ड्राइविंग लाईसेंस बनवाना था और समस्या ये सामने आ रही थी कि मेरे पास छुट्टी की कमी थी| अथोरिटी का हाल तो मालूम ही था, बिना किसी एजेंट के जाने का मतलब था पूरा दिन खराब करना| मेरा भारत महान की एक खास बात ये है कि यहाँ हर काम के लिए मध्यस्थ उपलब्ध रहते हैं, यत्र तत्र सर्वत्र| एक ऐसे ही बंदे का पता चला तो उससे इस बारे में बात की| पैसों की बात तय हो गई, साथ ही यह बात कि एक घंटे में फ्री कर दिया जाऊँगा, जिसमें लिखित परीक्षा, फोटो, फिंगर प्रिंट्स वगैरह सब काम निबट जायेंगे| सरकारी फीस से जितने ज्यादा रूपये देने पड़ रहे थे, एक छुट्टी बचाने और बिना किसी सिफारिश के अथोरिटी में जाने पर पेश आने वाली जिल्लतों के बदले ये अतिरिक्त खर्चा ठीक ही लगा|
नियत दिन और समय पर सिंह साहब के दफ्तर में पहुँच गए| देखा पांच छ हमारे जैसे बकरे पहले से ही मौजूद थे| लिस्ट के नाम पूरे होते ही सिंह साहब ने नारा लगाया, 'चलो जवानों' और सब जवान उनकी स्कोर्पियो में सवार होकर चल दिए | गाड़ी स्टार्ट करने से पहले उन्होंने हम सबको ब्रीफ करना शुरू किया, "मेरी गल्ल सारे ध्यान नाल सुन लओ, ओए अंकल बंद कर ऐ तेरी हनुमान चलीसा, अगले घंटे डेढ़ घंटे तक सिर्फ मेरी गल्ल त्वाडी सबदी गीता कुरआन हैगी| जो मान लेगा, सुख पायेगा और जिसने अपना दिमाग इस्तेमाल किया और मेरे कहे से हटकर कुछ काम कीता तो अपने नफे नुकसान का जिम्मेदार वो खुद होएगा| पैसे वापिस नहीं मिलने वाले हैं, इसलिए चंगा ये होगा कि मेरी मानो और कामयाब होवो| सबसे पहले अथोरिटी में written test होना है और उसमें पास होना जरूरी है| तुसी सारे पेन्सिल नाल आंसर शीट विच सारे जवाब दे 'C' ओप्शन नू टिक करना है, कुछ नहीं पढ़ना कुछ नहीं सोचना सिर्फ इक चीज ध्यान रखनी है 'C', वाधू(ज्यादा) पढ़े लिखे बंदे ज्यादा गौर नाल सुन लओ, अपना दिमाग नहीं इस्तेमाल करना है| ओके, कोई सवाल?" किसीकी मजाल नहीं थी कि कोई सवाल पूछता, जब पहले ही आज्ञापालन न करने पर कार्यसिद्धि न होने की और स्थानविशेष पर कायदे-क़ानून की लात पड़ने की भी चेतावनी मिल चुकी थी| गाड़ी स्टार्ट हुई और हम सब चल दिए परीक्षाकेंद्र की तरफ|
परीक्षा शुरू हुई और सब जवाबों के 'C' option टिक कर दिए गए| हालांकि कोई जरूरत नहीं थी कि प्रश्नपत्र पढ़ा जाए लेकिन फिर भी पढ़ा गया| यूं भी सामाजिक व्यवहार में हम सब मौक़ा लगते ही क़ानून तोड़ने के जुगाड में रहते हैं - थूकने की, मूतने की, कूड़ा फेंकने की मनाही लिखी हो तो हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कारने लगती है कि हम कोई गुलाम हैं इस लिखने वाले के क्या जो यहाँ ये सब न करें? मौक़ा लगते ही अपना विरोध प्रदर्शन कर देते हैं, चाहे छुपकर ही क्यूं न करना पड़े| प्रश्नपत्र पढकर दिमाग और खराब हो गया, अधिकतर सवाल आते थे और उनमें से अधिकतर का जवाब 'C' नहीं था| बार बार यही लगता था कि सरदार ने मरवा दिया, पैसे भी गए और जब कल के अखबार में ये खबर छपेगी कि साधारण सी परीक्षा में भी पास नहीं हुए तो क्या मुंह दिखाएँगे बिरादरी वालों को? खैर, जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा को याद करते हुए आंसरशीट जमा कर दी और पन्द्रह मिनट में ही सिंह साहब के सारे केस पास घोषित होकर बाकी औपचारिकताएं पूरी कराने चल दिए|
