कश्मीर से चलकर आये उन ब्राह्मणों की व्यथा-कथा सुनकर सबके दिल उदास हो रहे थे और आँखें गीली। क्या विडंबना थी कि स्वर्ग जैसी जन्मभूमि में सुख,शान्ति और समृद्धि से जीवन व्यतीत कर रही एक भूभाग की जनता इस बात के लिये विवश थी कि या तो अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाये नहीं तो हर तरह के जुल्म सहे। त्रस्त होकर उन लोगों को आशा की एक किरण यहीं दिखी थी तो कश्मीरी ब्राह्मणों का एक प्रतिनिधिमंडल सहायता की पुकार लगाने गुरू श्री तेगबहादुर जी के समक्ष प्रस्तुत हुआ था। उपस्थित समूह में सन्नाटा छाया हुआ था। सत्तासीन को निरंकुशता के साथ मजहबी कट्टरपन की सनक सवार हो जाना शेर के मुँह खून लगने से भी खराब होता है, शेर तो सिर्फ़ क्षुधापूर्ति के लिये दूसरों की जान लेता है।
धरती ऊपर से शांत दिखती है लेकिन उसके गर्भ में क्या कुछ चल रहा है, ये हमेशा दिखता नहीं है। जहाँ गुरू साहब विराजमान थे, उसी गद्दी के पास खड़े उनके नौ वर्ष की वय के सुपुत्र बाला प्रीतम(गुरू गोविंद सिंह) ने सबकी उदासी का कारण पूछा। कारण बताये जाने पर उस तेजपुंज ने इसका उपाय पूछा। पहले से ही आतंकित और त्रस्त नागरिकों के टूट चुके मनोबल को झकझोरने का उपाय क्या हो सकता है?
विचारमग्न गुरू श्री तेग बहादुर जी ने कहा, "अब किसी महापुरुष को बलिदान के लिये सामने आना होगा।"
बाला प्रीतम ने छूटते ही कहा, "पिताजी, आज के समय में आप से बड़ा महापुरुष कौन है?"
वहीं निर्णय हो गया। गुरू तेग बहादुर जी ने प्रतिनिधिमंडल से दिल्ली के शहंशाह को कहलवा भेजा कि अगर वो गुरू तेग बहादुर जी को इस्लाम स्वीकारने के लिये तैयार कर ले तो सब लोग इस्लाम स्वीकार कर लेंगे अन्यथा नहीं। संदेश दिल्ली पहुँच गया और स्वयं गुरू तेगबहादुर भी अपने कुछ शिष्यों के साथ दिल्ली को रवाना हुये।
औरंगज़ेब के द्वारा इस्लाम स्वीकार किये जाने की बात पर गुरू साहब ने ऐसा करने से स्पष्ट मना कर दिया बल्कि निर्भीकता से उसे कहा कि तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो जो अत्याचार के द्वारा दूसरों को अपना धर्म छोड़ने के लिये मजबूर करते हो। चमत्कार दिखाने की शर्त से लेकर, लालच और फ़िर कैद का भय दिखाकर भी औरंगज़ेब के मंसूबे पूरे होते नहीं दिखे तो उसने जल्लादों को गुरू तेगबहादुर जी का शीश उतारने का हुक्म दे दिया।
"भै का कऊ देत नहिं, नहिं भै मानत आनि" उचारने वाले भला सिद्धांतों के लिये बलिदान देने से पीछे हटते? वैचारिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मिसाल पेश करते हुये गुरू तेगबहादुर जी ने हँसते-हँसते अपना बलिदान दे दिया, शीश दिया पर अपना धर्म नहीं दिया।
चाँदनी-चौक, दिल्ली में जिस जगह पर गुरू साहब का शीश उतारा गया, आज वहाँ गुरूद्वारा शीशगंज साहिब है जो हम सबकी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। यह हमें याद दिलाता रहेगा कि भविष्य उन्हीं कौमों का सुरक्षित रहेगा जिनके पास बलिदान की विरासत है।
’हिन्द की चादर’ श्री गुरू तेगबहादुर जी के चरणों में बारंबार नमन।
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जय हो!
जवाब देंहटाएंइक ओंकार सतनाम कर्तापुरुख निर्भय निर्वैर ...
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जवाब देंहटाएंहिंदुओ को बचाने के लिये सिखो ने हमेशा कुर्बानी दी है लेकिन कुछ गददार हिंदुओ के कारण आजकल आपस में बैर भाव बढ गया है
जवाब देंहटाएंItihas ke is balidani panne ko sajha karne par sir swayam jhuk jaataa hai Guru charano mein. Sat Siri Akaal!!
