रविवार, अगस्त 05, 2012

An interview with Field Marshal Sam Manekshaw


                                                                                                                                                                                 

                                                     

अप्रैल का समय था या अप्रैल जैसा ही था| एक कैबिनेट मीटिंग में मुझे बुलाया गया| श्रीमती गांधी बहुत गुस्से में  और परेशान  थीं  क्योंकि शरणार्थी पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में आ रहे थे|

'देखो इसे, अधिक-से-अधिक आ रहे हैं - असम के मुख्यमंत्री का तार, एक और तार.....से,  इस बारे में आप क्या कर रहे हैं?' उन्होंने मुझसे कहा|

मैंने कहा, 'कुछ भी नहीं, इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?'

उन्होंने कहा, 'क्या आप कुछ नहीं कर सकते? आप क्यों कुछ नहीं करते?'

'आप मुझसे क्या चाहती हैं?'

'मैं चाहती हूँ कि आप अपनी सेना अंदर ले जाएँ|'

मैंने कहा, 'इसका मतलब है - युद्ध?'  

और उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता, यदि यह युद्ध है तो युद्ध ही सही|' 

मैं बैठ गया और कहा, 'क्या आपने 'बाईबल' पढ़ा है?' 

सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा, 'अब इसका बाईबल से क्या वास्ता?'

'बाईबल के पहले अध्याय के पहले अनुच्छेद में ईश्वर ने कहा है -- 'वहाँ प्रकाश हो तो वहाँ प्रकाश हो गया', आपने भी वैसा महसूस किया| वहाँ युद्ध हो, और वहाँ युद्ध हो जाए| क्या आप तैयार हो?...मैं निश्चित रूप से तैयार नहीं हूँ|'

तब मैंने कहा, 'मैं आपको बताऊँगा कि क्या हो रहा है| यह  अप्रैल महीने का अंत है| कुछ दिनों में 15-20 दिनों में, पूर्वी पाकिस्तान में मानसून का प्रवेश होगा| जब बारिश होगी तो वहाँ की नदियाँ सागर में तब्दील हो जायेंगी| यदि आप एक किनारे पर खड़े होंगे तो दुसरे किनारे को नहीं देख सकेंगे| अंततः: मैं सड़कों तक ही सीमित हो जाऊंगा|' वायुसेना मुझे सहायता देने में अक्षम होगी और पाकिस्तानी मुझे परास्त कर देंगे - यह एक कारण है| दूसरा मेरी कवचित डिवीज़न बबीना क्षेत्र में है, दूसरा डिवीजन -याद नहीं आ रहा है-सिकंदराबाद क्षेत्र में है| हम अभी फसल काट रहे हैं| मुझे प्रत्येक वाहन, प्रत्येक ट्रक, सभी सड़कें, सभी रेलगाडियां चाहिए होंगी, ताकि जवानों को रवाना कर सकूं| और आप फसलों को लाने-ले जाने में अक्षम होंगी| फिर मैं कृषि मंत्री श्री फखरुद्दीन अली अहमद की ओर मुड़ा और कहा कि यदि भारत में भुखमरी हुई तो वे लोग आपको दोषी ठहराएंगे| मैं उस वक्त उस समय दोष सहने के लिए नहीं रहूँगा| तब मैंने उनकी तरफ घूमकर कहा, 'मेरा कवचित डिवीज़न मेरा आक्रामक बल है| आप जानते हैं, उनके पास सिर्फ 12 टैंक हैं, जो सक्रिय  हैं?'

वाई..बी.चव्हाण  ने पूछा,  'सैम, सिर्फ 12 क्यों?'

