उसका कद रहा होगा, लगभग सवा-पांच फ़ुट। दुबला पतला शरीर, जैसे सर्कस का जिमनास्ट हो, गोरा रंग। सिर पर सफ़ेद पगड़ी, शरीर पर सफ़ेद ही कुरता और सफ़ेद धोती। जूती जरूर काले रंग की होती थी। उम्र करीब साठ साल, लेकिन चाल में इतनी फ़ुर्ती कि लगता जैसे अभी टीन एजर ही हो। हाथ में एक छोटा सा हुक्का, जिसे हुक्की कहते हैं, लगभग हर समय रहती थी। सुबह नहा धोकर घर से निकलता तो रात में अंधेरा होने के बाद ही लौटता। और ये रूटीन बरसों पुराना था। सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का खाना, सब बाजार से। बाजार में भी अच्छे हलवाईयों के यहाँ ही व्यवहार था उसका। पैसे न वो देता और न कोई माँगता था उससे। पुलिस, प्रशासन सब जगह पैठ बना रखी थी उसने, मुखबिर था। सब ये बात जानते थे तो कोई पंगा नहीं लेता था। गांव देहात में जैसे सांड देवता को खेत में मुंह मारने की छूट रहती है, इन साहब को भी हर दुकानदार यही मानकर झेल रहा था।
शुरू में एक वणिकबुद्धि हलवाई ने उसे कुछ दिन के बाद टोक दिया था, “दस दिन हो गये, रोज पूरियाँ खा रहे हो। हिसाब बढ़ता जा रहा है।” वो उस समय हुक्की गुड़गुड़ा रहा था, सुनकर एक बार गुड़गुड़ की आवाज थोड़ी जोर से आई और फ़िर उसने मुंह ऊपर उठाकर देखा, “कितने रुपये हो गये तेरे?” हलवाई ने हिसाब देखकर बताया, “साठ रुपये।” कुरते की जेब में हाथ डाला और तीन चार भारी भरकम गलियां अपनी घरवाली को दीं, “……… …….. …….., हरामजादी ने जेब में कुछ छोड़ा ही नहीं।” एक दस का नोट निकाला और हलवाई को देते हुये बोला, “ले लाला, दस रुपये जमा कर ले। सीधा पचास का हिसाब रह गया। और यार, अच्छा किया तूने टोक दिया, बल्कि पहले ही बताना था कि दस दिन हो गये। मैं तो ऐसे ही लापरवाह सा बंदा हूँ। तेरे यहाँ पूरियां बहुत खस्ता होती हैं, इसलिये कहीं और मजा नहीं आता। लेकिन कल तेरा पिछला हिसाब साफ़ करूंगा, उसके बाद ही तेरे यहाँ पूरियां खाऊंगा। वैसे यार, तू पहले ही टोक देता तो कितना अच्छा रहता, अब मुझे शर्म आ रही है।” लाला ने दयानतदारी दिखाई, “कोई बात नहीं, तेरी ही दुकान है। मैंने तो इसलिये कहा था कि व्यवहार बना रहे हमारा।” “बेफ़िक्र रह, आज शाम तक या कल तक तेरा हिसाब चुकता कर दूंगा।” कहकर वो चल दिया। उसके जाने के बाद लाला ने अपनी पीठ ठोंकी, ’हिम्मते-मर्दां, मददे खुदा’ ऐसे ही बाजार वाले खम खाये रहते थे इससे। आज जरा सा टाईट किया तो कर गया न अंटी ढीली? मुफ़त का थोड़े ही है हमारा माल, रोज आता था, खापीकर निकल लेता था जैसे बाप का माल है। बल्कि अब पिछले हिसाब में तीन-पांच किया तो थोड़ा सा और टाईट कर देंगे, याद करेगा ये भी कि वास्ता पड़ा है किसी लाला से।
