बात छोटी सी है लेकिन हमेशा की तरह तम्बू-तम्बूरा पूरा ताना जाएगा| काम की बातें छोटी ही अच्छी लगती है, फालतू की करनी हों तो फिर XL या XXL से कम हम बात नहीं करते, पहले बताए देते हैं|
हम उन दिनों नौकरी के चक्कर में ट्रेन से डेली पैसेंजरी किया करते थे| ग्रुप में सिंचाई विभाग में कार्यरत एक जे.ई. साहब भी थे, मुदगल साहब| निहायत ही शरीफ, इतने शरीफ कि उनकी शराफत देखकर कभी कभी शक होता था कि ये इंजीनियर हैं भी या नहीं:) अपनी मुंहफट आदत के चलते एक बार मैंने उनसे ये कह भी दिया तो खूब हँसे| कहने लगे कि यार तुम्हारी भाभी भी यही ताना देती है| खैर, परिचय नया नया ही था कि कहने लगे कि उनके एक चचेरे भैया हमारे ही बैंक में हैं और उनका काफी रसूख भी है, मैं अपना बायोडाटा दे दूं तो मेरा दिल्ली ट्रांसफर करवाने की बात की जाए| अब इस मामले में हमारी सोच शुरू से ही खराब रही है, हमने 'No, Thank you ji' कह दिया और फिर से एक बार बहुत शरीफ(अहमक) होने का खिताब पा लिया|
कुछ दिन बाद पता चला कि हमारी ब्रांच में मैनेजर बनकर कोई 'मुदगल साहब' ट्रांसफर पर आ रहे हैं, जिस ब्रांच से आ रहे थे उसका नाम मालूम चला तो कन्फर्म हो गया कि वही हमारे जे.ई. साहब के कजिन हैं| उन दिनों अपन भी मानस पाठ कर रहे थे सो 'कोऊ नृप होय हमें का हानि' मोड चालू था, जे.ई. साहब से इस बात का कोई जिक्र नहीं किया| वो दिन भी आ गया, जिस दिन नए मैनेजर साहब ने ज्वायन करना था| सुबह गाड़ी पकड़ने स्टेशन पहुंचा तो देखा ओवरब्रिज पर ही जे.ई. साहब खड़े थे| समझ गया मैं कि अब क्लास लगेगी| मुझे देखकर जे.ई. साहब लपक कर आगे आये और हाथ मिलाने के बाद पूछने लगे कि आपके यहाँ ब्रांच मैनेजर बदल गए हैं क्या? मैंने हंसकर बताया कि हाँ, आज ही आपके भाईसाहब ज्वायन करेंगे| जे.ई. साहब ने फिर से मुझे अजीब आदमी बताया, "यानी कि आपको मालूम था कि मेरे कजिन आपके मैनेजर बनकर आ रहे हैं? सच में बहुत अजीब आदमी हो यार आप|" वहीं ब्रिज पर ही मुझे रोक लिया कि भाई साहब भी आ रहे हैं, साथ ही चलेंगे| कुछ देर में साहब आ गए और परिचय वगैरह होने के बाद हम गाड़ी में आकर बैठ गए|
अब मुदगल साहब शाखा की ज्योग्राफी, हिस्ट्री वगैरह जानने के लिए स्वाभाविक रूप से ही जिज्ञासा रही होगी, वो स्टाफ के बारे में पूछ रहे थे और मैं कहता था कि सरजी, खुद ही पता चल जाएगा आपको क्योंकि मैं किसी के बारे में बताऊंगा तो उस स्टाफ के प्रति अपनी भावनाओं के अनुरूप ही बताऊंगा| उधर ताश पार्टी वाले बार बार आकर 'संजय भाई साहब, आओ न जल्दी' की गुहार लगा रहे थे| मैंने मुदगल साहब से पूछा कि ताश खेलते हैं आप? न में जवाब सुनकर अपने ग्रुप में जाकर बैठ गया| दो तीन दिन तक ऐसा ही चला, मुदगल साहब ने पूछा भी कि ताश क्या इतनी जरूरी है? हमने वहाँ नहीं बैठना था तो नहीं ही बैठे| सच तो ये है कि ऐसा करने में अपने अहम को पोषित करता था शायद मैं, कि अपने सीनियर्स की परवाह नहीं करता , कितना महान हूँ मैं:)
