गुरुवार, मई 23, 2013

’आस्तिकों का प्याज़’

कल सुबह बैंक के लिये निकल रहा था, माताजी से बाय-बाय कहते ही सुनाई पड़ा, "आजकल लू बहुत चल रही है, जेब में एक छोटा सा प्याज रख ले।" आदत के हिसाब से मैंने नानुकर की तो समाचार सुन रहे पिताजी ने भी मेरे विपक्ष में अपना वोट डाल दिया। उपलब्ध प्याजों में से सबसे छोटा प्याज(जोकि इतना छोटा भी नहीं था),  अपनी पेंट की छोटी सी जेब के हवाले करके मैंने कूच का नगाड़ा बजा दिया।

मेट्रो स्टेशन पहुँचकर बैग  स्कैनिंग मशीन के हवाले किया  और खुद लाईन में खड़ा हो गया। भीड़ के हिसाब से सवारियों के शरीर पर जल्दी जल्दी हाथ फ़ेरते जवान ने पैंट के एकतरफ़ा उभार पर लाकर हाथ रोक दिये। "क्या है ये?"  मैंने जेब से प्याज निकालकर दिखा दिया और आसपास के लोगों के हँसते चेहरे देखकर स्पष्ट करना चाहा कि ये प्याज तो मैं अपनी माताजी का मन रखने के लिये जेब में रखे हुये हूँ। लाईन को रुकी देखकर पास में खड़ा सब-इंस्पेक्टर नजदीक आकर मामला समझने लगा। लाईन में मेरे पीछे खड़े बंदों में से एकाध ने मजाक में कुछ कहा तो हम हिंदुस्तानियों का मनपसंद काम शुरू हो गया - बहसबाजी। तीन लड़कों का ग्रुप था वो, जुट गये मेरी खिंचाई करने पर। वक्त-वक्त की बात है, कभी हम ’संतरे के बीज’ के नाम पर अपने दोस्तों को खींचा करते थे और आज प्याज को मुद्दा बनाकर भाईलोग हमारी खिंचाई कर रहे थे। खिंचाई भी खाज की तरह है, खुद करो तब भी मजा और दूसरा करे तब भी मजा। इस प्रकरण के ज्यादा विस्तार में नहीं जाऊंगा,  कुछ डायलाग्स पेश हैं - 

- भाई साहब नये नये मुसलमान बने हैं, तभी प्याज जेब में रखकर घूम रहे हैं।

- अरे नहीं यार, माताजी ने जबरदस्ती रखवा दिया। कहती हैं कि जेब में प्याज रहे तो लू नहीं लगती।

- और आपने आजके समय में ये बात चुपचाप मान ली? कभी इस बात की टेस्टिंग की है?

- नहीं भाई, मना किया था पहले। वो नहीं मानी, मैंने सोचा कि उनकी बात रख लेता हूँ।

- क्या प्रूफ़ है कि जेब में प्याज रखने से लू नहीं लगती?

- कोई प्रूफ़ नहीं है, मैंने माँगा भी नहीं। मैंने तो ये सोचा कि इसमें नुकसान क्या है?

बातें एकदम क्रम में नहीं हैं लेकिन ऐसी ही बातें चलती रहीं। बातों से बातें निकलती रहीं कि वैसे तो प्याज एक तामसिक गुण वाली वनस्पति है इसीलिये पेटपूजा के अलावा किसी पूजा में इसका प्रयोग नहीं किया जाता। अंधविश्वास, अंधश्रद्धा, लकीरे के फ़कीर, घिसीपिटी मान्यतायें, तर्कशीलता जैसी कई बातें हुईं। एक बंधु ने तो लू पर ही सवाल खड़ा कर दिया कि कैसे मान लें कि लू चलती है? और भी बहुत सी बातें होती रहीं, जिसका जिसका स्टेशन आता रहा वो अपने रास्ते जाता रहा। 

बातचीत में बार बार एक मुद्दा आता था कि सिद्ध कैसे किया जाये? कैसे सिद्ध किया जाये कि लू नाम की कोई शै होती भी है? जो दिखती नहीं, जिसका कोई रंग नहीं, कोई खुशबू नहीं, कोई आकार नहीं - उसके अस्तित्व को कैसे स्वीकार कर लिया जाये?  अगर मान भी लिया जाये कि ऐसी कोई चीज होती है तो फ़िर यह कैसे सिद्ध किया जाये कि जेब में प्याज रखने मात्र से लू से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है? मौके पर तो मुझे बात सूझती नहीं, बाद में सोचता रहता हूँ। जैसे चिडि़याघर का एक गधा किसी दूसरे के सुनाये चुटकुले पर दो दिन के बाद हँसता है। भाई, जब समझ आयेगा तभी तो हँसेगा। मुझे भी सवाल बाद में समझ आये तो बाद में ही जवाब सोचूँगा न?

एक फ़ेसबुक स्टेटस और फ़िर प्रवीण जी की पोस्ट से पता चला कि ब्लॉगजगत के ठहरे हुये पानी में भगवान के नाम पर  थोड़ी बहुत हलचल मची है। बड़ी  बहस में सक्रिय भाग लेने की फ़ुर्सत भी नहीं, क्षमता भी नहीं और सच कहूँ तो इच्छा भी नहीं। तर्क/कुतर्क तो बहुत से दिये जा सकते हैं लेकिन उनसे सस्ती लोकप्रियता के अलावा कुछ और हासिल होता हो, मुझे नहीं लगता। हम तो यहीं लिखकर लू से बचने का जुगाड़ कर रहे हैं। वैसे प्याज पर पहले भी एक पोस्ट लिखी थी लेकिन तब मामला अलग था। तब प्याज महंगाई का पैमाना था, आज प्याज अपने लिये आस्तिकता-नास्तिकता का पैमाना है।    

इस प्रकरण के बाद सोच रहा हूँ कि प्याज को लू से बचाव का सार्थक उपाय मानने वाले और इसे सिर्फ़ एक टोटका मानने वालों में से कौन सही है और कौन गलत? शायद दोनों ही सही हों या दोनों ही गलत या फ़िर दोनों ही सही भी हों और गलत भी हों। वैसे ऐसा भी  हो सकता है क्या? 