पुराणों में आता है कि भक्त का अहंकार त्याग करने के लिये विष्णु हरि ने खुद भी श्राप लेना स्वीकार किया था। बेशक कलयुग ही सही, लेकिन भारत भूमि से धर्म का लोप अभी इतना भी नहीं हुआ है। लाला के मन में अहंकार आया जान, उसका मान मर्दन करने का ही जैसे सोचा हो ऊपरवालों ने। ऊपरवालों इसलिये कहा कि इंडिया जो कभी भारत था, उसमें भगवान का स्थान इंस्पैक्टर लोगों ने ले लिया है। घंटे भर के अंदर ही ’फ़ूड एंड एडल्टरेशन डिपार्टमेंट’ के दो स्टाफ़ और उनकी सहायता के लिये थाने से दो सिपाही लाला की दुकान में प्रकट हो चुके थे। देसी घी में चर्बी की मिलावट, मिठाइयों में प्रतिबंधित रंगों की मिलावट, दूध में मिलावट, गरज ये कि दुकान में मौजूद हर सजीव निर्जीव चीज में ऐसी मिलावट सिद्ध होनी शुरू हुई कि लाला से जब उसके पिता का नाम पूछा गया तो वो खुद भी कन्फ़्यूज़ हो गया कि बताते ही ये उसमें भी मिलावट सिद्ध कर देंगे। उसे लग रहा था बाजार से गुजरता हर आदमी उसकी दुकान में हो रहे घटनाक्रम पर सी.आई.ए. की तरह आंख गड़ाये है। इज्जत का फ़लूदा होगा तो होगा, बाजार में जो नाम खराब होगा तो आने वाली पीढियां उबर नहीं पायेंगी। खूब चिरौरी की लाला ने, लेकिन वो सरकारी महकमा क्या जो अपने कर्तव्य से च्युत हो जाये। लाला का अहंकार ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सिर से सींग। कभी इंस्पैक्टर साहब की ठोडी को हाथ लगाता और कभी अपनी टोपी उतारकर उसके पैरों में रखता, लेकिन बर्फ़ नहीं पिघली। द्रौपदी ने भी इतनी आद्रता से कॄष्ण को नहीं पुकारा होगा जैसे लाला मन ही मन परमात्मा को याद कर रहा था।
उसी समय हाथ में अपनी हुक्की लिये वो आ खड़ा हुआ। ’क्या बात हो गई साहब जी, आज लाला की पूरियां आपको भी खींच लाईं?” और वो भी आज दुकान के अंदर ही आ गया। सबसे हाथ मिलाकर जब हंसी मजाक करने लगा तो लाला को उसके हाथ की हुक्की बांसुरी की तरह लगने लगी। उसके दरियाफ़्त करने पर सरकारी अमला मिलावटी चीजों की लिस्ट, और कानून की धारायें गिनवा रहा था और सैंपल की जांच तो जब होगी तब होगी, उससे पहले ही संभावित नतीजों के बारे में बताकर लाला के पैरों तले से जमीन खिसका रहा था। लाला इशारे से उसे परे बुलाकर ले गया और इस मुसीबत से छुटकारा दिलवाने की कहने लगा। उसने बताया कि फ़लां बाजार में जब छापा मारा था तो दस हजार में मामला निबटा था, अपनी गुंजाईश बता दे, मैं कोशिश करता हूं। लाला ने उसे सब अख्तियार दे दिये, बस हैसियत का ध्यान रखने की प्रार्थना की। “आदमी है तो बहुत सख्त, लेकिन अपना लिहाज करता है, चल देखते हैं। तू पूरियां उतरवा इनके लिये।”