3-4 दिन के बाद जे.ई. साहब ने बताया कि यार भाई साहब तो अपनी कार से जाया करेंगे, अब आपका और हमारा साथ छूटी जाएगा| मैंने आश्वस्त कर दिया कि ज्यादा लग्ज़री बर्दाश्त नहीं होती, अपन तो इस रेलगाड़ी से ही जाया करेंगे| उन्होंने भी और हमारे मैनेजर साहब ने भी बहुत समझाया कि रूट एक ही है तो क्यूं नहीं कार में साथ जाते? मैंने नहीं मानना था तो उस समय नहीं ही माना| पांच छह महीने बीत गए, एक बार फिर जे.ई. साहब ने मुझे भाई साहब के साथ आने जाने के लिए समझाया| तब तक वैसे भी हम लोग एक दुसरे को अच्छे से समझ चुके थे, मुदगल साहब सही मायने में एक True gentleman लगे मुझे, नतीजतन उनकी बड़ी सी कार में सुबह शाम का साथ भी हो गया| तब तक उनकी कार में एक दूसरे बैंक के मैनेजर और एक हमारा ऑडिटर भी साथ जाना शुरू कर चुके थे| त्रिकोण का चौथा खम्भा हुआ मैं| अब आते हैं अपनी छोटी सी बात पर|
शाम को लौटने का तय समय नहीं था लेकिन सुबह जाने का तो फिक्स्ड टाईम था| कुछ दिनों में सड़क पर बहुत सी ऐसी गाडियां दिखने लगीं, जो इसी समय सड़क पर उतरा करती थी| ज्यादा संभावना ये थी कि सब नौकरीपेशा ही रहे होंगे, उन्हीं का तय समय होता है| एक मारुती 800 कई बार दिखती थी, कम से कम मैं तो उस कार को उसके पीछे लिखे एक स्लोगन के कारण पहचानता ही था | कार ड्राईव करते हुए मुदगल साहब ने उस दिन शायद पहली बार उस मारुती 800 पर गौर किया| हँसते हुए कहने लगे, "ये पढ़ो ज़रा, उस कार के पीछे क्या लिखा है?" सबने पढ़ा, यूं तो मैं अपने हिस्से का आनंद पहले ही ले चुका था लेकिन अच्छा लगा कि जिस चीज जो मैं बहुत पहले एंजाय कर चुका हूँ आज मुदगल साहब के चलते औरों का भी ध्यान गया| कार की पिछली स्क्रीन पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था, "नारायण कार्तिकेयन का बाप"
मैंने कहा, "हौंसला देखिये बंदे का|" मुदगल साहब बोले, "हौंसला? बेवकूफी है ये, खुन्नस है ये| पट्ठा काम करता होगा नारायण कार्तिकेयन की कंपनी में और उसने निकाल दिया होगा किसी बात पर, इसलिए लिख लिया होगा|" मेरे लिए ये जानकारी नई थी कि नारायण कार्तिकेयन की कोई कंपनी भी है| मेरे जिज्ञासा प्रकट करने पर बताया गया कि इन्फोसिस के मालिक हैं मि. ना. का.| वैसे तो हमें सिखाया जाता है कि -
1. Boss is always right.
2. Even if he\she is wrong, remember point 1.
लेकिन सीखने के मामले में भी और बहुत से मामलों की तरह अपन रूढ़िवादी हैं:)
मैंने कहा, 'सर, आपको गलती लग रही है| इन्फोसिस के मालिक का नाम मि. नारायण मूर्ति है| ये नारायण कार्तिकेयन अलग हैं, भारत के फार्मूला वन रेसर हैं|'
बॉस का चेहरा तल्ख़ हो गया, कोई सबोर्डिनेट अपने अधिकारी की बात काट दे, वो भी दूसरों के सामने, उन्हें हजम नहीं हुआ था| दुसरे सहयात्री नीचे नीचे से मेरी जांघ पर हाथ रखकर चुप रहने का इशारा कर रहे थे और मुंह से उस 800 वाले को इन्फोसिस के जनक का जनक ही सिद्ध कर रहे थे| अब जिस बात पर मैं कन्फर्म रूप से जानता हूँ , उसे सिर्फ इसलिए मान लेना कि मेरा सीनियर कह रहा है या जिसकी कार में मैं रोज सुबह शाम आता जाता हूँ, मुझे उचित नहीं लगा| हम दोनों अपनी अपनी बात पर अड़े रहे| मुदगल साहब का मूड ऑफ हो चुका था| उस दिन उसके बाद पूरे रास्ते और कोई बात नहीं हुई|
बैंक पहुचकर मुदगल साहब कार पार्क करने लगे और बाकी साथी अब मुझे दुनियादारी पढ़ा रहे थे, "क्या जरूरत थी आपको बहस करने की?" मेरी नजर में मैंने बहस नहीं की थी, एक सही जानकारी शेयर कर रहा था और उसे गलत रूप में प्रतिस्थापित होने देने से रोकने का प्रयास कर रहा था| एक बार फिर से सुन लिया कि यार आप बिलकुल भी प्रैक्टिकल नहीं हैं, etc.etc. मजा आता है न ऐसी बात सुनकर?
