बुधवार, अप्रैल 25, 2012

कीमत चुकता....

मैंने सीताफल बाईक की डिक्की में रखा और उसे बीस का नोट दिया। उसने नोट को अपनी जेब में डाला और उसके बाद उसी हाथ से  दूसरी तरफ की जेब में से एक का सिक्का निकालने की कोशिश करने लगा। दूसरा हाथ कोहनी के  ऊपर से ही कटा हुआ था। उसका  हाथ को घुमाकर दूरी तरफ ले जाना, फिर जेब से सिक्के को खोजना, वो कुछ पल भी मुझे बहुत भारी लग रहे थे । पता नहीं, तब  मुझे अपना वक्त बहुत कीमती लगता था या फिर एक रुपया छोड़ देने से खुद को हातिमताई की श्रेणी में लाने का मौका नहीं चूकना चाह रहा था, मैंने बाईक को किक्क लगाई और उसे कहा, "रहने दे यार, नहीं है तो कोई बात नहीं।"  देखा है फिल्मों में हीरो  को ऑटो वाले से  कहते हुए, 'कीप द चेंज'  तो एक रुपये में हीरोगिरी सस्ती ही लगी होगी:)   बाईक स्टार्ट होते न होते वो अपनी ठेली का चक्कर लगाकर दौड़ता हुआ मेरे सामने आ खड़ा हुआ और अपनी कटी हुई बाजू मेरी आँखों के सामने लहरा कर कहने लगा, "न बाऊजी, पिछले पता नहीं कौन से जनम के किस पाप की कीमत पहले ही चुका रहा हूँ, अब और नहीं।"  मेरी बाईक बंद हो गयी, एक रुपया वापिस लिया उससे और उसके बाद मैं जब तक उस शहर में रहा, सब्जी खरीदने जाने पर अपना पहला पड़ाव वही ठेली होती थी।

ये किस्सा तो अभी दो तीन साल ही पुराना है, और पीछे चलेंगे?  बैंक ज्वाइन ही किया था, चार दोस्त एक मकान में और एक अन्य दोस्त, जिसे हम राजा कहकर बुलाते थे, ने उसी गली में किसी दुसरे मकान में कमरा किराए पर लिया था। साथ नहीं रहा क्योंकि  उसकी  एलएलबी की परीक्षा होनी थी और साफ़ कहता था,          "तुम्हारे साथ रहने में मजा तो बहुत आएगा लेकिन इस मजे के लिए एलएलबी की कीमत बहुत ज्यादा है, रिस्क नहीं लेना।"

चार पांच महीने हो गए थे ऐसे ही  रहते रहते और जब शाम को घर लौटते तो उसकी जिद होती थी कि पहले मेरे रूम में चलो। प्रलोभन देता था कि जाते ही मकान   मालिक के बच्चे फ्रिज से बर्फ  निकालकर ले आते हैं और ठंडा पानी पीने को मिल जाता है जबकि हम लोगों के डेरे पर बहुत हद हुयी तो मटके का पानी और कभी कभी वो भी नहीं मिलता था। खैर, हम तो ठहरे 'शीततापे समेकृत्वा .....' वाले लेकिन बहुमत का सम्मान करना  ही पड़ता था। जाते ही वही  सब होता जो राजा बताता  था और उस समय उसके चेहरे पर सच में राजसी चमक आ जाती थी। 
इस कथा के साथ एक और कथा चल रही थी,  राजा रोज जब शाम का खाना बनाता था तो मकान मालिक के तीनों बच्चे एक एक करके    उसकी पाक कला की प्रैक्टिकल समीक्षा   करने के लिए आ जाते थे। शुरू में कुछ दिन  तो राजा को अच्छा लगा, तारीफ़ सुननी अच्छी लगती  ही है,  लेकिन जब ये रोज का रूटीन बन गया और खुद उसके लिए सब्जी का टोटा पड़ने लगा तो एक दिन हमारे सामने ही उसने उन बच्चों को डांट दिया कि मैं अकेला आदमी अपने लिए खाना बनाता हूँ और तुम लोगों के चक्कर में मेरे खुद के लिए सब्जी नहीं बचती है तो अमर, अकबर एंथोनी में से शायद दूसरे नंबर वाला था वो भड़क गया और कमर पर हाथ रखकर बोला, "और जो रोज हम बरफ ला कर देते हैं, बाजार से लानी पड़े तो उसकी कीमत कम से कम रोज की दो रूपया तो होगी ही, उसका क्या?" राजा बच्चे की बात सुनकर खिसियाया या गुस्साया लेकिन हमने ये राज पाया कि 'कीमत हर शै की चुकानी पड़ती है।'

