रविवार, फ़रवरी 19, 2012

जाग जाग, रुक रुक.......


1. हमारे बैंक में एक कंपनी का एकाऊंट था, जिनकी लगभग रोज बैंक से अच्छी खासी ट्रांसैक्शन्स होती थीं। कैश के अलावा दूसरे छोटेमोटे कामों के लिये वहाँ की एक महिला कर्मचारी जो वृद्ध हो चुकी थीं, रोज बैंक आती थीं। उस कंपनी में कभी उनके पति काम करते थे और उसकी मृत्यु के बाद कंपनी वालों ने इन महिला को नौकरी दे दी थी। खैर, रोज आने जाने के कारण सभी बैंककर्मियों से वो खासी परिचित थीं और महिला कर्मचारियों से प्राय: घरेलु विषयों पर उनकी बातचीत चलती रहती थी। एक दिन कुछ बात चल रही थी और उनके मुँह से बेसाख्ता निकला, "रांड तो रंडापा काट ले, पर रंडुये नहीं काटने देते"  है तो यह एक साधारण सा मुहावरा, लेकिन हमारा खास भोला ये सुनकर एकदम से ताव में आकर बोला, "माताजी, तुस्सी सान्नूं दस्सो, त्वानूं कौन तंग करदा है? असी देख लांगे उस स्साले नूं(माताजी, तुम हमें बताओ कि तुम्हें कौन तंग करता है? उस साले को मैं देखता हूँ।")  उसके बाद थोड़ा बहुत मरण जोगा,  नासपीटा, बेशर्म, बेवकूफ़ टाईप का धूल-धक्खड़ उड़ा और आखिर में माताजी और दूसरी नारियों को समझाया गया कि शब्द न देखें बल्कि भाव देखें(समझाने वालों में हम शामिल नहीं थे, हमें तो पता था कि भोला द ग्रेट को इस मुहावरे के बारे में पता  ही नहीं होगा)। बाद में भोला को जब यही बात याद दिलाई जाती तो वो वही मुहावरा हमें सुना दिया करता कि रांड तो रंडापा......। कहता था कि वो तो भलाई करना चाहता है लेकिन कोई करने ही नहीं देता।

निष्कर्ष  - रांतोरंकाले, परंनकादे।

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2. पच्चीस तीस  साल पहले की बात है, चुनाव की गिनती हो रही थी। EVM  का नहीं, ढोल बक्से वाला टाईम था। पहले दौर की गिनती चल रही थी, अंदर से खबर आई कि भैयाजी कुछ हजार वोटों से पीछे चल रहे हैं। कार्यकर्ताओं के चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ रहे थे और भैयाजी वहीं दरी पर आराम से लेटे हुये थे। कुछ समय बाद अंदर से खबर आई, पहले से भी ज्यादा वोटों से पिछड़ रहे हैं और अंतर बढ़ता जा रहा है।  कार्यकर्ताओं का रक्तचाप, उम्मीदें बढ़ घट रही थी और दरी पर देखा तो भैयाजी नदारद।? एक नजदीक से जानने वाला था, बोला, "मैं देखकर आता हूँ।" स्कूल के पीछे एक पार्क था, जैसा कि इसने अंदाजा लगाया था नेताजी ठाठ से घास पर सो रहे थे। घबराये हुये चेले ने उन्हें  उठाया और ताजा जानकारी देते हुये डरते डरते कहा कि लगता है अपनी हार होगी और आप हैं वहाँ से गायब हो गये। भैयाजी ने पूछा, "फ़लां इलाके की पेटियाँ खुल गईं क्या?" बताया गया कि उनका नंबर तो सबसे बाद में आयेगा। वो बोले, "फ़िर मुझे बार बार जगाने की जरूरत नहीं, एक बार ही आना अब ढोल बाजों के साथ। अपना होमवर्क पूरा है, मुझे सोने दे।" और आखिर में उस इलाके की पेटियाँ खुलीं तो वही हुआ। होमवर्क पूरा था और नेताजी को इस पर और खुद पर यकीन था।

निष्कर्ष - होमवर्क पूरा हो तो चैन से सो\जाग सकते हैं।

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अब बात अपनी, फ़िल्म चाँदनी में एक गाना था जिसके बोल थे कि मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गई, उसी तर्ज पर ’मेरे नाई से आज मेरी जंग हो गई’ मूड बड़ा ऑफ़ है :(   इस नाई भाई ने मेरे साथ कितने ही जुलम किये हों, मैंने कभी उफ़्फ़ तक न की। हजामत कराने जाता था और वो मालिश, पालिश सब चीज के पैसे झाड़ लेता रहा और आज जब उससे मेरी दाढ़ी से तिनके निकालने की बात की तो  तिनका-विनका निकाला नहीं। अब वो कहता था कि फ़ीस लगेगी, कुछ निकला नहीं तो उसका क्या कुसूर? मैं कहता रहा कि उसने निकाला नहीं, फ़ीस काहे बात की? वो दावा करता है कि वो सही है और तिनका नहीं है, मैं कहता रहा कि वो कामचोर है, तिनका तो है और जरूर है। 