उस दिन दोपहर में ही मैंने मुदगल साहब से कह दिया कि आज मैं शाम को ट्रेन से जाऊंगा| पूछने लगे, 'क्या हुआ?' मैंने बता दिया कि ट्रेन वाले ग्रुप में किसी से कुछ काम है, बहाने बनाने में कौन बहुत सोचना पड़ता है? गुलजार महफ़िल के बंदे ठहरे हम, हमारी वजह से माहौल बोझिल बने, इससे बढ़िया तो अपनी थ्योरी यही है कि पहले ही रास्ता नाप लिया जाए:) यूं भी ताश खेले बिना मन बहुत उदास हो रहा था|
अगले दिन सुबह सुबह मुदगल साहब का फोन आ गया कि रोज वाले समय से पन्द्रह मिनट पहले मिल जाना, कुछ काम है| मैंने कहा कि मुझे तो ट्रेन से ही जाना है लेकिन उन्होंने मना कर दिया| कोई बड़े अधिकारी ब्रांच में विजिट करने आ रहे थे, ट्रेन में देर सवेर हो सकती है इसलिए कार में ही जाना है बल्कि ये भी कहा कि पन्द्रह मिनट पहले निकालने की कोशिश कर लूं , निकल सका तो ठीक नहीं तो वो तो इंतज़ार करेंगे ही| हाय मेरी ताश पार्टी :(
हम रोज की तरह मिले, अभिवादन हुआ और दोनों चुपचाप बैठ गए| चार पांच किलोमीटर के बाद दुसरे दोनों साथी भी इंतज़ार करते मिले| पिछली शाम मैं कार में नहीं था, मालूम नहीं कैसा माहौल रहा होगा लेकिन आज फिर मुझे देखकर दोनों और ज्यादा सीरियस दिखने लगे:) जब कोरम पूरा हो गया, मुदगल साहब बोले, "संजय, कल तुम ठीक थे और मुझे भूल लगी थी| मैंने घर जाकर बेटे से कन्फर्म किया और मेरे न मानने पर बेटे ने नैट पर मुझे चैक करवाया और गलती दुरस्त की| थैंक्स डियर|" इतने में फिर वही कार दिखी और मुदगल साहब ने मुस्कुराते हुए उस ड्राइवर को हाथ हिलाकर वेव किया| कहने लगे, "after all, we are daily passengers. Same community, isn.t it?'
