा, उस कार के पीछे क्या लिखा है?" सबने पढ़ा, यूं तो मैं अपने हिस्से का आनंद पहले ही ले चुका था लेकिन अच्छा लगा कि जिस चीज जो मैं बहुत पहले एंजाय कर चुका हूँ आज मुदगल साहब के चलते औरों का भी ध्यान गया| कार की पिछली स्क्रीन पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था, "नारायण कार्तिकेयन का बाप"
मैंने कहा, "हौंसला देखिये बंदे का|" मुदगल साहब बोले, "हौंसला? बेवकूफी है ये, खुन्नस है ये| पट्ठा काम करता होगा नारायण कार्तिकेयन की कंपनी में और उसने निकाल दिया होगा किसी बात पर, इसलिए लिख लिया होगा|" मेरे लिए ये जानकारी नई थी कि नारायण कार्तिकेयन की कोई कंपनी भी है| मेरे जिज्ञासा प्रकट करने पर बताया गया कि इन्फोसिस के मालिक हैं मि. ना. का.| वैसे तो हमें सिखाया जाता है कि -
1. Boss is always right.
2. Even if he\she is wrong, remember point 1.
लेकिन सीखने के मामले में भी और बहुत से मामलों की तरह अपन रूढ़िवादी हैं:)
बॉस का चेहरा तल्ख़ हो गया, कोई सबोर्डिनेट अपने अधिकारी की बात काट दे, वो भी दूसरों के सामने, उन्हें हजम नहीं हुआ था| दुसरे सहयात्री नीचे नीचे से मेरी जांघ पर हाथ रखकर चुप रहने का इशारा कर रहे थे और मुंह से उस 800 वाले को इन्फोसिस के जनक का जनक ही सिद्ध कर रहे थे| अब जिस बात पर मैं कन्फर्म रूप से जानता हूँ , उसे सिर्फ इसलिए मान लेना कि मेरा सीनियर कह रहा है या जिसकी कार में मैं रोज सुबह शाम आता जाता हूँ, मुझे उचित नहीं लगा| हम दोनों अपनी अपनी बात पर अड़े रहे| मुदगल साहब का मूड ऑफ हो चुका था| उस दिन उसके बाद पूरे रास्ते और कोई बात नहीं हुई|
बैंक पहुचकर मुदगल साहब कार पार्क करने लगे और बाकी साथी अब मुझे दुनियादारी पढ़ा रहे थे, "क्या जरूरत थी आपको बहस करने की?" मेरी नजर में मैंने बहस नहीं की थी, एक सही जानकारी शेयर कर रहा था और उसे गलत रूप में प्रतिस्थापित होने देने से रोकने का प्रयास कर रहा था| एक बार फिर से सुन लिया कि यार आप बिलकुल भी प्रैक्टिकल नहीं हैं, etc.etc. मजा आता है न ऐसी बात सुनकर?
उस दिन दोपहर में ही मैंने मुदगल साहब से कह दिया कि आज मैं शाम को ट्रेन से जाऊंगा| पूछने लगे, 'क्या हुआ?' मैंने बता दिया कि ट्रेन वाले ग्रुप में किसी से कुछ काम है, बहाने बनाने में कौन बहुत सोचना पड़ता है? गुलजार महफ़िल के बंदे ठहरे हम, हमारी वजह से माहौल बोझिल बने, इससे बढ़िया तो अपनी थ्योरी यही है कि पहले ही रास्ता नाप लिया जाए:) यूं भी ताश खेले बिना मन बहुत उदास हो रहा था|
अगले दिन सुबह सुबह मुदगल साहब का फोन आ गया कि रोज वाले समय से पन्द्रह मिनट पहले मिल जाना, कुछ काम है| मैंने कहा कि मुझे तो ट्रेन से ही जाना है लेकिन उन्होंने मना कर दिया| कोई बड़े अधिकारी ब्रांच में विजिट करने आ रहे थे, ट्रेन में देर सवेर हो सकती है इसलिए कार में ही जाना है बल्कि ये भी कहा कि पन्द्रह मिनट पहले निकालने की कोशिश कर लूं , निकल सका तो ठीक नहीं तो वो तो इंतज़ार करेंगे ही| हाय मेरी ताश पार्टी :(
हम रोज की तरह मिले, अभिवादन हुआ और दोनों चुपचाप बैठ गए| चार पांच किलोमीटर के बाद दुसरे दोनों साथी भी इंतज़ार करते मिले| पिछली शाम मैं कार में नहीं था, मालूम नहीं कैसा माहौल रहा होगा लेकिन आज फिर मुझे देखकर दोनों और ज्यादा सीरियस दिखने लगे:) जब कोरम पूरा हो गया, मुदगल साहब बोले, "संजय, कल तुम ठीक थे और मुझे भूल लगी थी| मैंने घर जाकर बेटे से कन्फर्म किया और मेरे न मानने पर बेटे ने नैट पर मुझे चैक करवाया और गलती दुरस्त की| थैंक्स डियर|" इतने में फिर वही कार दिखी और मुदगल साहब ने मुस्कुराते हुए उस ड्राइवर को हाथ हिलाकर वेव किया| कहने लगे, "after all, we are daily passengers. Same community, isn.t it?'
