सोमवार, जनवरी 21, 2013

बिना शीर्षक

                                                                          
भोजनावकाश से पहले का पीरियड अंग्रेजी का होता था।  चौधरी सर हमेशा की तरह हाथ में लचीली सी संटी, जिसे हम लोग उस पीरियड में ’रूल’ बोलकर अपने अंग्रेजी का अभ्यास पैना करते थे, लिये कक्षा में अवतरित हुये। वैसे तो ’रसरी आवत जात से सिल पर पड़त निसान’ की तर्ज पर एक कहावत  ’संटी आवत जात से .......निशान’ की खोज, आविष्कार, निर्माण हम उस प्राईमरी की कक्षा में  कर चुके थे क्योंकि संटी और हमारे शरीर के स्थान विशेष के बीच ’आन मिलो सजना’ वाला ड्युएट प्राय: बजता ही रहता था, लेकिन चौधरी सर के पीरियड में संटी ही ’रूल’  था और यूँ समझिये कि ’रूल’ का ही रूल था।  खैर, अंग्रेजी के पीरियड की बात सुना रहे हैं तो लेट अस कम टु द प्वाईंट। 

’गुड मार्निंग सर’  और ’सिट-डाऊन प्लीज़’ की औपचारिकताओं के बाद हम सब अपने बेंच पर और चौधरी सर कुर्सी पर बैठ गये और सामने बैठे छात्र-छात्राओं को तौलती नजरों से देखा और  मुझ छुएमुए से बोले, "कम हियर।"   अपनी कुर्सी से कुछ दूर मुझे ख़ड़ा कर दिया और ’फ़ादर ऑफ़ द नेशन’ पर पांच लाईन बोलने का आर्डर दे दिया। उनकी कुर्सी और वक्ता की दूरी उनके हाथ के रूल के अनुसार निर्धारित होती थी। 

हमारा भाषण यानि की स्पीच शुरू हुई और चौधरी सर की गर्दन हिलनी शुरू हुई।

 Mahatma Gandhi were born on ... सटाक.....बोलो, महात्मा गाँधी वाज़ बोर्न ऑन...
हमने  वाज़ बोल दिया, सोचा कि गलती तो बड़ों बड़ो से हो जाती है, सरजी से भी हो रही होगी। अगली लाईन सोची और फ़िर  बोलना शुरू किया।
Mahatma Gandhi were an ordinary...सटाक..सटाक......बोलो महात्मा गाँधी वाज़ एन ऑर्डिनरी स्टूडेंट..

हमने फ़िर भी धैर्य नहीं खोया। एक बात और बता दें, हमारे चौधरी सर का एक और रूल था कि पहली गलती पर एक सटाक, और दूसरी पर दो और तीसरी पर तीन। इस तरह आखिरी सटाक सटाकों तक अलग से ये हिसाब नहीं रखना पड़ता था कि कितनी गलतियाँ हुईं, बस आखिरी वाले सटाक-सटाक याद रखते थे। अकेले में हम इसे दस मारना और एक गिनना कहकर अपनी खीझ उतारते थे। 

शार्टकट में बात ये है कि हमने अपने उसूलों से न डिगते हुये हर बार Mahatama Gandhi were... बोला और उसके बदले में कुल जमा पन्द्रह सटाक झेले। हर सटाक एक ही जगह पर पड़ता था और उस दर्द को वही महसूस कर सकता है जिसने ऐसी लचीली छड़ी को एक ही जगह पर बारबार  झेला हो। लौटकर सीट पर पहुँचे और पूरे पीरियड में वामार्ध को उस लकड़ी के बेंच से दो तीन इंच ऊपर रखना पड़ा। ’फ़िसल पड़े तो हर गंगे’ का नारा लगाकर हमने खुद को तत्कालीन वामपंथी घोषित भी किया और  दुनिया को तिरछे कोण से देखने का अनुभव भी  प्राप्त किया।

भोजनावकाश हुआ भी और खत्म भी हो गया। अगला पीरियड हिन्दी का था और याद आया कि दिन यही चल रहे थे, छब्बीस जनवरी और तीस जनवरी  के आसपास के ही। हिन्दी की मैडम का नाम नहीं बताऊंगा। क्यों नहीं बताऊँगा, ये भी नहीं बताऊंगा। समय खराब होता है तो ऐसा ही होता है जैसा उस दिन हुआ। मैडम ने शायद ’पिटते के चार जूते और   सही’ वाली कहावत सुन रखी थी, उन्होंने भी मुझ  टेढ़े से बैठे हुये को ही तलब कर लिया। पहले पूछा कि ऐसे क्यों बैठे हो और वजह जानने के बाद मुझे ही दोषी करार देते हुये अपने बाँयी तरफ़ खड़ा कर दिया और राष्ट्रपिता के बारे में कुछ बोलने के लिये कहा। दाँये-बाँये  करने के पीछे मैडमजी का वास्तुशास्त्र से कुछ लेना देना नहीं था, ये उनकी दूर दृष्टि का प्रताप था।

