ट्रेन में सामने बैठे व्यक्ति के हाथ में एक सामान्य से मुड़े-तुड़े कैरी-बैग पर 'मोहि क.. छिद्र न भावा' पढ़कर घोर उत्सुकता हो गई। अप्रचलित/अल्पप्रचलित तथा अपूर्ण शब्द/वाक्यांश मुझे आकर्षित करते ही थे, मैंने अनुमान लगाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा। उन सज्जन से आग्रह करते हुए कैरी-बैग की सिलवटें सीधी करके पढा,
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥"
बहुत कुछ भाव समझ गया लेकिन एक शब्द को लेकर संशय भी रहा। शब्दों को पढ़ने का व्यसन तो था, समझने वाली समझ उतनी नहीं थी। अगले अनेक दिनों तक इसे गुनगुनाता रहा, पक्तियों को आगे-पीछे करके। I was amazed, fascinated. इसके बाद ही 'श्री रामचरितमानस' खरीदकर लाया, पढ़ा। यह चौपाई मेरे लिए एक scale की भाँति हो गई। जब और जहाँ चयन की सुविधा हो वहाँ निर्णय लेने में यह एक महतवपूर्ण पैमाना रहा।
आप बहुत धनी हैं, fine.
आप बहुत सुंदर हैं, fine.
आप बहुत शक्तिशाली हैं, fine.
आप बहुत influential हैं, fine.
आप बहुत effective हैं, fine.
आप बहुत smart हैं, fine.
आप बहुत popular हैं, fine.
Fine, because you may be the blessed one.
इन सबमें से कुछ भी नहीं हैं, तब भी fine. Fine, because you may have the opportunity to chose the path.
My only take is, मोहि कपट-छल-छिद्र न भावा।
Book that changed my life, Person who changed my life जैसे चैलेंज कैम्पेन आदि में सहभागिता न करने वाले मेरे जीवन की दिशा को इस एक चौपाई ने बहुत प्रभावित किया, सब कुछ एकवसाथ नहीं लिखा जा सकता।
अकेला और सम्भवतः इन सबपर भारी विरोधाभास यह है कि यह सब लिखने वाला स्वयं को 'मो सम कौन कुटिल खल कामी' लिखता, बोलता और मानता है।
नहीं समझे? समझोगे भी नहीं☺️
😊
जवाब देंहटाएंमने,
जवाब देंहटाएंमैं ही शास्ता...
मैं ही किंकर..
😊