1. हमारे बैंक में एक कंपनी का एकाऊंट था, जिनकी लगभग रोज बैंक से अच्छी खासी ट्रांसैक्शन्स होती थीं। कैश के अलावा दूसरे छोटेमोटे कामों के लिये वहाँ की एक महिला कर्मचारी जो वृद्ध हो चुकी थीं, रोज बैंक आती थीं। उस कंपनी में कभी उनके पति काम करते थे और उसकी मृत्यु के बाद कंपनी वालों ने इन महिला को नौकरी दे दी थी। खैर, रोज आने जाने के कारण सभी बैंककर्मियों से वो खासी परिचित थीं और महिला कर्मचारियों से प्राय: घरेलु विषयों पर उनकी बातचीत चलती रहती थी। एक दिन कुछ बात चल रही थी और उनके मुँह से बेसाख्ता निकला, "रांड तो रंडापा काट ले, पर रंडुये नहीं काटने देते" है तो यह एक साधारण सा मुहावरा, लेकिन हमारा खास भोला ये सुनकर एकदम से ताव में आकर बोला, "माताजी, तुस्सी सान्नूं दस्सो, त्वानूं कौन तंग करदा है? असी देख लांगे उस स्साले नूं(माताजी, तुम हमें बताओ कि तुम्हें कौन तंग करता है? उस साले को मैं देखता हूँ।") उसके बाद थोड़ा बहुत मरण जोगा, नासपीटा, बेशर्म, बेवकूफ़ टाईप का धूल-धक्खड़ उड़ा और आखिर में माताजी और दूसरी नारियों को समझाया गया कि शब्द न देखें बल्कि भाव देखें(समझाने वालों में हम शामिल नहीं थे, हमें तो पता था कि भोला द ग्रेट को इस मुहावरे के बारे में पता ही नहीं होगा)। बाद में भोला को जब यही बात याद दिलाई जाती तो वो वही मुहावरा हमें सुना दिया करता कि रांड तो रंडापा......। कहता था कि वो तो भलाई करना चाहता है लेकिन कोई करने ही नहीं देता।
निष्कर्ष - रांतोरंकाले, परंनकादे।
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2. पच्चीस तीस साल पहले की बात है, चुनाव की गिनती हो रही थी। EVM का नहीं, ढोल बक्से वाला टाईम था। पहले दौर की गिनती चल रही थी, अंदर से खबर आई कि भैयाजी कुछ हजार वोटों से पीछे चल रहे हैं। कार्यकर्ताओं के चेहरे पर उत्तेजना के भाव आ रहे थे और भैयाजी वहीं दरी पर आराम से लेटे हुये थे। कुछ समय बाद अंदर से खबर आई, पहले से भी ज्यादा वोटों से पिछड़ रहे हैं और अंतर बढ़ता जा रहा है। कार्यकर्ताओं का रक्तचाप, उम्मीदें बढ़ घट रही थी और दरी पर देखा तो भैयाजी नदारद।? एक नजदीक से जानने वाला था, बोला, "मैं देखकर आता हूँ।" स्कूल के पीछे एक पार्क था, जैसा कि इसने अंदाजा लगाया था नेताजी ठाठ से घास पर सो रहे थे। घबराये हुये चेले ने उन्हें उठाया और ताजा जानकारी देते हुये डरते डरते कहा कि लगता है अपनी हार होगी और आप हैं वहाँ से गायब हो गये। भैयाजी ने पूछा, "फ़लां इलाके की पेटियाँ खुल गईं क्या?" बताया गया कि उनका नंबर तो सबसे बाद में आयेगा। वो बोले, "फ़िर मुझे बार बार जगाने की जरूरत नहीं, एक बार ही आना अब ढोल बाजों के साथ। अपना होमवर्क पूरा है, मुझे सोने दे।" और आखिर में उस इलाके की पेटियाँ खुलीं तो वही हुआ। होमवर्क पूरा था और नेताजी को इस पर और खुद पर यकीन था।
निष्कर्ष - होमवर्क पूरा हो तो चैन से सो\जाग सकते हैं।
