टीवी पर मैडम जी ने सिखलाया था,
एक होती है अच्छी दीवार
और एक होती है बुरी दीवार।
और ये भी, कि
तोड़ देनी चाहिये हर बुरी दीवार।
जो आज्ञा सरकार,
अब हमने ठान लिया है
कि आपकी ये बात भी मानेंगे।
दीवार टूटेगी, और
तय है कि जब भी टूटेगी
बुरी दीवार ही टूटेगी।
क्योंकि जो नालायक
अपनी दीवार न बचा पाया
वो क्या खाकर सिद्ध करेगा कि
उसकी दीवार अच्छी थी?
पड़ौसी देश के लीडर ने बयान दिया
कि गुड तालिबान और बैड तालिबान
में कोई फ़र्क नहीं होता।
ये अलग बात है कि ये इलहाम
लीडर को देर से हुआ।
तब हुआ, जब अपने चिराग से
घर रोशन हुआ लेकिन जलकर।
हमने तालियाँ बजाईं,
देखा, बजा फ़रमाया हुज़ूर ने।
फ़िर आया दौर ’माय च्वॉयस’ का,
कपड़े पहनने न पहनने की च्वॉयस
से लेकर बिंदी लगाने न लगाने की च्वॉयस
बच्चा पैदा करने या न करने की च्वॉयस
से लेकर सेक्स शादी से पहले, बाद
या बाहर करने की च्वॉयस।
कहते हैं कि इससे आधी आबादी
जो अब तक दबी कुचली थी,
मजबूत हो जायेगी।
औरत और मर्द के बीच की
दीवार टूटेगी।
इतनी बड़ी अभिनेत्री
करोड़ों में फ़ीस लेने वाली
जो ब्रांडेड कपड़ों और मेकअप
से हरदम लकदक करती हो,
झूठ थोड़े ही कहती होगी?
तय है कि दीवार फ़िर टूटेगी
और ये भी तय है कि
बुरी दीवार ही टूटेगी।
हम नालायक, जो अपनी दीवार न बचा सके
क्या खाकर सिद्ध करेंगे कि
हमारी दीवार बुरी नहीं थी?
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इस बार न केवल दीवार बचाई है बल्कि आदर्श लिबरल बैकफुट पर खड़े नजर आए। यह सोशल मीडिया की ही ताकत रही कि अधिकांश बुद्धिजीवी रिरिया रहे थे...
जवाब देंहटाएंबच के चलते हैं सभी खस्ता दरो दीवार से
जवाब देंहटाएंदोस्तों की बेवफाई का गीला पीरी में क्या
अरे!!! इतनी बड़ी अभिनेत्री झूठ कैसे बोलेगी? मतलब??
जवाब देंहटाएंअभिनेत्री और अभिनेता होते ही वे हैं जो फीस लेकर रोल प्ले करते हैं। अब शाहरुख आपको कई मंजिलों से कूद कर उसके बाद दसियों की पिटाई करते दीखते हैं तो क्या सच मच कर रहे होते हैं??
1॥ क्या अरुण गोविल राम थे या झूठ था या अभिनय?
2॥ क्या दारासिंह हनुमान हैं। या झूठ या अभिनय?
इसमें क्या फर्क आ गया?
यह एक इमेजिनरी माय चॉइस है। पिक्चर के प्रमोशन के लिए। इतना रिएक्शन न होता तो अधिकाँश लोग वह मूर्खतापूर्ण वीडियो देखते तक नहीं। नाटक उनका पेशा है और वे वही कर रहे हैं। इन प्रोमोशन वीडिओज़ को उनकी जगह रहने दिया जाए तो बेहतर। इतनी तवज्जो की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। जबरन उस वीडियो पर कोंट्रोवर्सि बनने से बेवकूफी समझदारी भरा सीरियस ईशु बनती जा रही है।
जो ऐसी मूर्खतापूर्ण चीज़ देख कर ऐसे मूर्खतापूर्ण काम करें ज्ञात हो कि वे पहले ही भीतर ऐसे थे। सिर्फ तरीके खोजते थे। जो सेंट के ad ने सुझाया। लड़कियों को तरीके खोजने की कम से कम अभी की सिचुएशन में ज़रूरत नहीं है न थी न आगे ऐसी स्थिति दिखती है। (यह ad हासिल करने के तरीके नही दे रहा। ) आज के भारत में कोई भी स्त्री बस इशारा भर दे दे तो ढेरों तैयार मिलेंगे। जिस चीज़ का सबको डर सता रहा है वह सिर्फ लड़की नहीं करती। पुरुष भी साथ होता है और अक्सर एक्टिव पार्टनर पुरुष ही होता है।
तो यदि पुरुष समाज इतना ही चरित्रवान है जितना सब दीपिका को चाह रहे हैं तो स्त्री अकेली उसका चरित्र डिगा नहीं सकती।
भारत की स्त्रियाँ ऐसी हैं नहीं। और यदि आज तक यह सब नहीं करती हैं तो इसलिए नही कि उन्हें ओपर्चुनिति नहीं बल्कि इसलिए कि उन्हें यह गलत लगता है। ...... तो एक मिनट की इक वीडियो से सब के मन बदल नहीं जाते। बदल गए (यदि) तो मान लीजिये नींव कमजोर ही थी तो टूटना ही था। वीडियो सिर्फ निमित्त बना।
ना
जवाब देंहटाएंझूठ नहीं बोलती
पता नहीं, अब तक देखा नहीं है वह ऍड सिर्फ सुना ही सुना है अब तक तो; कुछ कह नहीं सकते पर आपने करारा व्यंग लिखा है इसमें कोई दो राय नहीं। बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबड़े लोग हैं जी। जो कहते हैं - करते भी होंगे !
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