उस दिन कोई उच्चाधिकारी हमारे यहाँ विजिट पर नहीं आये| मुदगल साहब चाहते तो अपनी जानकारी दुरस्त करके चुपचाप भी रह सकते थे या जानकारी न भी चैक करते तो उनकी सैलरी पर या फैमिली को कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा था| चार पांच किलोमीटर तक हम अकेले ही रहे थे, वो पहले भी यह बात मान सकते थे लेकिन बात कहने के लिए उन्होंने कोरम पूरा होने तक का इन्तजार किया| मुझे ये छोटी छोटी बातें नहीं भूलतीं| इन बातों से इंसान की ऊंचाई, गहराई बहुत कुछ पता चलता है| मुदगल साहब के साथ दो साल बहुत अच्छे से कटे, कई बार ऐसे वाकये आये कि किसी बात पर हमारी राय नहीं मिलती थी लेकिन बाद में अगर उन्हें लगता था कि वो गलत थे तो बिना इस बात की परवाह किये कि वो सीनियर हैं, स्वीकार कर लेते थे और वो भी अपने royal style में| मेरी नजर में उनका कद दिनों दिन ऊंचा ही हुआ|
:-) - बेरोजगारी से जूझ रहे फत्तू ने एक नवाब साहब का दामन जा पकड़ा| दरयाफ्त करने पर बताया कि वो बातों का रफूगर है और नवाब साहब जो बेसिरपैर की छोडने के लिए मशहूर थे, उनकी बातों पर पैबंद लगा दिया करेगा| मुलाजमत पक्की हो गई| एक महफ़िल में नवाब साहब ने फेंकी, 'शेर की तरफ तानकर मैंने बन्दूक से ऐसी गोली छोड़ी कि वो उसके पैर के पंजे से होते हुए उसके माथे में जा धंसी|' सुनने वालों ने बात हंसी में उड़ानी चाही तो नवाब साहबी ने फत्तू की तरफ देखा| फत्तू ने कहा, 'दरअसल जब उसे गोली लगी, उस वक्त शेर पंजे से अपना माथा खुजा रहा था | गोली पंजे से पार होकर शेर के माथे में जा धंसी थी|' वाह-वाह का शोर मच गया| अगली महफ़िल में नवाब साहब और कोंफिडेंट होकर बोले, "एक बार मैंने शेर पर गोली चलाई, शेर ने छलांग लगाई और भाग निकला| नदी, नाले पार कर गया और कई किलोमीटर तक भागता फिरा, गोली ने पीछा नहीं छोडा, उसकी जान ले ही ली|" लोगों ने फिर शुबहा जाहिर किया तो नवाब साहब ने फत्तू, जो कि कागज़ पेंसिल लेकर उलझा था. उसे पुकारा, " बेटे रफूगर|" फत्तू ने बताया कि गोली तो शेर के पिछवाड़े में पहले ही लग गई थी, अब शेर चाहे नदी नाला कूदे या पहाड़-पर्वत, खून इतना बह गया कि बेचारा चार-पांच किलोमीटर तक भागने दौड़ने के बाद मर गया|" नवाब साहब की फिर से जय जयकार हो गई| अगली महफ़िल में नवाब साहब ने फरमाया, "मैंने एक बार शेर पर निशाना साधकर वो गोली मारी कि शेर दो हिस्सों में बंट गया| आखिर में जब गोली निकाली गई तब कहीं जाकर शेर बेचारे की लाश वन-पीस बनी|" लोग बाग हैरान परेशान होने लगे| नवाब साहब ने फिर पुचकारा, "बेटा रफूगर, खडा तो हो ज़रा|" फत्तू ने नवाब साहब के हाथ में एक कागज थमाया और बोला, "ले बे नवाब की औलाद, मेरा इस्तीफा| मैं बातों का रफूगर हूँ, छोटी मोटे पैबंद को तो रफू कर भी देता| इत्ती बड़ी काट-फांट को तो किसी रफूगर का बाप भी नहीं रफू कर सकता| यूं भी अब सरकार हर हाथ में मोबाईल देने जा रही है, तेरी बेसिरपैर की रफू करने की बजाय मैं अपना ही ब्लोग बनाकर मोबाईल से खुद ही हांक भी लूंगा और रफू भी कर लूंगा| हैप्पी इंडिपेंडेंस डे|"
सुन्दर संस्मरण. रफूगरी भोपाली तहजीब का हिस्सा रहा है.
जवाब देंहटाएंभोपाल भी तो अपना ही है सुब्रमनियन सर, अपने भारत का दिल|
हटाएं"नारायण कार्तिकेयन का बाप" hamne bhee ye gadi dekhi hai kai baar sadko par....
जवाब देंहटाएंtakatak....
jai baba banaras....
जरूर देखी होगी कौशल जी, ऐसी वस्तुओं पर ध्यान जाता ही है|
हटाएंमुझे नवाब साहब तो नहीं सिद्ध कर रहे श्रीमान जी? :)
बहुत खूब. पसंद आई आपकी यह पोस्ट और आपका अंदाज़-ए-बयाँ. सचमुच ऐसे royal लोग कम ही मिलते हैं.