किसी का मानना है कि प्याज जेब में रखने से लू नहीं लगेगी, किसी का मानना है कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।  जिसे विश्वास है वो उसपर अमल करे और जिसे विश्वास नहीं है वो न करे, यहाँ तक स्वीकार्य। अब अगर विश्वास करने वाला दूसरे की गर्दन पर छुरी रखकर उसे मजबूर करे कि प्याज को जेब में रख या विश्वास न करने वाला ऐसे ही दूसरे को विवश करे कि जेब से प्याज निकाल, तब बात अस्वीकार्य होनी ही चाहिये। जेब में प्याज रख लेने भर को लू से बचने की गारंटी मान लेना शायद मूर्खता ही होगा। दूसरी तरफ़ जेब में प्याज रखने से अगर हर समय मुझे यह अहसास रहे कि लू से शरीर को नुकसान हो सकता है, इसीलिये मैंने यह जेब में रखा है।  और मुझे इस बारे में असावधान नहीं रहना चाहिये तो प्याज के चिकित्सीय गुण उतने न होने पर भी हमें उसका लाभ मिल सकता है। 

जहाँ भी असहमति दिखती है उसकी मूल में ’कुछ होने’ से ज्यादा बड़ी बात ’हम उसे कैसे मानते हैं’ लगती है। मैं ऐसा मानता हूँ, कोई दूसरा कुछ और मान सकता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं। बुराई तब है जब हम दूसरों  के अपने से अलग विचारों को सहन भी नहीं करना चाहते। बुराई तब है जब एक या दोनों पक्ष ये चाहें कि सामने वाला उसके हिसाब से ही सोचे और माने। 

बाई द वे, आपमें से कोई हिचकी न रुकने का कोई आसान सा इलाज बता सकता है? बिना दवा वाला टोटका बतायेंगे तो भी चलेगा।  अपना एक अनुभव तो मेरे पास भी है लेकिन घर का मुर्गा तो आप जानते ही हो कि चने बराबर होता है :)

84 टिप्‍पणियां:

  1. अब जब लू और प्याज़ से मेट्रो रेल को खतरा उत्पन्न होने का खतरा उत्पन्न हो ही गया है तो एक इन्क्वायरी कमीशन बिताया जाये कि दिल्ली की नगर-मंत्री के शब्दों में कहीं यह लू भी यूपी/बिहार के बेरोजगार युवकों के साथ ही तो दिल्ली में नहीं घुसती जा रही। वैसे आप इत्ते बड़े होकर भी माता-पिता का कहना मान लेते हो, बड़े ओल्ड-फैशंड हो आस्तिक टाइप!

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    1. इन्क्वायरी कमीशन बिठाना ही चाहिये।
      ओल्ड फ़ैशंड टाईप तो खैर हैंगे ही, थोड़ी सी नानुकर के बाद कहना मान ही लेते हैं:)


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  2. Pyaz soongh ne se naakme se aata khoon to rukhee jata hai!

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    1. ऐसा सुना तो है। बहुत समय के बाद आपको सक्रिय देखकर अच्छा लगा क्षमाजी।

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  3. शायद आधुनिक पढ़े लिखों को लू का अंग्रेजी अर्थ आता है। माँ की बातें सभी मानते हैं, हम भी। उस पर कभी प्रश्न नहीं।

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  4. भाई, आजक‍ल हिन्‍दी कौन समझता है? उन्‍हें लू नहीं सन-स्‍ट्रोक या हीट-स्‍ट्रोक कहने पर समझ आता। लू ना लगे इसके लिए प्‍याज का रस लिया जाता है। जेब में रखने के पीछे भी यही तर्क है कि कभी आप लू की चपेट में आ जाएं तो तत्‍काल प्‍याज का रस उपलब्‍ध हो जाए।

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    1. जी, आईंदा अंग्रेजी में मतलब समझायेंगे ऐसे मौकों पर :)

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  5. पढ़ते-पढ़ते फेसबुक के लिंक में क्लिक किया तो फेसबुक खुल गया। फेसबुक खुल गया तो अपने स्टेटस की लाइक देखने लगा। फिर दूसरे को लाइक करने लगा। बहुत देर बाद प्याज की गंध आई तो भागकर फिर यहाँ आ गया। इस तरह अटकते-भटकते पूरा पढ़ गया और लू नहीं लगी।

    लू लगने पर प्याज रामबाण औषधी है। इसीलिए बुजुर्गों ने साथ में लेकर चलने को कहा होगा। जब लगे तो इसके इस्तेमाल से बचा जा सके।


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  6. हिचकी न रुकने का कोई आसान सा इलाज - अनुभूत प्रयोग है यह : (शायद चिकित्सकीय प्रूफ़ सहित भी,) लेट जाएँ और संभव हो तो सिर नीचे और धड़ थोड़ा ऊपर कर लें, और लेटे लेटे ही एक गिलास पानी पी लें.

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    1. धन्यवाद रवि सर। ऐसी जानकारियाँ मिलना भी ब्लॉगिंग की एक विशेषता है।

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    संजय जी,

    लू लगना या तापाघात पर डॉ० महेश शर्मा जी का हिन्दी में लिखा बेहद उपयोगी आलेख यहाँ देखें...

    http://ayursharma.blogspot.in/2010/05/12-3-5-6.html

    जाहिर है लू लगना एक दुर्लभ घटना है... ईलाज है शरीर को जल्दी से जल्दी ठंडा करना व द्रव-लवण की कमी को पूरा करना... अधिक ताप व नमी को एक्सपोजर की अवधि, खुद का अडैप्टेशन, हाइड्रेशन, किये गये श्रम की मात्रा आदि आदि कई कारक हैं... मेरे चिकित्सक मित्र बताते हैं कि लू लगने के मरीजों की जेबों में कई बार प्याज मिलता है... अति दुर्लभ है इसलिये जेब में प्याज रखने व न रखने वाले अधिकाँश को लू नहीं लगती...

    अब ऐसे में यदि कोई प्याज की पूजा सी करने लगे व किसी ईमारत में उसे स्थापित कर दे... व अपने प्याज के रूप रंग गुण को दूसरे से बेहतर बताते हुऐ लड़ मरे... तो मामला कुछ पेचीदा हो जायेगा कि नहीं... आप ही बताइये... ऐसे मे् यह बताना जरूरी हो जाता है कभी कभी कि प्याज एक छलावा ही है और कुछ नहीं, गंभीरता से लेने की चीज नहीं... :)


    ...

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    1. मज़ाक में चल रही बात पर इस उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद।

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    2. प्रवीण जी,
      चलिये, इस बहाने एक अच्छा लिंक और मिला।

      आपके चिकित्सक मित्र ठीक ही कहते होंगे लेकिन मुझे यकीन है कि उन्होंने सिर्फ़ उनका जिक्र किया होगा जो इस दुर्लभता के शिकार हुये। बहुत से ऐसे होंगे जिन्हें वो चैक नहीं कर पाये होंगे। जेब में प्याज रखकर ही खुद को ऐसी परेशानी से निरापद मान लेना इलाज नहीं है, दूसरी सावधानियाँ भी जरूरी तो हैं ही। मैंने भी यही लिखा है कि ’जेब में प्याज रख लेने भर को लू से बचने की गारंटी मान लेना शायद मूर्खता ही होगा। दूसरी तरफ़ जेब में प्याज रखने से अगर हर समय मुझे यह अहसास रहे कि लू से शरीर को नुकसान हो सकता है, इसीलिये मैंने यह जेब में रखा है। और मुझे इस बारे में असावधान नहीं रहना चाहिये तो प्याज के चिकित्सीय गुण उतने न होने पर भी हमें उसका लाभ मिल सकता है’

      प्याज हो या कुछ और, अपने व्यक्तिगत संसाधनों के बल पर और बिना भय या स्वार्थ के पूजा या किसी इमारत में स्थापना से किसी अन्य को परेशानी नहीं होनी चाहिये। समस्या तभी आती है जब हम दूसरों पर अपनी इच्छा थोपने लगते हैं। मेरी नजर में पेचीदगी तभी उभरेगी जब मैं आपको इस बात के लिये विवश करूँ कि जिसे आप छलावा समझते हैं, उसे सच मानें या फ़िर आप मुझे यह मानने के लिये विवश करें कि जिसे मैं सच समझता हूँ, उसे छलावा मानूँ। दोनों विचारधारायें चलती ही रहेंगी।

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  8. बढ़िया है ...
    अच्छे बच्चों की तरह, कम से कम मां की बात तो मानते हो !