मैंने कहा, 'सर, क्योंकि आप वित्त्त्मंत्री हैं| मैं आपसे कुछ महीनों से आग्रह कर रहा हूँ| आपने कहा, 'आपके पास पैसे नहीं हैं, इसी कारण|'

तब मैंने कहा, 'प्रधानमंत्री जी, सन 1962 में आपके  पिताजी ने एक सेना प्रमुख के रूप में जनरल थापर की जगह अगर मुझसे कहा होता, 'चीनियों को बाहर फेंक दो|'  मैंने उनकी तरफ देखकर कहता, इन सब समस्याओं को देखिये| अब मैं आपसे कह रहा हूँ, ये समस्याएं हैं| यदि अब भी आप चाहती हैं कि मैं आगे बढूँ तो प्रधानमंत्रीजी, मैं दावा करता हूँ कि शत-प्रतिशत हार होगी| अब आप मुझे आदेश दे सकती हैं|'

तब जगजीवन राम ने कहा, 'सैम, मान जाओ न|'

मैंने कहा, 'मैंने अपना मत दे दिया है, अब सरकार निर्णय ले सकती है|' प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं कहा| उनका चेहरा लाल हो गया था| बोलीं, 'अच्छा, कैबनेट में चार बजे मिलेंगे|' सभी लोग चले गए| सबसे कनिष्ठ होने के कारण मुझे सबसे अंत में जाना था| मैं थोड़ा मुस्कराया|

'सेनाध्यक्षजी, बैठ जाईये|'

मैंने कहा, 'प्रधानमंत्रीजी, इससे पहले कि आप कुछ कहें, क्या आप चाहती हैं कि मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य के आधार पर मैं अपना इस्तीफा भेज दूं?'

उन्होंने कहा, 'बैठ जाओ, सैम| आपने जो बातें बताईं, क्या  वे सही हैं?'

'देखिये, युद्ध मेरा पेशा है| मेरा काम लड़ाई करके जीतने का है| क्या आप तैयार हैं? निश्चित रूप से मैं तैयार नहीं हूँ| क्या आपने सब अंतर्राष्ट्रीय तैयारी कर ली है? मुझे ऐसा नहीं लगता है| मैं जानता हूँ, आप क्या चाहती हैं; लेकिन इसे मैं अपने मुताबिक, अपने समय पर करूँगा और मैं शत-प्रतिशत सफलता का वचन देता हूँ| लेकिन मैं सब स्पष्ट करना चाहता हूँ| वहाँ एक कमांडर होगा| मुझे ऐतराज नहीं, मैं बी.एस.एफ., सी.आर.पी.एफ. या किसी  के भी अधीन, जैसा आप चाहेंगी, काम कर लूंगा|  लेकिन कोई सोवियत नहीं होगा, जो कहे कि मुझे क्या करना है| मुझे एक राजनेता चाहिए, जो मुझे निर्देश दे| मैं शरणार्थी मंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री सभी से निर्देश नहीं चाहता| अब आप निर्णय कर लीजिए|'

 उन्होंने कहा, 'ठीक है सैम, कोई दखलअंदाजी नहीं करेगा| आप मुख्य कमांडर होंगे|'

'धन्यवाद, मैं सफलता का दावा करता हूँ|'

इस प्रकार, फील्ड मार्शल के पद और बर्खास्तगी के बीच एक पतली  सी रेखा थी| कुछ भी हो सकता था|
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मेजर जनरल शुभी सूद  की लिखी पुस्तक 'फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ' से साभार|

('सोल्ज़र टॉक : एन इंटरव्यू विद फील्ड मार्शल सैम मानेकशा',  क्वार्टरडेक-1996, इ.एस.ए. द्वारा प्रकाशित, नौसेना मुख्यालय, नई दिल्ली, पृ. 10-11' )


74 टिप्‍पणियां:

  1. चाहे वह सेना प्रमुख हो या राष्ट्र प्रमुख उसे देश के राजनैतिक , सामाजिक, आर्थिक , और प्रादेशिक .जनजीवन की जानकारी होनी चाहिए ,ताकि आनेवाले अवरोध को ध्यान रखकर निरणय लिया जा सके. शानदार संकलन योग्य और विद्यालय में सुनाने योग्य पोस्ट ,मैं कल ही इसे सुनाने का प्रयास करूँगा ...
    कह दूँ आभार या प्रणाम से काम चल जायेगा ..