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अब बात अपनी, फ़िल्म चाँदनी में एक गाना था जिसके बोल थे कि मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गई, उसी तर्ज पर ’मेरे नाई से आज मेरी जंग हो गई’ मूड बड़ा ऑफ़ है :( इस नाई भाई ने मेरे साथ कितने ही जुलम किये हों, मैंने कभी उफ़्फ़ तक न की। हजामत कराने जाता था और वो मालिश, पालिश सब चीज के पैसे झाड़ लेता रहा और आज जब उससे मेरी दाढ़ी से तिनके निकालने की बात की तो तिनका-विनका निकाला नहीं। अब वो कहता था कि फ़ीस लगेगी, कुछ निकला नहीं तो उसका क्या कुसूर? मैं कहता रहा कि उसने निकाला नहीं, फ़ीस काहे बात की? वो दावा करता है कि वो सही है और तिनका नहीं है, मैं कहता रहा कि वो कामचोर है, तिनका तो है और जरूर है।
लगता है बतानी ही पड़ेगी सारी कहानी(हमारी सारी भी हमारी तरह आधी अधूरी ही होगी)। कुछ दिन पहले किसी ने मेल में फ़ीमेलों को बड़ी जागरूक करती अपनी एक पोस्ट का लिंक भेजा। कमेंट ऑप्शन नहीं था तो कमेंट नहीं कर पाया। पोस्ट का लिंक मैं इसलिये नहीं दे रहा क्यूंकि लेखक एक बहुडिग्रीधारी, मल्टीप्रोफ़ैशनल, हरफ़नमौला, क्लास-कांशियस और पता नहीं क्या-क्या है और हम जैसे मिडिल क्लास के साधारण से बंदे के ब्लॉग पर लिंक दिये जाने से कहीं उनकी क्लास न हिल जाये:) या फ़िर जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है कि लोग मशहूर होने के लिये पहले से ही मशहूर लोगों के साथ अपनी इंटीमेसी दिखाकर मशहूर होना चाहते हैं, मुझे डर लगा कि मैं कहीं मशहूर न बन जाऊं..:) पोस्ट पढ़ने के बाद से ही दाढ़ी में तिनका वाली सनक शुरू हुई है।
उस पोस्ट में साईकोलोजिकल, इमोशनल, सैक्सुअल, फ़ाईनैंशियल और बहुत से मुद्दे उठाये\गिराये गये हैं, उससे कोई दिक्कत नहीं। अपने पेट में दर्द(अहा! मीठी-मीठी) इसलिये उठी है कि उस पोस्ट का लिंक हमें भेजा गया है। कोई दुख नहीं, कोई नाराजगी नहीं, है तो सिर्फ़ एक जिज्ञासा कि इस पार्टिकुलर लिंक के द्वारा श्रीमान जी ने मुझे क्या संदेश देना चाहा होगा क्योंकि अमूमन ऐसा नहीं ही करते । महिलाओं को बरगलाने वाले पुरुषों के जो लक्षण दिये गये हैं, उनमें से एकाध तो हम पर लागू होता ही है मसलन देर रात नैट पर सक्रिय होना। अगर हमें टार्गेट करके वो पोस्ट लिखी गई है तो भी कोई समस्या नहीं है क्योंकि हम तो अपेक्षा इस से बहुत ज्यादा की करते हैं:) जैसे मैं यह पोस्ट लिखकर इसका लिंक संबंधित जगह पर भेजूँगा, और मेरे लिये यह पहली बार है और शायद आखिरी भी। और अगर छेड़छाड़ ही थी तो हम भी थोड़ी बहुत कर ही लेते हैं:) वैसे इस बात पर एक चुटकुला भी याद आ गया कि एक सत्तर साल का आदमी एक मशहूर वकील के पास गया और बताया कि उस पर रेप का मुकदमा शुरू हो रहा है और वो चाहता है कि चाहे जैसे हो, चार्ज साबित हो जाये:)
बहुत समय हुआ, अपने को यहाँ बुरा लगना बंद हो चुका है। इतना तो समझता ही हूँ कि दुनिया में हर तरह के लोग हैं और कोई भी सबके लिये एक सा नहीं हो सकता। किसी सीधे, सच्चे इंसान से वास्ता पड़ जाता है तो सिर्फ़ अच्छा लगता है और दिल से अच्छा लगता है। और इस मामले में मैं बहुत किस्मत वाला रहा हूँ कि हमेशा से अच्छे लोगों से वास्ता पड़ता ही रहा है।
