हमारा एक पुरानी साथी भोला उसके गाँव के एक आदमी के बारे में बता रहा था कि वो हमेशा अपनी गर्दन झुकाये रहता था। हमने अपना ज्ञान झाड़ा कि हो सकता है उन साहब ने यह तजुर्बा ले रखा हो -
नज़र बाग में नज़र मिलाते, नज़र से हमने नज़र को देखा
नज़र पड़ी जब नज़र के ऊपर, नज़र झुकाते नज़र को देखा
वाह वाह करनी तो दूर रही, भोला ने हमारी दलील यह कहकर खारिज कर दी कि ’गर्दन’ और ’नज़र’ विच फ़र्क हुंदा है। और खुलासा करते हुये मामले को और रहस्य प्रदान कर दिया कि एक बार गाँव के लोगों ने उस बंदे को मजबूर करते हुये उसकी गर्दन ऊपर की ओर उठवाई। गाँव में किसी ने अपने मकान की दूसरी मंजिल बनवाई थी जोकि एक नया प्रयोग था, लोगों ने कह कहकर उस आदमी को मजबूर किया कि देख तो सही, नई चीज है। उस बंदे ने ऊपर की तरफ़ देखा और देखते ही देखते दूसरी मंजिल भरभराकर गिर गई। उसके बाद किसी ने ऐसी जिद नहीं की बल्कि उस बंदे को खिलापिलाकर इतना खुश रखते थे कि गर्दन ऊपर उठने ही नहीं देते थे।
मैंने कहा कि यार तेरे गाँववालों ने तो बंदे को वहीं रोककर उसकी प्रतिभा के साथ बहुत अन्याय किया, दिल्ली जैसी जगह पर ले आते तो म्यूनिसिपैलिटी वाले मनचाहे पैकेज पर उसे रख लेते। भोला कहने लगा, "बताने का मेरा मतलब ये है कि आपको देखकर मुझे उस बंदे की याद आ जाती है।" इस वार्तालाप का नतीजा ये निकला कि हमने उसके बाद से नज़र नीची रखने में और भी भलाई समझी।
तेरह फ़रवरी, शाम लगभग सात बजे - किसी मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो के दरवाजे खुले। सवारी उतरीं कम और चढ़ी ज्यादा। हमारी झुकी नज़र ने एक जोड़ा नंगे पैर देखे और कुछ हैरानी हुई। माना कि मेट्रो में सफ़ाई अपेक्षाकृत ठीक ही है लेकिन फ़िर भी नंगे पैर? पाकीज़ा फ़िल्म का डॉयलाग था कुछ कि आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं टाईप, वो क्या हुआ? रिस्क लेते हुये गर्दन थोड़ी सी उठ ही गई। बिना सैंडिल\जूती वाले पैर, पैरों पर ताजी ताजी लगी मेंहदी। और ऊपर तक देखा तो दोनों हाथ कुहनियों तक डिज़ाईनर मेंहदी से सजे हुए।मेंहदी अभी एकदम ताज़ी-ताज़ी थी। नहीं समझ पाया कि देखना असभ्यता है या न देखना, लेकिन आज देखे बिना रहा नहीं गया।
बदनीयत कोई नहीं थी, सिर्फ़ उत्सुकता थी कि शौक से लगवाई गई मेंहदी को इस भीड़-भाड़ वाली जगह पर बचाकर रखने में कितने कौशल की जरूरत होगी? उस कौशल को देखकर लोग कैसे रियेक्ट करेंगे? असल में खाली दिमाग होना ही नहीं चाहिये, उल्टी सीधी बातें ज्यादा दिमाग में आती हैं। भीड़ में किसी से छू जाने पर मेंहदी का डिज़ाईन बिगड़ना ज्यादा बड़ा मुद्दा होता या किसी के कपड़ों में दाग लगना? मेट्रो घर के पास तो छोड़ सकती है लेकिन घर तक तो नहीं छोड़ सकती। मेट्रो स्टेशन तो फ़िर साफ़ सुथरे हैं लेकिन उससे बाहर सड़क का हाल? और सुरक्षा का मुद्दा, वो भी उस दिल्ली में जहाँ अभी दो महीने भी नहीं गुजरे कि...? और बहुत से सवाल जो दिमाग में तो आ रहे थे लेकिन जिन्हें जुबान पर लाना शायद आधी आबादी के साथ अन्याय हो जायेगा। अधिकार, आज़ादी, इच्छा जैसे शब्द वैसे भी आजकल अपने दिमाग में गूंजते ही रहते हैं।