दो दिन बाद शाम को जब लाइसेंस लेने गया तो फुर्सत में सिंह साहब के साथ बातचीत हुई और फिर समझ आया कि 'C' option उनका उस दिन का कोड था जिससे अथोरिटी वालों को पता चल जाए कि ये सब सिंह साहब के केस हैं| इस प्रकरण से मैंने ये समझा कि कैसे एक तंत्र को अपने हितानुसार साधा जा सकता है| जैसे बेईमानी के धंधे में ही अब ईमानदारी बची है, वैसे ही एक जटिल तंत्र को एकदम साधारण कोड से काबू किया जा सकता है| all you need is to find the right person at the right time. आप भी कहोगे कि एक तरफ सम्मान लेबल वाली पोस्टों की बहार हैं और ये जनाब ले बैठे रूखे-सूखे किस्से|
लेकिन सच ये है कि इस किस्से की याद ही इन आयोजनों को देखकर आई है, वैसे अपना मूड इस समय एकदम सकारात्मक है| सम्मान करने वालों से अपने को कोई शिकायत नहीं है, उनका अधिकार है जिसे मर्जी सम्मानित कर दें| असहमति जताने वालों, सुझाव देने वालों से भी अपने को कोई शिकायत नहीं, अपनी राय स्वस्थ तरीके से रखने का उनका भी अधिकार है| और तो और, सवाल उठाने वालों पर बरसने वालों से भी अपने को शिकायत नहीं है अपने को तो ये सब देखकर मजा आ रहा है| वरिष्ठों और would be वरिष्ठों का व्यवहार देखकर यकीन पक्का हो जाता है कि फेसबुक, ट्विटर अपनी कितनी ही ऐसी तैसी करवा लें, हिन्दी ब्लोगिंग अमर रहेगी| लोगों का उत्साह अचम्भित करने वाला है, और खुद की निर्लिप्तता\किम्कर्त्व्यमूढ़ता एक अब्नार्मलिटी लग रही थी| अगर आलसी महाराज भी इसमें न कूदे होते तो अपन इस सारे प्रकरण में मौनी बाबा बने रहते| परिकल्पना आयोजन में मुझे भव्यता झलकती लगी है तो उस अकेले के आयोजन में कहीं ज्यादा जीवन्तता| अपना हाथ, अकेले के साथ, अपने को ज्यादा इन्तजार 'आलसी का चिटठा' पर आने वाले निष्कर्ष का रहेगा, नतीजों से भी ज्यादा निष्कर्ष का|
कोई भी आयोजन सबको तुष्टि देने वाला नहीं हो सकता, इस बात को मैं मानता हूँ लेकिन इसे और भी स्वस्थ तरीके से किया जा सकता होगा, ये भी मानता हूँ| सुधार की गुंजाईश हर जगह है|
बड़ी विसंगतियाँ जो औरों की तरह मुझे भी दिखती हैं-
१. लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का नाम तो दिया जा रहा है लेकिन लोकतंत्र में अभ्यार्थी खुद आवेदन करता है, यहाँ ऐसा नहीं है| वोट देने न देने का या किसे देना है, यह अधिकार वोटर के पास बेशक होना चाहिए लेकिन जिन्हें प्रतियोगी बना दिया गया, क्या वो इस सबके लिए तैयार हैं? उनके अधिकार का भी सम्मान होना चाहिए|
सुझाव - पहले श्रेणी अनुसार नामांकन आमंत्रित किये जाए, उसके बाद आगे की प्रक्रिया चले| spadework करने में शुरू में मेहनत बेशक ज्यादा हो, लेकिन कार्य व्यवस्थित रूप से होता है|
२. जो निर्णायक मंडल में शामिल हैं, उनका नाम प्रतियोगियों में भी होना अजीब सा लगता है|
सुझाव - पिछले वर्ष\वर्षों के सम्मानित ब्लोगर्स को निर्णायक मंडल में शामिल किया जाना चाहिए, इससे दूसरों की प्रतिभा भी सामने आयेगी अन्यथा तो घूम फिरकर वही नौ-दस नाम हैं| नई प्रतिभाओं की कमी नहीं है, एक से बढ़कर एक अच्छा लिखने वाले हैं|
और भी बातों पर लिखा जा सकता था लेकिन सादेपन में लिखते समय जल्दी ही हमारी हंफनी छूट जाती है| वो तो बेगम ने तीन चार दिन पहले किसी बात पर टोक दिया था कि कभी सोचकर सोचियेगा कि कितनी तीखी बात कह देतें हैं आप, तो हमने सोचा कि केंचुली बदल लेंवे धीरे धीरे, आज शुरुआत कर दी है|