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    1. सतीश भाईजी, अच्छे बच्चे बने रहने की कोशिश तो करते ही हैं।

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  9. इतना भर जानता हूँ कि प्याज आस पास के बेक्टेरिया को आकर्षित करता है या खींच लेता है, ऐसा कहीं पढा था.

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    1. प्याज़ के बारे में धारणा तो ऐसी ही है पी.एन.सर।

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  10. @@ तर्क/कुतर्क तो बहुत से दिये जा सकते हैं लेकिन उनसे सस्ती लोकप्रियता के अलावा कुछ और हासिल होता हो, मुझे नहीं लगता

    :)

    satvachan hai bhaisahab :)

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    1. मेरे ख्याल इस ये टीप कहीं न कहीं पोस्ट के औचित्य को सिद्ध कर रही है. संजय भाई : आपके कुछ एक्सपर्ट व्यूज़

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    2. हमारी नजर में तो हमारे सारे व्यूज़ ही एक्सपर्ट व्यूज़ हैं बाबाजी, एकदम वंडरफ़ूल:)

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  11. हमने एक बार टेस्टिंग करी है . घर आने के बाद प्याज को निकाल कर छुआ तो वो खतरनाक तरीके से गरमा रहा था .. तो प्याज़ गर्मी सोखने की गज़ब की काबलियत रखता है इतना तो हम कह सकते है ... बाकी लू तो भगवान् और माँ दोनों के आशीर्वाद से आज तक नहीं लगी :)
    लिखते रहिये ....

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    1. ये आशीर्वाद आपको गरम हवाओं से बचाये रखें जनाब, हमारी भी दुआ है।

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    2. ये "मजाल" भी गज़ब की छुपी चीज़ हैं ..

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  12. संजय भाई .... पसंद अपनी अपनी है, माँ के कहे अनुसार प्याज का उपयोग कर लो या बीवी के कहे अनुसार छुट्टी लेकर घर एसी में बैठ जाओ. बाकि कुछ ऐसे भी है जो तीसरी वाली का ध्यान रखते हुए घर से ही ए सी गाड़ी में निकलते हैं...:)


    घर का मुर्गा अब आलू से भी गया गुजरा हो गया है.

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    1. केसी बात कर रिये हो मियां, प्याज\घर एसी\एसी गाड़ी - बाबाजी इन तीनों में अपनी पसंद कहाँ बची? मर्जी तो माँ\बीबी\तीसरी वाली में से किसी की ही चली न?

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  13. अब जब बड़े कहते हैं तो कर लेने में कोई बुराई नहीं ... असर हो न हो ... बड़ों के मन को शान्ति मिले उनका स्वास्थ ठीक रहे ... ये भी तो कम नहीं है ...
    हां हिचकी रोकने के लिए ... अचानक कोई शौक मिले तो ये रुक जाती है ... ऐसा अनुभव किया है ...

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    1. gist of the post यही है सरजी। बड़ों की जिस बात से कोई नुकसान न हो और उनके मन को शांति मिले, स्वास्थ्य ठीक रहे तो मानने में कैसी हेठी..
      हिचकी वाली बात पर भी यही कन्फ़र्म करना था मुझे, अनुभव है ऐसा।

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  14. 1.भाई जी प्याज पर तो कभी कभी सरकार को घुटने टेकने पड़ते है .

    २.और जो लोग आप का मजाक उदा रहे थे वह सब के सब सेक्युलर नामक बीमारी से ग्रस्त थे

    बाकी प्याज लू मैं बहुत लाभकारी होती है आजकल हम भी दही मैं नमक के साथ प्याज मिला कर लस्सी बना कर पी रहे है और मस्त है

    जय बाबा बनारस ....

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    1. एक दिन लस्सी पार्टी का आयोजन कर ही लें कौशल भाई, मित्रां दे अड्डे ते :)
      मस्त रहिये।

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  15. डॉक्टर भले उन्ही तत्वों की, साईड इफेक्ट से भरपूर दवा दे, हँसते हुए लेंगे… प्रगतिशीलता और विकास को शिखर पर चढाने का भार हमारे प्रबुद्ध कंधो पर जो है। और माँ-दादी की प्राकृतिक चिकित्सा की ऐसी तैसी करेंगे, उन्हें पुरातन अनपढ अनगढ साबित जो करना है। स्वयं के दिमाग को प्रगतिशील साबित करना है। प्याज के एक एक कर छिलके उतारते रह्ते है, अन्तिम छिलका उतार कर कहते है देखा! 'मैं न कहता था इस प्याज के अन्दर कुछ नहीं है'

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    1. शायद तर्कवादियों के सारे तर्क यहीं खत्म होंगे : 'मैं न कहता था इस प्याज के अन्दर कुछ नहीं है'

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    2. तर्कवादियों के तर्क वाले तरकश कभी खाली नहीं होते, होने भी नहीं चाहियें। तर्क प्रथा न होती तो हम अब भी आदिम अवस्था में रह रहे होते।

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  16. बकिया एको टीप सुबह दिए थे : कहाँ गयी ...... कहाँ गयी..

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    1. जायेगी कहाँ? हमारे नाम की है तो हमारे पास ही रहेगी बाबाजी, बेशक दिखे न :)

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  17. अमेरिका में भी लोग यह मानते थे की जेब में प्याज रखने से लू नहीं लगती। लिंकन का इसमें कोई विश्वास नहीं था. एक दिन उन्होंने भी अपनी जेब में प्याज रख लिया और बाद में अपने दोस्तों से कहा कि यह वाकई अजीब बात है की जेब में प्याज रखने से वर्तमान/भविष्य में तो दूर बल्कि अतीत में भी लू लगने का खतरा कम हो जाता है क्योंकि उन्हें उस दिन तक कभी लू नहीं लगी थॆ.
    आज अमेरिकी अपनी जेब में प्याज नहीं रखते क्योंकि ये बात अब खारिज हो चुकी है हांलांकि वहां भी कई प्रदेशों में तापमान चालीस के पार जाता है.
    अब आप इसे फेसबुक और नास्तिकों की बहस से जोड़कर देख ले।

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    1. इसका मायना ये हुआ कि ’हमारा प्याज लिंकन तक ने मान रखा है’ :)

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  18. बेनामी23 मई 2013, 8:12:00 pm

    Hichki rokne ka ek tarika kabhi kabhi kaam karta hai... hichki wale bande ko agar chaunka diya jaaye kisi tarah to hichki band ho jaati hai...