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    1. सिंह साहब, अपने विद्यार्थियों को जरूर सुनवाईयेगा| हमारे असली महानायकों के बारे में युवा पीढ़ी को जानकारी होनी ही चाहिए|
      मैं आभार भी और प्रणाम भी कहता हूँ आपको|

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  2. दयानिधि वत्स5 अग॰ 2012, 5:20:00 pm

    एक बहुत सुलझे हुए और सत्य बोलने वाले सच्चे व्यक्ति थे फील्ड मार्शल, यही वजह थी कि उन्होंने जीत हासिल की|

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    1. सैम बहादुर की खासियतें बयान कर पाना वाकई बहुत मुश्किल है|
      मेरे ब्लॉग पर स्वागत है 'बरेली से' वत्स साहब आपका|

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  3. एक सुलझा नेता ही अपनी आलोचना झेल सकता है...सबके सामने दो टूक बात करने के लिए शेर का दिल चाहिए...अब सरकारी अफसर तक तो राजा बन जाते हैं...नेताओं की बात ही क्या...अपने आकाओं की जी-हजूरी कर के बड़े-बड़े आई ए एस और मंत्री सब सत्ता का आनंद ले रहे हैं...

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    1. आपकी बात पर मुझे मेरे एक एक्स-बॉस की बात याद आती है| कहते थे, 'संजय भैया, सत्ता एक मदमस्त हाथी है| इसके सामने मत खड़े होवो, एन-केन-प्रकारेण, इसपर सवारी गांठो और आनंद लो|'
      सामने आलोचना करने के लिए और झेलने के लिए बड़ा दिल तो चाहिए ही, सहमत हूँ|

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  4. कहने के लिए भी जिगरा चाहिए और उसे सुनकर पचाने के लिए भी।

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  5. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 06-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-963 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  6. इसको पहले भी पढ़ चुके हैं कहीं।आज फ़िर देखा! अच्छा लगा!

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    1. मेरा अनुमान था कि कुछ ने पढ़ा होगा, बहुतों ने नहीं| आप तो 'the few' श्रेणी वाले हैं सरजी|

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    2. 'Few'श्रेणी में जोड़ना ज़रुरी नहीं पर बहुतों वाली लिस्ट से हमारा नाम भी डिलीट माना जाये :)

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    3. जो पहले से 'a few' में शामिल हैं, दोबारा से काहे को जोड़ना अली साहब? :)

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    1. शायद फिर करवट बदले कभी इतिहास|

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    2. उसके लिए फिर एक सैम बहादुर और एक लौहव्यक्ति (महिला या पुरुष, जो भी कहें) चाहिए.

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    3. दोस्त ये जो राजनैतिक लौह्व्यक्तित्व होते हैं, बहुत मैन्युपुलैटीव भी होते हैं| कभी अपने हित के लिए आग का सामान भी खुद पैदा करते हैं और जब आग दावानल बनने लगे तो उसका ईलाज भी करते हैं| कल ही आसाम पर एक रिपोर्ट में नार्थ-ईस्ट के एक एक्सपर्ट बता रहे थे कि देवकांत-बरुआ ने कभी कहा था कि जब तक 'अली-कुली-बंगाली' आसाम में होंगे, कांग्रेस को प्रदेश में सरकार बनाने के लिए विशेष कुछ करने की जरूरत नहीं है| और आजादी के बाद पचास साल से ज्यादा आसाम में कांग्रेस का शासन रहा है| sum-up करके देखिये, क्या मायने निकलते हैं इस सबके|