जवाब देंहटाएंऔर फत्तू ने भी सही किया. आखिर boss कब तक right हो सकता है. इस तरह हर वक़्त कि जी हुजूरी से तो नौकरी को लात मरना अच्छा है. :)
धन्यवाद सोमेश|
हटाएं:) :) :) :)
जवाब देंहटाएंक्लियर करिये शिल्पाजी, ये :)X4 किसके लिए हैं?
हटाएंविकल्प हैं - १. मारुती ८०० २. फत्तू :)
:) :) :) :)
हटाएं:)
फत्तू है कोई कांग्रेसी थोड़ी जो सारा जीवन ही चापलूसी में निकाल दे !
जवाब देंहटाएंचापलूसी करेगा तो ही कुछ पायेगा|
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंप्रणाम
प्रणाम भाई साहब|
हटाएंFattu ka jawab nahi.
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी!
धन्यवाद डाक्टर ज़ाकिर साहब|
हटाएंसबसे पहले बात फत्तू से शुरू करते हैं. जंगल में शेर का बुरी तरह से बिगड़ा शव देखकर उसने सबको बताया कि "नवाब साब ने शेर को अकेले पाकर उसके मुंह में हाथ डाल दिया और उसके गले और पेट से हाथ ले जाते हुए उसकी पूंछ तक पहुँच गए. फिर उन्होंने उसकी पूँछ पकड़कर ऐसा खींचा कि शेर उल्टा हो गया!". गोया शेर नहीं कोई पैजामा था जिसे दूसरे सिरे में हाथ डालकर उल्टा-सीधा कर दो!
जवाब देंहटाएंअब मैं यह कहूँगा कि आप खुशकिस्मत हैं. हम जिस महकमें में हैं वहां ऐसा करने का सोच भी नहीं सकते. खैर ऐसे वाकये होते हैं जो ताजिंदगी याद रह जाते हैं.
बीस साल पहले अपने फूफाजी (अब दिवंगत) के साथ बिलासपुर में रिक्शा का इंतज़ार कर रहे थे. कोई भी आठ रुपये में जाने के लिए तैयार नहीं था और दस रुपये मांग रहा था. फूफाजी ने आधा घंटा बर्बाद कर दिया लेकिन दस रुपये देने के लिए तैयार नहीं हुए. एक रिक्शावाला आया और उसने खुद ही आठ रुपये में ले जाने की बात की. हम ख़ुशी से उसपर बैठे. गंतव्य पर पहुँचने के बाद फूफाजी ने उसे दस रुपये ही दे दिए, आठ रुपये किराया और एक्स्ट्रा दो रुपये उसकी बख्शीश थी. और मैं यह सोच रहा था कि जब दस रूपये ही देने थे तो इतना वक़्त क्यों जाया किया. वे लोग किसी और ही मिट्टी के बने और अपनी धुन के पक्के लोग थे. यह वाकया आपके वाकये से जुदा है लेकिन इसका जायका कुछ-कुछ वैसा ही है इसलिए यहाँ लिख बैठा.
अरे निशांत भाई, मस्त वाकया है बिलकुल| मेरे स्वर्गीय दादाजी भी कभी कभी ऐसे ही बिहेव करते थे|
हटाएंवैसे हम तो अब भी करते हैं ऐसे, यदा-कदा...
हटाएंभैया जी फत्तू दादा को मेरा प्रणाम कहें और स्वतंत्रता दिवस की बधाई अग्रिम स्वीकारें
जवाब देंहटाएंसिंह साहब स्वतंत्रता दिवस की आपको भी शुभकामनाएं| और फत्तू की तरफ से प्रति प्रणाम भी:)
हटाएंफत्तू वाला किस्सा भी रफूगरी में जोड़ा क्या? ऊपर वाला भी बढ़िया है हम बोर थोड़े न हुए थे।:)
जवाब देंहटाएंबोर हो भी जाते तो हम कौन सा बख्शने वाले थे? और कुछ पढ़वाकर बोर कर देते :)
हटाएंसंजय बाउजी, जान की अमान पाऊँ.. आई मीन अगर आप इस बात की गारंटी लें कि कोई मेरी बात पर लाइक, क्लैप, तालियाँ, वाह-वाह या ऐसे ही कोई तारीफ़ के लफ्ज़ नहीं कहेगा तो इस पोस्ट के दोनों हिस्से के बारे में दो बातें कहूँ..