    Aajma kar dekhen :-)

    Ajay

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    1. धन्यवाद अजय,
      ये फ़ार्मूला आजमाकर देखा भी जा चुका हूँ और मैं भी आजमाकर देख चुका हूँ। यही कन्फ़र्म करना चाह रहा था। अब एक बकबकिया पोस्ट हिचकी पर भी आयेगी :)

      हटाएं
  19. .
    .
    .
    आज ही कुमार राधारमण जी ने पोस्ट दी है 'लू: इस आग के दरिया से बचके'...

    http://upchar.blogspot.in/2013/05/blog-post_5003.html

    मेरी जानकारी के अनुसार वह आस्तिक भी हैं... पर फिर भी उन्होंने प्याज का जिक्र नहीं किया... :(

    ऊपर जो भी प्याज के गुण गा रहा है क्या उसने प्याज के रामबाण से किसी असली Heatstroke के रोगी जिसका शारिरिक तापमान १०६ डिग्री फैरेनहाईट से ऊपर है, का उपचार होते देखा/किया है ?
    धन्य है ब्लॉगवुड भी... प्याज की भी मूरत बना पूजन होने लगेगा यहाँ... :)


    ...

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  20. जहाँ भी असहमति दिखती है उसकी मूल में ’कुछ होने’ से ज्यादा बड़ी बात ’हम उसे कैसे मानते हैं’ लगती है। मैं ऐसा मानता हूँ, कोई दूसरा कुछ और मान सकता है और इसमें कोई बुराई भी नहीं। बुराई तब है जब हम दूसरों के अपने से अलग विचारों को सहन भी नहीं करना चाहते। बुराई तब है जब एक या दोनों पक्ष ये चाहें कि सामने वाला उसके हिसाब से ही सोचे और माने।
    पूरी तरह से सह मत।

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  21. जैसे पुराने घरों में कभी बिजली गिरने से बचाव के लिये एक त्रिशूल के बीच की नोक का 2-2।। फीट का सरिया ये सोचकर गाड दिया जाता था कि यदि कभी आसमान से बिजली गिरी तो वो इसमें समा जावेगी और शेष मकान को प्रभावित नहीं कर पाएगी । वैसे ही तेज गर्मी में प्याज को ये सोचकर जेब में रखा जाता है कि यदि लू का आक्रमण हम पर हुआ तो ये प्याज काला पड जाएगा । पर ये प्याज और लू के बीच हिचकी कहाँ से आ गई ? वैसे यहाँ भी टोटका यह चलता है कि हिचकी आ रही है तो थोडा पानी पी लो बस.

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    1. अर्थिंग वाला बहुत अच्छा उदाहरण दिया सुशील जी आपने, धन्यवाद आपका।

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  22. पर्त दर पर्त प्‍याज.

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  23. :-)

    1. हि‍चकी रोकने का एक तरीका तो ये भी है कि‍ भीतर सांस भर कर जि‍तनी देर तक हो सके तो सांस रोकें. इस बीच नाक को हाथ से दबा कर रखें तो बेहतर. दो-तीन बार ही ऐसा करने से हि‍चकी रूक जाती है.

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  24. 1. एक दि‍न इमेल में मुझे नीचे लि‍खी जानकारी मि‍ली, बात में दम तो दि‍खता है


    1. एक दि‍न इमेल में मुझे नीचे लि‍खी जानकारी मि‍ली, बात में दम तो दि‍खता है
    ONIONS! I had never heard this!!!
    PLEASE READ TO THE END: IMPORTANT
    In 1919 when the flu killed 40 million people there was this Doctor that visited the many farmers to see if he could help them combat the flu...
    Many of the farmers and their families had contracted it and many died.
    The doctor came upon this one farmer and to his surprise, everyone was very healthy. When the doctor asked what the farmer was doing that was different the wife replied that she had placed an unpeeled onion in a dish in the rooms of the home.The doctor couldn't believe it and asked if he could have one of the onions and place it under the microscope. She gave him one and when he did this, he did find the flu virus in the onion. It obviously absorbed the bacteria, therefore, keeping the family healthy.
    Now, I heard this story from my hairdresser. She said that several years ago, many of her employees were coming down with the flu, and so were many of her customers. The next year she placed several bowls with onions around in her shop. To her surprise, none of her staff got sick.
    Now there is a P. S. to this for I sent it to a friend in Oregon who regularly contributes material to me on health issues. She replied with this most interesting experience about onions:
    Thanks for the reminder. I don't know about the farmer's story...but, I do know that I contacted pneumonia, and, needless to say, I was very ill... I came across an article that said to cut both ends off an onion put it into an empty jar, and place the jar next to the sick patient at night. It said the onion would be black in the morning from the germs...sure enough it happened just like that...the onion was a mess and I began to feel better.
    Another thing I read in the article was that onions and garlic placed around the room saved many from the black plague years ago. They have powerful antibacterial, antiseptic properties.
    Onions absorb bacteria is the reason they are so good at preventing us from getting colds and flu and is the very reason we shouldn't eat an onion that has been sitting for a time after it has been cut open.
    LEFT OVER ONIONS ARE POISONOUS
    I had the wonderful privilege of touring Mullins Food Products, Makers of mayonnaise. Questions about food poisoning came up, and I wanted to share what I learned from a chemist.
    Ed, who was our tour guide, is a food chemistry whiz. During the tour, someone asked if we really needed to worry about mayonnaise. People are always worried that mayonnaise will spoil. Ed's answer will surprise you. Ed said that all commercially-made mayo is completely safe.

    "It doesn't even have to be refrigerated. No harm in refrigerating it, but it's not really necessary." He explained that the pH in mayonnaise is set at a point that bacteria could not survive in that environment. He then talked about the summer picnic, with the bowl of potato salad sitting on the table, and how everyone blames the mayonnaise when someone gets sick.
    Ed says that, when food poisoning is reported, the first thing the officials look for is when the 'victim' last ate ONIONS and where those onions came from (in the potato salad?).
    He explained onions are a huge magnet for bacteria, especially uncooked onions. You should never plan to keep a portion of a sliced onion.. He says it's not even safe if you put it in a zip-lock bag and put it in your refrigerator.
    Also, dogs should never eat onions. Their stomachs cannot metabolize onions.
    Please remember it is dangerous to cut an onion and try to use it to cook the next day, it becomes highly poisonous for even a single night and creates toxic bacteria which may cause adverse stomach infections because of excess bile secretions and even food poisoning.
    Please pass this on to all you love and care about.
    — with Adonain Danny Rivera.

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  25. :) :)

    हिचकी के बारे में सुना है कि तब आती है जब कोई याद कर रहा हो :) :) :)
    इस पर एक पोस्ट कब आएगी ? :) us post par praveen shaah ji ke kament padhne ka intazaar rahega mujhe .....

