रविवार, जुलाई 29, 2012

हानि-लाभ ....

"जुताई करते करते एक जगह उसका हल जमीन में अटक गया| आसपास खोदने पर पता चला कि कोई कलश गड़ा हुआ है| स्वाभाविक है कि उस कलश में स्वर्ण मुद्राएँ ही थीं| कुछ दिनों के बाद राजा के पास न्याय के लिए एक वाद प्रस्तुत हुआ,  जिस किसान को वो स्वर्ण मुद्राएं मिली थीं, वो उन मुद्राओं को उस व्यक्ति को देना चाह रहा था जिससे कुछ समय पहले उसने जमीन खरीद ली थी| उसका तर्क ये था कि उसने खेती के लिए  जमीन के पैसे दिए हैं, जमीन के नीचे से इस प्रकार मिला अनपेक्षित खजाना उसका नहीं है|  जिस किसान ने जमीन बेची थी, उसका तर्क था कि जमीन के पैसे ले लिए तो वहाँ अब सोना निकले या पत्थर, उसके लिए स्वीकार्य नहीं  हैं|  राजा भी उसी ब्रांड का था, उस खजाने को अपने हवाले करने की बजाय उसने अपने खजाने से कुछ रकम और मिलाई और उस धन से  जनता के लिए एक तालाब का निर्माण करवा दिया|" 

पिछले ज़माने की कोई कहानी है ये, इससे पता चलता है कि विवाद क्या है, ये ज्यादा निर्भर इस बात पर करता है कि साधारण जनता की मानसिकता कैसी है| 
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एक अपना भाई-दोस्त cum दोस्त-भाई है(वे दो भाई हम दो भाईयों के दोस्त हैं तो ये संबोधन दिया है), परसों शाम उसका फोन आया, "भाई साहब, कुछ पैसे एकाऊंट में डालने थे| शाम को आपको दे दूं क्या? मेरा बैंक जाना बच जाएगा|"  मामूली  सा काम था, एक हाँ में अपना काम चल सकता था लेकिन आजकल अपनी आदत हो गई है कि अपने से छोटा कोई मामूली सी बात भी करे तो अपने से सीधा जवाब नहीं दिया जाता| मैंने कहा,  "भरोसा है तो मुझे पैसे पकड़ा दियो|" स्माईली लगाया भी था लेकिन फोन पर दिखा नहीं होगा| खैर, "क्या भाई साहब, आप भी किसी बात करते हैं" वगैरह वगैरह के बाद बात खत्म हो गयी| 

अगले दिन सुबह बैंक के लिए तैयार हो रहा था तो बन्धु आया  और पॉलीथीन से निकालकर  अडतालीस हजार रुपये नकद और तीस हजार का एक बियरर चैक समर्पित करने लगा| जैसे बाबा लोग टाट उठाकर नोट वहाँ रखने का इशारा करते हैं कि हम तो माया को हाथ भी नहीं लगाते, उसी तर्ज पर मैंने भी यही कहा कि यार नोट और चैक पॉलीथीन में ही रहने दे, मैंने हाथ में लेकर  क्या करने हैं?   असल में पॉलीथीन मेरे हिसाब से थी ही बहुत प्यारी|  प्यारी कहने से पॉलीथीन का  उत्पीडन वगैरह होता हो तो इसे  प्यारा भी मान  सकते हैं, आई मीन प्यारा पॉलीथीन|

खैर हमने  विमर्श को भटकने नहीं देना है, इसलिए मुद्दे पर आईये| आजकल प्रायः सभी बैंक, सिवाय वोट बैंक के, ओनलाईन और सेंट्रलाईजड हैं और उस दिन सुबह से नेटवर्क फेल्योर के चलते काम ठप्प था| क्लियरिंग वगैरह  कुछ काम बहुत टाईमबाऊंड रहते हैं, तय किया गया कि कुछ फाईल्स किसी दूसरी ब्रांच से जाकर लाई जाएँ और बहुत जरूरी वाला काम निबटाया जाए| दुल्हन को उसके मायके से लेकर आना हो तो क्या दूल्हा, और क्या दूल्हे के भाई, यार दोस्त सब के सब भाईचारा निभाने को तत्पर रहते हैं लेकिन लेकर आना था फाइल को, काम के ढेर को तो फिर कौन जाएगा? जो बहस से बचता हो, वही न? आप  सब बहुत  समझदार हो  वैसे:)

