(डिसक्लेमर - अपना इस पोस्ट में सिर्फ नमक है, आटा पीढ़ियों का है| कहाँ आटा है और कहाँ नमक, ये अब मुझे भी नहीं पता|)
एक लड़के का पेट कुछ गड़बड़ कर रहा था, उसकी मां ने उसे एक वैद्यजी के पास जाने को कहा| वो गया और अपनी समस्या बताई| वैद्यजी ने निरीक्षण करने के बाद उसे कहा कि कोई विशेष बात नहीं है, कुछ खाने पीने में लापरवाही के चलते पेट खराब हुआ है, घर जाकर खिचडी बनवाकर खा लेना, ठीक हो जाओगे| अब वो ठहरा पुराने टाइम का और पुराने स्टाइल का बन्दा, जिसे सिर्फ खाने से मतलब रहता था| 'चूल्हा चौका संभाले घर की औरतें' मानसिकता वाला था तो उसे खिचडी के बारे में कुछ मालूम नहीं था| वैद्य जी से बार बार पूछने लगा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा काम सिर्फ इतना है कि घर जाकर अपनी मां से यह कहना कि खिचडी खानी है, वो समझ जायेगी|
अब वो चल दिया अपने घर को, और कहीं उस डिश का नाम न भूल जाए इसलिए 'खिचडी-खिचडी' का जाप करता घर को चल दिया| अब रास्ते में पता नहीं उसने शेर देख लिया कि कोई हिरनी, ये कन्फर्म नहीं है लेकिन अब वो खिचडी की जगह 'खाचिडी-खाचिडी' बोलता जा रहा था| कोई किसान अपनी पकी फसल की रखवाली कर रहा था और ये उसे देखते हुए अपने उसी मंत्र पाठ में जुटा रहा| किसान को आया गुस्सा, उसने सोचा कि मैं तो हलकान हुआ जाता हूँ इन चिड़ियों को भगाते-भगाते और ये उन्हें 'खाचिडी-खाचिडी' कहकर उकसा रहा है| किसान उकस गया और उस लड़के की छित्तर परेड कर दी| फिर उसे समझाया कि 'खाचिडी-खाचिडी' नहीं बल्कि 'उड़चिडी- उड़चिडी' बोल|
उसने फिर से रास्ता नापना शुरू किया, अब बोल रहा था 'उड़चिडी- उड़चिडी|' कुछ आगे गया तो एक बहेलिया जाल बिछाए और दाना गिराये बैठा था| काफी देर से खाली बैठा था और इसकी 'उड़चिडी- उड़चिडी' सुनकर उसने बोहनी न होने का जिम्मेदार इसे मान लिया| जाल समेट लिया गया और बालक की फिर से हो गई छित्तर परेड| बहेलिये का आज का दिन खराब हो चुका था तो आगे के लिए उसे ऑर्डर मिला कि 'ऐसा दिन कभी न आये' का जाप करना है|
आज्ञाकारी बालक फिर से चल पडा और आगे चलकर एक और कामेडी-cum- ट्रेजेडी उसका इंतज़ार कर रही थी| किसी अभागे की घुडचढी हो रही थी, बालक के मुंह से 'ऐसा दिन कभी न आये' सुनकर घोड़ा या दूल्हा या दोनों ही न बिदक जाएँ, इस आशंका से बाराती बिदक गए और बालक के साथ CP once more हो गई| नया हुकम हुआ 'ऐसा सबके साथ हो' रटने का|
अगले पड़ाव पर किसी की शमशान यात्रा की तैयारी हो रही थी| बालक-उवाचम श्रवणयन्ति , मुर्दे को वहीं छोड़कर भीड़ ने उस बेचारे मरीज को अधमरा कर दिया गया| लंगडाता-कराहता वो घर पहुंचा तो उसकी मां ने सारी कहानी सुनकर उसको तो नहीं पीटा, अपना माथा पीट लिया|
इस कथा से बालक ने ये सबक सीखा कि वैद्य से इलाज करवाना बड़ा कष्टकारक होता है|
लोककथा है, लगभग सभी ने पढ़ सुन रखी होगी| ये जरूर हो सकता है कि अब भूल गए होंगे, मुझे बहुत पसंद रही हैं ऐसी कहानियां| आजकल शायद इनका कथन श्रवण कम हो गया है फिर भी आशा तो कर ही सकते हैं कि जैसे सबके दिन बहुर रहे हैं, इनके भी बहुरेंगे:)
ब्लॉग सक्रियता बनाए रखने के लिए आज इस से अच्छी, शानदार, सार्थक कोई और बात सूझी नहीं और हमने एक साधारण सी कहानी याद करने-कराने की कोशिश कर ली| हाजमा ठीक रखियेगा, आपको पसंद आयें न आयें लेकिन आती रहेंगी ऐसी पोस्ट्स| इस बहाने अपनी भी तैयारी होती रहेगी, काहे से कि आने वाले समय में नाती-पोता(he+single+single) को कहानी सुनाने का डिपार्टमेंट भी अपने ही जिम्मे आएगा:)
Bade dinon baad aapne likha hai...ya mujhe nazar nahee aaya lekin padhke achha laga.