लाला के सामने इंस्पैक्टर साहब से कहा उसने कि ये उसकी अपनी दुकान है, बल्कि घर है। नाश्ता रोज यहीं करता है वो, इसका इतना मान तो रखना ही पड़ेगा। साहब लोगों के लिये नाश्ता परोसा जा रहा था, दुकान के अंदर ही और उसने जाकर लाला को बधाई दी कि तेरा मामला पांच हजार में निबटा दिया है, लेकिन बाहर आवाज नहीं निकलनी चाहिये। किसी खास को बताना ही हो तो दस हजार बताईयो, तेरी भी इज्जत बनेगी और इनके पेट पर भी लात नहीं लगेगी. मार्केट रेट ऐसे ही बनते बिगड़ते हैं। लाला ने फ़ट से गिनकर उसे पांच हजार थमाये। उसे जेब के हवाले करके और अपनी हुक्की दुकान पर काम करने वाले एक लड़के के हवाले करके लाला को सबके लिए बढ़िया चाय मंगवाने को कहा उसने। शूगर की बीमारी को शूगर से भी मीठी एक गाली देकर अपने लिये फ़ीकी चाय मंगवाई, “घड़ी घड़ी में पेशाब आता है इस नामुराद बीमारी में, चाय आये तब तक मैं आता हूं पेशाब करके।”
मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन करके बड़ी सी डकार लेकर टीम चल दी, जाने से पहले उसने लाला से पूछा, “लाला, मेरे हिसाब में कितने बचे हैं, पचास हैं न? कल आता हूँ, दे दूँगा।”
लाला की आँखें भर आईं थीं, क्यों शर्मिंदा करते हो जी, एक तरफ़ कहते हो मेरी दुकान है, फ़िर ऐसा कह्कर क्यों पाप चढ़ाते हो?”
“ना भाई, है तो अपनी ही दुकान लेकिन हिसाब तो हिसाब है। कल को बाजार में किसी के आगे तू कहेगा कि इसने मुफ़्त में मेरे यहाँ इतने दिन माल खाया तो मेरे सफ़ेद कपड़ों का क्या होगा?”
“भाई, जूती मार ले मुझे। ऐसी बात मत करो। मैं भी तेरा हूं और ये दुकान भी तेरी है।”
इतने प्यार को ठुकराना कहाँ आसान है? मन मसोसकर जाना पड़ा उसे। कुछ दूर जाकर फ़िर से एक चाय की दुकान में घुस गये। जेब से पैसे निकाले, पांच-पांच सौ दोनों सिपाहियों को देकर दो हजार इंस्पैक्टर साहब को दिये। बोला, “बड़ा मूँजी आदमी है, दो हजार से ऊपर जाता ही नहीं था। कहता था मैंने मिलावट की ही नहीं तो क्यों दूँ, इज्जत-विज्जत की कदर नहीं है आजकल लोगों को। साहब जी, पचास का नोट दे दो, साला मेरे से भी पैसे लेगा, छोड़ेगा नहीं। कल फ़िर मुँह दिखाना है उसे। आज की मेहनत मुफ़्त में गई, आपका तो मेहनताना शुक्राना मिल गया, काश हम भी होते सरकारी अफ़सर।” इंस्पैक्टर साहब ने सौ रुपये दिये उसे, “ज्यादा ड्रामा मत कर, तेरे कहते ही अ गये न हम दफ़्तर छोड़कर। अगले आसामी की तलाश शुरू कर अब।”
हुक्की की गुड़गुड़ चल रही थी और बाकी सब काम भी, जैसे महंगाई, भ्रष्टाचार पर जनता के बीच दबी दबी सी असंतोष की लहर भी चल रही है और बाकी सब काम चारा, अलकतरा, जाली स्टांप, कामनवैल्थ, स्पैक्ट्रम वगैरह वगैरह। कह गये न हमारे मनीषी ’चरैवेति चरैवेति’ माननी तो पड़ेगी ही उनकी, मन मारकर ही सही लेकिन the show must go on.