अबकी बारी हमने भाषण देना शुरू किया तो पिछली गलतियाँ न दोहराने की सौगंध खा ली। अंग्रेजी में Mahatma Gandhi were...  ने मार लगवाई थी, वो नहीं भूले थे इसलिये इस बार अपनी मातृभाषा में शुरू हुये तो कुछ इस तरह से कि ’महात्मा गाँधी दो अक्टूबर अठारह सौ उनहत्तर को पैदा हुआ था’ - और परिणति  एक सटाक से हुई जो पांचवी लाईन तक आते आते सटाक X 5 तक पहुँची। न हम था कहने से रुके न छड़ी आकर हमसे टकराने से रुकी। हाँ, इस बार दक्षिणार्ध को तानाशाही झेलनी पड़ी और हम वामपंथी के साथ साथ दक्षिणपंथी भी हो गये।

इन  घटनाओं  से हमने निष्कर्ष निकाला  कि -
- भारतवर्ष में महात्मा गाँधी के कारण पिछले कई सालों से अध्यापकों के द्वारा छात्रों का शोषण किया जाता रहा है।

अथ श्री बालशोषण कथा।

रविवार, जनवरी 06, 2013

Tools of your trade....टूल्स ऑफ़ युअर ट्रेड...

कुछ दिन पहले स्टीवन सीगल  की एक फ़िल्म देखी। फ़िल्म में कभी आपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़ा लेकिन फ़िलहाल उस शहर से दूर रहने  वाला  नायक स्टीवन अपनी बेटी के कातिल का पता लगाने के लिये  शहर में लौटता है और सुराग ढूँढने में अपनी बेटी के शरीफ़ से मंगेतर(जोकि नायक के प्रतिद्वंदी\जानी दुश्मन  का बेटा भी  है) की मदद लेने के लिये उसे कन्विंस करता है। असली कातिल की तलाश करते करते एक सूत्र उनके हाथ आता है और सही सूचना देने में आनाकानी करने पर स्टीवन उस पर बंदूक तान देता है। इसी गरमागरमी में उसकी बेटी का मंगेतर जोकि पहले अपराध से लगभग घृणा करता था और अब एक मिशन के तहत उसे इसमें सहभागी बनना ही पड़ रहा था, सूत्र को गोली मार देता है। मुझे नहीं पता कि आपने स्टीवन सीगल की कोई फ़िल्म देखी है या नहीं, पसंद की है या नहीं लेकिन बंदे में कुछ बात तो है।  साधारणतया स्टीवन अपनी एक्टिंग, फ़ाईट और यहाँ तक कि रोमांस भी  बिना लाऊड हुये करते हैं। चेहरा भी भावहीन सा, डायलाग भी गिने चुने शब्दों में लेकिन एक बात में बॉलीवुड नायकों के समकक्ष कि हमारे देसी नायकों की तरह ही, मिशन आमतौर पर अकेले दम पर ही पूरा कर लेते हैं। तो हम बता रहे थे कि आपाधापी में इनका would be son-in-law हाथ आये सूत्र से कोई जानकारी पाने से पहले ही उसको गोली मार बैठता है। बेटी के कातिल की तलाश में जूझ रहा बाप गुस्से में भरकर अपनी बेटी के मंगेतर से कहता है, "Learn to respect the tools of your trade."