सबसे पहले एक बात स्पष्ट कर दूं कि अपनी इस आयोजन में सम्मानित होने की न तो कभी कोई आकांक्षा थी, न है, और न ही भविष्य में होगी| मैं जो सोचकर ब्लोगिंग में आया था, उससे बहुत ज्यादा पहले ही पा चुका हूँ| यह बात लिखना इसलिए भी जरूरी है कि यहाँ लोग लोकतंत्र, विमर्श और दुसरे लुभावने शब्दों की जुगाली जितनी मर्जी कर लें, खुद इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरते और विरोध, सुझाव, असहमति को अपने चश्मे से ही देखते हैं| देखा कि एक दो मित्रों ने वहाँ मेरा भी नाम किसी श्रेणी में प्रस्तावित किया है, पूरी विनम्रता से उनका आभार और ये गुजारिश कि मुझे मेरी कमियों से अवगत करवाते रहें तो वो मेरे लिए ज्यादा बड़ा सम्मान है, असली सम्मान है|
वहाँ न लिखकर अपने ब्लॉग पर इसलिए लिख रहा हूँ कि जो मुझे जानते हैं वो मेरे ब्लॉग को भी जानते हैं और जिन्होंने सिर्फ 'C' option को टिक करना है, वो करेंगे ही| छूटती नहीं है काफिर तल्खी, मुंह की लगी हुई :-)
सम्बंधित कड़ियाँ जिनमें दिखते हैं अलग अलग तेवर -
- http://www.parikalpnaa.com/2012/05/blog-post_354.html
- http://girijeshrao.blogspot.in/2012/05/blog-post_20.html
- http://hindini.com/fursatiya/archives/2979
- http://lalitkumar.in/hindi/1179
- http://vichaarshoonya.blogspot.com/2012/05/2011.html
@जो मुझे जानते हैं वो मेरे ब्लॉग को भी जानते हैं और जिन्होंने सिर्फ 'C' option को टिक करना है, वो करेंगे ही|
जवाब देंहटाएं- कर दिया जी। अन्य कंटेंट के बारे में कुछ समय बाद पुनरागमन होगा!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं'C' उसी ऑप्शन वाले बंदे है! :) आपके साथ ही समझो। सिंह साहब की दलाली बच जाएगी, अपनी भी।
जवाब देंहटाएं... बहरहाल अथारिटी के टेस्ट में ये सी ऑप्शन वाली बात बहुत पसंद आई ☺☺☺
जवाब देंहटाएंदिल्ली पुलिस भी एक ज़माने में चौराहे पर ट्रैफिक रुल तोड़ने पर चालान काटने की जगह पैसे जेब में डालकर अगले चौराहे के लिए कोड बताती थी. अब का पता नहीं.
जवाब देंहटाएंअब तो घर बैठे चालान आ जाते हैं सरजी, पहले भी कोड रोज के हिसाब से बदल देते थे जैसे आज का कोड 'पेप्सी' है तो अगले दिन 'कोक' रख दिया ताकि कोई आप सरीखा चालू बन्दा अगले दिन भी बिना रिन्यूअल के कोड का फायदा न उठा ले:)
हटाएंअरसे बाद दिखे प्रभु, दिल को सुकून मिला कि भुलाए नहीं गए हैं अभी हम.
:) code padhane ka aabhar :)
जवाब देंहटाएंaaj kaun se par nishaan lagana hai .daso sar ji
जवाब देंहटाएंमैंनू बख्शो ते होर जिस मर्जी निशान ते लगा देयो ठप्पा, त्वाडा अधिकार है जी:)
हटाएंhmm
जवाब देंहटाएंapni pasand ko koi bhi puruskrit kar hi saktaa haen
baat sirf itni haen ki isko hindi blog jagat ke . dashak kae ityadi kehna kitna uchhit haen
यही मैंने भी कहा है रचना जी, पुरस्कार देने का अधिकार उनका सुरक्षित है तो प्रतियोगिता में लाकर खडा किये जाने वालों का भी तो कुछ अधिकार होगा? बहरहाल, हम तो अपने विचार रखने के अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं :)
हटाएं@ अपनी जो समझ में आया ,
जवाब देंहटाएंवो ये कि एक सरदार ( मध्यस्थ ) हो , एक पेन्सिल हो ( जैसा चाहा गया वैसा लिखने के लिए ) और गांधी जी के छाप वाली करेंसी , काम की सुविधानुसार / स्वादानुसार हो , तो 'अथारिटी' की सारी जिल्लतों से बचा जा सकता है ... और काम ? वो तो खैर हो ही जाएगा :)
ऊपर से चार पैरा के बाद , आलेख के निचले हिस्से पर कोई कमेन्ट नहीं !