ये बातें एक सचमुच के चरित्र की हैं, जिसे मैंने देखा भी है लेकिन चर्चे बहुत सुने थे उसके। एक और बहुत मशहूर जुमला था उसका। किसी सूदखोर से पैसे उधार लिये थे उसने और कई बार तकाजा करने पर भी नहीं लौटाये। एक दिन कुछ ऐसे लोगों के साथ बैठा था जिन्होंने अपनी उधारी चुका दी थी। बात चली तो उन सबको कहने लगा, “तुम लोगों जैसे किसी से लेकर वापिस कर देने वालों के कारण हम जैसों को कितनी परेशानी आती है, तुम्हें क्या पता? तुम्हारा उदाहरण दे देकर लोग हमें झूठ सच बोलने को मजबूर करते हैं।”
अब तो ऊपर हुक्की गुड़गुड़ा रहा होगा, इतना बताता हूँ कि अंत समय बहुत कष्ट में गुजरा था उसका। अपने लड़कों ने ही कमरे में बंद कर दिया था, सुना था कि दिमाग फ़िर गया था उसका। हम छोटे छोटे थे, छुपकर खिड़की से देखते थे कभी कभी, सारे कपड़े उतार देता था और कभी नाचता था कभी अपने बाल नोंचता था। बोलता रहता था कभी गाने तो कभी गालियाँ, चुप नहीं करता था बिल्कुल। एक ही समय में अलग अलग किस्म के लोगों से अलग अलग व्यवहार करने की उसकी कला का शतांश भी ग्रहण कर पाता तो धन्य हो जाता मैं भी। वैसे बोलने तो लग गया हूँ मैं भी अब पहले से बहुत ज्यादा। आप सब जैसे कम और अच्छा बोलने लिखने वालों के कारण हम जैसों को कितनी परेशानी आती है, आपको क्या पता? आपके उदाहरणों के कारण हमें झूठ सच बोलने लिखने को मजबूर होना पड़ता है…
गाना देखना है? देख लो न फ़िर, कौन सा पैसे लगने हैं:)
बहुत बढ़िया और रोचक किस्सा रहा ! और आपका इश्टाइल ... वाह क्या कहने !
जवाब देंहटाएंवैसे बहुत दिन हो गया फत्तू जी नज़र नहीं आ रहे हैं ... क्या आपको पता है वो कहाँ गए है ?
निष्काम भाव से लेकिन पूरी दिलचस्पी लेकर हम सड़क के बगल में खुदता गड्ढा भी देखते हैं और वहां पड़ी दुर्घटनाग्रस्त लाश भी. इसी तरह आपकी पोस्ट वाले दृश्यों को आमतौर पर फिल्मों की तरह तटस्थ भाव से देखा जाता है, आपने मानों पटकथा लिख दी है.
जवाब देंहटाएंबडा कारसाज़ है वो! किसी को कर्ज़ भी नहीं देता और जिसे देता है उससे वसूली करने तब पहुँचता है जब उसकी दुकान बढ चुकती है।
जवाब देंहटाएंmajaa aa gaya, kya gudgudi pi aur laga di..
जवाब देंहटाएंवाह! ताऊ नै लाला की खूब गुडगुडी बजाई।
जवाब देंहटाएंवैसे हराम का माल खाना है बडा मुश्किल (पचा तो हम लेंगे :)), पूरे दांव-पेंच सीखने पडते हैं और सांठ-गांठ रखनी पडती है।
हर बार की तरह शानदार पोस्ट
प्रणाम
अजी छोड़ो ये बढ़िया बढ़िया कहानिया सुनाकर मतबल पढ़ाकर हमें बहलाना ................ जे बताओ फत्तू कहाँ है हमारा ???
जवाब देंहटाएंइबके जो फत्तू ना दीख्या तै समझो थम को दिन में तारा दीख्या
'गुड़गुड़ी वेज' सर्व स्वानुभूत घटना है. इससे मिलती जुलती घटनाएँ और अनुभव समाज में बिखरे पड़े हैं.
जवाब देंहटाएंमुखबिरों के बल पर ही पुलिस विभाग अपनी ऊपरी कमाई करता है.
मुझे कई दोस्तों ने अपने-अपने इलाकों के किस्से सुनाएँ हैं.