    रोकने के तरीके
    १. सांस रोकने के प्रयास ---- कोई फायदा नहीं होता
    २. धीरे धीरे पानी पीना ---- कोई फायदा नहीं होता :(
    ३. शक्कर या मिश्री चूसना ---- कोई फायदा नहीं होता
    ४. नाक/ कान जोर से दबा कर बंद करना और प्रेशर के साथ गटकना ---- कोई फायदा नहीं होता :) :)

    ५. ...............
    ६. ............... ---- कोई फायदा नहीं होता

    :) :) :) :)

    तो फिर हम क्या करें ???? एक लिस्ट बनाएं उनकी जो हमें याद करते हैं - और जब हिचकी आये तो उस लिस्ट को पढ़ कर उसमे शामिल हर व्यक्ति को बड़ी तासीर से याद करें ? इससे बंद हो जायेगी हिचकियाँ :)

    हाँ - ध्यान भटकाने / शोक ट्रीटमेंट से शायद फायदा होता हो - ध्यान भटकाने के बाद ध्यान नहीं कि हिचकी आ रही थी या नहीं :) :)

    //////

    @@@ प्याज और हीट स्ट्रोक -
    बचपन से ही मुझे नाक से बहुत खून जाता था गर्मियों में - मम्मी जबरदस्ती कटा प्याज सुंघाती थीं और खून तुरंत बंद हो जाता था ...... नो सुपेर्सटिशियन ....... एक्ष्पिरिएन्स .....

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    उत्तर
    1. @ एक लिस्ट बनाएं उनकी जो हमें याद करते हैं - और जब हिचकी आये तो उस लिस्ट को पढ़ कर उसमे शामिल हर व्यक्ति को बड़ी तासीर से याद करें ? इससे बंद हो जायेगी हिचकियाँ :)

      - जिसे याद करेंगे उसे आने लगेंगी :)

      हिचकिचिया पोस्ट भी आयेगी वेला कुवेला में!!

      @@@ प्याज और हीट स्ट्रोक - कहीं पढ़ा था कि भारतीय गृहणी का रसोईघर ही अपने आप में छोटा मोटा दवाखाना होता है, सही है।

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  26. इस पूरी टिपण्णी को बस अपन आप पर निजी रूप में न लीजिएगा मै ये बात सभी के लिए कह रही हूँ , माता जी या कोई और कहे की बच्ची बीमार है जरुर नजर लगी होगी उतार दो डाक्टर की जाने की जरुरत नहीं है ऐसे आज्ञाकारी पुत्र पुत्रियों को मै बेवकूफ कहूँगी । माता जी को टोटके से मतलब नहीं है उनका ध्येय है की बच्चे को लू न लगे , सो बच्चा कह दे की माता जी घर से छाछ , पानी खूब पी के जा रहा हूँ , साथ में पानी की बोतल भी है , फिर कौन सा धुप में जाना है वैसे भी सुबह घुप तेज नहीं होती , मैट्रो से एसी की हवा खाते जाना है और शाम तक एसी आफिस में बैठ कर काम करना है धुप जाने के बाद घर आना है तो चिन्ता न करे लू न लगेगी , माता जी निश्चिन्ता हो जाएँगी :)
    माता जी बहाना है असल में हम सभी करते वही है जिस पर हमारा विस्वास होता है फायदा होता है या कोई मतलब है जैसे बच्चे को डाक्टर के पास ले जाने का समय नहीं है आफिस जरुरी है , तो बस माता जी ने कहा है तो शाम तक के लिए नजर वाले टोटके से ही काम चला लेते है ठीक ही कहा रही होंगी , असल में हम खुद को माता जी की बातो से समझाने का प्रयास करते है और अपना अपराध बोध कम करते है , और कई बार माता जी जैसे लोग तो हमारे उस विश्वास को और पुष्ट कर देते है , कभी कभी डर होता है की ये सब किया तो लोग पिछड़ा कहेंगे सो माता जी का सहारा है , कई बार हम विवेक होने के बाद की उसका प्रयोग करने की जरुरत नहीं समझते है , बस मान लेते है की पुराणी चीज है तो अच्छी ही होगी कोई न कोई कारण जरुर होगा , मन में भरा होता है ओल्ड इस गोल्ड , तो लो भैया जो पुराणी बाते है सब अच्छी है मान लेने में नुकशान ही क्या है ।

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    1. टिप्पणी को निजी रूप में नहीं ले रहा हूँ लेकिन इसी समाज का हिस्सा होने के चलते बता रहा हूँ कि ऐसी माताजी कम से कम मैंने नहीं देखी जो बच्चों के दुख तकलीफ़ में डाक्टर के पास जाने से मना करती हो,उनके देसी नुस्खे डाक्टरी दवाओं के साथ भी चलते रहते हैं। वैसे भी हमारी माताजी की पीढ़ी वाली मातायें आज जैसी ’स्मार्ट मॉम’ नहीं हैं।
      @ माताजी का बहाना\सहारा - हर तरह के लोग हैं, क्या कह सकते हैं..

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    2. माता जी का अर्थ यहाँ पर मेरा बस बूढ़े पुराने लोगो से था , आप दादी नानी भी समझ सकते है , और आप ने मना करने वालो को नहीं देखा तो खुशनसीब है मैंने कइयो को देखा है , जहा घर में हर काम सासु माता जी की मर्जी से होता है और बीटा बहु कुछ भी कहते रहा जाते है उनकी कोई नहीं सुनता है , अभी हफ्ते भर पहले मुंबई में खबर आई की जुड़वा बच्चे जन्म के समय कमर के निचे जुड़े थे सो अपसगुन कहा उनकी बलि दी जाने वाली थी , कुछ पड़ोसियों की तत्परता से बच्चो की जान बची अब लावारिस हालत में अस्पताल में पड़े है , हजारो किस्से है जब बड़े बुढो ने बच्चो को डाक्टरों के पास जाने से या अपने अंधविश्वास से मौत दी है , भले आप ने उन्हें नहीं देखा हो |

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    3. हजारों किस्से जरूर होंगे, मैंने नहीं देखा लेकिन किसी चीज को मैं इसी आधार पर कभी खारिज भी नहीं करता। बताने का अभिप्राय यही होता है कि मैंने नहीं देखा लेकिन फ़िर भी ऐसा होता होगा, दूसरे भी इस बात को समझें। खुशनसीब तो मैं हूँ ही, इसमें कोई शक नहीं है। हर चीज अपेक्षा से ज्यादा मिली है मुझे :)