जवाब देंहटाएं/
पहली बात, हमपेशा होने के नाते ऐसे वाकयों/इंसानों से दो चार होने का मौक़ा मिलता रहा है.. ऐसे ही किसी मौके पर मैंने कह दिया था कि भाई साहब, जो मैं नहीं जानता उसपर बहस ही नहीं करता और जो जानता हूँ उसके खिलाफ किसी की नहीं सुनता.. नतीजा ये कि हमारे बॉस मुस्कुराकर रह गए और आगे से किसी भी शक की गुंजाइश पर मुझसे कनफर्म करते और उसके बाद किसी की नहीं सुनते.
/
दूसरी बात, फत्तू वाली.. मेरे बेहतरीन दिमाग से फत्तू बेचारे का भी भला हो गया.. इस्तीफा थमाकर फत्तू जैसे ही बाहर निकला मैंने उसे पकड़ लिया और बेरोजगारी भत्ते के तौर पर कान में एक बात कही.. फत्तू खुशी-खुशी नवाब साहब की महफ़िल में गया और बोला कि यह सच है कि नवाब साहब की गोली से शेर दो टुकड़ों में बंट गया और गोली निकालने पर ही लाश वन-पीस बनी... जब लोगों ने पूछा कैसे तो फत्तू बोला - हमारे नवाब साहब का नाम रजनीकांत हैं, और शौकिया मद्रासी फिल्मों में काम करते हैं.. इसके बाद किसी को कुछ पूछने और समझने की ज़रूरत न रही.. फत्तू की नौकरी पक्की और रफूगिरी से भी निजात मिल गयी उसे!!
पहले पर - लाइक
हटाएंदूसरे पर - तालियाँ
हमने तो ये जाना था की आप भावनगर गए हैं, आप तो किबला और भी लखनवी हुए जाते हैं| गारंटी तो हम बैंक के बाहर न लेते और न देते, इसलिए गारंटी की कोई गारंटी नहीं|तारीफ़ का कोई जिक्र नहीं करना है जी, लाईक और तालियाँ सुज्ञजी ने हमारे से पहले ही अर्पित कर दीं, हम तो उन्हें सेकंड कर रहे हैं|
हटाएंआपकी पहली बात - एक बहुत बड़ा मिथ है की वरिष्ठ अधिकारी सही बात नहीं सुनते| इस भय से और बहुत बार इस बहाने से भी हम लोग चुप लगा जाते हैं| कुछ समय साथ काम करने के बाद एक दुसरे के प्रति समझ दोनों तरफ से ही डेवलप हो जाती है, मुझे ऐसा लगता है|
दूसरी बात - :)
रजनीकांत के अलावा किसी में फत्तू को काम पर रखने की हिम्मत है भी कहाँ? :)
हटाएं@मेरी नजर में उनका कद दिनों दिन ऊंचा ही हुआ|
जवाब देंहटाएंबेशक उनका कद उँचा ही था। निष्ठावान!! बहुत कम होते है निराभिमानी!!
अच्छा? रफूगर नें अपना सेपरैट ब्लॉग बना लिया है?
जवाब देंहटाएंअभी तो नोटिस ही दिया दीखे है जी:)
हटाएंफत्तू ने ब्लॉग तो बहुत पहले बनाया दीखे, नवाब साहब के कंधे पर रफूगरी का प्रमोशन कर रहा होगा जी और संयोगवश स्वतंत्रता दिवस आ गया:)
हटाएंमुद्गल साहब हमें भी पसंद आये !
जवाब देंहटाएंअली साहब, पसंद आने लायक ही हैं हमारे मुदगल साहब|
हटाएंहम तो एक ही मुद्गल साहब को जानते हैं! ताऊ महाराज की जय!
हटाएंवाकई ऐसे लोगों के साथ काम करने का आनंद ही कुछ और होता है,
जवाब देंहटाएंवैसे रफ़ूगर के ब्लॉग का पता दिया जाये ।
A\F हैगा जी अभी तो:)
हटाएंसच कह देना ही ठीक होता है कई बार..
