सोमवार, मार्च 17, 2014

होली

                                                 

                                                          
                                                    (चित्र गूगल से साभार)               

पिछले तीन दिन से बहुत से मित्रों के होली से संबंधित खूबसूरत, रंग बिरंगे. चित्रमय, गद्यमय शुभकामना संदेश मिल रहे हैं। अच्छा भी लग रहा था और थोड़ा सा अजीब सा अहसास  भी हो रहा था। अच्छा इसलिये कि यारों की मेलिंग लिस्ट में अपना नाम शुमार है और दूसरा मूड बनने के पीछे वही भावना था कि ’तेरी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यूँ?’  तस्वीर. शेर, दोहे, कविता ये सब अपने बूते के नहीं, इसीलिये न इतने बढ़िया बढ़िया संदेशे और पोस्ट लिख रहे हैं सारे? मुझे अहसास-ए-कमतरी करवाने के मंसूबे बांध रखे हैं सबने। सारी दुनिया दुश्मन हुई पड़ी है मेरी। देख लूँगा सबको एक एक करके और दिखा भी दूँगा, वक्त आने दो:)

इतने पर भी बस नहीं की यारों ने,  कल ही बहुत से अग्रजों ने आदेश\अनुरोध किया कि होली पर कोई तड़कती फ़ड़कती पोस्ट लिखो(कहा तो दो ही बंधुओं ने था लेकिन बहुत से इसलिये लिखा है ताकि आप लोग इम्प्रैस हो जाओ कि अपनी भी डिमांड है:))     सोच रहा हूँ अपने प्रोफ़ाईल में ये लाईन बोल्ड करके लिख ही दूँ, “यहाँ आर्डर मिलने पर तड़कती फ़ड़कती पोस्ट लिखी जाती हैं:)”  माना एकाध बार ऐसा हो चुका है, और हमने चढ़ाई में आकर कुछ लिख भी दिया था लेकिन इत्ते  फ़रमायशी गीतमाला भी नहीं हुये हैं अभी कि फ़ट से  फ़रमायश मान लें। नहीं लिखेंगे, बिल्कुल नहीं लिखेंगे। रखनी है यारी रखो, नहीं रखनी है तो मत रखो।  जैसे फ़त्तू उस दिन अपने मुलाजिमों को मुखातिब हो रहा था, “Do do, not do not do. Eat your husband & lie in oven. What my goes? Your goes, your father’s goes.”  पंजाबी तर्जुमा  (करना है करो, नहीं करना ते ना करो। खसमां नू खाओ ते चूल्हे विच जाओ। मेरा की जांदा है? त्वाडा जांदा है, त्वाडे प्यो दा जांदा है) मैं भी कह दूंगा, “Keep keep, not keep not keep….”

कन्फ़्यूज़न था कि भारी हुआ जा रहा था कि अब कैसे रेसपांड किया जाये। जवाब  न दिया जाये तो  भी फ़ंसे और जवाब दें तो ऐसे अच्छे अच्छे संदेश कहाँ से लेकर आयें?  अच्छा फ़ंसा इस नगरी में आके, गुड़ खाने का मन भी करता है और ..।      

हंसी मजाक एक तरफ़, दो तीन बार ऐसा हो चुका है कि मैं इधर अपनी कोई पोस्ट लिख रहा हूँ, या इधर उधर कमेंट्स कर रहा हूँ  और फ़ौरन बाद मालूम चला कि अभी अभी कोई त्रासदी होकर हटी है। दो घटनायें तो मुझे याद हैं ही, एक दंतेवाड़ा में नक्सलवादियों के उत्पात की खबर जब मालूम चली और अभी जापान वाली आपदा का जब मालूम चला तो इस बात का इल्म होने के बावजूद कि मेरे या हमारे पोस्ट लिखने, हँसी मजाक करने से इन बातों का कोई लेना देना नहीं है लेकिन फ़िर भी कहीं एक चीज मन को कचोटती है कि मैं इधर हँसी ठिठोली में लगा हूँ और उधर हम जैसे ही मनुष्य जीवन-मौत के बीच झूल रहे हैं। फ़िर सोचता हूँ तो दुनिया का नजरिया बेहतर लगने लगता है कि इन त्रासदियों को नहीं रोक सके तो फ़िर इन उत्सवों, राग-रंग को क्यों रोका जाये?  हो सकता है मुश्किलों से जूझने का जोश  इन्हीं से मिल जाये। फ़िर आपका ही बना बनाया मूड क्यों बिगाड़ा जाये।