अमीर को अपनी अमीरी की,  मशहूर को मशहूरी की, जिम्मेदार को अपनी जिम्मेदारी की, भले को अपनी भलाई की, गरज ये कि  सबको अपने विशिष्ट  होने की कीमत चुकानी ही पड़ती है। कोई इसे टैक्स के रूप में चुकाए या रंगदारी के रूप में,  हंसकर चुकाए या रोकर चुकाए, इससे छुटकारा नहीं है। सच बोलने वाले को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, प्रेम करने वालों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, सोये हुओं को जगाने वाले भी इसकी कीमत चुकाते हैं और भूल से नकटों के गाँव में कोई नाक वाला आ जाए तो उसे भी अपनी नाक कटवा कर कीमत चुकानी पड़ती है।  अच्छी बात ये है कि कीमत चुकाने के बाद  खुद को बहुत हल्का महसूस होता होगा,  ऐसा मेरा अनुमान है।

कीमत की बात करेंगे तो इतिहास उठाकर देख लीजिये, सिर्फ जबान की कीमत चुकाने में कई साम्राज्य मिट्टी में मिल गए  लेकिन कीर्ति अमिट कर  गए  और ऐसे भी उदाहरण मिलेंगे कि वफ़ा की  कीमत वसूलने के चक्कर में पुरखों की यशोगाथा मिट्टी में मिला दी| किसी ने जहर का प्याला पी लिया तो कोई सलीब पर चढ़ गया| कोई जलती चिताओं पर बैठ गए और किसी ने  सर कलम करवाना मंजूर किया लेकिन    अपनी जिम्मेदारी की कीमत चुकाई|   

ऐसा भी  नहीं है कि कीमत सिर्फ मशहूर, जिम्मेदार और भलों को ही चुकानी पड़ती है, इससे कोई नहीं बच सकता।  ये प्रकृति का नियम है,  और प्रकृति के नियम समझ आते हो या नहीं  लेकिन लागू सब पर होते हैं, चाहे कोई किसी धर्म का हो या  किसी जाति का, किसी भी लिंग का हो या किसी भी वर्ग का हो, अपने किये की कीमत सबको चुकानी ही पड़ेगी|  इसका ये मतलब नहीं कि कुछ किया ही न जाए, हो सके तो अच्छा किया जाए और बिना अपेक्षा के किया जाए|  फिर जो लिखा है, सो तो होना ही hai

बहुत दिन हो गए कोई होमवर्क नहीं दिया हमने, आज पूछते हैं एक  आसान सा सवाल - लोहे को भी सोना कर देने वाले पारस को पदार्थ के मूल स्वभाव  के साथ छेड़छाड़ करने की कीमत  चुकानी पड़ती होगी क्या? 
विकल्प एक - हाँ.  
विकल्प दो   -  नहीं.

आज हम छुट्टी पर  थे, छुट्टी की कीमत चुका दी|  लिख मारा ये हितोपदेश, ब्लोगोपदेश वगैरह वगैरह| अब आप सब सुधीजन सोचिए कि इस आलेख की कीमत कैसे चुकायेंगे, हम क्या अपने मुंह से कहेंगे कि सहमति, असहमति, घोर असहमति, घनघोर असहमति  जरूर करना?   समझते नहीं हैं  यार !!!