'दिल्ली मुख्यमंत्री शीला जी के सुपुत्र 'संदीप दीक्षित' आज़ पुलिस पर बयानी करते हुए कहते हैं "जहाँ वैध-अवैध कंस्ट्रक्शन होता है वहाँ तो पुलिस बिना सूचना के भी पहुँच जाती है, किन्तु जहाँ अपराध होता है वहाँ सूचना देने पर पर भी नहीं पहुँचती." सत्ता में बैठे लोग भी विरोधियों का स्वर निकालने लगे हैं. .. जनता की सहानुभूति पाने को.
'लाला' जैसे कितने ही निर्दोष दुकानदार इस भ्रष्टाचार को पनपने देने को विवश हैं. उनकी कोई सुनवाई नहीं........ क्योंकि आज़ रक्षक और भक्षक गले लगे हुए हैं.
आपका इन सब बातों को स्वर देना ........ वह भी बड़े प्रभावी ढंग से .......... याद करता है ........ 'व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई और शरद जोशी' को.
बहुत खूब दादा। आपकी किस्सागोई की दाद देनी होगी। हम तो सोच रहे थे की आप सिर्फ प्रेम कहानियाँ ही लिखते हैं :)
जवाब देंहटाएंआप भी कम 'वर्सेटाइल' नहीं हैं अब लगे हाथ कविताई में भी हाथ आजमा लीजिए।
इस देश की किस्मत ...पर इतना कहता हूँ , दुनिया में धन ऋण सब बराबर हो जाता है
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंIn gudgudi baz logo ki wajah se hi sarkari kogo ki jeb garm hoti rahti hai
जवाब देंहटाएंkissa achchha laga
mobile me hindi nahi hai
dobara aata hoon
"उसकी कला का शतांश भी ग्रहण कर पाता तो धन्य हो जाता मैं भी...."
जवाब देंहटाएंऐसे कलाकार चमचे हर दफ्तर के आसपास मिल जाते हैं संजय और भरेपूरे दफ्तर में विरला अधिकारी ही आ पता है जो इन्हें मुंह न लगाये ! नोट कमाने का आसान जरिया हैं यह लोग ! शुभकामनायें एक बेहतरीन लेख के लिए !
अत्यंत सशक्त आलेख, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बात सही है, दृश्य खींच देते हैं आप। ऐसे लोग होते हैं आपकी कहानियों में (वैसे ये संस्मरण है) जो अपने आस-पास के ही लगते हैं और आपके शब्द उन्हें चित्रों में उतार देते हैं।
जवाब देंहटाएंगीत के लिए भी, बहुत आभार।
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जवाब देंहटाएंलाला जी ने आंट में निकाल ही दी दमड़ी।
जवाब देंहटाएंराम राम
बिल्कुल ही नया व्यक्तित्व दिखाया है आपने। मान गये सूरमाजी को। पचास रुपये की जगह पाँच हजार निकलवा दिये। गजब का संस्मरण।
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना !
हुकुम !
जवाब देंहटाएंये तो एक श्रृंखला होने का कन्टेन्ट रखती है… "किस्सा-ए-गुड़गुड़ी ताऊ"।
"तुम लोगों जैसे किसी से लेकर वापिस कर देने वालों के कारण हम जैसों को कितनी परेशानी आती है, तुम्हें क्या पता…"
हा हा हा…सही है सर जी… ! जब सब हमाम में हों तो फिर …… :)
क्या खूब कही और गीत भी बहुत खूब !
नमन !
@ Indranil Bhatttacharjee:
जवाब देंहटाएंसैल साहब, फ़त्तू के साथ एक अड़ी हो गई है:) अड़ी जानते हैं न? नहीं, मैं भी नहीं जानता, हा हा हा।
@ राहुल सिंह जी:
राहुल जी,हमारी फ़ार्मूला पोस्ट के लिये आपका फ़ार्मूला फ़िट है।
@ स्मार्ट इंडियन:
भैया, एक नामचीन शायर के वालिद साहब जो खुद भी एक हस्ती थे, उनकी कही हुई मिलती जुलती बात याद आ गई, दूसरे एंगल से -
by the time one learns to live, he dies.
