(चित्र गूगल से साभार)
एक नन्हा, चंचल, उत्साही खरगोश कड़ी धूप में इधर उधर डोल रहा था। छाया का कहीं नामो निशान नहीं था। हाथी महाराज नहा धोकर मस्त मलंग की तरह सो रहे थे। धूप से त्रस्त नन्हें खरगोश ने उस विशालाकार वस्तु की परिक्रमा की और उसे एक मजबूत किला\ईमारत मानते हुये उस महल के पिछले दरवाजे में सिर घुसाया और गर्मी के चलते प्रवेश भी पा गया जैसे उदारीकृत पासपोर्ट नीति के तहत एक देश के नागरिक दूसरे देश में प्रविष्ट हो जाते हैं। भीतरी नमी और ठंडक के चलते उसे नींद आ गई, किसी एक कोने में वो भी सो गया। उधर शाम हुई तो हाथी उठा और चल दिया। अब खरगोश की हालत खराब, हाथी के चलने से बेचारा कभी इधर गिरता, कभी उधर। उसे समझ आ गई कि महल के भुलावे में वो कहीं और आ फ़ंसा है। सूरज की किरणें अंदर पहुँच भी नहीं पा रही थीं, हाथी के पेट के अंदर गैस, गड़गड़ाहट और दूसरी स्वाभाविक क्रियायें भी वातावरण को उस बेचारे खरगोश के लिये भारी सिद्ध हो रही थीं। तापमान कम हो जाने के कारण बार्डर प्रवेश-निकास द्वार के फ़ाटक भी बंद हो चुके थे। वह रात उस मासूम पर कयामत की रात की तरह गुजरी। अगले दिन लगभग वही दिन का समय था और वही मुद्रा, खरगोश को सिमसिम खुला मिला और वो जान छुड़ाकर बाहर कूदा। संयोग से फ़त्तू वहीं से गुजर रहा था, उसने ये करिश्मा देखा तो भागकर उस आलौकिक खरगोश के पांव पकड़ लिये। अब खरगोश था कि मुश्किल से एक मुसीबत से निकला और दूसरी ने पैर पकड़ लिये थे। वो बेचारा अपने पैर छुड़वाने की कोशिश करता था और फ़त्तू अंधश्रद्धा के चलते जिद किये कि पहले मुझे उपदेश दो, फ़िर जाने दूँगा। तंग आकर खरगोश ने कहा, “बालक, यही है हमारा उपदेश और यही है हमारा संदेश कि बड़ों के भीतर घुस जाना तो बहुत आसान है लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल।”
हाथी राजा के पास सी.बी.आई होती तो क्या स्थितियों में कोई अंतर आता? खरगोश के बाहर निकलते ही उसके ठिकानों पर हाथी महाराज छापा डलवा देते कि साले तैंने इतने साल पहले फ़लाने के खेत में से मूली उखाड़ी थी। ये वाला खरगोश तो सिर के बल पुनर्प्रवेश की सौगंध खाता ही, उसके दूसरे बिरादर भी उछल उछल कर अपनी इच्छा प्रकट कर रहे होते कि हमें सेवा का मौका दिया जाये। प्रपंचतंत्र की इस कहानी में आप और क्या कल्पनायें देखते हैं?
सम्भावना दिखती है कि खरगोश को निकलने से पहले दांतों से आंते ही कुतर दी थी या भीतर के राज ऊँचे दामों पर हाथी के दुश्मनों को भेंट करने थे :)
जवाब देंहटाएं:) :)
हटाएंसम्भावनाओं में दम है।
हटाएंउपदेश सही दिया है उम्मीद है फत्तू कुछ सीखेगा !
जवाब देंहटाएंसच में निकलने में कचूमर निकल गया, घुसने के पहले सोचना था।
जवाब देंहटाएं:) :) :)
जवाब देंहटाएंयही तो :-(
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं“बालक, यही है हमारा उपदेश और यही है हमारा संदेश कि बड़ों के भीतर घुस जाना तो बहुत आसान है लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल।”
जवाब देंहटाएंफ़त्तू को सटीक सलाह मिली है, पर उम्मीद नही की फ़ात्तू इससे कुछ सीखेगा?:)
रामराम
प्रपंचतंत्र की हाथी-खरगोश कथा इतनी परिपूर्ण है कि जो भी अतिरिक्त कल्पनाएँ करने जाएँ, उसमें कोई ऐसी नई बात नहीं होती जो इसमें पहले से गर्भित न हो.