वैसे मुझे हैरानी ही हुई कि दस पन्द्रह मिनट के सफ़र में कोई हंगामा दिखा नहीं। या तो दिल्ली के सारे (ना)मर्द सभ्य, सुशील हो गये हैं या फ़िर जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट आने के बाद और हाल ही के दिनों में सरकार ने अपराधिक मामले निपटाने में जो इच्छाशक्ति दिखाई है, उससे दिल्ली वाले सकपकाये हुये हैं। सोचा था कि उस लड़की से कुछ साधारण से प्रश्न पूछता हूँ जैसे कि इतना कान्फ़िडेंस कहाँ से लेकर आती हो तुम लड़कियाँ, फ़िर ख्याल आया कि बेशक मैं उम्र में उसके बाप के बराबर हूँ लेकिन कुछ पूछने का हकदार नहीं हूँ। गर्दन फ़िर से नीची करके घर को लौट आया हूँ।
ध्यान आया कि तेरह फ़रवरी के बाद चौदह फ़रवरी आती है:) हो सकता है अगली मेट्रो यात्रा और भी मेंहदीनुमा मेरा मतलब है खुशनुमा हो। कुछ राज्य सरकारें रक्षा-बंधन वाले दिन अपनी तरफ़ से बहनों को रोडवेज़ में मुफ़्त यात्रा करने का उपहार देती हैं, आने वाले वर्षों में सरकार से चौदह फ़रवरी को वैलेंटाईनों\नियों को क्या उपहार मिलता है, देखेंगे हम लोग....।
आपकी पोस्ट को खास तौर पर नज़र है ..कोशिश करूंगा की इसे आगे पूरा कर पाऊं , फिलहाल इससे काम चलाइये !
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नज़रें नीची,इस दुनियां में रखने का कोई सबब नहीं
संजय बाऊ किस दुनियां में,नज़र को नीची रखते हैं !
हटाएंकौन करेगा कद्र तुम्हारी,कद्र को कोई कदर नहीं
कद्रदान भी अक्सर अपने हाथ, छिपाए रखते हैं !
सतीश भाईजी,
हटाएंहमारी ऊबड़ खाबड़ जमीन पर इस दोमंजिले के लिये आभार, पुन: सिद्ध हुआ कि आप कहीं भी कुछ रच सकते हैं।
यह ऊबड़ खाबड़ जमीन बड़ी सरल , सुकून भरी लगता है !! बधाई ..
हटाएं:)
हटाएंआप खुद सरल आदमी हैं सतीश जी। खुद ही देख लीजिये न बाबाजी भी आपकी इस बात पर स्माईल प्लीज़ कर गये :)
हटाएंसंजय जी हो सकता है कि शादी के सीजन में वो लडकी मेंहदी लगवाकर जिस मैट्रो स्टेशन पर उतरे वहां उसके लिये गाडी खडी हो क्योंकि दिल्ली मे मैट्रो का फायदा भी तो खूब है पर हां है हिम्मत की ही बात
जवाब देंहटाएंआजकल तो एक महीने के बच्चे को भी चप्पल पहनाई जाती हैं
बिल्कुल ऐसा हो सकता है मनु भाई, कुछ भी हो सकता है।
हटाएंसबसे पहले की हम भी आप की तरह ही लाईनों के बिच लिखी हुई बात नहीं पढ़ पाते है , इसलिए मेंहदी वाले नंगे पांव किसी लड़की के चलने में उसकी सुरक्षा , आजादी आदि आदि से क्या कनेक्शन है और आप वास्तव में क्या कहना चाह रहे है मै नहीं समझ पाई , कृपिया बात को, यदि संभव हो तो, खुल कर बताये ताकि थोडा हमारा ज्ञान विज्ञानं भी बढे ।
दूसरी बात नियत साफ हो तो किसी को देखने या बात करने में कोई हर्ज नहीं है , हिचक होगी ही नहीं , क्योकि नियत साफ होते ही बात करने का लहजा पूछे गए सवालो को शब्द ही बदल जाते है ।
वैसे अंशुमालाजी हम तो सच में लाईनों के बीच की बात नहीं समझ पाते हैं। आप अगर नहीं समझीं तो इसकी वजह इस बार मेरा अस्पष्ट लिखना ही था। जब मैं सुरक्षा\आजादी की बात सोच रहा था तो मेरे सामने सिर्फ़ नंगे पाँव नहीं, हथेलियों से लेकर कोहनियों तक रंगी मेंहदी वाली बाँहें भी थीं। सहारे के लिये किसी हैंडल\बार को पकड़ने से मेंहदी खराब होने का डर, दोनों हाथों में जैसे कुल्हड़ पकड़ रखे हों, ऐसी मुद्रा...। जरूरत पड़ने पर ऐसे में मोबाईल इस्तेमाल करना भी शायद असुविधाजनक ही हो। मैं कुछ ज्यादा ही शंकालु टाईप का भी हूँ, फ़ैशन या अच्छा दिखने के चक्कर में ये सब मुझे सुरक्षा के मामले में रिस्क उठाने जैसा ही लगा और ऐसा सुझाना दूसरों की आजादी पर प्रहार सा, बस इतनी सी तो बात है:)