अपनी ब्रांच में काम ठप्प था और दूसरी ब्रांच में जाना ही था तो सोचा कि भाईदोस्त वाले  पैसे वहीं जमा करवा दूंगा, अब तक पॉलीथीन में रखे थे| उसी पॉलीथीन में कुछ दुसरे जरूरी कागज रखे, पैन ड्राईव डाला और पानी की बोतल रख ली और चल दिए हम अपने दोपहिया वाहन पर| मैंने चैक किया भी कि गौर से देखने पर नोट चमक रहे थे लेकिन फिर सोचा कि कौन इतने गौर से देखेगा? और चीजें थोड़ी है बाहर देखने को, जो मेरी बाईक से टंगी पॉलीथीन को आँखे फाड फाडकर कोई देखेगा?  दूसरी ब्रांच में जाकर पॉलीथीन फिर से अपने साथ ले गया, जहां बैठकर काम कर रहा था अपने सामने ही ज्यादा से ज्यादा एक डेढ़ फुट की दूरी पर टांग  दी| करीब आधा घंटा उस ब्रांच में रहा, वहाँ भी भीड़ बहुत थी और इस बीच मेरी ब्रांच से भी फोन आ चुका था कि  वर्किंग शुरू हो गई है तो सोचा कि अब पैसे अपनी ब्रांच में जाकर ही जमा करवा  दूंगा|

कई बार घटा बढ़ा कर बोलता हूँ, आज नहीं बोलूंगा, पहले की ही तरह नोट भी पॉलीथीन में थे, कुछ दुसरे सरकारी कागज़ भी(बिना किसी फाईल के), पैन ड्राईव भी और पानी की बोतल भी| मैं आकर बाईक पर बैठ गया, स्टार्ट कर दी फिर दिमाग में अचानक ही एक ख्याल आया कि पैसे इस पॉलीथीन में से निकालकर जेब में रख लिए जाएँ तो क्या बुराई है? पता नहीं उस एक हल्की सी सोच में क्या असर था कि मैंने वहीं  बैठे पॉलीथीन के अंदर ही हाथ डालकर नोटों के पैकेट को और चैक को एक कागज़ में लपेटा और उसे शर्ट  के हवाले कर दिया| मेरी ब्रांच के पास वाली लालबत्ती पर पहुँच गया था तो एकदम से कुछ गिरने की आवाज आई, देखा तो पॉलीथीन से पानी की बोतल गिरी है|  जब तक झुककर उसे पकडता वो लुढकती हुई दूर चली गई थी, और इधर ग्रीन लाईट हो गई थी| हाय री दिल्ली की भीड़ भरी सड़कें,  जाने वाली को रोक भी न सका मैं बेचारा| रुकती तो खैर क्या,  बस अपनी तसल्ली  हो जाती कि हमने अपनी कोशिश कर ली :) 

 ब्रांच में आकर देखा तो पॉलीथीन के तले  वाले हिस्से में दिनों किनारे लगभग एक चौथाई तक कटे फटे हुए हैं| प्रथमदृष्टया ये चूहों का काम लगता है, विस्तृत  जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजने की सोच रहा हूँ, ज्यादा शोर शराबा होने पर  कोई आयोग वायोग भी खड़ा किया जा सकता है| 

कुल जमा नुक्सान हुआ है एक पैन ड्राईव, एक पानी की बोतल और हाँ,  वो प्यारा\प्यारी सी पॉलीथीन भी अब किसी काम की नहीं रही| घाटे वाली अर्थव्यवस्था को एक और झटका झेलना पड  गया, उस पर तुर्रा ये कि हमारे गार्ड साहब, सफाईकर्मी, चायवाला और उनके कंधे पर बन्दूक रखके दफ्तर के दूसरे साथी भी जोर डाल रहे हैं कि पार्टी दी जाए| हमारा इत्ता नुकसान हो गया और लोगों को पार्टी की सूझ रही है, कहते हैं कि तीन चार सौ के घाटे को रोने की बजाय अठहत्तर हजार बच गए, उस पर ध्यान देना चाहिए| अगर ऐन  वक्त पर दिल की आवाज  न सुनता और नोट भी पॉलीथीन में ही रहने देता तो होता असली नुक्सान|  वाह जी वाह, अपने दिल की बात क्यों न सुनता? और अगर नोट गिर ही जाते तो सबसे ऊपर लिखी कथा चेप देता दोस्त-भाई के सामने कि देख कैसे कैसे उच्च आदर्श रहे हैं हमारे सामने| पता नहीं मानता या नहीं:)