:) फत्तू  ड्रग कंपनी में एरिया मैनेजर बन गया। एक नया मेडिकल प्रतिनिधि रखा जो दूसरे दिन ही पीं बोल गया। आकर रोना रोने लगा कि दुकानदार बेइज्जती   कर देते हैं। फत्तू ने उसे दिलासा देना शुरू किया, "देख दोस्त, मैंने भी शुरुआत तेरे वाली पोस्ट से की थी और  दिक्कत बहुत आई थी मुझे भी। मैं मार्केटिंग के लिए जाता था, लोगों ने मुझे धक्के देकर दूकान से निकाल दिया, गालियाँ दी, मेरा बैग उठाकर बाहर फेंक दिया, लेकिन धंधे की कसम 'बेइज्जती' किसी ने नहीं की।
बेइज्जतीप्रूफ होना बहुत बड़ी नेमत है।
               
आज गाना दिखाते हैं आपको सिंपल सा,
                                                 

81 टिप्‍पणियां:

  1. सोच रहा हूँ सहमत हो लूँ.....फिर सोचता हूँ उसकी कीमत वीमत क्या होगी तो कुछ समझ ही नहीं आई। अंत में यही सोचा कि थोड़ा आप सोचो थोड़ा मैं.....जो कीमत होगी आधा आधा बांट लेंगे इसमें ज्यादा क्या सोचना :)

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    1. काये कू दिमाग वाला काम करना भिडू, खुदै रख लो सारा :)

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  2. समाज के कारोबार में हिसाब की बारीकी सतह पर आ जाने पर सद्भाव में छिपी विसंगति रेखांकित हो जाती है.

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  3. जटिल प्रश्न है। अपन तो रोज़ कुआँ खोदकर रोज़ पानी पीने वाले हैं।

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  4. सौ प्रतिशत सही .........कीमत वसूल हुई......!!

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  5. भाई आज तो माहौल ही बदला हुआ है।

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    1. आँख में कुछ चुभ गया है यार, तो सब बदल गया लगता है मुझे भी :)

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  6. हि‍तोपदेश तो फत्‍तू का भी कड़ा कॉंटे का रहा ☺

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  7. एक रूपये ने किया, असरदार इक काम ।
    ग्राहक पक्का हो गया, ठेले तुझे सलाम ।।

    बात पते की कह गए, बालक सब्जी खोर ।
    ठंडा पानी पी करो, राजा भैया गौर ।।

    पारस तो निर्लिप्त हो, करे काम चुपचाप ।
    बढ़ें भाव जिस पिंड के, रास्ता लेवें नाप ।।

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  8. हम भी लेखन की दिहाड़ी कर रहे हैं, पोस्ट के दिन के पहले लिखने बैठते हैं तब कहीं जाकर गुजारा हो रहा है।

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  9. बेइज्ज़ती बहुत आवश्यक हो तो कम से कम इज्ज़त से करें ....
    शुभकामनायें आपको !

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  10. सबसे पहले पढ़ने की कीमत लो भाई, यानी ये टिप्पणी। अब पढ़ने का कर्म किया है तो फल तो भोगना ही पड़ेगा न, त्यागी हैं तो क्या हुआ... पर यकीन मानिए यह भोग हमारे लिए राजभोग जैसा है!!

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    1. त्यागियों का भोगफल तो जल थल सब जगह सफल है त्यागी सर, शुक्रिया

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  11. सुन्दर हितोपदेश. पारस को भी कीमत चुकानी ही होगी. लोहे को सोना बनाने की प्रक्रिया में पारस का इनपुट तो ह्रास ही है.

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. म्ह़ारा सैल्यूट लगे जी, जोर से| हाँ नहीं तो..!!

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  13. ye-elow.....ka-lo baat.....ib post ki kimat to tip se hi chukta hoyega......

    bakiya idea pancham da' ka majedar hai sochta hoon 'adhi-adhi' me
    faida nai to to nuksan bhi nai hai.....dekhta hoon 'unke' saath
    kya deel hota hai....

    pata nahi aapke pichle post ke baad 'gale me akran si aa rahi hai'

    mast post ke liye abahr.

    pranam.