फ़िल्म का नाम क्या था, नहीं मालूम और मालूम करने की कोशिश भी नहीं की। लेकिन स्टीवन सीगल का बोला गया वो डायलाग मुझे बहुत अच्छा लगा। कोई कानून का रखवाला हो या कानून तोड़ने वाला, उसके हाथ में पकड़ा गया हथियार उसके ट्रेड का एक टूल ही तो है। हथियार हाथ में होने का मतलब उसे हर किसी पर झोंक देने से न उस हथियार का सम्मान है और न ही उसे थामने वाले हाथ का।

कलम, की-बोर्ड या अभिव्यक्ति के दूसरे साधन भी एक हथियार है और उनका सम्मान करना धारक का दायित्व। 

एक संवैधानिक पद पर पदस्थापित शख्सियत का जब बयान देखा कि ’सेक्सी’ होना सुंदरता के लिए एक कंप्लीमेंट है, मुझे वो डायलाग याद आया। 

एक राजनेता ने जब दूसरी पार्टी की एक महिला नेत्री के चरित्र के बारे में टीवी पर कहा कि तुम्हारा चरित्र क्या है,  तब भी वो डायलाग याद आया। 

एक समाचार पत्र समूह द्वारा आयोजित लीडरशिप सम्मिट में एक बॉलीवुड स्टार ने जब कहा कि 'I have two principles, 1. Never kiss an actress   2. Never ride a horse.      
Rather, I would kiss a horse and ride an  act........  तब भी हालीवुड मूवी का वो डायलाग याद आया।

खुद भी  बेटियों के माँ-बाप होने वाले लॉलीपॉप भाषण सुनकर तो और भी बहुत कुछ याद आया।

कम कोई नहीं है, न ये पार्टी न वो पार्टी, न वो न हम। एक से बढ़कर एक सुझाव पढ़ने को मिल रहे हैं - 
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ प्रशासन और पुलिस जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ पुरुष जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ नारी जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ भारतीय संस्कृति जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ पाश्चात्य संस्कृति जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ समाज की मानसिकता जिम्मेदार,
कहीं इस सबके लिये सिर्फ़ खाप-पंचायतें जिम्मेदार,  वगैरह वगैरह।
 
चलिये, जिम्मेदारी पर तो सबके सुझाव जान लिये, अब  सवाल ये है कि  आज की परिस्थितियों में हम लोगों के पास, समाज के पास आगे करने के लिये क्या-क्या विकल्प उपलब्ध हैं। मुझे  फ़िलहाल जो विकल्प या समाज के आने वाले पड़ाव दिख  रहे हैं,  वो कुछ ऐसे हैं -

1. अपराधमुक्त समाज एक कल्पना है लेकिन समुचित न्याय की व्यवस्था अपराध की मात्रा को कम जरूर  कर सकती है। देश, धर्म और समाज के पुरोधा इच्छाशक्ति का सदुपयोग करके व्यवस्था में  ऐसा परिवर्तन सुनिश्चित करेंगे।                          

 2. अन्य देशों के मुकाबले युवा वर्ग का जनसंख्या में प्रतिशत भारत में ज्यादा है। वर्जनाओं और संयम\नियमों से उकताकर और कुछ घटनाओं से उद्वेलित होकर यह युवा वर्ग सरकारी तंत्र और प्रचलित सामाजिक व्यवस्था को धता बताकर एक फ़्री  सोसाईटी देश को दे देगा। फ़्री सोसाईटी मतलब free in all respects.

3.  हम ऐसे ही  लाशों पर राजनीति करते रहेंगे।

मैंने अपनी बात आपसे साझी कर ली,  आप भी  चाहें तो अपने अपने हथियार का सम्मान रखते हुये सुझाव दे सकते हैं  कि व्यावहारिक रूप से आपको क्या विकल्प दिख रहे हैं, आने वाले समय में क्या होगा। 

Till then,  'Hope for the best and prepare for the worst.'

 

मंगलवार, जनवरी 01, 2013

अपील


                                                                     
देश के हर नागरिक को गरिमामय जीवन बिताने का अधिकार है और बलपूर्वक या छलपूर्वक इस अधिकार का कोई हनन करे तो यह अन्याय है। इस अन्याय को रोका जा सके, ऐसी अपेक्षा रखना हम नागरिकों का अधिकार भी है और कर्तव्य भी।

इस देश के एक आम नागरिक की हैसियत से मैं प्रशासन, न्यायपालिका और कार्यपालिका से अपील करता हूँ कि स्वयंसिद्ध जघन्य बलात्कार के मामलों में फ़ास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया जाये और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये ताकि ऐसे कुकर्मों को रोका जा सके।

ब्लॉगर साथी श्री गिरिजेश राव द्वारा  इस विषय पर तैयार जनहित याचिका  का मैं भी समर्थन करता हूँ।

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इस विषय पर कोई सुझाव आपके पास है तो पांच जनवरी 2013 तक न्यायमूर्ति वर्मा की समिति को निसंकोच भेज सकते हैं।

ई मेल: justice.verma@nic.in
फैक्स: 011- 23092675