जवाब देंहटाएंआदरणीया क्षमाजी,सच है की पहले सी सक्रियता अब नहीं रही लेकिन यदाकदा कुछ लिखता ही रहता हूँ|
हटाएंआपको अच्छा लगा, जानकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा|आपका धन्यवाद|
स्कुल में हम यह खेल के रूप में बच्चों के साथ खेल खेलते हैं . आपने एक शानदार लघु कथा १५ अगस्त के लिए दे दी .
जवाब देंहटाएंह्रदय से धन्यवाद . आपने बाबूजी के साथ बिताये रातों की याद दिला दी .
सिंह साहब, इस बहाने हमें भी आप याद करते रहेंगे:) आत्मीयजनों के साथ बीते दिनों की स्मृतियाँ सुखद होती हैं, बातों-बातों में कैसे हमें जीवन के मूल्य सिखाये जाते रहे हैं| आपका स्नेह संबल देता है|
हटाएंba kya kahein ? khichdi kha leti hoon :)
जवाब देंहटाएं@ ... जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे .. paste :) khachidi :)
जवाब देंहटाएं:))
हटाएं:)हम सुनाते थे यह कथा बच्चों को छत पर जब बिजली चली जाती थी।
जवाब देंहटाएंऔपचारिक शिक्षा से इतर बहुत सा ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है| अच्छा है कि बिजली अब भी जाती है:)
हटाएंशेख चिल्ली को ऐट्रिब्यूटिड यह कथा तो हमने भी खूब सुनी है, मगर ये कंटेम्परेरी वाला निष्कर्ष अभूतपूर्व है।
हटाएंप्रचलित हिस्से से अलग जो भी है, वही तो नमक हैगा जी| आटे में नमक तो हमारा है ही:)
हटाएं@"औपचारिक शिक्षा"
हटाएंयह बात बिलकुल ही है | पाठ्य क्रम में तो हमारी महान विरासत (शायद सोची समझी रणनीति के अंतर्गत ) है ही नहीं | इतिहास में शिवाजी, राणा प्रताप आदि नहीं हैं, किन्तु बाबर से औरंगजेब तक सब हैं | भगतसिंह, राजगुरु सुखदेव आदि भी इतिहास की पुस्तकों में सिर्फ side bar में दीखते हैं, जबकि पार्टी विशेष से जुड़े महान नेताओं ( उनकीमहानता में मुझे कोई संदेह नहीं, किन्तु इन्हें भी इस तरह भुला दिया जाना भी चुभता है ) की पूरी जीवनियाँ और लेखमालाएं हैं | देखती हूँ की १८५७ सिर्फ "mutiny " है, स्वतंत्रता संग्राम तो है ही नहीं :( | मंगल पाण्डेय के बारे में कुछ नहीं है | civics में भी पश्चिमी तरीकों की आदरणीय खूबियाँ तो हैं (होनी भी चाहिए) , किन्तु रामराज्य के पहलुओं पर कहीं विचार नहीं |
चिंतित होती हूँ - अब तक की जेनरेशन तो फिर भी दादी / नानी / माँ / दादा / नाना / पिटा आदि से यह सुन कर कुछ जान लेते हैं, आगे क्या हम भूल ही जायेंगे अपनी विरासत को ? क्योंकि आजकल न्यूक्लियर परिवार हैं, तो दादा दादी आदि का साथ ही नहीं मिलता, और नौकरियां माता पिता दोनों करते हैं, और वह भी पहले से बहुत अधिक वोर्किंग आर्स की - तो खाना , होमवर्क आदि के बाद अगली पीढ़ी को कहानियाँ सुनाने का कितना समय बचेगा , पता नहीं |
आपकी चिंता जायज है|
हटाएंआने दीजिए, स्वागत है, स्वागत रहेगा.