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  27. एक लंबा किस्सा अपना बताती हूँ बिटिया कोई एक साल की थी और रात में उठ कर रोना शुरू कर दी इतना समझ आ गया की उन्हें कही दर्द हो रहा होगा पर कहा पता नहीं चला रहा था उन्ही बिच बिछ में टिस सी उठती तो बदन कडा कर लेती अपनी माता जी से सूना था की बच्चो के पेट में दर्द होता है , घर में कोई दवा न थी सो घरेलु दवा हिंग से काम चलाया गया ( हिंग दवा है टोटका नहीं ) किन्तु कोई असर न हुआ सुबह के इंतज़ार में उन्हें सुला दिया किसी तरह, अचानक रात को नीद खुली तो देखा पतिदेव गैस पर कुछ कर रहे थे मै समझ गई की उन्होंने बिटिया की नजर उतारी है, हम शाम को पार्टी में गए थे और लोग बिटिया के अच्छे दिखने की बाते कर रहे थे सो नजर लगी होगी, उन्हें पता था की मुझसे कहा तो चार बाते सुनने को मिलेगी , सुबह हुई बिटिया रो नहीं रही थी किन्तु सुस्त सी थी पतिदेव ने उठते ही पूछा की अब रो नहीं रही है न मैंने कहा नहीं तो उनके चहरे पर विजयी मुस्कान आ गई बोले चलो ठीक हो गई , मैंने कुछ कहा नहीं ,पर तय कर लिया की डाक्टर शाम को आती है तो उसके पास जरुर जाउंगी दोपहर में पता चला की पडोसी के भी १ साल के बच्चे की रात बहुत तबियत ख़राब हो गई थी , अस्पताल ले गए उसे दिमागी बुखार है पति घर पर ही थे हम दोनों के होश उड़ गए तुरंत बच्ची के डाक्टर को फोन कर सारी स्थिति बताई तो उसने तुरंत ही अपने घर बुला लिया बिटिया का अच्छे से चेकअप किया और कहा की आप दस दिन पहले उसको जुकाम के कारण ले कर आई थी सम्भव है की उसके कान में दर्द हो जो बच्चो को जुकाम में हो जाता है , अपने पास से ही कान में दवा डाली और दर्द के लिए क्रोसिन पिला दिया , बोली घर जाइये यदि आधे एक घंटे में सामान्य नहीं होती है तो भर्ती कर लुंगी , हमें घर पहुँचने में आधे घंटे लगा और सुबह से सुस्त पड़ी बिटिया चहकना दौड़ना शुरू कर दी । फिर पति से कहा की रात आप ने नजर उतारी थी और सोचा की उसी से वो ठीक हो गई इस तरह के दर्द तो कुछ घंटो बाद अपने आप कुछ कम तो हो ही जाते है किन्तु पूरी तरह से ठीक नहीं, सोचो की मै भी यही विस्वास कर बैठ जाती तो उसका न ठीक से इलाज होता और न वो अभी जैसे ठीक है होती न ही हमें पता चलाता की उसे हुआ क्या था , अब तो भविष्य के लिए भी हमें उसकी बिमारी का पता चला गया है वो भी डाक्टर के कारण , न दिखने वाले नुकशान , असल में हमारे विवेक का बहुत बड़ा नुकशान कर रहे होते है । कहने वाले बहुत कुछ कहते है , सुनिए काले टिके और काले धागे में बड़ी शक्ति होती है जो बुरी नजर होती है उसमे से एक अल्ट्रा वैलेट किरण सी निकलती है जिसे काजल और काला धागा अपनी और खीच कर सोख लेता है बच्चे को नजर नहीं लगाती है , वैज्ञानिको ने इसे माना भी है , आज तक बिटिया ने ये सब धारण नहीं किया ,जैसे प्याज आप की और आ रहे लू के असर को सोख लेता है :)))

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    1. जवाबी किस्सा हमारा भी सुन लीजिये - हमारा बेटा साल भर का ही रहा होगा कि उसकी तबियत भी कुछ खराब हो गई। दो तीन दिन तक डाक्टर से दवा लेते रहे(हमारी माताजी ही साथ जाती थीं, मेरी पोस्टिंग तब दूर ही थी)। कई दिन आराम नहीं आयातो डाक्टर साहिबा ने खुद उसकी दवा डिस्कंटीन्यू करवाई और गले की मालिश करवाने की सलाह दी। पडौस में ही एक बुजुर्ग महिला रहती थीं जो बच्चों की मालिश वगैरह करती थीं। उन्होंने हाथों से बच्चे की गर्दन टटोली और फ़िर मालिश करने के बाद उसके गले में शायद लहसुन की एक माला सी बनाकर डाल दी। मैं घर लौटा तो बालक को देखकर बहुत हँसी आई, एकदम ’झिंगालाला झिंगालाला’ वाला गाना याद आ गया। उसी दिन से उसे आराम आने लगा। बाद में डाक्टर साहिबा से मैंने इस सबका लॉजिक पूछा तो उन्होंने कुछ मेडिकल टर्म्स का नाम लिया और बताया कि लहसुन की महक से उस परेशानी में आराम मिलता है। डाक्टर साहिबा कोई आयुर्वेदाचार्य नहीं, जानी मानी चाईल्ड स्पेशलिस्ट थीं। बताईये, हमें तो डाक्टरनी भी हमारी जैसी पिछड़ी सी मिल गई। एक कहावत भी है कि जैसे हम वैसे हमारे देवता :)
      आपने कहा न दिखने वाले नुकसान हमारे विवेक का बहुत नुकसान कर रहे होते हैं, मानता हूँ। इसके अलावा सब नहीं लेकिन बहुत से ऐसे नुस्खे\टोटके भी होते होंगे जिनके वैज्ञानिक या मेडिकल गुण बेशक हम न जानते हों, लेकिन उनका फ़ायदा मिलता है। पिछले कमेंट में आपने पिछड़े समझ लिये जाने के डर का जिक्र किया था, हो सकता है हम में से बहुत से इन नुस्खों को सिर्फ़ इस डर से खारिज कर देते होंगे कि कहीं हमें पिछड़ा या कंजूस न समझ लिया जाये।
      मैंने पोस्ट में भी यही कहना चाहा था कि हर किसी को अपनी सोच,सुविधा और साधनानुसार किसी बात पर फ़ैसला करने का अधिकार है लेकिन दिक्कत सिर्फ़ तब होती है जब हम दूसरों पर अपनी बात थोपना चाहते हैं। जैसे कोई आपको विवश करे कि आप डाक्टर के पास बिल्कुल न जायें या मुझे कोई विवश करे कि बेशक दो छींक ही क्यों न आयें, डाक्टर के पास ही जाना पड़ेगा।

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    2. डाक्टर भी हम जैसे ही अन्धविश्वासी होते है , मुंबई में एक डाक्टर दंपत्ति ने अलग ब्लड ग्रुप होने के बाद भी अपने छोटे बेटे का खून बड़े बेटे को चढ़ा दिया क्योकि छोटा पढ़ने में तेज था और बड़ा बिलकुल ही कमजोर , आज भी उपग्रह छोड़ने से पहले नारियल फोड़े जाते है , उनकी बात छोडिये पढ़ने लिखने से यदि अंधविश्वास कम होता तो कोई समस्या ही नहीं थी , मेरी डाक्टर ने तो कितनी ही बार बेटी को काला टिका लगाने की सलाह दी थी , जो बकवास थी , किन्तु उसी ने ये भी बताया था की सर्दी होने पर जायफल देशी घी में घिस कर सिने पे लगाये और चटाए भी , सभी जानते है जायफल गर्म होता है और वो बस शारीर के अन्दर गर्मी पहुंचता है , उसके लिए आयुर्वेद का जानकार होने की जरुरत नहीं है और हलकी सर्दी में ठण्ड में ये करने में कोई नुकशान भी नहीं है और आज भी यही करती हूँ किन्तु इससे ये बात नहीं सही हो जाती है की उसका काला टिका वाला इलाज भी सही ही है |जैसा आप ने कहा है की कुछ बीमारिया समय के साथ अपने आप ठीक हो ही जाती है दवा देने से फायदा नहीं है उसी तरह डाक्टर भी मरीज को सांत्वना देने के लिए ये बेवकूफी वाले नुकसे बता ही देते है |