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    1. अकड़न, वो क्यूँ भाई नामराशी? पिछली पोस्ट तो मैंने भी बहुत आनंद में लिखी थी| मसाज करवा लेना, कीमत हमसे वसूल लेना:)

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    2. O masaj-wasaj ke liye nai na....o apse gale mil ke hi door
      hoyegi.....????

      pranam.

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    3. ये ब्बात, मुझे हर बात दो तीन दिन के बाद क्यूं समझ आती है यार?
      मेरी भी गर्दन, छाती में अकडन हो रही है फिर तो:)

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. sanjay jee ke uper lagata hai ki baba logo ka asar aa raha hai tabhi

    लिख मारा ये हितोपदेश, ब्लोगोपदेश वगैरह वगैरह| ....jo bhee hai theek likha hai...

    jai baba banaras...

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  16. अपन तो लालाजी के मुनिम है और पिछले 17 वर्षों का अनुभव रहा है कि साल बीतते-बीतते चिट्ठा बराबर करना पडता है। और इतनी ही आस्तिकता भीतर बची है कि परमात्मा या प्रकृति नाम की कोई चिडिया है जो सबका बैलेंस बराबर जरुर कर देती है :)

    प्रणाम

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    1. @ प्रकृति नाम की कोई चिडिया...
      परमात्मा से बड़ा लालाजी कौन है प्यारे, रत्ती रत्ती का हिसाब लेता है |
      डबल एंट्री वाली बात मुझे लिखनी थी यार पोस्ट में, चूक गया :(

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  17. हरचीज़ की कोई ना कोई कीमत होती है.... बहुत बढ़िया ...

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  18. बाइ डिफ़ौल्ट ही यह तय है की पारस ने लोहा जैसे तुच्छ चीज़ को सोना बना कर बड़ा गुनाह कर दिया हॅ.

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    1. रवि साहब, सही जवाब के लिए ओवर ऑल ट्रोफी जाती है मध्य प्रदेश के नाम :)

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    2. :) क्या बात कह दी, वाह भई वाह!

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  19. ठेली वाले के किस्से पर हमारी एक पोस्ट उधार रही... (अब कीमत तो तुम ही चुकाओगे, शुरुआत तुमने ही की है)..
    बाकी तो अपना ऊ पुराना अंगरेजी का मुहावरा है ना - देयर इज नथिंग कॉल्ड फ्री लंच!! सब खेल एक्सपेक्टेशन या टेकेन फॉर ग्रांटेड का है..!! ठन्डे पानी को टेकें फॉर ग्रांटेड लिया और बच्चों की एक्सपेक्टेशन बढ़ गयी!! रही बात कीमत चुकाने की, तो अपने देश में "राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि लेई जाई" वाली कीमत तो पहले से ही फिक्स की हुई है!!
    देख लो! फत्तू का सिद्धांत जिसने सीख लिया, वो देश पर शासन करने की पोजीशन में आ गया है!!

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    1. फालतू में एक्सपेक्टेशन मत बढ़ाइए, हम आपके प्यार की कीमत नहीं चुकाने वाले| पहले भी कह चुके कि आपके तो debtor बने रहेंगे, हमेशा|
      असल में फत्तू ने ये सिद्धांत पोजीशन वालों से ही सीखा :)

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  20. तुम्हारी बातों में होम-वर्क तो रह ही गया.. जैसे कई सवालों के जवाब 'हाँ' या 'ना' में नहीं दिए जा सकते, वैसे ही मैं भी गुरूजी का ज्ञान लेकर आ गया:
    /
    चौक से चलकर,मंडी से,बाज़ार से होकर
    लाल गली से गुज़री है कागज़ की कश्ती
    बारिश के लावारिस पानी पर बैठी बेचारी कश्ती
    शहर की आवारा गलियों से,सहमी-सहमी पूछ रही हैं
    कश्ती का साहिल होता है
    मेरा भी क्या साहिल होगा?

    एक मासूम-से बच्चे ने
    बेमानी को मानी देकर
    रद्दी के कागज़ पर कैसा ज़ुल्म किया है!

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  21. सह मत कीमत

    रह-मत कह-मत

    सहमत सहमत.


