आप जानते ही होंगे कि बैंक वालों की वेतन वृद्धि हर पाँच साल के बाद होती है। वेतन वृद्धि की देय तारीख से लगभग दो-ढाई साल बीत चुके होते हैं, तब कहीं यूनियन और प्रबंधन किसी समझौते पर पहुँच पाते हैं। हम सब इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। बहुत बुरा नहीं लगता बल्कि अब अच्छा ही लगता है कि इस बहाने कुछ एरियर इकट्ठा मिल जाता है।
ऐसा ही कोई वक्त था, एरियर की तैयारी हो रही थीं और हम सब हवाई किले बांधने में जुटे हुये थे। वो घड़ी भी आ गई जब एरियर का भुगतान हुआ। हम जैसे इसलिये उदास हो गये कि उम्मीद से कम एरियर मिला था, भोला महाराज इसलिये उदास हो गये कि उम्मीद से ज्यादा मिल रहा था। ’मित्र का दुख रज मेरू समाना’ का उद्घोष करते हुये हमने प्रस्ताव दिया, "भोलाजी, तुस्सी चिंता न करो। हम तुम्हारे साथी हैं, हाथ बढ़ायेंगे और फ़ालतू वाला एरियर अपने सिर कर लेंगे।" स्वाभिमानी और सुसेक्यूलर सुशासक नितीश जी ने जैसे धर्मांध एवं साम्प्रदायिक मोदी की सहायता राशि ठुकरा दी थी, वैसे ही स्वाभिमानी भोला ने सहायता के लिये बढ़े हुये हमारे हाथ ठुकरा दिये, कहने लगा, "अपने रंजो-गम असी आप ही सह लांगे। मेरे नाम आई हुई चीज है, मैं ही इसे झेलूंगा।" हम अपना सा मुँह लेकर रह गये।
पूरी ब्रांच की निगाहें बैलट-बॉक्स की तरह भोला की झोली पर टिकी हुई थीं। ’जिसे तन्ख्वाह भी आधी अधूरी मिलती हो, वो एकमुश्त आती रकम को लेकर कैसे व्यवहार करेगा’ सट्टे का बाजार गर्म हो गया था। पैसे माँग माँगकर मैंने भोला को पहले ही पका रखा था, तंग आकर उसने वादा कर दिया कि किसी को उधार नहीं देगा और सारे पैसे दारू में नहीं उड़ायेगा लेकिन पैसे खुद ही खर्चने हैं।
भोला महाराज ने घोषणा कर दी कि जब तक खाते में पैसे रहेंगे, तब तक किंगसाईज़ लाईफ़ जियेगा। पानी की प्यास लगे तो बंदे ने जूस पीना शुरू कर दिया, रेहड़ी वाले से ’कल नगद और आज उधार’ में छोले-कुल्चे खाने वाला वो बंदा अब कस्बे के सबसे महंगे होटल में डीलक्स थाली की डिलीवरी के लिये जब फ़ोन पर आर्डर मारता था तो उसका रौब देखते ही बनता था। माँगकर, दूसरे की जेब से निकालकर बीड़ी पीने की जगह अपनी जेब में सिगरेट की डिब्बी आ गई थी। सुबह शाम पैदल डोलने वाला वो अब दस कदम दूर भी जाना होता तो रिक्शे वाले को आवाज लगाता। संक्षेप में बात ये कि कस्बे की अर्थव्यवस्था में जान डालने में श्रीमान जी दोनों हाथों से जुटे हुये थे।
शायद पांचवा या छठा दिन था कि कहने लगा शरीर में हरारत हो रही है। मुझे तो खैर ठीक ही दिख रहा था फ़िर भी मैंने पूछा कि पुराने डाक्टर को ही दिखायेगा या यहाँ भी किंग साईज़? कहने लगा, "कोई ढंग का डाक्टर बताओ। फ़ीस दी चिंता नहीं करनी है, साड्डे कोल पैसे हैगे। बस्स डाक्टर वदिया(बढ़िया) होणा चाहीदा है।" हम तो ठहरे हुकम के गुलाम, बता दिया एक बढ़िया सा डाक्टर, बल्कि अपायंटमेंट भी ले दी। साथ चलने की बात कही तो उसने मना कर दिया, "तुस्सी अपने घर जाओ। जो ठेके पर साथ जाते थे, डाक्टर के पास भी वो ही साथ ही जायेंगे। वैसे भी मैंने कौन सा पैदल जाना है? टैक्सी कर लूँगा।" हम अपने घर आ गये।