कई साल पहले की बात है, एक बुजुर्ग आदमी तहसील में किसी काम से गए और तहसीलदार के सामने पेश हुए| कागज़ देखकर तहसीलदार साहब ने कहा, 'बाकी तो सब ठीक है, कोई ऐसा पहचान वाला लाईये जिसे मैं भी जानता होऊ|" फिर वही गांधीजी के जरिये पहचान निकाली गयी:)
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंओह, आई सी..
जवाब देंहटाएंआज सोचा था ढेर सारे ब्लॉग्स पढ़के कमेंट्स की उधारी चुकता करूंगा लेकिन आपके लिंक्स ने तो बहुत समय ले लिया। (:-(
जवाब देंहटाएंवैरी सॉरी पाण्डेय जी :)
हटाएंसादगी ,सहजता, सरलता , और आपकी बेबाकी के कारन मैं प्रशंसक हूँ .
जवाब देंहटाएंखुबसूरत कथन .प्यार आता है इस कथ्य पर.
आप का प्यार उत्साह बढाता है, आभारी हूँ सिंह साहब|
हटाएंहम अपने परिवार और परेशानियों के चक्कर में इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि ब्लॉग जगत में क्या हो रहा है पता ही नहीं चलता... वैसे भी अपुन तो C-वाली कैटेगरी में ही आते हैं, जहां सम्मान का मतलब दोस्त C for Chaitanya की वाहवाही, C for Chalabihari की भोजपुरी.. बाकी तो लोगबाग C for Chutiya समझते होंगे कह नहीं सकता!!
जवाब देंहटाएंमुझे भी कुछ ई-मेल प्राप्त हुए कि फलाने को वोट दें... मगर मतलब समझ में ही नहीं आया!! अब व्यवास्थित रूप से देखता हूँ, माजरा क्या है!!!
2011 के नवंबर की बात है, अपना कोई गम हल्का करने के लिए एक Close, Confident, Capable Character की जरूरत थी तो आपको फोन किया था| आप उसी शाम चले आये थे और आपके आने के बाद मुझे पता चला था कि आपकी तबियत भी अच्छी नहीं थी| एक अनदेखे बंदे के लिए अपनी तबियत की परवाह न करते हुए, अपने परिवार के हिस्से का समय निकालकर अपने पास से किराया खर्चकर जाने वाले आप को Chutiya न समझा जाए तो क्या समझा जाएगा? & I Care for this special Class. Hope no further Clarifiction on 'C' is warranted anymore:)
हटाएंसलिल ऐसी ही दुर्लभ क्लास से हैं .....
हटाएंशुभकामनायें आप दोनों को !
बड़े भाई और छोटे भाई दोनों के प्यार भरे सम्मान के बाद तो बस यही कहूँगा कि
हटाएंसबकुछ खुदा से "पा ही लिया,आपको पाकर",
उठते नहीं हाथ मेरे इस दुआ के बाद!
अब तो मैं भी कह सकता हूँ... मो सम कौन!!!
अक्षरशः!
हटाएंभाई वो दिल्ली था जो टेस्ट में बैठना पड़ा...कानपुर में तो टेस्ट भी नहीं होता...सिर्फ दलाल से सेटिंग...फिर कार चलाओ या ट्रक...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमाफ़ी मांगते हैं पिछली टिप्पणी में बहुते गड़बड़झाला था वर्तनी का...हमरा पुरस्कार खतरे में पड़ सकता था...एही ख़ातिर दोबारा कर रहे हैं टिप्पणी :)
जवाब देंहटाएंएक बात बताइये...वहाँ हवाई जहाज चलाने का लाइसेंस मिल जाएगा का ?
मेरे पास थ्री व्हीलर चलाने का है...और प्लेन और टेम्पू दुनो तिपहिया हैं, कौनो दिक्कत होना नहीं चाहिए लसेंस मिलने में बाक़ी आप तनी पूछ लीजियेगा सिंह जी से ज़रा :)
ई तो भया सीरियसली मजाक..
अब काम की बात....
आपकी बातें सही हैं...निर्णायक मंडल के सदस्य प्रतियोगी भी होते हैं, ये पहली बार देखा है, कोन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटेरेस्ट शायद इसी को कहा जाता है, लेकिन ब्लॉग जगत में जो हो वही कम है...और जैसा आप कह रहे हैं, होना यही चाहिए था कि पिछली बार जिनको पुरस्कार मिल चुका है, उनको निर्णायक मंडल में रखा जाता, वो प्रोतियोगिता में भाग नहीं लेते, जिससे नए लोगों को सामने आने का मौका मिलता, लेकिन हम आप बोलेंगे, तो सब बोलेंगे, कि बहुत बोलते हैं ...ईशलिए हम कूश नहीं बोलेगा
हाँ नहीं तो..!