अच्छे भले कई दिन गुजर गये थे कि आते थे, पढ़ते थे, कहीं मन किया तो टिपिया देते थे। न ऊधो से लेना, न माधो का देना। बैठे ठाले फ़िर से बेगार शुरू करवा कर ही माने। सारांश 1 यहाँ लागू हो सकता है वैसे:)
रिश्ते बनाने का/बनाये रखने का मुझे शौक नहीं, टूट रहे हों तो टूटने देता हूँ। ये पोस्ट पढ़ते समय किसी को ऐसा लगे कि बंदा दुखी है या परेशान है तो ये लिखने की कमी। रिदम सिर्फ़ संगीत में ही तो नहीं होता:) हम एकदम से खुश हैं और इस पोस्ट के बाद अगर कुछ नई डेवलपमेंट्स होती हैं तो उसके लिये भी तैयार, क्योंकि होमवर्क पूरा है:)
लिखते लिखाते, छपते छापते वही टाईम हो गया:) आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सब जागरूक हो गये होंगे, महिलायें तो विशेष रूप से:) वैसे बाई द वे, जाग कर रुकना ही है तो जागा ही क्यूँ जाए? न आये कोई सा\सी कमेंट करने, अपने पास एक वो तो है ही अपनी परमानेंट वाली .....
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देखी जायेगी:)
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जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका है जी, अभी तो ये गुत्थी सुलझे कि developed counties के एडवांस ब्लॉगर्स की टिप्पणियां भी एडवांस में, पहले तो ऐसा नहीं होता था:)
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंमजा आ गया दोस्त। खूब दिल खोलकर लिख डाला।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया लोकेंद्र जी।
हटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंफ़िक्र नहीं....
होमवर्क पूरा है!
हा हा हा....
आशीष
--
द डर्टी पिक्चर!!!
ओये मि.सीएआईआईबी, फ़िक्र नहीं है इसीलिए तो जिक्र है।
हटाएंनेताजी लोग होमवर्क पूरा करने में दक्ष थे। पर अब चुनाव आयोग उन्हे होमवर्क ठीक से करने नहीं देता। उसके चलते चुनाव की रंगत ही खतम हो गयी है।
जवाब देंहटाएंन बैण्ड बाजा, न बूथ कैप्चरिंग, न बैनर न पोस्टर --- चुनाव सदी खिचड़ी जैसे हो गये हैं, जिसमें नमक भी कम हो और बाकी मसाले नदारद! :-)
बात तो ठीक है, लेकिन उन नेताजी ने इलाके विशेष में काम ही इतना कर रखा था कि चुनाव आयोग रहता भी तो कोई बांदा नहीं था।
हटाएं# पहली बात तो समझ में आई, लेकिन निष्कर्ष-रांतोरंकाले, परंनकादे?
जवाब देंहटाएं# दूसरी के लिए दो बातें- जो हमें करना था हमने कर लिया, जो उसे करना है, उसे करने दो और जुआ हो या चुनाव, दांव तभी लगे, जब जीतने की उम्मीद से ज्यादा हारने का माद्दा हो.
# तीसरी तो फिर वही गति, वही दिशा, उसी धार वाली, समूची जानदार.
चूँकि सीख आपके दूसरे प्वाईंट में है, तो उसी पर ध्यान ज्यादा रहेगा।
हटाएंजाग जाग ,रूक रूक, सुन सुन ......
जवाब देंहटाएंजाग जाग ,रूक रूक, सुन सुन ......
हटाएंअच्छी अच्छी बातें चुन......
है न? जानता हूँ आपको।
आनन्दम आनन्दम...वाह...वाकई आनन्द आ गया!!