अगले दिन सुबह बंदा एकदम फ़िट दिखा। स्टाफ़ वाले उसे घेरकर पिछले दिन के हाल पूछ रहे थे। आँखे बड़ी बड़ी करके पहले तो उसने डाक्टर के क्लीनिक का नक्शा बताया। रिसेप्शन, केबिन, एसी, फ़र्श, सफ़ाई वगैरह वगैरह सबकी दिल खोलकर तारीफ़ की। फ़िर डाक्टर की तारीफ़ शुरू हुई। इतना पढ़ा लिखा, इतनी तगड़ी फ़ीस वाला डाक्टर और ऐसा शरीफ़ कि कभी देखा ही नहीं। इतनी शराफ़त वाली बात में मुझे कुछ लोचा दिखा, उससे पूछा कि जरा विस्तार में बताये।
भोला ने बताया, "डाक्टर ने नब्ज वगैरह देखने के बाद दो चार सवाल पूछे और फ़िर दवाई लिख दी। इतना जेंटलमेन डाक्टर हैगा सी कि उसने पंद्रह मिनट में कम से कम दस बार थैंक्यू बोला होगा।"
"दस बार थैंक्यू?"
"कम से कम। क्यों? सानूँ थैंक्यू नईं बोल सकदा?"
"बोल तो सकता है लेकिन..। फ़िर तूने क्या कहा?"
"यू आर वैलकम।"
"कितनी बार कहा तूने?"
"जितनी बार उसने थैंक्यू कहा, उतनी बार। सान्नूँ वी अंग्रेजी आंदी है, असी इतने घोड़ू भी नहीं हैगे।"
बहुत देर के बाद उसे किसी ने बताया कि दवाई लिखने के बाद डाक्टर साहब ने उसे थैंक्यू कहा था तो उसका मतलब था कि अब आप जा सकते हैं। बड़े लोगों के कहे गये शब्दों के मतलब डिक्शनरी में दिये हुये मतलब से अलग होते हैं।
थोड़ी देर हो-हल्ला मचता रहा फ़िर सब अपनी अपनी सीट पर बैठ गये। दोपहर में खाने के लिये बैठे तो भोला अपने फ़ेवरेट छोले-कुल्चे की प्लेट निबटाते हुये बोला, "जो मजा इस स्साले दे छोलेयाँ विच है, होटल दी डीलक्स थाली विच नहीं।"
एरियर की बची हुई खेप बीती रात में बराबर हो चुकी थी, भोला फ़िर से पुरानी बिंदास फ़ार्म में वापिस आ चुका था। न पैसे बचे, न हिसाब रखने की जरूरत। नो टेंशन, लिव लाईफ़ असली किंगसाईज़।
उस दिन से मेरा और भोला का दो-ढाई हजार का मुकदमा फ़ँसा हुआ है। वो डाक्टर की फ़ीस, टैक्सी खर्चा, दवाई के पैसे मेरे नाम निकाले बैठा है। मैं कहता हूँ कि खर्चा किया तभी तो वो एक दिन में भला चंगा हो गया था और वो कहता है कि मैंने उसका खर्चा ख्वाम्ख्वाह में करवाया। कहता है, "जिस स्साले को ये नहीं पता कि सामने वाले को बाहर भेजने के लिये क्या कहना होता है, वो इलाज क्या बैंगन खाकर करेगा? मैं तो वैसे ही ठीक हो जाता।"
कहीं से उसे खबर मिल गई कि मेरा फ़िर से ट्रांसफ़र होने वाला है, आज भी फ़ोन आया था, "संजय बाऊ, ऐत्थे ही आजा। पुराना हिसाब किताब भी निबटा लेंगे।"
आप ही फ़ैसला करो जी, इस मामले में मैं उसका देनदार बनता हूँ क्या?
उस भोले आदमी का हिसाब तो बनता है जी :)
जवाब देंहटाएंबिल्कुल बनता है !