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    3. डाक्टर या कोई दूसरे प्रोफ़ेअशनल्स भी तो हम जैसे मानव ही होते हैं। किसी भी चीज को कोई एक फ़ैक्टर प्रभावित नहीं करता। शिक्षा, आर्थिक स्तर, मानसिक परिपक्वता, संसाधनों की उपलब्धता आदि ऐसी बातों को प्रभावित करते ही हैं। जो समर्थ हैं, वो एक से ज्यादा तरीके अपना कार्य सिद्ध करने के लिये अपनाते हैं, जिनके पास संसाधनों की कमी है, वो प्राय: उपलब्धता के आधार पर। exceptions everywhere.

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  28. ऐसे टोन टोटको को बिना नुकसान के भी मान लेने के यही नुकशान है की वो आप के दिमाग पर धीरे धीरे कब्ज़ा जमा लेते है , संजोग को अपनी ताकत बना लेते है , आप को पता है की देश में हजारो बच्चे बिना इलाज के मर जाते है उनमे से एक बहुत बड़ी संख्या उनकी है जो बिमारी में या तो खुद ही टोटका करते रहने से मर जाते है या डाक्टर की जगह ओझा पंडित के पास जाने से मर जाते है , अब ये न कहिएगा की ये दो अलग बाते है , जिस तरह आप का विश्वास इन टोटकों पर है उसी तरह दूसरो के विस्वास भी होते है वो आप से अलग हो सकते है पर चीज एक ही है , चेचक में माता पूजना , पीलिया में झडवाने जाना ऐसे ही टोटके है जिसके बारे में कहा जाता है की इनसे नुकशान ही क्या है , डाक्टरी इलाज के साथ ये भी करिए , किन्तु इन चीजो से हमारा और दूसरो का जो मानसिक नुकशान हो रहा है उस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है । आप में विवेक है आप अपने आप को रोक सकते है किन्तु जिसमें विवेक नहीं है उनका क्या होगा , लॊग आलू में भी भगवान दिखा कर आम श्रद्धा वाले लोगो को ठग लेते है , नए नए भगवान और संत पैदा किये जाते है , ताकि लोगो के इसी सोच का फायदा उठा कर पैसा बनाया जा सके उन्हें बेफकुफ़ बनाया जा सके , फिर क्या कहेंगे की ये ठीक है , मान लेने में क्या बुराई है , आप को पता है की मुझे कहा तक इन पर विश्वास करना है और कहा पर रोक जाना है कहा पर डाक्टर , विज्ञान पर भरोसा करना है और कहा भगवान पर किन्तु आप को लगता है की भारत में सभी आप के जितना विवेक रखते है । मै अपने विचार दूसरो पर नहीं थोपना चाहती किन्तु यदि कोई मूर्तियों को दूध पिलाने लगे , प्याज का मंदिर बना दे तो मै उसका विरोध करुँगी और जरुरत पड़ा को खिल्ली भी उडाऊगी ।

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    1. एनडीए सरकार के समय तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने दिल्ली विश्वविद्यालय में तंत्र-मंत्र के द्वारा रोग दूर करने का एक कोर्स शुरू करने की बात कही थी। इसके विरोध में अखबार में Delhi Medical Association का बहुत बड़ा विज्ञापन आया था। आंकड़े देकर उन्होंने सिद्ध किया था कि डाक्टर्स के पास आने वाले लगभग पिच्यासी प्रतिशत मरीज ऐसी बीमारियाँ लेकर आते हैं जिनका कोई ईलाज न भी किया जाये तो वो ठीक हो जायेंगे। इनका तर्क ये था कि तथाकथित तंत्र-मंत्र वालों के पास जाने वाले लोगों में से भी कुछ वैसे ही ठीक हो जायेंगे लेकिन श्रेय तंत्र-मंत्र पद्धति को मिलेगा जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिलेगा। मुझे इस बात में कोई बनाव दुराव नहीं दिखा लेकिन मैं सोच रहा था कि इसी DMA ने अब से पहले ये अभियान क्यों नहीं चलाया कि डाक्टर्स के पास आने वाले लोगों में से पिच्यासी प्रतिशत को आने की जरूरत नहीं है? या आप इस बात को मानेंगी कि डाक्टर्स के पास आने वाले मरीजों में से पिच्यासी नहीं तो सत्तर या साठ या पचास प्रतिशत को ये डाक्टर लोग बिना द्वा दिए\लिखे भेज देते हैं? जी नहीं। डाक्टर के पास जाना स्टेटस सिंबल है, तंत्र-मंत्र द्वारा उपचार करना अंधविश्वास और पोंगापंथी, है न? मैं इन तांत्रिकों का बिल्कुल भी समर्थक नहीं हूँ लेकिन मैं यह मानता हूँ कि अधिकतर विषय विशेषज्ञ इसी फ़िराक में रहते हैं कि चूना हम ही लगायेंगे।
      सच ये है कि हम लोग खुद एकपक्षीय सोचते हैं। आलू में भगवान, नये नये भगवान और संत, मूर्तियों को दूध जैसी बातें आपने भी बता दीं, और भी ऐसी बातें हैं जैसे आपकी मुंबई में हाजी अली के समंदर में मीठा पानी निकलना, कुर्बानी के बकरे पर कुदरती लिखा कोई पवित्र शब्द, मरियम की तस्वीर के आँसू आदि। ये अलग बात है कि इन बातों पर आपका क्या किसी का ध्यान नहीं जाता। मुझे खुद ऐसी बातें हास्यास्पद लगती हैं और अंधविश्वास को बढ़ावा देने के हक में मैं भी नहीं हूँ। लेकिन अपनी किसी चीज को सिर्फ़ इसलिये बेकार मानना कि वो चीज पुरानी है या उसका औचित्य समझने की क्षमता मुझमें नहीं है, मेरी राय में उचित नहीं है।
      पुनश्च अपनी राय रखने को हर कोई स्वतंत्र है।