जवाब देंहटाएंबस आप तो ऐसे ही पीठ ठोंकते रहें हमारी, बाकी हम देख लेंगे:)
हटाएं:)
हटाएंओह!! बहुश्रुत आख्यान!!!! आज भी सटीक, सब कुछ समेट लेने में सक्षम!!
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यों पिछली पोस्ट पर आई एक टिप्पणी याद आ गई!! :)
आज तो आपने निशब्द कर दिया, आपका भी जवाब नहीं :)
सुज्ञ जी, बीती ताहि बिसार दें:) हम कौन सा पामोलिव हैं जी, जिसका जवाब नहीं?
हटाएंहाजमा सही न हो तो खिचड़ी दलिया कुछ दिन, फिर वही गरिष्ठ stuff शुरू हो जाएगा:)
"एक टिप्पणी" से कहीं सभी संशयग्रस्त न हो जाए :)
हटाएंस्पष्ट कर दूँ कि वह फुरसतिया जी की यह टिप्पणी थी………
"………मेरा इतने दिनों का ब्लॉग पढ़ने का अनुभव है पोस्ट कोई भी हो, विषय कैसा भी हो, मुद्दा कोई हो - आमतौर पर हम लिखते वहीं हैं जो हमारे मन में होता है। :)"
खिचड़ी के सभी के अपने अर्थ अपनी व्याख्याएँ : खिचडी, खाचिड़ी से 'ऐसा सबके साथ हो' का सफर :)
सही कहा है शुक्ल जी ने, जो मन में है वैसा ही हम लिखते हैं|
हटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति.ब्लॉग जगत में ऐसी आती रहनी चाहिए.आभार हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
जवाब देंहटाएंआभार शालिनी जी|
हटाएंखिचड़ी के चक्कर में खुद की खिचड़ी बन गयी...पर इसमें वैद्य का कोई दोष नहीं था...
जवाब देंहटाएंप्रभु,आपको भी ढाई महीने हो गए कुछ लिखे हुए| एक लिंक पेश करता हूँ आपको अपने ब्लॉग रोल में डालने के सबंध में, कभी अवसर मिले तो देखियेगा - http://mosamkaun.blogspot.in/2010/08/blog-post_15.html
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हटाएंDear ada ji, baar baar to main bhi aati hoon yahaan.
हटाएंहाँ कथा का चरम यही है अदा जी।
हटाएंस्मृतिभ्रंश और अर्थ से अनर्थ का बोध देने वाली कथा।
आजकल माँ 'खिचड़ी' खिला भी दे तब भी जानते बूझते खिचड़ी याद नहीं करते।:)
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हटाएंअदाजी\शिल्पाजी,
हटाएंसीधे सीधे कहिये न कि ढेर सारा आभार प्रकट करवाना चाहती हैं आप!!