:) हम तो पेले ई शाइलेंट हैं! अब तो प्रायोजकों ने भी मान लिया है कि उनके अपनाये तरीके में फ़र्ज़ी वोटों की "फ़ुल गुंजाइश" मौजूद है:
हटाएं"रुझान देने के बाद कई ब्लोगरों के पक्ष में मतों की बाढ़ सी आ गयी , इसलिए ऐसा बोगस वोट रोकने के लिए किया गया है, क्योंकि अपनी-अपनी स्थिति जानकर लोग फर्जी तरीके से ज्यादा वोट करने लगे हैं, जो उचित नहीं है . ऐसे ब्लोगरों के पक्ष में भी ज्यादा से ज्यादा वोट प्राप्त हो रहे हैं जिनके आठ-दस ब्लॉग पोस्ट ही आये हैं अभी तक"
कूश नहीं बोलेगा\शैलेंट रहेगा तो इसे 'मौनं स्वीकृति लक्षणं' मान लिया जाएगा, कल्लो का करोगे? :)
हटाएंआप NRI लोग जिस देश समाज में काफी समय से रह रहे हैं, वो इस देश और इस ब्लॉग जगत की मानसिकता से काफी अलग है| यूं भी एक दृष्टा की तरह देखें तो अलग अनुभूति होती है और इन्वोल्व्मेंट(बेशक जबरिया ही कर दी जाए) हो जाए तो अलग अनुभूति|
सामाजिक व्यवहार में नियम तोड़ने की बात खूब रही !
जवाब देंहटाएंकोई अपनी मेहनत से ,अपने पैसे से जिसको पुरस्कार देना चाहता है , उसकी मर्जी है ...जिन्होंने पहले इस तरह पुरस्कार ग्रहण किये हो , उनका विरोध करना अखरता है , बाकी सुझाव तो आपके ठीक हैं !
वाणी जी, आपनी भावना से पूर्ण सहमति रखते हुए बस इतना ही कहना चाहूंगा कि जब आँख खुले तब सवेरा, जिसे जब कोई कमी दिखती है तब वह बोलता है। किसी का स्वार्थ भी होता है लेकिन सब लोग ऐसे नहीं भी होते, आप तो जानती ही हैं।
हटाएं@ वाणी जी,
हटाएंपुरस्कार या पुरस्कार देने वालों पर आपत्ति कम से कम मुझे तो नहीं है, और शायद किसी को भी नहीं होगी| बात सिर्फ तरीके की हो रही है|
जिन्होंने पहले पुरस्कार ग्रहण किया है और अब कोई जायज सवाल उठा रहे हैं तो वो अखरने की नहीं, फख्र करने की चीज है| बल्कि ऐसे सुझावों, विचारों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए| हाँ, अगर पुरस्कार देना मुंह बंद करने का तरीका है तो अलग बात है, 'साम-दाम-दंड-भेद' नीति में सब कुछ आ ही जाता है|
कुछ लोग इंवोल्वमेंट कर दिये जाने पर सौजन्यतावश चुप रह जाते हैं, कुछ स्वभावतः ही विनम्र होते हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं जो हर बात को शुरू में एकाध बार इग्नोर करने में विश्वास रखते हैं। सौ बात की एक बात यह कि ओपिनियन और फ़ैक्ट एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। किसी की राय के आधार पर ग़लत सही नहीं हो जाता।
हटाएंयहाँ मेरा कुछ कुछ नहीं कहना ठीक नहीं होगा...क्योंकि पिछली बार मुझे ही 'श्रेष्ठ महिला ब्लाग्गर' का पुरस्कार मिला था, कुछ बातें सिलसिलेवार कहना चाहूँगी...
हटाएंसबसे पहली बात मैंने रविन्द्र प्रभात जी से कई बार विनम्र निवेदन किया था कि आप एक बार पुनः विचार कर लें, मैं यह पुरस्कार नहीं लेना चाहती, आप किसी दूसरे योग्य प्रत्याशी को पुरस्कार दे दें, इस बात का सत्यापान वो ख़ुद भी करेंगे..
एक बार और मेरा चयन पुरस्कार के लिए श्री जाकिर अली 'रजनीश' साहब की टीम ने किया था, जिसे मैंने बिल्कुल ही मना कर दिया था..ज़रुरत पढने पर, वो भी इस बात की पुष्टि कर सकते हैं...
दूसरी बात, यह उत्सव दूसरी बार हो रहा है इसलिए पहली बार जो गलतियाँ (अगर हुई है) तो उन्हें सुधारने में कोई खटका नहीं होना चाहिए....