अब सवाल उठ रहा है कि घाटा हुआ या  इसे फायदा समझूं?  एक साथी हरदम सुनाते रहते थे  कि शेयर मार्केट के चक्कर में डेढ़ लाख का घाटा खा चुके हैं| एक दिन फुर्सत थी, मैं घेरकर बैठ गया| पता चला कि जो शेयर उन्होंने एक लाख में खरीदे थे वो एक लाख पचास हजार में बेचे| मैं  कामर्स का विद्वान  रहा होता तो इस खेल में डेढ़ लाख का घाटा निकाल ही नहीं सकता था, कुरेदने पर साथी ने बताया कि शेयर मार्किट की ऊंचाई के समय में उनके शेयर्स की कीमत ढाई लाख तक पहुँच गई थी लेकिन उन्होंने नहीं बेचे थे, इस तरह से डेढ़ लाख का घाटा होना सिद्ध हुआ|  मजा आता है ये सब देख देखकर, नफ़ा-नुकसान, उपदेश देने-लेने में कैसे पैमाने बदलते हैं| 

कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है  कि अंदर से कुछ आवाज आई हो और ......?


                                                                       

                                                          
                                                   






84 टिप्‍पणियां:

  1. आज अपना गोल्ड मेडल पक्का है, बहुत हुआ उनचासवाँ-पचासवाँ कमेन्ट।
    देखने वाले पर निर्भर है, हम कभी ग्लास आधा खाली कहते हैं, कभी आधा भरा। हालांकि मेरा मानना है कि जिस पर बीती उससे बेहतर कोई जज नहीं कर सकता।

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    1. उस दिन अनसुनी कर देता तो हो गया था नुक्सान|
      हमारे दोस्त हमारे जैसे नहीं हैं, बहुत अच्छे हैं|
      धन्यवाद आपका|

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  3. भगवान आपके साथ थे, आप बच गये...

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    1. ईश्वर का आशीर्वाद हमेशा मिला है प्रवीण जी|

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  4. मिठाई खिलाइए जनाब, एक अदद पेन ड्राइव और पानी बोतल का गम ना मनाइए.
    रुपये-पैसे से बड़ी एक और बात भी तो है, और वह है अपनी साख और प्रतिष्ठा गंवाना. आजकल किसी का कुछ भरोसा नहीं. दोस्त-कम-भाई-कम-दोस्त की नेकनीयती पर शक नहीं है लेकिन बड़ी रकम की गड़बड़ मन में बहुत बड़ी हलचल पैदा कर सकती है. मुझे तो कभी पर्स में सौ का एक नोट कम लगता है तो दो दिन तक उसकी याद आती रहती है.

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    1. रकम के छोटे बड़े होने के अलावा मजाक में ही कही मेरी बात भी एक मुद्दा है| एक दिन पहले मैं कोई बात बात मजाक में कह रहा हूँ, अगले दिन वही हो जाए तो अजीब सा तो लगता ही है|
      मिठाई उधार रही श्रीमान जी :)

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    2. उधारी क्यों ? अकाउंट नम्बर लेके मिठाई लायक पैसा डाल दीजिए :)

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    3. ये सलाह सही दी अली साहब| घुटने मुड़े तो पेट की ही तरफ न? निशांत भाई भोपाल से हैं तो उनकी ऐसी तरफदारी करेंगे? प्रांतवाद पर हमारा प्रोटेस्ट नोट किया जाए|(मिठाई का हिसाब इस प्रोटेस्ट से अलग चलेगा:))

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    4. अरे नहीं भाई , अब तो उनका प्रान्त हमारे प्रान्त से अलग हो चुका है इसलिये मिठाई दाखिल और प्रोटेस्ट ख़ारिज किया जाये :)

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    5. हा! हा! हा!