दोस्तों, आप सबके शुभकामना संदेशों के लिये दिल से आभारी।   फ़त्तू एंड असोसियेट्स की तरफ़ से आप सबको, आपके परिवार को, दोस्तों-दुश्मनों को, परिचितो-अपरिचितों को रंगों के इस त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये।

:)) फ़त्तू एक बार घर गृहस्थी के जंजाल से घबराकर बाबाजी बन गया था। घूमते भटकते एक गांव में पहुंचा और मंदिर में रुक गया। किसी ने खाना खिला दिया तो अगले दिन भी वहीं रुका रहा। देखते देखते अच्छी सेवा होने लगी(जैसे मुझे कमेंट्स देते हो आप सब:)) एक दिन गांव वालों ने सोचा कि ये तो मुटियाता जाता है जरा इसका दम खम भी तो देखा जाये। कुछ लोगों ने जाकर पूछा, “बाबाजी, कई दिन हो गये यहाँ डेरा डाले हो। हमसे जो कुछ हो सकता है,  सेवा कर रहे हैं। ये बताओ कल को हमारे भी कुछ काम आ जाओगे कि नहीं? कुछ सिद्धि-विद्धि भी है या यूँ ही ये बाना पहन रखा है?” फ़त्तू ने किसी भी समस्या से निपटने का भरोसा भी दिया और साथ में अपनी दो शर्तें भी बता दीं। पहली ये कि, “गांव की सामूहिक समस्या होनी चाहिये।”    और दूसरी ये  कि,  “साल में एकाध बार वो यानी बाबाजी  भड़भड़ा(सही शब्द तो कुछ और ही है, शायद याद नहीं आ रहा:)) जाते हैं। ब्लॉगजगत के लोगों को, सॉरी गाँववालों को तसल्ली हो गई। समस्यायें आतीं लेकिन बाबाजी की वही शर्त कि सांझी समस्या होनी चाहिये, आड़े आ जाती। कई साल बीत गये, एक बार गांव पर टिड्डी दल का भारी हमला हो गया। लोगों को कुछ न समझ आया तो भागकर फ़त्तू के पास गये और गुहार लगाई। लोगों ने कहा कि बाबाजी ये तो गांव सांझली समस्या है, आपकी पहली शर्त पूरी हो गई, कुछ उपाय करो।
फ़त्तू बोला, “भाई, इब तुम दूसरी शर्त याद कर ल्यो, साल में एकाध बार…. वाली।  आज तो बस यूँ समझ ल्यो कि बाबाजी  भड़भड़ा रहे हैं।”

पुनश्च: - सभी को होली की बहुत बहुत बधाई।


(मूल पोस्ट तीन साल पहले की है।) 

11 टिप्‍पणियां:

  1. होली की शुभकामनाएं। देखिये आज हम भी आ गए भड़भड़ा कर। होली है।

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  2. बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. झूठ पर सच सदा ही भारी है होली आख्या यही सुनाती है ।
    होली प्रहलाद को जलाती नहीं होलिका को जलाने आती है ॥

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  4. आपका वीडियो भी भडभडा गया है। होली की राम राम सा।

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  5. होली की हार्दिक शुभकामनाएं
    आपका लिखने शैली कविता से ज्यादा रस वाली है

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  6. होली की शुभकामनाएं पूरे एक दिन से...रंगों से निकल कर अपना चेहरा अब पहचान में आ रहा होगा आपको। अच्छा है कि तड़कती फड़कती पोस्ट ही निकलती है न कि कोई तड़कती फड़कती ....। खैर होली हो या दिवाली ..मनानी तो होगी ही हमें...माना कि त्रासदी होती है..परंतु जीवंत समाज ही तो उससे जूझता है...जीवंत समाज के लिए जरुरी है कि उसके सरंचना से जुड़े त्यौहार मनाए जाते रहें।

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  7. लिखने का मन करे तो लिखने से संकोच न करें, तड़कने भड़कने की बात पर तो शब्द स्वतः फड़कने लगते हैं।

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  8. होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  9. आप तो लिखते ही रहते हैं आपको भड़काने की क्या जरूरत? और भड़के, बिना भड़के उतना ही उम्दा लिखते हैं। बिहारी बाबू ने हमे अपने ब्लॉग बुलेटिन में ‘आवाज दे कर’ जरूर भड़का दिया और हाथ पकड़ कर लिखवा लिया!!

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  10. यही जमा हमको भी कि जब दुःख को रोक नहीं सकते तो खुशियों को क्यों रोके !

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