तीसरी बात, मुझे असहमति हुई है (आपत्ति नहीं) वह है 'दशक' शब्द से, और अपनी इस असहमति पर अब भी कायम हूँ मैं, अभी हिंदी ब्लॉग्गिंग के दस साल पूरे नहीं हुए हैं, जो भी पुराने ब्लोग्गर थे अब वो यहाँ नहीं हैं, और जितने भी बचे हुए प्रत्याशी उन्होंने भी दस वर्ष पूरे नहीं किये हैं...इसलिए 'दशक' का पुरस्कार समझ में नहीं आया मुझे..इसे वार्षिक पुरस्कार के रूप में दिया जा सकता था...
चौथी बात, मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि निर्णायक मंडल में जो भी हैं, वो प्रत्याशी नहीं हो सकते...ऐसा कभी नहीं होता, अनुराग जी ने सही कहा जो जज होता है वो ख़ुद अपनी पैरवी नहीं करता..मेरा भी यही मानना है जो पिछले वर्ष के विजेता थे उन्हें निर्णायक मंडल में शामिल किया जा सकता था और उनका नाम लिस्ट से हटाया जा सकता था...ऐसा करने से दूसरे प्रतिभागियों को भी आगे आने का अवसर मिलता..
पांचवी बात, .अगर किसी के मन में ये ख़याल है कि मुझे कोई राशि दी गई है (क्योंकि टिप्पणी में पैसों का ज़िक्र है इसलिए कहना पड़ रहा है ) तो बता दूँ कि, मुझे ऐसी कोई राशि नहीं मिली है, मुझे एक certificate का इलेक्ट्रोनिक वर्जन भेजा मिला है...
बाक़ी किसी बात से मुझे क्या एतराज़ हो सकता है भला..उत्सव तो हरेक को अच्छा लगता है, मैं भी अपवाद नहीं हूँ |
अनुराग जी की कही 'राईट स्पिरिट' वाली बात विशेष रूप से गौर करने लायक है| अमूमन कोई सुझाव देने या असहमति जताने वाले को एकदम से villain बनाकर प्रोजेक्ट कर दिया जाता है या फिर कुंठित बता दिया जाता है, जोकि सरासर गलत सन्देश देता है|
हटाएंईनाम में राशि की बात नहीं है , आयोजन के खर्च की बात है . मेरा मंतव्य सिर्फ यही है कि हिंदी ब्लॉगिंग में अगर किसी के प्रयासों से कुछ सकारात्मक हुआ है /होता है तो सराहा जाना चाहिए ...कोई प्रस्ताव /कार्यक्रम पसंद नहीं है तो निष्पक्ष रूप से अच्छे सुझाव जरुर दिए जाएँ , सिर्फ आलोचना ना की की जाए . आपने अच्छे सुझाव दिए हैं , कोई शक नहीं !
हटाएं'C' option पर टिक.
जवाब देंहटाएं:-)
हटाएं101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
जवाब देंहटाएंएक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
philwaqt 'C' ke see kar raha hoon.....phir link dekhoonga yse......
जवाब देंहटाएंkoi ek-aadh hi chhuta hoga.......'kenchuli vadlana aasan nahi......
aisa karte hain ke dono namrashi is "kenchuli" ko aapas me badal
lete hain....hamari 'vinamrata" aap lo.....aapki "talkhi" main le
leta hoon......kuch din badlaw ka maja le lete hain.............
.....oh partiyan payment ke liye tang kar raha hai....aate hain laoutkar dubara.....
pranam.
dekho veerji, tussi tension nakko karo....itthe sab 'apni dhapli apni' rag pe khud gaa raha.....
हटाएंabhi taza taza 'anurag chachu' ke yahan 'brahman' kaoun padh
ke aa raha hoon.....
gyani kabhi kuch bolta nahi 'pravachan' dene ke liye 'panditya' hi kafi hai....is lihaj se blogjagat me panditon ki koi kami nahi hai.....jisne koi mukam--o-sthan hasil kar li....unka to khair, koi nahi ....... lekin bakiya ke bare kya kahiye......
ye jo poora aayojan hai usme 'krititwa ke badle vyktitwa' ki boo aa rahi aur kahin-kahin se to 'vykrititwa' ka bhi?
jis chingari(lenthra) se prabhavit ho aapne ye lau(post) banaya hai......wahan ke rujhan me aaye hue naam lagbhag hamare pahle post me varnit mere pasand se bahut had tak
milte hain....
pranam.