हटाएंपंचों का कहा सर-माथे :)
हटाएंले दे के मामला रफा दफा करो, ऐसे डॉक्टरों के भरोसे खैर मनाने वालों का तो हाल खराब है।
जवाब देंहटाएंले दे के कहाँ जी, बहुमत तो दे दे की टेर लगा रही है :(
हटाएंभगवान न करे कभी डाक्टर के पास जाना पड़े। रह गया भोला बाबा...तो हिसाब पूरा न निपटाना ..मजा नहीं आएगा।
जवाब देंहटाएंभोले महाराज का हिसाब पूरा नहीं निपटेगा, मजा आता ही रहेगा।
हटाएंBaau ji....
जवाब देंहटाएंAisa Hai Ki Provisioning Abhi Se Hi Shuru Kar dijiye Warna Pata Nahi Kahin Sach Me Takra Gaye dobara To Byaz Sahit Dendaari Chukani Padegi.:)
Naman.
प्रोविज़निंग चालू आहे:)
हटाएंब्लॉग अपडेट करो भाई, बहुत रेस्ट हो गया। कब से अवि-रवि दोनों चुप्प लगाये बैठे हैं।
डॉक्टर बेचारा अपना हिसाब-किताब पूरा करने के बाद गेट-आऊट बोलता तो बात बनती ना!
जवाब देंहटाएंऔर क्या, गलती डॉक्टर ने की और मामला हम पर बना हुआ है।
हटाएंचादर से बाहर पैर फैलाना एक लाइलाज रोग है
जवाब देंहटाएंपैर सिमटे तो रोगी खुद ही निरोग हो गया।
हटाएंअपना एरियर भी तो मिला होगा। दे दिवा के मामला निपटाओ भाई।
जवाब देंहटाएंपिछला एरियर तो कब का निपट गया महाराज, अगला ड्यू हो चुका अब तो। उसमें से दे दिवा देंगे।
हटाएंकलम बचा कर रखें, व्यवहार बना रहेगा.
जवाब देंहटाएंयही भोला का उसूल है, जब तब बताता रहता था कि उसको दो छींक भी आ जाये तो सबको चिंता हो जाती है।
हटाएंकोई देनदारी नहीं बनती। यह किसने कहा था... "कोई ढंग का डाक्टर बताओ। फ़ीस दी चिंता नहीं करनी है, साड्डे कोल पैसे हैगे। बस्स डाक्टर वदिया(बढ़िया) होणा चाहीदा है।" बैठे-बिठाये इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया वो कम है! उसे तो आपको अपना गुरू मानकर उल्टे दक्षिणा चढ़ाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंलाज बचा ली देवेन्द्र जी आपने, वरना ब्लॉगर्स से तो विश्वास ही उठ चला था :)
हटाएंजे ब्ब्ब्ब्बाआआत
हटाएं:D
हटाएंअब डॉक्टर के यहाँ ही डॉक्टर को वेलकम करेंगे तो डॉक्टर बोलेगा भी क्या।
जवाब देंहटाएंदोनों ही एक से बढ़कर विनम्र बने हुये थे:)
हटाएंभोला के समझने भूल होगी ही जब डॉक्टर मायावी तरीके से शब्द कुछ और भाव कुछ दिखाएगा. शब्द के पिछे भाव छुपा कर बोलेगा तो कैसे समझ आएगा? लेकिन अगर डॉक्टर बोलता कि "आपके जाने का समय हो गया है" तो पता नहीं भोला ठीक से समझ पाता या नहीं :)
जवाब देंहटाएंआया तभी था जब डाक्टर साहिब ने ऐसा ही कुछ कहा था :)
हटाएंखून का रंग सबका एक होता है पर सोच सभी अलग अलग होती है ....
जवाब देंहटाएंजय बाबा बनारस....
बराबर बात है कौशल भाई
हटाएंजय बाबा बनारस..