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    4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    5. बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी... और संजय जी, बात निकल चुकी है...'अली' भाई लोग तो अली ही ठहरे, 'कुली' भाई लोग हो गये अपने बिहारी और 'बंगाली'... कुछ भी कहना छोटा मुँह बड़ी बात होगी. और वैसे भी मेरा यह मानना हैकि आग लगाने वाला और दावानल बुझाने वाला नेता या नेत्री बेहतर है बनिस्पत उसके जोकि न तो आग लगाने के काबिल है और न ही आग बुझाने के (चाहें वह आग दूसरे के द्वारा हीं क्यों ना लगाई गयी हो) और इस पैमाने पर दुनिया के अच्छे-अच्छे नेता खरे नही उतरते हैं. नेहरू ****(मन तो कर रहा है गाली देने का लेकिन मैं जानता हूँ कि आप फिर ये टीप हटा देंगें :) ) न आग लगा सका और ना ही बुझा सका. जिन्ना ने अपने इस्लाम रूपी बोतल से पाकिस्तान और कश्मीर जैसे दो ऐसे अगिया वैताल निकाले कि आज तक नही बुझ सके और पता नही कौन माई का लाल होगा जोकि बुझाएगा. गाँधी, महात्मा बनते-बनते, ने अपनी तो मराई ही, पूरे देश का बंटाधार कर गये. सरदार पटेल ने कोई आग तो नही लगाई लेकिन प्रिंसली स्टेट्स की आग बुझा गये जाते जाते. सुभाष बोस ने ऐसी आग लगायी क़ि उसकी आख़िरी जोत अब कुछ हफ्ते पहले बुझी है. राजीव गाँधी अपनी माँ की लगाई आग बुझते-बुझाते मर गया. 'समस्यायें' हैं तो 'हम' हैं. यह नही कि 'हम' भी हैं और 'समस्यायें' भी. और जड़ में यही है. आइ डोंट बिलिव इन सिमबियोटिक एग्ज़िस्टेन्स... और वैसे भी, वैसा सदियों में एक ही पैदा होता है जो दावानल के उत्स को ख़त्म कर दे, जैसे कृष्ण ने किया था-एक बार नही कई - कई बार. युगपुरुष पैदा नही होते है, परिस्थितियाँ उनको युगपुरुष बनाती हैं. शायद अभी ऐसी स्थिति नही आई हैकि मैं या आप या मेरे - आपके पुत्रों-पुत्रियों में से कोई उभर के आए युगपुरुष के रूप में!!! हमारा काम शिक्षा देना और जागृत करना है और वह हम कर रहें हैं-व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर, जैसे भी बन पड़ रहा है

      आख़िरकार,

      "एकश्चन्द्र: तमो हन्ति न च तारा सहस्त्रश:"

      कुछ ज्यादा कह गया होऊँ तो क्षमा प्रार्थी हूँ

      सादर
      ललित

      हटाएं
    6. आपकी टिप्पणी बताती है कि आप मात्र टीपने के लिए नहीं टीपते, एक आइडीयोलोजी है आपके पास| मन की बात बहुत बार दबानी पड़ती है, नाम-परिचय वाली प्रोफाईल के कुछ नुक्सान भी होते हैं:)
      आपसे विमर्श की इच्छा है और यकीनन आगे ऐसे मौके आयेंगे भी, मुझे धर्मसंकट में मत डालियेगा|क्षमाप्रार्थी वाली बात ही न उठे तो कितना अच्छा हो| मेरा ब्लॉग इस सब विमर्श के लिए उपयुक्त है भी या नहीं, नहीं मालूम| ईमेल आई डी भी तो नहीं मालूम है आपकी|
      इच्छा है कि ये टिप्पणी हटा दूं लेकिन फिर दुसरे जन भी विचारों से अवगत भी कैसे होंगे? आप ही एक ब्लॉग बनायें और उस पर विमर्श हो तो कैसा रहे? आपकी टिप्पणी से ही दो प्रश्न मैं निकालता हूँ -

      १. किसी युगपुरुष की प्रतीक्षा ही हमें अकर्मण्य नहीं बनाती?

      २. 'चाँद नहीं बन पाए तो क्या गम है,
      आसमान में तारों की कीमत क्या कम है?'