आपकी सञ्जय दृष्टि तो कमाल की है। वैसे भी ब्लॉगर से अधिक विशुद्ध पाठक हो, एक पाठक दृष्टि के निष्कर्ष तात्विक ही होते है।
हटाएंmonitar bhai, ...... 'niramish' parivar to vardan hai hamare aantarik vyaktitwa ke liye aur bahri vyaktitwa ke liye pahle hi ullekhit hain....hamare blog par.
हटाएंkabhi unke parikalpana ke hum bhi murid hua karte the/hain/aur rahenge.....lekin, kalantar se prakarantaren, unhone ne jis tarike se 'sujhav/salahiyat' ko man-lene ki sahridayata dikhaya hai.....o kuch 'hajam' nahi ho raha...
hamne suru-aat se hi un-logon ke sare nishane sirf ek vyangkar(jo visangatiyan bhi dekhta hai) ke upar rakhte dekha hai, jinhon-ne ab-tak na jane kitne 'laraeeyon' ko maidan pe aane se pahle 'khet' kar dete hue dekha hai.
khair, jane den, aap 'rajhans' hain hum jante hain....aap samandar ke khare pani me bhi apne mukh dalenge to sirf moti nikal lene ke liye.....
bakiya, hamare naamrashi bhaijee kisi 'nukkar' pe kisi se
talqh hue ja rahe the aur bande ko majra bhi samajh nahi aa raha tha aise me hi hamne 'kenchuli' badal lene ka vichar rakh diya.....
pranam.
जानता हुँ, आप दोनो नामराशी मित्रों की स्नेह और अमिय दृष्टि रहती है मुझ पर!! आपदोनो ही निखालस वदन हो, और संजय जी 'सम तल्खी भी हितचिंतन होती है। आप दोनों के लिए 'कैंचुली' शब्द-विचार प्रतिकूल लगा तो चर्चा में घुस आया :)
हटाएंछोटके संजय बाबू,
हटाएंएतना अच्छा कमेन्ट करते हो, लेकिन हरदम रोमन में करते हो, देवनागरी में करोगे तो कौनो बिगड़ जाएगा का..!!
बिहार का नाम पूरा मिटटी में मिलाय दिए हो..इसकी सजा मिलेगी और बरोबर मिलेगी..अब से कम से कम ई बिलाग में देवनागरी में कमेन्ट करना होगा..
ई तुम्हरी अदा दीदी का हुकुम है :):)
मानिटर भाई, नामराशि भाई के परस्पर संवाद ने हमें उनका और भी ज्यादा मुरीद बना दिया, आभारी|
हटाएंकरते हैं डील पक्की. कागज पत्तर तैयार करवाते हैं लेकिन घाटे में रहोगे, सोच लो ठाकुर :)
जवाब देंहटाएंआपकी बेगम से ज्यादा आपकी कमियों के बारे में कौन बता सकता है जी :)
जवाब देंहटाएंदिल्ली का पहचान पत्र या रिहायशी प्रूफ नहीं होने पर भी ड्राईविंग लाईसेंस बनवाने का क्या खर्चा आयेगा? सरदार जी से पूछ कर बताईयेगा :)
प्रणाम
पुराना किस्सा है यार, अब तो सुना है सख्ती बहुत हो गई है| समझ गए न? :)
हटाएंsab kuch agdam bagdam hai aur kuch nahi hai ...apna to pasand ka ek hi blag hai...baba ji ki bak bak...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
ऊंचे लोग, ऊंची पसंद| कौशल जी, आपकी पसंद की दाद देता हूँ|
हटाएंआलेख का पूर्वार्ध-
जवाब देंहटाएंसी में टिक वाला कोड हर सरकारी तंत्र में कामयाबी से चल रहा है।
मैं अपनी पोस्टों में नीति विषयक दोहे भी लिखता रहा हूं। आपकी इस प्रस्तुति ने मुझे यह अहसास दिलाया कि इस तरह के दोहे तो आज के जमाने में हास्य-व्यंग्य के दोहे माने जाएंगे। एक पाठक ने तो कह ही दिया कि आजकल लोग ये सब मानते कहां हैं, हरेक में कुछ न कुछ कमजोरी तो होनी ही चाहिए।
अब उत्तरार्ध-
इस विषय पर कुछ नहीं कहना, क्योंकि हम तो दस साल बाद भी नए रहेंगे या ‘नइ‘ रहेंगे।
वर्मा साहब, सबको अपनी राय रखने का हक है| आपके पाठक ने अपनी राय रखी, हमारी राय आप जानते ही हैं:)