लगता है बतानी ही पड़ेगी सारी कहानी(हमारी सारी भी हमारी तरह आधी अधूरी ही होगी)।  कुछ दिन पहले किसी ने मेल में  फ़ीमेलों को बड़ी जागरूक करती अपनी एक पोस्ट का लिंक भेजा। कमेंट ऑप्शन नहीं था तो कमेंट नहीं कर पाया। पोस्ट का लिंक मैं इसलिये नहीं दे रहा क्यूंकि लेखक एक बहुडिग्रीधारी, मल्टीप्रोफ़ैशनल,   हरफ़नमौला, क्लास-कांशियस और पता नहीं क्या-क्या है और हम जैसे मिडिल क्लास के साधारण से बंदे के ब्लॉग पर लिंक दिये जाने से कहीं उनकी क्लास न हिल जाये:) या फ़िर जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है कि लोग मशहूर होने के लिये पहले से ही मशहूर लोगों के साथ अपनी इंटीमेसी दिखाकर मशहूर होना चाहते हैं, मुझे डर लगा कि   मैं कहीं मशहूर न बन जाऊं..:)     पोस्ट पढ़ने के बाद से ही दाढ़ी में तिनका वाली सनक शुरू हुई है।

उस पोस्ट में साईकोलोजिकल, इमोशनल, सैक्सुअल, फ़ाईनैंशियल और बहुत से मुद्दे उठाये\गिराये गये हैं, उससे कोई दिक्कत नहीं।  अपने पेट में दर्द(अहा! मीठी-मीठी)  इसलिये उठी है कि उस पोस्ट का लिंक हमें भेजा गया है। कोई दुख नहीं, कोई नाराजगी नहीं,  है तो सिर्फ़ एक जिज्ञासा कि इस पार्टिकुलर लिंक के द्वारा श्रीमान जी ने मुझे क्या संदेश देना चाहा होगा क्योंकि अमूमन ऐसा नहीं ही करते ।  महिलाओं को बरगलाने वाले पुरुषों के जो लक्षण दिये गये हैं, उनमें से एकाध तो हम पर लागू होता ही है मसलन देर रात नैट पर सक्रिय होना।  अगर हमें टार्गेट करके वो पोस्ट लिखी गई है तो भी कोई समस्या नहीं है  क्योंकि हम तो अपेक्षा इस से बहुत ज्यादा की करते हैं:) जैसे मैं यह पोस्ट लिखकर इसका लिंक संबंधित जगह पर भेजूँगा, और मेरे लिये यह पहली बार है और शायद आखिरी भी। और अगर छेड़छाड़ ही थी तो हम भी थोड़ी बहुत कर ही लेते हैं:)  वैसे इस बात पर एक चुटकुला भी याद आ गया कि एक सत्तर साल का आदमी एक मशहूर वकील के पास गया और बताया कि उस पर रेप का मुकदमा शुरू हो रहा है और वो चाहता है कि चाहे जैसे हो, चार्ज साबित हो जाये:)  

बहुत समय हुआ,  अपने को यहाँ बुरा लगना बंद हो चुका है। इतना तो समझता ही हूँ कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं और कोई भी सबके लिये एक सा नहीं हो सकता।  किसी सीधे, सच्चे इंसान से वास्ता पड़ जाता है तो सिर्फ़ अच्छा लगता है और दिल से अच्छा लगता है। और इस मामले में मैं बहुत किस्मत वाला रहा हूँ  कि हमेशा से अच्छे लोगों से वास्ता पड़ता ही रहा है। 

अच्छे भले कई दिन गुजर गये थे कि आते थे, पढ़ते थे, कहीं मन किया तो टिपिया देते थे। न ऊधो से लेना, न माधो का देना। बैठे ठाले फ़िर से बेगार शुरू करवा कर ही माने।   सारांश 1 यहाँ लागू हो सकता है वैसे:)

रिश्ते बनाने का/बनाये रखने का मुझे शौक नहीं, टूट रहे हों तो टूटने देता हूँ। ये पोस्ट पढ़ते समय किसी को ऐसा लगे कि बंदा दुखी है या परेशान है तो ये लिखने की कमी। रिदम सिर्फ़ संगीत में ही तो नहीं होता:) हम एकदम से खुश हैं और इस पोस्ट के बाद अगर कुछ नई डेवलपमेंट्स होती हैं तो उसके लिये भी तैयार, क्योंकि होमवर्क पूरा है:)

लिखते लिखाते, छपते छापते वही टाईम हो गया:) आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सब जागरूक हो गये होंगे, महिलायें तो विशेष रूप से:) वैसे बाई द वे, जाग कर रुकना ही है तो जागा ही क्यूँ जाए? न आये कोई सा\सी कमेंट करने, अपने पास एक वो तो है ही अपनी परमानेंट वाली .....
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देखी जायेगी:)