महापर्व के दिन हैं तो पिछले दो तीन दिन से लौटते समय मेट्रो में बहुत भीड़ हो जाती थी। ’नानक दुखिया सब संसार, सारे दुखिया जमनापार’ के रिमिक्स श्लोक के द्वारा दिल्ली के जिन जमनापारियों का महिमामंडन दशकों से होता आया हो, उन जमनापार वालों की मेट्रो लाईन पर होने वाली भीड़भाड़ च धक्कामुक्की का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं। सिवाय इसके, एक दो फ़ले फ़ूले से दीवाली गिफ़्ट भी हाथ में थे तो माबदौलत ने कल शाम मेट्रो को तलाक-तलाक-तलाक कहकर धुर तक भारतीय रेल से नाता रखने का निर्णय लिया। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हाल और भी शानदार था, खुर्जा जाने वाली गाड़ी का इंतज़ार करते हुये देखा तो जमनापार वालों के साथ उत्तम प्रदेश यानि पुत्तर प्रदेश के बाशिदे भी मनसे के साथ ओवैसी की MIM की तरह हाजिर। संजय कुमार, होर वड़ो..., इससे तो मेट्रो ही ठीक नहीं थी?
ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना? ’व्हेन इन रोम, डू एज़ रोमंस डू’ को याद किया और जमनापारियों की तरह डू’ते हुये यानि कि बाजू, कोहनी, कंधों, पैरों के साथ जुबान का भरपूर इस्तेमाल करते हुये हम भी गाड़ी में चढ़ ही गये। हर तरफ़ उत्सव का प्रभाव दिख रहा है, ज्यादातर सहयात्री पुरानी दिल्ली और आसपास के बाजारों में दुकानों पर काम करने वाले लड़के हैं और उनकी बातें मालिक से मिले उपहार और अपनी अपेक्षाओं के अंतर पर केंद्रित। जो अपने मन में, वो उनकी बातों में - हम सब एक हैं :)
रात के नौ बजने वाले हैं, बाहर नजर जाती है तो आसमान में गहरा अंधेरा। अजीब बात है लेकिन अंधेरा मुझे अच्छा लगता है, गहरा अंधेरा और ज्यादा अच्छा। दूर कहीं कोई रोशनी चमकती है तो बहुत बहुत अच्छा लगता है।
मन ही मन स्वयं कन्फ़र्म कर रहा हूँ कि मैं शायद विरोधाभासों से भरा आदमी हूँ, उत्सवप्रिय नहीं हूँ लेकिन वैसा भी नहीं जैसों के बारे में कहा जाता है कि ’निर्भाग टाबर त्यौहार के दिन रूसयां करैं।’ खुद बहुत उत्साही नहीं हूँ लेकिन दूसरों को उत्साहित देखता हूँ तो अच्छा लगता है, छोटी खुशियों पर उत्साहित देखता हूँ तो और ज्यादा अच्छा लगता है। जिस खुशी से दूसरों को दुख न होता हो, ऐसी खुशी को देखकर बहुत बहुत अच्छा लगता है।
स्टेशन कितनी दूर है, यह अनुमान लगाने के लिये दृष्टि अंधियारे आसमान से जमीन की तरफ़ लाता हूँ तो आम तौर पर अंधेरों में डूबी रेल पटरी के आसपास की कच्ची-पक्की झुग्गियाँ रंग बिरंगी रोशनी से नहाई हुईं दिख रही हैं। पीछे की कॉलोनियों में छोटे-बड़े मकानों पर बिजली की चमचमाती लड़ियाँ ऐसा लग रहा है कि अंधेरे से रोशनी की लड़ाई थमी नहीं है बल्कि पूरे उत्साह से जारी है। अच्छा अनुभव हो रहा है, बहुत अच्छा लग रहा है। यही तो है दीप पर्व का असली उद्देश्य, जहाँ अंधेरा है वहाँ रोशनी की जरूरत ज्यादा भी और सार्थक भी।
सच ये भी है कि बीच बीच में ऐसे भूखंड भी आ रहे हैं, जहाँ आज सामान्य से भी कम रोशनी और सन्नाटा है। इन इलाकों से वास्ता रहा है तो जानता हूँ कि ये अंधेरा यहाँ आज ज्यादा गहरा क्यों है। ये भी जानता हूँ कि कुछ जगहों पर अंधेरा हमेशा रहेगा भी हालाँकि ’अंधेरों में जो बैठे हैं, नजर उनपर जरा डालो - अरे ओ रोशनी वालों’ वाली गुहार सुनकर कभी भावुक भी मैं ही होता था। पहले ही मान चुका हूँ कि अंतर्विरोधों से भरा आदमी हूँ :) लेकिन इन अंधेरों से अब परेशानी भी नहीं होती क्योंकि अंधेरे के अभिशप्तों के अंधेरे की उनकी अभ्यस्तता के अधिकार का सम्मान करना समय ने सिखा दिया है।
स्टेशन से बाहर निकल रहा हूँ। कुछ साल पहले तक यहाँ झुग्गियाँ थीं, अब पक्के मकान बन चुके हैं तो अच्छा लगा। एक औरत ने जो निश्चित ही किसी अंबानी/अडानी परिवार से नहीं है. मेज का जुगाड़ करके उसपर कुछ मोमबत्तियों के पैकेट और सजावटी सामान बेचने के लिये रखे हुये हैं, देखकर बहुत अच्छा लगा। हर कोई उद्यमशीलता की ओर प्रवृत्त होता दिखे तो बहुत बहुत अच्छा लगेगा।