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naman oon vir-purkhon ko...........abhar aapka............
pranam.
naman unhe .. but we want things without sacrifices - even sacrificing our time - leave alone anything greater than that....
जवाब देंहटाएंये सारी गाथाएँ न लिखीं जाएँ तो बच्चों तक बलिदान का अर्थ न पहुँचेगा ....... आभार कि इसे शेअर किया ......
जवाब देंहटाएंबचपन में पढ़ी थी फिर याद से निकल गई थी , याद दिलाने के लिए धन्यवाद अब बिटिया को बताने के काम आएगा , क्योकि उन्हें ये सब पढने जानने के लिए नहीं मिलता है ।
जवाब देंहटाएंहमारी धरोहर ये बलिदान गाथाऐं, कंप्यूटर गेम्स/फ़ेसबुक/ब्लैकबेरी/व्हाट्सअैप/ट्यूशन में व्यस्त बच्चों को कौन सुनाएगा :-(
जवाब देंहटाएंकंप्यूटर गेम्स/फ़ेसबुक/ब्लैकबेरी/व्हाट्सअैप/ट्यूशन के बाद भी बच्चे इन्हें सुनेंगे सरजी, दौर दौर की बात है।
हटाएंक्या बात कही है। भविष्य उन्हीं कौमों का सुरक्षित रहेगा जिनके पास बलिदान की विरासत है।
जवाब देंहटाएंऐसे अमर पूर्वजों को लाख-लाख प्रणाम।
ओह इतिहास का यह कैसा निर्मम पृष्ठ :-(
जवाब देंहटाएंनमन गुरु को !!
जवाब देंहटाएंकश्मीर के हिन्दू और विशेष रूप से ब्राह्मण पूरे विश्व में प्रसिध्द हैं । आज वे कश्मीर से निर्वासित हो चुके हैं । उन्हें कश्मीर छोडने के लिए विवश किया गया है । माता-पिता के सामने उनकी बेटी की सरे-आम दुर्दशा की गई है । हिन्दुओं को धमकाया जा रहा था और यह कहकर खदेड दिया गया कि तुम अपना सामान छोड-कर [सामान में हिन्दुओं की बेटियॉं भी थीं ] भाग जाओ । हिन्दू बेटियों की इतनी दुर्गति हुई जिसे मै शब्दों में नहीं कह सकती । यह अक्षम्य है । सरकार आज भी वहॉं रोटी सेंक रही है ।
जवाब देंहटाएंकश्मीर के लोगों के साथ ये हमारा भी दुर्भाग्य है। रोटी सेंकने की तो मत पूछिये, अब पर्यटन के नाम पर केन्द्र और राज्य कर्मचारियों को कश्मीर घूमने जाने के लिये शानदार पैकेज दिये जाते हैं। मुझ जैसे को तो ये जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा लगता है।
हटाएंगुरु तेग-बहादुर को मेरी विनम्र श्रध्दाञ्जलि । आज भी यह बात सम्यक एवम् सटीक है कि एक सिक्ख सवा लाख के बराबर होता है ।
जवाब देंहटाएंSHIHS CHADHANE GAYE SHISH SAHIB GANJ KO MERA PRANAM
जवाब देंहटाएंaapane yaad krawaya isake liye pranam
जो डरा कर जीता है वो डर से ही मरता है...ताक़त से जो दूसरों पर ज़ुल्म करते हैं...उनका अंत भी जुल्म से ही होता है...गुरु तेग बहादुर इस देश के मार्ग दर्शक रहे हैं...धर्म तो सिर्फ एक है...मजहब बदलने वाले धर्म नहीं समझ सकते...
जवाब देंहटाएंगुरु ने बलिदान दे संस्कृति को बचा लिया, नमन।
जवाब देंहटाएंजय हो !
जवाब देंहटाएंयही पाठ गुरु गोविंद सिंह की जयन्ती के उपलक्ष में अभी हाल ही में पान्जन्य में पढ़ा था। बहुत बढ़िया प्रेरक प्रसंग।
जवाब देंहटाएंमुझे पान्जन्य पढ़े बहुत समय हो गया, फ़िर नियमित होने का विचार है।
हटाएंजय हो...
जवाब देंहटाएंजब भी ये बलिदान याद आता है शीश श्रद्धा से गुरु तेग बहादुर जी के लिए झुक जाता है....
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