शायद हम जीना सीख रहे हैं:)
@ भारतीय नागरिक:
गुड़गुड़ी गुड गुड लगी आपको, धन्यवाद सरजी।
@ अन्तर सोहिल:
तुमसे नहीं खाई जायेगी अमित प्यारे, ऐसे ही काम चलाओ।
प्रणाम।
@ अमित शर्मा:
जवाब देंहटाएंअच्छे भगत जी हो, तुम्हारा फ़त्तू खो गया और धमका रहे हो हमें?
दिन में तारा के साथ चांद भी दिखे तो फ़त्तू को तो गाड़ ही दें ससुरे को जमीन के नीचे:)
@ प्रतुल वशिष्ठ:
प्रतुल भाई, आचार्य गिरिजेश जी आजकल अज्ञातवास में हैं तो ये महती जिम्मेदारी आप पर है कि गलती बतायेंगे। आपकी टिप्पणी मायने रखती है(वाहवाही वाली टिप्पणी की नहीं कह रहा हूं)
मुखबिरों के बारे में मेरा संस्मरण और आपने जो कहा वो भी,अकेला स्याह पक्ष ही दिखा रहा है जबकि इसका एक दूसरा पहलू भी है। अधिकतर सुलझाये गये मामलों में इनका योगदान दिखे बेशक न लेकिन अहम जरूर होता होगा। अजमेर छात्रा-ब्लैकमेल कांड, संसार चंद वाला मामला और ऐसे कुछ मामले तो हम अखबारों के माध्यम से जानते ही हैं। बेशक बहुतायत उन्हीं उदाहरणों की है जिनका पोस्ट में जिक्र किया है।
एक शिकायत है, इतने बड़े बड़े नाम मत लिया करो यार। कोई मुकाबला ही नहीं है।
@ सोमेश सक्सेना:
हाथ पहले से जले हुये हैं भाई:)
@ नीरज बसलियाल:
सही कहते हो नीरज। देश की देशवासियों की तकदीर और तदबीर दोनों ’काम्पीमेंट्री और सप्लीमेंट्री’ हैं।
@ रवीन्द्र प्रभात जी:
धन्यवाद जी।
@ by the time one learns to live, he dies.
जवाब देंहटाएंयाद आ गया जी खुन्नुस फिल्म का गीत - शुरूआत में यही लाइन थी (हिन्दी में)
जीवन से जब मोह (ज्ञान नहीं - फिल्म थी न) हुआ तो आ पहुँची मरने की वेला ...
टूटे मोती जुडते नहीं हैं, बीते हुए पल मुडते नहीं हैं ...
@ दीपक सैनी:
जवाब देंहटाएंदीपक एक हाथ दूसरे हाथ को धोता है। गुड़गुड़ीबाज और सरकारी अमला, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। किस्सा पसंद आया तुम्हें, अच्छा लगा।
@ सतीश सक्सेना जी:
बड़े भाई, इन विरलों के दम पर ही दुनिया चल रही है। धारा के साथ तो बिना प्रयास किये भी बहा जा सकता है, हमारे सलाम तो उन्हें हैं जो धारा के विरुद्ध जाने का माद्दा रखें। आपकी शुभकामनाओं के लिये - ’नो थंक्यू’ :))(मेरा हक है उन पर)
@ ताऊ रामपुरिया:
मेहरबानी ताऊ।
रामराम।
@ अविनाश:
अपने पास तो यही है अविनाश, देखे जाने भुगते हुये अनुभव, यही पेले जायेंगे। अब हर कोई तो कवि नहीं हो सकता न:)
@ अदा जी:
एक बात कहूँ तो मानेंगी आप? वीडियो के लिये ये लिंक ढूंढा था
http://www.youtube.com/watch?v=bEq0tC3djcg फ़िर कुछ सोचकर ये गाना डाला, पोस्ट के ज्यादा करीब लगा था। अच्छा ही हुआ, आपकी माईंडरीडिंग के भी मुरीद हो गये हम।