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    2. बिलकुल सहमत हूँ की डाक्टर पैसे कमाने के लिए मरीजो को बेफकुफ़ बनाते है किन्तु इससे ये बात साबित नहीं हो जाती है की तंत्र मन्त्र टोने टोटके सही है , ऐसे मौके पर दोनों ही गलत है और पचास साठ प्रतिशत अपने आप ही ठीक हो जायेंगे ये आकडे भी गलत है कम से कम अपने देश में यहाँ तो गरीबी , पैसे बचने की चाहत जो भी कहिये अक्सर मरीज के गंभीर होने के बाद ही अस्पताल का रुख किया जाता है , कुछ माध्यम और उच्च वर्ग ही हर बात में अस्पताल जाता है |
      @ सच ये है कि हम लोग खुद एकपक्षीय सोचते हैं
      मेरे उदहारण को एक एकपक्षीय न कहे मेरी सोच ऐसी नहीं है यदि आप दुसरे समुदाय के होते तो उदहारण आप के समुदाय से देती , हर वर्ग समुदाय में इस तरह की बेवकूफाना सोच होती है और मै सभी का विरोध करती हूँ | पुरानी बातो का विरोध नहीं है तरीके का विरोध है , अब जैसे सभी जानते है की चेचक में मरीज के आस पास सफाई होना चाहिए उसे सादा खाना देना चाहिए लोगो से दूर रखना चाहिए इस कारण सम्भव है की माता देवी आदि का नाम दिया गया किन्तु आज हम सभी कारणों को जानते है तो आज भी माता देवी क्यों पूजते है जरुरी है की दूसरो को इस संक्रमण बीमारी से दूर रखे , मरीज के पास सफाई रखे , और मजेदार बात ये है की जो लोग ये करते है वो भी इन चीजो पर पूरा विश्वास नहीं करते है करते तो बच्चो को टिका ही नहीं लगवाते किन्तु वो बीमारी से बचाव का टिका भी लगते है और जानते हुई भी माता भी पूजते है और फिर कम पढ़े लिखे लोफ उदाहरन देते है की देखो वो इतना पढ़ा लिखा आदमी भी चेचक में माता पूजता है उसे तो इतनी जानकारी है फिर हम क्यों न करे , इसलिए पढ़े लिखे तबके से ये उम्मीद की जाती है की बस करने भर के लिए कोई नुकशान नहीं हो रहा है इसलिए कोई काम न करे अपना विवेक बुद्धि लगाये क्योकि आप दूसरो को लिए उदहारण बन कर दूसरो को गलत संदेश दे सकते है |

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    3. चलिये आपकी एकपक्षीय सोच वाली बात को खत्म कर देते हैं।
      अधिकतर ऐसे तरीकों के पीछे शायद मनोवैज्ञानिक सोच रही होगी। आम जनता ज्यादा शिक्षित नहीं थी, सबका मानसिक स्तर एक जैसा नहीं था। अच्छे परिणाम के उद्देश्य से प्रयास के तरीके में थोड़ा विचलन लाया गया तो अभिप्राय अच्छे परिणाम को अधिकाधिक जनता तक पहुँचाने का था न कि सिर्फ़ जागरूक और समर्थ लोगों तक सीमित रखने का(जो कि ऐसी बीमारी के पूर्ण उन्मूलन के बिना वैसे भी संभव नहीं होता)। या तो इंतज़ार किया जाता कि सौ प्रतिशत जनता सर्वप्रकारेण समझदार हो जाये(जो आज तक नहीं हुई), या डंडे के जोर से पालन करवाया जाये(इससे तो भावनायें और भी आहत हो जातीं)।
      प्रेरणा और उदाहरण वाली बात लाजवाब है, मानता हूँ।

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    4. कुछ मायनो में तो टोने टनके काम करते हैं... "नजर लगना" उसका सबसे अच्छा उदाहरण है. फिर सब आपके मन का है मानो तो भला और न मानो तो भला....
      लेकिन यह बात भी तय है कि कुछ टोटको के पीछे कोई लॉजिक तो होगा.. हाँ यह भी तय है कि समय के साथ कुछ चुतियाही भी घर कर गयी होगी. लेकिन सब बातों के एक सिरे से नकारना अक्लमंदी नहीं.

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  29. देखिये मुझे विश्वास तो नहीं विश्वास करने वाले के विश्वास पर डाउट नहीं :)

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    1. हम्म्म..
      अब लगा कि ’हम ओझा जी बोल रहे हैं’ :)

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  30. आपने बैठे बिठाये लोगों को ज्ञान दे दिया मैं भगवान का शुक्रिया आप प्याज बम मामले में धरे नहीं गए बजरंग बलि में नारियल फोड़ लीजिये ********

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  31. प्याज बम..!!!!
    कहा से कहा पहुंचा दिया चर्चा को....
    वैसे ये "लू " ये है क्या...?
    लू लगने के बाद जो परिवर्तन शरीर में दिखेंगे उनका जिक्र तो दिए गए लिंक में है, पर ये लू क्या है ये स्पष्ट नहीं हो पाया!
    गर्म हवा ही लू होनी चाहिए..???

    कुँवर जी,

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    1. http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%82_%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE

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    2. लू लगने पर क्या करें :

      बिंदु ४ :
      रोगी को तुरंत प्याज का रस शहद में मिलाकर देना चाहिए।

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  32. हद हो गई...प्याज के पाछे पड़कर पुराने तंत्र और मंत्र के साथ ही पुरानी चिकित्सा पद्धति की भरसक ऐसी तैसी कर दी गई...माता जी की बात मानकर आपने गलत नहीं किया..दरअसल प्याज रखने की बात तो हमें याद रही..पर ये याद न रही किलू से ये कैसे बचाता है या लू लगने पर सबसे सुलभ और बेहतर ईलाज प्याज से कैसे हो सकता है....प्याज के औषधीय गुणों के पीछे पड़ने का टाइन नहीं मिला है पर पड़ूंगा जरुर....जहां तक हिचकी की बात है तो अपनी हिचकी तो हमेशा पानी पीने के बाद दूर हो जाती है।

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  33. मजेदार पोस्ट और चर्चाएँ -फिर भी मैं आज भी सफ़ेद दूब और प्याज को पास रखना चाहूँगा -इसलिए भी कि बचपन की स्मृतियाँ जुडी हैं इनसे !

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  34. जेब में रखना तो पता नहीं, कच्ची प्याज के बगैर खाना हलक में ना जाए!
    ढ़
    --
    थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!

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  35. परिहास-पूर्ण ,सुन्दर प्रस्तुति । अभी तक हँसी आ रही है । प्याज़ भी हँस रहा होगा । आज तो मैं " प्याज़ " का लोहा मान गई , अभी तक मैं उसे मामूली प्याज़ समझ रही थी , आज पता चला कि वह आलेख का सूत्र-धार भी बन सकता है , रँगमँच का हीरो भी बन सकता है। प्याज़ की महिमा अद्भुत है । "ॐ प्याज़ देवाय नमः ।"

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  36. लू के दिन बीते, अब बरखा आ गई… नई पोस्ट-फुहार का इन्तजार

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  37. हम हिंदुस्तानियों का मनपसंद काम - दूसरों के मामले में हम खुद ही जांच आयोग और खुद ही फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति बन जाते हैं। और समय? वो तो फालतू बहसबाजी के लिए तो हमारे पास प्रचुर मात्रा में है ही।

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