जवाब देंहटाएंआपके आनन्द से हमें सांत्वना मिली सरजी।
हटाएंअपनी पोस्ट पढ़वाने के लिए लिंक देना पड़े तो बात क्लास कांशियसनेस की ही साबित हुई :)
जवाब देंहटाएंजनानियों की सावधानियों वाला निबंध आपको भी भेजा गया :)
यूं तो आपने तीन गिना नहीं पर मुझे लगा कि एक और दो भी तीन पर चस्पा करके पढ़े जा सकते हैं , बस नम्बर एक के मुहावरे को पलटने की दरकार है :)
आखिर में एक सवाल, जिसकी लिंक आपने दी नहीं और जो आपको जनानखानानुमा रिपोर्टिंग की लिंक देकर अपनी क्लास में शामिल कर रहा है ये बन्दा है कौन ? :)
kshma ali sa, ye naye tanta me comment karne ka fanda nahi mil raha .... baraste aapke apse poori tarah sahmat hote hue.....
हटाएंaap log ke sarparasti se itna to sikh hi chuke......idhar-udhar ka mal le futkar dukan chala loon....yse kai adhatiye bhi isme lage hue hain....
khair, aap to bas apne moulik-rang me rahen mast-vindas....
bhale hi der aayad but durust aayad....achhi kavayad....
rapchik cha tapchik jaisa....
pranam.
सही है हुज़ूर,
हटाएं’आपको भी’ के बाद आप ही सवाल पूछें तो मजा तो आना ही बनता है:)
देखा नामराशि, पहले अली साहब हमारे तुम्हारे लिये पुल बने और फ़िर उन्हें जवाब दे रहा था तो बजरिये हमनाम जाना पड़ा:)
हटाएंहम लिखें न लिखें, दिखें न दिखें पर रंग यही रहेगा - चढ़े न दूजो रंग ब्रांड है अपना।
@ मो सम कौन वाले संजय जी :)
हटाएंआपको भी में , मैं शामिल नहीं हूं भाई , मेरे कुछ मित्रों को लिंक मिला था पर वे भी जबाब के मामले आपकी तरह से कन्नी काट गये :)
@ झा सम कौन वाले संजय जी :)
आप और आपके नामराशि के दरम्यान संबोधनात्मक भेदभाव करना बड़ा मुश्किल हो चला है :)
देर आये, लेकिन बिलकुल दुरुस्त आये,,, ;)
जवाब देंहटाएंदेरी का तो क्या करें जी, बस एक ही सफ़ाई है - मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है।
हटाएंऔरों के बारे में कह नहीं सकते लेकिन अगर आपकी पोस्ट का लिंक ईमेल में मिले तो लोग पढने के लिये ज़रूर दौड़ते हुए आयेंगे|
जवाब देंहटाएंआप कहते हैं तो मान ही लेना चाहिये, कर देखते हैं कुछ ऐसा ही जुगाड़ हम भी।
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिल्पा जी।
हटाएंशुक्रिया तो आपका संजय जी :) मुझे आपकी यह कला / method बहुत अच्छी लगी - पहले छोटी सी कहानी , फिर उससे सम्बंधित कोई बात | :)
हटाएं:)
हटाएंपहले और दूसरे मुद्दे पर ही रूक जाना बेहतर होगा आज तो ☺☺☺
जवाब देंहटाएंजैसा ठीक लगे काजल भाई।
हटाएंहोमवर्क ऐसे ही पूरा बना रहे, अपना भी..
जवाब देंहटाएंआप तो पहले से ही परफ़ैक्ट हैं जी, प्रवीण पाण्डेय ’परफ़ैक्ट’
हटाएंखुशामदीद...ब्रेक के बाद!!
जवाब देंहटाएंथैंक्यू त्यागी सर।
हटाएंBahut badhiya likha hai...teeno mudde!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ और आपके शीघ्र स्वास्थ्यलाभ की कामना करता हूँ।
हटाएंइस बार लेखन में नया प्रयोग किया है। रांतोरंकाले, परंनकादे। इसका अर्थ समझ नहीं आया।
जवाब देंहटाएंएक बार पहले भी ऐसा प्रयोग ’पड़ौसी ही पड़ौसी के काम आता है’ पोस्ट में किया था, चलेबुल दिखा था। जो समझ नहीं आया, उसका स्पष्टीकरण आपको भेज दिया है।
हटाएंपूरा पोस्ट पढ़ मारा, पर फत्तू तो मिला ही नहीं!