    __________

    जिससे तू करके बात कर पायें वही होता है 'बेइज्जतीप्रूफ'.

    यानी अपना 'फत्तू'

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  22. लोहे को भी सोना कर देने वाले पारस को पदार्थ के मूल स्वभाव के साथ छेड़छाड़ करने की कीमत चुकानी पड़ती होगी क्या?

    विकल्प एक - हाँ. विकल्प दो - नहीं.

    @ हाँ,

    मूल स्वभाव के साथ छेडछाड करने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है.

    चाहे पदार्थ यो अथवा व्यक्ति ...छेड़छाड़ पर कीमत चाहते हैं.

    पदार्थ के साथ की गयी छेडछाड उसे नवीन रूप में बदल देती है.

    जबकि 'छेडछाड' व्यक्ति के साथ होने पर भारी खामियाजा उठाना पड़ता है.

    इसलिये उपदेशक को भी जबरन किसी को उपदेश नहीं देने चाहिए....

    मूल स्वभाव जब नहीं बदलता तब भी उसे ही कीमत चुकानी पड़ती है.

    आज ऐसे अंगुलीमार डाकू नहीं जो बुद्ध के उपदेश से अपना स्वभाव और जीवन की दिशा बदल लें.

    आज बुद्ध से उपदेशकों को ही कीमत चुकानी पड़ती है.

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    1. जबरन तो हम किसी को भी कुछ न देते भाई, फिर भी और ध्यान रखेंगे भविष्य में| 'रह-मत' से 'कह-मत' यकीनन बेहतर है|
      आपकी\तुम्हारी उपस्थिति सुकून देती है, हमेशा की तरह|

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  23. भाया तू गलत जगह आया
    तुमको तो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर होने को को मांगता

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    1. 'भाया तू गलत जगह आया' - material for a new post, कई बार सोचा इस विषय पर लिखने को, लेकिन अमली जामा नहीं दे पाया था|

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  24. प्रकृति के नियम और कर्म का अटल सिद्धांत!! कीमत तो चुकेगी ही चुकेगी॥

    पारस तो कबका कीमत चुका चुका, लोहे को सोना बनाकर बलिदान!! आज पूर्णतया अलोप है।

    लाजवाब और उत्कृष्ट श्रेणी का आलेख है। बहुत बहुत बधाई!!

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  25. सहमति, असहमति, घोर असहमति, घनघोर असहमति जरूर करना? समझते नहीं हैं यार !!!
    इसी में से कोई एक च्वायस होगा। कौन-सा? पता नहीं।

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    1. 'none of these' option भी अपना सकते हैं, लिखा इसलिए नहीं था कि फिर सभी वही ऑप्ट कर लेते:)

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  26. जो होना है , वही होना है तो फिक्र काहे की!
    चार्वाक भी यही मानते थे !

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    1. फिक्र नहीं है वाणी जी, ये तो एक निष्कर्ष है खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी कि कीमत चुकानी पड़ती है|

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    2. वाणी जी, चार्वाक को बहुत पीटा था उनके कर्ज़दारों ने (मज़ाक नहीं, ऐतिहासिक तथ्य है।)

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    3. अगले को पिटने में ही मजा आता होगा तो जो भाषा समझ आये उसी में समझा दिया होगा कर्जदारों ने -
      यावत् पिटेम सुखेन पिटेम :)

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  27. सही कहा आपने - बिना कीमत चुकाए कुछ नहीं मिलता

    भागीरथ ने कीमत चुकाई
    तब गंगा धरती पर आई
    शहीदों ने कीमत चुकाई
    तब हमने आज़ादी पायी
    देवकी ने कीमत चुकाई
    तब आठवी संतान पायी
    सीता ने कीमत चुकाई
    रावण पर राम ने जीत पायी
    ....
    अगणित उदाहरण हैं - बिना कीमत चुकाए कुछ नहीं मिलता - और कीमत हम चुकाना नहीं चाहते - पर चाहते हैं की मिल सब कुछ जाये :)

    nice post :)

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    1. कीमत चुकाना नहीं चाहते हैं लेकिन वसूलना चाहते हैं| कर्त्तव्य से हमारा फोकस जबसे अधिकार पर आया है, बहुत कुछ बदल गया है|
      आभार शिल्पा जी|

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  28. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
    शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||

    सादर

    charchamanch.blogspot.com

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  29. संजय बाऊ बाकी तो सब ठीक है पर सब्जी वाले ने मेरा पटेंट डाईलोग मार दिया. कोई बात नहीं, बाबा लोगों का अपना कुछ भी नहीं होता और डाईलोगों का किया - स्क्रिप्ट लिखी लिखाई है - कभी किसने बोल दिया कभी किसने.