वैसे ’बाई द वे’ मजाक बहुत करती हैं आप भी, ’हास्य-व्यंग्य-सम्राट’ और कोई नहीं मिला सुबह सुबह(हमारी सुबह):)
आभार बहुत सारा
@ ललित शर्मा जी:
जवाब देंहटाएंनिकालनी पड़ती है जी कभी कभी मजबूरी में, धन्यवाद पधारने का।
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
बहुत मेहनत का काम है सरजी:)
@ डॉ. हरदीप संधु:
शुक्रिया डाक्टर साहिबा।
@ रवि शंकर:
अनुज रवि, अकेले इस ताऊ पर न सही, लेकिन ऐसे विविध चरित्रों पर श्रृंखला लिखने का विचार तो है। अपन कविता-शायरी नहीं न कर पाते हैं, ऐसे ही पात्रों से परिचय करवाते रहेंगे और हाजिरी लगाते रहेंगे।
hum 2 din late kya hue.........bhai log kuch kahne
जवाब देंहटाएंko chora hi nahi......
lekin itna kahe vina raha nahi jata ... ati sundar
pranam.
जितनी मजेदार उतनी चुभती गुड़गु़ड़ी...
जवाब देंहटाएंये चरित्र अच्छा लगा. वैसे आजकल समाज में इसके उलटे चरित्र भी हैं. मेरे एक मित्र लेबर इंस्पेक्टर हैं. एक लाला ने उन्हें ऐसा फसाया की आजकल उन पर ही विजिलेंस केस चल रहा है और वो बेचारे लालाजी की शरण में हैं.
जवाब देंहटाएं"...जैसे महंगाई, भ्रष्टाचार पर जनता के बीच दबी दबी सी असंतोष की लहर भी चल रही है और बाकी सब काम चारा, अलकतरा, जाली स्टांप, कामनवैल्थ, स्पैक्ट्रम वगैरह वगैरह। कह गये न हमारे मनीषी ’चरैवेति चरैवेति’ माननी तो पड़ेगी ही उनकी, मन मारकर ही सही लेकिन the show must go on."
जवाब देंहटाएं:)
इटैलियन गुडगुडी सबसे ज्यादा २१०० रूपये भी ले गई और आगे की पूरियों का फ्री में जुगाड़ भी कर गई -वाह :)
@ स्मार्ट इंडियन:
जवाब देंहटाएंभैया, पहली बार इस फ़िल्म का नाम सुना और ये पंक्तियाँ भी। बहुत खूब..।
@ सञ्जय झा:
भाई लोग के जुलुम के खिलाफ़ एक पोस्ट लिखो नामराशि, बोल कि लब आजाद हैं तेरे:)
@ देवेन्द्र पाण्डेय:
एकदम सच्ची वाली घटना है जी।
@ विचार शून्य:
होता है बन्धु ऐसा भी, बहुत बार मुझे ऐसा लगता है कि हम सब जंगल में ही रह रहे हैं। दूसरे का शिकार नहीं करोगे तो वो तुम्हारा शिकार कर लेगा।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत":
सही हिसाब लगाया गोदियाल जी। इसके अलावा बाजार में रुतबा कायम किया सो अलग:)
नाम तो तब सुनते जब फिल्म पूरी बन पाई होती। म्यूज़िक पूरा हो गया था। आज एक ही कैसेट उपलब्ध है। अपने ही किसी सन्दूक में पड़ी होगी, दिल्ली या बरेली में
हटाएंकम्बख़्त इस लैपटॉप (बुरा मत मान यार,रुलाया तो है ही तूने) ने इतना रुलाया की पिछड़ गया बहुत. दो दिन से बेचारा, उस गुड़गुड़ी वाले के अंतिम समय वाली स्थिति में पड़ा था.. नंगा बदन टेबुल पर..मिस्त्री ने कहा मानसिक स्थिति ठीक नहीं है 48 घण्टे के बाद जवाब देगा..ख़ैर बंसी वाले की कृपा से जीवित मेरे गोद में लेटे हैं..