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफी है ये!
या वो भी मल्टीडामेंशन पर्सनाल्टी वाला हो गया है?
:)
फ़त्तू भी लगता है कि सेलिब्रिटी से कम नहीं:)
हटाएंआज तो शुक्रिया कहना बनता है मेरा।
जवाब देंहटाएंपोस्ट तो खैर, सीख, समझा, गुना जाएगा। :)
शुक्रिया तो मुझे कहना चाहिये भाई,.... और पोडकास्ट लगाने के लिए भी शुक्रिया।
हटाएंरिश्ते वे ही टूटते हैं जो अपने नहीं होते ...इसलिये जो रिश्ते टूट रहे हैं उन्हें टूटने देने में ही भलायी है...... किसी को बांधकर नहीं रखा जा सकता ....
जवाब देंहटाएंवैसे रिश्तों के लिये ही ऐसा लिखा था डाक्टर साहब।
हटाएंजिलेबी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंजिलेबी जैसी सीधी न कविवर? :)
हटाएंघुमावदार, मीठी मीठी।
हटाएंNaman Hukum !
जवाब देंहटाएंye namakool blogspot humen comment tipne hi nahi de raha tha subah se ....par hum bhi aapke anuj thahare..teep ke hi maane abki :)
waise kuchh kahane ko tha nahi.............. Shukriya ke siva. Hum aapko bahut miss kar rahe the... n still missing फत्तू !!
shesh to takatak hi hai :P :P
शुक्रिया रवि, जानता हूँ जो ठान लिया करके ही मानोगे:)
हटाएंसंजय बाउजी!
जवाब देंहटाएंअपने होमवर्क वाले नोट्स मुझे भी भेज दीजियेगा.. मेरे भी काम आयेंगे.. क्योंकि दो-चार शर्तें मुझपर भी लागू होती हैं और शायद मेरी दाढी में भी वो तिनका टाइप का टुकड़ा अब दिखाई देने लगा है.. क्योंकि आपपर जितनी बातें लागू होती हैं उससे एक ज़्यादा बात मुझपर लागू होती है!! इसलिए अब तो मुझे भी आपके नोट्स शेयर करने पड़ेंगे..
हमपेशा हैं आपके, इसलिए मिडिल क्लास के ही हुए!!
शोले का सीन याद रखियेगा..!!
’गोली किसकी और गहने किसके?’ हुकम करना आप तो।
हटाएं’शोले’, ’नमक हराम’ सब सीन याद हैं जी:)
बाऊजी, सारी कसर पूरी कर दी आज आपने
जवाब देंहटाएंआपकी शागिर्दी में भी भोला भी निरा भोला रह गया
आपका होमवर्क कदे अधूरा नहीं होता वा बात अलग है कि आपकी सारी नै भी हम अधूरी ए समझते रहंगें
रिश्ते बनते हैं तो बनने दो और जो ज्यागा उसनै कित बांध कै राखोगे
छोडो इब आपकी बात सही है .........देखी ज्यागी
प्रणाम तै ले ल्यो
सार्थक पोस्ट, आभार.
हटाएंमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.
@ अन्तर सोहिल:
हटाएंभोला कितना भोला है, ये मेरे दिल से पूछो तुम:)
शागिर्द नहीं संगी साथी रहा है अपना।
और बांधण आली बात ठीक कही, कौन किसी को बांध सका है..
म्हारा भी प्रणाम पहुंचे भाई तक।
@ शुक्ला जी:
धन्यवाद सर, हाजिर होते हैं जरूर।
aaderneey bhai saheb...aapki rachnayein padheein..logon ke comment aaur aapke shandaar pratutar bhee padhe..kuch samjha kuch nahi samjha..main tho aapke lekhan shaili aaur maulikta ka premi hhoo to jee bhar lutf uthaya..aaj bahut dino baad aapko padhne ka mauka mila..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंडाक्टर आशुतोष जी,
हटाएंआप सरीखे विद्वजनों का आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ, आपके प्रेम के लायक बने रह सका तो प्रसन्नता होगी।
बहुत दिनों के बाद मुलाकात हो रही है। वैसे,मुलाकात होना य न होना बाइनरी आपरेशन है।
जवाब देंहटाएंसुखद रहा आपको पढ़ना।
वर्मा साहब, ठीक कहा आपने। छोटों की चूक को बड़े नजर अंदाज करते हैं तो ये उनका बड़प्पन ही है, और आप सच में बड़े हैं। आपका पधारना मेरे लिये भी सुखद रहा, धन्यवाद।
हटाएं"बहुत समय हुआ, अपने को यहाँ बुरा लगना बंद हो चुका है।"
जवाब देंहटाएं@ बैक से वास्ता है ना आपका..... इसलिए तो...
