रविवार, अगस्त 03, 2014

एक गुंडे का कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट


मोबाईल में अब भी वही गाना बज रहा था ’अपने लिये जिये तो क्या जिये,  तू जी ऐ दिल ज़माने के लिये’ और वो साथ साथ गुनगुना रहा था। मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले तो उसके आगे एक लड़की थी जिसके कंधे पर डिज़ाईनर बैग और हाथ में बड़ा सा मोबाईल था। वो यूँ ही सोचने लगा कि मैंने अपना सस्ता सा मोबाईल भी जेब में रखा हुआ है और ये लड़की अपने महंगे मोबाईल को भी हाथ में लेकर चल रही है। फ़िर सोचने लगा कि शायद यही महंगे-सस्ते का अंतर ही प्रदर्शन करने और न करने का कारण है। 

रोज का रास्ता है तो वो जानता है कि आये दिन यहाँ मोबाईल छीनने की वारदात होती रहती हैं। बीच में तो एक टुकड़ा ऐसा भी आता है जहाँ स्ट्रीट लाईट भी नहीं जलती। पता नहीं क्यों, बार बार उसे लग रहा था कि इस लड़की के हाथ में लहराता मोबाईल आज कुछ गुल जरूर खिलायेगा। वो भी मन ही मन संभावित मोबाईल झपट को नाकाम करने के लिये खुद को तैयार करने लगा। बरसों पहले पढ़े जासूसी नॉवल्स की यादें,  विज्ञापनों में देखे अक्षय-सलमान के स्टंट्स, कानों में बजता हुआ गाना सब मिलकर नसों में एड्रेनालाईन उत्पादन असर दिखाने लगे थे। रास्ते के एक तरफ़ दीवार थी तो एक साईड तो कवर हो गई, उसने अपनी पोज़ीशन आगे चलती लड़की के थोड़ा सा पीछे और थोड़ी सी दायीं तरफ़ तय कर ली ताकि पीछे से तो कोई झपटमार न ही आ सके। सामने की तरफ़ से आकर किसी ने हरकत की तो उसे रंगे हाथ पकड़ने के लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। 

लड़की की भी छठी इंद्री शायद काम करने लगी थी, बीच बीच में पीछे मुड़कर देख रही थी। हम्म, मतलब ये कि इतनी बेवकूफ़ नहीं है। आंखों ही आंखों में उसने लड़की को आश्वस्त भी किया कि चिंता मत करना, हम साथ-साथ हैं। एकदम से लड़की रुक गई और कोई नंबर मिलाने लगी। वही जगह थी जहाँ अंधेरा ज्यादा था। अजीब घामड़ लड़की है यार, यहीं रुककर फ़ोन करना था? दोनों के बीच गैप ज्यादा तो था नहीं, अगर चलता रहा तो वो लड़की से आगे निकल जायेगा और जमाने के लिये जीने की सारी प्लानिंग धरी रह जायेगी।  वो भी रुककर बहाने से अपनी जेब टटोलने लगा। लड़की चलने लगी, वो भी चलने लगा। धीरे धीरे अंधेरे वाला हिस्सा पार हो गया और सड़क किनारे बैठे सब्जीवाले और मोलभाव करते ग्राहकों की आवाजें बढ़ने लगीं। यूँ ही कुछ देर के बाद खतरे वाला रास्ता खत्म हो गया, उसे भी सड़क छोड़कर दूसरे रास्ते पर मुड़ना था। उसकी चाल अब कुछ धीमी हो गई थी। मन की हालत अजीब सी थी, अंदाजा गलत होने का थोड़ा सा मलाल भी था और इस बात का थोड़ा इत्मीनान भी कि झपटमारी नहीं हुई ।

दिल के बहलाने को उसको ये ख्याल अच्छा लगा कि लड़की उसे एस्कार्ट करने के लिए थैंक्स कह रही है लेकिन इस ख्याल ने कन्फ़्यूज़ भी कर दिया कि जवाब में’मेंशन नॉट’  कहना ज्यादा सही होगा या ’यू आर वेलकम’ कहना। मुड़ने से पहले एक बार फ़िर उधर देखा तो पाया कि चौराहे पर स्थित पुलिस बूथ पर तैनात कर्मियों से कुछ बात कर रही है। वो अपने घर के रास्ते पर मुड़ गया।