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  30. लोहे को कंचन करने की आदत ने पारस को धरती से विलुप्त किया है। उसको अपने इसी आदत की कीमत चुकानी पड़ी। आप भी पारस का ही काम कर रहे हैं। उपदेश देकर सबको चमका रहे हैं। खतरा है... :)

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  31. आपकी बातें अच्छी लगतीं हैं,
    कीमत का क्या ,लेन देन तो
    सब चलता रहता है,

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    1. लेन देन से तो छुटकारा कहाँ है राकेश साहब, चलता ही रहेगा|

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  32. अपनी भी आजतक बेइज्‍जती किसी ने नहीं की। मस्‍त पोस्‍ट है।

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  33. उत्तर
    1. मतभेद या मनभेद से इतना क्यूँ घबरा रहे हैं सारे? विचार होंगे तो टकरायेंगे भी, और जिन्हें aloof रहना है वे रह ही सकते हैं बहुत से मित्र खामोशी से अपना काम करते भी हैं|
      आपके आने का शुक्रिया, आपकी पोस्ट और उस पर आये कमेंट्स अच्छे हैं, आशा है आपकी अपील असर करेगी|

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  34. Paras ko keemat chukani padegi ki wah kisi lohe se kabhi dosti nahin kar payega |

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  35. SANJAI SIR

    EK BAAR ME HI SAARA BLOG PAD GAYA
    INTRESTING.....................

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    1. आपकी सहनशक्ति को सलाम है आलोक जी:)
      भाई शुरुआत करिए आप भी, स्वागत है|

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  36. बिना कीमत आज तो कम से कम कुछ भी संभव नहीं... शानदार प्रस्तुति...
    इस टिप्पणी की कीमत चुका जाना मेरे ब्लॉग पर आकर....
    हा हा हा.... मजाक कर रहा हूँ... वैसे आपका तो हमेशा ही ब्लॉग पर स्वागत है...

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  37. सही कहा आपने, सबको अपने स्वत्व की कीमत चुकानी पड़ती है।
    हर आदमी तिल-तिल जीकर मानव योनि पाने की कीमत चुका रहा है।

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  38. कीमत तो चुकानी ही पड़ती है, मुफ्त तो वाकई कुछ भी नहीं आता।
    एक बार किसी बड़े खिलाडी ने कहा था, "Sometimes, you cinch to play in your backyards, on to the streets with no pads and attire, but your stature simply demolishes your thoughts that very second." हाँ! कीमत तो चुकानी पड़ती ही है पारस को भी, विडम्बना ये कि कितनी चुकाई यह बताने भर को मिलता भी नहीं।

    फत्तू लाजवाब है। सिर्फ दाने और गोली पे ही नहीं, बेइज्जती पर भी नाम लिखा होता है, ना लगी तो हमारी कहाँ से हुई? :)

    घनघोर सहमति वाला आप्शन नहीं रखने से घनघोर असहमति है अपनी। :)

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  39. अद्भुत लेख प्रवाहमय कड़ी दर कड़ी ......

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  40. देखा है फिल्मों में हीरो को ऑटो वाले से कहते हुए, 'कीप द चेंज' तो एक रुपये में हीरोगिरी सस्ती ही लगी होगी:) ,

    बहुत बढ़िया ...

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  41. hum to advance mein hi..kaafi pahle keemat chukaa chuke hain idhar jhaankne ki

    :)

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  42. सहमत असहमत का नहीं पता. पोस्ट अच्छी लगी. और सवाल भारी :)

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