आने के लिए बार बार,
नहीं माफी की दरकार,
बल्कि आभार बारम्बार|
वाह वाह:)
आपके आने से हमारी इज्जत में इजाफा होता है, बार बार आने से और भी ज्यादा इजाफा होता है| आप लोगों के आने के कारण अपना कंट्रोल का बटन दबा रहता है, और आपकी टिप्पणियों से हमारी फेस वैल्यू बढ़ती है, थैंक्स|
और हिरण, शेर, चीडिया वाले सुधार के लिए धन्यवाद, लेकिन यह नमक वाला पोर्शन है, हम डिस्क्लेमर शुरू में ही ठोंक चुके:)
यह नमक वाला पोर्शन है
हटाएंऔर "नमक" का हक़ "अदा" करना बनता हैं, वैसे "महाभारत" में "संजय" का बड़ा योगदान हैं . खिचड़ी तो महज एक बहाना हैं और आभासी दुनिया में फेस वैल्यू ?? फेसबुक वालो के शेयर तो लुढ़क रहे हैं किसी और की बिसात क्या
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हटाएंधन्य हैं आप लोग| हमारे लिए तो महाभारत में संजय का योगदान सिर्फ इतना था कि वो ध्रतराष्ट्र को आँखों देखा हाल सुनाता था, शायद महाभारत भी सबकी अपनी अपनी होती होगी|
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जवाब देंहटाएंखिचड़ी , खाचिडी, और उड़चिढ़ी इसके आलवा कुछ लिखा तो आप सीधा उसे अपने ही ऊपर ले कर कहेंगे की मैंने ये कब कहा बताइये , गलती हमारी ही है की ब्लॉग तो आप का है और हम है की कोई ऐसी बात कह देते है जो या तो सभी के लिए कही गई है या दूसरो के लिए है हम ब्लॉग में आप के साथ पाठको को भी जोड़ लेते है :(
जवाब देंहटाएंतो बस ,कौवा उड़, चिड़िया उड़ , मेज उड़ ! लो मेज उड़ा दिया तो दोनों हाथ जोड़ कर आगे कीजिये मार खाने के लिए !
लो अब कहेंगे की हमने कौवा और मेज कब उड़ाया कही उड़ाया हो तो बताइये :))
हाथ जोडकर मार भी खा लेंगे, कान पकडवाने को भी तैयार हैं| लेकिन क्लियर तो किया जाए कि हमने कौवा और मेज कब उड़ाया? कही उड़ाया हो तो बताइये :))
हटाएंडिसक्लेमर : लीजिये अदा जी और शिल्पा जी की तरह हम भी दुबारा आ गये, मनोज जी की टिप्पणी देख कर डर गये पता नहीं लोगों को मेरी टिप्पणी कितनी समझ में आई , ऐसे ही आज कल ब्लॉग जगत में हिंसा फैलने के दोषी बन गये है ;) उस पर से आज तो हद ही कर दी आप को सीधे सीधे मारने की बात कर रही हूं, इसके पहले की कोई गाँधीवादी हम पर हमला कर दे तो हम बता दे की , कौवा उड़ चिड़िया उड़ बच्चो का एक खेल है जिसमे ना उड़ने वाली चीजो को जैसे मेज को उड़ा देने पर हाथ जोड़ कर आगे करना पड़ता है और हाथो पर मार पड़ती है | भईया ई खेल है हम सच में संजय जी को मारने नहीं जा रहे है , अभी तक तो ब्लॉग जगत में ई दौर नहीं आया है , बस अभी तक ही ;) और हा ये भी याद रखेये की जब खेल में उड़ने वाली चीज का नाम लिया जाये और उसे ना उड़ाया जाये तो भी मार पड़ती है और कौवा उड़ता है :))
हटाएं@anshumala
हटाएंaesi hi chalti rahii to nayae kanun kae mitaabik aap yaunik hinsaa ki doshi bhi maani jayaegi so disclaimer ab jarur dae diyaa karae
ओह अच्छा, यानी कि मतबल ये हुआ कि मार पड़ती है और कौवा उड़ता है, ग्रेट:)
हटाएंबड़ी अच्छी खिचड़ी पकी, ऐसी अच्छी की सब गुड़ गोबर होता गया।
जवाब देंहटाएंयह कहानी न पढ़ी थी, न सुनी, इसलिए और भी मज़ा आया।
मनोज जी, आपने न सुनी हो, यकीन नहीं होता| लेकिन है मजेदार कहानी, कभी बच्चों को सुनाकर देखिएगा|
हटाएंइस बहुश्रुत कथा का सन्देश ये है कि बचपन / बचपने का इलाज भले ही कोई भी करे पर अपनी याददाश्त सलामत रहनी चाहिये वर्ना :)
जवाब देंहटाएंवरना तो छित्तर परेड ही होती है जी, again & again:)
हटाएंसंजय जी ,
हटाएंरात में जल्दबाजी की प्रतिक्रिया अधूरी सी लग रही है इसलिये टिप्पणी में एक वैकल्पिक लाइन और जोड़ी जाये ...