उस दिन कोई उच्चाधिकारी हमारे यहाँ विजिट पर नहीं आये| मुदगल साहब चाहते तो अपनी जानकारी दुरस्त करके चुपचाप भी रह सकते थे या जानकारी न भी चैक करते तो उनकी सैलरी पर या फैमिली को कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा था| चार पांच किलोमीटर तक हम अकेले ही रहे थे, वो पहले भी यह बात मान सकते थे लेकिन बात कहने के लिए उन्होंने कोरम पूरा होने तक का इन्तजार किया| मुझे ये छोटी छोटी बातें नहीं भूलतीं| इन बातों से इंसान की ऊंचाई, गहराई बहुत कुछ पता चलता है| मुदगल साहब के साथ दो साल बहुत अच्छे से कटे, कई बार ऐसे वाकये आये कि किसी बात पर हमारी राय नहीं मिलती थी लेकिन बाद में अगर उन्हें लगता था कि वो गलत थे तो बिना इस बात की परवाह किये कि वो सीनियर हैं, स्वीकार कर लेते थे और वो भी अपने royal style में| मेरी नजर में उनका कद दिनों दिन ऊंचा ही हुआ|
:-) - बेरोजगारी से जूझ रहे फत्तू ने एक नवाब साहब का दामन जा पकड़ा| दरयाफ्त करने पर बताया कि वो बातों का रफूगर है और नवाब साहब जो बेसिरपैर की छोडने के लिए मशहूर थे, उनकी बातों पर पैबंद लगा दिया करेगा| मुलाजमत पक्की हो गई| एक महफ़िल में नवाब साहब ने फेंकी, 'शेर की तरफ तानकर मैंने बन्दूक से ऐसी गोली छोड़ी कि वो उसके पैर के पंजे से होते हुए उसके माथे में जा धंसी|' सुनने वालों ने बात हंसी में उड़ानी चाही तो नवाब साहबी ने फत्तू की तरफ देखा| फत्तू ने कहा, 'दरअसल जब उसे गोली लगी, उस वक्त शेर पंजे से अपना माथा खुजा रहा था | गोली पंजे से पार होकर शेर के माथे में जा धंसी थी|' वाह-वाह का शोर मच गया| अगली महफ़िल में नवाब साहब और कोंफिडेंट होकर बोले, "एक बार मैंने शेर पर गोली चलाई, शेर ने छलांग लगाई और भाग निकला| नदी, नाले पार कर गया और कई किलोमीटर तक भागता फिरा, गोली ने पीछा नहीं छोडा, उसकी जान ले ही ली|" लोगों ने फिर शुबहा जाहिर किया तो नवाब साहब ने फत्तू, जो कि कागज़ पेंसिल लेकर उलझा था. उसे पुकारा, " बेटे रफूगर|" फत्तू ने बताया कि गोली तो शेर के पिछवाड़े में पहले ही लग गई थी, अब शेर चाहे नदी नाला कूदे या पहाड़-पर्वत, खून इतना बह गया कि बेचारा चार-पांच किलोमीटर तक भागने दौड़ने के बाद मर गया|" नवाब साहब की फिर से जय जयकार हो गई| अगली महफ़िल में नवाब साहब ने फरमाया, "मैंने एक बार शेर पर निशाना साधकर वो गोली मारी कि शेर दो हिस्सों में बंट गया| आखिर में जब गोली निकाली गई तब कहीं जाकर शेर बेचारे की लाश वन-पीस बनी|" लोग बाग हैरान परेशान होने लगे| नवाब साहब ने फिर पुचकारा, "बेटा रफूगर, खडा तो हो ज़रा|" फत्तू ने नवाब साहब के हाथ में एक कागज थमाया और बोला, "ले बे नवाब की औलाद, मेरा इस्तीफा| मैं बातों का रफूगर हूँ, छोटी मोटे पैबंद को तो रफू कर भी देता| इत्ती बड़ी काट-फांट को तो किसी रफूगर का बाप भी नहीं रफू कर सकता| यूं भी अब सरकार हर हाथ में मोबाईल देने जा रही है, तेरी बेसिरपैर की रफू करने की बजाय मैं अपना ही ब्लोग बनाकर मोबाईल से खुद ही हांक भी लूंगा और रफू भी कर लूंगा| हैप्पी इंडिपेंडेंस डे|"