      हटाएं
    7. अतिवादी विचारधारा रही है मेरी. आपने विमर्श के लायक समझा, कृतग्य हूँ. और संजय जी, जहाँ तक बात है ब्लॉग बनाने की तो अभी उतना परिपक्व नही हुआ हूंकि ब्लॉग बना सकूँ. अकर्मण्य नही हूँ मैं, हाँ निष्क्रिय ज़रूर हो जाता हूँ. फेसबुक से हटने का कारण भी यही था कि मैं समय का दुरुपयोग करने लगा था. अब आते हैं आपके प्रश्नों पर.
      १. युग पुरुष की प्रतीक्षा हमें ना तो अकर्मण्य बनाती है और ना ही निष्क्रिय. यह हमें भाग्यवादी बना देती है जोकि सबसे खराब है. कादर मन कह एक अधारा, दैव-दैव आलसी पुकारा. हमें, अगर परिस्थितियों का सामना नही कर सकते हैं तो, भविष्यदृष्टा या दूरदर्शी, अगर भविष्यदृष्टा उपयुक्त शब्द नही है तो, बनने की कोशिश करनी चाहिए और तदनुरूप तैयारी करनी चाहिए. भारतवर्ष में तो... घर में आग लग गयी घर के ही चिराग से... अब जब चिराग में आग असंयमित होगी तो आग तो लगेगी हीं. शिक्षा और समीचीन शिक्षा ही वह एक उपाय है जो हमें इस चक्रव्यूह से निकाल सकती है. आगे... हरि इच्छा.
      २. तारों की कीमत कम लगाने की जुर्रत कौन कर सकता है साब!!! चाँद की खूबसूरती में चार चाँद लगाने वाली फ़िज़ायें हैं ये तो. लेकिन बात फिर वहीं पर आ के अटकती हैकि अगर अमावस्या की रात होगी तो क्या ये तारे हमारा दिग्दर्शन करेंगे? अगर हाँ, तो फिर चाँद की कोई आवश्यकता नही है और अगर नही तो हमें इन तारों में से किसी एक उपयुक्त पात्र को चाँद और नही तो कम से कम ध्रुवतारा बनाने की कवायद शुरू कर देनी चाहिए.

      आप के उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी lalit74@gmail.com पर

      सादर
      ललित

      हटाएं
  8. इस तरह से साफ बात रखने वाले कम हो गये हैं..

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    उत्तर
    1. बात रखने वाले भी और पचाने वाले भी कम हैं प्रवीण जी|

      हटाएं
  9. आभार आपका | किन शब्दों में कहूं जो कहना चाहती हूँ ?
    प्रणाम उन्हें |
    और आपको भी |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप शर्मिन्दा कर रही हैं शिल्पा जी| मैंने तो सिर्फ टाईप करके शेयर भर किया है|

      हटाएं
    2. :):):)


      PRANAM...


      P.S - FIR EK BAAR SHARMAYEN AUR ISMAILEE LAGAYEN

      हटाएं
    3. पहली बार किसी ने ऐसी फरमायश की है तो शरमाए देता हूँ और स्माईली भी ठोके देता हूँ :)
      अगली बार मैं भी जवाब में पांयलागूं कह सकता हूँ, बता दिया है|

      हटाएं
  10. एक अलग रूप - यह अन्दर की मात है! (बात लिखना चाहता था अनजाने ही मात टाइप हो गया - पहले बदलने लगा फिर सोचा जो हो गया, हो जाने दो)

    वैसे, एक पुरानी समीक्षा अभी भी उधार दिख रही है।

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    उत्तर
    1. उधारी चुकाने की इच्छा तो जरूर है सर जी, आगे हरि इच्छा|
      मंजूरी A\F है|

      हटाएं
    2. by the way (meaningless here - but just mentioning it) - "maat" in kannada - means "baat" in hindi

      shilpa

      हटाएं
    3. बड़े लोगों से बड़ी मात(हिन्दी\कन्नड़) मिलने की ही अपेक्षा रहती है जी हमारी, इसीलिये तो उस प्वाईंट पर कन्नी काट गए थे:)

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. ड्राफ्ट में तो कब से थी लेकिन आपके मानसून वाले लेख में युद्ध प्रसंग ने और असम की हालिया आग ने इसे इस समय पोस्ट करने के लिए प्रेरित किया| आपका धन्यवाद करता हूँ विवेक जी|

      हटाएं
    2. प्रसंग का ही ख्याल आया हमें भी ! शायद रेडिफ पर इस तरह का प्रसंग पढ़ा था कभी.

      हटाएं
  12. शेयर करने के लिए धन्यवाद...

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  13. क्या आप दुश्मनी पाले दुसमन को अपने घर मैं पनाह दे सकते है ........
    .......बांग्लादेसी भारत छोड़ो.....


    jai baba banaras....

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    उत्तर
    1. हम देते हैं कौशल जी, चंद सिक्कों के बदले और छद्म धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढकर| वोट बैंक जो ठहरे|
      जय बाबा बनारस|

      हटाएं
  14. दूरदर्शिता तो सचमुच थी ही और साथ ही अपनी बात को कहने का दम.