हटाएंदूसरी बात शायद आप ठीक ही कहती हैं।
जहा तक बात मेहंदी की है तो आप को बता दू की एक बार मेहंदी थोड़ी सुख जाये तो आप कुछ भी कर सकते है , दुसरे जरुरत पड़ने पर कोई मेहंदी का मुंह नहीं देखेगा , अन्दर हिम्मत होगी तो वही मेहंदी वाले हाथो से झापड़ देगा और खाने वाले के गाल कई दिनों तक उसकी गवाही देंगे पूरी दुनिया को , और आप कहा की कुछ हुआ नहीं किस आधार पर कहा क्योकि लड़की ने कुछ कहा नहीं बस इस आधार पर , लीजिये अनुष्का शंकर जैसे महिला को भी कहने में 30 साल से ऊपर लग गए की हा कुछ हुआ था , वो अपनो के बीच अपने घर में भी सुरक्षित नहीं थी , उन्होंने कहा नहीं तो क्या ये माना जाये की उनके साथ कुछ हुआ ही नहीं था , किसी अपने की इज्जत बचाने के लिए सहना और चुप रहना महिलाओ के इस कौशल के बारे में क्या कहेंगे । बाहर जो (ना ) मर्द होते वो कई बार घरो में और बड़े ( ना ) मर्द होते है , बोल दे तो दामन महिला का ही दागदार होता है , अब मुझे समझ नहीं आता की मुद्दा कौन सा बड़ा है , चुप रहना , दामन को दागदार होने से बचाना , अधिकार , स्वतंत्रता आदि आदि आदि ।
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हटाएंअंशुमाला जी, अंदर वाली हिम्मत मेंहदी की तरह दिखती नहीं है न इसीलिये हम जैसों के दिल में अनहोनी की आशंका होती है।
हटाएं’कुछ हुआ नहीं’ ऐसा इसलिये कहा कि उस शाम पन्द्रह मिनट तो अपनी गर्दन उठी ही हुई थी। उन पन्द्रह मिनट में कहने सुनने लायक कुछ घटा नहीं। हाँ, जैसे मैंने इस बात को महसूस किया, किसी और ने भी किया हो और ये असभ्यता की श्रेणी में आता हो तो अलग बात है। दस बीस साल बाद हो सकता है ये पोस्ट भी यौन दुराचार की श्रेणी में आ जाये।
घर-बाहर के (ना)मर्दों के बारे में अपना भी यही मानना है कि बाहर भी ऐसे व्यवहार वही लोग करते होंगे, जो घर में भी ऐसे ही व्यवहार के आदी होंगे।
मेरी नजर में बड़ा मुद्दा सुरक्षा का ही है, बाकी सबकी नजर अपनी अपनी और ख्याल अपना अपना।
स्वप्न मञ्जूषा जी,
हटाएं’ Oprah Winfrey’ नाम कुछ हिन्दुस्तानी सा नहीं लगा ..:)
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हटाएंदुर्भाग्य या सौभाग्य वाली बात नहीं बल्कि हैरत की बात लगी कि हिन्दुस्तान से बाहर भी..
हटाएंthis post is incomplete....so please continue...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
आप साथी हो कौशल जी, हाथ बढ़ाईये। अपने ब्लॉग पर इसे अपने हिसाब से कंपलीट कीजिये, स्वागत है।
हटाएंआगत बसन्त के पहले, स्वागत बसन्त के लिये खड़े होंगे सभ्यजन..
जवाब देंहटाएंबसंतिया परंपरा तो जरूर परवान चढ़ेगी।
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जवाब देंहटाएंआदर्श स्थिति तो सबके लिये यही होगी कि किसी को किसी से कोई भय-आशंका न हो।
हटाएंआपकी प्रतिभा का मिज़ाज़-शरीफ़ एकदम जबरदस्त है, नोश फ़रमाकर इतरा रहे हैं।
तीन अस्त्रों में से एक पर थोड़ा सा ओब्जेक्शन है - अधिकार नहीं, विशेषाधिकार कहिये।
हमारा दोस्त भोला भाला ही है आलरेडी से, हाँ नहीं तो..!!