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’ओ भाई साहब, ठहरो जरा" पुलिस कर्मी ने पीछे से आकर रोका और उसे अपने साथ पुलिस बूथ पर ले गया। 

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(आधा घंटा बाद का द्रश्य )

उसकी हालत खराब होती जा रही थी। किसी जानपहचान वाले ने देख लिया कि पुलिसवालों ने पूछताछ के लिये रोक रखा है तो उसका कितना अपमान होगा? घर के लोगों को पता चलेगा तो उन्हें भी कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। बच्चों को कैसे मुँह दिखायेगा? किस किस को सफ़ाई देगा कि लड़की को गलतफ़हमी हुई होगी? ईमानदारी से सोचकर देखा तो लड़की ने कुछ गलत भी नहीं किया। बिना जान पहचान के अगर कोई सधे कदमों से पीछे आ रहा है तो उसे पीछा करना ही माना जायेगा। हो सकता है कि लड़की ये चैक करने के लिये ही रास्ते में ठिठक कर रुकी हो और उसकी खुद की मति खराब हो गई थी जो वो भी रुककर अपनी जेबें टटोलने लगा था। अब वो खुद पर ही खीझने लगा था, और करो भलाई। अपनी जान पहचान के दो तीन सज्जनों का हवाला पुलिसवालों को दे चुका था लेकिन हैरानी की बात ये हो रही थी कि जिनकी सज्जनता का वो और उसकी पहचान वाले दम भरते थे, उन्हें इलाके के पुलिस वाले ही जानने और मानने से इंकार कर रहे थे।

"अरे भैया, कैसे? क्या बात हो गई?"  कार नजदीक ही आकर रुकी और ड्राईविंग सीट पर बैठे बंटी ने पूछा। 

उसने कहा, "कोई बात नहीं, वैसे ही जरा। तू जा यहाँ से।"  मन ही मन बुदबुदाया, ’इसे कहते हैं कोढ़ में खाज’ इन कठोरों को पता चल गया कि ये दस नंबरी अपना रिश्तेदार है तो वारंट कटे ही कटे। ऊपर से ये और खुश होगा कि भैया भी बड़े नाक वाले बनते थे और लड़कियों का पीछा करने का केस दर्ज होने वाला है।’

दरवाजा खोलकर बंटी बाहर निकला और उसके मना करते करते भी बूथ में घुस गया। पांच सात मिनट तक उन लोगों में ’अबे यार, दिमाग खराब है? भों.... के, ...तिया है क्या?’  होती रही, वो भोंचक्का होकर देखता सुनता रहा। वो हैरानी से ये सब देख रहा था कि तभी बंटी ने बूथ इंचार्ज के कान के पास मुँह ले जाकर कुछ कहा और इंचार्ज जोर से हँसने लगा।  बंटी आकर ड्राईविंग सीट पर बैठ गया, साथ वाला दरवाजा खोलकर उसे भी बैठने के लिये कहने लगा। उसने मुड़कर पुलिस वालों की तरफ़ सवालिया निगाहों से देखा तो वो मुस्कुरा रहे थे, "जाओ भाईसाहब और आईंदा से घणा गोपीचंद जासूस मत न बणियो।"

कार में बैठने लगा था कि वो ठिठक गया। बंटी से कहा, "तू जा यार बंटी, मुझे कुछ काम है।" बंटी हँसने लगा, "ठीक है भैया, किसी ने तुम्हें मेरे साथ बैठा देख लिया तो वैसे भी पता नहीं क्या सोचेगा आपके बारे में। जाता हूँ।"

कार चली गई, वो भी घर जाने के लिये तत्पर हुआ। बूथ इंचार्ज को कहा, "ठीक है सर, थैंक्यू।" फ़िर कुछ याद आया तो उसने पूछा, ’सर, ये बंटी आपके कान में क्या कह रहा था?"

इंचार्ज फ़िर से हँसने लगा, "थारी शराफ़त का सुबूत दे रहा था, बतावे था कि वो एक बार  तेरे धोरे  कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट बनवाण गया था और तैंने मना कर दी थी।" 

घर जाते समय वो सारे रास्ते सोच रहा था कि बरसों पहले उसने कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट देने से मना करके सही किया था या गलत?

घर में घुसते ही जब तक बच्चे देरी का कारण पूछें, उससे पहले ही उसने लड़के से कहा, "यार, मेरे मोबाईल में वो गाना डाल दे ’अपना काम बनता, ....   ..... जनता’        कल से वही सुनेंगे।