जवाब देंहटाएंकई बार!! सच कहते हैं आप|
हटाएंअपनी ग़लती मान लेना और उसे दुरुस्त कर लेना ही बड़प्पन है।
जवाब देंहटाएंलॉन्ग टर्म फायदा भी इसी में है मनोज जी|
हटाएंफत्तू ने तो कतल ही कर दिया :)
जवाब देंहटाएंचढेगा फांसी भी काऊ दिना :)
हटाएंबड़े बहादुर हैं आप! बड़े समझदार हैं मुद्गल साहब।
जवाब देंहटाएंफ़त्ते बहादुर के क्या कहने! :)
यही सुनने के लिए तो इत्ता बड़ा तम्बू ताना था,
हटाएंबड़े पारखी हैं आप, जर्रानवाज हैं आप|
आपके क्या कहने!!:)
एक शोध का परिणाम महज तीन शब्दों का वाक्य, जिनका उच्चारण सबसे कठिन होता है- ''(1)मुझसे (2)गलती (3)हुई.''
जवाब देंहटाएंइसका और भी लघु परिणाम जो डिप्लोमैटिकली बड़ा हो जाएगा,
हटाएं(1)गलती (2)हुई
अमर हो स्वतंत्रता! हैप्पी इंडिपेंडेंस डे! फ़त्तू को भी आज़ादी मुबारक!
जवाब देंहटाएंहैप्पी इंडिपेंडेंस डे टू यू भी सरजी|
हटाएंकभी कभी बॉस भी अच्छे मिल जाते हैं ...भलेमानस थे मुदगल साहब !
जवाब देंहटाएंकितना ढकता बिचारा फत्तू भी !
हमें अब तक अच्छे बॉस ही मिले हैं वाणी जी|
हटाएंअंतिम पैरा पैबंद है इस पोस्ट पर ....इतने अच्छे अच्छे विचार आये थे पढ़कर इस पोस्ट को मगर अंत में अपने सब कबाड़ा कर दिया ..पोस्ट भी नाहक ही लम्बी हुयी ......समय बर्बाद हुआ .....आपका भी अपुन का भी ...और जो मूल टिप्पणी करनी थी घालमेल हो गयी....गुजारिश है मूल पोस्ट जहाँ सहज ही ख़त्म हो जाया करिए उसे ताना मत किया कीजिये ...यह आपकी तनिक सी एक आदत है ..मगर करियेगा क्या आपके कुछ पाठक आते भी उसी पुछल्ले के लिए हैं .....
जवाब देंहटाएंस्पष्ट राय देने के लिए आपका शुक्रिया| हमारी गुजारिश ये है जी कि जहाँ असहज लगने लगे, वहीं छोड़ देना बेहतर| वैसे तो अब कंट्रोल में ही रहते हैं अपन, बस कभी कभी बहक ही जाते हैं|
हटाएंअब हम भी परहेज करने लगे हैं ऐसी टिप्पणियों से मगर आपकी यह लाईन प्रोत्साहित करती है तो क्या करें - :-(
हटाएंजितनी देर में आप बहुत अच्छे, शानदार लेख, प्रस्तुति जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे उतना समय किसी और गुणग्राहक पर लुटायें
करना क्या है जनाब, ऐसे ही प्रोत्साहित होते रहिये :) जब कभी कुछ कहने लायक लगे तो मन में न रखें| सिर्फ औपचारिकता के लिए वाह-वाह से आलोचना लाख दर्जे बेहतर|
हटाएंये लाइन कमेन्ट बोक्स के ऊपर लिखी थी, because I mean it. अपने बारे में किसी के द्वारा आलोचना, स्पष्ट राय का बुरा मानूंगा तो ये एक शुभचिंतक के साथ अन्याय होगा|
.........
जवाब देंहटाएं.........
f a t t u
jindabad.
.........
.........
pranam.