पोस्ट संजय अनेजा ब्रांड बेशक न लगी हो लेकिन है उसी कंपनी की। नाम के हिसाब से रचेगी आहिस्ता आहिस्ता, देख लीजियेगा।
ये वाला दिन आपको भी हैप्पी हैप्पी और अब एक ठो बात हमारी भी सुन लीजिये - किसी मुद्दे पर राय न मिलने का ये मतबल नहीं होता कि हम भी कहीं लपके हुये जायें और पढ़ने को मिले कि Whoops! The page could not be found, ये अच्छी बात नहीं है।
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हटाएंकमजोर समझने की गलतफ़हमी कम से कम मैं नहीं पालता, गलतफ़हमी आप को हुई लगती है :)
हटाएं@अब एक ठो बात हमारी भी सुन लीजिये - किसी मुद्दे पर राय न मिलने का ये मतबल नहीं होता कि हम भी कहीं लपके हुये जायें और पढ़ने को मिले कि Whoops! The page could not be found, ये अच्छी बात नहीं है।
हटाएंअब का कहें अनेजा साहेब, ई काम करने में 'बहादुरी ' की ज़रुरत होती है का :):)
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जवाब देंहटाएंमैडल वसूल पाया, धन्यवाद:)
हटाएं.
जवाब देंहटाएं______
हटाएं:)
ये वाला बेस्ट वार्तालाप था... ;)
हटाएंवो इसलिय क्योंकि हिन्दी अंग्रेजी का टंटा ही नहीं था इस वार्तालाप में :)
हटाएं:) :)
हटाएंनज़र ना लगे, नज़र की नज़र को रफीक़!
जवाब देंहटाएंक्या नज़र है! जिधर डाले नज़र, नज़र लगा दे!!
14 फरवरी को क्या हुआ?
--
ढ़
इलेवन टू थर्टीन!!!
आजतक कुछ नहीं हआ हमारे साथ तो चौदह फ़रवरी को क्या होना था भाई? :)
हटाएंआज तो पंद्रह हो गई... सार गिफ्ट बंट भी गए होंगे... मेंहदी भी चढ़ गयी होगी...
जवाब देंहटाएंभरे पूरे जहाँ मे पुरसुकूँ ठिकाना खोजता हूँ
हर दिन जीने का नया बहाना खोजता हूँ
हमने तो पद्म सिंह जी, आज पीले चावल खाये। यही बसंत हुई अपनी।
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जवाब देंहटाएंये दुनिया जंगल ही है प्रतुल भाई और जंगल की सभ्यता अपने चरम पर।
हटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन सनातन कालयात्री की ब्लॉग यात्रा - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका।
हटाएं"बदनीयत कोई नहीं थी, सिर्फ़ उत्सुकता थी"-आह क्या माहौल है हर बात पर सफाई देनी पड़ती है :-)
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हटाएंकुछ माहौल ऐसा, कुछ हमारी छवि ऐसी।
हटाएंडिस्क्लेमर या स्टेच्युटरी वार्निंग सही रहती है"_
जी हाँ स्टेच्युटरी मैटर के लिए स्टेच्युटरी लॉ बनते हैं, फिर स्टेच्युटरी वार्निंग भी दी जाती है, लेकिन स्टेच्युटरी क्राइम्स फिर भी होते हैं ..हमलोगों को कम से कम अपना फ़र्ज़ ज़रूर पूरा करना चाहिए ...
हटाएंसंवैधानिक चेतावनी :
तम्बाखू खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है
सिगरेट स्मोकिंग इज इन्जुरियस तो हेल्थ
लेकिन सिगरेट फिर भी बिक रहे हैं ..:)
मान गए भई कि इस दर्जे़ के भी जोकर हो सकते हैं जो मेंहदी लगवा के मेट्रो में चलने का माद्दा रखते हैं और वो भी नंगे पांव. लानत है.
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हटाएंभाई transparent होना अछी बात है.
जवाब देंहटाएंभाई साहब देरी के लिए माफ़ी हमारी नज़र को सरवर की नज़र लग गई वैसे भी आजकल डरकर नज़रें बचाकर अपना रास्ता चल रहे हैं ..खूबसूरती से कही गई दिल की बात समझने वालों के लिए ...
जवाब देंहटाएंमेंहदी ? टैटू के जमाने में !
जवाब देंहटाएंब्लॉग को सराहूँ या सराहूँ टिप्पणियों को?
जवाब देंहटाएंब्लॉग को सराहूँ या सराहूँ टिप्पणियों को?
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