हटाएंकोलेज के दिनों में ड्राइविंग स्कूल से कार सीखी थी - और वही ड्राइविंग स्कूल के पैकेज मे था ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना | तो लाइसेंस बन के आ गया - और मैं शायद एक ही बार RTO गयी थी :) |
जवाब देंहटाएंमजा यह की "एक किलो सर्फ़ पर एक कपडे धोने की टिकिया मुफ्त" की ही तर्ज पर - "कार के लाइसेंस के साथ स्कूटर का लाइसेंस मुफ्त" का offer है - यह नहीं जानती थी | :) तो जब लाइसेंस आया - तो उसमे अदद स्कूटर का लाइसेंस भी था :)
मजा यह कि तब तक स्कूटर चलाने की / सीखने की कभी हिम्मत की नहीं थी | अब जब लाइसेंस आ ही गया - तो सीख भी लिया - और चलाने भी लगी | :)
@ ब्लॉग जगत की इलेक्शन - हम तो दर्शक हैं - खूब आनंद ले रहे हैं इस इलेक्शन शो का :) | देखें कौनसी गठबंधन सरकार बनती है :)
शिल्पा जी, ज़माना ही पॅकेज का है|
हटाएंऔर सरकार किसी की भी आ जाए, हमने तो खटकर ही खाना कमाना है:)
aapki dono baaton ka mera ek uttar hai
हटाएं"so to hai "
:) :)
याद है कॉलेज में वार्षिक महोत्सव हो रहे थे, और कुछ कारणवश मैं घर गया हुआ था उन चार दिनों के लिए।
जवाब देंहटाएंलौटने पर ४-५ प्रतियोगिताओं का आयोजन, ४-५ में प्रथम स्थान और २-३ में द्वितीय स्थान।
कारण?
रूलिंग पार्टी को बाँटनें के लिए लोग कम पड़ रहे थे और अनचाहे भी आयोजकों में मेरे दोस्त अधिक थे, नतीजतन मुझे ११ प्रमाणपत्र जलाने पड़े।
आलसी जी के निष्कर्ष की तो मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी, और आपकी सभी बातों से पूर्ण सहमति।
P.S.: ये तल्खी यूँ ही नुमाया रहे, आमीन!
२-३ में द्वितीय स्थान? सिंपली इम्पासिबल| एक प्रतिष्ठित परीक्षा में आल इंडिया फर्स्ट रैंक होल्डर और उसे भी चुपके से पचा जाने वाला सिर्फ रैंक वन का हकदार है| कमेन्ट खारिज cum ओवर रूलड :)
हटाएंकमेंट ओवर रूल्ड, इंफ़ो एप्रीश्येटेड - श्रेष्ठ व्यक्ति, श्रेष्ठ कवि सम्मान गोज़ टु - अविनाश चन्द्र!
हटाएंआपका सर्वेलेन्स कमाल का है:)
हटाएंशर्म नही आती बुढापे की ओर अग्रसर हैं और चले हैं ड्राविगं लाईसेंस बनवाने!
जवाब देंहटाएंबयान सिंह साहब का है!
आती है न तभी तो इसे पुराना किस्सा बताए हैं:)
हटाएंसरदार जी वाले तरीके हमने भी अपना बनवाया था अपना लाईसेंस , शेख सराय से , लेकिन दो महीनो बाद ही पुलिस ने जब्त कर लिया रेड लाईट (सड़क वाला ) तोड़ने के जुर्म में , तब से पिछले ६ सालो से रोहिणी कोर्ट में है , खैर , इसमें बोली या लिलामी सिस्टम भी हो तो मजा आज्ये , सर्वश्रेष्ठ ब्लोगेर एक , सर्वश्रेष्ठ ब्लोगर २ , सर्वश्रेष्ठ ब्लोगेर ३ के साथ मेज पर एक भारी भरकम हथौड़ा.
जवाब देंहटाएंअपना लाएसेंस तो अपने पास ही है, क्योंकि अब हम रेड लाईट(सड़क वाला) तोड़ते ही नहीं :)
हटाएंबोली या नीलामी सिस्टम वाला विकल्प मस्त है एकदम - चलेगा,दौडेगा, भागेगा|
कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना... बहुत खूब सरकार. मजा आ गया...
जवाब देंहटाएंलो जी अपना भी ठप्पा C पर... अपनी टिपणी तुस्सी छापो न छापो ओ त्वाहड़ी मर्जी जी!
जवाब देंहटाएंहम तो पराए शहर में बैठे हैं तो देर हो गयी आने में। अब सी को ही ठोक दें तो कैसे चलेगा क्योंकि आज का कोड तो बदल गया होगा ना। बहुत बढिया पोस्ट थी।
जवाब देंहटाएं:) ha ha.
जवाब देंहटाएंhamne to is post ko padhne ke pahle hi C mark kar diya :)
C पर टिक कर दिया, पर कुछ जल्दी नही हो गया 5साल बाद।
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