सहपाठी जी,
हटाएंअब तो यह रोमन छोडिए,
देखो न रोमन के कारण 'बहादुर फत्तू' 'फट्टु' बन गया :)
जिंदाबाद सुनने को मिल जाए तो फिर 'फत्तू' क्या और 'फट्टु' सुज्ञ जी:)
हटाएंमुद्गल जी जैसे लोग भी हैं और ऐसे लोग भी जो बिना बात ही दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं। आपकी पोस्ट का जवाब नहीं है। फत्तू का तो खैर कोई जवाब ही नहीं बनता।
जवाब देंहटाएंहर तरह के लोग हैं अजित दी तभी तो ये दुनिया है, वरना स्वर्ग या नरक होती| कितनी बोरिंग, सोचकर देखिये|
हटाएंहा-हा.... कोई समझदार हो तो फत्तू जैसा ! वैसे पुराने लोगो की भी सीख यही है संजय जी कि साब के अगाडी और घोड़े के पिछाडी नहीं चलना चाहिए ! :)
जवाब देंहटाएंपुराने लोगों की सीख तो हमें पसंद ही है गोदियाल जी, यथा संभव मानते भी हैं|
हटाएंकौनसा पुरुष है ऐसा जग में, जिसे पद मिलने पर भी मद नहीं आता।
जवाब देंहटाएंअगर ऐसे पुरुष हैं, तो वे ही श्रेष्ठ हैं। मुद्गल साहब को प्रणाम।
आप तो जैसे पहले थे वैसे ही हैं, नई बात तो मुद्गल साहब की पता चली है, सो उनकी तारीफ कर दी। :)
हमारे बॉस की तारीफ़ कर दी, हमारी अपने आप ही हो गई| पहले जैसे ही हैं जी हम तो:)
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजहे-नसीब!!
हटाएंकिसी ने कहा था, "शिकायत करने का और सीखने का कोई अंत नहीं, आप क्या चुनते हैं वही आपको आप बनाता है।"
जवाब देंहटाएंमुदगल साहब दूसरी श्रेणी के हैं, हमारा सलाम पहुँचे।
और फत्तू तो खैर - कतल! कतल! कतल! अब चढ़ा ले जिससे बने वो फाँसी ;)
कभी मुलाक़ात होगी तो बताऊंगा उन साहब को कि उनके इस चेले ने कैसे कैसे सलाम इकट्ठे कर रखे हैं उनके लिए|
हटाएंफत्तू फैन्स क्लब की नींव रख ही ली जाए अब:)
स्वतंत्रता दिवस महोत्सव पर बधाईयाँ और शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंmudgal sahab ki sadashyat ko salam...fattu ne sahi samay kinara kiya...badiya..
जवाब देंहटाएंजो एक बार में हां कर दे वो काहे का बास !
जवाब देंहटाएंबातों के रफूगर से ईष्र्या हो रही है।
टू इन वन...मजा आ गया !
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
हमारे इन्जीनियर पिताजी को उनके एक ठेकेदार ने पोस्टर गिफ्ट किया था...पूरी दीवार बराबर...एक चिम्पांजी ऑफिस टेबल पर बैठा है और लिखा है...बॉस इज अल्वेज़ राईट...
जवाब देंहटाएं:-)
आनंद आया पूरी पोस्ट में.
सादर
अनु
मेरे जीजाजी के एक परिचित हैं, जिनकी कार पर वही लिखा है जिसका जिक्र आपने किया है. दरअसल उनके बेटे का नाम नारायण कार्तिकेयन है, और इसी को मजे लेकर अपनी कार पर उन्होंने यह लिखवा लिया. अब पता नहीं की आप जिनका जिक्र किये हैं ये वही साहब हैं या कोई और? अगर वही हैं तो वे भी एक बैंकर ही हैं. SBI में...
जवाब देंहटाएंशायद मुदगल साहब जानते थे कि, "एक ने कही दूजे ने मानी गुरु नानक बोले दोनो ज्ञानी"!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहलीबार आई हूँ या कहिये आज ही पता लगा आपकी बहुत रोचक पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छी लगी एक बात हमेशा सही है की बड़ा आदमी वो है जो यदि कोई छोटा आपको सही कर रहा है तो अपनी गलती मान लेने से आप सबकी नजरों में और बड़े हो जायेंगे बहुत अच्छी सन्देश परक पोस्ट लगी आपका ब्लॉग फोलो कर रही हूँ मिलते रहेंगे
जवाब देंहटाएंकिसी व्यक्ति को सब कुछ आता हो ऐसा तो संभव नहीं | पक्की जानकारी न होने पर या संशय की स्थिति में जब तक कन्फर्म न हो जाएँ बहस न करने में ही बुद्धिमानी है | अपनी त्रुटि मान लेने से कोई छोटा नहीं कहलाता |वैसे भी कहते हैं, a man is never late to learn anything.
जवाब देंहटाएं