कथा कहती है कि, वो वैद्य भी अनाड़ी था, वर्ना उसे पेट दर्द के साथ साथ याददाश्त का इलाज़ भी बताना चाहिये था, उसके बाद लड़के का चाहे जो भी हाल होता :)
वैद्य अनाड़ी नहीं, समझदार था। एक साथ सभी बिमारियों का ईलाज नहीं किया जाता न :)
हटाएंअन्यथा बदाम भी सुझा सकता था, निरामय खाद्य (खिचडी) के साथ गरिष्ठ (बदाम) का मेल। बेमेल हो जाता। :)
और वह लड़का भी बदाम का छदाम कर जाता :)
ऐसा नहीं है भाई कि एक साथ दो बीमारियों का इलाज़ नहीं किया जाता !
हटाएं:))
हटाएंbalma anadi ta kaise bane tarkari...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras......
वाह कौशल जी, यानी कि तरकारी बनने के लिए बलमा खिलाड़ी होना माँगता है:)
हटाएंमजा आ गया पढ़कर और बचपन के वे दिन याद आ गए जब शाम तारे देखते कहानी सुनते सोया जाता था. यह कहानी नहीं सुनी थी. कभी कोई सुनने वाली आई या आया तो यह कहानी भी सुनाऊंगी. परन्तु याद कैसे रखूँगी, तरीका सोच रही हूँ.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
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जवाब देंहटाएंतरीका सूझ गया.
जवाब देंहटाएंlinks for stories, poems and games for children.
http://mosamkaun.blogspot.in/2012/07/blog-post_25.html
यह बनाकर अपने पास सुरक्षित रख रही हूँ और इसमें और भी लिंक्स सँजोऊँगी.
बस अब यह याद रखना है कि इसे बनाया सम्भाला है. :D
घुघूतीबासूती
हमें सेक्रेटरी बना लीजिए घुघूती जी, याद दिलाते रहेंगे:)
हटाएंपुरानी कहानी सूनी हुई याद दिला दी.
जवाब देंहटाएंआभार.
आभार त्वाडा बाबाजी, अपने पास सब पुरानी कहानिया ही हैं अब तक:)
हटाएंबीरबल की खिचड़ी बेशक न पकी हो... लेकिन आपकी पक चुकी है. और बनी भी जायकेदार है.
जवाब देंहटाएंक्योंकि तभी इतने सारे लोगों ने आकर खा भी ली ...
'चना' 'छोला' 'राजमा' खा-खाकर सभी हाज़मा बिगाड़े बैठे थे.
शुक्र है... 'कुटिल कामी' के घर आना सुफल हुआ.
पुराने मित्रों का आना हुआ, 'कुटिल कामी' की खिचड़ी भी सुफल सिद्ध हुई| शुक्र है, अभी त्यागे नहीं गए हम:)
हटाएंअरे!!!
हटाएंआपको पता चल गया... कि कइयों को त्यागे बैठे हैं हम, मतलब 'परहेज़'.
'खिचड़ी' खा रहे हैं... चिड़ीमारों को छोड़ते जा रहे हैं.
और अब तो हम 'पुराने' भी हो गये हैं जी. लेकिन जितने पुराने होंगे आपसे अनुराग भी तो पुराना होता जायेगा.
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हटाएंइतने पुराने हो गए हो प्रतुल जी, कि आप पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में चले गए हो। बाहर सूचना पट्ट लग चुका है कि "यह प्राच्य विरासत की सम्पत्ति है, इसे छूना, छेड़ना या चुराना राष्ट्रिय अपराध है" :)
हटाएंबच के चलते हैं सभी खस्ता दरो दीवार से
हटाएंदोस्तों की बेवफ़ाई का गिला पीरी में क्या?
पहले सोचा कि नमक की बात हो रही है, निकल लें (बीपी के कारण), फ़िर सोचा पढ़ ही लेते हैं, तो अब समझ में आ गया कि वैद्य से इलाज नहीं करवाना है।
जवाब देंहटाएंसही समझे विवेक जी:)
हटाएंभूली कहानी फिर याद आयी
जवाब देंहटाएंपेट तो चित्र से ही भर गया था
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
हा हा हा,
बहुत मजा आया पढ़कर...
@ एक लड़के का पेट कुछ गड़बड़ कर रहा था, उसकी मां ने उसे एक वैद्यजी के पास जाने को कहा| वो गया और अपनी समस्या बताई| वैद्यजी ने निरीक्षण करने के बाद उसे कहा कि कोई विशेष बात नहीं है, कुछ खाने पीने में लापरवाही के चलते पेट खराब हुआ है, घर जाकर खिचडी बनवाकर खा लेना, ठीक हो जाओगे|
इस लड़के के इस किस्से को बताना तो आप भूल ही गये वह यह कि खिचड़ी बनवाकर खाने की सलाह मिलने के बाद उसने वैद्म जी से 'परहेज' भी पूछा... वैद्म ने कहा कुछ परहेज नहीं... पर लड़का अड़ गया, बोला कुछ परहेज तो बताना ही पड़ेगा... अब वैद्म जी को अचानक याद आया कि लड़का बहुत पूजा-पाठी है... एक कुटिल मुस्कान लिये वैद्म जी बोले " बेटा, शंख मत बजाना ! ".... :)
...
परफेक्ट एक्सटेंशन प्रवीण जी:)
हटाएंअब मैं भी बेताल की तरह भटक रहा हूं एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक......खिचड़ी का ली है......खुद ही बना ली थी.....इसलिए....आगे भटक सकता हूं....हाहाहाह सॉरी पीछे की पोस्ट पर..
जवाब देंहटाएंओय होय मीडीयामैन, वैलकम:)
हटाएंकिसी दूसरे रूप में इस कहानी को सुना था.
जवाब देंहटाएंकभी दूसरा रूप भी दिखाईये सरजी :)
हटाएंबचपन को एक बार फिर आँखों के सामने घुमा दिया आपने, पर अपने हैं तो शुक्रिया कहना अटपटा लगेगा। :)
जवाब देंहटाएंबचपन में सुनी थी यह कहानी, कितनी सहजता से ऐसी कथाएँ हमें जीवन मूल्य दिये जातीं थी। हैं कहना चाहता हूँ, पर अब सब छूट ही रहा है।
हमने इस कहानी से यह सीखा था कि भले एकादशी से पूर्णमासी तक उपवास रख लेंगे पर चावल की खिचड़ी कभी न खायेंगे।
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यह पूरी कथा सुना कर वेताल ने विक्रम से पूछा "राजन! बताओ, खिचड़ी किन-किन सामग्रियों से बनी। यदि तुमने उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे मस्तिष्क के टुकड़े हो जाएँगे, यदि सही उत्तर दिया तो आज मैं तुम्हारे साथ चल पडूँगा।"
विक्रम उवाच "चित्र नहीं देखते? चावल, दाल, मटर, टमाटर, हरी सब्जियाँ और नमक।"
"डिस्क्लेमर में लिखा आटा चचा जुम्मन बोलेंगे?" Once in a lifetime opportunity के बावजूद भी विक्रम की CP हो चुकी थी।
अटपटा लगता है तभी तो अवि को कभी शुक्रिया नहीं कहता, न विक्रम और न वैताल| once upon a time, CP was used for connaught place, it is high time to replace it:)
हटाएंवैद्य एक कहाँ रहा पर, सबसे इलाज करवा लिया श्रीमानजी ने।
जवाब देंहटाएंसंजय जी , सब खिचड़ी में अटके हुए हैं , मुझे तो लौंडे की छित्तर परेड की चिंता हो रही है !
जवाब देंहटाएंवैसे ये शब्द सुनकर दिल्ली की याद आ गयी :)
पुरातन कहानियों का आनन्द ही कुछ और था।
जवाब देंहटाएंठेठ गांव में बिताए बचपन की याद आगई, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
सही कहा अब कहानी कौन सुनता है और कौन सुनाता है... ekal परिवारों की यही समस्या है. वैसे अपना बचपन तो खूब कहानिया सुनकर बीता है... ये कहानी मुझे करीब ५ साल पहले मेरे गुरूजी ने सुनाई थी... आज फिर ताज़ा हो गयी..
जवाब देंहटाएंवाह जी संजय जी.
जवाब देंहटाएंआपने तो बहुत पुरानी शेख चिल्ली
की कहानी याद दिला दी जी.
रोचकता का सुखद अनुभव हुआ.
आज दांत टूट जाने के कारण अब एक दो दिन के लिए खिचड़ी ही खानी पड़ेगी जी.
जवाब देंहटाएं