      पेट माने मध्यप्रदेश :)पेट का भार वहन करने वाला घुटना खनिजगढ़? :)
      घुटना क्या मिठाई भी पेट की तरफ मुडती है। :)

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    6. उस हिसाब से सुज्ञ जी, दिल्ली तो मुख हुआ जिसके माध्यम से भक्षण किया जाता है और जो सिर्फ स्वाद अपने पास रखकर वो भी कुछ देर के लिए ही, शेष सब उदरग्रस्त करता है| जिसकी चमक देखकर ही लोग शेष काया को पुष्ट मान लेते हैं| बात भी कहाँ से कहाँ निक्लती है:)

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  5. इज्जत बची तो सब कुछ बचा वर्ना जितने मुंह उतनी बातें बनती.

    रामराम.

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  6. बच गए बाबू नहीं तो प्रस्तावना कथा के साकार होने की नौबत आ जाती !

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  7. पार्टी तो बनती ही है। घाटे की स्थिति में नामा भी यही लोग इकट्ठा करके जमा कराने वाले थे न? वैसे अभी भी पार्टी में पानी (नीट नहीं), पेन (न्योते की सूची के लिये) ड्राइव (जैसे राजनीतिक पार्टियाँ अपने कैंडिडेट के लिये ड्राइव/कैम्पेन चलाती हैं) और पॉलीथीन (मेज़ पर बिछाने के लिये) का इंतज़ाम तो यही भले-मानुस कर रहे हैं न! अपनी व्यवसायिक ज़िन्दगी भी ऐसे कई सज्जनों और सज्जनानियों के साथ गुज़री है। ईश्वर इन्हें लम्बी उम्र दे!

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    1. इस बारे में एक और पुरानी कथा याद आ गई, रत्नाकर डाकू की| कोई साथ नहीं देता है सरजी, खुद ही भुगतना पड़ता है:)

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    2. जरूर शिल्पाजी, यही सब तो है अपने पास|

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  8. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  9. ख़ुशी की बात है इश्वर ने आप की लाज रख ली.

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  10. Rupia rupea ko apnee or khichata hai..wahi aap ke saath hua....

    aap ki shirt main rupia tha wah wahi aa gaya ...


    jai baba banaras

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  11. इतनी लापरवाही अच्‍छी नहीं। मैं तो आपको एकाउंट में पैसे जमा करने के लिए कभी नहीं दूंगा। खुद ही जमा कर दूंगा।

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  12. हम तो पिछले ५-६ वर्षों से बैंक कभी रूपये नकद जमा करवाने गये ही नहीं, और ना ही जरूरत पड़ती है, अपन तो केवल निकालते हैं ।

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  13. बहुत सटीक लिखा है आपने |
    आशा

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  14. पहले के लोग बहुत ही ईमानदार होते थे ,जैसा आपने किसान वाली कहानी सुनाई ! अब तो घरवाले भी विश्वास नहीं करते किसी और को तो क्या कहें ,ख़ुशी की बात ये है की आपने दिल की बात मानी और उससे आपका फायदा भी हो गया ! मैंने सुना है की कोई भी काम अच्छा या बुरा करने से पहले एक चेतावनी जरुर मिलती है कोई समझे या न समझे पर आप ने समझ लिया ! नुक्सान से बच गए !

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    1. चेतावनी वाली बात एकदम सही है सुरेश जी, अधिकतर हम उस आवाज की उपेक्षा कर देते हैं ये भी सच है|आपने पढ़ा और राय दी, धन्यवाद सुरेश जी|

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  15. गनीमत है, नेकी होने के पहले दरिया में नहीं गई.

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  16. प्‍यारी सी, मनाही हो तो, प्‍यारा टाइप पोस्‍ट.

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  17. हमारा कमेंट गायब हो गया क्या !

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  18. जाकर बहुत अच्छा लगा - एक बड़े हादसे से बच गये आप !