जवाब देंहटाएंहाथी का दर्द हाथी जाने,और जान सके ना कोय....:) वस्तुतः खरगोश उसके आंतरिक प्रबंध व्यवस्था का भेद जो ले गया. पचे-अपचे की समग्र क्रिया-प्रक्रिया जान गया!!!
वास्तव में गर्मी के बहाने ये खरगोश, पाचन मेनेजमेंट का कोर्स करने ही जाते है. बडे डील-डौल में अनुभव ज्ञान का भंडार भरा होता है जो उनकी छोटी छोटी जरूरतों में काम लगता है.
हाथी की ऐसी ही बहुमूल्य सूचनाओं के लीक होने अंदेशा हो तो हाथी राजा को दमन करना ही पडता है.
updesh' ankhen kholnewali hai........
जवाब देंहटाएंholinam.
बाप रे बाप, खरगोश की यह जुर्रत।
जवाब देंहटाएंलैला मजनू की कहानी में कोड़े मजनू को पड़ते है और दर्द से लैला चिल्लाती है और निशान भी उसी के बदन पर पड़ते है , जी बस वैसा ही है की कोड़े कही और पड़ते है और दर्द किसी और को होता है , और ससर्त समर्थन बिना सर्त समर्थन बन जाता है , एक तीर से कई निशाने सध जाते है ।
जवाब देंहटाएंएक शिकायत है पिछली पोस्ट से, वहां टिपण्णी बंद थी नहीं तो वही कह देती , शहीद, सैनिक पर राजनीति नहीं करनी चाहिए और आम लोगो को इनका प्रयोग अपने राजनैतिक सोच के हिसाब से नहीं करना चाहिए शहीद शहीद होता है चाहे वो कही भी हो किसी एक शहीद को तवज्जो और दूसरो पर ध्यान भी नहीं क्योकि वो हमारे राजनैतिक सोच के हित को नहीं साध रहा है गलत है । जब हम दूसरो से ये कहते है की इन पर राजनीति न करे तो हमें भी नहीं करनी चाहिए । टिपण्णी बस आप के लिए है आप चाहे तो इसे हटा दे ।
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी, आपकी शिकायत के लिये आभार। उस पोस्ट पर टिप्पणी ऑप्शन कुछ सोचकर ही नहीं दिया था, लेकिन मेरे हिसाब से वह पोस्ट बहुत जरूरी थी। आवश्यक हो तो इस विषय पर आगे संवाद कर सकते हैं।
हटाएंजी हां पिछली पोस्ट पर टिप्पणी खुली होनी चाहिए थी...हम अंशुमाला जी का समर्थन करते हैं।
जवाब देंहटाएंजहां तक समर्थन छापे की बात है ..वो तो होना ही है...इस मसले पर हर पार्टी एक ही पलड़े में है। करुणानिधी बनाम जयललिता सबको याद ही है। चलो कम से कम पता तो चला की जनता के इन सेवक के बेटे के पास 17 विदेशी गाड़ियां हैं। अब विदेशी गाड़ी में बैठ कर देश की कितनी सेवा हो सकती है ये तो वही लोग जाने।
सभी मूलियां उखाड़े बैठे लोग फत्तू के ही पीर हैं
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (23-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
प्रपंचतंत्र की कहानी ........ :-) बोलो जय राम जी की !!!
जवाब देंहटाएंसमय समय पर अवशिष्ट तो निकलता ही रहता है.
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जवाब देंहटाएंअपना अपना स्टाईल होता है जी,
हटाएंन दिखाना(सन्दर्भ) हमारा स्टाईल,
और दिखना(बुद्धू) आपका स्टाईल :)
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हटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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जवाब देंहटाएंगंभीर से गंभीर मसले पर नितांत सादगी से चर्चा वह भी व्यंग में कह जाना आपकी अदा है . सुप्रभात प्रणाम भैया जी ..कमेंट बाक्स हमेशा खुला रहने दें . कुछ तो लोग कहेंगे आपका काम है सहना ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रासंगिक बात है...
जवाब देंहटाएंmasterpiece undoubtably
जवाब देंहटाएंअपन को प्रपंचतंत्र की कथा पसंद आई..बाकी व्याख्याकार जानें....
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएंकहानी तो सफ़ेद हाथी और काले चश्मे सौरी काले खरहे की मालूम पडती है.. हाथी ने सी.बी.माई. को पीछे लगाया और कहा कि हमें तो आनन्द की का अभ्यास है मूढ़ खरहे! तुझे तो देख लिया जाएगा और हमारा क्या.. हमें तो कोई भी मुलायम जीव चल जाएगा, तेरी जगह पर.. जय सी.बी.माई की!!
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