भोला का हिसाब बिलकुल सही है , अभी गर्मियों की छुट्टियों में पति से बस पास हो जाने वाले भांजे ने सलाह मांगी की मामा अब आगे क्या करू सलाह मिली की सी ए कर लो , मै हंस पड़ी बोल सलाह देने से पहले सामने वाले की कैपसिटी तो देख लो , कुछ भी बोल देते हो , वो तो बच्चा है तुम्हे समझदार समझ कर सलाह मांगी कि तुम उसकी हालत को समझ कर सलाह दो और तुम तो ...............वही हाल आप का है भोला तो भोला था तभी तो आप से सलाह मांगी नहीं तो जो रात को अड्डा खोज सकता है एक डाक्टर नहीं खोज लेता , सलाह इसलिए मांगी की आप उसकी असली हालत जानते है तो सलाह उस हिसाब से देंगे , पर आप तो उसी के साथ बहा गए ...........पैसे सूद समेत वापस कीजियेगा ।
जवाब देंहटाएंवैसे अब ये तम्बू डेरा उखड कर किधर जा रहा है , कही कोई कश्मीर पंजाब की समस्या फिर से तो नहीं है :)
उस हिसाब से सलाह देता तो वो आरोप लगाता कि हम उसे बराबरी का मौका नहीं देते, इस हिसाब से सलाह दी तो पैसे का रि-इंबर्समेंट वापिस माँग रहा है। हिसाब तो खैर उसका सही ही होगा लेकिन सूद वाला प्वाईंट? अच्छे शुभचिंतक मिले हैं हमें!!
हटाएंतंबू डेरा तो अभी ’एक तरफ़ उसका घर, एक तरफ़ मयकदा’ स्थिति में हैं। समस्याओं की कोई दिशा विशेष नहीं, जहाँ तंबू गड़ेगा वहीं ढूँढ लेंगे:)
सर जी , दे दिवा के हिसाब नक्की करो जी .
जवाब देंहटाएंदे दिवा तो देंगे पर हिसाब नक्की नहीं करना है जी, ऊपर हमारा रोहित भाई कह गया है कि फ़िर मजा नहीं आयेगा।
हटाएंऔर करो दोस्ती भोला से ...
जवाब देंहटाएं:)
इस ’और ...’ पर एक पोस्ट बहुत दिन से पेंडिंग है सतीश भाईजी। हिम्मत जुटा रहा हूँ, देख लेना जब आयेगी तो :)
हटाएंबहुत दिनों बाद भोला की खबर मिली, अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसही तो कह रहा है - "संजय बाऊ, ऐत्थे ही आजा। पुराना हिसाब किताब भी निबटा लेंगे।"
प्रणाम
’भोला’ याद है, अच्छा लगा। श्रीखंड यात्रा कैसी रही भाई?
हटाएंलगे हाथों एरियर की पार्टी का हिसाब भी हमसे निपटा ही लीजिये तो अच्छा रहेगा :)
जवाब देंहटाएंआप भी पीछे क्यों रहें? बनाईये प्रोग्राम, हम तैयार हैं:)
हटाएंएक इलाज़ और है , एक पार्टी और दे ले और अबके डॉक्टर के ले जाने से पहले लिखा -पढ़त कर ले एडवांस में !
जवाब देंहटाएंवाह रे भोला। पड़ोसन फिल्म देखती हूँ यु ट्यूब पर।
जवाब देंहटाएं:)
वाह! बिन्दास! थैन्यू जी! मोस्ट वेलकम!
जवाब देंहटाएंमानना पड़ेगा भैया जी आपका चोंखा हिसाब है
जवाब देंहटाएंकहाँ कहाँ आप हिसाब बराबर करेंगे, कहीं भोला है तो कहीं …. :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब उत्तम प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंसंजय बाऊ, ऐत्थे वी आके पुराना हिसाब किताब निबटा ले ...... :)
जवाब देंहटाएंHello Sirjee....remember???
जवाब देंहटाएंremember??
हटाएंना जी, इत्ता सा कमेंट करने वाली कोई सांझ तो हमें रिमेम्बर नहीं। हाँ, राजस्थान\ अंबाला\बंगलौर को एक कमेंट में लपेटने वाली नटखट सी सांझ होती तो रिमेम्बर होती भी:)
Arey vo actually kya hua na...rajasthan bangalore ambala mein ab UP jud gaya...to us waali saanjh ki thodi si band baj gayi ;)
हटाएंअब तक तो मामला रफा-दफा हो गया होगा?
जवाब देंहटाएंdepends...kaunse maamle ki baat kar rahe ho ;)
हटाएंVaise mujhe pata hai ye sawal mere liye ni tha....avain just barged in :)
कुछ तो है जिसकी देनदारी है
जवाब देंहटाएंडॉक्टर की कौन मति मारी है।
देर से आनेवाले का भी हिसाब रखा कीजिए साहेब
जवाब देंहटाएं