धन-दौलत के बीच अधिकांश समय गुजरता है... शायद इसलिए भी... बुरा लगने वाले तंतु सक्रीय नहीं रहे. :)
ठीक वैसे ही जैसे .... सत्ता पक्ष के शीर्षस्थ लोग .... लाख आलोचनाओं के बाद भी बुरा नहीं मानते. मनमोहन जी को चाहे जितना भी जलील कर लो फरक ही नहीं पढता.. २जी के उस्ताद और श्यामधन जमाकर्ताओं ने बुरा मानना ही छोड़ दिया है ... :)
मुझे लगता है धन के इर्द-गिर्द रहने वाले चाहें जिस भी नियत के हों कुछ संवेदनाएं खो बैठते हैं....
— कंजूस को जितना भी शर्मिन्दा करो ... अपना स्वभाव नहीं बदलता.
— लुटेरे को जितना भी उपदेश करो .... व्यर्थ जाता है.
— फ़िज़ूलखर्च करने वाला .... आसानी से नहीं सुधरता.
अंत में आपको याद दिला दूँ कि ....... बहुत समय से आपको बुरा लगना बंद हो चुका है. :)
पढता = पड़ता
हटाएं@ अंत में आपको याद दिला दूँ कि ....... बहुत समय से आपको बुरा लगना बंद हो चुका है. :)
हटाएंइसे कहते हैं ’मियाँ की जूती मियाँ के सर’ :) बैंक से बहर होने पर भी अब पता नहीं तंतु सक्रीय\सक्रिय होंगे भी कि नहीं :(
हा हा। हम आपके फैन हैं। पूरे होमवर्क के साथ :)
जवाब देंहटाएंहम भी आपके फ़ैन\कूलर\एसी सब हैं जी:)
हटाएंपहला प्रसंग समझ में आ गया मगर ये दूसरा वाला कमेन्ट लिंक का चक्कर समझ नहीं आया..
जवाब देंहटाएंमेरा होमवर्क शायद पूरा नहीं है..
फ़िर से पढना होगा।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति रोचक लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाई संजय जी!
जवाब देंहटाएंदिल तो कर रहा कि लिखूँ "बहुत अच्छे, शानदार लेख, शानदार प्रस्तुति" पर क्या करूँ मनाही है!
मेरी गति भी भाई आशूतोष जैसी है,’link’ की "लिन्क" से connect नहीं हो पाया!
_रांतोरंकाले, परंनकादे।
चकाचक है! आपका भी होमवर्क पूरा है! :)
जवाब देंहटाएंलेखक एक बहुडिग्रीधारी, मल्टीप्रोफ़ैशनल, हरफ़नमौला, क्लास-कांशियस और पता नहीं क्या-क्या है और हम जैसे मिडिल क्लास के साधारण से बंदे के ब्लॉग पर लिंक दिये जाने से कहीं उनकी क्लास न हिल जाये:) या फ़िर जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है कि लोग मशहूर होने के लिये पहले से ही मशहूर लोगों के साथ अपनी इंटीमेसी दिखाकर मशहूर होना चाहते हैं, मुझे डर लगा कि मैं कहीं मशहूर न बन जाऊं..:)
जवाब देंहटाएंlink mil jaata to ham kuch gyanarjan karlete...
jai baba banaras...
Adbhut lekhan shailee koi saanee nahee .
जवाब देंहटाएंहोमवर्क जिसका पूरा हो उसे डर कैसा । नाई को तो तिनका मिला ही नही होगा उसकी सत्यता पर विश्वास करने को मन होता है ।
जवाब देंहटाएं