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  19. मुझे तो लगा कि आपसे रूपये खो गए हैं लेकिन अन्‍त भला तो सब भला। वैसे कई बार दिल दस्‍तक देता है लेकिन हम ही अनदेखी कर बैठते हैं। मेरे साथ तो लिखते वक्‍त होता है,कई शब्‍दों पर दिल कहता है कि यह ठीक नहीं है, लेकिन उसे मैं टाल देती हूं। लेकिन वे ही शब्‍द आलोचना के कारण बन जाते हैं।

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    1. बहुधा हम अनदेखी ही कर देते हैं, लेकिन वो एकम आवाज अपना कर्तव्य जरूर पूरा करती है| लिखते समय मैं तो बहुत कुछ टाल देता हूँ, आलोचना का इतना डर नहीं होता लेकिन बहस नहीं की जाती मुझसे|

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  20. किसी ने मेरी पोस्ट पर ये टिप्पणी दी थी की हम बात हमेसा इसकी ही क्यों करते है की ग्लास आधा खाली है या भरा कोई गलास को पुरा भरने का काम क्यों नहीं करता है | यानी की मतलब की तात्पर्य की :) लाभ हुआ की हानी की जगह बात की जाये की आगे से सबक लिया जाता है की पैसे या कीमती चीजो के लिए इतनी असावधानी नहीं बरती जाएँगी और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब वो किसी और की हो | अपने हालिया पोस्ट के मुताबिक कहती हूं की ये तो पैसे थे खो जाते तो आप दुखी होते और उसे अपनी तरफ से भर देते सोचिये की आप की असावधानी से कोई ऐसी चीज खो जाती या नष्ट हो जाती जो पैसे से ना खरीदी जा सके और कीमती बहुत हो (पैसे से नहीं जरुरत से कीमती ) तब क्या करते | इसलिए ग्लास आधा भरिये और आगे के लिए सबक लीजिये |

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    1. यानि कि, मतलब ये कि, तात्पर्य ये कि कीमती चीज की हिफाजत करनी चाहिए न? हमारा गिलास आधा भर गया जी:)
      रचना जी बहुत खुश हुईं आपके कमेन्ट से जो डबल स्माईली लगा दिए :)

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    2. मैं भी यही कहना चाह रही थी - अगली बारी ध्यान रखियेगा संजय जी - नुकसान जो हो जाता, तो भरना तो पड़ता ही, और रकाम भी कोई छोटी मोटी नहीं थी जो आपने बताई | मुझे तो जबसे पोस्ट पढ़ी यही सोच कर डर लग रहा है की, बाबा रे, पैसे सच ही गिर जाते तो क्या होता ? नहीं गिरे शुक्र है भगवान् का | आप जैसे भले लोगों तक इश्वर की आवाज़ जल्दी पहुँच जाती होगी "दिल की आवाज़" बन कर :)

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    3. रचना जी बहुत खुश हुईं आपके कमेन्ट से जो डबल स्माईली लगा दिए :)

      आगये ना आप महा भारतीये "संजय " के रोल में , आँखों देखी लगाई बुझाई के लिये आधा गिलास पानी ही काफी होता हैं ,

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    4. ये पदवी तो आप पहले भी दे चुकी हैं, फिर से याद दिलाने का शुक्रिया:)

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  21. पहली बार आपकी रचना पढ़ी है...Quite interesting..!:)

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  22. दिल की आवाज कहें या बेसिक इंस्टिंक्ट ने आपको बचा लिया .
    वैसे भी बुरा न करें तो बुरा होता ही नहीं .बेहतरीन सीख के लिए धन्यवाद्

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    1. आप सम उत्साहवर्धन करते रहते हैं तो 'मो सम' अपनी तरफ से यही कोशिश करते हैं कि बुरा न ही करें| धन्यवाद सिंह साहब|

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  23. सबसे पहले तो इस 'बोधकथा' पर……
    निश्चित है सदभाव प्रसार पाते है!

    दूसरा, दृष्टिकोण पर………गिलास आधा भरा या आधा खाली, सकारात्मकता बनाम नकारात्मकता!!! किन्तु आगे ही शेयर बजार के दृटांत से पूरी तरह निरस्त ही कर दिया। न तो यह आधा भरा है न यह आधा खाली। न इसे भरा जा सकता है। ऐसी क्षतिपूर्तियां क्षति से ही नहीं होती। अन्यथा लोग छींक पर भी पार्टी मांगने लगेंगे :) लो जी ऐसी छींक से तो आपकी जान भी जा सकती थी, जान बची तो लाखों पाए…:) दे दो पार्टी :)पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए।

    अन्दर की आवाज :
    बेशक आन्तरिक स्फूरण महत्व पूर्ण होता है। किन्तु प्रमाद व अभिमानवश उसे अनसुना कर दिया जाता है। जब अन्दर से आवाज़ आ रही हो, विवेक का जागृत रहना आवश्यक है। विवेक ही अन्दर से उपजे विचार की उपेक्षा नहीं करने देता।

    मेरे साथ तो ऐसा अक्सर होता है जब अन्दर की आवाज सफल सिद्ध हुई।

    रूपए बचने की खुशी से कहीं अधिक पराए रूपए बचने की खुशी को महसुस कर रहा हूँ मात्र भरपाई से निजात नहीं, विश्वास का संरक्षण हुआ है। "पानी गया पानी रह गया" :)

    पॉलीथीन का आकर्षण गजब ढ़ा रहा है। :)

    @"दुल्हन को उसके मायके से लेकर आना हो तो क्या दूल्हा, और क्या दूल्हे के भाई, यार दोस्त सब के सब भाईचारा निभाने को तत्पर रहते हैं लेकिन लेकर आना था फाइल को, काम के ढेर को तो फिर कौन जाएगा? जो बहस से बचता हो, वही न? आप सब बहुत समझदार हो वैसे:)"

    सटीक!! (सुख के सब साथी दुख में न कोय) 'समझादार की टिप्पणी'

    @"मैंने चैक किया भी कि गौर से देखने पर नोट चमक रहे थे लेकिन फिर सोचा कि कौन इतने गौर से देखेगा?"

    -यह थी पहली दस्तक!! जिसे अनसुना किया गया। पर दूसरी दस्तक सुन ली गई।

    गीत में अनुनय-विनय मस्त है!! :)

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    1. आपकी बारीक नजर, गहरे विश्लेषण को सलाम सुज्ञ जी|

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    2. विश्लेषण क्या, बस इत्ता समझ लीजे कि आपके गम्भीर पाठक है जी।
      सहजता और माधुर्य से प्रस्तुत आपकी बातें पाठक को स्वयं चिंतनशीलता के लिए उत्प्रेरित करती है,प्रतिक्रिया में भी पाठक की दृष्टि पर आपका दृष्टिकोण हावी नहीं होता। आपके विनम्र परिहास से अनुकूल माहोल का सर्जन होता है।

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    3. आपकी पार्टी पक्की भाईजी, निरामिष टाईप की|

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  24. बाल-बाल की जगह एकाध बाल भी बचे तो गंजे तो नहीं ही कहे जायेंगे :)
    तो पलड़ा पार्टी की तरफ ही भारी माना जाएगा ! :)

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    1. श्रीमान जी हैं किसकी तरफ, पहले ये तो पता चले| वैसे बात मान चुके हैं हम, बहुमत के साथ ही हैं हम भी|

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  25. aapki khichiri greator noida me khaya.....kam se kam darzon baar is khichiri ki kahahani koi darzon bhar bachhe ko sunaya....balak sab
    bahutai thathaya.......apna to 'ever-green'story raha bachpan se hi

    @ रूपए बचने की खुशी से कहीं अधिक पराए रूपए बचने की खुशी को महसुस कर रहा हूँ मात्र भरपाई से निजात नहीं, विश्वास का संरक्षण हुआ है। "पानी गया पानी रह गया" :) abhar
    monitor bhaiji ka.....

    'haath kahan hai thakur'.....are re re....choomne ke liye......


    pranam.

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    1. आभार, सह-विद्यार्थी जी:)

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    2. बालक लोग खुश हुए तो अपना लिखना वसूल हुआ| अभी कैम्प @ ग्रेटर नौएडा है क्या? इसे कहते हैं नाइंसाफी...

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  26. इस तरह का नफ़ा-नुकसान तो होता ही रहता है। सबसे बड़ी बात है कि एक अच्छी बोधकथा पढ़ने को मिली।

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  27. सच मे बोध कथाही कहना पड़ेगा :)

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  28. दूरी बढ़ गयी (दिलों की नहीं) मगर ख्याल अभी-भी टकरा रहे हैं.. शुरुआती घटना से तो लगा कि वही कहानी/घटना है जो आज मेरे ब्रांच में घटी और मैंने चैतन्य को सुनाया.. लेकिन कहानी बदल गयी.. कुछ तो है.. जो टकरा जाते हैं ख्याल!!!
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    अब आगे की बात पर एक सच्ची बात..
    ताराचंद बडजात्या (मशहूर राजश्री फिल्म्स वाले) जब कोई फिल्म लॉन्च करते थे तो पहले परिवार वालों के साथ खाने की मेज पर इस बात पे चर्चा होती थी कि फिल्म कितना बिजनेस करेगी.. मान लीजिए कि उनका अनुमान है १५ करोड़.. अगर किसी बेटे ने भी कह दिया कि कि फिल्म १३ करोड़ से ज़्यादा बिजनेस नहीं करेगी, तो वो बिना खाए उठ जाते थे यह कहते हुए कि २ करोड़ का घाटा तो अभी ही हो गया!!!
    /
    और एक बात और.. किसने कहा कि वोट बैंक में नेट बैंकिंग की सुविधा नहीं है.. एक मंत्री हारा हुआ डिक्लेयर किया जा चुका था, तभी उसके वोट बैंक में एक आर.टी.जी.एस. आया और वो जीत गया!!
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    अब आपके इश्टाइल में कहें तो It happens only in India!!

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    1. धन्य भाग हमारे:) ब्रैकिटिया दूरी का सवाल ही नहीं उठता सलिल भाईजी, ख्यालों को टकराने के लिए भौगौलिक दूरी नजदीकी से क्या लेना देना, मुरारीलाल कहीं भी रहें सिग्नल तो टकराते ही रहेंगे:)
      मैं तो ट्रांसफर होकर अपने गृह प्रदेश पहुंचा था तब भी दो महीने तक नेट से दूर रहा था, आप तो एकदम नई जगह पहुंचे हैं|
      वोट बैंक वाली बात नहले पर दहला खाने के लिए ही कही थी और आपने drawer in case of need वाली भूमिका निभाई|
      आप आये तो आनंदित भये हम हमेशा की तरह|

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  29. संजय दा पार्टी तो बनती है.... कब आ जाऊं ?

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    1. स्वागत है हमेशा, आइये न कभी भी|खूब जमेगी, जब मिल बैठेंगे, आप हम और बैगपाईपर नहीं बल्कि एकाध और मित्र भी|
      मैं तो भोपाल एक सप्ताह बिताकर आया हूँ जुलाई में और सच कहूँ तो फोन करते करते रुक गया|

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  30. रोचक प्रसंग है। बहुत दिन बाद ब्लाग प्क़र नज़र पडी । मेरी ब्लाग लिस्ट डिलीट हो गयी। विन्डो चेंज करने वाले ने सेव नही की। रोज़ किसी एग्रिगेटर पर भी नही जा पाती इस लिये अनुपस्थिती हो जाती है । इतना समय बैठ नही पाती कि लिस्ट बना लूँ। सलिल भाई की कमी बहुत खलती है। सलिल जी को मेल करती हूँ। आप दोनो को राखी की हार्दिक शुभकामनायें< आशीर्वाद।

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    1. निम्मो दी!
      चरण स्पर्श!!
      आज ही आपके मेल का जवाब दिया है..!!

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  31. सावधानी हटी दुर्घटना घटी। यह बात तो बैंक कर्मी के दिल-दिमाग में सोते जागते रहती होगी। उसी का लाभ मिला वरना गये थे काम से। मुझे लगता है बैंक कर्मचारी इत्ता ढेर सारा पैसा गिनते- देखते रहते होंगे कि उन्हें एकाध लाख तो कुछ बुझाता ही नहीं होगा। तभी पॉलिथीन में लिये घूम रहे थे।:)

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  32. bhaisaheb ham ab dil kee baat sunte hee kahan hai..har jagah dimag..yehi kaam dimag se hota aaur nukasaan hota to bardast bhee nahi hota..dil ke log kya kya kurwan kar dete hain..ek pendrive kaun see badi cheej hai..apke naye lekh ke intezaar ke sath

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  33. चकाचक कथा है। पार्टी क्या मांगे। जब होगी शामिल हो लेंगे।

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  34. कहते हैं 'हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ'
    जीवन में सकारात्मक चिंतन ही खुशी दे सकता है.
    वरना कम लाभ मिल जाने पर भी,अधिक लाभ का लोभ
    दुःख ही देता है.

    मुकेश की आवाज में गाना सुन अच्छा लगा.

    मुझे आज चेक करने पर ही पता चला की अभी तक मैं आपका फालोअर नही हूँ.
    अपना चित्र आपकी फालोअर लिस्ट में देख बहुत खुशी मिल रही है.

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