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    उत्तर
    1. इसी लिए मैं उन्हें महानायक मानता हूँ, पी.एन. सर|

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  15. बहुत बढ़िया. हर जनरल को ऐसा ही होना चाहिए. असम, पंजाब, कश्मीर... न जाने कितनी समस्याएँ इंदिरा गांधी और कांग्रेस की देन हैं.
    यह किताब तो पढनी पड़ेगी.

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    उत्तर
    1. पढकर यकीनन बहुत अच्छा लगेगा निशांत भाई| निष्ठा, स्पष्टता, निर्भीकता, मानवता, हाजिरजवाबी जैसे गुण सैम बहादुर को अद्वितीय व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करते हैं| आप पुस्तक जरूर पढेंगे|

      हटाएं
  16. सैम की स्पष्टवादिता और नेत्री का सच सुनने का साहस, दोनों ने प्रभावित किया !

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  17. महान लोगों की महानता ही इसमें होती है कि जोश के साथ उनमें विवेक प्रतिपल सजग होता है।

    जवाब देंहटाएं
  18. टीवी पर इस पुस्तक के यही अंश देखे थे , मुझे लगता है की मामलों दोनों तरफ के समझ का है जमीनी सच को कहने की हिम्मत बिना किसी राजनीतिक दबाव के और अपनी राजनीतिक जरूरतों , हालातो और नीजि सोच से ऊपर उठ कर देश हित में सोचा जाये , वरना तो आज देख ही रहे है की अपनी नीजि सोच , इगो के लिए दोनों तरफ से ही सेना और देश की साख दाव पर लगते लोगो को देर नहीं लगती है | आज बस हर जगह इच्छा शक्ति की ही कमी दिख रही है नहीं तो मामला कुछ भी नहीं है और होता |

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    उत्तर
    1. सही कहती हैं आप, पर्सनल अजेंडे सबसे बड़े हो गए हैं आजकल|

      हटाएं
  19. कुछ दिन पहले किसी को सुन रहा था "I don't want to be remembered as a world beater for I do not has the resources, but the day I hang up my boots, people must say - Here he is, a smiling, truthful and honest man."
    सचमुच किताब पढ़नी होगी।

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    उत्तर
    1. पढोगे तो यकीनन अच्छी लगेगी, वैसे इंग्लिश वर्जन भी उपलब्ध है|

      हटाएं
  20. बड़ी मामूली सी बात पर गुस्से में सबके सामने अपने बॉस के मुँह पर गरम चाय की प्याली फेंक दी.. मेरी उम्र २२ साल और बॉस की ४८ साल.. साल भर बाद उसी बॉस ने मेरी मदद की और मुझे अच्छी ब्रान्च दिलवाई!!
    बात जिगरे की नहीं और न सुनने पचाने के कूवत की है.. आपही कहते हैं ना.. सब मुरारीलाल का सिद्धांत है.. काम कर गया तो ठीक, नहीं तो भावनगर!!

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    उत्तर
    1. काम कर गया तो ठीक, नहीं तो भावनगर! :(

      हटाएं
    2. इस नए मुहावरे पर एक और बात याद आ गई, शेयर करता हूँ कभी आपके साथ| इस नए मुहावरे के गठन में दो टका क्रेडिट हमारी चौपड़ी में चढ़ा दीजियेगा सलिल 'भाई':)

      हटाएं
    3. काम कर गया तो ठीक, नहीं तो भावनगर!
      सलिल जी,
      फिर आगे तो जामनगर है :)

      हटाएं
  21. बढ़िया पोस्ट पढ़ने से छूटी जा रही थी।:)

    जवाब देंहटाएं
  22. फील्ड मार्शल मानिकशॉ जैसे विवेकी कमांडर ही इतिहास रचा करते हैं. उस समय के पूर्वी पाकिस्तान की परिस्थितियों, विशेषकर महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों ने इंदिरा को झकझोर दिया था और वे वहाँ के हालात दुनिया को बताने के लिए दौरे पर निकल गई थीं. विश्व ने उनकी बात को समझा और भारतीय आक्रमण का कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ. यह उस समय की अच्छी टीम का किया गया विजय अभियान था.

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