जवाब देंहटाएंये राग आलापने के चक्कर में यह तो कहना ही भूल गया कि आज की पोस्ट, एक अद्भुत चरित्र, और घटनाक्रम का वर्णन पढने के बाद, वही कहने को जी चाहता हि जो कभी ग़ालिब ने मोमिन से कहा था कि अपनी ये पोस्ट मेरे नाम कर दो संजय बाऊजी,बदले में मेरा सारा लिखा ले लो!!
मुफ़त का पैसा पचता नहीं है। गुड़गुड़ी वाले का अंतिम समय कष्ट में बीता, बीतना ही था।
जवाब देंहटाएंऐसे चरित्र चारों युगों में होते आए हैं।
आपकी लेखन शैली पाठकों को शुरू से अंत तक बांध कर रखती है।
तभी कहूं कि हमारे मुल्क में बात बात पे श्वेतपत्र निकालने पर जोर क्यों देते हैं :)
जवाब देंहटाएं@ चला बिहारी...:
जवाब देंहटाएंसलिल भैया, बहुत ज्यादा कह दिया आपने।
@ महेन्द्र वर्मा जी:
आभारी हूँ वर्मा जी आपका।
@ अली साहब:
दाग ऐसे हैं अली साहब, जितना श्वेतपत्र आते हैं,ये उतने और चमकते हैं।
hihi.....mindblowing character hai dost...kya baat hai....genius ;)
जवाब देंहटाएंसंजय जी,खूब रचा आपने गुडगुडी चरित्र.ऐसे चरित्रों का ही बोलबाला है आजकल.
जवाब देंहटाएंबैंक में बहुत काम है.मार्च में कम हाजिरी को ही ज़्यादा मान लें.
सलाम.
सुंदर धारा प्रवाह अति रोचक प्रस्तुति.होली की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.
रोचक और उत्कृष्त रचना । बधाई।
जवाब देंहटाएंसंजय जी
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आपके आने का मै बहुत बहुत आभारी हूँ.आपको और सभी ब्लोगर जन को होली की हार्दिक शुभकामनायें.
sanjay ji ,
जवाब देंहटाएंzabardast post. thaane aur kachahry ke bahar kai log aise mil jaayenge jo sahab ki dalali aur grahak ke bhayadohan se rozi-roti chala rahe hain.
@ saanjh:
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका।
@ sagebob:
अरे साहब, हम कौन रचने वाले? आप जैसों की कम हाजिरी का भी बहुत मान है, आभार।
@ Rakesh Kumar Ji:
धन्यवाद राकेश साहब, पधारने का भी और शुभकामनाओं का भी। आपके ब्लॉग पर जाकर बहुत अच्छा लगा और आभारी तो मैं हूं सर आपका।
@ निर्मला कपिला जी:
आशीर्वाद बना रहे आपका।
@ prkant:
प्रोफ़ैसर साहब.आज के युग के लिये ऐसे पात्र अवश्यंभावी भी हैं। प्रैक्टिकल लोग हम सबको पसंद भी आते हैं और कारगर भी ज्यादा हैं। ईमानदार किस्म के लोग जब किस्से कहानियों से बाहर आ जायें तो बहुत परेशान करते हैं:))
संजय जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. लाला जी को क्या प्यार से थपकी मिली........... काबिलेतारीफ.
होली के शुभ अवसर पर आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.मेरे ब्लॉग'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपके आने का बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंआप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।
जवाब देंहटाएं’होलिका वध’ शुभ हो!
जवाब देंहटाएं’मदनोत्सव’और रंगपर्व की सभी को बधाई!
Hally Hoppy!
होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
जवाब देंहटाएंआइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
संजय जी होली के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को होली की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहोली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएं