गुरुवार, सितंबर 15, 2011

पीयू पीटू - P U P 2



इस पोस्ट का टाईटिल सोचा था ’पाले उस्ताद – पाट्टू (पार्ट टू)’ फ़िर सोचा कि विद्वान जन आऊ, माऊ चाऊ टाईप की ब्लॉगिंग के बारे में फ़िक्र करके वैसे ही हलकान हुये जा रहे हैं, ऐसा शीर्षक देखकर कहीं उन्हें मौका न मिल जाये कि ऐसा भड़काऊ टाईटिल देकर पाठकों के साथ धोखाधड़ी की गई है। वैसे ये टाईटिल भी कैची सा तो है ही:)

अब हम सीरियस टाईप के बंदे होते जा रहे हैं, सोचा है कभी कभार आपसे काम की बात भी शेयर कर लेंगे। बेशक मात्रा में थोड़ी हो, असर में मामूली हो लेकिन हमें तसल्ली रहेगी कि हाँ जी, हमने भी ज्ञान बाँटा है। अब हम अपनी कथा कहानी आगे बढ़ाते हैं, काम की बात  आप ढूँढ लीजियेगा। मिल जाये तो खुद की पारखी नजर की बलैयां उतार लीजिये और न मिले तो हौंसला न छोड़ियेगा, कभी कभी हमसे  मिसफ़ायर भी हो जाता है।
बैंकों के बारे में एक पोस्ट पहले लिखी थी, आज आपको थोड़ा सा अंदरूनी कामकाज के बारे में बताते हैं, सिर्फ़ थोड़ा सा, क्योंकि ज्यादा अपने को भी नहीं पता है। 

जमा के खातों में सबसे ज्यादा प्रचलित खाते हैं सेविंग खाते, करेंट खाते, आवर्ती खाते, सावधि खाते आदि आदि। सेविंग खातों को हमारे यहाँ घरेलु बचत खाता और करेंट खातों को चालू खाता के नाम से जाना जाता है।

बैंक में ड्यूटी करने वाले हम लोग कार्यविभाजन के मामले में बहुत सतर्क होते हैं। संयुक्त परिवार में देवरानी-जेठानी वाला मामला समझ लीजिये, मेरी ड्यूटी उसकी ड्यूटी से ज्यादा क्यों?   तरह तरह के खट्टे मीठे तर्क देकर हर कर्मी की  कोशिश यह दिखाने की रहती है कि सब से ज्यादा काम, सबसे ज्यादा जिम्मेदारी का काम, सबसे ज्यादा जोखिम का काम उसके सर मढ़ा जा चुका है।  अपना सौभाग्य यह रहा कि अधिकतर जगह अपन उम्र में सबसे छोटे रहे। माँगकर तो हमने कभी टिप्पणी नहीं ली तो ड्यूटी में कौन सा विभाग मांग कर लेते? बड़े बुजुर्ग अपने हिसाब से अपनी पसंद से सीट चुन लेते हैं और बचा खुचा प्रसाद रूप में हमें मिल जाता था। ये और बात है कि कभी कभी पूँछ भैंस से ज्यादा लंबी होती है।

तो जी हुआ ये कि नई जगह पर आये तो दो तीन जगह हमारी चाल-चरित्र और चेहरा जांचा परखा गया और रिजैक्शन लेते लेते हम इस शाखा में आधा दिन देर से  पहुंचे। उस्ताद जी सेविंग डिपार्टमेंट, लॉकर, पेंशन और सैलरी सँभाल चुके  थे और सिर्फ़ बचा खुचा ही बचा था वो हमें मिल गया जैसे क्लियरिंग, एफ़.डी. डिपार्टमेंट, ड्राफ़्ट्स, टैक्स, आवर्ती जमा, वगैरह वगैरह। 

कार्य विभाजन के अनुसार सेविंग विभाग उस्तादजी के पास और करेंट विभाग हमारे पास थे।   सितंबर का महीना शुरू ही हुआ था कि हमने हिन्दी शब्दावली का प्रयोग   ज्यादा करने के लिये उस्ताद जी को मना लिया। थोड़ी हील हुज्जत के बाद उस्ताद जी मान गये। त्वरित संदर्भ के लिये प्रचलित शब्दों की हिंदी आपको बता दें 

सेविंग खाता   -  घरेलु बचत खाता
करेंट खाता     -   चालू खाता
क्लियरिंग       -  किलेरिंग (समाशोधन शब्द  उस्तादजी को बड़ा अटपटा लगा)

कुछ दिन तो पूरा नाम  लेते रहे  और फ़िर धीरे धीरे छोटे नाम पर  आ गये।     अब जो भी ग्राहक आता\आती और काम  कहाँ होगा ये पूछा जाता तो उस्तादजी फ़ट से कहते, “घरेलु है तो इधर आ जाओ, चालू है तो उधर संजय जी के पास जाओ।”  सावन भादों के महीने और हम हैं कि सूखे में ही जीवन बिता रहे हैं। चालू खाते में लेनदेन करने तो सिर्फ़ ’आता’ श्रेणी के ग्राहकगण ही आते हैं। रोना इस बात का  नहीं था बल्कि उनके शब्द प्रयोग का है कि घरेलु है तो इधर आ जाओ और चालू टाईप के हैं तो उधर चले जाओ। अब कौन है जो खुद को चालू बताये? दिन में दस बीस बार ये डायलाग मारकर उस्ताद जी हमारी खिल्ली  उडा रहे थे और स्टाफ़ के भी सारे बंदे मजे ले रहे थे। खैर, सब्र का टोकरा है अपने पास – खुद को कोसते रहे कि काहे हिंदी वाला पंगा ले लिया लेकिन अब क्या हो सकता था? तो जी,   ’आता’ सब इधर है और ’आती’ उस्तादजी के पास। मैं भी कह देता, “उस्तादजी, मजे ले लो मुझसे। कोई बात नहीं, देखेंगे।”

अब बात क्लियरिंग की। जब कोई ग्राहक अपने खाते में किसी दूसरी शाखा या दूसरे बैंक का चैक जमा करवाता है तो  जिस प्रक्रिया के द्वारा उस चैक के पैसे मंगाये जाते हैं, उसे क्लियरिंग या समाशोधन कहते हैं। अब लगभग सभी बैंक केन्द्रीयकृत हो चुके हैं तो दिल्ली जैसे शहर में क्लियरिंग का काम बहुत ज्यादा है। इस बात को सभी मानते हैं। मुर्दे का सिर मूडने से उसका वजन कम नहीं होता लेकिन उस्तादजी ने दयानतदारी दिखाते हुये  काम का बंटवारा किया कि होम क्लियरिंग(अपने बैंक की दूसरी शाखा के चैकों की क्लियरिंग) वो किया करेंगे। क्लियरिंग में होम क्लियरिंग का चैक सप्ताह में एकाध आता है तो ये उनका कसूर थोड़े ही है?  अब क्लियरिंग आने पर जब पियन पूछता है कि इन्हें कहाँ ले जाऊँ?   उस्ताद जी कहिन, “घरवाली इधर ले आ, बाहर वाली संजय जी के पास।”  खून तो बहुत जलता है लेकिन हिन्दी सेवा का व्रत मैंने ही दिलवाया था नहीं तो पहले तो यही कहते थे कि होम क्लियरिंग इधर ले आ, अदर बैंक वाली उधर ले जा। खून के घुँट पी रहा था रोज।
उस दिन हैड ऑफ़िस से चिट्ठी आई, उस्तादजी को प्रशिक्षण के लिये जाना था। मैंने आवाज लगाई, “ओ उस्ताद जी!”  और मेरी आजमाई हुई बात है कि जिस दिन मेरी ऐसी आवाज सुन लेते हैं, उस्तादजी कुरुक्षेत्र में किंकर्तव्यमूढ़ अर्जुन की मुद्रा में आ जाते हैं। पेशानी पर बल, हाथ पैर शिथिल,  होंठ कंपकंपाने लगते हैं कि आज कुछ सुनने को मिलेगा:)


आये उस्तादजी, बैठे। “बोलो जी?”

मैंने चिट्ठी दिखाई, मन में लड्डू फ़ूटे उनके लेकिन उम्मीद के मुताबिक बोले कि यार, मैं तो जाना ही नहीं चाहता ट्रेनिंग पर, लेकिन जाना तो पड़ेगा।

सब बैठे थे।  मैंने पूछा, “एक बात बताओ जी, आप तो जी चले जाओगे ट्रेनिंग पर। पीछे से जी वो घरवाली और बाहर वाली जो होती है जी, किलैरिंग,  उसका क्या होगा?

उस्ताद जी, “घरवाली भी आप ही देखोगे और बाहरवाली भी।”

सब हँस रहे थे, मैं भी, उस्तादजी भी और बाकी स्टाफ़ के लोग भी। मरे जाते हैं काम के बोझ से, दुख के और तकलीफ़ के तो बिन बुलाये, बिन चाहे हजार मौके आते हैं हँसी के  बहाने खोजने पड़ते हैं। ऊपर वाले की कृपा है कि कैसी भी तपती लू हो, ठंडी बयार अपना पता खोज ही लेती है।

हिन्दी दिवस हो चुका,  बैनर वगैरह लपेट कर रख दिये गये हैं। अगले साल फ़िर से जोर शोर से ड्रामा किया जायेगा और जैसे हमने आज काजू वाली मिक्सचर, बिस्कुट, लिम्का वगैरह भकोसकर हिन्दी दिवस मनाया है, अगले साल और जोर शोर से,  बोले तो एकाध मिठाई भी मेन्यू में जुड़वाकर हिन्दी सेवा का व्रत लेने की शपथ लेंगे। कल से फ़िर वही सेविंग, करेंट, होम क्लियरिंग, वही हम और वही उस्तादजी – वहीं बहू का पीसना और वहीं सास की खाट।

अब आज की बेगार लेते जाओ  - अपने घर के, आस पास के,  परिचय के सभी पात्र लोगों के बैंक खाते खुलवायें। विशेष तौर पर बच्चों को सेविंग की आदत जितना जल्दी डालेंगे, उतना ही उन्हें आत्मनिर्भर होने में  मदद मिलेगी। जैसे बच्चों को मॉल्स, सिनेमाघर वगैरह लेकर जाते हैं, कभी कभी उन्हें बैंकों में भी लेकर जायें ताकि वो बैंकिंग  हैबिट्स सीख सकें और आने वाले समय में शिक्षा ऋण आदि सुविधाओं के बारे में आत्मविश्वास से निर्णय ले सकें।

उस्तादजी की छत्रछाया बनी रहेगी अपने पर तो मिलवाते रहेंगे आपको  :)