अंधकार और प्रकाश का यह प्रतिद्वंद्व सतत है और रहेगा। आप किसके पक्ष में है, यह चुनाव आपने करना है।
आप सबको दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें। हम तो इस वर्ष शायद दीपावली न मनायें लेकिन आप सभी पटाखे, आतिशबाजी आदि का प्रयोग करते समय अपनी व दूसरों की सुरक्षा में लापरवाही कदापि न बरतें। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।
पुनश्च ’शुभ दीपावली’
दीर्घ आयुष्य, आरोग्य, बल, रिद्धि, सिद्धि, ऐश्वर्य, शान्ति, संतोष, सुख, समृद्धि आपको प्राप्त हो!! दीपावली के इस अवसर पर, आप स्वजनों मित्रों के लिए मेरी यही शुभ भावनाएं अभिष्ट है।
जवाब देंहटाएंआभार सुज्ञजी।
हटाएंआपको इतने महीनों बाद पढ़ा 'बहुत-बहुत अच्छा लगा' :)
जवाब देंहटाएंआप अकेले नहीं हैं, दीपावली तो हम भी नहीं मना रहे हैं।
आपको दीपोत्सव की अनन्त शुभकामनायें !
हटाएंइतने महीनों बाद लिखा, पढ़्कर आपको बहुत बहुत अच्छा लगा। यह विदित होते ही हमें सारा अच्छा लगा :)
बच्चों ने खुद ही एक बार भी पटाखे और सजावट के लिये नहीं बोला, वरना मैं तो उनके साथ शामिल हो भी जाता। सबने पूजा की और बहुत अच्छे से की।
आपको भी दीप पर्व की थैला भर शुभकामानायें !
जीवन क्लिष्ट है पर चलता रहता है अबाध या हो सकता है कि क्लिष्ट है इसीलिए अबाध चलता रहता है ....
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो सकता है..
हटाएंयही तो बात है. लोग जिन्हें रोज का उकताऊ रूटीन मानते हैं, अनेजा जी उसमें भी दिलचस्पियां पैदा कर देते हैं.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह है जो मेरी बेसिरपैर की बातों में भी दिलचस्पी खोज लेते हैं, आपको इस प्लेटफ़ार्म पर देखकर भी बहुत अच्छा लग रहा है सुभाष जी !!
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जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेन्द्र कुमार जी,
आपकी सदाशयता के लिये धन्यवाद लेकिन मुझे ध्यान आता है कि ऐसी ही किसी दिवाली के आसपास मैं मेरे कुछ मित्रों सहित आप वाले मंच पर ब्लैकलिस्ट हुआ था और आगामी कई विवादों के लिये निशंक भी हुआ था। आप शायद तब इस मंच से जुड़े नहीं थे अन्यथा प्रकरण से आप परिचित होते। कृपया अपने निर्णय पर पुनर्विवार करें, आपका फ़िर से धन्यवाद।
:D शुभ दीपावली :)
जवाब देंहटाएंशुभ दीपोत्सव भाईजी :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंप्रकाशोत्सव के महा पर्व दीपावली की शृंखला में
पंच पर्वों की आपको शुभकामनाएँ।
अँधेरों को सतत देखते हुए उनका अभ्यस्त होजाना स्वाभाविक है फिर भी अँधेरों से समझौता न करने की जिद भी कम प्रशंसनीय नही । अँधेरे व उजाले में विरोध है और हमेशा रहेगा यही आश्वस्ति की बात है । दीपावली मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंBahut sunder prastuti.... Diwali ki shubhkamna Aapko !!
जवाब देंहटाएंउद्यमशीलता वास्तव में आत्गौरव बढ़ाती उसे करनेवाले और देखनेवाले दोनों का। दीपावली शुभ हो, ऐसी अनंत कामनाएं आप सहित सभी दीपोत्सव मनानेवालों को।
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यों पहले वाली टिप्पणी लापता हो गई...शायद कुछ टिप्पणियां अंधेरों में खो जाती है..चलिए कोई नहीं घर की खेती है..फिर से करता हूं...आपको दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं....अक्सर अंधेरे औऱ उजाले के बीच चलते हैं हम...अपने उत्सवप्रिय होने पर शंका भी होती है कभी-कभी..पर हम जानते हैं कि हम हैं उत्सवप्रिय..अगर चुप भी होते हैं तो अंदर से हलचल होती है.बाहर हलचल में दिखते हैं तो अंदर असीम शांति भी होती है
जवाब देंहटाएंदेर से ही सही हमारी भी राम राम ....सामिल की जाये ...
जवाब देंहटाएंजय बाबा बनारस...